अर्चना सिंह

शीर्षक - रक्षाबंधन, कोरोना काल में  । 

धरती का रूप सुहाना ,चारों ओर बहार, 
आया सावन झूम के ,लाया राखी का त्यौहार ।। 

मां बापू की आंखों का तारा 
हम सब बहनों का प्यारा
संकट चाहे जितने आए
 पैर अपने पसार न पाए 
इस पावन रक्षाबंधन पर
तन मन सब न्योछावर 
अजब अनूठे रंग में डूबा राखी का त्यौहार
आया सावन झूम के ,लाया राखी का त्यौहार  ।। 

भैया तुम जियो हजारों साल
प्रार्थना करती बहना यही हर साल
सुख समृद्धि से भरा जीवन ,रहे खुशहाल 
प्यार का धागा बांधू, रहो मालामाल
सबका मंगल करना भैया 
सदा बना रहे अपना प्यार
रेशम के धागों से बंधा भाई बहन का प्यार
आया सावन झूम के लाया राखी का त्यौहार  ।। 

अबकी बार ना आऊंगी भैया 
कहना आंसू ना बहाएगी मैया
बीत जाए जब 
कोरोना काल
दौड़े आऊंगी अगले साल
पर मेरे रेशम का धागा बांध अपनी कलाई पर 
मेरे स्नेह और विश्वास का बांधे रखना डोर
मन मेरा हर्षा देना दूर से ही अबकी बार
आया सावन झूम के लाया राखी का त्यौहार। । । 
                                     अर्चना सिंह

व्यंजना आनंद मिथ्या

सुन आत्मा को
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    आत्मा की
            आवाज ।
  कोई सुनता नहीं ।
         इसलिए 
    ही तो ,
     हम मानवता से
बहुत दूर 
       कोशों दूर -
     हुए जा रहें है ।
         जब हम सुनते
     आत्मा  की 
              आवाज ।
    तब हमारा 
  होता खुद से
         साक्षात्कार ।
    हम
        हम नहीं रहते,
   ईशमय 
        होते हैं ।
तब कोई न मित्र
      न कोई दुश्मन ,
    हर जन अपना।
        दुनिया तो 
   बस एक सपना।।
       कोई नहीं 
           सब झूठ है ।
   माया का सब
          एक रूप है ।।

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व्यंजना आनंद मिथ्या आनंद

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