विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


ग़ज़ल में मेरी उसका ही नूर है

सनम मेरा इससे ही मसरूर है


वो गाती तरन्नुम में मेरी ग़ज़ल

इसी से नशा मुझको भरपूर है


सुने बात मेरी वो कैसे भला

अदाओं के नश्शे में जब चूर है


मेरे फोन में उसकी डीपी लगी

 इसी की ख़ुशी में वो मग़रूर है 


किसी और जानिब भी क्या देखना 

नज़र में मेरी इक वही हूर है


ज़माने के तंज़ों की परवाह क्या

हमेशा से इसका ये दस्तूर है


ये ग़म जान ले ले न मेरी कहीं

मेरी हीर मुझसे बहुत दूर है


ख़ुशी से लगाती है वो माँग में

मेरे नाम का अब भी सिंदूर है


दुआएं गुरूवर की *साग़र*  हैं यह

मेरी हर ग़ज़ल आज  मशहूर है


🖋️विनय साग़र जायसवाल

मसरूर-प्रसन्न ,ख़ुश

जानिब-दिशा 

मग़रूर ,अभिमान ,घमंड

22/12/2020

बहर-फऊलुन फऊलुन फऊलुन फ्अल

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