रक्षाबंधन.................
न भाई बहिन का पर्व ये केवल
सबलों का है निबलों को संबल
एक धागे के बंधन में बंध कर
बढ़ जाता है असहायों का बल
है संस्कार संस्कृति की जंजीर
बांधे रहती है संबंधों को राखी
एक दूजे के लिए समर्पण बन
रिश्तों में सदभावों की साक्षी
निज कर्तव्य का बोध कराती
परम्पराओं को मंडित करती
कैसी रक्षाबंधन की पावनता
दुसवृतियों को खंडित करती
आओ मिल करके संकल्प करे
सदभावों के बंधन में बंध जाएं
है अतुल धरोहर भारतीयों की
पुण्य पर्व को न कभी लजाएं
जाति धर्म से ऊपर है मानवता
हुमायूं ने ये कर दिया प्रमाणित
उज्ज्वलता लेकर के भावों में
करें कभी न नरता अपमानित।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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