संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

गीतिका

हम लगाते इस हृदय से प्रेम से दिलबर तुम्हें
काश तू भी पास होती आज इस बरसात में

पास आओ अब सनम दिल से हमें तुम लो लगा
खोल बाहें तुम पिला दो अब अधर रस रात में

खींचता हरपल हमें है ज्यों कमल शुभ भृंग को
है नशा दिलबर निराला सुर्ख़ कोमल गात में

बात फूलों से सुनी दिलबर तुम्हारे रूप की , 
ओस की ज्यों बूंद सजती है कमल के पात में। 

ये पयोधर का खजाना शुचि अधर रस साथ में
प्रेम अपना दो सनम अब तो मुझे सौगात में। 

संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
दुतारांवाली अबोहर पंजाब

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