बढ़ गए हैं काफिले खामोशियों के।
कदम कम साथ हैं अब साथियों के।
****
बदन से जान का है फासला कम।
गिरे हैं फूल कितने टहनियों के।
****
तबाही का है मंज़र चारसू अब।
लगे झटके हैं सबको बिजलियों के।
****
हैं चहरे श्वेत पड़ते आज सबके।
उड़े हैं रंग भी तो तितलियों के।
****
कहीं खाना कहीं सिन्दूर गायब।
कदम ठिठके हुए हैं पुतलियों के।
****
सुनीता असीम
२१/५/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511