निशा अतुल्य

गर्व कियो सो ही हारो
21.5.2021
मनहरण घनक्षरी
8,8,8,8,7 चार चरण पदांत गुरु 

गर्व कियो सो ही हारो
स्वाभिमान को संभालो
अभिमान होता बुरा
बात जान लीजिए।

थोड़ा उपकार करो
अँखियों को नीची रखो
जान नहीं पाए कभी
दान तभी दीजिए।

गुप्त दान है जरूरी
लालसा से रहे दूरी 
सब जन एक से हैं
मन प्रण कीजिए ।

ताज तख्त लूट गए
गर्व में जो जन खोए
समूल का नाश हुआ
जहर न पीजिए।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511