डॉ० रामबली मिश्र

*जो भी लिखता..*


 


कुछ भी लिखता तुम लिख जाते।


हर अक्षर में तुम दिख जाते।।


 


सोच-समझकर शव्द बनाता।


सारे शव्द तुम्हीं बन जाते।।


 


पतझड़ के पत्तों पर लिखता।


तुम किसलय बनकर उग आते।


वाक्य बनाता रच-रचकर मैं।


सब वाक्यों में तुम आ जाते।


 


लिखने को जब कलम उठाता।


स्याही बनकर तुम आ जाते।।


 


पृष्ठ पलटता जब लिखने को।


हर पन्ने पर तुम छा जाते।।


 


महक रहे हो मृदुल भाव बन।


अनचाहे कविता बन जाते।।


 


ऐसा क्यों है समझ न पाता।


बिन जाने तुम प्रिय बन जाते।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल(14/14)


कैसा आज ज़माना है,


पापी-अघी बचाना है।।


 


 धन को लूट गरीब का,


भरना निजी खज़ाना है।।


 


चंदन-तिलक लगा माथे,


अत्याचार मचाना है।।


 


राजनीति को दूषित कर,


अपना काम बनाना है।।


 


लोक-लाज का बंधन तज,


नंगा नाच नचाना है।।


 


घृणा-भाव कर संचारित,


निज सिक्का चमकाना का।।


 


लेकिन, फिर से सुनो मीत,


नया ज़माना लाना है।।


 


नूतन सोच-मशाल जला,


कुत्सित तिमिर भगाना है।।


        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


            9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

बाल-गीत


चुन्नू-मुन्नू दौड़े आओ,


बैठ धूप में मौज उड़ाओ।


सूरज बाबा देख उगे हैं,


लख के उल्लू इन्हें भगे हैं।।


 


चंदा मामा भागे मिलने,


मामी के सँग बातें करने।


तारे दीपक रात जलाएँ,


नाचें-गाएँ मौज मनाएँ।।


 


अब आई है दिन की बारी,


धूप खिली है प्यारी-प्यारी।


देखो मम्मी तुम्हें पुकारे,


रंग-विरंगे ले गुब्बारे ।।


 


बगल बाग में बंदर कूदें,


खेल-खेल में आँखें मूँदें।


इनसे बचकर रहना बच्चे,


बंदर कभी न मन के सच्चे।।


 


खेल-कूद कर खाना खाना,


खाना खा कर पढ़ने जाना।


पढ़-लिख कर तुम साहब बनना,


बन साहब जन-सेवा करना।।


 


सदा सत्य की राह पकड़ना,


कभी किसी से नहीं झगड़ना।


रहो देखते ऊँचे सपने,


सच्चे सपने होते अपने ।।


        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


            9919446372


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*वही आता है जीत कर जो खुद*


*पर एतबार करता है।।*


 


खुशियों को ढूंढने वाले धूल


में भी ढूंढ लेते हैं।


ढूंढने वाले तो काँटों के बीच


फूल को ढूंढ लेते हैं।।


दर्द को भी बनाने वाले बना


लेते हैं जैसे कोई दवा।


ढूंढने वाले तो खुशियों को


शूल में भी ढूंढ लेते हैं।।


 


फूल बन कर बस मुस्कराना


सीख लो जिंदगानी में।


दर्दो गम में भी मत रुको तुम


इस मुश्किल रवानी में।।


हार को भी स्वीकार करो तुम


इक जीत की तरह।


यही तो फलसफा छिपा इस


जीवन की कहानी में।।


 


जीतता तो वो ही जो कोशिश


हज़ार करता है।


वो हार जाता जो शिकायत


बार बार करता है।।


हार भी बदल जाती है जीत में


हमारे हौंसलों से।


वहजीतकर जरूरआता जो खुद


पर एतबार करता है।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर " श्री हंस*"


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                       8218685464


नूतन लाल साहू

विधाता की कैसी यह लीला


 


कौन हूं मैं और कहां से आया


किसने सारी सृष्टि रचाया


जीवन भर यह भरम, मिट न पाया


विधाता की कैसी यह लीला है


चौबीस तत्वों से संसार बना हैं


षट विकार वाला यह जग हैं


इस नाटक को सत्य समझकर


मानव अपना रूप भुलाया


विधाता की कैसी यह लीला है


यह संसार फूल सेमर सा


सुंदर देख लुभायों


चाखन लाग्यो रूई उड़ गई


हाथ कुछ नहीं आयो


विधाता की कैसी यह लीला है


मुझे अपना जीवन बनाना न आया


रूठे हरि को मनाना न आया


भटकती रही दुनिया वालों के दर पर


रही पाप ढोती मै,सारी उमर भर


विधाता की कैसी यह लीला है


फूलों सा हंसना नहीं सीखा


भंवरो सा नहीं सीखा गुनगुनाना


सूरज की किरणों से नहीं सीखा


जगना और जगाना


विधाता की कैसी यह लीला है


सत्यवादी राजा हरिशचंद्र जैसे दानी


काशी में बिक गये दोनों प्राणी


जिसे भरना पड़ा नीच घर पानी


विधाता की कैसी यह लीला है


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

😌 लेख विधाता, टरे न टारे 😌


 


जीवन भर संघर्ष किया है।


  घूॅ॑ट ज़हर का सदा पिया है।


    किसको दोष कहो दें भाई।


      किस्मत ही है ऐसी पाई।


 


कर्म किया फल हाथ न आया।


  जाने कैसे प्रभु की माया।


    खोदा कूप बहुत ही गहरा, 


      पानी लेकिन बूंद न पाया।


 


प्यासा मन,तन भी है प्यासा।


  पूरी हुई नहीं अभिलाषा।


    किए प्रयास ख़ास बहुतेरे,


      हाथ लगी तो महज निराशा।


 


अश्रु भरे हैं नैन हमारे।


  लेख विधाता टरे न टारे।


    जीवन व्यर्थ हुआ सच मानो,


      अब भी गर्दिश में है तारे।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-32


तब सुक-दूत कहेसि दसकंधर।


नाथ क्रोध तजि भजहु निरंतर।।


     राम-नाम-महिमा बड़ भारी।


     रामहिं भजै त होय सुखारी।।


त्यागि सत्रुता अरु अभिमाना।


करउ जुगत कोउ सिय लौटाना।।


     सुनि अस बचन क्रुद्ध तब रावन।


      मारा लात सुकहिं तहँ धावन।।


तब सुक-दूत राम पहँ गयऊ।


करि प्रनाम राम सन कहऊ।।


     रामहिं तासु कीन्ह कल्याना।


     अगस्ति-साप तें मुक्ती पाना।।


तजि राच्छस पुनि सुक मुनि रूपा।


गे निज आश्रम ऋषी स्वरूपा।।


    लखि तब राम सिंधु-जड़ताई।


    क्रोधित हो तुरतै रघुराई।।


बासर तीन गयउ अब बीता।


मानै नहिं यह मूर्ख अभीता।।


     लछिमन लाउ देहु धनु-बाना।


      सोखब दुष्ट अग्नि-संधाना।।


बंजर-भूमि पौध नहिं उगहीं।


माया-रत-मन ग्यान न लहहीं।।


    लोभी-मन बिराग नहिं भावै।


     नहिं कामिहिं हरि-कथा सुहावै।।


भल सुभाव नहिं भावै क्रोधी।


मूरख मीतहिं सदा बिरोधी।।


    केला फरै नहीं बिनु काटे।


     नवै न नीच कबहुँ बिनु डाँटे।।


     अस कहि राम कीन्ह संधाना।


      अंतर जलधि पयोनिधि पाना।।


बहुत बिकल जल-चर सभ भयऊ।


मछरी-मगर-साँप जे रहऊ ।।


दोहा-देखि बिकल सभ जलचरन्ह,बिप्रहिं-रूप पयोधि।


         कनक-थार महँ मनि लई, किया तुरत अनुरोध।।


                     डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


रवि रश्मि अनुभूति

सही - सही माँ राह दिखाती , 


      पूजी जाती माँ।


माँ का हर पल सम्मान करो , 


     देखे हर पल माँ ।।


 


माँ का देवी का दर्जा है , 


      करते हम पूजा । 


 


माँ की ममता है वट वृक्ष - सी ,   


      माँ ही सरमाया ।।


सारे संकट माँ हरती है , 


      माँ शीतल छाया ।।


 


निस्वार्थ भाव सेवा करती , 


     माँ बड़ी पुजारी ।


सब दुख हरने वाली माँ है , 


      माँ बड़ा दुलारी ।। 


 


संबल बन बच्चों का वह तो , 


      संस्कार सिखाती ।


निराशा से गिरते देख माँ, 


      उम्मीद बन जाती ।।


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


      मुंबई ( महाराष्ट्र ) ।


कालिका प्रसाद सेमवाल

*मां सरस्वती सद्गुण से भर दो*


********************


विद्या वाणी की देवी मां सरस्वती


मुझ पर मां तुम उपकार करो,


बनूं परोपकारी व करुं मानव सेवा,


मेरे अन्दर ऐसा विश्वास भरो,


और जीवन में उत्साह भर दो।


 


मां जला दो ज्ञान का दीपक, 


अवगुणों को खत्म कर दो,


करुणा से हृदय को भर दो,


चुन चुन कर सद् गुण के मोती


 मां मेरी झोली में तुम भर दो ।


 


मां लेखनी में धार दे दो,


और वाणी में मधुरता दो,


भाव सरस अभिव्यक्ति हो,


 जीवन में रस भर दो मां,


मां सरस्वती सद्गुण से भर दो।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड।


डॉ० रामकुमार

शीर्षकः आस्तीन के साँप 


 


आस्तीन के साँप बहुतेरे,


पलते हैं राष्ट्र परिवेश में। 


सत्ता भोग मुक्त मदमाते,


विद्रोही घातक बन देश में। 


 


ख़ोद रहे वे ख़ुद वजू़द को,


कुलघातक शत्रु खलवेष में।


भूले भक्ति स्वराष्ट्र प्रेम को,


गलहार चीनी नापाक में।  


 


राष्ट्र गात्र को नोच रहे वे,


सदा खल कामी मदहोश में।


नफ़रत द्वेष आग फैलाते,  


मौत जहर खेल आगोश में।


 


लहुलूहान स्वयं ज़मीर वे, 


लालच प्रपंच और द्वेष में।


वतन विरोधी बद ज़ुबान वे,


बेचा ईमान अरमान में।


 


ध्वजा राष्ट्र अपमान करे वे,


नापाकी चीन सम्मान में।


शर्माते जय हिन्द कथन में,


गद्दारी वतन अपमान में। 


 


देश विरोधी चालें चलते,


मदद माँगते चीन पाक में।


बने आस्तीन के भुजंग वे,


उफ़नाते फुफ़कारी देश में। 


 


हँसी उड़ाते हर शहीद के,


जो बलिदान राष्ट्र सम्मान में।


रनिवासर सीमान्त डँटे जो,


बने भारत रक्षक आन में। 


 


नारी के सम्मान तौलते,


दे मज़हबी रंग समाज में।


झूठ फ़रेबी धर्म बदल वे,


फँसी बेटी प्रेमी जाल में।


 


जहाँ आस्तीन का साँप पले,


समझो विनाश उस देश में।


कुचलो फन उस देश द्रोह के,


तभी प्रगति सुख शान्ति वतन में।


 


शुष्क घाव नासूर बने वे,


फ़ैल दहशत द्रोही वेश में।


शत्रु हो विध्वंश समूल वे,


खुशी समरसता हो भारत में।


 


रचनाः मौलिक ( स्वरचित)


डॉ० रामकुमार निकुंज


सुनीता असीम

बोहोत हुई कान्हा अब मनमानी है।


अपने दिल की तुझको टीस दिखानी है।


*****


दिल में मेरे बंशी बजती तेरी हरदम।


कह दे तेरी मेरी ये प्रीत पुरानी है।


*****


माना मैंने मनमोहक चितवन तेरी।


छलती मेरे जी को और सुहानी है।


*****


तैयार करो खुद को सांवरिया मेरे।


डोली मेरी तुमको सिर्फ उठानी हो


*****


लब पर तेरे मुस्कान अनोखी देखी।


उससे ही तो मन में जोत जगानी है।


******


सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

*उत्कृष्ट सृजन*


 


अति उत्कृष्ट सृजन तब होता।


 मन निर्मल सुंदर जब होता।।


 


 


मन में पाप भरा यदि होगा।


कभी न मधुरिम शव्द बहेगा।।


 


टेढ़ा-मेढ़ा भले सृजन हो।


पर केवट का प्रेम वचन हो।।


 


अगर इरादा सुंदर नीका।


दीपक होगा गो के घी का।।


 


पावन उर में शुभ रचना है।


निकलत सतत अमी वचना है।।


 


अति उत्कृष्ट सृजन ही जीवन।


बिना सृजन जड़वत है तन-मन।।


 


रचो धाम नित शरणार्थी को।


गढ़ते रहना विद्यार्थी को।।


 


सृजनकार बन रच जगती को।


दो साहित्य सतत धरती को।।


 


हो कटिवद्ध रचो मानव को।


ले लाठी मारो दानव को।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ०रामबली मिश्र

*दिल में...*


 


दिल में आ कर लौट न जाना।


करना मत तुम कभी बहाना।।


 


मृतक बनाकर कभी न जाना।


जहर पिलाकर भाग न जाना।।


 


तन-मन-उर खेलवाड़ नहीं हैं।


किन्तु बिना तुम प्राण नहीं है।।


 


कोमल दिल भावुक अति मधुमय।


इसका नर्म भाव प्रिय शिवमय।।


 


जगत हितैषी शुभवादी है ।


मधुर वचन अमृतवादी है।।


 


जख्मी इसे कभी मत करना।


क्रूर वचन इसको मत कहना।।


 


कटु वाणी सुन मर जायेगा।


नक्कारों से डर जायेगा।।


 


नहीं भूलकर इसे सताना।


अपना मधुकर मीत बनाना।।


 


कर सकते हो तो है अच्छा।


लेना मत तुम कभी परीक्षा।।


 


प्रियवर हो तो साथ निभाओ।


दिलवर बनकर दिल में आओ।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुषमा दीक्षित शुक्ला

गंगा मइया लोक गीत


दिनांक 28,11,20


 


अमृत है तेरा निर्मल जल


 हे! पावन गंगा मइया ।


 हम सब तेरे बालक हैं


 तुम हमरी गंगा मइया।


 मां सब के पाप मिटा दो 


हे! पापनाशिनी मइया ।


 अब सारे क्लेश मिटा दो


 हे! पतित पावनी मइया ।


 भागीरथ के तप बल से


 तुम आई धरणि पर मइया।


 शिवशंकर के जटा जूट से 


 प्रगट हुई थी मइया ।


 हे !जान्हवी हे! मोक्षदायिनी 


अब पार लगा दो नइया।


सगरसुतों को तारण वाली


 भव पार लगा दो मइया ।


इस धरती पर खुशहाली 


 तुमसे ही गंगे मइया।


 आंचल तेरे जीना मरना 


  हम सबका होवे मइया।


 मां शरण तुम्हारी आयी 


हे! मुक्तिदायिनी मइया ।


हम सब तेरे बालक हैं 


तुम हमरी गंगा मइया।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला लखनऊ


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*ग़ज़ल*


        *ग़ज़ल*


एक भी गम न दिल से लगाया करो,


तुम हमेशा ही यूँ, मुस्कुराया करो।।


 


रात की तीरगी जब सताने लगे,


प्यारे चंदा को अपने बुलाया करो।।


 


प्यार छुपता नहीं जानते हैं सभी,


प्यार की बातों को मत छुपाया करो।।


 


तिश्नगी प्यार की जब सताने लगे,


नीर काली घटा से बहाया करो।।


 


ज़हनो-दिल तक पहुँचती है यह रोशनी,


प्यार की ज्योति हरदम जलाया करो।।


 


ज़िंदगी का सफ़र यूँ सुहाना रहे,


साथ में रह के वादा निभाया करो।।


 


अस्ल में मुस्कुराना ही है ज़िंदगी,


मुस्कुरा कर हमें भी जिलाया करो।।


 


ज़रा हँस के जी लें सभी कुछ ही पल,


दास्ताँ कोई ऐसी सुनाया करो ।।


                ©डॉ. हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण(श्रीरामचरितबखान)-31


 


भालू-मरकट सब बलवाना।


तिन्ह पे कृपा राम भगवाना।।


     सकत जीति सभ कोटिक रावन।


     जदपि सेन तव नाथ भयावन।।


राम-तेज-बल-बुद्धि-खजाना।


करि नहिं सकहिं सेष अपि नाना।।


     एकहि राम-बान सत-सागर।


     सोखि करै जस राम उजागर।।


करिहउँ पार केहि बिधि ताता।


पूछे राम बिभीषन भ्राता।।


       सुनत बिचार बिभीषन रामा।


       सिंधु क बिनय कीन्ह बलधामा।।


सुनि तब बिहँसि कहा दससीषा।


यहि तें ले सहाय रिपु कीसा।।


       सिंधु-कृपा माँगै रिपु मोरा।


        करु न बखान सुनब नहिं छोरा।।


रिपु-बल-थाह मिला सभ हमका।


जीति न सकै तपस हम सबका।।


     सुनि अस मूढ़ बचन रावन कै।


      दूत दीन्ह तेहिं पत्र लखन कै।।


दोहा-पत्र लिखा सुनु रावनहि,देहु सीय लौटाय।


        नहिं त नास तव कुल सहित,जदपि त्रिदेव सहाय।।


        पढ़ि अस लेख दसाननय,क्रोधित मन लइ आस।


         कह,चाहै महि लेटि के,मूरख छुवन अकास।।


                        डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*सुखद संवाद (तिकोनिया छंद)*


 


सुंदर बनकर,


मोहक कहकर।


हाथ जोड़कर।।


 


प्रेम स्वयंवर,


गलबहियाँ कर।


बोलो सुंदर।।


 


हँसकर मिलकर,


साथ चलाकर।


बाँह पकड़कर।।


 


हाथ मिलाकर,


साथ निभाकर।


घर पर जा कर।।


 


मीठी वाणी,


जनकल्याणी।


उत्तम प्राणी।।


 


उर हो पावन,


शुभ मनभावन।


सुंदर भावन।।


 


प्रेम किया कर,


सहज निरन्तर।


शुचि अभ्यंतर।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


राजेंद्र रायपुरी

*सार छंद पर कुछ राज्यों की तस्वीर*


 


🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣


 


*बिहार*


    छतन्नपकैया- छन्नपकैया, 


                     नेताजी बेचारे।


    बैठ न पाए पल भर कुर्सी,


                    निज़ कर्मों के मारे।


 


    छन्नपकैया-छन्नपकैया, 


                    चैन कहाॅ॑ है भाई।


    पड़े जेल में फिर भी करते,


                    नेताजी अगुवाई।


 


*छत्तीसगढ़*


    छन्नपकैया-छन्नपकैया,


                 इनका हर दिन रोना।


    थाली हमनें माॅ॑गी थी पर,


                  मिला देख लो दोना।


 


*पश्चिम बंगाल*


    छन्नपकैया-छन्नपकैया, 


                     दीदी हैं बौराई।


    मोटा भाई ने वोटों में, 


                   जब से सेंध लगाई।


 


*जम्मू-कश्मीर*


    छन्नपकैया-छन्नपकैया, 


                   देखो - देखो भाई।


    चूहे-बिल्ली एक हो गए,


                 छिन जब गई मलाई।


 


*उत्तर प्रदेश*


    छन्नपकैया-छन्नपकैया,


                   लिखने नई कहानी।


    भिड़े हुए हैं नाम बदलने


                     लेकर दाना-पानी।


 


*मध्य प्रदेश*


    छन्नपकैया-छन्नपकैया,


                   आए फिर से मामा।


    कंप्यूटर को तोड़-फोड़ कर, 


                   खड़ा किया हंगामा।


 


*महाराष्ट्र*


    छन्नपकैया-छन्नपकैया,


                कर-कर ताता-थइया।


    नाच रहे हैं सखा कृष्ण के,


                    कहतीं जैसे मइया। 


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

इत्तेफाक


 


सजग नयन से तूने देखा


रवि का रथ चढ़कर आना


धीमी संध्या की गति देखी


तूने अपने इसी नयनों से


झूम झूम बल खाती हंवा


खेलती हैं हर डाल से


यह शून्य से होकर प्रकट हुआ


पर महज इत्तेफाक नहीं है


कौन तपस्या करके कोकिल


इतना सुमधुर सुर पाया


पर ऐसा क्या घटित हुआ


काली कर डाली काया


निशदिन मधुर संदेश देती


यह खेलती हर डाल से


उठता है प्रश्न बार बार


पर महज इत्तेफाक नहीं है


जिस निश्चय से अर्द्ध रात्रि में


गौतम निकले थे घर से


देख उन्होंने कोई तरु सूखा


द्रवित हुई होगी मन में


दिन कितने राते भी कितनी


बीती होगी चिंतन में


घोर तपस्या करके उन्होंने


लीन किया होगा मन को


ऋषियों की पावन वाणी


गूंजी होगी कण कण में


उठता है प्रश्न बार बार


पर महज इत्तेफाक नहीं है


नूतन लाल साहू


डॉ0 निर्मला शर्मा

गिरवी है ईमान


 


भ्रष्टाचार की 


बनी नगरिया


देखूँ मैं हैरान


 


आज पतित


मानव का देखो


गिरवी है ईमान


 


सतरंगी दुनिया


की चाहत मैं


गलत करे वो काम


 


कम आमदनी


रोडा बनती


गली निकाले जान


 


रिश्वत का


इंतजाम करे वो


अपनी जरूरत मान


 


सागर से


लोटा भरने की


बात करे वो आम


 


बहुमूल्य 


दामों वाला वो


बेचे दिन ईमान


 


लालच मैं अंधा


होकर वह करता


कुमति के काम


 


खोदे गड्ढा औरों


को पर गिरता


औंधे मुँह आप।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


कालिका प्रसाद सेमवाल

*एक बार तुम फिर से जागो*


★★★★★★★★★★


एक बार तुम फिर से जागो,


प्रेम की गंगा पुनः बहाओ,


दूसरों के लिये रोड़े न बनो,


संवेदनशीलता कहाँ खो गई,


सुन्दरता तेरी कहां छुप गई,


संघर्षशीलता कहां गायब हो गई,


ममता ,स्नेह अब कम दिख रही,


 एक बार तुम फिर से जागो।


 


धैर्य को तुम त्याग न करो,


सहनशीलता कभी न छोड़ना,


सजगता तुम अपनाये रखना,


 व्यवहार में बनावटी पन ना लाना,


क्रोध पर अपना नियन्त्रण रखना,


सबको मित्र बना कर रखना,


अपना जीवन मधुर बनाओ,


एक बार तुम फिर से जागो,


 


कठिनाइयों का मुकाबला करो,


ईर्ष्या का भाव कभी न रखना


सब पर अपना स्नेह बरसाओ,


सबके लिये मंगल गान 


गाओ ,


गरीबो का सहयोग करना,


घंमड को चकमाचूर करो ,


सबके सहयोगी बन कर रहना,


एक बार तुम फिर से जागो,


★★★★★★★★★★


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र

*मिलन समारोह*


 


सजनी-सजन मिलन जब होगा।


जंगल में मंगल तब होगा।।


 


सजनी संग सजन अति हर्षित।


वदन प्रफुल्लित मन आकर्षित।।


 


सकल मनोरथ पूरे होते।


 लगते नहीं अधूरे गोते।।


 


डूब सिंधु में रस टपकत है।


लहरों से लहरें चिपकत हैं।।


 


भँवर सुहावन अतिशय सुंदर ।


इतराता मन डूब समंदर।।


 


यह वैकुंठ लोक सुखदायी।


अति आनंद धाम प्रियदायी।।


 


सजनी-सजन ब्रह्म का डेरा।


चौतरफा है प्रेम घनेरा।।


 


कितना उत्तम प्रेम घरौंदा।


मिलन परस्पर सहज परिंदा।।


 


आशाओं से बना हुआ है।


आकांक्षा में सना हुआ है।।


 


हृदय मिलन का यह बेला है।


प्रेम तरंगों का मेला है।।


 


स्वर्ग तरसता दृश्य देखकर।


अतिशय पावन दिव्य समझकर।।


 


देखो जंगल का यह दंगल।


यहाँ परस्पर प्रीति सुमंगल।।


 


भावों का यह देवालय है।


प्रेम अनोखा प्रिय आलाय है।।


 


प्रेम मिलन में शिवा-महेशा।


वंदन करते देव गणेशा।।


 


सजनी-सजन प्रतीक समाना।


यह जग-बंधन परम सुहाना।।


 


जो प्रतीक को सदा समझता।


सहज भाव से पार उतरता।।


 


सजन बुलाता नित सजनी को।


दिवा बुलाता प्रिय रजनी को।।


 


यह नैसर्गिक सुखद नियम है।


लिंग भेद से विरत स्वयं है।।


 


यह सिद्धांत अकाट्य महाना।


इसे जानते सिद्ध सुजाना।।


 


नर-नारी की जोड़ी जगती।


पटी हुई है सारी धरती।।


 


बनना है यदि सुंदर उत्तम।


भज नर-नारी बन पुरुषोत्तम।।


 


पुरुषोत्तम नारायण सबमें।


भास रहे हैं सारे जग में।।


 


सजनी-सजन जोड़ अति मधुरिम।


सकल सृष्टिमय अनुपम अप्रतिम।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे मां वीणा धारणी वरदे*


*******************


हे मां वीणा धारणी वरदे


कला की देवी इस जीवन को


सुन्दरता से सुखमय कर दो


अपने अशीष की छाया से


मेरा जीवन मंगलमय कर दो।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


सरस सुधाकर शुभ वाणी से


अखिल विश्व को आलोकित कर दो


बुद्धि विवेक ज्ञान प्रकाश सबको देकर


सबका जीवन मंगलमय कर दो।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


तेरे चरणों में आकर मां


विश्वास का सम्बल मिलता है


जिस पर भी तुम करुणा करती हो


उसका जीवन धन-धान्य हो जाता है।


*******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


सुनीता असीम

काफिया बिन क्या ग़ज़ल का चाहना।


हुस्न बिन जैसे अधूरा चाहना।


*****


दिल जिगर से प्यार मत करना कभी।


हद में रहकर ही ज़रा सा चाहना।


*****


बोलकर केवल बुरा दुखता है दिल।


अर्थ इसका है निराशा चाहना।


*****


इक सितारा भी नहीं हो बाम पर।


इस तरह की रोशनी क्या चाहना।


******


प्यार की आदत नहीं है आपकी।


फिर हसीना को भला क्या चाहना।


*****


सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

तिकोनिया


 


प्रेम करोगे,


नित्य बढ़ोगे।


प्रगति करोगे।।


 


प्रेमी बनना,


खूब थिरकना।


दिल में बहना।।


 


अपलक बनकर,


नजर मिलाकर।


रच-बस जा कर।।


 


बढ़ो अनवरत,


चढ़ो नित सतत।


रुके रहो रत।।


 


बैठो झाँको,


दिल में ताको।


देख प्रिया को।।


 


देखो मिलकर,


बोल सँभलकर।


नत बनठन कर।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ०रामबली मिश्र

मिश्रा कविराय की कुण्डलिया


 


मित्र बने ऐसा मनुज, जिसके पावन भाव।


मन से निर्मल विमल हो, डाले सुखद प्रभाव।।


डाले सुखद प्रभाव, न मन में हो कुटिलाई।


नेक सहज इंसन, किसी की नहीं बुराई।।


कह मिश्रा कविराय, जो महकता बनकर इत्र।


ऐसे जन को खोज, बनाओ अपना प्रिय मित्र।।


 


:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-30


 


लखि दूतन्ह हँसि कह लंकेसा।


देहु मोंहि तिन्हका संदेसा।


   मिले तिनहिं कि आय बरिआई।


    डरे मोर जस सुनतै भाई ।।


का गति दुष्ट बिभीषन अहही।


कालइ तासु अवसि अब अवही।।


    मम तिन्ह मध्य सिंधु-मृदुलाई।


    रच्छहिं तेहिं दोउ तापस भाई।।


सुनहु नाथ अब बचन कठोरा।


समुझहु बहुत कथन जे थोरा।।


     पाइ बिभीषन राम तुरतही।


      कीन्हा तिलक तासु झटपटही।।


जानि हमहिं क नाथ तव दूता।


लंपट-नीच-पिसाचहि-भूता।।


     काटन लगे कान अरु नासा।


     राम-सपथ पे रुका बिनासा।।


बरनि न जाय राम-सेना-बल।


कोटिक गज-बल सजा सेन-दल।।


     कपि असंख्य बाहु-बल भारी।


     बिकट रूप अतिसय भयकारी।।


जे कपि लंक जरायेसि इहवाँ।


अच्छय मारि जरायेसि बगवाँ।।


     अति लघु रूपइ तहवाँ रहई।


      नहिं बिस्वास उहहि कपि अहई।।


मयंद-नील-नल,दधिमुख-अंगद।


द्विविद-केसरी,बिकटस-सठ-गद।।


      जामवंत-निसठहि-बलरासी।


       रामहिं कृपा पाइ बिस्वासी।।


सभ कपि-बल सुग्रीव समाना।


एक नहीं कोटिक तिन्ह जाना।


      सबपे कृपा राम-बल रहई।


       तिनहिं त्रिलोक त्रिनुहिं सम लगई।।


अस मैं सुना नाथ मम श्रवनन्ह।


पदुम अष्ट-दस सनपति कपिनन्ह।।


      ते सभ बिकल जुद्ध के हेतू।


      जोहहिं आयसु कृपा-निकेतू।।


आयसु पाइ तुरत रघुनाथा।


जीतहिं तुमहिं फोरि रिपु-माथा।।


दोहा-कहत रहे मिलि सभ कपी,रावन मारब लात।


         लातन्ह-घूसन्ह मारि के,लाइब सीते मात।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे माँ जगदम्बा*


**************


हे माँ जगदम्बा


बड़े अरमान ले के तेरे दरबार आया हूँ,


हरो संकट मैं आस लेकर आया हूँ,


सुनी महिमा बहुत तेरी, हरो पीर मेरी।


 


हे माँ जगदम्बा,


तेरा ही आसरा लेकर दरबार आया हूँ,


 नहीं है ताकत बताने की,


ज्यों तेरे पास आया हूँ।


 


 हे माँ जगदम्बा,


फंसी नैया भवर में मेरी,


लगा दो पार मुझको ,


यहीं अरज है तुमसे माँ मेरी।


*********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र

*सुंदर सा घर*


 


बनाना हमें एक सुंदर सा घर है।


बसाना हमें एक सुंदर शहर है।


नफरत की दुनुया नहीं है सुहाती।


ईर्ष्या की ज्वाला निरन्तर जलाती।


न भावों की खुशबू का कोई सफर है।


बनाना हमें एक सुंदर सा घर है।


झूठी इबादत यहाँ चल रही है।


मिथ्या शरारत यहाँ पल रही है।


सभी में बनावट प्रदर्शन जहर है।


बनाना हमें एक सुंदर नगर है।


सात्विक विचारों का संकट खड़ा है।


नायक सितारों का मुर्दा पड़ा है।


दिखती यहाँ पर भयंकर डगर है।


बनाना हमें एक सुंदर सा घर है।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


राजेंद्र रायपुरी

🌹🌹 एक चतुष्पदी 🌹🌹


 


ओस की बूॅ॑दे चमकतीं


                 मोतियों सी घास पर।


 


रवि किरण को है कहाॅ॑


           आतीं कभी भी रास पर।


 


सोख लेती है उन्हें वह


                   निर्दयी सा रोज़ ही।


 


बच नहीं सकतीं वो बूॅ॑दे


             रवि किरण ले ख़ोज ही।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

जिंदगी का सफर


 


पा लेने की बेचैनी और


खो देने का डर


बस यही तो है जिंदगी


का सफर


दुःख से जीवन बीता फिर भी


शेष रहता है कुछ आशा


जीवन की अंतिम घड़ियों में भी


प्रभु श्री राम जी का नाम आ जाना


सुंदर और असुंदर जग में


मैंने क्या क्या नहीं किया है


पर इतनी ममता मय दुनिया में


विधि के विधान को समझ न पाया


पा लेने की बेचैनी और


खो देने का डर


बस यही तो है जिंदगी


का सफर


खोज करता रहा अमरत्व पर


आंसूओं की माल,गले पर डाल ली


अंत समय पश्चाताप में डूबा


कैसे लौटेगी,मेरे जीवन की दिवाली


हिल उठे जिससे समुन्दर


हिल उठे दिशि और अंबर


उस बवंडर के झकोरे को


किस तरह इंसान रोके


पा लेने की बेचैनी और


खो देने का डर


बस यही तो है जिंदगी


का सफर


नूतन लाल साहू


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल 


 


उम्मीद मेरी आज इसी ज़िद पे अड़ी है 


हर बार तेरी सिम्त मुझे लेके मुड़ी है 


 


मिलने का किया वादा है महबूब ने कल का 


यह रात हरिक रात से लगता है बड़ी है 


 


मैं कैसे मिलूँ तुझसे बता अहले-ज़माना 


पैरों में मेरे प्यार की ज़ंजीर पड़ी है


 


तू लाख भुलाने का मुझे कर ले दिखावा


तस्वीर अभी साथ में दोनों की जड़ी है


 


जब चाहा कहीं और नशेमन को बना लूँ 


परछाईं तेरी आके वहीं मुझसे 


लड़ी है


 


जिस वक़्त गया हाथ छुड़ाकर वो यहाँ से


तब हमको लगा जैसे कयामत की घड़ी है 


 


मज़हब की सियासत का चलन देखो तो *साग़र* 


हर सिम्त यहाँ ख़ौफ़ की दीवार खड़ी है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


23/11/2020


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(पल-दो-पल)-16/10


पल-दो पल के इस जीवन में,


बस प्यार बाँट ले।


बिना किसी भी भेद-भाव के-


तु दुलार बाँट ले।।


 


बड़े भाग्य से मिला मनुज-तन,


तू जरा सोच ले।


हिस्से में जो मिले तुम्हें पल,


उनको दबोच ले।


आपस में सब मिल सुख-दुख का-


संसार बाँट ले।।


         बस प्यार बाँट ले।।


 


कपट और छल कभी न करना,


बस यही धर्म है।


मददगार निर्बल का बनना,


बस यही कर्म है।


अंतर भेद मिटा प्रेम -भाव-


व्यवहार बाँट ले।।


     बस प्यार बाँट ले।


 


आज रहे कल रहे न जीवन,


बस यही कहानी।


 हर पल को मुट्ठी में रखकर,


दो अमिट निशानी।


हर मुश्किल को अभी हराकर-


दुःख-भार बाँट ले।।


      बस प्यार बाँट ले।।


 


संकट तो एहसास मात्र है,


बस यही तथ्य है।


साहस से यह कट जाता है,


बस यही सत्य है।


साहस अब दिखलाकर प्यारे-


आभार बाँट ले।।


     बस प्यार बाँट ले।।


           © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


              9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

प्रेमपान


 


प्रेम पीते रहो नित पिलाते रहो।


ईश का संस्मरण नित दिलाते रहो।


भूल जाना नहीं ईश की अस्मिता।


ईश चरणों में माथा नवाते रहो।


ईश देते सदा प्रेम की भीख हैँ।


ईश को प्रेम से नित नचाते रहो।


ईश से प्रेम है प्रेम से ईश हैँ।


ईश प्रेमी के मन को लुभाते रहो।


ईश की ही कृपा पर टिका प्रेम है।


प्रेम से सारे जग को मनाते रहो।


प्रेम मादक बहुत प्रेम में जोश हैं।


प्रेम से हर किसी को जगाते रहो।


प्रेयसी सारी जगती इसी भाव से।


सारी दुनिया के दिल को सजाते रहो।


प्रेयसी को मनाना बहुत है सरल।


प्रेयसी को गले से लगाते रहो।


प्रेयसी रूठ जाये मनाओ सदा।


अंक में बाँध अधरें घुमाते रहो।


चूम लो वक्ष को मत तनिक देर कर।


प्रेम के गीत हरदम सुनाते रहो।


छोड़ अपने अहं को किनारे करो।


अपने उर में छिपे को जताते रहो।


कवि हृदय का यह उद्गार मीठा बहुत।


प्रेयसी के हृदय में समाते रहो।


गुनगुनाते रहो शिष्टता से सतत।


प्रेयसी को हृदय में बसाते रहो।


नित्य नर्तन करो वंदना भी करो।


प्रेम गंगा में गोते लगाते रहो।


प्रेम सागर असीमित महाकार है।


प्रेम की घूँट हरदम पिलाते रहो।


प्रेयसी की कलाई पकड़ थाम लो।


प्रेयसी संग हर क्षण बिताते रहो।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 निर्मला शर्मा

देश का मान हैं बेटियाँ


 


देश का मान हैं बेटियाँ


देश की शान हैं बेटियाँ


नहीं किसी से कम वो


तुलना न करो हरदम


ये प्रबंधन में बड़ी कुशल


घर हो या ऑफिस का चैम्बर


कभी माने नहीं मन से हार


ये है ईश्वर का अनुपम उपहार


राजनीति हो या शास्त्रार्थ


ज्ञान की उन पर कृपा अपार


हर क्षेत्र में बढ़ाये कदम


अपना जीवन बनाये उत्तम


सैन्य शक्ति हो या युद्ध क्षेत्र


इनकी वीरता का नहीं कोई मेल


भुजबल में नहीं है बेटी कम


शत्रु की नाक में कर दे वो दम


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


दयानन्द त्रिपाठी 'दया'

26/11 बरसी पर छोटी सी रचना....


 


स्वर्ण सवेरा था उस दिन 


उल्लास भरा था जन-जीवन में 


मुंबई की धरा कांप उठी थी


अताताइयों के गोली के खनखन में।


 


मानवता को शर्मसार कर 


कितनों के जीवन हर लिये


होता है निशिचर का संहार


पर आतंक के पोषक ललकार दिये।


 


आतंक की काली छाया से


हर तरफ पड़ी थीं लाशें


चारों ओर हाहाकार मचा था


बदहवास खड़ी थीं जिंदा लाशें।


 


बिखर गये कितनों के अपने


बिखर गये कितनों के सपनें


अरमानों की दुनियां से देखो


बिछड़ गये कितनों के कितनें।


 


दशाशीश सा पाक धरा पर 


फैला रहा आतंक की कहानी


विश्व धरा के हर कोने में


प्रचलित है यही हर जुबानी ।


 


जब-जब टकराकर किसी राम से 


रावण मारा जाता है।


नहीं पूजता कोई कभी भी


समूल नष्ट हो जाता है।


 


धैर्य बड़ा है भारत का


आघात भले ही तुम करते


तेरे ही हर कष्टों में


दया सहयोग लिए हम फिरते।



   - दयानन्द त्रिपाठी 'दया'


डॉ०रामबली मिश्र

*हरिहरपुरी की कुण्डलिया*


 


मन को सदा मनाइए, रहे संयमित नित्य।


नैतिकता की राह चल, करे सदा सत्कृत्य।।


करे सदा सत्कृत्य, सारी जड़ता छोड़कर।


बने चेतनाशील, माया से मुँह मोड़कर।।


कह मिश्रा कविराय,सतत क्षणभंगुर है तन।


यह विशुद्ध है सत्य,समझे इसको सहज मन।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*मिश्रा कविराय की कुण्डलिया*


 


देखो हरिहरपुर सदा, मनमोहक आकार।


रामेश्वर जी पास में,निराकार साकार।।


निराकार साकार, करते रक्षा ग्राम की।


हरते अत्याचार, कष्ट दूर करते सकल।।


कह मिश्रा कविराय, सबमें रामेश्वर लखो ।


सबका बनो सहाय, सहोदर जैसा देखो ।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुनीता असीम

इश्क की राह में रवानी है।


मुश्क से आँख जो मिलानी है।


******


 लाज जिन्दा नहीं शरम जिन्दा।


नाम मेरा फ़कत दिवानी है।


******


 जी रही हिज्र की हिरासत में।


वस्ल की भी व्यथा सुनानी है।


******


जिस्म दो एक जान हो जाए‌।


रूह की प्यास जो बुझानी है।


******


सांवरे आज मान जाओ ये।


इक झलक आपको दिखानी है।


******


या मुहब्बत मेरी रही सच्ची।


या मेरा कृष्ण इक कहानी है।


******


यूं सुनीता कहे कन्हैया से।


धाक दिल पे तेरे जमानी है।


******


सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

प्रेम करो तो प्रीति मिलेगी


 


शरदोत्सव की रीति दिखेगी।


प्रेम करो तो प्रीति मिलेगी।।


 


सदा प्रीति में अमी -रसायन।


होता सदा प्रेम का गायन।।


 


प्रेम-प्रिति का सहज मिलन है।


शीतल चंदन तरु-उपवन है।।


 


अतिशय शांत पंथ यह भावन।


परम पुनीत भाव प्रिय पावन।।


 


सुघर सुशील सहज शिव सागर।


नेति नेति नित्य नव नागर।।


 


सजल ग़ज़ल अमृत का गागर।


सभ्य सत्य साध्य शिव सागर।।


 


विश्वविजयिनी प्रेम-प्रीति है।


सोहर कजली चैत गीत है।।


 


दिव्य दिवाकर दिवस दिनेशा।


मह महनीय ममत्व महेशा।।


 


प्रेम-प्रीति अति पावन संगम।


पापहरण संकटमोचन सम।।


 


निर्भय निडर नितांत नयन नम।


करुणाश्रम कृपाल सुंदरतम।।


 


प्रेम-प्रीति के नयन मिलेंगे।


ज्वाल देह के सहज मिटेंगे।।


 


स्नेह परस्पर आलय होगा।


प्रीति-प्रेम देवालय होगा।।


 


मधुर कण्ठ से कलरव होगा।


मानव मोहक अवयव होगा।।


 


दिव्य भाव का आवन होगा।


शरद काल मधु पावन होगा।।


 


प्रेम-प्रीति का योग मिलेगा।


सदा महकता पवन चलेगा।।


 


मानव बना परिंदा घूमे।


प्रेम प्रिति को प्रति पल चूमे।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


विनय साग़र जायसवाल

भजन -श्री कृष्ण जी का


122-122-122-122


धुन-तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ


वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ


🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


तेरे प्रेम से हर तरफ़ है उजाला


मेरे नंदलाला मेरे नंदलाला


 


हवाएं भी निर्भर हैं जिसपर जहाँ की 


कभी सुध तो ले वो भी आकर यहाँ की


न जाने कहाँ खो गया वंशीवाला ।।


मेरे नंदलाला------


 


परेशान कितनी हैं गोकुल की गलियाँ


कि रो-रो के खिलती हैं मासूम कलियाँ


पुकारे है तुझको तो हर ब्रजबाला।।


मेरे नंदलाला


तेरी बाँसुरी और राधा की पायल


करे गोपियों के कलेजे को घायल


जलाई है कैसी विकट प्रेम ज्वाला ।।


मेरे नंदलाला


तेरे प्यार की यह भी कैसी अगन है 


तेरे दर्शनों से ही मीरा मगन है 


मेरे मन को भी तूने उलझा ही डाला ।।


मेरे नंदलाला


कंहैया ये लीला जो तूने रचाई


किसी की समझ में अभी तक न आई


कि अर्जुन को कैसे भ्रम से निकाला ।।


मेरे नंदलाला----


छँटेगा मेरे मन से कब तक कुहासा


मैं जन्मों से हूँ तेरे दर्शन का प्यासा


कहीं टूट जाये न आशा की माला ।।


मेरे नंद लाला मेरे नंदलाला ।


तेरे प्रेम से हर तरफ़ है उजाला।।


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


निशा अतुल्य

अन्नदाता की सुनो पुकार ।


मन में कर लो सुनो सुधार ।।


दिखे है कृशकाय आधार ।


भूख गरीब बना शृंगार ।।


 


खेत खलियान उसकी जान ।


पैदावार बनी पहचान ।।


हरे भरे खेतों की जान ।


अन्नदाता देता अन्न दान।।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


- शिवम कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'

आर्यावर्त की संतति हम, सिंधु सभ्यता के भावी


वेद हमारे पथप्रदर्शक, शांति पथ के हम राही।


आर्यों के वंसज हैं हम, क्षमा त्याग पहचान हमारी


मातृभूमि के हम सेवक, भाषा हिंदी मान हमारी।।


 


रामायण, गीता, पुराण से, भरा पड़ा इतिहास हमारा


बाल्मीकि, तुलसी, कालिदास, कबीर से है जग उजियारा।


मीरा, सूर, जायसी जैसी, भक्ति है पहचान हमारी


माँ गंगा के पाल्य हैं हम, भाषा हिंदी शान हमारी।।


 


संस्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश, ये सांस्कृतिक यात्रा के साथी हैं


पद्मावत, साकेत, पंचतंत्र हमारे पुरखों की थाती हैं।


अशफ़ाक, भगत, चंद्रशेखर सी वीरता है पहचान हमारी


हिमालय संरक्षक हमारा, भाषा हिंदी प्राण हमारी।।


 


अटल जैसे नायक हमारे, कलाम सरीखा धरतीपुत्र


कल्पना जैसी बिटिया जिसकी, विश्वबंधुत्व जहां का सूत्र।


टेरेसा, भावे जैसी, सेवा है पहचान हमारी


हमारी उन्नति का सूचक, भाषा हिंदी सम्मान हमारी।।



                - शिवम कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'


डॉ० रामबली मिश्र

*प्रीति निभाना (तिकोनिया छंद)*


दिल में आना,


कहीं न जाना।


प्रिति निभाना।।


 


उर में बसना,


सदा चहकना।


छाये रहना।।


 


गीत सुनाना,


मधुर भावना।


नित दीवाना।।


 


प्रेम रसिक बन,


रसमय तन-मन।


हो अमृत घन।।


 


सत्यपरायण,


पढ़ रामायण।


बन नारायण।।


 


आओ प्रियवर,


नाचो दिलवर ।


सुघर बराबर।।


 


थिरको तो अब,


अभी न तो कब?


आओ मतलब।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कमल कालु दहिया

*वो अमर कहानी हो गए*


 


तिरंगे के ख़ातिर, 


मुल्क की हिफाज़त करने, 


माँ भारती के आँचल में 


बहा अंतिम दृगजल, 


वो इक अमर कहानी हो गए, 


बहती धारा का पानी हो गए।। 


 


दुश्मन को कर परास्त, 


नए सवेरे की रोशनी बने, 


बदन से हारे वो 


सूरज से चमकते रहे, 


ढ़लती साँझ की निशानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।


 


माँ की ममता के मोती बने, 


पिता ने चढ़ाया सूरज देश को, 


बहिन की राखी बनी रक्षासूत्र


पत्नी ने गौरव का सिन्दुर भरा, 


बेटियाँ खुशियाँ चढ़ाकर महादानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।। 


 


मोहल्ले का फूल खुश्बू दे गया, 


मित्रों की टोलियां एहसास करती है, 


उसके बिन दिन आता संध्या ढ़लती 


वो रहा कहीं तो होगा 


माठी के कण सुहानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।। 


 


रचनाकार ~ कमल कालु दहिया


कालिका प्रसाद सेमवाल

*धरती माँ बचानी होगी*


*********************


धरती माँ बचानी होगी,


सोच नई अपनानी होगी,


धरती पर जो प्रदूषण बढ़ा,


उससे मुक्ति दिलानी होगी।


         यहां सभी जीते है जीवन,


         यहां है सारे बाग और उपवन,


         यदि करते हो धरा से प्यार,


         करो न धरा पर अत्याचार।


हमीं राष्ट्र के शुभ चिंतक है,


आओ बढ़कर आगे आयें,


दूषित सारी दुनिया हो गई,


 धरा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाये।


         जल , ध्वनि, वायु प्रदूषण,


          नदियांभी ही गई कसैली,


           प्लास्टिक की हो गई भरमार,


           संकट है धरा पर चारों ओर।


अत्यधिक दोहन हमने किया,


धरती माँ से प्यार न किया,


धरती माँ ने सब कुछ दिया,


बदले में हमने धरा को क्या दिया।


         जब -जब हमने लालच किया,


           आपदा को न्यौता दिया,


          धरा ने अमूल्य संसाधन दिये,


            बृक्षारोपण से धरा सजाये।


सब मिलकर पौध लगायें,


बृक्षारोपण सफल बनायें,


धरती पर जो बढ़ा प्रदूषण,


उससे सबको मुक्ति दिलाये।


        राह नई दिखानी होगी,


        युक्ति नई अपनानी होगी,


        कैसे पर्यावरण स्वच्छ बने,    


        सब मिलकर एक सलाह बनायें।


*********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र

जिंदगी


 


जिंदगी जी के खुशबू विखेरो सदा।


पूरी दुनिया को दिल में उकेरो सदा।


मत कभी करना कोई गलत काम तुम।


सारी जगती को आँखों से घेरो सदा।


मत निरादर किसी का तुम करना कभी।


सबको सम्मान देकर तुम टेरो सदा।


सारे जग के लिये नित दुआ माँगना।


सबके सिर पर सतत हाथ फेरो सदा।


मंत्र पढ़ना निरंतर मनुजता का ही।


बनकर छाया मचलना बसेरो सदा।


दुःख न देना किसी को कभी स्वप्न में।


बाँटते जाना खुशियाँ घनेरो सदा।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

*जय जय जय श्री हनुमान जी*


~~~~~~~~~~~~


जय जय जय श्री हनुमान जी


संकट मोचन कृपा निधान,


बल -बुद्धि विद्या के धाम


आपको मेरा शत् -शत् प्रणाम।


 


मारुत नंदन असुर निकन्दन,


जन मन रंजन भव भय भंजन,


सन्त जनों के सुखनंदन 


अंजना नंदन शत्-शत् वंदन।


 


भक्तजनों के प्रति पालक


दीनों के आनन्द प्रदायक,


अनवरत रामगुण गायक,


बाधा विध्न विदारक।


 


हे राम दूत पवन पूत


शांति धर्म के अग्रदूत ,


सतमार्ग के तुम प्रदर्शक


सत्य धर्म के हो तुम रक्षक।


 


मानवता के महाप्राण हो


मृतकों में भी भरते प्राण हो


हृदय में बसते सीताराम


प्रभु श्री हनुमान को प्रणाम।


 


अनाचारी आज प्रचण्ड है


रक्षक भी हो गये उदण्ड है


करो अनाचार का दमन


जग का भय ताप शमन।


 


दुख दरिद्रता का नाश करो


अनाचारियों का विनाश करो


 दीन दुखियों के कष्ट हरो तुम


जय जय जय श्री हनुमान जी। 


 


भक्तो के तुम रक्षक हो


करो अनाचारियों का दमन ,


हे राम भक्त पवन पुत्र


तुमको कोटि कोटि प्रणाम।


~~~~~~~~~~~~


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 एक मुक्तक 😊😊


        आधार छंद- चौपाई।


 


हुआ जन्म किस अर्थ कहो तुम।


दारुण दुख मत व्यर्थ सहो तुम।


भजन करो प्रभु का हे मानव,


अपनी धुन में मस्त रहो तुम।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस

*कॅरोना सावधानी से हो*


*शिक्षित।।रहो सुरक्षित।।*


*(हाइकु)*


1


लापरवाही


कॅरोना जानलेवा


लाये तबाही


2


संयम जरा


मास्क लगा निकलें


जीवन भरा


3


रोज़ बुखार


लक्षण हो सकते


हो उपचार


4


मास्क लगा


कफन से है छोटा


जीवन बचा


5


ये हाथ धोना


आज है वरदान


जीव न खोना


6


नहीं चेतोगे


सावधानी हटी जो


कैसे बचोगे


7


बचें जाने से


खुद लॉकडाउन


यूँ गवानें से


8


न हो दीवाना


मत बाहर जाना


न हो अंजाना


9


करो सुरक्षा


गाइड लाइन हो


तभी तो रक्षा


10


अभी लहर


कॅरोना गया नहीं


अभी कहर


11


हो इम्युनिटी


आयुर्वेद औषधि


पियो काढ़ा भी


12


दो ग़ज़ दूरी


बचाव का साधन


यह जरूरी


13


पास साबुन


साफ करते रहो


हाथ नाखून


14


भीड़ से दूरी


बच कर जरूरी


है मजबूरी


15


अपनी रक्षा


हो कॅरोना सुरक्षा


घर में कक्षा


16


दवाई नहीं


करें जरा सुरक्षा


ढिलाई नहीं


*रचयिता।।एस के कपूर*


*"श्री हंस"।। बरेली।।*


मोब 9897071046


         8218685464


डॉ0हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण(श्रीरामचरितबखान)-27


कह बिठाइ लछिमन के संगा।


कहु नरेस परिवार-प्रसंगा।।


      बोले प्रभु निवास खल-देसा।


      होय तुम्हारइ सुनहु नरेसा।।


कस तुम्ह तहँ अस सहेसि अनीती।


तव हिय बस अति निष्छल प्रीती।।


      नरक-निवास होय बरु नीका।


       केतनहुँ सुखद कुसंगइ फीका।।


अब तव चरन-सरन मैं आया।


हे प्रभु करउ मोंहि पे दाया।।


     जब तक बिषय-भोग-रत जीवइ।


      तब तक उहइ गरल-रस पीवइ।।


काम-क्रोध-मद-मोह-बिमोचन।


होय दरस करि राजिव लोचन।।


     होत उदय प्रकास प्रभु सूरज।


      भागै मद-अँधियारा दूखज।।


कुसलइ रहहुँ पाइ रज चरना।


कृपा-हस्त प्रभु मम सिर धरना।


     भौतिक-दैहिक-दैविक-सूला।


      पा प्रभु-सरन होंय निरमूला।।


मों सम निसिचर अधम-अधर्मी।


लेइ सरन प्रभु कीन्ह सुधर्मी।।


      सुनहु तात जे आवै सरना।


      तजि मद-मोह-कपट अरु छलना।।


मातुहिं-पिता-बंधु-सुत-नारी।


सम्पति-भवन,खेत अरु बारी।


     देहुँ भगति बर संत की नाईं।


     पाटहुँ तिसु मैं भव-भय खाईं।।


रखहुँ ताहि मैं निज उर माहीं।


जिमि लोभी धन-संपति ध्याहीं।।


     सुनहु नरेस सकल गुन तुझमा।


     तुम्ह मम प्रिय सभतें इह जग मा।


दोहा-जे जग महँ परहित करै, निरछल मनहिं सनेम।


        सुनहु तात तेहिं हिय रखहुँ,सदा करहुँ तेहिं प्रेम।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*होना दुःखी...*


 


होना दुःखी देख दुःखिया को।


यही सीख देना दुनिया को ।।


 


देख दुःखी मोहित हो जाना।


दुःखी हेतु कुछ करते जाना ।।


 


"मदर टेरेसा" बनकर जीना।


दुःखियों के आँसू को पीना।।


 


संकटमोचन बनकर चलना।


महावीर हनुमानस बनना।।


 


भर लो भीतर संवेदन को।


स्वीकारो दुःख-आवेदन को।।


 


दुःखी जगत की सुनो प्रार्थना।


दुःख के मारे करत याचना।।


 


जीवन का यह काम बड़ा है।


अन्य काम इससे छोटा है।।


 


जो करता दीनों की रक्षा।


बन जाता वह सबकी शिक्षा।।


 


जो विद्यालय बनकर जीता।


अमृत रस आजीवन पीता।।


 


बना अमर वट छाया देता।


सारे कष्टों को हर लेता।।


 


जिसके भीतर प्रेम रसायन।


उसके रोम-रोम शोभायन।।


 


जो दे देता अपना तन-मन।


वह बन जाता पावन उपवन।।


 


सकल जगत को सींचा करता।


दुःख-दरिद्रता खींचा करता।।


 


सुंदर भाव जहाँ बहता है।


कायम स्वर्ग वहाँ रहता है।।


 


जहाँ राम का नाटक होता।


वहाँ विभव का फाटक होता।।


 


सन्त मिलन की संस्कृति जागे।


दुःख-दारिद्र्य-रोग सब भागें।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नूतन लाल साहू

प्रभु भक्ति में मन लगा लेे


 


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो का नाश कर देती हैं


आत्म ज्ञान बिना नर भटक रहा है


क्या मथुरा क्या काशी


जैसे मृग नाभि में रहता है कस्तूरी


फिर भी बन बन फिरत उदासी


प्रभु जी का भजन न कर तूने


हीरा जैसा जन्म गंवा रहा है


पानी में मीन प्यासी


मोहे सुन सुन आवे हांसी


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो का नाश कर देती हैं


बाहर ढूंढत फिरा मै जिसको


वो वस्तु घट भीतर हैं


बिन प्रभु कृपा शांति नहीं पावे


लाख उपाय करें नर कोई


कहे सतगुरु सुनो भाई साधो


बिन प्रभु कृपा मुक्ति न होई


अरे मन किस पै तू भूला है


बता दें जग में कौन तेरा है


तेरे मां बाप और भाई


सभी स्वार्थ के हैं साथी


तेरे संग क्या जायेगा


जिसे कहता तू मेरा हैं


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


 भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो को नाश कर देती हैं


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*परमवीर-चक्र-प्राप्त-अब्दुल हमीद*


 


परम वीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं,


लगा-लगा प्राणों की बाजी,माँ का मान बढ़ाए हैं।।


 


 परम वीर इक्कीस लाल ये,प्राणों का उत्सर्ग किए,


अरि के मद का मर्दन कर के,इस माटी को स्वर्ग किए।


क़तरा-क़तरा लहू बहा कर,माँ की लाज बचाए हैं-


परम वीर सुत बलि-वेदी पर हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


लांस नायक श्री हमीद जा,रौशन अपना नाम किए,


तीन टैंक को तोड़ शत्रु के,नमन योग्य हैं काम किए।


अंत में घिर कर वे दुश्मन से,अपने प्राण गवाँए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


गौरव जनपद गाजीपुर के,वासी थे धामूपुर के,


यू0पी0 के वे रहनेवाले,दक्ष-निपुण कुश्ती-गुर के।


करके पस्त हौसले अरि के,जन-जन को वे भाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


थल-सेना-नायक हमीद ने,नया एक इतिहास रचा,


तोप-सजी ले एक जीप से,तोड़ा टैंक न शेष बचा।


ऐसे नायक नमन योग्य हैं,ये आज़ादी लाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


भूला नहीं कृतज्ञ देश यह,निडर हमीद बलवीर को,


पाक-युद्ध सन पैंसठ वाले,इसी महान रणधीर को।


परमवीर का चक्र इन्हें दे,हम सब खुशियाँ पाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


               7/3/38,उर्मिल-निकेतन,गणेशपुरी,


               यशलोक हॉस्पिटल के बगल,


              देवकाली रोड, फैज़ाबाद।


                 अयोध्या-22 4001(उ0प्र0)


डॉ०रामबली मिश्र

*मिश्रा कविराय की कुण्डलिया*


 


करना कभी गुमान मत, चलो न टेढ़ी चाल।


अपने मीठे वचन से, रख सबको खुशहाल।।


रख सबको खुशहाल, रहें सब मौज उड़ाते।


मिटे कष्ट-संताप, मिलें सब हाथ मिलाते।।


कह मिश्रा कविराय, सभी से मिलकर रहना।


सबके प्रति हो स्नेह, तकरार कभी न करना।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


निशा अतुल्य

सर्दी आई


 


माँ देखो अब सर्दी आई


मेरे मन को ये लुभा गई


गर्म मुंगफली की महक है


मीठी रेवड़ी मन भा गई ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई ।।


 


नरम गर्म है मेरा बिस्तर


मज़ा आ गया उस पर सो कर 


माँ मुझको तुम सूप पिलाओ


गर्मी शरीर में पहुँचाओ ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


सूरज भी अब मद्धम दिखता


ताप ना क्यों जरा भी लगता 


सर्द हवा जब सर सर चलती


कानो को मफलर है भाता ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


सर्दी से हमें बच कर रहना


स्वस्थ स्वयं को हमें है रखना


गर्म वस्त्र पहनने होंगे 


माँ मेरी अचकन सिलवाना।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


सुनीता असीम

चहरा उसका ऐसा जैसे खिलता हुआ गुलाब।


आंखें हैं पैमाने उसकी जिनसे छलके शराब।


लबों में खिलती हैं कलियाँ इस मुस्कान से-


हुस्न का ऐसा प्रश्न है वो जिसका नहीं ज़बाब।


******


सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

*चलो चूमते.... (चौपाई ग़ज़ल)*


 


चलो चूमते सारी धरती।


हरी-भरी दिख जाये परती।।


 


एक-एक कण का हिसाब रख।


भरो अंक में सारी धरती।।


 


चूमो इसको समझ प्रेयसी।


प्यारी बहुत दुलारी धरती।।


 


यही प्रेयसी मातृ भाव से।


सारे जग का पालन करती।।


 


करो नमन नित सहज समादर।


हरियाली से मन को हरती।।


 


भूमि संपदा नैसर्गिक है।


परमार्थी बन पोषण करती।।


 


सृष्टि असंभव बिन मिट्टी के।


धरती से ही सारी जगती।।


 


अर्थवती नित मूल्यवती यह।


हर प्राणी की सेवा करती।।


 


चूमो गले लगाओ माटी।


सदा रसामृत सारी धरती।।


 


हँसती जब यह फसल लपेटे।


देख रूप यह जगती हँसती।।


 


यह आधारशिला जीवन की।


लिये उदर में नीर मचलती।।


 


धरती का कण-कण अति पावन।


इत्र सदृश यह सतत गमकती।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*रस बरसेगा*


*(तिकोनिया छंद)*


 


रस बरसेगा,


नित मँहकेगा।


मन चहकेगा।।


 


मधुर मिलन हो,


गुप्त हिलन हो।


दिल बहलन हो।।


 


प्रीति जगेगी , 


रात सजेगी।


खुशी मिलेगी।


 


मितवा आये,


गीत सुनाये।


मोह दिखाये।।


 


नित दर्शन हो,


प्रिय स्पर्शन हो।


प्रेम मगन हो।।


 


सुख समता हो,


स्वर्गिकता हो।


मधुमयता हो।।


 


भोग समांतर,


सुख अभ्यंतर।


मेल निरंतर।।


 


रचनाकार०:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 निर्मला शर्मा

ये रिश्वतखोर


 


मन के काले ईमान से दाग वाले


समाज के दोषी ये रिश्वतखोर


विकृत मानसिकता वाले


खोलें हर फाइल के ताले


करें न काम बिना रिश्वत


बिगाड़ें ईमान शत प्रतिशत


मोटी रकम की चाहत वाले 


लोभी ये रिश्वत पाने वाले


रग-रग में बसी रिश्वतखोरी


हराम का लेते पैसा करके जोरी


मजबूरी का उठाते हैं ये फ़ायदा


इनके जीवन का नहीं है कोई कायदा


हर जगह मिल ही जाते हैं ऐसे इंसान


हमने ही तो बनाया है उन्हें रिश्वतखोर


देकर उन्हें सुविधा पाने रिश्वत का दान


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


कालिका प्रसाद सेमवाल

माँ मुझे वर दे दो


★★★★★★★★★★


 मां वरदायिनी वर दे,


मैं काव्य का पथिक बन जाऊँ,


थोड़ी सी कविता माँ मैं लिख पाऊँ,


भावों की लड़ियों को गूँथू,


इस कविता रुपी माला से,


मैं भी अभिसिंचित हो जाऊँ,


मां मुझ पर अपनी कृपा बरसाओ।


 


सबके हित की बात लिखू मैं,


बाहर -भीतर एक दिखूँ मैं,


हृदय में आकर बस जाओ,


नेह राह पर चलू मैं नित,


मात अकिंचन का नमन स्वीकार करो,


जीवन में भर दो अतुलित प्यार,


मां मुझे सही राह दिखाओ।


 


मुक्त भावों के गगन में उड़ सकूं,


निर्मल मन से हर किसी से जुड़ सकूं,


मुक्त कर दो मेरे हृदय के दोषों को,


दम्भ, छल, मद, मोह -माया दोषो से,


व्योम सा निश्चल हृदय विस्तार दो,


जीवन में उल्लास भर दो


माँ मुझे वर दे दो।


★★★★★★★★★★


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-28


जय कृपालु भगवन जगदीसा।


कह अस कपिन्ह समेत कपीसा।।


    पुनः बिभीषन गहि प्रभु-चरना।


     कह रघुनाथ सुनहु मम बचना।।


सरनागत-प्रेमी रघुबीरा।


जग आए धरि मनुज-सरीरा।


    जे कछु मम उर रही बासना।


     लुप्त भईं तव पा उपासना।।


पावन भगति देहु प्रभु मोहीं।


प्रनतपाल-कृपालु प्रभु तोहीं।।


     एवमस्तु तब कह रघुबीरा।


      कह मम बचन सुनहु धरि धीरा।।


तव बिचार जद्यपि अस नाहीं।


करहुँ तुम्हार तिलक यहिं ठाहीं।।


     अस कहि राम सिंधु-जल लइ के।


      कीन्हा तिलक बिभीषन ठहि के।


भवई सुमन-बृष्टि तब नभ तें।


भे लंकेस बिभीषन झट तें।।


दोहा-रावन-क्रोधहिं अनल महँ,जरत बिभीषन-लंक।


       रच्छा करि प्रभु दीन्ह तिन्ह,लंका-राज निसंक।।


       रावन पाया राज लंक,सिवहिं देइ दस सीस।


        तेहि संपत्ति बिभीषनहिं, दीन्ह छिनहिं जगदीस।।


                          डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 देव उठे 😊😊


 


देव उठे तुम भी उठो, 


                    छोड़ो बिस्तर यार।


करो काम कुछ मत बनो,


                   इस धरती का भार।


 


आलस कर देगा तूम्हें,


                    सचमुच में बीमार।


बन जाओगे बोझ ही, 


                      मानो इस संसार।


 


हाल सदा हरदम यही, 


                    रहा अगर तो यार।


जीवन नैया ये नहीं, 


                     हो पाएगी पार।


 


एकादशी पर्व तुम्हें, 


                    प्रण लेना है आज।


श्रम करना हर दिन मुझे,


                छोड़ आलस व लाज।


 


         ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ०रामबली मिश्र

*विचार मूल्य*


      *(दोहा)*


 


मूल्यवान हर चीज वह, जिसका अधिक महत्व।


रक्षा करे समाज की, और बचाये स्वत्व।।


 


सुंदर सार्थक बात ही, मूल्यवान इस लोक।


गढ़ती उत्तम बात ही, सुंदर नित नव श्लोक।।


 


मूल्यवान है वह क्रिया, रचे जो स्वर्गिक देश ।


क्रिया-मूल्य देता सहज, सबको सुंदर वेश।।


 


मूल्यवान वे शव्द हैं, जिनके मोहक भाव।


डाला करते मनुज पर,शिवमय दिव्य प्रभाव।।


 


उसी व्यक्ति का मूल्य है, जिसका सुखद प्रयोग।


मूल्यहीन हर व्यक्ति का, सदा निरर्थक योग।।


 


सत-शिव-सुंदर मूल्य ही, रचते देव-समाज।


सद्विचार का केन्द्र ही , करता जग पर राज।।


 


उत्तम मूल्यों से रचो, खुद को सबको रोज।


उत्तम मूल्यों से खिला, दिखता दिव्य सरोज।।


 


भौतिकता से दूर अति,है वैचारिक मूल्य ।


सदाचार अरु शिष्टता,सतत सनातन स्तुत्य।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*जीवन में जो देते हैं वह ही लौट*


*कर वापिस आता है।।*


 


जान लो कि यह जिन्दगी एक


दिन छूट जायेगी।


देखते देखते श्वास भी यूँ ही 


इक दिन टूट जायेगी।।


कर लो कुछ अच्छा अपने इसी


एक जीवन में।


ना जाने कब यह जिंदगानी 


तुझसे रूठ जायेगी।।


 


मझधार में घिर कर भी किसी


के साहिल बन कर देखो।


अपनी ही मेहनत से ही जरा


तुम माहिर बन कर देखो।।


जो संघर्ष स्वीकार करता वही


ही आगे बढ़ता है।


किसी की तकलीफों में भी तुम


जरा जाहिर बन कर देखो।।


 


जीवन एक प्रतिध्वनि सब कुछ


लौट कर आ जाता है।


हर मनुष्य अपनी करनी का 


फल जरूर पाता है।।


आपका कहा आपके आचरण


में जरूरआना ही चाहिये।


आपका ही अच्छा बुरा वापिस


लौट कर लाता है।।


 


सूरज धीरे धीरे निकलता और


ऊपर चढ़ता जाता है।


जो जैसा विचार सोचता वैसा 


ही वो बनता जाता है।।


हमेशा स्व आकलन अपना आप


जरूर ही करते रहे।


जो हार से सीखता रास्ता जीत


का वो पकड़ता जाता है।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


एस के कपूर श्री हंस

*सुंदर व्यक्तित्व जीवन जीवन की अनमोल धरोहर।। नकारात्मक से सकारात्मक बनने की ओर।।* 


*(हाइकु)*


*(क) क्रोध से बचें।*


1


क्रोध अंधा है


अहम का बंदा है


बचो गंदा है


2


अहम क्रोध


कई हैं रिश्तेदार


न आत्मबोध


3


लम्हों की खता


मत क्रोध करना


सदियों सजा


4


ये भाई चारा


ये क्रोध है हत्यारा


प्रेम दुत्कारा


5


ये क्रोधी व्यक्ति


स्वास्थ्य सदा खराब


न बने हस्ती


6


क्रोध का धब्बा


बचके रहना है


ए मेरे अब्बा


7


ये अहंकार 


जाते हैं यश धन


ओ एतबार


8


जब शराब


लत लगती यह


काम खराब


*(ख) रिश्तों को संभाल कर रखें।*


9


नज़र फेर


वक्त वक्त की बात


ये रिश्ते ढेर


10


दिल हो साफ


रिश्ते टिकते तभी


गलती माफ


11


दोस्त का घर


कभी दूर नहीं ये


मिलन कर


12


मदद करें


जबानी जमा खर्च


ये रिश्ते हरें


13


मिलते रहें


रिश्तों बात जरूरी


निभते रहें


14


मित्र से आस


दोस्ती का खाद पानी


यह विश्वास


15


मन ईमान


गर साफ है तेरा


रिश्ते तमाम


16


मेरा तुम्हारा


रिश्ता चलेगा तभी


बने सहारा


17


दूर या पास


फर्क नहीं रिश्तों में


बात ये खास


*(ग) अहम खराब है।*


18


जरा तिनका


काँटों जैसा चुभता


मन इनका


19


कोई बात हो


टोका टाकी ज्यादा ना


दिन रात हो


20


कोई न आँच


खुद पाक साफ तो


दूजे को जाँच


21


खुद बचाव


बहुत खूब करें


यह दबाव


22


दोषारोपण


दक्ष इस काम में


होते निपुण


23


तर्क वितर्क


काटते उसको हैं


तर्क कुतर्क


24


रहे न भला


गलती ढूंढते हैं


शिकवा गिला


25


बुद्धि विवेक


तभी होते हैं पूर्ण


यही है नेक


26


जल्द आहत


तुरंत आग लगे


हो फजीहत


*रचयिता।एस के कपूर*


*"श्री हंस"।बरेली।*


मो 9897071046


       8218685464


 


*VJTM 965019 IN*


*एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली*


*सदस्य कोड संख्या*


नूतन लाल साहू

एक सुझाव


 


जिंदगी में सारा झगड़ा


ख्वाहिशों का है


ना तो किसी को गम चाहिए


और ना ही किसी को कम चाहिए


सच कहता हूं तू थक जायेगा


विश्व को विनती सुनाते सुनाते


चाह किसका है तुझे जो


तड़पता रहता हैं निरंतर


सुख संपत्ति की ख्वाहिश तुझे


सब ओर से घेरे हुए हैं


सब कुछ प्रभु पर छोड़ दें


चिंता तेरे पास नहीं आयेगा


जिंदगी में सारा झगड़ा


ख्वाहिशों का है


ना तो किसी को गम चाहिए


और ना ही किसी को कम चाहिए


विश्व तो उस पर जरूर हंसेगा


जो सत्कर्म भूला,खूब भटका


पंथ जीवन का चुनौती


दे रहा है हर कदम पर


आखिरी मंजिल तो भवसागर पार जाना है


जो दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है कहीं भी


आत्मविश्वास बढ़ा,ख्वाहिशें घटा


वह करेगा धैर्य संचित


प्रकृति का मंगल शकुन पथ


तेरा इंतज़ार कर रहा है


शक्तियां अपनी न जांची तूने


तू तो ईश्वर का अंश है


जिंदगी में सारा झगड़ा


ख्वाहिशों का है


ना तो किसी को गम चाहिए


और ना ही किसी को कम चाहिए


नूतन लाल साहू


निशा अतुल्य

छंद प्रबोधनी एकादशी


ढ़ेर सारी शुभकामनाएं 


25.11.2020


 


 


प्रबोधनी एकादशी ,पाप करम नाशनी


उठे देव जान कर सब,मंगलम मनाइए।


 


व्रत रखे निरआहार,कष्ट करें सब पार


विष्णु प्रिया संग रहे,आशीष पा जाइए।


 


मन में सदा है हुलसी,विष्णु प्रिय है तुलसी


विष्णु सँग तुलसी जी का,विवाह करवाइए।


 


सोए देव उठाइए,विष्णु हरि मनाइए


बैकुंठ धाम पाइए,भव से तर जाइए।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


डॉ0हरि नाथ मिश्र

व्यथा(दोहे)


कथा व्यथा की क्या कहें,व्यथा देय बड़ पीर।


सह ले जो तन-मन-व्यथा,पुरुष वही है धीर।।


 


प्रेमी-हिय भटके सदा,प्रिया न दे जब साथ।


व्यथा लिए निज हृदय में,मलता रहता हाथ।।


 


बिन औषधि तन भी सहे, पीड़ादायी रोग।


व्यथा शीघ्र उसकी कटे, पा औषधि संयोग।।


 


कवि की व्यथा विचित्र है,व्यथा कवित-आधार।


अद्भुत यह संबंध है,पीड़ा कवि-शृंगार ।।


 


व्यथा-व्यथित-मन स्रोत है,उच्च कल्पना-द्वार।


कविता जिससे आ जगत,दे औरों को प्यार।।


 


इसी व्यथा के हेतु ही,जग पूजे भगवान।


धन्य,व्यथा तुम हो प्रबल,देती सबको ज्ञान।।


 


व्यथा छुपाए है खुशी,समझो हे इंसान।


जो समझे इस मर्म को,उसका हो कल्यान।।


         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


             9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*त्रिपदी*


जिसका तन-मन निर्मल रहता,


मिलती उसको सदा सफलता।


सुखी वही जीवन भर रहता।।


 


बल-विद्या-धन-पौरुष अपना,


करें पूर्ण सदा ही सपना।


कभी घमंड न इनपर करना।।


 


मानव-जीवन सबसे सुंदर,


यदि है पावन भी अभ्यंतर।


मिलता सुख है तभी निरंतर।।


 


देश-भक्ति का भाव न जिसमें,


पत्थर दिल रहता है उसमें।


 देश-प्रेम भी होए सबमें ।।


 


निज माटी का तिलक लगाओ,


तिलक लगाकर अति सुख पाओ।


मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाओ।।


 


अपनी धरती,अपना अंबर,


वन-पर्वत,शुचि सरित-समुंदर।


संस्कृति रुचिरा बाहर-अंदर।।


 


सदा बड़ों का आदर करना,


स्नेह-भाव छोटों से रखना।


रहे यही जीवन का सपना।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                 9919446372


डॉ० रामबली मिश्र

*गुनगुनी धूप*


 


गुनगुनी धूप मन को लुभाने लगीं।


अब प्रिया की मधुर याद आने लगी।


है सुहाना ये मौसम बहुत ही रसिक।


रस की वर्षा हृदय में रसाने लगी।


धूप ठंडक की कितनी सहज मस्त है।


अब मधुर कामना मन में आने लगी।


बिन प्रिया मन उदासी से भरपूर है।


अग्नि विछुड़न की मन को जलाने लगी।


 


गुनगुनी धूप सुखदा भले ही लगे।


पर विरह वेदना अब सताने लगी।


सर्द की धूप चाहे भले हो सुखद।


भावना आशियाना हटाने लगी।


 


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुषमा दीक्षित शुक्ला

गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।


 फिर से पीहर में गोरी लजाने लगी ।


अब सुहानी लगे सर्द की दुपहरी।


 मौसमी मयकशी है ये जादू भरी।


 ठंडी ठंडी हवा दिल चुराने लगी।


 गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।


पायल ने छेड़े हैं रून झुन तराने ।


दर्पण से दुल्हन लगी है लजाने ।


याद उसको पिया की सताने लगी ।


गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी ।


 सर्द का मीठा मीठा सुहाना समा।


फूल भौंरें हुए हैं सभी खुशनुमा।


 रुत मोहब्बत की फिर से है छाने लगी ।


गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी ।


फूलों पे यौवन है फसलों में सरगम ।


 भंवरों का गुंजन है मधुबन में संगम ।


 प्यार के रंग तितली सजाने लगी।


 गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी ।


है कहीं पर प्रणय तो कहीं है प्रतीक्षा ।


कहीं दर्द बिरहन का लेती परीक्षा।


 कहीं गीत कोयल सुनाने लगी।


 गुनगुनी धूप फिर से है भाने लगी।


 फिर से पीहर में गोरी लजाने लगी ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला


डॉ0हरि नाथ मिश्र

व्यथा(दोहे)


कथा व्यथा की क्या कहें,व्यथा देय बड़ पीर।


सह ले जो तन-मन-व्यथा,पुरुष वही है धीर।।


 


प्रेमी-हिय भटके सदा,प्रिया न दे जब साथ।


व्यथा लिए निज हृदय में,मलता रहता हाथ।।


 


बिन औषधि तन भी सहे, कष्टप्रदायी रोग।


व्यथा शीघ्र उसकी कटे, पा औषधि संयोग।।


 


कवि की व्यथा विचित्र है,व्यथा कवित-आधार।


अद्भुत यह संबंध है,पीड़ा कवि-शृंगार ।।


 


व्यथा-व्यथित-मन स्रोत है,उच्च कल्पना-द्वार।


कविता जिससे आ जगत,दे औरों को प्यार।।


 


इसी व्यथा के हेतु ही,जग पूजे भगवान।


धन्य,व्यथा तुम हो प्रबल,देती सबको ज्ञान।।


 


व्यथा छुपाए है खुशी,समझो हे इंसान।


जो समझे इस मर्म को,उसका हो कल्यान।।


         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


             9919446372


सुनीता असीम

खुद से बातें करता होगा।


ठंडी आहें भरता होगा।


*****


बीत गया जो वक्त गुजरके।


मन उनमें ही रमता होगा।


*****


काटे कटते न विरहा के पल।


दिल उसका भी दुखता होगा।


*****


भूल गई सजनी उसको अब।


सोच गगन को तकता होगा।


*****


साथ बिताए लम्हे सुख के।


कैसे उनको भूला होगा।


*****


दर्द चुभोए कांटे कितने।


भीतर भीतर दुखता होगा।


*****


मनकी ज्वाला बढ़ती जाती।


तन भी उसमें जलता होगा।


*****


सुनीता असीम


सारिका विजयवर्गीय वीणा

आज ही के दिन देखो , शुभ ये विवाह हुआ , 


लिखी हुई वेदों में ये , विष्णुप्रिया कहानी।


 


 


प्रबोधिनी एकादशी, देव उठ कहते हैं ,


शालिग्राम प्रिय जानो,तुलसी महारानी।


 


व्रत कीजिए जी आप , कार्तिक ग्यारस का , 


 तुलसी विवाह कर , बनिये बड़ा दानी।


 


तुलसी मैया की करो, तुम सदा सेवा-पूजा,


कहती हैं सदियों से, गाथा ये दादी- नानी।


 


स्वरचित


सारिका विजयवर्गीय "वीणा"


नागपुर( महाराष्ट्र)


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 करो मत ढिलाई 😊😊


 


करो मत ढिलाई, नहीं है दवाई।


कोरोना कहें लौट आया है भाई।


 


रहो दूर सबसे, न पंजे लड़ाओ,


भले हो हितैषी,गले मत लगाओ।


इसे ही अभी है समझना दवाई।


दवाई को आने में है देर भाई।


 


कही बात मानो,करो मत ढिठाई,


कोरोना कहें लौट आया है भाई।


 


बिना मास्क मानो,न जाना कहीं भी। 


बिना हाथ धोए, न खाना कहीं भी।


न बाहर, हमें घर में ज्यादा है रहना।


भलाई इसी में, सभी का है कहना।


 


न माना, लुटाया वो अपनी कमाई। 


कोरोना कहें लौट आया है भाई।


 


हमें भीड़ में अब भी जाना नहीं है। 


अगर है कोरोना छुपाना नहीं है।


न बच्चे को बाहर, हमें ले है जाना।


न बच्चे को बाहर, हमें है खिलाना।


 


पढ़ो ध्यान से, जो है अर्ज़ी लगाई। कोरोना कहें लौट आया है भाई।


 


करो मत ढिलाई, नहीं है दवाई।


कोरोना कहें लौट आया है भाई।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

ज्ञान की बातें


 


आंसू न होते तो


आंखे इतनी खूबसूरत न होती


दर्द न होता तो


खुशी की कीमत न होती


अगर मिल जाता सब कुछ केवल चाहने से


तो दुनिया में ऊपर वाले की जरूरत न होती


चुन चुन लकड़ी महल बनाया


और कहता है तू घर मेरा है


ना घर तेरा है ना घर मेरा है


चिड़िया करत रैन बसेरा है


जब तक पंछी बोल रहा है


तब तक सब राह देखें तेरा


प्राण पखेरु उड़ जाने पर


तुझे कौन कहेगा मेरा


आंसू न होते तो


आंखे इतनी खूबसूरत न होती


दर्द न होता तो


खुशी की कीमत न होती


अगर मिल जाता सब कुछ केवल चाहने से


तो दुनिया में ऊपर वाले की जरूरत न होती


क्या हुआ तू वेदों को पढ़ा


भेंद तो कुछ जाना नहीं


आत्मा की मरम जाने बिना


ज्ञानी तो कोई कहलाता नहीं


जानबूझकर अनजान बनता है


जैसे सदा जिंदा रहेगा


प्रभु भक्ति बिना किश्ती तेरी


भवसागर पार जायेगा नहीं


आंसू न होते तो


आंखे इतनी खूबसूरत न होती


दर्द न होता तो


खुशी की कीमत न होती


अगर मिल जाता सब कुछ केवल चाहने से


तो दुनिया में ऊपर वाले की जरूरत न होती


नूतन लाल साहू


डॉ0 निर्मला शर्मा

" देवोत्थानी एकादशी "


 


क्षीर सिंधु में हरि विराजे


शेषनाग की शैया साजे


चरण दबाती बैठी माता


श्रीहरि माँ लक्ष्मी संग राजे


देवोत्थानी एकादशी पर जागे


जन् जन् के मन में है विराजे


शुभ कार्यों का हुआ है प्रारम्भ


चार मास बाद देव हैं जागे


कार्तिक मास की एकादशी यह


तुलसी विवाह की शुभ घड़ी यह


शालिग्राम तुलसी संग कर परिणय


आज के दिन ही धाम पधारे।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


एस के कपूर श्री हंस

*विषय।।बेटी।।*


*।।रचना शीर्षक।।*


*आज की बेटियाँ।।आसमाँ*


*में है उड़ने की तैयारी।।*


 


कौन सा काम जो आज की


बेटी नहीं कर पाई है।


बेटियां तो आज आसमान 


से सितारे तोड़ लाई हैं।।


बेटियों को चाहियेआज उड़ने


को यह सारा पूरा जहान।


धन्य हैं वह माता पिता


जिन्होंने बेटी जाई है।।


 


नारी ही तो इस सम्पूर्ण


सृष्टि की रचनाकार है।


नारी आज सबला दुष्टों के


लिये भी बन गई हाहाकार है।।


अनाचारऔर दुष्कर्म के प्रति


आजऔरत ने उठाई आवाज़।


बाँधकर साफा माथे परआज


बनी रण चंडी की ललकार है।।


 


वही समाज राष्ट्र उन्नत बनता


जो बेटी का सम्मान करता है।


बेटी शिक्षा बेटी सुरक्षा का


जो अभियान भरता है।।


ईश्वर रूपा ममता स्वरुपा


त्याग की प्रतिमूर्ति है नारी।


वो संसार स्वर्ग बन जाता जो


बेटी का नाम महान धरता है।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


मोब ।। 9897071046


                     8218685464


भुवन बिष्ट

**वंदना**


मानवता का दीप जले, 


      प्रभु ऐसा देना वरदान। 


प्रेम भाव का हो उजियारा, 


      नित नित करता मैं गुणगान।। 


प्रभु ऐसा देना वरदान। ..........


 


राग द्वेष की बहे न धारा, 


       हिंसा मुक्त हो जगत हमारा।


सारे जग में भारत अपना, 


       सदा बने यह सबसे प्यारा ।।


पावन धरा में हो खुशहाली, 


        बने सदा यह देश महान।।


प्रभु ऐसा देना वरदान। ........


 


हो न कोई अपराध कभी, 


         वाणी में हो पावनता। 


ऊँच नीच की हो न भावना, 


         जग में फैले मानवता।। 


एक दूजे का हम करें, 


         सदा सदा ही अब सम्मान।।


प्रभु ऐसा देना वरदान। .......   


             ......भुवन बिष्ट 


            रानीखेत(अल्मोडा़)उत्तराखण्ड


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--


 


सूरज सबको बाँट रहा है , किरणो की मुस्कान


कौन है जिसने बंद किये हैं, सारे रौशनदान 


 


आज सवेरे चिड़यों ने भी, गीत ख़ुशी के गाये 


तोड़ गया फिर एक शिकारी ,अपना तीर कमान


 


हमने गीत सदा गाये हैं, सत्य अहिंसा प्यार के 


देख के हमको हो जाता है,दुश्मन भी हैरान


 


भूल भी जाओ अब तो भाई, बरगद की चौपाल


अपने अपने अहम में गुम है,अब तो हर इंसान


 


देख के हैरत होती है इंसानों की मजबूरी 


दो रोटी की खातिर क्या क्या,करता है इंसान


 


मैं मुफ़लिस हूँ जेब है खाली ,मँहगा है बाज़ार 


कैसे अब त्यौहार मनाऊँ ,मुश्किल में है जान


 


आज दुशासन दुर्योधन कर्ण तुम्हारी खैर नहीं


अर्जुन ने अब तान लिया है ,अपना तीर कमान


 


सोच रहा हूँ चेहरे की हर सिलवट को धो डालूँ


बच्चों को अब होने लगी है सुख-दुख की पहचान


 


*साग़र* फूलों की ख़ुशबू के , चरचे दिल में रखिये


घेर लिये हैं कागज़ वाले फूलो ने गुलदान


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


फेलुन×7


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-29


केहि बिधि उदधि पार सब जाई।


कह रघिनाथ बतावउ भाई।।


     सागर भरा बिबिध जल जीवहिं।


     गिरि सम उच्च उरमिं तट भेवहिं।।


प्रभु तव सायक बहु गुन आगर।


सोखि सकत छन कोटिक सागर।


    तदपि नीति कै अह अस कहना।


    सिंधु-बिनय श्रेष्ठ अह करना।।


जलधि होय तव कुल-गुरु नाथा।


तासु बिनय झुकाइ निज माथा।


      पार होंहिं सभ सिंधु अपारा।


      कह लंकापति प्रकटि बिचारा।।


तब प्रभु कह मत तोर सटीका।


पर लागै नहिं लछिमन ठीका।।


     लछिमन कह नहिं दैव भरोसा।


      अबहिं तुष्ट कब करिहैं रोषा।।


निज महिमा-बल सोखहु सागर।


नाघहिं गिरि पंगुहिं तुम्ह पाकर।।


     दैव-दैव जग कायर-बचना।।


      अस नहिं सोहै प्रभु तव रसना।।


राम कहे सुनु लछिमन भाई।


होहि उहइ जे तव मन भाई।।


      जाइ प्रनाम कीन्ह प्रभु सागर।


      बैठे तटहिं चटाइ बिछाकर।।


पठए रहा दूत तब रावन।


जब तहँ रहा बिभीषन-आवन।


     कपट रूप कपि धरि सभ उहवाँ।


      खूब बखानहिं प्रभु-गुन तहवाँ।।


तब पहिचानि तिनहिं कपि सबहीं।


लाए बान्हि कपीसहिं पहहीं ।।


     कह सुग्रीवा काटहु काना।


     काटि नासिका इनहिं पठाना।।


अस सुनि कहे दूत रिपु मिलकर।


करहु कृपा राम प्रभु हमपर।।


     तब तहँ धाइ क पहुँचे लछिमन।


     बिहँसि छुड़ाइ कहे अस तिन्हसन।।


जाइ कहउ रावन कुल-घाती।


मोर सनेस देहु इह पाती।।


     सीय भेजि तुरतै इहँ आवै।


      नहिं त तासु प्रान अब जावै।


दोहा-अस सनेस लइ दूत सभ,किन्ह लखनहीं प्रनाम।


        पहुँचे रावन-लंक महँ,बरनत प्रभु-गुन नाम।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*नशीला*


प्रेम इतना नशीला पता था नहीं।


प्रेम कितना नशीला पता था नहीं??


प्रेम को देख बेहोश हो गिर पड़ा।


हम पड़े हैं कहाँ कुछ पता ही नहीं।


देख कर यह दशा प्रेम भावुक हुआ।


बोला, अब तुम स्वयं को जलाना नहीं।


आओ पकड़ो भुजायें रहो पास में।


दिल पर रख हाथ खुद को बुझाना नहीं।


हम बसे हैं तुम्हारे हृदय में सदा।


अपने मन को मलिन तुम बनाना नहीं।


जो कमी हो कहो पूरी होगी सहज।


अपने दिल को कभी तुम सुलाना नहीं।


जिंदादिल बनकर रहना सदा सीख लो।


अपने दिल को कभी तुम सताना नहीं।


प्रेम को देखकर खुश रहो सर्वदा।


दुःख के आँसू कभी तुम बहाना नहीं।


प्रेम निर्भय निराकार ओंकार है।


हाड़-मज्जा के मंजर पर जाना नहीं।


प्रेम यमदूत होता नहीं है कभी।


प्रेम को देख नजरें चुराना नहीं।


 


प्रेम है स्वच्छ पावन सदा पीरहर।


प्रेम को देखकर धैर्य खोना नहीं ।


भाग्य से प्रेम मिलता जगत में समझ।


प्रेम पाया अगर चाहिये कुछ नहीं।


प्रेम पर्याप्त है जिंदगी के लिये।


प्रेम से है बड़ा जग में कुछ भी नहीं।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0हरि नाथ मिश्र

गीत(16/16)


जब भी कविता लिखने बैठूँ,


लिख जाता है नाम तुम्हारा।


इसी तरह नित पहुँचा करता,


तुझ तक प्रिये प्रणाम हमारा।।


     लिख जाता है नाम तुम्हारा।।


 


अक्षर-अक्षर वास तुम्हारा,


घुली हुई हो तुम साँसों में।


रोम-रोम में रची-बसी तुम,


सदा ही रहती विश्वासों में।


जब डूबे मन भाव-सिंधु में-


मसि बनकर तुम बनी सहारा।।


    लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


 


हवा बहे ले महक तुम्हारी,


कलियाँ खिलतीं वन-उपवन में।


तेरी ले सौगंध भ्रमर भी,


रहता रस पीता गुलशन में।


हाव-भाव सब हमें बताती-


बहती सरिता-चंचल धारा।।


    लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


 


तेरा प्रेमी कवि-हृदयी है,


पंछी में भी तुमको पाता।


चंचल लोचन हर हिरनी का,


इसी लिए तो उसको भाता।


चंदा की शीतल किरणें भी-


भेद बतातीं तेरा सारा।।


     लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


 


तुम्हीं छंद हो सुर-लय तुमहीं,


तुम्हीं हो कविता का आधार।


जहाँ लेखनी मेरी भटके,


तुम्हीं हो करती सदा सुधार।


संकेतों की भाषा तुमहीं-


भाव-सिंधु का प्रबल किनारा।।


     लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


   


भाव-सिंधु में बनकर नौका,


पार कराती तुम सागर को।


कविता-मुक्ता मुझको देकर,


उजला करती रजनी-घर को।


तेरी छवि दे शब्द सलोने-


चमकें जैसे गगन-सितारा।।


     लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*मिश्रा कविराय की कुण्डलिया*


 


चलो साथ चलते रहो, हो सुंदर संवाद।


लेकर अंतिम श्वांस को, हों सब खत्म विवाद।।


हों सब खत्म विवाद, न मन में हो कुछ शंका।


रहें प्रेम से लोग, बजे अब सुख का डंका।।


 


कह मिश्रा कविराय, मनुजता के वश रह लो।


करते सबसे प्रेम, राह पकड़ इक चल चलो।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--


 


किया उसने कभी नखरा नहीं था


मज़ा यूँ इश्क़ में आता नहीं था 


 


बला का सब्र था आदत में उसकी


शिकायत वो कभी करता नहीं था 


 


लगा मेले में भी यह दिल न आखिर


वहाँ जो दिलरुबा मेरा नहीं था 


 


मैं करता प्यार का इज़हार कैसे


वो इतना पास भी आया नहीं था


 


इसी से मुश्किलें आती थीं हरदम


वो अपनी बात पर रुकता नहीं था


 


गये थे हम उसी में डूबने को


*समुंदर वो मगर गहरा नहीं था*


 


खुले दिल से मिले दोनों ही *साग़र*


किसी का भी वहाँ पहरा नहीं था 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


23/11/2020


डॉ०रामबली मिश्र

*माँ चरणों में...*


 


मिले चरण रज माँ का केवल।


माँ ही एक मात्र हैं संबल।।


 


कृपदायिनी माँ हैं जिस पर।


खुश रहता सारा जग उस पर।।


 


माँ का आशीर्वाद चाहिये।


जीवन शुभ आजाद चाहिये।।


 


माँ आ जाओ बैठ हंस पर।


दे माँ विद्या का उत्तम वर।।


 


सद्विविवेक दो आत्म ज्ञान दो।


सहनशील संकोच मान दो।।


 


पुस्तक लिखने की शिक्षा दो।


बुद्धिपूर्णता की भिक्षा दो ।।


 


करुणामृत रसपान करा माँ।


गंगा बन जलपान करा माँ।।


 


मन को सात्विक सहज बनाओ।


अपने शिशु को गले लगाओ।।


 


उतरो स्वर्ग लोक से माता।


आनंदी!हे प्रेम विधाता!!


 


प्रेम पंथ का पाठ पढ़ाओ।


श्रीमद्भगवद्गीता गाओ।।


 


कर्म योग का मर्म बताओ।


आत्मतोष की राह दिखाओ।।


 


सत्य-अहिंसा की हो चर्चा।


डालें मानवता का पर्चा।।


 


राग-द्वेष से ऊपर उठकर।


करें सभी से बातें सुंदर।।


 


शीघ्र मोहिनी मंत्र सिखाओ।


सारे जग को मित्र बनाओ।।


 


रहे क्रूरता नहीं जगत में।


सदा मित्रता भाव स्वगत में।।


 


जय जय जय जय जय जय माता।


मातृ अमृता!बन सुखदाता।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

*नन्ही चिड़िया*


*************


घास- फूस का नीड़ बनाकर,


मेरे घर में रहती चिड़िया,


दिन में दाना चुगती चिड़िया,


रात में घर आ जाती चिड़िया।


 


घर में रौनक़ लायी चिड़िया,


बहुत प्यारी लगती चिड़िया,


बहुत सबेरे चीं चीं करती,


हम सब को जगाती चिड़िया।


 


 चिड़िया जब खुश हो जाती है,


उसी नीड़ पर अण्डे देती ,


अण्डे से जब बच्चे बनते ,


 पालन पोषण करती चिड़िया।


 


दिन में दाना लाती है चिड़िया,


बच्चों को खिलाती चिड़िया,


 जब वह उडने वाले होते,


अपने साथ उड़ाती चिड़िया।


 


चीं चीं करके जब उड़ते है,


खुशी के गीत गाती है चिड़िया,


दूर गगन में उड़ जाती चिड़िया,


 रात को नीड़ पर आ जाती चिड़िया।।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...