डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 खूबसूरत यादें

         *गाँव की खुशबू*

बहुत याद आए वो मंज़र सुहाना,

बगीचे में जाना,नदी में नहाना।

पीपल-तले बैठ कर हो मुदित नित-

मधुर तान मुरली का रह-रह बजाना।।

              वो मंज़र सुहाना।


खेत को जोतते बजती बैलों की घंटी,

मंदिरों में भी घड़ियाल बजते सुहावन।

बहुत मन को भाता था गायों का चरना,

कूदते संग में उनके बछड़े मन-भावन।

कान में डाल उँगली जब गाता चरवाहा-

बहुत याद आए सुरीला वो गाना।।

             वो मंज़र सुहाना।।


खेत की सारी फसलें जो थीं लहलहाती,

चना और अरहर-मटर भी थी भाती।

बगल बाग में आम-महुवा की खुशबू,

याद सबकी हमें आज रह-रह सताती।

नहीं भूल पाता मेरा मन ये कोमल-

किसी माँ का लोरी गा शिशु को खिलाना।।

            वो मंज़र सुहाना।।


सरसों के फूलों का गहना पहन कर,

करती नर्तन थी सीवान भी मस्त होकर।

होतीं थीं प्यारी सी सुबहें सुहानी जो,

रात के तम घनेरे को शबनम से धोकर।

गाँव का प्यारा-सीधा-सलोना सा जीवन-

न भूले कभी पाठशाला का जाना।।

              वो मंज़र सुहाना।।


वो सावन की कजरी,वो फागुन का फगुवा,

झूलते झूले-रंगों के वो दिलकश नज़ारे।

आज भी जब-जहाँ भी रहूँ  मैं अकेला,

उनकी आवाज़ें हो एक मुझको पुकारे।

हाट-बाजार-मेलों की तूफ़ानी हलचल-

हो गया है असंभव अब उनको भुलाना।।

               वो मंज़र सुहाना।।


गाँव की गोरियों का वो पनघट पे जाना,

सभी का वो सुख-दुख को खुलके जताना।

पुनः निज घड़ों में रुचिर नीर भर कर ही,

मधुर गीत गा-गा कर,त्वरित घर पे आना।

चाह कर भी न भूलेगा वो प्यारा सा आलम-

था घूँघट तले उनका जो मुस्कुराना।।

          वो मंज़र सुहाना।।

          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

             9919446372

दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

 औषधि अपना गुण न दिखाये, 

नहीं   व्याधि   को  ठीक  करे।

तब   समझो   सब  अंतिम  है,

अन्न जल भी खुद को खाक करे।।


देख चिता धू-धू जल लव रूप दिखाये,

मृत्यु  अटल  सत्य  बने  स्वीकार  करे।

जीवन   पथ   का   अंतिम   पड़ाव   है,

नवकिसलय का पथ सुलभ स्वीकार करे।।


श्मशान पर खुद में खुद को लोग मिले, 

करते  शाश्वत   सम्प्रभुता  की  तैयारी।

कैसी है दिल दुखाने  की  ये  रीति यहां,

क्षमा  भी  मांग  लेते  हैं  कर  विचारी।।


संकल्प  हृदय  पथ  के  अविचल,

तूफानों के उफानों से भरा है मन।

डाली से पत्ते के  झड़ने  सा  दु:ख

लिये फिरता है सारा जीवन मृत तन।।


निश्छल उर जो हो पूण्य आत्मा,

उनको ही स्वर्गासन मिल जाये।

पापी, कपटी, कलुषित  उर का, 

नरक  द्वार   ही   खुल   जाये।।


जीवन अमृत धरा धाम का, 

हर उर को पावन करता है।

भले न मानव रहता जग में,

उसकी अच्छाई आसन करता है।।



    दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

नूतन लाल साहू

 सफलता की कुंजी


इस संसार में अनेक कलाये है

पर जो दूसरों के हृदय को छू लें

वो सबसे बड़ा कलाकार हैं

भूतकाल और भविष्य पर

नहीं दीजिए, ध्यान

वर्तमान में ही रहकर

लाओ होठो पर मुस्कान

कल क्या होगा यह राज

कौन सका है जान

झेल लिया जिस शख्स ने

पीड़ा का संघर्ष

एक दिन उसके सामने

नमन करेगा हर्ष

सांसे हमारी सीमित है

मृत्यु खड़ी है द्वार

एक बात लिख लीजिए

नहीं सांच को आंच

शक संशय पालकर

व्यर्थ न जलाओ हाड

यह जीवन इक युद्ध है

कभी जीत तो कभी हार

सबसे मीठा बचन बोल

वाणी का बाण,घातक होता है

जो पाया सबका आशीष

वहीं श्रेष्ठ इंसान होता है

भक्ति में मस्त,हनुमान जी को देखो

हृदय में प्रभु राम दिखा डाला

श्री कृष्ण भक्ति में मस्त,मीरा को देखो

विष का प्याला को अमृत बना डाला

इस संसार में अनेक कलाये है

पर जो दूसरों के हृदय को छू लें

वो सबसे बड़ा कलाकार होता है


नूतन लाल साहू

मन्शा शुक्ला

 परम पावन मंच का सादर नमन

                 सुप्रभात  

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मोर मुकुट है शीशपर,उर बैजन्ती माल।

रूप सलोना साँवरा,तिलक केसरी भाल।।


वंशी वट वेणू बजी, नटवर नंद किशोर।

गोप गोपिका मिल चले,सुन मुरली का शोर।।


 गोप बाल संग खाते,माखन माखनचोर।

 लीला नटखट दिखाते , नटवर नंदकिशोर।।



चित्त चुरा के ले गये ,मेरा मनहर श्याम।

मूरत राधे श्याम की,सुमिरन आठों याम।।


सुन्दर छवि राधे किशन,सुन्दर सुषमा धाम।।

जग की भव बाधा हरो,राधा मोहन श्याम।।

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मन्शा शुक्ला

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।चार दिन की चांदनी,खत्म सब*

*बात है।रह जाती जहाँ में, तेरे कर्मों*

*की सौगात है।।*

एक शब्द मन्त्र   और  एक 

शब्द गाली हो   जाता    है।

अपनी बोलचाल से व्यक्ति

मवाली      हो    जाता   है।।

शरीर और     मन की   भी 

इक     भाषा अलग  होती।

खो जाये यकीं गर आदमी

तब सवाली हो  जाता   है।।


हमेशा  प्रभु   की   कृपा  में

आप अपनी आस्था रखिये।

किस्मत में  कम  और  कर्म

से ज्यादा   वास्ता     रखिये।।

रहोगे काम    में   मगन  तो

कुछ बुरा       सोचोगे   नहीं। 

हर मुश्किल से निकलने का

जरूर   इक   रास्ता  रखिये।।


रुक  जाती   श्वास       फिर

ये  ठाठ   खत्म हो जाता है।

एक दिन   जाकर    जीवन

घाट पर   खत्म हो जाता है।।

याद रखो जीता    हुआ भी 

हार जाता        अहंकार से।

बनाकर रखो यूँ सब साहब

लाट  खत्म   हो     जाता है।।


चार दिन की चांदनी    फिर

तो बस    अंधेरी    रात   है।

इस जहान      में रह  जाती

बस तेरे    कर्मों की बात है।।

ज्ञान और नम्रता मिल   कर

बन     जाते हैं          अमृत।

यूँ ही जीना   जीवन   मिली

जिसकीअनमोल सौगात है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।            9897071046

                     8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-58

कहे राम मैं नगर न जाऊँ।

पिता-बचन मैं तोरि न पाऊँ।।

     तुरत गए सभ तिलक करावन।

     कीन्हेउ तिलक-कर्म अति पावन।।

सादर ताहि बिठाइ सिंहासन।

बिधिवत देइ बिभीषन आसन।

      आए तुरत राम जहँ रहहीं।

      लेइ बिभीषन अपि ते सँगहीं।।

तब प्रभु राम बोलि हनुमाना।

कह लंका पहँ करउ पयाना।

       समाचार सभ सियहिं सुनावउ।

       कुसलइ-छेमु तासु लइ आवउ।।

तुरत पवन-सुत लंका गयऊ।

देखि निसिचरी तहँ तब अयऊ।।

     बिधिवत हनुमत-पूजा किन्ही।

     तब देखाइ बैदेही दीन्ही ।।

हनुमत कीन्हेउ सियहिं प्रनामा।

कुसलहि कहेउ सकल प्रभु रामा।।

     लखन साथ कपि-सेनहिं माता।

      लिए जीति दसमुख सुख-दाता।।

अबिचल राज बिभीषन पावा।

कृपानिधानहिं राम-प्रभावा ।।

      कुसलइ-छेमु जानि बैदेही।

      नैन नीर भरि कहेउ सनेही।।

का मैं तुमहिं देउँ हे ताता।

बिमल भगति जे दियो बिधाता।।

     मम हिय चाहूँ तोर निवासा।

      लछिमन सहित राम कै बासा।

सदगुन सदा रहहि तव हृदये।

प्रीति नाथ तव जुग-जग निभये।।

     अस कछु जतन करउ हनुमंता।

     देखहुँ साँवर तन भगवंता ।।

तुरत कीन्ह हनुमान पयाना।

समाचार रघुनायक जाना।।

दोहा-लेहु बिभीषन-अंगदहिं,पवन-तनय-हनुमान।

         कह रघुबर सादर सियहिं,लावहु इहँ सम्मान।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                           9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *लेखनी के यशस्वी पुजारी*

कालिदास की उपमा उत्तम,बाणभट्ट की भाषा,

तुलसी-सूर-कबीर ने गढ़ दी,भक्ति-भाव-परिभाषा।

मीर व ग़ालिब की गज़लों सँग,मीरा के पद सारे-

"प्रेम सार है जीवन का",कह,ऐसी दिए दिलासा।।

                      बाणभट्ट की.........।।

सूत्र व्याकरण के सब साधे,अपने ऋषिवर पाणिनि,

वाल्मीकि,कवि माघ सकल गुण, पद-लालित्य में दण्डिनि।

कण्व-कणाद-व्यास ऋषि साधक,दे संदेश अनूठा-

ज्ञान-प्रकाश-पुंज कर विगसित,हर ली सकल निराशा।।

                   बाणभट्ट की.............।।

गुरु बशिष्ठ,ऋषि गौतम-कौशिक,मानव-मूल्य सँवारे,

औषधि-ज्ञानी श्रेष्ठ पतंजलि,रोग-ग्रसित जन तारे।

ऋषि द्वैपायन-पैल-पराशर,कश्यप-धौम्य व वाम-

सबने मिलकर धर्म-कर्म से,जीवन-मूल्य तराशा।।

                बाणभट्ट की.............।।

श्रीराम-कृष्ण,महावीर-बुद्ध थे,पुरुष अलौकिक भारी,

महि-अघ-भार दूर करने को,आए जग तन धारी।

करके दलन सभी दानव का,ये महामानव मित्रों-

कर गए ज्योतिर्मय यह जीवन,जला के दीपक आशा।।

              बाणभट्ट की...............।।

किए विवेकानंद विखंडित,सकल खेल-पाखंड,

जा विदेश में कर दिए क़ायम, भारत-मान अखंड।

श्रीअरविंदो ने भी करके,दर्शन का उद्घोष-

भ्रमित ज्ञान-पोषित-मन-जन की,दूर भगाया हताशा।।

              बाणभट्ट की...............।।

भारतेंदु हरिचंद्र हैं,हिंदी-कवि-कुल के गौरव,

उपन्यास-सम्राट,प्रेम ने दिया,कहानी को इक रव।

आचार्य शुक्ल,आचार्य हजारी,भाषा-मान बढ़ाए-

पंत-प्रसाद-निराला भी हैं,हिंदी-बाग-सुवासा।।

               बाणभट्ट की.............।।

यात्रा के साहित्य-पितामह,बहुभाषाविद राहुल,

बौद्ध-धर्म के अध्येता वे,पंडित महा थे काबिल।

सांकृत्यायन राहुल जी भी,ज्ञान-ध्वज फहराए-

ज्ञान-ज्योति-नव दीप जलाकर,दीप्त किए जिज्ञासा।।

            बाणभट्ट की............ ।।

गुप्त मैथिली-दिनकर-देवी,महावीर जी ज्ञानी,

सदानंद अज्ञेय प्रणेता-मुक्त छंद-विज्ञानी।

नीरज-बच्चन गीत-विधाता,सब जन को हैं प्यारे-

प्रखर लेखनी श्री मयंक की,अद्भुत वाग-विलासा।।

           बाणभट्ट की...............।।

नग़मा निग़ार चलचित्र-जगत के,सबने नाम किया है,

राही-हसरत-कैफ़ी-मजरुह ने,रौशन पटल किया है।

बख़्शी-अख़्तर-कवि प्रसून-अंजान सहित इंदीवर-

साहिर-शकील-गुलज़ार सभी ने,नूतन गीत तलाशा।।

         बाणभट्ट की................।।

धन्य धरा यह भारत है,जो जन्म दिया इन लोंगो को,

अध्यात्म-ध्यान,कर्तव्य-ज्ञान का,धर्म सिखाया लोंगो को।

ऋषि-मुनि-ज्ञानी-ध्यानी,सबने मान बढ़ाया माटी का-

"जीवन है अनमोल"तथ्य का,सबने किया खुलासा।।

            बाणभट्ट की............।।

                  

                  डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

रवि रश्मि अनुभूति

 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


    🙏🙏


  दोहा छंद 

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प्रदत्त शब्द ----

पताका , मित्रता , आरोप , कामिनी , अपराधी , गुलाब , लगन , महिला , हृदय , अपरिचित ।


1 ) पताका 

प्रेम पताका तो सदा , फहराओ तुम मीत ।

ऊँची जितनी ही उड़े , होगी उतनी जीत ।।


2 ) मित्रता 

कान्हा ने की मित्रता , निभाई दिवस रात ।

सुदामा बने थे सखा , भात दिये सौगात ।।


3 ) आरोप 

आरोप लगा गोपियाँ , कहें चोर है श्याम ।

घबराये कान्हा नहीं , भले करें बदनाम ।।


4 ) कामिनी 

भले बनी है कामिनी , रूप सौंदर्य धार ।

मोहित कान्हा देखते , नैनन बने कटार ।।


5 ) अपराधी 

अपराध करो मान लो , पापी मन यह जान ।

सच्चे होते जो सदा , पाते हैं पहचान ।। 


6 ) गुलाब 

कोमल हृदय गुलाब सा , गुलाब सी हो आब ।

ख़ुशबू उठे गुलाब सी , उसका नहीं जवाब ।।


7 ) लगन 

बिना लगन न ईश मिले , जपो राम का नाम ।

पहुँचोगे हरि धाम ही , दुनिया से क्या काम ।।


8 ) महिला 

महिला मन है बावरा , सहनशील गंभीर ।

विचलित मन होता नहीं , रखे सदा ही धीर ।।


9 ) हृदय 

बसते मन में मोहना , रखे सदा ही ध्यान ।

बात - बात में दे रहे , हँसी हँसी में ज्ञान ।।


10 ) अपरिचित 

अपरिचित संग सदा ही , तोल मोल के के बोल ।

चाहे कोई भी रहे , भेद न दिल के खोल ।।

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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '

29.1.2021 , 9:30 पीएम पर रचित ।

मुंबई   ( महाराष्ट्र ) ।

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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹

 31.1.2021 .

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--


हवा का ज़ोर इरादा डिगा नहीं सकता

चराग़े-इश्क़  हूँ कोई बुझा नहीं सकता

हुस्ने-मतला--


किसी के सामने सर को झुका नहीं सकता

वजूद अपना यक़ीनन मिटा नहीं सकता


फ़कत तुम्हारी ही मूरत समाई है दिल में 

इसे मैं चीर के सीना दिखा नहीं सकता 


किसी के प्यार से जान-ओ-जिगर महकते हैं

यक़ीन उसको ही लेकिन दिला नहीं सकता 


वो इस जहान में रुसवा कहीं न हो जाये 

किसी को दाग़ भी दिल के दिखा नहीं सकता 


बसी हैं ख़ुशबुएं इनमें उसी की सांसों की

ख़तों को इसलिए भी मैं जला नहीं सकता 


मुझे है आज भी चाहत तुम्हें मनाने की

सितारे तोड़ के हालाँकि ला नहीं सकता 


जला के ख़ुद को ये नस्लों को रौशनी दी है

ज़माना लाख भुलाये भुला नहीं सकता 


वो कर रहा है जफ़ा मुझसे बारहा *साग़र* 

ये और बात है रिश्ता मिटा नहीं सकता 


🖋️विनय साग़र जायसवाल 

बरेली 

2/11/2014

सुनीता असीम

 भरी आंखें मगर रोने न पाए।

सपन तेरे कभी सजने न पाए।

*****

विरह का योग प्रबल इतना था के।

सिकुड़ तन ये गया पर मरने न पाए।

*****

बड़ा था वेग मेरे आंसुओं का।

की हमने कोशिशें थमने न पाए।

*****   

निगाहे यार का हम थे निशाना।

रहे जिन्ह़ार हम लुटने न पाए।

*****

लुटे बेमोल मन के भाव सारे।

कि मोती इश्क के बहने न पाए।

*****

कन्हैया हो सुनीता के अगर तुम।

कहो वो बात हम कहने न पाए।

*****

सुनीता असीम

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-57

रोवत-बिलखत-पीटत छाती।

गई मँदोदरि रावन धाती ।।

     सहि नहिं सकी भार तव धरनी।

     तन तव नाथ आजु भुइँ परनी।।

कच्छप-सेष बिकल हो जाएँ।

परत भार तव बहु अकुलाएँ।।

      नाथ तुम्हार तेज बड़ चमकै।

      चंदन-अग्नि-तेज लखि लरकै।।

काल जितेउ तुम्ह भुज-बल नाथा।

आजु परेउ भुइँ असुध-अनाथा।।

     बायु-बरुन-कुबेरहिं जीतेउ।

      निज भुज-बल तुम्ह इंद्र घसीटेउ।।

नाथ-तेज जानहिं तिहुँ लोका।

पर तुम्ह दियो राम प्रभु सोका।।

     तव गति भई एही तें अइसन।

      जइसन करम मिलै फल तइसन।।

भयो बिनष्ट तोर कुल सारा।

बचा नहीं अब रोवनहारा।।

       सुनि बिलाप मंदोदरि बेवा।

         ब्रह्मा-सिव-सनकादिक देवा।।

नारद सहित सिद्ध मुनि-जोगी।

भए प्रसन्न मुदित सुख-भोगी ।।

     लगे निहारन संकट-मोचन।

      भरे नीर तें निज-निज लोचन।।

नारिन्ह बिलखत देखि बिभीषन।

पहुँचे तहाँ तुरत भारी मन ।।

      रावन-दसा देखि भे सोका।

      कीन्ह लखन समुझाइ असोका।।

किरिया-करम तुरत तब करई।

प्रभु कै कृपा-दृष्टि जब भवई।।

      तब मंदोदरि देइ तिलांजलि।

       की अरपित सभाव श्रद्धांजलि।।

दोहा-तब प्रभु राम बुला लखन,अंगद-निल-जमवंत।

         कह करु तिलक बिभीषनै, नल-कपीस-हनुमंत।

                            डॉ0हरि नाथ मिश्र

                               9919446372

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।बनो बीज कि दब भी गये तो*

*फिर उग जायो तुम।।*


दब जायो मिट्टी   में फिर भी

बीज से उग आओ तुम।

गिर जायो फिर  भी   संभल

कर उठ    आओ   तुम।।

बनो कोई ऐसी इक   नायाब

सी     तस्वीर       तुम।

मिट जायो फिर  भी     वैसी

ही  उकर आओ  तुम।।


आदमी    खोकर   भी जरूर

कुछ    सीखता     है।

व्यक्ति मुसीबत से  होकर भी

कुछ    सीखता     है।।

अंधेरा नहीं ज्यादा रोशनी भी

बनाती    है       अंधा।

हार के बाद   रोकर  भी बहुत

कुछ    सीखता     है।।


आज है जिंदगी  और कल  भी

रहेगी     ये     जिंदगी।

हर मुश्किल    का    हल     भी

रहेगी      ये    जिंदगी।।

जिन्दगी गर सवाल   तो  जवाब

भी है       ये जिन्दगी।

व्यक्ति की कमजोरी पर बल भी

रहेगी    ये     जिंदगी।।


वही होते    ऊंचे    जो  प्रतिशोध 

नहीं परिवर्तन सोचते हैं।

तोड़ते नहीं टूट      कर   फिर भी

खुद   को  जोड़ते    हैं।।

रंगों को       निखरने   के     लिए

पड़ता    है     बिखरना।

वही जीतते   हैं     जो  जीवन को

सही दिशा में मोड़ते हैं।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*

*बरेली।।*

मोब।।।          9897071046

                     8218685464

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--


बाक़ी हुरूफ़ जो ये मेरी दास्तां के हैं

अहसान यह भी मुझ पे किसी मेहरबां के हैं


रह रह के बिजलियों को है इनकी ही जुस्तजू 

तिनके बहुत हसीन मेरे आशियां के हैं 


भूले हुए हैं लोग गुलामी की बेड़ियाँ 

गुमनाम आज नाम कई पासबां के हैं


इन रहबरों ने आज वफ़ा की किताब से 

नोचे वही वरक़  जो मेरी दास्तां के हैं 


हँसते हुए ही दारो-रसन पर चढ़ेंगे हम 

फ़रज़न्द हम भी दोस्तो हिन्दोस्तां के हैं 


इन तेज़ आँधियों का चराग़ों न ग़म करो 

फानूस बन के लोग खड़े आशियां के हैं 


फिर मकड़ियों ने जाल बुने हैं जगह जगह

गर्दिश में फिर नसीब क्या अपने मकां के हैं


रौशन चराग़ कर के रहेंगे ए-सुन हवा 

पाबंद हम तो आज भी अपनी ज़ुबां के हैं


साग़र चमन को दिल से जो सींचा है इसलिए

हर सू महकते फूल मेरे गुलसितां के हैं


🖋️विनय साग़र जायसवाल 

22/5/1986

निशा अतुल्य

 30.1.2021

*बापू की पुण्य तिथि जिन्होंने विश्व को  अहिंसा प्रेम और सत्य का पाठ पढ़ाने की पहल की*

🙏🏻😊


बापू कहाँ हो

जीवन भटक रहा

आओ संभालो ।


ये किसान जो

भरता उदर को 

है अन्नदाता ।


किसान बिल

आंदोलन आधार

भटक गया ।


देश महान

क्यों किया अपमान 

कैसा विधान ।


तिरंगा शान

देश का अभिमान

भूल गए क्यों ।


पूत तुम्हारे

सीमा पर हैं खड़े

दे बलिदान ।


हैं शर्मशार

उसका बलिदान 

क्यों किया कृत्य ।


बापू बोलो तो

क्या सिखाया तुमने

ये बलिदान ।


सत्य,अहिंसा 

खो गया बलिदान 

नमन तुम्हें ।


संभालो बापू

भटक रहा है क्यों 

देश महान ।


नमन तुम्हें 

पुण्य तिथि तुम्हारी

तुम्हें प्रणाम    🙏🏻💐



स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *अमर शहीद*(दोहा ग़ज़ल)

अमर शहीदों को नमन,नमन सपूत-जवान।

हे माटी के लाल तुम,हो भारत की शान ।।


हर मौसम में रह सजग,किए सुरक्षित लाज।

प्राण-समर्पण कर दिए,रखे देश का मान।।


रौंद शीष अरि का सभी,बढ़ा देश का नाम।

भारत माँ की प्राण दे,बचा लिए सब आन।।


युद्ध रहा हो कारगिल,या फिर था वो चीन।

सबका तोड़ गुरूर ये,दिए हमें पहचान।।


वीर सपूत शहीद हैं,परम त्याग की मूर्ति।

ये रक्षक-प्रहरी नहीं,ये लगते भगवान ।।


राष्ट्र-सुरक्षा हेतु ये,तज निज कुल-परिवार।

धूल चटा दी शत्रु को,लड़ निज सीना तान।।


डटे रहे हर वक्त सब,सीमा पर ये लाल ।

अमर शहीदों का सदा,करें सभी सम्मान।।

              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

लवी सिंह बहेड़ी, बरेली ये मेरा हिंदुस्तान

 इस माटी में जन्म लिया 

ये मेरा हिन्दुस्तान है,

ये मेरा अभिमान है 

ये मेरा सम्मान है,

मेरा भारत देश महान है 

ये मेरा हिंदुस्तान है ।।


न धर्म जाति का बन्धन है

न सूना घर आँगन है,

हर घर में खुशहाली है 

यहाँ रोज़ ईद दीवाली है,

मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरिजाघर एक समान है 

मेरा भारत देश महान है,

ये मेरा हिंदुस्तान है ।।


यहां गोली खाकर सीने पर भी

हर जवान हँसता है,

हर भारतवासी के दिल में 

बस हिंदुस्तान बसता है,

मातृभूमि की लाज की खातिर

सर्वस्व अपना लुटाता है,

जहाँ बात आये देश की आन की 

कभी गांधी तो कभी भगत सिंह बन जाता है,

हर युवा विवेकानन्द और बच्चा- बच्चा कलाम है,

मेरा भारत देश महान है,

ये मेरा हिंदुस्तान है ।।


लवी सिंह

बहेड़ी, बरेली


वैष्णवी पारसे

 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 


हम भारत के लोग 


हम भारत के लोग

मानवता हमारा धर्म 

दिल में हमारे अपनत्व 

जानते प्रेम का मर्म


त्याग हमारा गुण

भाव हमारे निर्मल 

स्नेह की बहती गंगा

मन से सदा निश्छल 


सभ्यता के हम धनी

विशाल हमारा मन

अपना किसी को कहते

करते सर्वस्व अर्पण 


प्रेम त्याग वत्सल 

बांटते सदा प्यार

भूखा न कोई जाता

आए अगर द्वार


विश्व पटल पे गूंजती

सदा हमारी संस्कृति 

कहते जो वही करते

ऐसी हमारी प्रकृति 


प्यारा हमारा भारत

भगवा हमारी शान

हर दिल में तिरंगा 

हर नजर में सम्मान 


जब तक जियेंगे

एकता के साथ रहेंगे 

भारत माता की जय

पल पल कहेंगे


हैं बस इतनी आस

दामन तेरा हो हाथ

अगर दुबार जन्में

भारत माँ तेरा हो साथ


स्वरचित

वैष्णवी पारसे

सुषमा दिक्षित शुक्ला

 ये मातृ भूमि का वन्दन है 


ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है । 

हम  सब तेरे रखवाले  मां,

ये माँ बच्चों का बंधन है।

 ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनन्दन है ।

तेरी  आन न जाने पाये ,

तुझपे जान लुटा देंगे ।

तेरे चरणों में लाकर के ,

शत्रू शीश झुका देंगे ।

ये मातृभूमि का वन्दन  है अभिनंदन है ।

हम  सब तेरे रखवाले मां,

 ये मां बच्चों का बंधन है ।

चंदन जैसी तेरी ममता ,

 है रखनी  तेरी शान हमें ।

अगर जरूरत पड़ी वक्त पर,

 न्योछावर है  प्रान  तुम्हें  ।

ये मातृभूमि का वन्दन  है अभिनंदन है।

 हम सब तेरे रखवाले ,

मां ये मां बच्चों का बंधन है ।

मां तेरा क्रंदन असहनीय ,

ऐ! मातृभूमि तू प्यारी है ।

हम तेरे प्यारे बालक हैं,

 तू हम सब की फुलवारी है ।

ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है ।

हम सब तेरे रखवाले मां  ,

ये माँ बच्चों का बंधन है ।


सुषमा दिक्षित शुक्ला

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 ------वतन-----


.तन वतन के लिये

मन वतन के लिए

भाव भावनाए वतन का प्रवाह

वतन ही जिंदगी वतन ही पहचान ।।

वतन पर जीना मरना ही 

ख्वाब हकीकत अरमान 

वतन सलामत रहे 

वतन से ही रिश्ता खास अभिमान ।।

वतन की संस्कृति संस्कार तिरंगा

 शान स्वभिमान तिरंगा

वंदे मातरम माँ भारती के

आराधन का मूल मंत्र सम्मान तिरंगा।।

सीने में वतन की जज्बे  की ज्वाला।

 सांसो धड़कन की गर्मी

वतन की अस्मत  प्राण।।

चाहे जितने भी आये माँ

भारती को बनाने गुलाम

त्याग बलिदानी धरती के माँ

भारती के बीर सपूतों ने माँ भारती की आजादी की रक्षा में दे दी जान।।

वतन की राह चाह में हो

गए कुर्बान ना कोई अफसोस

ना कोई ग्लानि हँसते हँसते

लड़ते तिरंगे को दिया ऊंचाई

आसमान।।

दुश्मन जो आंख दिखाए

उसका कर दे वो हाल 

जल बिन जैसे मछली तड़पे

पानी बिन तरसे जीवन को

मौत की मांगें भीख मर्दन कर दे

कर दे मान।।

वतन धर्म ,वतन कर्म दायित्व

सपनो में भी वतन भौतिकता

नैतिकता  में वतन की गरिमा

गौरव का पल पल मर्यादा की

गौरव गाथा गान का भान।।

आजादी के दीवानों परवानों के

बलिदानों के उद्देश्य पथ का पथिक

स्वतंत्रता गणतंत्र के मौलिक

मूल्यों का अवनि आकाश आन

वान का जीवन जान।।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर

सती शंकर भरत के साधु संतों की देश भक्ति बलिदान---


कौन कहता है माँ भारती के

सत्य सनातन  का साधु संत

धर्म कर्म साधना आराधना शास्त्र

आचरण का सिर्फ प्रवचन सुनाते।।

जब- जब राष्ट्र समाज पर क्रुरता आक्रांता आता।।


जागृत हो साधु संतों का समाज

मंदिर से क्रांति चेतना के अंगारों में खुद की आहूति करते भेंट चढ़ाते।।


घंटे और घड़ियालों की आवाजों से

राष्ट्र समाज को नित्य झकझोरता सावधान  करता।।

कुरूक्षेत्र के युद्ध भूमि से योगेश्वर कृष्ण के गीता ज्ञान का हो प्रत्यक्ष प्रमाण धर्म युद्ध में पांचजन्य की

शंख नाद है करता।।

भारत ने भुला दिया सत्य सनातन के

साधु संतों सन्यासियों की देश भक्ति।।

बलिदान का गौरवशाली इतिहास

सर्वश्व न्यवछावर कर बचा लिया 

जिसने भारत की लाज।।

भारत की आजादी गणतन्त्र के शुभ

पर्व माँ भारती की रक्षा अस्मत पर मिट जाने वाले संतो की हम याद दिलाते ।।


मिट गए

हज़ारो जल नदी की रक्त सी हो गयी

लाल।।

अफगानी आक्रांता के नियत और 

इरादे रौंदना भारत भूमि पे था करना मौत का था नंगा नाच ।।     


विकृत विचारों का

दानव दुष्ट निकल पड़ा भारत को करने

शर्म सार भारत भूमि की मर्यादा का करने तार तार।।


नागा साधु संतों ने किया प्रतिकार

एक हाथ मे वेद पुराण दूजे हाथ तलवार।।


 दुश्मन से करने दो दो हाथ हर हर महादेव जय भवानी की गूंज गान।।

नागा साधु संतों ने भारत की मर्यादा

रक्षा में सर्वश्व किया बलिदान 

नापाक इरादों के दुशमन कर दिया धूल धुसित भगा लेकर जान।।

बचा लिया होने से भारतीयों का

कत्लेआम ना जाने कितने भारत वासी दानवता की चढ़ते भेट मंदिर तोड़े जाते होती वहाँ आज़ान।।                              


आज

वर्तमान में भारत की पीढ़ी गुलामी

की एक अलग काला अध्याय सुनते

और सुनाते।।

ना  जाने क्यों भुल गया भारत का इतिहास भारत के सत्य सनातन के नाग साधु संतो के सौर्य पराक्रम का बलिदान।।

गनतंत्र दिवस पर नागा साधु संतों के बलिदान बीरता का इतिहास  हम भारत वासी है गाते श्रद्धा से 

 शीश झुकाते।।


भारत की आज़ादी अस्मत पर ना जाने  कितने ही इतिहास

अनजाने -जाने हम याद दिलाते ।।                    


भारत की आज़ादी अस्मत के बलिदानों  को कृतज्ञ राष्ट्र के माथे का चंदन  गौरव गरिमा मान अभिमान सुनते ।।


नन्दलाल मणि  त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश


 ----- हिन्द की सेना-----



बर्फ के चट्टानों पे एक हाथ

संगीन दूजे हाथ तिरंगा

रेतीले तूफानों में खड़ा बना

फौलाद देश की सीमाओं 

मुश्तैद जवान।।

नयी नवेली दुल्हन कर रही

होती है इंतज़ार ईश्वर से आशीर्वाद मांगती बना रहे सुहाग।।

बूढे माँ बाप की पथराई आँखे

अपने सपूत का एकटक इंतज़ार

बेटा देश की रक्षा में लम्हा लम्हा

दुश्मन से लड़ता होगा कब उसका

दीदार।।

आज सीमाओं पे जो हालात

दुश्मन कब किधर से आए

पता नहीं धोखा मक्कारी का

छद्म युद्ध लड़ रही सेना हिंदुस्तान।।

माँ भारती का हर नौजवान

दुश्मन से करता पल प्रहर दो

दो हाथ दुश्मन को औकात बताएं

भारत के बीर जवान।।

जय भवानी हर हर महादेव 

भारत की सेना का शंख नाद

विजयी विश्व तिरंगे की सेना

भारत का अभिमान।।

 दुश्मन चाहे जितना भी हो

चालाक  हिन्द की

सेना चकनाचूर करती अभिमान

धीर धैर्य बीर गंभीर साहस 

निष्ठा समर्पण पराक्रम पुरुषार्थ

हिन्द की सेना बाज़।।

शपथ तिरंगे की कफ़न तिरंगा

आन बान् सम्मान तिरंगा कर्तव्य

पथ पर बढ़ते जाना जीवन का

मूल्य मातृ भूमि की सेवा में दुश्मन

लहू का तर्पण या खुद के लहू

से बीरता की नई इबारत लिख जाना।।

                          

 नई नवेली दुल्हन भी भाग्य पर

इतराती देश की खातिर मर मिटने

वाले शौहर की मर्यादा को जीवन

भर निभाती ।                          


गर्व से नारी गैरव की

गाथा का किस्सा हिस्सा बन जाती।।

पथराई आँखों के माँ बाप अपने

बीर सपूतो को आशीषो का देते

वरदान ईश्वर से मांगते जन्मों जन्मों में देश पर मर मिटने वाली हो मेरी

संतान।।

हिन्द की सेना हिन्द का 

हर एक जवान वतन की

रक्षा में काल कराल विकट

विकराल ।।

हिन्द का जन जन करता नमन

प्रणाम हिन्द की सेना हिन्दुस्तान

की गौरव गाथा की शान स्वाभिमान।।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 -----पराक्रम दिवस-------



पराक्रम का मतलब वो क्या जाने

जिसे  का पता नही भारत हिन्द हिंदुस्तान।

पर उपकार कर्म न्योछावर जीवन

पराक्रम का है मान।।

परमात्मा की सत्ता आत्म शक्ति का

संधान समपर्ण युग  समाज राष्ट्र

वर्तमान इतिहास की खातिर 

पराक्रम के मूल  मंत्र सम्मान।।

स्वयं स्वार्थ का त्याग नियत नीति

निर्धारक जन्म मृत्यु से निडर 

जीवन का उद्देश्य काल की गति

निधार्रण पराक्रम का सत्य सत्यर्थ

सर्व स्वीकार।।

प्रभावती जानकी नाथ की

आभा कटक भूमि भारत की

अविनि अभिमान।

आज वर्तमान अतीत के गौरव

गूंज का है गवाह।।

शिक्षा दीक्षा में गोरों को दिया चुनौती

व्यक्ति व्यक्तिव का अपना अंदाज़

पराक्रम का नव सूर्य सूर्योदय 

पराक्रम का युग पुरुष प्रवाह

सुभाष नाम।।     


 विनम्रता आभूषण धीर बीर गंभीर

नैतिक मूल्यों का मानव मानवता का पराक्रम अग्रदूत टकराव नही  

फौलाद इरादों का पराक्रम प्रखर प्रवाह।।

गांधी जी के उद्देश्यों की ज्वाला

आग अंगार सत्य अहिंसा के महात्मा

कर्म धर्म राष्ट्र मूल्य  बापू के

मकसद का उत्साह पराक्रम नेता नाम।।

पराक्रम का युग पुरुष सुभाष

शून्य से शिखर जीवन की नई

परिभाषा प्रमाण ।।।                   


निर्बाध बढ़ता

जाता लिखने खुद के वर्तमान से

एक नया इतिहास की शान।।

कल्पना की सत्यता का क्रांति

पुत्र भारत के बीर सपूतो की

संयुक्त शक्ति हिन्द की सेना का

नायक नेता सुभाष था गूंज गान।।

हिम्मत साहस की पूंजी मात्र

भारत की आजादी की ज्वाला

चिंगारी काल कराल विकट विकराल

दुश्मन का भय भान।।।                 


प्रथम पुरुष

विश्व का पास नही कुछ भी 

था ठन ठन गोपाल दृढ़ इच्छा

शक्ति निष्ठा समपर्ण पूँजी ।

किया अस्त्र शस्त्र आजाद हिंद फौज सेना का निर्माण।।

दानव दुश्मन ने हिम्मत हारी

समझ गया अर्थ पराक्रम 

खून और आजादी  के जंग

जज्बे की आवाज अंदाज़।।

भारत के इतिहास में नेता

सवंत्रता स्वतंत्र विचार की सोच

स्वतंत्रता की ज्वाला मिशाल मशाल

पराक्रम की पराकाष्ठा की अविनि

आकाश।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-54

सीता बिकल बिरह-दुख भारी।

रजनी-रजनीसहिं धिक्कारी।।

      सरै निसा नहिं बिरह-बियोगा।

      अब कस होंहि मिलन-संजोगा??

पुनि-पुनि सोचहिं सीता माता।

बिरह-बिकल मन कंपित गाता।।

      तब सिय बाम-भुजा अरु लोचन।

      फरकन लगे करन दुख-मोचन।।

निसा अरध भे रावन जागा।

डाँटत सारथि रथ चढ़ि भागा।।

      होत प्रात रन-भूइँ पधारा।

      जाइ तहाँ कपिनहिं ललकारा।।

सुनि ललकार कपिन्ह सभ भट्टा।

बिटप-पहार उपारि लइ ठट्टा।।

      धावत गए जहाँ रह रावन।

       किए प्रहार पहार-तरु धावन।।

बिकल भयो निसिचर-दल भारी।

घेरे पुनि रावन ब्यभिचारी ।।

     नखन्ह नोंचि  बिकल तेहिं कीन्हा।

     पुनि चपेटि बिदिर्न करि दीन्हा ।।

दोहा-होइ बिकल रावन तुरत,किय माया बिस्तार।

        लगा करन कौतुक करम, हर बिधि सोचि-बिचार।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

नूतन लाल साहू

 कामयाबी


कामयाबी सिर्फ,कदम बढ़ाने से

नहीं मिलती

सोच के दायरे भी

बढ़ाने पड़ते हैं

जितना कठिन संघर्ष होगा

जीत उतनी ही शानदार होगी।

कल की चिंता छोड़कर

करो आज की बात

तभी मिलेगी, आपको

कामयाबी की सौगात

जीवन के हर मोड़ पर

मिलते हैं,संत भी और राक्षस भी

जुदा भले हो,रास्ते

पर,मंजिल तो एक है

लाख करो,तुम अर्चना

पूजा तप और ध्यान

संकुचित मानसिकता वालो की इच्छा

पूरी नहीं करता है,भगवान

चाहे तो अपनी व्यवहार से

जांच लीजिए, आप

अगर किसी को,सांप ने काटा तो

मुमकिन है,वो बच जाय

पर,लालच और स्वार्थ ने डंसा तो

हरगिज बच न पाय

कामयाबी सिर्फ, कदम बढ़ाने से

नहीं मिलती

सोच के दायरे भी

बढ़ाने पड़ते हैं

जितना कठिन संघर्ष होगा

जीत उतना ही शानदार होगी।


नूतन लाल साहू


गणतंत्र दिवस


खोकर वीर सपूतों को

हमनें आजादी पाई है

भारत का संविधान बना

पर,भूल न जाना पीड़ा को

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस

धर्म जुदा है, जाति जुदा है

पर, एक है भारत नेक है भारत

हमे मिटाना चाहे जो

वो खुद ही मिट जायेगा

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस

हिमालय की बुलंदी से

सुनो आवाज आई है

तुम कौम की तकदीर हो

मालिक हो वतन के

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस

तूफ़ानों और बादलों से भी

तिरंगा नही झुकेगा

कहता है,चक्र हम सबको

हमारा कदम नहीं रुकेगा

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस

हम भांति भांति के पंछी है

पर बाग हमारा एक है

हम सब का प्राणों से प्यारा

हिन्दुस्तान हमारा है

खोकर वीर सपूतों को

हमने आजादी पाई है

भारत का संविधान बना

पर,भूल न जाना पीड़ा को

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 त्रिपदियाँ

राष्ट्र-सुरक्षा परम धर्म है,

हर जन का यह श्रेष्ठ कर्म है।

जीवन का बस यही मर्म है।।

---------------------------------

अपनी माटी परम पुनीता,

जैसे जनक-नंदिनी सीता।

शत-शत नमन राम-परिणीता।।

------------------------------------

माटी के गौरव किसान हैं,

माटी के रक्षक जवान हैं।

भारत माँ के स्वाभिमान हैं।।

----------------------------------

दुनिया में बजता है डंका,

चाहे अमरीका या लंका।

भारत-जय की बिन कुछ शंका।।

---------------------------------------

माता-मातृ-भूमि-सम्मान,

यदि हम करते,बढ़ेगी शान।

ऐसे भाव का रहता मान।।

-------------------------------------

आओ माता-लाज बचाएँ,

हर दिन इसका पर्व मनाएँ।

मिल कर बिगड़े काम बनाएँ।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

             *गीत*(16/16)

नहीं चैन से सोने देती,

याद पिया की मुझे सताए।

ऊपर से पपिहा की पिव-पिव-

तन-मन मेरे आग लगाए।।


घर-आँगन-चौबारा सूना,

सूना लगता है जग सारा।

सुनो, याद में तेरी साजन,

बहती रहती अश्रु की धारा।

चंद्र-चंद्रिका जग को भाती-

मुझको चंदा नहीं सुहाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


लख कर सखियाँ मुझको कहतीं,

बोलो,तुमको हुआ है क्या?

उनसे कैसे यह मैं कह दूँ,

याद तुम्हारी सताए पिया?

पर माथे की रूठी बिंदिया-

सबको सारा राज बताए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


रात बिताऊँ जाग-जाग कर,

दिन में राह निहारूँ तेरी।

बाहों में आ भर लो बालम,

यह है अब तो चाहत मेरी।

सायक कुसुम धनुष अनंग ले-

सर-सर सायक प्रखर चलाए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


 कली चमन में खिली देख कर,

भौंरे उन पर मर-मिट जाएँ।

सरसों फूली पीली-पीली,

देख हृदय सबके ललचाएँ।

पीली चुनरी पहन प्रकृति भी-

लगती रह-रह मुझे चिढ़ाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


आकर दर्शन दे दो साजन,

तकें नैन ये राहें तेरी।

रहा न जाए अब तो मुझसे,

फैली हैं ये बाहें मेरी।

जीवन का है नहीं भरोसा-

जलता दीपक कब बुझ जाए??

      तन-मन मेरे आग लगाए।

      याद पिया की मुझे सताए।।

               "©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

*भारत माता*

          *वीरों की धरती भारत*

वीरों की धरती भारत को,

शत-शत नमन हमारा है।

अपनी धरती,अपना अंबर-

जग में और न प्यारा है।।


प्यारी-प्यारी इसी भूमि ने,

जन्म दिया सुत वीरों को।

इनका करके सदा स्मरण,

नमन करें तस्वीरों को।

सदा ऋणी हम रहते इनके-

तन-मन-धन सब वारा है।।


राणा-गाँधी-बोस-शिवा जी,

शेखर-सुख,अशफ़ाक़-तिलक।

भगत पुत्र सब भारत माँ के,

हैं स्वतंत्रता के ये जनक।

कर बुलंद आवाज़ स्वतंत्रता-

की अरि को ललकारा है।।


कितने तो शूली पर चढ़ के,

माता की आशीष लिए।

इस माटी की तिलक लगाकर,

वीर मुदित निज शीष दिए।

पुत्रों के ही बलिदानों से-

सदा शत्रु भी हारा है।।


आज पुनः संकट है आया,

माँ की लाज बचानी है।

आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा,

अरि को धूल चटानी है।

अपना तो इतिहास यही है-

हर दुश्मन को मारा है।।

          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *दोहा-लेखन*

दोहा अद्भुत छंद है,चौबिस मात्रा-भार।

तेरह-ग्यारह-मेल ये,देता हर्ष अपार ।।


गागर में सागर सदृश,रहे भाव मय गीत।

मधुर गीत-संगीत सुन,रिपु भी बनते मीत।।


रहें धरोहर ही सभी,संस्कृति के आधार।

इन्हें सुरक्षित रख करें,पुरखों का आभार।।


माता अपनी अवनि है,पिता रहे आकाश।

भ्रात सिंधु,भगिनी नदी,मत हो मनुज हताश।।


इस अनंत आकाश में,तारे रहें अनंत।

हैं अनंत प्रभु-नाम भी,कहते ऋषि-मुनि-संत।।


पूर्ण चंद्र को देख कर,बाँह पसारे सिंधु।

छू कर नभ को ही कहे,यही प्रीति है बंधु।।


बड़े-बुज़ुर्गों का सदा,करें सभी सम्मान।

बने  रहें  पत्ते  हरे, पा तरु - प्रेम  महान।।

             ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

राजेश कुमार सिंह "श्रेयस" लखनऊ, उप्र तिरंगा फहराएंगे

 *तिरंगे को फहरायेगें*

[ काव्य पाठ, स्वास्थ सेवा महानिदेशालय ]

तिरंगे को फहरते देख,

मेरा मन लहरता है l

कहता है,

फहरो फहरो, खुब फहरो,

नील गगन में l

मेरे चमन में l

तेरा सुगंध महाकता है ll

तुम्हे और ही अधिक ऊंचाइ पर, फहराना है l

तेरे यश और गुण को गुनगुनाना है ll

हमारे कदम आगे को बढ़ रहे हैंl

भारत के शौर्य को कह रहे हैं ll 

हमने अपनी सीमाओ को,

इसी शौर्य से सजाया है l

हिमालय की दुर्गम चोटियों पर,

तिरंगे को लहराया है ll

 हम विकास पथ पर अग्रसर हैं,

और आगे बढ़ रहे हैं l

ऊँचाइयाँ छू रहे हैं और,

विकसित राष्ट्र बन रहे हैं ll

चिकित्सा, शिक्षा, और विज्ञान के,

हर आयाम को छू लिया है हमने l

क्रूर करोना के कहर पर विजय पा लिया है हमने ll

हमें जंग जीतना आता है l

चाहें जंग सीमा पर दुश्मन से हो l

या वैश्विक महामारी, करोना से हो ll

हमें सबको हराना आता है ll

हिमालय के ललाट पर,

हमने चन्दन का तिलक लगाया है l

सागर की लहरों को सीने से लगाया है ll

कच्छ से असम तक हमारे हौंसले घूम आते हैं l

गंगा,यमुना,कावेरी के तट पर नहाते हैं ll

लाल किले का प्राचिर कहता है कि,

हम योद्धा हैं ll

हमने जंग जीत कर दिखाया है l

दुश्मन को उसके घर में हराया है ll

क्रूर करोना से दो दो हाथ किये हमने l महामारी में पीड़ित मानवता का जम कर साथ दिया हमने l

करोना योद्धा बन कर,

करोना को छकाया है l

बताओ न क्या भारत में,

करोना का दूसरा लहर आया है ll

क्षय के खिलाफ भी जंग की,

पूरी तैयारी है l

क्षय का क्षय होगा, आगे इसकी बारी है ll

वर्ष 2025 को क्षय मुक्ति वर्ष मनायेंगे l

उम्मीदों के पँख को जमकर लहरायेगे ll

गणतंत्र दिवस के अवसर पर,

तिरंगे को फहरायेगें ll


©®राजेश कुमार सिंह "श्रेयस"

लखनऊ, उप्र



दिनांक 25-01-2021

नूतन लाल साहू

 रिश्ता


रिश्तों को वक्त पर

वक्त देना,उतना ही जरूरी है

जितना पौधों को

वक्त पर पानी देना

अटूट रिश्ता हैं

भक्त और भगवान का

पर,मतलबी हो रहा है

धरती का इंसान

इसीलिए बहरे हो गये है

दीनबंधु भगवान

मत भुलो,प्रभु जी के नाम को

और नहीं,कुछ चाह

प्रभु जी,खुद ही करेगा

अपने भक्त का परवाह

रिश्तों को वक्त पर

वक्त देना,उतना ही जरूरी है

जितना पौधों को

वक्त पर, पानी देना

बुरे समय को देखकर

मत घबराना,इंसान

अगर कुछ बुरा हो भी जाये

तो खो मत देना होश

हरी की इच्छा समझकर

कर लेना संतोष

जी लेे बंदे,आज में

बीत गया सो भूल

दुःख में सुख को ढूंढना

शुरू कीजिए,आप

जिनको खुद पर है,आस्था

प्रभु जी पर है,विश्वास

कोई भी बाल न बांका कर सकें

इसे सत्य,तू जान

रिश्तों को वक्त पर

वक्त देना, उतना ही जरूरी है

जितना पौधों को

वक्त पर, पानी देना


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-52

निज कर गहि गिरि-बिटप बिसाला।

किन्ह प्रहार सभ तुरत कराला ।।

     तिनहिं पकरि रावन पुनि मारहिं।

     पुनि कपि सो निज लातहिं ढारहिं।।

तब नल-नील चढ़े तिसु सीसा।

नखन्ह लिलार खरोंचहिं तीसा।।

      रुधिर देखि रावन बउराया।

      होके कुपित तिनहिं दउराया।।

जब निज कर तें पकरा तिनहीं।

चले छुड़ाइ भागि के सबहीं।।

      तब दसमुख गहि दस धनु-बाना।

      मुर्छित किया कपिन्ह-हनुमाना।।

मुर्छित हनुमत लखि जमवंता।

धावत गए तहाँ बलवंता ।।

       पर्बत-बृच्छ खींचि कपि-भालू।

        मारन लगे दनुज इर्ष्यालू।।

पकरि-पकरि जब पटकेसि रावन।

जामवंत मारे उर धावन ।।

दोहा-जामवंत-पग-घात पा,रावन गिरा अचेत।

        गिरत पकरि कपि बीस कहँ,रह जे परम सचेत।।

        पुनि सारथि इक अपर आ,रथ बिठाइ लंकेस।

         गया ताहि ले लंक मा,रह जहँ लंक-नरेस।।

                      डॉ0हरि नाथ मिश्र

                         9919446372

दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

 आजादी की खातिर व्याकुल रहे सदा बेकरार।हिन्द फौज बना डाली किया अचम्भित  वार।।


हिन्दुस्तान की धरा पर नेता जन्मे एक से एक।

पर इन नेताओं की भीड़ में बोस रहे बस एक।।

बोस रहे बस एक जग में क्षितिज तक भाये।

सुभाष चंद्र बोस ही  बस नेताजी बन पाये।।


आजादी  की  युद्ध  में  नारों  की  भरमार ।

नारा दिया 'दिल्ली चलो' बोस बुलाया यार।।


बोस तुम्हारी देश भावना रही बहुत ही न्यारी।

जयहिंद का डंका बजा  दौड़े सब  नर-नारी।।

दौड़े सब नर-नारी अंग्रेजों की नींव हिलादी।

दे नारा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें दूं आजादी।।



  - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

डॉ० रामबली मिश्र

 धर्म क्षेत्र।      (चौपाई)


धर्म क्षेत्र अतिशय व्यापक है।

सकल विशुद्ध क्रिया-वाचक है।।

अति संवेदनशील धरातल।

सात्विक भाव प्रधान अटल तल।।


कर्म प्रधान विश्व की रचना।

कर्म फलद यह शिव की वचना। 

सुंदर सात्विक कर्म युधिष्ठिर।

दुर्योधन दूषित अति दुष्कर।।


धर्म क्षेत्र में सत्य-असत्या।

सत्य विजयश्री राक्षस हत्या।।

पाण्डव करता सदा धर्म है।

दुर्योधन करता अधर्म है।।


सीखो धर्म युधिष्ठिर बनकर।

धर्म क्षेत्र को अति पुनीत कर।।

धर्म क्षेत्र को पावन करना।

सत्य अहिंसा प्रेम वरतना।।


न्याय पंथ पर कदम बढ़ाना।

मानवता का पाठ पढ़ाना।।

सबके प्रति सम्मान भाव हो।

धर्म क्षेत्र का शुभ प्रभाव हो।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 आप सुनो तो 


आप सुनो तो तान छेड़ दूँ,

मन के गीत सुनाने को।

रूह हमारी भटक रही थी,

दिल का हाल बताने को।


बंजारों से दिन थे मेरे,

जोगन जैसी थी रातें।

अब आए हो कभी न जाना,

कर लूँ सब दिल की बातें।


बहुत दिनों के बाद मिले हो,

खोया प्यार निभाने को।

आप सुनो तो...


प्यार मेरा था जनम जनम का,

तुम थे मेरे दीवाने।

मैं शमां थी बुझने वाली,

अब आए हो परवाने।


आओ फिर से दोहरा दें हम,

मधुर मिलन के गाने को।

आप सुनो तो...


मैं चातक सी तड़प रही थी,

मृगतृष्णा में भटक रही थी।

हुई अकेली थी मैं बिल्कुल,

प्रीतम तुम बिन बिलख रही थी।


आज कहाँ से आन मिले तुम,

सोयी प्रीत जगाने को।

आप सुनो तो...


फिर बहार आई जीवन में,

खुशियों ने पैग़ाम दिया।

लौटा है वो प्रीतम मेरा,

फुलवा जिसने नाम दिया।


अगर कहीं ख़्वाब ये हुआ तो,

चाहूँ मैं मर जाने को।

आप कहो तो तान छेड़ दूँ ,

मन के गीत सुनाने को।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

सुनीता असीम

 हम  आपके ही प्यार में लाचार हो गए।

दिल हार बैठे अपना औ बेकार हो गए।

******

अपना बना लो श्याम नहीं देर अब करो।

सांसों की आप माला के आधार हो गए।

******

चितचोर चोर आप हो इल्जाम दो हमें।

मासूम तुम बने हम खतावार हो गए।

******

नज़रे करम जो आपका मुझपर हुआ कभी।

तब स्वप्न मेरे सारे ही साकार हो गए। 

******

देखा जो नेह दृष्टि से तुमने ओ माधवा।

उस वक्त से ही हम तेरे बीमार हो गए।

******

आसान तो नहीं कि भुला दें उन्हें कभी।

हम दास बन गए वो सरकार हो गए।

******

तुम बिन अधूरी आज सुनीता है सांवरे।

उसके लिए तो दर्श ही दरकार हो गए।

******

सुनीता असीम

२३/१/२०२१

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 *बेटियाँ* 


बेटियाँ शब्द  एक प्रतीक है ,

 अहसास है मर्यादा का ,

गहन अपनत्व का ,

माता के ममत्व का 

,पिता के दायित्व का ।

ये बेटियां गंगा  की पावन धार सी,

बाबुल के स्वक्षन्द आँगन में ,

रुनझुन पायल की झंकार बन,

सुकोमल पद्म पुष्प की भांति ,

पल्लवित पल प्रतिपल पनपती हैं।

सँवरती  है  निखरती हैं ,

माता पिता की डोर थाम बढ़ती हैं

भाई के साथ बचपने की ,

अल्हड़  सी  शैतानियां ,

उसकी नटखट सी नादानियां

 भैया के नखरे ,शरारतें

इन सबको  पावन प्यार का

 प्रारूप देती ये बेटियां,

समाज मे सर्वदा कमजोर,

 समझी जाने वाली, 

रक्षा की पात्र मानी जाने वाली ,

ये बेटियाँ  ही तो हैं जो

पल प्रतिपल सबका ख्याल, रखती  हैं  

बेइंतहा प्यार करती हैं 

पापा की दवाई हो या पानी देना,

माँ की कंघी हो या  फिर

काम मे हाथ बटाते रहना 

,या फिर भाई का बिखराया सामान 

करीने से लगाना ,

सब कुछ वही तो सम्हालती है।

कम पैसों मे काम चला 

अपना बचा हुआ पाकेट मनी तक  लौटा देतीं है  ये बेटियाँ ,

सचमुच कितना गजब ढाती हैं ये बेटियाँ ...

फिर एक दिन सबको रुला  दूर 

ससुराल चली जाती है ये बेटियाँ।

अपने रक्त सृजित रिश्ते छोड़ ,

पराये लड़के को प्रियतम  मान,

निछावर हो जाती  हैं ये बेटियाँ।

दूसरे के परिवार को स्वीकार 

अपनत्व लुटाती हैं ये बेटियाँ ।

कितने भी विपरीत हालात हों,

मगर फोन से ही सही  दूर होकर भी,

मंम्मी पापा को उनका रूटीन

याद दिलातीं हैं ये बेटियाँ ...।

सच तो ये है  कि समाज मे 

 हाशिये पर देखी जाने वाली 

ये कमजोर कही जाने वाली बेटियां,

वास्तव मे परिवार की सबसे

 मजबूत डोर होती हैं ये बेटियाँ ...।


  


  स्वरचित -

 ©  सुषमा दीक्षित शुक्ला

(सर्वाधिकार सुरक्षित) 


लखनऊ ,उ०प्र० ।

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः २४.०१.२०२१

दिवसः रविवार

विधाः दोहा

विषयः बेटियाँ 

शीर्षकः👰 बेटी है शृङ्गार जग🤷🏻


जीवन    की   पहली  किरण , पड़ी  मनुज इह लोक।

बेटी   बहना  माँ     कहो , पत्नी   बन     हर    शोक।।१।।


प्रथम    सृष्टि   की  अरुणिमा , करती जग  आलोक।

निर्भय   नित   सबला  करो , बिन  बाधा    या  रोक।।२।।


बढ़ा      मनोबल      बेटियाँ , करो   साहसी     धीर।

पढ़ा   लिखा   समरथ    करो , निर्माणक    तकदीर।।३।।


ममता    समता  प्रीति   की ,  तनया   नित   आगार।

भरी   सदा    करुणा   दया ,  खुशियाँ    दे    संसार।।४।।


गेह      रोशनी       बेटियाँ  , दीपशिखा       सम्मान।

परहित     रत      मेधाविनी , परकीया    बन    शान।।५।।


सरला    सहजा    मिहनती , चढ़     तनया   सोपान।

रचे      कीर्ति    संसार   को , पाती   हर     अरमान।।६।।


शक्तिशालिनी      बेटियाँ , भरो     मनसि     उत्साह।

रक्षण    नित    बेटी    करो , पूर्ण   करो   हर   चाह।।७।।


सींचो   स्नेहिल     बेटियाँ , बिना     किसी   मनभेद।

जीवन     हो    हर्षित   सुलभ , करो   नहीं   उच्छेद।।८।।


मानक   कुल    की     बेटियाँ , विधलेखी   उपहार।

जननी    भगिनी    बेटियाँ ,  महाशक्ति     अवतार।।९।।


बेटी    है    शृङ्गार   जग , रखो    लाज    सम्मान। 

साधन  बन    उत्थान   का , नार्यशक्ति     वरदान।।१०।।


धीर   वीर  योद्धा  वतन , शिक्षित    ज्ञान  विज्ञान।

कुशला नित नेत्री वतन , अभिनेत्री   कृति    गान।।११।। 


लालटेन    प्रतिबिम्ब     नित , दर्शाती   अरमान।

बनी   सदा   उन्नत  पथी ,   बेटी  कुल अभिमान।।१२।।


संकल्पित      यायावरित ,  सहने    को    संघर्ष।

हर   बाधा  को     पार कर ,  चढ़े  सुता  उत्कर्ष।।१३।।


खिले निकुंज कीर्ति प्रभा ,बने चारु निशि  सोम।

लघु जीवन अनमोल धन,सुता विहग यश व्योम।।१४।। 


कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक(स्वरचित)

नई दिल्ली

निशा अतुल्य

 बेटी दिवस पर सभी नारिजाति को समर्पित 

बधाई 💐💐💐💐💐💐


हाइकू

24 .1.2021


पूजन करे

हर नवरात्र में 

कोख में मरे ।


जन्मे न बेटी

कहाँ से लाए बहू

जरा बता तो  ।


है पहचान 

घर की है मुस्कान 

बेटी महान ।


करो स्वीकार

दो संतति सम्मान 

है अधिकार ।


प्यारी लाडली

है लाज दो कुल की 

राज दुलारी  ।।


मिश्री की डली

फ़लक छूने चली

खोले जो पँख।


ठंडी है छाँव

लिखे है इतिहास

सदा ही नया


स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

मन्शा शुक्ला

 [24/01, 9:13 am] +91 75870 72912: परम पावन मंच को नमन

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


विषय  पर्यावरण

मनहरण घनाक्षरी

🌳🌳🌳🌳🌳


वृक्ष धरा की शान है

प्रकृति का श्रृंगार है

लाख जतन करके

वृक्षों को बचाईये।


हो  रही बंजर  धरा

पानी घटता जा रहा

जल है अमूल्य  बड़ा

पौधों को लगाईये।


प्रदूषण बढ़ रहा

बिषाक्त हो रही हवा

दूभर जीवन हुआ

जागृत हो जाईये।


कर्तन रुके वृक्ष का

सजें आँचल धरा का

बचा वृक्ष जल स्त्रोत

जीवन बचाईये।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर



विषय  पर्यावरण

मनहरण घनाक्षरी

🌳🌳🌳🌳🌳


वृक्ष धरा की शान है

प्रकृति का श्रृंगार है

लाख जतन करके

वृक्षों को बचाईये।


हो  रही बंजर  धरा

पानी घटता जा रहा

जल है अमूल्य  बड़ा

पौधों को लगाईये।


प्रदूषण बढ़ रहा

बिषाक्त हो रही हवा

दूभर जीवन हुआ

जागृत हो जाईये।


कर्तन रुके वृक्ष का

सजें आँचल धरा का

बचा वृक्ष जल स्त्रोत

जीवन बचाईये।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर

नूतन लाल साहू

 जवान तुझे सलाम


हिमालय की बुलंदी से

सुनो आवाज आई है

सैकड़ों कुरबानियां देकर

हमने आजादी पाई है

हिन्दुस्तान की जवान,वो पत्थर है

जिसे दुश्मन,हिला नहीं सकते

अमन में,फूलों की डाली

जंग में,वो तलवार हैं

भारत मां की आजादी खातिर

खेली हैं,अपने खून की होली

हरदिन हरपल,शरहद पर खड़ा है

संतरी बन, सीना तान के

भारत मां के वीर सपूतों

जवान तुझे सलाम है

मिट जायेगा,जो टकरायेगा भारत मां से

यह वतन है,हिमालय के बेटों का

कहते हैं हम,ललकार के

दुश्मनों अब कदम रखना

जरा तुम संभाल के

आंधी आये या आये तूफान

हमें डरा नहीं सकता

नहीं झुकेगा सर,अब वतन का

हर जवानों की कसम है,हिन्दुस्तान का

भारत मां के वीर सपूतों

जवान तुझे सलाम है

सीना है,फौलाद सा

फूलों जैसा है,दिल

सुनकर गरज,जवानों की

सीने फट जाते हैं,चट्टानों का

सर कटा देते हैं, पर

न देंगे मिट्टी,वतन के

भारत मां के वीर सपूतों

जवान तुझे सलाम है


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 [24/01, 9:35 am] +91 99194 46372: *गीत*(16/14)

हम भारत के वासी हमको,

कण-कण इसका प्यारा है।

गर्व सदा है भारत पर ही-

भारतवर्ष हमारा है।।


सदियों पहले रहा विश्व-गुरु,

जीवन-सूत्र दिया जग को।

आज वही है गरिमा इसकी,

देता मूल मंत्र सबको।

पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण-

करता उर-उजियारा है।।

    भारतवर्ष हमारा है।।


कहीं खेत फसलों से लहरें,

कृषक अन्न उपजाते हैं।

कहीं बाग में फल भी पकते,

मीठे फल सब खाते हैं।

बादल उमड़-घुमड़ नभ बरसें-

बहती सरिता-धारा है।।

      भारतवर्ष हमारा है।।


ऋतुओं का यह देश निराला,

ऋतु वसंत-छवि न्यारी है।

विविध पुष्प उपवन में खिलते,

विलसित अनुपम क्यारी है।

हृदय-हरण कर प्रकृति मोहिनी-

देती शुचि सुख सारा है।।

      भारतवर्ष हमारा है।।


कश्मीर-शीष है मुकुट सदृश,

शोभा लिए हिमालय की।

गिरि-गह्वर में बसे देव-घर,

पूजा रुचिर शिवालय की।

सिंधु उमड़ता दिशि दक्षिण का-

सब कुछ लगता न्यारा है।।

     भारतवर्ष हमारा है।।


मंदिर-मस्ज़िद-गुरुद्वारे जो,

गिरजाघर भी यहाँ बने।

सबने अलख जगाई जग में,

भाव वही जो प्रेम सने।

बने विश्व परिवार एक जब-

रहता भाई-चारा है।।

     भारतवर्ष हमारा है।।

               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

[24/01, 6:46 pm] +91 99194 46372: *मधुरालय*

              *सुरभित आसव मधुरालय का*13

यह आसव मधुरालय वाला,

हृद अति हर्षाने वाला।

इसकी पद्धति ने ही जग को-

जीवन-कला सिखाई है।।

     मधुर मधुरिमा आसव वाली,

     सबको राह दिखाती है।

     विश्व-पटल के इस कोने से-

     उस कोने तक छाई है।।

जब भी औषधि काम न करती,

नहीं रोग को दूर करे।

देकर शरण इसी आसव ने-

मुरली मधुर बजाई है।।

      यमुन-पुलिन यह कृष्ण-बाँसुरी,

      राधा-रुक्मिणि-लाज-हया।

      कौरव-कंस-दुशासन-घालक-

      लंक में आग लगाई है।।

गीता-ज्ञान,वेद-मंत्र यह,

गुरु पुराण-श्रुति-चिंतन है।

अति प्राचीन-रुचिर रस-धारा-

जीवन-तत्त्व-पढ़ाई है।।

      सर्व धर्म-सम्मान-भावना,

      सब जन का हितकारी यह।

      रखे नहीं यह 8बैर किसी से-

      प्रेम-भाव-नरमाई है।।

सकल विश्व,यह धरती,अंबर,

सर-सरिता जो सिंधु महान।

सब में आसव,सब आसव में-

आसव जग गुरुताई है।।

     उद्धारक यह और सुधारक,

     यह तो कष्ट-निवारक है।

     सकल ज्ञान की कुंजी आसव-

     कुंजी गंग नहाई है।।

समिधा-हवन-कुंड यह आसव,

पावक पाप-जलावन यह।

वायु, व्योम में सतत प्रवाहित-

हवा शुद्ध पुरुवाई है।।

     सकल मंत्र अभिमंत्रित आसव,

     आसव मंत्र-कोष अक्षुण्ण।

     अमिय-बूँद यह झर-झर झरती-

      दुनिया पी हर्षाई है।।

शुद्ध हृदय जो पूण्य आत्मा,

उन्हीं को आसव सदा मिले।

पापी-कपटी-कलुषित हृदयी-

की भ्रम-जाल फँसाई है।।

    मधुर वचन मन शीतल करती,

   करता यह सिद्धांत अमल।

   हृदय-कालिमा,दूषित वाचा-

   इसको रास न आई है।।

भोगी कर स्नान अमल नित,

इस आसव की सरिता में।

भोग-वासना मय माया से-

करता ध्रुव विलगाई है।।

    आसव अमृत धरा-धाम का,

    जीवन को पावन करता।

    भले न मानव रहे जगत में-

     रहती तासु बड़ाई है।।

                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

एस के कपूर श्री हंस

हर किसी के दिल में घर एक

*बनाना सीखिये।।*


हर  दिल में तुम   इक  घर 

बनाना       सीखो।

किसी के दर्द में  तुम  दवा

बन जाना सीखो।।

ऊंची आवाज   नहीं ऊंची

बात   कहो   तुम।

वक्त रहते     सही   गलत

आजमाना सीखो।।


आँखों और दिल की जुबां

पढ़ना     सीखो।

बिना सीढ़ी के   तुम ऊपर

चढ़ना     सीखो।।

तुम्हारी  किस्मत  बनती है

प्रारब्ध    कर्म से।

अपना भाग्य  तुम  खुद ही

गढ़ना       सीखो।।


धारा के   विपरीत भी  तुम

चलना      सीखो।

संघर्ष अग्नि में तुम   तपना

गलना      सीखो।।

तेरे अंदर की क्षमता निकल

कर  आये  बाहर।

हो लाख  रुकावटें तुम आगे

बढ़ना      सीखो।।


विनम्र विनोदी सहयोगी तुम

बनना      सीखो।

हर काम  जीवन  में   धैर्य से

करना      सीखो।।

याद रखो  छवि  की उम्र तेरी

उम्र से होती ज्यादा।

हो बदनामी पहले उससे तुम

मरना       सीखो।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464



।।राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जन*

*पर रचना।।*

*।।घर में प्रेम और रौनक का रंग* 

*भरती है बेटियाँ।।*


पढ़ेंगी बेटियाँ   और आगे

बढ़ेंगी    बेटियाँ।

बराबर हक़ के    लिए भी

लड़ेंगी   बेटियाँ।।

बेटों से कमतर  कहीं नहीं

हैं बेटियाँ  हमारी।

हर ऊँची   सीढ़ी    पर भी

चढ़ेंगी    बेटियाँ।।


विश्व पटल परआज बेटियों

का खूब नाम है।

आज कर रही     दुनिया में

वह हर काम हैं।।

बेटी को जो देते  बेटों जैसा

प्यारऔर सम्मान।

अब  माता  पिता   कहलाते

वही महान      हैं।।


हर दुःख सुख   साथ     में    

संजोतीं  हैं बेटियाँ।

हर घर में प्रेम और   रौनक

बोती  हैं   बेटियाँ।।

बड़ी होकर करती सृष्टि की

रचना भी   नारी।

प्रभुकृपा बरसती वहीं जहाँ

होती हैं   बेटियाँ।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।।         9897071046

                    8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-51

कोटिक रावन रहे लखाई।

चहुँ-दिसि गरजहिं धाई-धाई।।

      चले भाग कंपित सुर-देवा।

      रावन एकहि सभ हरि लेवा।।

अब तो इहाँ भए बहु रावन।

जीत नहीं अब होय लखावन।।

     अस कहि भाग गए सभ देवा।

      सरन गुहा गिरि जाई लेवा।

कादर भालू-बानर भागे।

जुद्ध न अंगद-हनुमत त्यागे।।

     नल अरु नील साथ हनुमाना।

     अंगद मारहिं रावन नाना ।।

मीजि-मसलि जैसे भुइँ अंकुर।

कोटिक रावन पटकहिं थुर-थुर।।

       लखि सुर-कपिन्ह हँसे रघुनाथा।

        काटे एक बान बहु माथा ।।

तुरतै छटी सकल खल-माया।

उदित भानु भागहि तम-छाया।।

      रावन इक लखि हरषित सबहीं।

       सुमन-बृष्टि सुर प्रभु पे करहीं।।

प्रभु-प्रताप तें बानर-भालू।

रन महँ चले सभें श्रद्धालू।।

     हरषित सुरन्ह देखि पुनि रावन।

     होके कुपित चला नभ धावन।।

आवत देखि असुर सुर-देवा।

भागन लगे सभीत बनेवा ।।

     सुरन्ह बिकल देखि तब अंगद।

     उछरि तुरत खींचा गहि तिसु पद।।

पुनि सम्हारि निज बपु खल रावन।

करन लगा बरसा बहु बानन।।

      काटे तुरत राम रिपु-सीसा।

       फेंकन लगे भुजा जगदीसा।।

रावन-भुजा-सीस अस बाढ़े।

करत पाप जस तीरथ गाढ़े।।

दोहा-रावन-सिर-भुज बढ़त लखि,अंगद-द्विद-हनुमान।

         लइ नल-निल-सुग्रीव सभ,किन्ह प्रहार बलवान।।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                               9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 विधवा पुनर्विवाह चालीसा


दोहा:

विधवा के सम्मान से, कटता मन का पाप।

विधवा को लक्ष्मी समझ, दूर करो संताप।।


विधवा की रक्षा करो, हर लो दुःख अरु शोक।

आओ अग्र समाज में, बनो नहीं डरपोक।।


विधवा का सम्मान किया कर।

विधवा का अपमान नहीं कर।।

विधवा को जीने का हक है।

विधवा को रहने का हक है।।


कभी नकारो मत विधवा को।

सहज सकारो नित विधवा को।।

विधवा का सम्मान जहाँ है।

मानवता का ज्ञान वहाँ है।।


बैठाओ विधवा को उर में।

दो सिंहासन अंतःपुर में।।

सिंहासन पर नित्य विराजें।

पा कर मदद स्वयं में राजें।।


विधवावों का पुनर्वास हो।

सुंदर घर प्रिय शुभ निवास हो।।

इनके प्रति जिसमें संवेदन।

वह खुशहाल दिव्य प्रतिवेदन।।


इन्हें प्रेम-अहसास चाहिये।

सहानुभूति उजास चाहिये।।

होय विवाह पुनः इनका भी।

स्थापित हो समाज इनका भी।।


जो भी इनकी मदद करेगा।

स्वांतः सुख का भोग करेगा।।

इनके प्रति जहँ प्रेम-स्नेह है।

वहीं ईश का करुण-गेह है।।


विधवावों को राह दिखाओ।

फिर से इनको देवि बनाओ।।

अपनाओ इनको बढ़-चढ़कर।

गढ़ दो प्रिय समाज अति सुंदर।।


विधवा को विधवा मत जानो।

विधवा की अस्मिता बचाओ।।

नहीं टूटने इनको देना।

इनको सीने में रख लेना।।


इनको कभी न रोने देना।

मानवता का वट बो देना।।

अश्रुधार को मत गिरने दो।

मुस्कानों में ही बसने दो।।


विधवाएँ भी नारी होतीं।

अतिशय कोमल प्यारी होतीं।।

इसको निर्मल बन बहने दो।

गंगा माता सी बनने दो।।


दोहा:


विधवा पुनर्विवाह का,करो समर्थन नित्य।

विधवा को स्थापित करो, बन जाये वह स्तुत्य।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


बेटी       (दोहे)


बेटी को बेटा समझ, कर उसका सम्मान।

दोनों में क्या फर्क है, बेटी दिव्य महान।।


बेटी घर की रोशनी, करती घर उजियार।

आदि शक्ति सम्पन्न यह, रचती घर संसार।।


करतीं प्यारी बेटियाँ, घर का सारा काज।

शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर, करतीं दिल पर राज।।


बेटी के आयाम बहु, यह बहु- उद्देशीय।

बेटी को अति स्नेह दो, यह अतिशय महनीय।।


बेटी की पूजा करो, यही सृष्टि का धाम।

अब तो बेटी कर रही, सकल लोक में नाम।।


कोई ऐसा पद नहीं, जिस पर वह आसीन।

जग के नित्य विकास में, बेटी प्रबल प्रवीण।।


बेटी के अरमान को, मत कर चकनाचूर।

सदा मनाओ जन्मदिन, बेटी का भरपूर।।


बेटी का जब जन्म हो, होना बहुत प्रसन्न।

आयीं घर में आज हैं,लक्ष्मी जी आसन्न।।


अति पवित्र अवधारणा, बेटी शब्द महान।

बेटी में बेटा छिपा, बेटी में भगवान।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जयंती पर विशेष

 नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती पर विशेष दोहे


नीरज अपने देश मे,नेता बने अनेक। 

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी की अमर जयंती पर विशेष


नीरज मेरे देश मे नेता दिखे अनेक।

लेकिन मेरी नजर में नेता दिखता एक।


सारे भारतवर्ष को होती जिससे आस। 

नेता केवल एक ही हमको लगे सुभाष।


जिनकी भाषा श्रवण कर होते थे सब मौन।

 वीर बोस जैसा निडर हुआ दूसरा कौन।


नमन करूँ लाखो तुम्हे सौ सौ बंदनवार। 

नेता जी के नाम पर तन मन धन बलिहार।


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950

क्या उचित बात है , डॉ प्रताप मोहन

 * उदारता *

देश के लोगों को

अभी कोरोना की 

वैक्सीन लग नहीं

पाई है

उसके पहिले प्रधानमंत्री 

ने वैक्सीन पडोसी 

देशों को मुफ्त

भिजवाई है

उदारता अच्छी बात है

मगर घर के लोगों को

भूखा रखकर

पड़ोसी को खाना खिलाना

क्या उचित बात है ?

लेखक

             डॉ  प्रताप मोहन


"भारतीय"308,चिनार-A2 ओमेक्स पार्क -वुड-बद्दी

173205 (HP)

मोबाईल-9736701313

Email-DRPRATAPMOHAN

@GMAIL.COM

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *पिता-माहात्म्य*

      *पितृ भाव*

जीवन-दाता जनक है,जैसे ब्रह्मा सृष्टि।

करे पिता-सम्मान जो,उसकी अनुपम दृष्टि।।


पिता देव के तुल्य है,इसका हो सम्मान।

इसका ही अपमान तो,कुल का है अपमान।।


चाल-चलन,शिक्षा-हुनर,सब सुख जो संसार।

चाहे देना हर पिता,सह कर कष्ट अपार ।।


पिता रहे चाहे जहाँ, रखे बराबर ध्यान।

सुख-सुविधा परिवार का,होता स्रोत महान।।


पिता-पुत्र,पुत्री-पिता,जग संबंध अनूप।

राजा दशरथ राम का,जनक-जानकी भूप।।


कभी तिरस्कृत मत करें,वृद्ध पिता को लोग।

बड़े भाग्य जग पितु मिले,बने सुखद संयोग।।


यही सनातन रीति है,पितु है देव समान।

पिता के कंधे पर रहे,कुल-उन्नति-उत्थान।।


पितृ-दिवस का है यही,बस उद्देश्य महान।

हर जन के हिय में बसे,पिता-भाव-सम्मान।।

               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

सुनीता असीम

 बस श्याम नाम ही मेरी प्यासी नज़र में है।

इक दर्द प्यार का मेरे दर्दे जिगर में है।

****

वो गीत हैं मेरा वो ही मनमीत बन गए।

सारे जहाँ में बात यही तो ख़बर में है।

****

दासी बनी जो उनकी तो मोहन मेरे हुए।

अब तो मेरा बसेरा भी उनके नगर में है।

****

कैसे नहीं हमारे मिटेंगे ये   फासले।

लगता है यूं कि कान्हा मेरे असर में हैं।

****

वो जानते हैं ये कि सुनीता   है पामरी।

मुस्कान कृष्ण की बसी उसके अधर में है।

*****

सुनीता असीम

२१/१/२०२१

डॉ० रामबली मिश्र

 खुशियों का संसार   (चौपाई)


खुशियों का संसार दिला दो।

सुंदर सा दिलदार दिला दो।।

प्यारा सा परिवार दिला दो।

प्रिय मादक रसधार पिला दो।।


मन को अब कर दो रंगीला।

नाचे भीतर छैल-छबीला।।

प्रेमी का दरबार दिला दो।

सद्गति का अधिकार दिला दो।।


मेरे भीतर बैठे रहना।

दिल में घुलकर चलते रहना।।

मुझको मेरी प्रीति दिला दो।

मधुर प्रेम की रीति सिखा दो।।


अपना अद्भुत रूप दिखाओ।

मोहक सुंदर राग सिखाओ।।

रूप मधुर प्रिय हे आजाओ।

दिल में अमी सरस बरसाओ।।


करो प्रतिज्ञा आना ही है।

प्रीति रहस्य बताना ही है।।

मुझ से कुछ भी नहीं छिपाना।

सत्य प्रेम का मर्म सिखाना।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

निशा अतुल्य

 गीत

21.1.2021


भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।

कैक्टस सी उग आइ बातों के

कुछ झाड़ हटाने बैठी हूँ । 

अपने दिल में लटके जालों को

मैं आज मिटाने बैठी हूँ ।

भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।।


छोड़ दिया था जिनको राहों में 

मैं उन्हें बुलाने बैठी हूँ ।

भूल गई सब बिगड़ी बातें अब

रूठों को मनाने बैठी हूँ  ।

चलो साथ मिलकर सब बात करें

कुछ राज बताने बैठी हूँ ।

भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।।


होता मन सबका सहज सरल है

बाधाओं में बांधे क्यों कर।

विपत्ति आई आकर जाएगी 

कौन भला ठहरा है कब तक ।

कुछ ऐसा जो मन में आता है

वो तुम्हें बताने बैठी हूँ ।

भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।।


कुछ कटु बातों ने घाव दिए जो

मेरे मुझ से दूर हुए जो  ।

रूठे मेरे सब दोस्त पुराने

भूले बिसरे गीत हुए वो।

क्यों दफ़न हुए अहसास पुराने

अहसास जगाने बैठी हूँ ।

भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *ज़िंदगी के रूप*

    *ज़िंदगी के रूप*

आज अपने जनम-दिन मना लीजिए,

कल न जाने कहाँ शाम हो जाएगी?

ज़िंदगी एक पल है उजाले भरी-

फिर अँधेरों भरी रात हो जाएगी।।


    धूप है,छाँव है,भूख है,प्यास है,

     घात-प्रतिघात है,आस-विश्वास है।

     चलते-चलते यूँ रस्ते बदल जाते हैं-

     देखते-देखते बात हो जाएगी।।


है ये पाषाण से भी कहीं सख़्तदिल,

पुष्प से स्निग्ध,स्नेहिल व कृपालु है।

तोला माशा बने,माशा रत्ती कभी-

जलते शोलों पे बरसात हो जाएगी।।


   ज़िंदगी दास्ताँ प्यार-नफ़रत की है,

   दोस्ती-दुश्मनी-इल्म-शोहरत की है।

    एक पल में हमें बख़्श देती अगर-

     दूसरे में हवालात हो जाएगी।।


स्वार्थ में है जगत सारा डूबा हुआ,

हित यहाँ ग़ैर का गौड़ अब हो गया।

लोग अपनों में गर इस तरह खो गए-

बदबख़्ती की हालत हो जाएगी।।


   लाख खुशियाँ यहाँ हम मनाएँ मगर,

   याद रखना हमेशा यही दोस्तों।

   आज हैं हम यहाँ, कल न जाने कहाँ-

   अजनबी से मुलाकात हो जाएगी।।

आज अपने जनम-दिन मना लीजिये।।

             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 प्यारा मीत      (सजल)


मुझको प्यारा मीत चाहिये।

उर मोहक संगीत चाहिये।।


प्रिय भावों में मधुर लालिमा।

होठों पर मधु गीत चाहिये।।


कंचन काया पावन छाया।

प्रेम रसिक मनमीत चाहिये।।


मुझको पाने को हो विह्वल।

प्रेम कलश सा मीत चाहिये।।


मीत सहज हो बहुत छबीला।

उर प्रेरक अभिजीत चाहिये।।


मन में आकर सदा समाये।

गीतकार मधु गीत चाहिये।।


कभी न दो की रेखा खींचे।

ब्रह्म रूप रघुसीत चाहिये।।


पय सा स्वच्छ परम प्रिय निर्मल।

सुरभित नित नवनीत चाहिये।।


मेरा प्यारा अति खुशदिल हो।

मुस्कानों का मीत चाहिये।।


समझदार प्रिय शिव सदृश हो।

कल्याणी गुरुमीत चाहिये।।


साथ निभाये हर स्थिति में।

दिल लायक हममीत चाहिये।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-48

रावन नाम मोर जग जानै।

बंदी मोरे लोकप मानै।।

     मारे तुम्ह खर-दूषन-तृषिरा।

    बाली-कुंभकरन रनधीरा।।

तुम्ह बिराध-घननादपि मारे।

निसिचर बहु-बहु सुभट पछारे।।

     आजु सकल हम करज उतारब।

       मारि तुमहिं निजु भागि सँवारब।।

तब हँसि कहे राम रघुनाथा।

कछुक करहु,मत गावहु गाथा।।

    नीति कहहि तुम्ह सुनउ पिसाचू।

     तीन प्रकार पुरुष बिधि राचू।।

पनस-गुलाब-रसाल समाना।

फरहिं-फुलहिं-फरफ़ूलहिं माना।।

      जल्पहिं एक करहिं अरु दूजा।

      कहहिं,करहिं जग जानै तीजा।।

राम-बचन सुनि हँसि कह रावन।

चला मोंहि कहँ ग्यान सिखावन।।

     कुलिस-कराल बान संधाना।

      चहुँ-दिसि छाए रावन-बाना।।

तब सर अनल राम संधाने।

जारि दीन्ह लंकेसहिं बाने।।

      अगनित चक्र-त्रिसूलहिं फेंका।

       तुरत राम काटहिं हर एका।।

निष्फल होय मनोरथ खल कै।

रावन-बान फिरहिं तस चलि कै।।

    झट रावन सत बान चलावा।

     राम-सारथी भुइँ पे आवा।।

गिरत भूइँ प्रभु राम पुकारा।

 उठाइ राम प्रभु ताहि सँवारा।।

दोहा-होंहि कुपित प्रभु राम तब,कीन्ह धनुष-टंकार।

         कंपित भे मंदोदरी,नभ-थल-जल-झंकार ।।

                       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                           9919446372

नूतन लाल साहू

 सलाह


फिक्र करता है,क्यों

फिक्र से होता है,क्या

रख अपने इष्ट देव पर भरोसा

फिर देख,होता है क्या

सत्संग में,आने से ही

दृष्टि बदल जाती हैं

भगवान को, सन्मुख पाकर

सृष्टि बदल जाती हैं

सांसारिक वासनाओं में

व्यर्थ की कल्पनाओं से

नाता मत जोड़

नाता जोड़ना है तो,भगवान से जोड़

फिर देख होता है, क्या

खुद को भूलकर

इधर उधर,क्यों भटक रहा है

तू खुशी की तलाश में

पैरों में तो,मोह माया की

जंजीर पड़ी हुई हैं

अपनी क्षमता को पहचानो

और छोड़ दें,फिक्र करना

मानव जीवन,सफल हो जावेगी

सतगुरु की शरण में आ जा

फिर देख होता है, क्या

ब्रम्ह ज्ञान में बड़ी शक्ति हैं

ज्ञान सुन ले,घड़ी दो घड़ी

उस इंसान की जीना भी क्या

जिसमें ज्ञान की ज्योति नहीं हैं

और उस जीवन का मतलब भी क्या

जिसमें प्रेम की बोली,नहीं हैं

फिक्र करता है,क्यों

फिक्र से होता है,क्या

रख अपने इष्ट देव पर भरोसा

फिर देख होता है क्या


नूतन लाल साहू

सुनीता असीम

 सितारा रातभर का हो गया हूं।

उजाला एक घर का हो गया हूँ।

*****

 यूं तो हैं मंजिलें मेरी बहुत सी।

पता पर इक सफ़र का हो गया हूँ।

*****

बहुत रोया मै जिन्हें याट करके।

मैं तारा उस नज़र का हो गया हूं।

*****

वो भगवन मेरे बरगद के हैं जैसे।

मैं पत्ता उस शज़र का हो गया हूँ।

*****

खबर जो चारसू मेरी हैं फैली।

हरफ़ मैं उस ख़बर का हो गया हूँ।

*****

सुनीता असीम

नूतन लाल साहू

 संघर्ष


संघर्ष,प्रकृति का आमंत्रण है

जो स्वीकार करता है

वहीं आगे बढ़ता है

लम्बा है रास्ता, जिन्दगी का

लक्ष्य है,अति दूर

खाई कुंए से बचकर

जाना है, अकेला

दुनिया खोंटी,बड़ी रंगीली

देख तू, धोखा न खाना

चलती स्वांस,हवा का झोंका

इत आया, उत जाना है

पानी की, बुलबुले सी

तेरी जिंदगानी है

श्री राम और श्री कृष्ण जैसा भी

यहां कोई रह न पाया है

अच्छे कर्मो से तूने

मानुष देह पाया है

चार दिन की चमक चांदनी

फिर अंधेरी रात यहां

उसका जीवन भी जीना है,क्या

जिसके जीवन में,संघर्ष नहीं रहा

महाराणा प्रताप का संघर्ष

अमर हो गई गाथा

संघर्ष,यदि आदत बन जाए

तो कामयाबी,मुकद्दर बन जाती हैं

संघर्ष शील व्यक्ति,जब हंसता है

तो दूसरों को भी,हंसा देता हैं

और जब वो,रोता है

तो दूसरों को भी,रुला देता हैं

संघर्ष,प्रकृति का आमंत्रण है

जो स्वीकार करता है

वहीं आगे बढ़ता है


नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *विषय।।दिल।ह्रदय आदि शब्द* 

*पर केंद्रित ।।*

*।।रचना शीर्षक।।*

*।। दिल से उतरो नहीं,दिल में*

*उतर जायो।।*

*विधा।।मुक्तक ।।*


न गुड़ न गुड़ सी बात यही

कुछ   लोगों   का काम है।

इसी में   मिलता  कुछ को

बहुत   ही  आराम        है।।

अहंकार में     जीते     वह

पर दिल से हैं   हार   जाते। 

किसी दिल में     नहीं  उन

का      उतरता    नाम   है।।


बात जो दिल में  होती  वो

जुबां पर आ ही  जाती  है।

क्या बसा  आपके मन  में

वह सब कुछ     बताती है।।

कहते   कि मन   मस्तिष्क

सदा ही साफ   रखें  आप।

आपकी हरबात ह्रदय  का

शीशा बन  कर आती   है।।


सदा यूँ बोलें कि    दिल से

न उतरें उसमें    उतर जायें।

किसी के दर्द   को   समझें

थाह उसके अंतस की पायें।।

ऐसे बोल   हों   कि    ह्रदय

भीतर तक खुश किसी  का।

जुबां से नहीं दिल  से  आप

अपना जीत  कर     बनायें।।


जान लीजिए कि   दिल का

दरवाजा अंदर से खुलता है।

जो दिया आपने वही     जा

कर ही   मिलता जुलता  है।।

जुबां से हो गिला    शिकवा 

पर दिलों में मैल  नहीं आये।

दिमाग से न   दिल से निभा

रिश्ता ही जाकर खिलता है।।

एस के कपूर श्री हंस

*बरेली।।*

मोब।।          9897071046

                   8218685464

डॉ0हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-47

रावन अब तहँ भवा अकेला।

चहै करन बहु माया-खेला।।

     बिरथ देखि रन महँ रघुबीरा।

     बिकल भए सभ देव गँभीरा।।

धाइ इंद्र-रथ आवा मातुल।

भए मुदित देव जे ब्याकुल।।

    इंद्र काम ई उत्तम कीन्हा।

     जे प्रभु रामहिं निज रथ दीन्हा।

चंचल चारि नधे रथ घोरे।

अजर-अमर गति बायु-झकोरे।।

      हरषि चढ़े तेहि पे रघुबीरा।

       देखि कपिन्ह बाढ़ा बल-धीरा।।

कपिन्ह उछाह बिलोकि दसानन।

माया कइलस आनन-फानन ।।

     ब्यापै नहिं माया प्रभु रामहिं।

      लछिमन,कपि सभ सच ई मानहिं।।

राम-लखन बहु लखि रन माहीं।

कपि भे भ्रमित-अचंभित ताहीं।।

       हँसि प्रभु कीन्ह बान संधाना।

        भए मुक्त कपि-भालू नाना

बैठउ अब तुम्ह सभ कपि-भालू।

थकित भए तुम्ह कहे कृपालू।।

      द्वंद्व जुद्ध अब देखउ तुम्ह सब।

      बिबिध कला जुधि निरखहु तुम्ह अब।।

तुरत सुरहिं नवाइ निज माथा।

रथ चढ़ि तहँ आयउ रघुनाथा।।

      कुपित होइ तब रावन आवा।

      करत गर्जना धावा-धावा।।

दोहा-कह रावन क्रोधित-बिकल,सुनहु तपस्वी राम।

         जे जीतेउ अबहीं तलक,मैं नहिं रावन-नाम।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 सद्गति      (दोहे)


सद्गति मिलती है तभी,जब हो सुंदर चाल।

सत्कर्मों से ही सहज,विपदाओं को टाल।।


सद्गति -शुभगति क्षितिज ही, इस जीवन का लक्ष्य।

सहज सुखद परिणाम ही, सद्गति का है तथ्य।।


मुक्ति मंत्र के जाप में, सद्गति की है राह।

सद्गति पाने के लिये, रखो मोक्ष की चाह।।


कर्म करो निष्काम हो, यह सद्गति की नीति।

सत्य आचरण में छिपी, सद्गति की है रीति।।


धर्मयुधिष्ठिर बन निकल, करना धर्म प्रचार।

इसी पंथ से है जुड़ा, प्रिय सद्गति का तार।।


इसी अवस्था के लिये, रहना सतत सचेत।

सद्गति पाता वह नहीं,जो रहता निश्चेत।।


सद्गति सुंदर भाव का, सत्य दिव्य परिणाम।

सद्गति मधुर स्वभाव का, अति शीतल है नाम।।


रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ० रामबली मिश्र

 दिव्य भाव  चालीसा


दिव्य भाव की करो कामना।

कर ईश्वर से यही याचना।।

दिव्य भाव अति पावन सरिता।

बूँद-बूँद में अति प्रिय कविता।।


देव शक्ति है दिव्य भाव में।

नैसर्गिकता सहज चाव में।।

दिव्य भाव में अमृत सागर।

दिव्य भाव प्रिय अमृत नागर।।


दिव्य भाव को पवन समझना।

सदा धर्मरत शीतल बहना।।

यह मानवतावादी पावन।

ब्रह्मलोक तक सहज लुभावन।।


देव मनुज सबका हितकारी।

दिव्य भाव ही प्रेम पुजारी।।

ब्रह्म विचरते दिव्य भाव में।

निर्विकार नित मधु स्वभाव में।।


दिव्य भाव के ब्रह्म रचयिता।

इसमें निर्मलता शुभ शुचिता।।

भरा हुआ जो दिव्य भाव से।

आच्छादित वह सुखद छाँव से।।


जिसके मन में गंगा बहतीं।

उस में दिव्य भावना रहती।।

जिस को सद्विवेक मनभावन।

उस में दिव्य भाव का आवन।।


अडिग प्रेम में दिव्य भावना।

प्राणि मात्र की शुभद कामना।।

जिस के भीतर सत्व प्रीति है।

दिव्य भावनामयी रीति है।।


दिव्य भाव में नित्य दान है।

नैतिकता का सत्य ज्ञान है।।

यह प्रिय दाता सहज सन्त सम।

देव तुल्य यह भाव परम नम।।


दिव्य भाव है सब से ऊपर।

बाधाओं से मुक्त उच्चतर।।

यह निसर्ग का देवालय है।

शुभग मनोहर विद्यालय है।।


पावन मन का भाव यही है।

शुद्ध हृदय का गाँव यही है।।

सकल विश्व मैत्री का देशा।

दिव्य भाव सर्वोच्च विशेषा ।।


दोहा-


दिव्य भाव के धाम में,ईश्वर का सहवास।

दिव्य भावनायुक्त नर,सदा ईश के पास।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

निशा अतुल्य

 भागमभाग भरी जिंदगी

20.1.2021


कहाँ जा रही हूं मैं 

अपने ही विचारों में उलझी

कर्तव्यों की डोर से बंधी

खुद को भूलती बिखराती

भागमभाग भरी जिंदगी ।


कुछे छूटे साथी 

कुछ बंधन नए

कुछ किये दर किनार

अपने से स्वयं ही ।

करती सामंजस्य सबसे

भागमभाग भरी जिंदगी ।


विचारों की तन्द्रा पर ताले

जब तक कुछ न सोचूं

तब तक भली

खोलूं जो पंख अपने

दूसरे के गले में अटकी

बन्द कर सभी दरवाजे 

मैं ख़ुद में भली

भागमभाग भरी जिंदगी ।


जी करता 

छोड़ चली जाऊं कहीं

जब तक मैं चाहूँ 

निभाते सब मुझे 

जब खोलूँ मुँह 

बात बेबात बढ़ी 

कैसी है भला ये जिंदगी

किसके लिए भली 

भागमभाग भरी जिंदगी ।


व्यवस्थित सयंमित

जिंदगी मेरी कब तक ?

जब तक मैं चुप तब तक

वरना बिखरी उजड़ी सी

दिखती हर पल 

कर्तव्यों के साथ बंधी जिंदगी

भागमभाग भरी जिंदगी ।


हाँ सब की जिंदगी है ये ही

माने या न माने 

सुनकर स्वीकार करना सच को

नही आसान है कोई

सादा सरल कुछ भी नहीं

हाँ बस ये ही है कहानी सबकी

भागमभाग भरी जिंदगी सबकी ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/16)

सौंधी गंध लिए आ जाओ,

घर-आँगन सुरभित हो जाएँ।

संग बहारों को ले आओ-

तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।


छीन बादलों से बरसातें,

आ धरती की प्यास बुझाओ।। 

सूखी पड़ी सभी सिवान हैं,

दे हरियाली उन्हें जिलाओ।

सभी प्रतीक्षारत लगते हैं-

तुमको पा हर्षित हो जाएँ।।

   तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।


छीन पवन से पुरुवाई भी,

ले बहो मस्त वन-बागों में।

दिनकर की भी ले कर किरणें,

आ खिल जा कमल-तड़ागों में।

तुमको पाकर लतिकाएँ सब-

विह्वल हो पुष्पित हो जाएँ।।

    तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।


 सुर सातों ले तुम झरनों से,

 आओ चले बजाते सरगम।

बस्ती-कुनबे,नगर-डगर सब,

सुनना चाहें गीत सुधा सम।

सुनकर तेरे गीत सुरीले-

 वृक्ष पत्र से पूरित हो जाएँ।।

      तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।


पुनि आ जा ऐ मीत हमारे,

खुला हुआ घर-आँगन मेरा।

आकर करो सुगंधित फिर से,

मेरे साजन,घर जो तेरा।

तेरा साथ सुगंधित पा कर-

हृदय-कुसुम कुसुमित हो जाएँ।।

     संग बहारों को ले आओ,

     तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।

 

कब से लिए आस मैं जोहूँ,

आकर प्यास बुझा तो जाओ।

प्यार भरा आलिंगन देकर,

सोया प्रेम जगा तो जाओ।

पाकर स्नेहिल आलिंगन सब-

प्रेम-भाव द्विगुणित हो जाएँ।।

      संग बहारों को ले आओ,

      तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।

                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

डॉ निर्मला शर्मा

 वीर महाराणा प्रताप

राजस्थान री माटी पर ,जब राणा रो जनम हुयौ।

जेठ शुक्ल री तृतीया पर ,कुम्भलगढ़ में सूरज चमक्यो।

राजस्थान री आन रो रखवालो, वा अजब बड़ो सैनानी।

जीवन भर स्वाभिमान री खातर, देतो रह्यो कुर्बानी।

सिसोदिया वंश री धरोहर ,वा वीर बड़ो सम्मानी।

कुम्भलगढ़ रे किला में जन्मयो, जिसरी मैं लिखूँ कहानी।

माता जिसरी जीतकंवर सा ,पिता हैं वीर उदयसिंह।

त्याग, शौर्य, वीरता बलिदान में ,सदा आगे रह्यो वा सिंह।

पूत रा पाँव पालना दीखे, या कहावत चरितार्थ कर माना।

बालकपन सूं सब गुण दीखै, व्यक्तित्व महान था राणा।

राजस्थान री आन, बान, और शान रो वा रखवालो।

उसरे आगे जो कोई आयौ, मुँह की खायौ भाग्यो।

हल्दीघाटी रा युद्ध री, धरती पै प्रसिद्ध कहानी।

मुगलां री सेना रा छक्का छुडायो, वा तलवार रो धणी।

चेतक री जब करै सवारी, रण में तलवार चलावै।

बैरी री सेना डर भागै, केसरिया बाना ही लहरावै।

दानी भामाशाह ने भी, आपणो कर्तव्य निभायौ।

भीलां रे सहयोग सूं ,राणा नै अकबर कूं झुकायौ।

वा वीर शिरोमणि देशभक्त नें, झुक-झुक शीश नवाऊँ।

या वीरां री धरती पर, ऐसो व्यक्तित्व कभी न पाऊँ।

वा स्वाभिमान रो सूरज, वा तो वीर बड़ौ बलिदानी।

माटी रो करज चुकाने कूं ,जीवन री दी कुर्बानी।


डॉ निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

ड़ॉ० रामबली मिश्र

 प्रेमी! पागल…    (सजल)


प्रेमी! पागल मत बन जाना।

फूँक-फूँक कर कदम बढ़ाना।।


सभी नहीं दुनिया में प्रेमी।

धीरे चल चींटी बन जाना।।


जग विश्वास खो रहा अब है।

रुक-रुक करके पैर जमाना।।


धोखेबाज खड़े चौतरफा।

आगे-पीछे होते जाना।।


अति विश्वास कभी मत करना।

सोच-समझकर आगे जाना।।


वफादार का अब टोटा है।

कभी न जल्दी हिल-मिल जाना।।


मकड़जाल है विछा चतुर्दिक।

कभी जाल में फँस मत जाना।।


माना कि तुम प्रेम रसिक हो।

फिर भी सँभल-सँभल कर जाना।।


कभी न सोचो सभी प्रेममय।

कभी न झाँसे में तुम आना।।


पहले लेना घोर परीक्षा।

ठोक-बजाकर चित्त चढ़ाना।।


कामुक घूम रहे पशु बनकर।

इनसे पीछा सदा छुड़ाना।।


कामवासना प्रेम नहीं है।

इस रहस्य को सतत जानना।।


प्रेमी को बस प्रेम सहहिये।

वह तो आशिक़ प्रेम दीवाना।।


प्रेम दीवाने राधे-कृष्णा।

इसी भाव को सदा जगाना।।


सत्व भाव में सत्य प्रेम है।

सात्विक प्रेमी को अपनाना।।


 ड़ॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *मधुरालय*

              *सुरभित आसव मधुरालय का*9

चलो चलें स्वागत हम कर लें,

इस मधुरालय का मन से।

इसकी तीनों जग में चर्चा-

चहुँ-दिशि गरिमा  छाई है।।

      लोक और परलोक-अधोतल,

      आसव -आसव -आसव है।

      हाला की तो बात न पूछो-

      अति विशिष्ट तरलाई है।।

करुणा और मित्रता जागे,

सदा कुभाव सुभाव बने।

मधुर स्वाद अति मन को भाए-

अनुपम नेह -लगाई है।।

        लगे नेह पर विरत वासना,

        शुभ स्वभाव देवत्व जगे।

         देव-पेय सम सबको भाए-

         जब-जब यह इठलाई है।।

पीओ किंतु रहो अनुशासित,

भोग-योग-संयोग  जगत।

जीवन जीना यही सिखाए-

जीओ,जग बिछुड़ाई  है।।

        ईश्वर-कृपा रहे सब जन पर,

        यह केवल तब ही संभव।

        जब सब जन समझें यह दुनिया-

         अपनी नहीं,पराई  है।।

अपन-पराया भेद भूलकर,

सब जन रहना यदि सीखें।

देन यही आसव की होगी-

जानो यही सचाई  है।।

      चलो,आज यह करें प्रतिज्ञा,

       साथ-साथ मिल कर्म करें।

       खाना-पीना,सोना-जगना-

        यही भाव समताई है।।

ऊँच-नीच है रोग विकट जग,

इसको कभी न शह देना।

छुआछूत रिश्तों का कैंसर-

इसने आग लगाई है।।

     बात बनाने से बनती है,

     बिगड़ी बात बना डालो।

     अभी नहीं कुछ देर हुई है-

     ऋतु स्नेहिल अब आई है।।

वायु-अग्नि-जल पक्ष में तेरे,

मौसम करे पुकार अभी।

काले बादल सुखद-सुहाने-

ऋतु ने ली अँगड़ाई है।।

      बीन बजाओ,ढोल बजाओ,

       सुर साधो शहनाई का।

       धीरे से मुरली की धुन ने-

       ऐसी बात बताई है।।

आदि काल से इस आसव ने,

डोर प्रेम की निर्मित की।

प्रेम-डोर से सतत बँधें हम-

इसमें जगत-भलाई है।।

      आसव है संकेत प्रेम का,

       दिव्य दृष्टि का सूचक भी।

      है कपाट अध्यात्म-बोध का-

      जीवन आस-जगाई है।।

                  © डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372





*मधुरालय*

              *सुरभित आसव मधुरालय का*10

छंद-ताल-सुर-लय को साधे,

भाव  भरे रुचिकर हिय  में।

वाणी का यह प्रबल प्रणेता-

सच्ची यह   कविताई  है।।

      लेखक-साधक-चिंतक जिसने,

      दिया  स्नेह  भरपूर  इसे।

      उसके गले उतर देवामृत-

      ने भी प्रीति निभाई  है।।

आसव-शक्ति-प्रदत्त लेखनी,

जब काग़ज़ पर चलती है।

चित्र-रेख अक्षुण्ण खींचती-

रहती जो अमिटाई है।।

      आसव है ये अमल-अनोखा,

       मन भावुक बहु करता है।

       मानव-मन को दे कवित्व यह-

       करता जन कुशलाई है।।

योग-क्षेम की धारा  बहती,

यदि प्रभुत्व इसका होता।

धन्य लेखनी,कविता धन्या,

जो रस-धार बहाई है।।

     मधुरालय के आसव जैसा,

     नहीं पेय जग तीनों में।

     मधुर स्वाद,विश्वास है इसका-

     जो इसकी प्रभुताई है।।

जब-जब अक्षर की देवी पर,

हुआ कुठाराघात प्रबल।

आसव रूपी प्रखर कलम ने-

माता-लाज बचाई  है।।

     अमिय पेय,यह आसव नेही,

     ओज-तेज-बल-बर्धक है।

      साहस और विवेक जगाता-

      होती नहीं हँसाई है।।

रचना धर्मी कलम साधते,

सैनिक अस्त्र-शस्त्र लेकर।

दाँव-पेंच-मर्मज्ञ सियासी-

विजय सभी ने पाई है।।

     शिथिल तरंगों ने गति पाई,

     भरी उमंगें चाहत में।

     बन प्रहरी की इसने रक्षा-

     जब दुनिया अलसाई है।।

मन-मंदिर का यही पुजारी,

रखे स्वच्छ नित मंदिर को।

कलुषित सोच न पलने देता-

सेव्य-भाव बहुताई है।।

      आसव नहीं है मदिरा कोई,

       आसव सोच अनूठी है।

       सोच ही रक्षक,सोच विनाशक-

       सोच बिगाड़-बनाई है।।

                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

बिलासा साहित्य संगीत धारा मंच व्हाट्सएप आॅनलाइन काव्यगोष्ठी

 बिलासा साहित्य संगीत धारा मंच की चतुर्थ वर्षगांठ पर काव्यगोष्ठी का रंगारंग आयोजन


गत दिनांक 15 जनवरी दिन शुक्रवार को बिलासा साहित्य संगीत धारा मंच के व्हाट्सएप पटल पर आॅनलाइन काव्यगोष्ठी


का रंगारंग आयोजन किया गया। बिलासा मंच की स्थापना के चतुर्थ वर्षगांठ के पावन अवसर पर डॉ. दीपिका सुतोदिया सखी जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं, विशिष्ट अतिथि श्री कृष्ण कुमार क्रांति जी, अध्यक्ष श्री तेरस कैवर्त्य आंसू जी की गरिमामई उपस्थिति ने कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए। साथ ही कार्यक्रम आयोजन कर्ता श्रीमती सुकमोती चौहान रूचि जी के संयोजन से यह ऐतिहासिक कार्यक्रम सफल हुआ।

कार्यक्रम में भारतीय परंपरा अनुरूप सर्वप्रथम मां शारदे व प्रथमपूज्य गौरी नंदन की पूजा की गई साथ ही ग़ज़लकार श्री परशुराम चौहान जी ने मधुरिम आवाज में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की, तत् पश्चात अतिथियों का स्वागत किया गया।

कार्यक्रम की अगली कड़ी में क्रमशः श्रीमती माधुरी डडसेना मुदित जी, श्रीमती व्यंजना आनंद मिथ्या जी, श्री विनोद कुमार जोगी जी एवं श्रीमती धनेश्वरी देवांगन धरा जी के सुन्दर संचालन से कार्यक्रम ने अपने सफलता के शिखर तक की यात्रा की।

कार्यक्रम में काव्यपाठ की प्रथम आहुति श्री रामनाथ साहू ननकी जी ने अपने मुखारविंद से प्रस्तुत की तत् पश्चात क्रमशः सुकमोती चौहान रूचि जी, आशा आजाद कृति जी, बोधन राम निषादराज विनायक जी, केवरा यदु मीरा जी, धनेश्वरी देवांगन धरा जी, ओमकार साहू मृदुल जी, डी पी लहरे मौज जी, इन्द्राणी साहू साँची जी, मनोरमा चंद्रा रमा जी, डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर जी, प्रेमचंद साव जी, शिवकुमार श्रीवास लहरी जी, नीरामणी श्रीवास नियती जी, तोरनलाल साहू जी, चंद्रकिरण शर्मा जी, अंजना सिन्हा सखी जी, माधुरी डडसेना मुदित जी, सुशीला साहू विद्या जी, करमलाल मांझी जी, गीता विश्वकर्मा नेह जी, लक्ष्मण प्रसाद साहू जी, मधु तिवारी जी, पद्मा साहू पर्वणी जी, सुधा शर्मा जी, हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी जी, प्रतिभा प्रसाद कुमकुम जी, हरिकांत अग्निहोत्री महर्षि जी, सुधा देवांगन शुचि जी, अनिता मंदिलवार सपन जी, अमिता रवि दूबे जी, संगीता वर्मा तरंगिणी जी,  सुधा रानी शर्मा जी, जागृति मिश्रा रानी जी, अरूणा साहू जी, सरोज साव जी, प्रभात कुमार शर्मा जी, मानक छत्तीसगढ़िया जी, राजेश कुमार निषाद रुद्र जी, धनेश्वरी सोनी गुल जी, गोवर्धन प्रसाद सूर्यवंशी जी, जितेन्द्र कुमार वर्मा जी, रवि रश्मि अनुभूति जी, व्यंजना आनंद मिथ्या जी, कृष्णा पटेल जी, प्रिया देवांगन प्रियू जी, विनोद कुमार जोगी, सरिता लहरे माही जी, चमेली कुर्रे सुवासिता जी, अनिल जांगड़े जी, डॉ मंजरी अरविंद गुरु जी, कमल कालु दहिया जी, आशा मेहर किरण जी, मनोज यादव भावरिया जी, सुन्दर लाल डडसेना मधुर जी, लक्ष्मी कांत सोनी प्रभु पग धूल जी, डॉ विनय कुमार सिंह जी, सुधीर श्रीवास्तव जी, गीता पाण्डेय अपराजिता जी, एवं सपना सक्सेना दत्ता सुहासिनी जी ने अपने अनुठे काव्यपाठ से कार्यक्रम में शमा बांधा।

कार्यक्रम की अंतिम कड़ी में विशिष्ट अतिथि आ. कृष्ण कुमार क्रांति जी, मुख्य अतिथि आ. दीपिका सुतोदिया सखी जी ने अपने मुखारविंद से उद्बोधन दिया। अंत में अध्यक्ष श्री तेरस कैवर्त्य आँसू जी ने आभार व्यक्त करते हुए यह घोषणा की कि आज के काव्य पाठ में प्रस्तुत कविताओं के संकलन से एक साझा संकलन प्रकाशित की जाएगी। साथ ही कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा करते हुए आगे भी इसी तरह के सफल आयोजन की कामना की।

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

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