सुनीता असीम

यहीं आवाज़ आई चारसू से।
बुराई से लड़ो ला-तक्नतू से।
****
नहीं बच्चे भी सुनते अब किसी की।
बने मां-बाप के हैं         वो अदू से।
****
मिले मंजिल उसे कोशिश करे जो।
है मिलता क्या नहीं हिम्मत जुनू से।
****
मिलन आसान होता है अगर जो।
न मतलब कोई है फिर आरजू से।
****
गलत जब काम मुझसे हो गया हो।
बची फिरती हूं रब के रूबरू से।
****
नहीं जब काम अच्छे करने तुमको।
रहा क्या फायदा फिर है वुजू से।
****
सुलझते जब नहीं झगड़े हों घर के।
उन्हें सुलझा लो फिर तुम गुफ्तगू से।
****
ला-तक्नतू=हिम्मत
अदू=दुश्मन

सुनीता असीम
७/४/२०२१

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...