"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
एस के कपूर श्री हंस
निधि मद्धेशिया
मधु शंखधर स्वतंत्र
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
एस के कपूर श्री हंस
नूतन लाल साहू
निशा अतुल्य
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सुषमा दीक्षित शुक्ला
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
निशा अतुल्य
नूतन लाल साहू
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
रवि रश्मि
मंगल शर्मा
काव्यरंगोली आज के सम्मानित कलमकारडॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी
डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी
आत्मज -श्रीमती पूनम देवी तथा श्री सन्तोषी लाल त्रिपाठी
जन्मतिथि .१६ जनवरी १९९१
जन्म स्थान. हेमनापुर मरवट, बहराइच ,उ.प्र.
शिक्षा- एम.बी.बी.एस. ,
एम. एस. जनरल सर्जरी(द्वितीय वर्ष छात्र)
पता.- रूम न. 8, 100 पीजी ब्वायज हास्टल ,बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज गोरखपुर,उ.प्र.
प्रकाशित पुस्तक - तन्हाई (रुबाई संग्रह)
उपाधियाँ एवं सम्मान - साहित्य भूषण (साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी ,परियावाँ, प्रतापगढ़ ,उ. प्र.द्वारा)
शब्द श्री (शिव संकल्प साहित्य परिषद ,होशंगाबाद ,म.प्र.) द्वारा
श्री गुगनराम सिहाग स्मृति साहित्य सम्मान, (गुगनराम सोसायटी भिवानी ,हरियाणा द्वारा)
अगीत युवा स्वर सम्मान २०१४( अ.भा. अगीत परिषद ,लखनऊ द्वारा)
पंडित राम नारायण त्रिपाठी पर्यटक स्मृति नवोदित साहित्यकार सम्मान २०१५, (अ.भा.नवोदित साहित्यकार परिषद ,लखनऊ द्वारा)
जय विजय रचनाकार सम्मान(गीत विधा)2019 , जय विजय हिंदी मासिक वेब पत्रिका द्वारा।
इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक ,शैक्षणिक ,संस्थानों द्वारा समय समय पर सम्मान । पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन तथा काव्य गोष्ठियों एवं कवि सम्मेलनों मे निरंतर काव्यपाठ ।
१.(गीत)
उर में अवसाद है ।
चाँदी सी शुभ्र रात
हवा भी मचल रही है।
नदिया के तन पे,धवल-
चाँदनी फिसल रही है।
पूर्ण प्रकृति, रिक्त हृदय ,
कैसा अपवाद है। ?
उर में अवसाद.........
नैनों में बाढ़ हुई ,
उर मे पतझार हुआ।
टूट चुके सपनों को ,
पीड़ा से प्यार हुआ ।
मौन हुए ,गीतों का ,
निष्फल संवाद है ।
उर में अवसाद ...।
कोयल की कुंजन से,
भौरों के गुंजन से ।
एक नव बसंत हुआ,
महक चली उपवन से।
जल भुन बैठा जवास ,
चहुँ दिशि उन्माद है ।
उर में अवसाद.......
२.(गीत)
क्षितिज तीर पीड़ा के गहरे से चित्र हुए ,
ज्यों ज्यों गहराने लगी, जाड़ों की रात है।
अल्पायु दिन बीता ,लंबी सी रात हुई ।
ठिठुर गयें पेड़ों से,शीत की बरसात हुई।
घाम और कुहरा जब आपस में मित्र हुए,
सूरज बिन गायब अब सर से जलजात है।
क्षितिज तीर .........................
कुत्तों की कुकुराहट ,हूँकते सियारों से।
निष्ठुर सी रात हुई , हिम भरी बयारों से।
भटकी सी लोमड़ी के हाल भी विचित्र हुए,
कौं-कौं कर ढूँढ रही बिल नही सुझात है ।
क्षितिज तीर.........................
बलवती बयार हुई, कथरी कमजोर लगे ।
हर तरफ से सेंध करे ,जाड़ा एक चोर लगे।
अतिथि कलाकार सरिस धूप के चरित्र हुए,
पता नही कब आये,कब ये चली जात है।
क्षितिज तीर.............................
३.(गीत)
कोशिशें बहुत करीं पर ,कुंभकरण जागे नही ।
अंत में परिणाम आया ,ढाक के बस तीन पात।
देकर के आसरा हर बार वो टरकाते रहे ।
तब भी हम ऊसर में बीज नित बहाते रहे।
भैंसो के आगे हम बीन भी बजाते रहे ।
बहरों के आगे हम मेघ राग गाते रहे ।
फिर हमने जाना बाँझ जाने क्या प्रसव की बात।
अंत में परिणाम आया...........................।
कुर्सियों कें खटमल,मोह खून का न छोड़ सके।
पीड़ा के व्यूह का एक द्वार भी न तोड़ सके।
अंहकार पद का था ,रास्ते भी भटक गये ,
मोड़ने चले थे धार,नाली तक न मोड़ सके ।
बुझा के मशाल बने चोर, देख काली रात ।
अंत में परिणाम आया.........................।
अपनी तो पीर हुई, गैर की तमाशा है ।
शासन तिमिर का है ,दीप को निराशा है।
गिद्धों के अनुगामी, तंत्र में विराजमान,
लाशों की टोह करें, इस तरह पिपासा है ।
उल्लुओं ने राय रक्खी ,रोकों भावी प्रभात !
अंत में परिणाम..............................
४.(गीत)
पनपे कंकरीट के जंगल, बड़े मंझोले पेड़ काटकर,
पीपल की बरगद से चाहकर बात नही होती ।
सावन की पुरवैय्या सूनी ।
दादी की अंगनैय्या सूनी ।
सरिता का संगीत शोकमय,
बंधी घाट पर नैय्या सूनी ।
महुए की सुगंध से महकी रात नही होती ।
पीपल की बरगद.............................
कहीं खो गये कोयल ,खंजन।
दूर हो गये झूले सावन ।
उजड़ रहे वन बाग नित्यप्रति,
उजड़े धरती माँ का आँगन ।
अब कतारमय क्रौंचो की बारात नही होती।
पीपल की बरगद.........................
फीकी बारिश की बौछारें ।
धूमिल रंग धरा के सारे ।
अब मानव कृत्रिम में खुश है,
प्राकृतिक से किये किनारे ।
मलयज वायु सुरभित सुंदर प्रात नही होती ।
पीपल की बरगद से .......................
५.(गीत)
हृदय व्याकुल, नैन में घन-घोर,वो आये नहीं।
कोशिशें मैंने करी पुरजोर,वो आये नहीं ।
कोयलों ठहरों ,सुनो, मत गीत गाओ!
मधुकरों कलियों पें तुम मत गुनगुनाओं!
हो रहा है कर्णभेदी शोर, वो आये नहीं।
कोशिशें …………………….
भीड़ में दिन कट गया फिर, रात तनहा आ गई।
अंधेरे की एक चादर ,मेरे मन पे छा गई ।
कल्पनाएँ हो गई कमजोर,वो आये नही ।
कोशिशें…………………
गिन के तारे रात काटी ,चाँद बूढ़ा हो गया।
ओड़कर ऊषा की चादर,तिमिर देखो सो गया।
आ गया किरणों को लेके भोर, वो आये नहीं।
कोशिशें…………………………….
आ गया पतझार बूढ़ा,पात पीले हो गये ।
हो चुके बेरंग उपवन, देख मधुकर रो गये ।
टूटती साँसो की हर दिन डोर,वो आये नहीं ।
कोशिशें ……………
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी
निशा अतुल्य
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार रेनू बाला सिंह , गाजियाबाद ,उत्तर प्रदेश
*नाम*- रेनूबाला सिंह
*पता*-A-312 पार्श्वनाथ मैजेस्टिक फ्लोर्स इंदिरा पुरम,गाज़ियाबाद (यू.पी.)
२०१०१४
*शिक्षा*- बी.ए,ब्रिज कोर्स एम.ए (मध्यकालीन
इतिहास),बी.एड..
डिप्लोमा- होटल मैनेजमेंट
रुचि- योग, संगीत (गायन,वादन,नृत्य)
पठन-पाठन
*भाषा*- हिन्दी,भोजपुरी,अंग्रेजी
*शिक्षण-कार्य* केंद्रीय विद्यालय मालीगांव गुवाहाटी में २ वर्ष
एडहाक शिक्षिका के रूप
में सेवारत।
*संस्कार वैभव हिन्दी सभा* नामक संस्था से सदस्य के रूप में स्वतंत्र लेखन का कार्य,कलरव नामक पत्रिका में १०वर्षों से कविताएँ व लेख प्रकाशित हो रहे हैं।
*यू. एस. एम. पत्रिका*,गाज़ियाबाद में गत १२ वर्षों से *वंदना लेख,कविताएँ ,व्यंग* प्रकाशित हो रहे हैं।
*रेलवे महिला कल्याण संगठन* में *सचिव/अध्यक्षा* के पदों पर दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों में पच्चीस वर्षों तक गरीब महिलाओं एवं बच्चों के शिक्षण (प्रशिक्षण) *हस्तकला के विकास में समाज सेवा* का कार्य किया।
*कंटेनर कार्पोरेशन महिला कल्याण संगठन* में *सचिव* के पद पर रहते हुए प्रतिभावान बच्चों को पुरस्कृत किया।
*हुनर स्टार्ट-अप* सेमिनार आन एंटरप्रनारशिप- *प्रशस्ति पत्र* ।
बटोही साहित्यिक सांस्कृतिक व सामाजिक *प्रशस्ति पत्र*।
*संस्कार वैभव हिन्दी सभा* में हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति व राष्ट्रीय एकता को समृद्ध बनाने के लिए *प्रशस्ति पत्र*
*लाइनेस क्लब अपराजिता*
इंदिरापुरम,गाज़ियाबाद में *सदस्य/ सचिव* पद पर
३ वर्ष तक कार्य किया।
इंदिरापुरम में पिछले १० वर्षो से *योग शिक्षण* में सेवारत
*सलाम नमस्ते रेडियो स्टेशन ९०.४ एफ एम* पर नियमित रूप से आयोजित सम सामयिक विषयों पर सहभागिता...
*खुदा को कर बुलंद इतना* सामयिक विषयों पर *वामा पत्रिका* में सहभागिता।
*प्रकृति के आस पास*
नामक काव्य संग्रह प्रकाशित।
वर्तमान समय में *आदिराजआफ डांस* स्कूल से संबद्ध।
धन्यवाद!🙏🙏
*तो समझो होली है।*
शीत ऋतु की हो विदाई ग्रीष्म रस रंग गंध इंद्रधनुष धरा पर जब रंगों की छटा बिखराए ,तो समझो होली है।
सुनहरी धूप में कोयल कूके किरणों संग मुस्काए अमरैया बौराए, बेला चंपा चमेली हिना गुलदाउदी आंगन महकाए ,
तो समझो होली है।
मोगरा गुलाबों से गुलजार सजे फुलवारी औ' द्वार ,
मौसम बदले प्राकृतिक नज़ारे, नाचे मन जैसे मयूर तो समझो होली है।
बच्चे मुस्काए जवानों में जब दिखे तरुणाई और बूढ़े गदराए, उत्साह नटखट चुलबुलाहट मन में हिलोरें हुलसाए, तो समझो होली है।
बच्चे धूम मचाते रंग भर गुब्बारे, पिचकारी बाल्टी गलियों ढोल ,बाजे नगाड़े मृदंग मजीरे, बांसुरी भी खींचे लंबी लंबी तानें, तो समझो होली है।
नैनों से जब नैन मिले अधर देख मुस्काए ,गाल गुलाबी लाल, बिना रंगे बिखर जाए, प्रीत डोर खींच मन प्रियतम देख मदमस्त हो जाए, तो समझो होली है।
गुझिया, मालपुआ ,दही बड़ा सब मिल बैठ खाएं पूरी खीर और बताशे, भूलकर भी दुख गम गिले-शिकवे हो न, हमजोली सब गले मिले,
तो समझो होली है।
होलिका दहन, संग में बुराई घृणा नफरत की, देकर आहुति, जात पात कलह क्लेश दोष मिटा, होली मिलन की बात हो जहां,
तो समझो होली है।
दहलीज के भीतर बंद कमरों में छाई रहे खुशहाली प्रेम सौहार्द्र और स्नेहिल भाव से रंग जाए दुनिया सारी ,
तो समझो होली है
धन्यवाद
रेनू बाला सिंह
*पसरा कोरोना दोबारा*
*होली में*
आंखों को कुछ तरेर कर
हथेली में गुलाल मल कर
चुलबुलाहट होने लगी है
पीछे से दोस्तों के छुप कर,
लाल करें गालों को रगड़ कर
मगर कैसे क्या करें हम आज
मुश्किल हो गया जीने का अंदाज
ढोल नगाड़े बंद हैं सभी साज
सखियों में उमड़ा नखरा नाज़
अब होने लगी है मोबाइल पर, होली मिलन की बात
माना मुश्किल है हाथ से हाथ मिलाना
नामुमकिन भी है अब गले मिलना
दूरी बना मास्क लगा पालन
कर वैक्सीन लगा
गुलाल जब बादल बन उड़ा
फेसबुक व्हाट्सएप पर
रंगों की पिचकारी भर कर
कहीं होली गुलाल अबीर भीगेगा नहीं शरीर पर
मन को सराबोर होने पर
रोक सकेगा न कोई
रोक सकेगा न कोई
धन्यवाद
रेनू बाला सिंह , गाजियाबाद ,उत्तर प्रदेश
201014
मंच को नमन🙏🙏
*बसंत ऋतु पर दोहे*
कोयल बैठी डार पर,
इत उत डोलत जाय ।
भंवरा गुंजत बाग में ,
पी पराग मद होए।।
फूले अमवा बौराए
पुलकित मनवा होय ।
कोयल कूके गाए ,
बिरहनी बोली सुनाए।।
तितली डोलत बाग में,
उड़त फिरत झूमत है।
हंसी ठिठोली साथ में,
मन ही मन हंसत है।।
रेनू बाला सिंह
विधा- *कविता*
शीर्षक-- *नववर्ष इसे ही कहलाने दो*
रचना- *रेनू बाला सिंह*
प्रतिवर्ष नववर्ष हम क्यों मनाते
पश्चिमी देशों की है यह प्रथा
साथ में मिलकर खुशियों की कथा
दोहराई अपनाई उमंग भरी
नव वर्षीय गाथा
प्रतिवर्ष नववर्ष::::
सर्दी की गलन से ठिठुराते जेब से हाथ बाहर नहींआते
कान मफ़लर से ढ़कते जाते जुरार्बें दस्ताने चढ़ाएं रहते
प्रतिवर्ष नववर्ष:::::
नगाड़े की थाप पर नाचते गाते
पश्चिमी देशों की योजना में रमते जाते
स्याह घने गहराते कोहरे में सजते
चकाचौंध बिजली बाती में चमकते
प्रतिवर्ष नववर्ष:::::::
अंधेरी बीती रात झालरों से जगमगाते
टिक टिक करती घड़ी के जैसे ही मिलते
हैप्पी न्यू ईयर्स का नारा लगाते
संबंध बढ़ा प्यार से एक दूजे से गले मिलते
प्रतिवर्ष नववर्ष::::::::
नव कोपल नव पुष्प खिलें
ठिठुरन विदा ले
नव प्रभात नव प्रकाश उजागर हो
बासंती बयार नव ऊर्जा का संचार हो
फुलवारी बसंत मुस्काए आंगन आंगन
प्रतिवर्ष नववर्ष :::::
पीली सरसों के फूलों से सजी वसुंधरा
प्रकृति बिखेरती हरित
स्नेह धारा
उत्साह उल्लास उमंग उत्सव आने दो
शुक्ल चैत्री दिवस प्रथम
नववर्ष इसे ही कहलाने दो
नववर्ष इसे ही कहलाने दो
रचना--रेनू बाला सिह
*शिवरात्रि*
*काव्य रंगोलीमंच को नमन*
आध्यात्मिक मकसद शिवरात्रि मनाने का
शरीर के कण-कण को जीवंत करने का
भांति भांति के संघर्षों को त्यागने का
आध्यात्मिक मकसद:::
सत्यम्- शिवम्-सुंदरम् अपनाने का।
धर्म अर्थ काम मोक्ष की अति कृपा का
शिवरात्रि का उत्सव स्मरण करने का
आध्यात्मिक मकसद:::
'शि'अर्थ पापों को नाश करने का
'व' का अर्थ देने वाले यानी दाता का
साधक और भक्तों के सिद्धांतों का ।
आध्यात्मिक मकसद:::
प्रतिनिधित्व करता हमारी आत्मा का ।
आभामंडल और हमारी चेतना का।
ब्रह्मांडीय चेतना पृथ्वी तत्व को छूने का ।
आध्यात्मिक मकसद शिवरात्रि बनाने का धन्यवाद ।
स्वरचित -
रेनू बाला सिंह 🖋️
गाजियाबाद
रामचरितमानस पर आधारित प्रश्नोत्तरी सम्पन्न
लखनऊ 25 अप्रैल नवीन परिवेश नवीन पहल के अंतर्गत मां विंध्यवासिनी ट्रस्ट के द्वारा पूर्व की भांति ही रामचरितमानस पर आधारित प्रश्नोत्तरी
का कार्यक्रम रविवार को संपन्न हुआ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में वरिष्ठ भाजपा नेता पूर्व मंत्री आदरणीय अवधेश मिश्रा जी प्रतापगढ़ से उपस्थित रहे कार्यक्रम का प्रारंभ सुप्रसिद्ध गायिका नृत्यांगना प्रोफेसर रेखा मिश्रा जी द्वारा सुंदर वाणी वंदना से हुआ,कार्यक्रम का संचालन साधना मिश्रा विंध्य द्वारा संपन्न किया गया कार्यक्रम में देश विदेश के बहुत से प्रतिभागी सम्मिलित हुए कार्यक्रम में नीलम शुक्ला जी कीर्ति तिवारी जी गीता पांडे जी शिवा सिंघल जी रजनी शुक्ला जी गायत्री ठाकुर जी सरला विजय जी अनीता त्रिपाठी जी डॉ.ज्योत्सना सिंह साहित्य ज्योति जी अपर्णा त्रिपाठी जी संतोष सिंह हसौर जी वैभवी सिंह जी वीना आडवाणी जी योगिता चौरसिया जी कामिनी श्रीवास्तव जी रेनू मिश्रा जी अर्चना चंचल जी आशुतोष जी मोहन सिंह जी रीमा ठाकुर जी चंद्र प्रकाश चंद्र जी सुशील कुमार जी अंशु तिवारी जी वरिष्ठ कवि आनंद खत्री जी नगेंद्र बालाजी डॉ.सुषमा तिवारी जी आराध्या दुबे जी शशि तिवारी जी कुमारी चंदा जी नूतन मिश्रा जी राजेश्वरी जी चंद्रकला जी इंदिरा जी नीलम वंदना जी चेतना चेतन जी आदरणीय विद्या शुक्ला जी अर्चना चंचला जी दीपिका शर्मा जी तथा अभिजीत शर्मा जीउपस्थित रहे और प्रतिभाग के द्वारा सभी ने कार्यक्रम को भव्यता प्रदान की कार्यक्रम के अंत में मां विंध्यवासिनी ट्रस्ट की संस्थापिका साधना मिश्रा विंध्य जी ने सभीका आभार व्यक्त करते हुए कहा कार्यक्रम का उद्देश्य वर्तमान में चल रही कठिन परिस्थितियों में नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मकता की ओर बढ़ने का एक प्रयास है जो कि मात्र धर्म और संस्कृति के द्वारा ही संभव है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदरणीय अवधेश मिश्रा जी ने कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा रामचरितमानस त्यागी की कथा है हम सभी को अपने अंदर विद्यमान अन्याय का त्याग करना होगा हम बदलेंगे जग बदलेगा हम सभी को सुधार के साथ नई पीढ़ी को संस्कृति और संस्कारों से जोड़ना होगा।कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को सम्मान पत्र देकर प्रोत्साहित किया गया ,संस्कृति के संवर्धन के साथ कार्यक्रम पूर्णता सफल रहा।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
नूतन लाल साहू
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सुषमा दीक्षित शुक्ला
निशा अतुल्य
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार चंदन अंजू मिश्रा जमशेदपुर
चंदन अंजू मिश्रा
पता: जमशेदपुर
कृतियां: द फर्स्ट स्टेप, डैडी सहित 7 पुस्तकों में कृतियां ।
चंदन :सुगंध शब्दों की का प्रकाशन
सम्मान :राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित सम्मान पत्र प्राप्त
सामाजिक कार्य:रॉबिनहुड अकादमी की सदस्या
कवितायें:
1)साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
मुझे शहर की भीड़ से दूर ले जाकर,
नैनों की डोर में अपने बाँध लेना।
जो धरा है मेरे मन की बंजर हुई,
इस पर बादल बन जल बरसा देना।
सुनाकर अपने मन की सारी बातें,
संग थोड़ा रो लेंगे और थोड़ा हँसेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
ले आना तुम झुमके एक जोड़ी ,
एक जोड़ी पायल भी ले आना।
बिंदिया वो छोटी काली वाली और,
नैनों के लिए काजल भी ले आना।।
तेरी पसन्द की हुई चूड़ी, बिंदी,
साड़ी, झुमके सब मुझ पर खिलेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
जन्मों - जन्मों की बात कौन जाने,
इसी जन्म में हर वादा पूरा कर लें।
मिटा कर सारे पुराने दाग हम चलो,
एक दूसरे की ज़िंदगी रंगों से भर लें।।
भूल कर इस दुनिया की सारी बातें,
एक दूसरे की आत्मा में खोए रहेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
-©चंदन "अंजू" मिश्रा
2)*रात्रि के दो पहलू*
गहराई जाती है देखो,
बीतती ही नहीं यामिनी।
पुष्प कुमुदिनी के प्रसन्न,
कि रुकी हुई है चाँदनी।।
किसी मन में व्यथा है ,
किसी मन में उल्लास है।
निशा में छुपी पीड़ा भी,
संग चाँदनी का प्रकाश है।।
किसी मन के प्रतिबिंब को,
झिंझोड़ देती है रात कृष्णा।
और किसी की चन्द्रिका ये,
मिटा देती है मन की तृष्णा।।
जिस साथी से वियोग हुआ,
व्यथित मन को वो याद आए।
रुदन करता विरह में मन,
कि ये रैना क्यों न बीत जाए।।
लेकिन ये शरद रात देखो,
चन्द्रमा को संग लाई है।
खिल उठा दिव्य ब्रह्मकमल,
सुगंध चहुँ ओर छाई है।।
-©चंदन "अंजू " मिश्रा
3)मैं नहीं हूँ कोई लेखिका,
क्योंकि मुझे नहीं करनी आती,
लेखकों की तरह गहरी बातें।
मैं तो बस लिख देती हूँ,
कभी हॄदय में चलते तूफान को,
कभी अकुलाते मन की व्यथा को,
कभी समाज में होते अन्याय को,
कभी विरह को कभी प्रेम को,
कभी कोयल की कूक को,
सड़क पर पड़े किसी गरीब के भूख को।
मैं पीड़ा में अश्रु नहीं बहाती,
नेत्रों में पड़े उन मोतियों को,
मैं स्याह रंगों में सफ़ेद पन्नों पर उकेर देती हूँ,
और बन जाती है रचना,
हाँ, उन लेखकों की तरह मैं गोल-गोल बातें नहीं कह पाती,
मुझे नहीं लिखनी आती कविताएं,
अपनी बेढंगी बातों को आवरण पहना देती हूँ बस।
-©चंदन "अंजू" मिश्रा
सुनीता असीम
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
नूतन लाल साहू
एस के कपूर श्री हंस
डॉ0 निर्मला शर्मा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
डा. नीलम
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
एस के कपूर श्री हंस
भुवन बिष्ट
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
एस के कपूर श्री हंस
रश्मि लता मिश्रा
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दयानन्द त्रिपाठी निराला
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