डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17

सब जन भजहिं अहर्निसि रामा।

बिनय-सील-सोभा-गुनधामा ।।

      पंकज लोचन,स्यामल गाता।

       प्रभु प्रतिपालक सभ जन त्राता।।

सारँग धनु निषंग धरि बाना।

संतन्ह रच्छहिं प्रभु भगवाना।।

     काल ब्याल,प्रभु गरुड़ समाना।

     भजहु राम प्रभु धरि हिय ध्याना।।

भ्रम-संसय-तम नासहिं रामा।

भानु-किरन इव प्रभु अभिरामा।।

      रावन-कुल जनु बीहड़ कानन।

      रामहिं अनल कीन्ह फुँकि लावन।।

अस प्रभु भजहु सीय के साथा।

कर जोरे झुकाइ निज माथा।।

      समरस राम अजहिं-अबिनासी।

       उन्हकर भजन बासना-नासी।।

राम-दिनेस उगत चहुँ-ओरा।

भे प्रकास जल-थल-नभ-छोरा।।

      भवा अबिद्या-रजनी नासा।

       अघ उलूक जनु छुपे अकासा।।

कामइ-क्रोध-कुमुदिनी लज्जित।

लखि प्रकास रबि गगन सुसज्जित।।

     लहहि न सुख गुन-काल-चकोरा।

      कर्म सहज मन-मत्सर-चोरा।।

मोहहि-मान-हुनर नहिं चलई।

खुलै दिवस मा इन्हकर कलई।।

     सभ बिग्यान-ग्यान जनु पंकज।

      बिगसे धरम-ताल-रबि दिग्गज।।

दोहा-उदित होत रबि कै किरन,बढ़हिं ग्यान-बिग्यान।

         काम-क्रोध-मद-लोभ सभ,छुपहिं उलूक समान।।

                      डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

प्रियदर्शिनी तिवारी

 अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर मेरे द्वारा स्वरचित कविता


 *शीर्षक.."इस मिट्टी की भाषा है हिन्दी"* 


इस मिट्टी की भाषा है हिन्दी,

जन जन की आशा है हिन्दी,

भारत मां की सेवा को तत्पर,

त्याग की परिभाषा है हिन्दी।


गीत कहानी काव्य सुनाती,

बच्चों का यह मन बहलाती,

लोरी की मीठी धुन में यह,

मधुर मधुर किलकारी गाती।


शान और गौरव इससे ही है,

 सम्मान बड़ों का इससे ही है,

साहित्य ज्ञान भी इससे ही है,

 शुभ मंगल गान भी इससे ही है।


पुष्पों के पंखुड़ियों जैसी,

हिन्दी बोली प्यारी लगती,

मिलन हो या हो चाहे बिछुड़न,

मातृभाषा ही न्यारी लगती।



बच्चों की तोतली बोली में,

हंसी, मजाक और ठिठोली में,

हिन्दी ही तो रंग जमाती,

सभी दीवाली और होली में।


इसका मान हम सभी बढ़ाएं

आओ कदम से कदम मिलाएं,

मातृभाषा हिन्दी की खातिर,

उत्थान हेतु हम आगे आएं।


रचयिता

प्रियदर्शिनी तिवारी

निशा अतुल्य

 सार

20.2.2021



जीवन का सार 

किसने समझा 

किसने जाना

भाग रहे सब 

हो स्वयं से  बेगाना ।


डोर हाथ में उसके बंधी है 

जब चाहे वो हमें नचाए

हम खुश है सोच सोच कर

जीवन को है हमें ही चलाए ।


जैसी उसकी मरजी होती

जीवन राह उस ओर ही मुड़ती

अच्छा बुरा तो सबको पता है 

फिर भी पथ से क्यों गिर जाना ।


भाव हमारे होते हैं वैसे 

जैसे ईश कठपुतली नचाते

रंगमंच ये दुनिया सारी

हम बस अपने पात्र निभाते ।


कर अपने किरदार को पूरा

समय हुआ ईश हमें बुलाते 

न कुछ व्यर्थ हुआ न सँजोया हमने

सब को छोड़ एक दिन चले जाते ।


स्वरचित 

निशा अतुल्य

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सप्तम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16

दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।

        राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।

निर्मल जल सरजू बह उत्तर।

घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।

     अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।

      गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।

नारी-पनघट इतर रहाहीं।

पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।

      राज-घाट अति उत्तम रहऊ।

       बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।

सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।

देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।

      इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।

       रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।

बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।

इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।

     अवधपुरी जग पुरी सुहावन।

      बाहर-भीतर अति मनभावन।।

रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।

पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।

छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,

              कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।

      मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,

             सोपान निरमल जल सरोवर।

      कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,

              अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।

      पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,

               पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।

दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।

      आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।

                          *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-16

दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।

        राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।

निर्मल जल सरजू बह उत्तर।

घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।

     अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।

      गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।

नारी-पनघट इतर रहाहीं।

पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।

      राज-घाट अति उत्तम रहऊ।

       बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।

सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।

देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।

      इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।

       रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।

बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।

इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।

     अवधपुरी जग पुरी सुहावन।

      बाहर-भीतर अति मनभावन।।

रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।

पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।

छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,

              कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।

      मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,

             सोपान निरमल जल सरोवर।

      कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,

              अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।

      पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,

               पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।

दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।

      आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                            9919446372

                            9919446372

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।आँसू कोई मामूली चीज़ नहीं*,

*कोई अनकही दास्तान हों जैसे।।*

*।।विधा।।मुक्तक।।*


आँसू तो मानो   जैसे अनकहा

बयान           हैं।

खुशी गम का मानो   तो  जमीं

आसमान      हैं।।

आँसू मोती हैं लफ्ज़   हैं  और

हैं       दर्द      भी।

बहते मानो पीछे    लिये   जैसे

दास्तान         हैं।।


आँसू वो शब्द हैं जिन्हें  कागज़

कलम मिल न सका।

यह वो सैलाब    जो     दिल के

भीतर सिल न सका।।

दर्द और खुशी     का पैमाना ये

छलका           हुआ।

गम का वह     फूल      है आँसू

जो खिल  न   सका।।


मुकाम मिलने न मिलने    दोनों

का  सबब   आँसू हैं।

हर बूंद में    छिपी        कहानी

ऐसा गज़ब   आँसू है।।

नहीं कह     कर भी बहुत कुछ

कहते   हैं       आँसू।

खुशी और गम दोंनों में      बहे

ऐसा अजब आँसू है।।


जब दिल और दिमाग    दबाब

कुछ सह नहीं पाता है।

जब जिन्दगी से मिला   जवाब

कुछ कह नहीं जाता है।।

फूट पड़ते हैं आँसू  इक दरिया

सा        बन        कर।

जब पूछने को    कोई    सवाल

भी रह नहीं   आता  है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।             9897071046

                      8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सजल(मात्रा भार-16)

बाग एक गुलजार चाहिए,

जिसमें रहे बहार चाहिए।।


कभी न रूखा होए जीवन,

एक अदद बस प्यार चाहिए।।


आपस में बस रहे एकता,

ऐसा ही व्यवहार चाहिए।।


सत्य-अहिंसा-मानवता ही,

जीवन का आधार चाहिए।।


रहे स्वच्छता ध्येय हमारा,

ऐसा उच्च विचार चाहिए।।


जो भी हैं असहाय व रोगी,

उचित उन्हें उपचार चाहिए।।


घृणा-भाव का हो विनाश अब,

प्रेम-भाव-विस्तार चाहिए।।

       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

           9919446372

निशा अतुल्य

 मातृभाषा दिवस 

21.2.2021 


मातृभाषा मेरा अभिमान है 

मातृभाषा जीवन का ज्ञान है 

मिल जाएगा सब कुछ तुम को 

करो सम्मान ये ही शान है ।


करो संरक्षण इसका 

ये माता की सिखाई जुबान है

सम्मान दिल से हो इसका

ये जीवन का आधार है ।


ये ही भाषा अपनी ऐसी 

जो देती माँ सम प्यार है 

अपनत्व भरा इसमें ऐसा

प्रान्त की ये पहचान है ।


संवेदना भरी इसमें मन की

मानवता से भरी ये महान है 

अहसास कराती अपनत्व का

ये भरी दुपहरी ममता की छाँव हैं ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

अनिल गर्ग

 उखड़ती ज़िन्दगियों  को,

वो अक्सर संभाल लेता है !

अच्छे अच्छों को,

मौत के मुँह से निकाल लेता है !! 


न वो हिन्दू देखता है,

न कभी मुसलमान देखता है !

इंसा का साथी है वो,

हर शख्स में बस इंसान देखता है !! 


केस कितना भी गंभीर हो,

वो हिचकिचाता नहीं कभी ! 

मुकद्दमे की पेचीदगी देखकर,

वो सकुचाता नहीं कभी !! 


उसके हाथों में जो हुनर है,

बखूबी जानता है वो ! 

अपने पेशे को ईश्वर की,

पूजा मानता है वो !! 


जब भी जाता है वो अदालत,

अपने ईष्ट को याद करता है ! 

सफल हो जाए मुकद्दमा,

यही प्रार्थना करता है !! 


केस कितना भी बड़ा हो,

वो जी जान लगा देता है ! 

मुवक्किल को जिताने में,

वो पूरा ज्ञान लगा देता है !! 


अगर हो जाए सफल तो,

हजारों दुआएँ लेता है !

अगर वो हार जाए तो,

लोगों का क्रोध सहता है !! 


खरी खोटी वो सुनता है,

फिर भी खामोश रहता है ! 

अपनी असफलता का उसको,

बहुत अफसोस रहता है !!


वो जानता नहीं किसी को,

मगर धीरज बंधाता है ! 

निरंतर कर्म के पथ पर,

वो बढ़ते ही जाता है !! 


उसे मालूम है कि जिन्दगी,

तो भगवान ने दी है ! 

पर करे जन की सेवा वह

यह उसकी भी हसरत है ! !


अनिल गर्ग, कानपुर

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 हिन्दी से तुम प्यार करो 


हिंदुस्तान के रहने वालों ,

हिंदी से तुम प्यार करो ।


ये पहचान है मां भारत की,

 हिंदी  का सत्कार  करो ।


हिंदी के  विद्वानों  ने तो ,

परचम जग में फहराए।


 संस्कार  के सारे  पन्ने,

 हिंदी से ही हैं पाए ।


 देवनागरी लिपि में अपनी,

 छुपा  हुआ अपनापन है ।


अपनी प्यारी भाषा हिंदी,

 भारत मां का दरपन है ।


हिंदुस्तानी  होकर तुमने ,

यदि इसका अपमान किया ।


तो फिर समझो भारत वालों ,

खुद का ही नुकसान किया।


 हिंदुस्तान के रहने वालों,

 हिंदी से तुम प्यार करो ।


यह पहचान है माँ भारत की ,

हिंदी  का सत्कार  करो ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला

रवि रश्मि अनुभूति

 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


     🙏🙏


सपने सज गये 

**************

छायी चहुँ दिशि उमंग तरंग , पी ली सभी ने जैसे भंग 

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग 


बजे अब तो ढोल - मंजीरे , गूढ़ बात हो तेरी - मेरी

टोलियाँ सजी आयीं अब तो , बार - बार डालें ये फेरी  

बोलें सभी प्रेम की बोली ,  , रहे गा फाग भी संग - संग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग .....


प्रेम - प्रीत की लगन लगी अब , सपने अपने गये अभी सज

बात भाईचारे की करें , फहरायें  कामयाबी का ध्वज

ऐसी हो एकता हमारी , लोग रहेंगे अभी तो दंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग .....


लुभाता है सौंदर्य हमको , गुनगुनाती जागती उमंग 

सपने सज गये अंग रंग , बज रही लो कहीं जलतरंग 

मिलन हो सजन से अब सबका , सपने सज गये प्रेमिल रंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के रंग .....


छायी चहुँ दिशा उमंग तरंग , पी ली सभी ने जैसे भंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम संग , लो सुनो अभी फाग के रंग .....

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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '

21.2.2021 , 3:21 पीएम पर रचित ।

मुंबई   ( महाराष्ट्र ) 

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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *दोहे*

          वासंतिक छवि(दोहे)

सुरभित वातावरण है,कोकिल-कंठ सुरम्य।

वासंतिक परिवेश में,प्रकृति-छटा अति रम्य।।


अलि-गुंजन अति प्रिय लगे,अति प्रिय सरित-तड़ाग।

पुष्प-गंध प्रिय नासिका,प्रिय आमों की बाग।।


सरसों से शोभा बढ़े,धरा-वस्त्र प्रिय पीत।

बार-बार मन यह कहे,आ जा प्यारे मीत।।


गुल गुलाब,टेसू खिले,आम्र-मंजरी गंध।

चहुँ-दिशि गंध प्रसार कर,बहती पवन-सुगंध।।


तन-मन प्रियतम याद में,विरही मन अकुलाय।

वासंतिक परिवेश भी,सके न अग्नि बुझाय।।


रवि-किरणें अति प्रिय लगें,चंद्र लगे बहु नीक।

पर,विरही मन को लगे,जैसे वाण सटीक।।


रति-अनंग का मास यह,मधु-मधुकर-मधुमास।

प्रकृति-छटा अति रुचिर है,प्रगति-प्रकाश-विकास।।

                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


 अपना जलवा ज़रा सा दिखा दीजिए

चाँद का शर्म से सर झुका दीजिए


कह सकूँ आपसे प्यार करता हूँ मैं

ऐसा माहौल तो कुछ बना दीजिए


 एक बीमारे-उल्फ़त है सामने

उसको उसकी दवाई पिला दीजिए


एक मुद्दत से डूबे हैं हम प्यार में

आज सारे ही पर्दे हटा दीजिए 


चोरी चोरी तो मिलते ज़माना हुआ

अब तो खुलकर जहां को बता दीजिए


हर तरफ़ तीरगी दिल के आँगन में है 

प्यार की शम्अ फिर से जला दीजिए 


दिल उदासी में *साग़र* है डूबा हुआ

प्यार की इक ग़ज़ल ही सुना दीजिए


🖋️विनय साग़र जायसवाल

14/2/2021

मन्शा शुक्ला

 परम पावन मंच का सादर नमन

      सुप्रभात

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


कहे वेद वाणी

नमो शूल पाणी

नमो सच्चिदानन्द

दाता पुरारी।

निराधार के हो

तुम आधार ज्योति

तुलसी के मानस के

मर्मज्ञ मोती

दानियों मे अग्रगण्य

औढ़रदानी महादेव

शम्भु है  शत्  शत् नमामि

नमामि,नमामि ,है शत् शत्

नमामि,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,।।


जय भोलेनाथ🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर

नूतन लाल साहू

 गूढ़ रहस्य


व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है

अंदर मन का खोल ताला

निज से पहचान हो जायेगा

वाणी सत्य और पावन हो तो

बढ़ गई,जीवन की शान समझो

जिसने भी छोड़ा,सुख दुःख का चिंतन

समझो,भगवान है उसके सनमुख

बांटे ज्ञान के हीरे मोती

इसमें कभी भी,कमी नहीं होती है

व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है

परदा दूर करे,आंखो का

भगवान से नाता जोड़

जग की ममता को जिन्होंने भी छोड़ा

भगवान का मिल जायेगा सहारा

सत्य नाम का प्याला,भर भर कर

खुद पीये और सबको पिलावे

सच कहता हूं,प्यारे

विषयो का विष मिट जाता है सारा

भक्ति बिना,प्रभु जी नहीं मिलता

मन का कष्ट,कभी नहीं टलता

मेरी तेरी के भरम,छोड़ दो

कण कण में,प्रभु जी नजर आयेगा

व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु, व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-10

रमारमन प्रभु रच्छा करऊ।

सरनागत-रच्छक तुम्ह अहऊ।।

     भुजा बीस रावन-दस सीसा।

     राच्छस सकुल हतेउ जगदीसा।।

प्रभु तुम्ह अहहु अवनि-आभूषन।

धनु-सायक-निषंग तव भूषन ।।

      भानु क किरन-प्रकास समाना।

       नाथ तेज तव धनु अरु बाना।।

तुमहिं करत निसि-तम कै नासा।

मद-ममता अरु क्रोध बिनासा।।

      जे नहिं करहिं प्रीति पद-पंकज।

       रहहिं मलिन-उदास ते सुख तज।।

रुचिकर लगै जिनहिं प्रभु-लीला।

मान-लोभ-मद प्रति मन ढीला ।।

       सो साँचा सेवक प्रभु होवै।

       करै पार भव-सिंधु,न खोवै।।

अरु बिचरै जग संत की नाई।

बिनू मान-अपमान लखाई ।।

      राम क सत्रु अहहि अभिमाना।

       जनम-मरन औषधी समाना।।

नाथ सील-गुन-कृपा-निकेता।

राम महीप दीन जन-चेता।।

       करउ नाथ रच्छा तुम्ह मोरी।

        देवहु अचल भगति मों तोरी।।

दैहिक-दैविक-भौतिक तापा।

राम क कथा हरै परितापा।।

       सुनै जे छाँड़ि कथा आसक्ती।

        ओहिका मिलै मुक्ति अरु भक्ती।।

राम-कथा बिबेक दृढ़ करई।

बिरति-भगति प्रबलहि बहु भवई।।

      मोह क नदी पार जन जावहिं।

       चढ़ि के तुरत भगति के नावहिं।।

दोहा-निसि-बासर तहँ अवधपुर,कथा राम कै होय।

        मगन सुनहिं पुरवासिनहिं,अंगदादि-हनु सोय।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

भारत के इक्कीस परमवीर ग्रन्थ का लोकार्पण


 *शौर्य की भाषा का कालजयी ग्रन्थ है भारत के इक्कीस परमवीर-वी के सिंह* 
इक्कीस एपिसोड बनाये जायेंगे-सुरेश चव्हाणके
सभी भाषाओं में अनुवाद कराया जायेगा-पी के मिश्रा

हिन्दी भवन दिल्ली में सम्पन्न हुआ भव्य लोकार्पण समारोह
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भारतीय सेना के अद्भुत शौर्य एवं पराक्रम की भाषा का अद्भुत अंतर्राष्ट्रीय काव्यग्रँथ है *भारत के इक्कीस परमवीर* । इस ग्रन्थ में लिखी कविताओं से हमारी पीढ़ियों में देशभक्ति का  संचार होगा।
 वैश्विक स्तर पर हिंदी के लिये समर्पित काव्यकुल  संस्थान (पंजी.)  द्वारा हिंदी भवन दिल्ली में आयोजित 'भारत के इक्कीस परमवीर' अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रह के लोकार्पण अवसर पर उपरोक्त विचार मुख्य अतिथि जनरल वी के सिंह(सेवानिवृत्त) केंद्रीय राज्य मंत्री सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने प्रकट किये।
जनरल वी के सिंह ने कहा इस ग्रन्थ के सम्पादक  एवं काव्यकुल संस्थान के अध्यक्ष डॉ राजीव कुमार पांडेय ने बड़ा श्लाघनीय कार्य कर देश की सेना का मान बढ़ाया है। इस प्रकार का कालजयी ग्रन्थ हिंदी साहित्य की अनुपम निधि है। 
कार्यक्रम के अध्यक्ष दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष महेश चन्द्र शर्मा पूर्व महापौर ने कहा भारत के परमवीरों की गाथा का   गायन करने वाला पहला काव्य ग्रन्थ है जहाँ एक साथ इक्कीस परमवीरों को पढ़ा जा सकता है। साथ ही कहा कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन काव्यकुल संस्थान के साथ हमेशा खड़ा रहेगा।
मुख्य समीक्षक ख्यातिलब्ध साहित्यकार, समालोचक ओम निश्छल ने *भारत के इक्कीस परमवीर* ग्रन्थ को ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हुए कहा कि किसी धर्म ग्रन्थ की तरह पुनीत एवं पावन है जो भारतीय सेना की शौर्य  गाथा को  उद्घाटित करता है। वीररस की कविताएं उत्साह का संचार करती हुई हमें देश के प्रति अपने कर्तव्य का बोध कराती हैं।
विशिष्ट अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल वी के चतुर्वेदी(से.नि.) ने  इस ग्रन्थ को अभूतपूर्व काव्य संग्रह की संज्ञा दी।
विशिष्ट अतिथि बी सी एफ के पूर्व एडिशनल डी जी पी के मिश्रा ने कहा कि इस ग्रन्थ का सभी सभी भाषाओं में अनुवाद कराया जाएगा। वरिष्ठ साहित्यकार इंदिरा मोहन, सुदर्शन चैनल के सी ई ओ सुरेश चौहाणके ने इसे संग्रहणीय ग्रन्थ बताया।
सुदर्शन चैनल के चेयरमैन सुरेश चौहान ने घोषणा की की इस किताब के आधार पर 21 एपिसोड बनाये जायेंगें।
जब मंच के द्वारा इस ग्रन्थ का लोकार्पण किया गया तब पूरा हिंदी भवन भारत माता की जय से गूँजने लगा।।
ग्रन्थ की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए संकलन कर्ता ओंकार त्रिपाठी ने बताया कि बीते वर्ष 22 नवम्बर में काव्यकुल संस्थान ने परमवीर चक्र विजेताओं पर 151 कवियों का ऑनलाइन कार्यक्रम किया था। उन्ही कवियों में से चयनित 101 कवियों की कविताओं को इस ग्रन्थ में संकलित किया गया है, जिसमें भारत अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, रूस, तंजानिया, दोहा कतर, केन्या आदि देशों के रचनाकार हैं।
इस लोकार्पण समारोह में भारत के कई राज्यों से आये वे साहित्यकार जिनकी कविताओं को इस ग्रन्थ में स्थान मिला ऐसे  51 साहित्यकारों को परमवीर सृजन सम्मान से सम्मानित किया गया।
इस ग्रन्थ में प्रकाशित कवियों से उनकी कविता का पाठ कराया गया। इस अवसर पर प्रीतम कुमार झा,सुधा बसोर गाजियाबाद,सुनीता पुनिया दिल्ली,मोहन संप्रास, फरीदाबाद
साधना मिश्रा लखनऊअनुपमा पांडेय "भारतीय" गाजियाबाद,यशपाल सिंह चौहान नई दिल्ली,रीता गौतम गोरखपुर,  सूर्यप्रकाश श्रीवास्तव "सूर्य",डॉ राम निवास'इंडिया', दिल्ली,नेहा शर्मा,नोयडा, नोएडा,राजेश कुमार सिंह "श्रेयस" लखनऊ,सुनील सिंधवाल 'रोशन' दिल्ली,ब्रज माहिर फरीदाबाद,दीपा शर्मा गाजियाबाद,आचार्य शुभेन्दु(प्रदीप)त्रिपाठी दिल्ली,पं. विनय शास्त्री 'विनयचंद', डॉ भोला दत्त जोशी, पुणे,जय प्रकाश शर्मा , नागपुर,डॉ अशोक कुमार 'मयंक' दिल्ली,कुसुमलता 'कुसुम', नई दिल्ली, कुमार रोहित रोज़, दिल्ली,सन्तोष कुमार पटैरिया महोबा, उत्तर प्रदेश,राजकुमार छापड़िया, मुंबई,सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव' महोबा उत्तर प्रदेश,डॉ पुष्पा गर्ग 'हापुड़',रजनीश स्वछन्द दिल्ली,गार्गी कौशिक, गाजियाबाद,मीरा कुमार मीरू, ग़ाज़ियाबाद ,मधु शंखधर 'स्वतंत्र' प्रयागराज,शरद कुमार सक्सेना "जौहरी " एडवोकेट कानपुर
आचार्य प्रद्योत पाराशर,डॉ उदीशा शर्मा, गाजियाबाद,वेदस्मृति ‘कृती’ पुणे ,इंजी०अशोक राठौर, ग़ाज़ियाबाद,विद्या शंकर अवस्थी ,कानपुर,  चंचल पाहुजा, गाजियाबादडॉ. अनिता जैन 'विपुला'  उदयपुर राजस्थान ,राजीव कुमार गुर्जर मुरादाबाद,सोमदत्त शर्मा 'सोम' नोयडा
,ज्ञानवती सक्सैना ‘ ज्ञान’जयपुर, राजस्थान, ऋतु यादव अबूधाबी,डॉ अंजू अग्रवाल,डॉ रजनी शर्मा 'चंदा',रांची झारखंड,कैप्टन(डॉ)ब्रह्मानन्द तिवारी 'अवधूत' मैनपुरी, अवनीश अग्रवाल दोहा क़तार,बृंदावन राय 'सरल' सागर,मध्य प्रदेश, अशोक कुमार जाखड़ हरियाणा, कुन्ती हरिराम झाँसी आदि इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बने।
इस अवसर पर डॉ राजीव कुमार पाण्डेय  को सम्पादन कार्य के लिये एवं ओंकार त्रिपाठी को संकलन कार्य के लिये भी सम्मानित किया गया।
आयोजन समिति के सदस्य यशपाल सिंह चौहान, ब्रज माहिर,राजकुमार छापड़िया, ब्रह्मप्रकाश वशिष्ठ 'बेबाक' अनुपमा पाण्डेय भारतीय, कुसुमलता कुसुम,दीपा शर्मा,गार्गी कौशिक, अशोक कुमार राठौर, राजेश कुमार सिंह श्रेयस, राजीव कुमार गुर्जर ने सभी अतिथियों का बुके , शाल एवं स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। कुसुमलता 'कुसुम'के द्वारा माँ वाणी की वंदना सुमधुर कंठ से की गयी। धन्यवाद ज्ञापन यशपाल सिंह चौहान किया। संचालन डॉ राजीव कुमार पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम का समापन वन्देमातरम के साथ हुआ।

प्रेषक 
डॉ राजीव कुमार  पाण्डेय
राष्ट्रीय अध्यक्ष
काव्यकुल संस्थान(पंजी)
मोबाइल 9990650570

मन्ना शुक्ला

 परम पावन मंच का सादर नमन

    ....   सुप्रभात

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ढ़ाई आखर प्रेम में, निहित जगत का सार।

प्रेम बिना रीता  लगें, जग जीवन आसार।।


त्याग समर्पण भावना,परहित सेवा भाव।

पावन प्रेम स्वरूप से, सजा रहें  मन गाँव।।


 प्रेम दिवस मनाइये, बाँध प्रीति की डोर।

द्वेष भाव मन के मिटें, नाच उठें मनमोर।


डगर प्रेम की कठिन है, पग पग बिखरें शूल।

प्रेम सुधा बरसात से ,खिलतें हिय में फूल ।।


 पावन बन्धन प्रेम के, बँध जाते भगवान।

प्रेम भाव महिमा बड़ी, करें सदा गुणगान।

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मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर

निशा अतुल्य

 पुलवामा दिवस

14.2.2021

💐🙏🏻💐


श्रद्धा सुमन 

समर्पित तुम्हें 

ओ वीर मेरे 


शहीदी दिन

पुलवामा के वीर

तुम्हें नमन  ।


कर्तव्य निष्ठ

अनुपम है शौर्य

समर्पित हैं ।


दुश्मन कांपे

तुम्हारे ही शौर्य से 

वीर सिपाही।


झुकाते शिश

मातृभूमि के लिए

खड़े हैं तने ।


तुम्हारी धरा

आसमान तुम्हारा

यहाँ से वहाँ ।


डोलते रहें

सागर को चीरते

तेज नजर ।


तुम्हें नमन 

समर्पित हैं भाव 

वीर नमन  ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः १३.०२.२०२१

दिवसः शनिवार

छन्दः मात्रिक

विधाः दोहा

विषयः वेदना

शीर्षक इठलाते लखि वेदना


इठलाते    लखि  वेदना , खल  सम्वेदनहीन।

 झूठ    लूट   धोखाधड़ी , धनी विहँसते दीन।।


लावारिस    क्षुधार्त  मन , देख   फैलते   हाथ।

आश हृदय कुछ मिल सके ,कोई बने तो नाथ।।


आज मरी लखि वेदना , दीन दलित अवसाद।

दया  धर्म  करुणा कहाँ ,  ख़ुद  होते  आबाद।। 


मरी  सभी  इन्सानियत , मरा   सभी   ईमान।

हेर  फेर  कर   लाश  में , नहीं कोई  पहचान।। 


देह   वसन  आवास  बिन , रैन  बसेरा   रात।

बंज़ारन    की  जिंदगी  , शीत  ताप बरसात।। 


दरिंदगी  चहुँओर  अब ,  लूट  रहे जग लाज।

कायरता     निर्लज्जता , निर्वेदित     समाज।। 


आहत जन   आतंक से  ,  देश द्रोह    अंगार।

मार   काट   दंगा  करे  , दया    वेदना   मार।।


फूट  रहे  निर्वेद  स्वर , लोभ  मोह मद स्वार्थ।

रिश्ते   नाते   सब  मरे , भूले   सब   परमार्थ।। 


मातु पिता गुरु श्रेष्ठ को , तजी आज सन्तान।

जिस माली पुष्पित चमन,दी उजाड़ मुस्कान।।


सीमा रक्षक  जो  वतन , देते निज बलिदान।

प्रश्नचिह्न उन शौर्य पर  , उठा    रहे  नादान।।


नाम मात्र  कलि वेदना,पा निकुंज मन पाद।

भूल सभी पुरुषार्थ को , तहस नहस बर्बाद।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक 

नई दिल्ली

एस के कपूर श्री हंस

*पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित।।*  *14 फरवरी*

*शीर्षक।।शहीद हमारे अमर महान हो गए।*

*।।मुक्तक।।*


नमन है उन शहीदों को जो

देश पर कुरबान हो गए।



वतन  के  लिए देकर जान

वो   बे जुबान  हो   गए ।।



उनके प्राणों  की  कीमत से

ही सुरक्षित है देश हमारा।



उठ  कर  जमीन  से   ऊपर

वो जैसे आसमान हो गए।।


*रचयिता।।। एस के कपूर*

*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।।

8218685464।।।।।।।।।।।।।


*।।रचना शीर्षक।।*

*।।प्रेम से जीत सकते हर*

*दिल का मुकाम हैं।।*


मन में   प्रेम     तो   सुख

बेहिसाब     है।

बस   क्रोध    कर    देता

काम खराब   है।।

क्रोध में जीत   नहीं मिले

है    हार   इसमें।

साथ आ गई      घृणा तो

सब     बर्बाद है।।


करो दुआ सबके लिए कि

दवा   समान    है।

महोब्बत का छोर तो जमीं

आसमान       है।।

जरूरत नहीं किसी    तीर

और तलवार की।

प्रेम से हम जीत सकते हर

दिल का मुकाम हैं।।


हम जन्म नहीं  पर  चरित्र

के    जिम्मेदार हैं।

हर किसी के मन  में चित्र

के जिम्मेदार    हैं।।

क्रोध लेकर   आता   शत्रु

और     चार   चार।

जीव में घटित हर  विचित्र

के    जिम्मेदार   हैं।।


किरदार करता है    फतह

हर    दिल       में।

चेहरे से मिलती  ना जगह

हर   दिल       में।।

प्रेम की डोर     बहुत   ही 

बारीकओ नाजुक।

इससे मिले रहने के वजह

हर     दिल      में।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464


 *मातृ पितृ पूजन दिवस।।।।।।*

*(क) हमारी माता।हमारी जीवनदायिनी।हाइकु*

1

माता हमारी

चांद सूरज जैसी

है वह न्यारी

2

माता का प्यार

अदृश्य वात्सल्य का

फूलों का हार

3

माता का क्रोध

हमारे    भले     लिये

कराता   बोध

4

घर की शान

माता रखती ध्यान

करो सम्मान

5

माँ का दुलार

भुला दे हर दुःख

चोट ओ हार

6

माता का ज्ञान

माँ प्रथम  शिक्षक

बच्चों की जान

7

घर की नींव

मकान   घर बने

लाये  करीब

8

त्याग  मूरत

हर दुःख  सहती

हो जो सूरत

9

प्रभु का रूप

सबका रखे ध्यान

स्नेह स्वरूप

10

घर की  धुरी

ममता दया रूपी

प्रेम से  भरी

11

आँसू बच्चों के

माँ ये देख न पाये

कष्ट  बच्चों  के

12

प्रेम निशानी

माँ जीवन दायनी

त्याग कहानी

*(ख)हमारे पिता।हमारे पालनहार।हाइकु*

1

पिता हमारे

संकट में रक्षक

ऐसे सहारे

2

पिताजी सख्त

घर    पालनहार

ऊँचा है  तख्त

3

पिता का साया

ये बाजार  अपना

मिले   ये  छाया

4

पिता    गरम

धूप में   छाँव जैसे

है भी   नरम

5

घर की धुरी

परिवार  मुखिया

हलवा पूरी

6

पिता जी माता

हमारे जन्मदाता

सब हो जाता

7

पिता साहसी

उत्साह का संचार

मिटे उदासी

8

पिता से धन

हो जीवन यापन

ऋणी ये तन

9

पिता कठोर

भीतर से कोमल

न ओर छोर

10

शिक्षा संस्कार

होते जब विमुख

खाते हैं मार

11

पिता का मान

न  करो अनादर

ये चारों धाम

*रचयिता। एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली* 9897071046/8218685464

नूतन लाल साहू

 त्याग


सभी सिद्धिया मिलेंगी

यदि मौन धारण किया

इस रहस्य की बात को

कौन समझ सका है

आता है सबका शुभ समय

फिर काहे को घबराता है

लिख के रख लें एक दिन

होगा,काम तुम्हारा

पर,जरा जरा सी बात पर

तू क्यों रोता है

त्याग के बिना

कुछ भी संभव नहीं है

क्योंकि सांस लेने के लिए भी

पहले सांस छोड़ना पड़ता है

सारी बातें, कह चुके है

तुलसी सूर कबीर

बचा खुचा सब लिख गए

केशव और रहीम

भूतकाल इतिहास है

वर्तमान है उपहार

जिसने झेला ही नहीं है

दुःख संकट संघर्ष

वह क्या खाकर पायेगा

जीवन में उत्कर्ष

सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से सीखो

स्वप्न में ही सब कुछ त्याग दिया

आया प्रलयंकारी संकट

पर ईमान को न बिकने दिया

वो नर से नारायण बन गया

याद करो समय बहुत बीत गया

पर उसे कौन भूल सका

त्याग के बिना

कुछ भी संभव नहीं है

क्योंकि सांस लेने के लिए भी

पहले सांस छोड़ना पड़ता है


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-9

निरगुन-सगुन राम कै रूपा।

भूप सिरोमनि राम अनूपा।।

     निज भुज-बल प्रभु रावन मारे।

     सकल निसाचर कुल संहारे।।

मनुज-रूप लीन्ह अवतारा।

अघ-बोझिल महि-भार उतारा।।

    जय-जय-जय सिय-राम गुसाईं।

     सरनागत-रच्छक,जग-साईं ।।

माया बस मग मा जे भटकहि।

नर-सुर-रच्छक जे मग अटकहि।।

    नाग-चराचर जे जग आहीं।

    नाथहि कृपा जबहिं ते पाहीं।।

भवहिं मुक्त ते तीनहुँ तापा।

जगत-बिदित नाथ-परतापा।।

      मिथ्या ग्यानी अरु अभिमानी।

       नाथ-कृपा-महिमा नहिं जानी।।

ताकर होहि अधोगति लोका।

होंहिं भले ते देव असोका।।

      तजि अभिमान भजै जे रामा।

       ताकर कष्ट हरैं श्रीरामा ।।

जिन्ह चरनन्ह कहँ सिव-अज पूजहिं।

बंदि-बंदि जिन्ह सुर-मुनि छूवहिं ।।

     छुइ चरनन्ह जिन्ह उतरी गंगा

      छुवत जिनहिं भइ नारि उमंगा।।

अस चरनन्ह कर करि अभिवादन।

मिलहिं अनंतइ सुख मन-भावन।।

      बेद कहहिं प्रभु बिटप समाना।

      मूल अब्यक्त जासु जग जाना।।

हैं षट कंध,त्वचा तरु चारी।

साखा जासु पचीसहि भारी।।

     पर्ण असंख्य सुमन तरु अहहीं।

      मीठा-खट्टा दुइ फल लगहीं।।

लता एक आश्रित तरु आहे।

फूलत नवल पल्लवत राहे।

      अस तरु,बिस्व-रूप भगवाना।

      नमन करहुँ अस तरु बिधि नाना।।

ब्रह्म अजन्म अद्वैत कहावै।

अनुभव गम्यहि बेद बतावै।

      तजि बिकार मन-बचन-कर्म तें।

      करि गुनगान सगुन ब्रह्म तें ।।

जे जन करहीं प्रभू-बखाना।

पावैं करुनाकर गुनखाना।।

दोहा-अस बखान करि राम कै, गए बेद सुरलोक।

         तुरत तहाँ सिव आइ के,बिनती करहिं असोक।

                            डॉ0हरि नाथ मिश्र

                                9919446372

निशा अतुल्य

 अर्जुन कहता"एक कुरुक्षेत्र मेरे अंदर भी है"

13.2.2021


मन के अंदर का झंझावत केशव

पूरा एक कुरुक्षेत्र मेरे अंदर भी है

ये खड़े हुए जो रणक्षेत्र में 

सब मेरे मन के अंदर ही हैं ।


मार इन्हें रण जीत लिया तो

राज्य मैं पा जाऊँगा 

पर हे केशव मार इन्हें मैं

अपने से गिर जाऊँगा ।


हँस केशव ने देखा अर्जुन को

बोले थोड़ा मुस्कुराकर 

हे पार्थ, क्यों द्रौपदी भूल गए 

जिसका अपमान भरी सभा हुआ ।


बैठे थे धुरंधर बहुत वहाँ

थे ओंठ सभी के सिले हुए 

कोई पितामह था उनमें 

और कोई गुरु महान वहाँ ।


सास ससुर सिंहासन बैठे थे

राज्य कर्मचारी सभी वहाँ

नहीं किसी के ओंठ हिले तब

तुम अपमानित झुके वहाँ।


राज्य के लिए नहीं लड़ो तुम

है अंदर जो कुरुक्षेत्र तुम्हारे 

ज्वाला उसकी कुछ तेज करो 

पति धर्म निभाओ अपना 

और कुरुक्षेत्र को खत्म करो ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *वसंत*

             ऋतुराज

हे वसंत ऋतुराज!तुम्हारा स्वागत है,

कोयल-कूक, भ्रमर-मृदु गुंजन।

दें तुमको आवाज़-तुम्हारा स्वागत है।।


फूल खिल गए गुलशन-गुलशन,

जिनपर करें तितलियाँ नर्तन।

बजे गीत के साज़-तुम्हारा स्वागत है।।


प्रकृति अनोखी सजी हुई है,

आम्र-मंजरी लदी हुई है।

हुआ प्रीति आगाज़-तुम्हारा स्वागत है।।


फूली सरसों छटा बिखेरे,

सजी धरा को लखें चितेरे।

मनमोहक महि-लाज-तुम्हारा स्वागत है।।


थलचर-जलचर-नभचर सब में,

नदी-तड़ाग-गिरि, वन-उपवन में।

रति-अनंग-साम्राज्य-तुम्हारा स्वागत है।।


तुम प्रतीक मधुमास सुहावन,

प्रेमी-प्रेयसि के मनभावन।

हो तुमहीं सरताज-तुम्हारा स्वागत है।।


तुम्हीं नियंता सब ऋतुओं के,

हो अभियंता रस-तत्त्वों के।

दस दिशि तेरा राज-तुम्हारा स्वागत है।।


मगन-मुदित जग हो पा तुमको,

मिलता सुख असीम है सबको।

खग-मृग सकल समाज-तुम्हारा स्वागत है।।

हे वसंत ऋतुराज!तुम्हारा स्वागत है ।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सवेरे-सवेरे

               *सवेरे-सवेरे*

कोइ आ के जगाया सवेरे-सवेरे।

प्रीति-आसव पिलाया सवेरे-सवेरे।।


 संग में ले अपने चरागे मोहब्बत।

आ,अँधेरा भगाया सवेरे-सवेरे।।


रहा द्वंद्व दिल में पता भी नहीं था।

आ,किसी ने जताया सवेरे-सवेरे।।


जो गया भूल था भी सबक जिंदगी का।

आ,किसी ने सिखाया सवेरे-सवेरे।।


बेवजह सोचते आँख जब लग गई थी।

 स्वप्न प्यारा सा आया सवेरे-सवेरे।।


अभी स्वप्न में जो रहा नक़्शा अधूरा।

आ,कसी ने बनाया सवेरे-सवेरे।।


 सधी जब नहीं थी वो ग़ज़ल रात मुझसे।

आ,किसी ने सधाया सवेरे-सवेरे।।


नाज था जिस महक पे दिले बागबाँ को।

 बह,हवा ने चुराया सवेरे-सवेरे ।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--

1.

हसीं ख़्वाब जो तुमने पाले हुए हैं

ये सब दाँव तो देखे भाले हुए हैं 

2.

बुलंदी पे हैं आप जिसकी  बदौलत

उसी पर ही तोहमत उछाले हुए हैं

3.

मिली पेट भर आज बच्चों को रोटी 

यूँ हीं तो नहीं हाथ काले हुए हैं 

4.

पुरानी हवेली पे हम रंग कर के

बुज़ुर्गों की अज़्मत सँभाले हूए हैं

5.

बराबर अँधेरों से की है लड़ाई

कहीं जाके तब यह उजाले हुए हैं

6.

 नज़र डाल तू चारा चुगने से पहले

 शिकारी कमन्दे भी  डाले हुए हैं

7.

कहा आज महफ़िल में सबने ही  *साग़र*

कई शेर तेरे निराले हुए हैं 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

कमन्दे-फंदे ,पाश , फंदेदार रस्सी

3/2/2021

कवि डॉ. भोला दत्त जोशी जी होंगे परमवीर चक्र सहित्य सृजन सम्मान से सम्मानित

 परमवीर सृजन सम्मान


हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही गौरवशाली इतिहास का साक्षी रहा है फिर भले ही वह गार्गी के ध्वनि तरंगों द्वारा शब्द संप्रेषण के सिद्धांत की बात हो, महान वैज्ञानिक शून्य एवं दशमलव पद्धति के जनक आर्यभट हों, संसार के प्रथम नाटककार आचार्य भरत, शुल्वसूत्र के जनक बोधायनाचार्य , आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रमुख वैद्य चरक और सुश्रुत, एकेश्वरवाद के जनक आदि शंकराचार्य , शांति और अहिंसा सिद्धांत के प्रमुख प्रसारक भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी जी। वीरता के इतिहास को स्वर्णिम पन्नों में लिखने वाले वीर राणा प्रताप , वीर योद्धा शिवाजी, रानी लक्ष्मी बाई आदि ने अपने समर्पण और बलिदानी कार्यों से देश के गौरव को बढ़ाया और कभी उसके मान को आंच नहीं आने दी। 


भारत की अंग्रेजी शासन से आजादी के बाद भी यही परंपरा कायम रखते हुए जिन वीरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर देश की आन बान और शान को अक्षुण्ण बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी उन्हें देश ने सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा।ऐसे 21 वीरों को

विशिष्ट सम्मान देने के उद्देश्य से डॉ राजीव पांडेय जी के मार्गदर्शन में दुनिया भर से 151 कवियों ने परमवीर चक्र विजेताओं पर स्व रचित कविताएं आभासी गोष्ठी के माध्यम से गूगल मीट पर पढ़ीं और जिसे फेसबुक पर सीधा प्रसारित भी किया गया था। यह कवि सम्मेलन 22 नवंबर 2020 को संपन्न हुआ था। गौरव की बात है कि उनमें से 101 कवियों के उन काव्यों को पुस्तक रूप प्रकाशित कर अद्भुत कार्य किया है। गाजियाबाद से प्रकाशित इस पुस्तक के संपादक डॉ राजीव पांडेय जी एवं संयोजक श्री ओंकार त्रिपाठी जी हैं। सेना का सम्मान हमारा परम कर्तव्य है। उन वीरों के शौर्य के कारण ही हम नागरिक अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं।


इस अंतरराष्ट्रीय हिंदी काव्य संग्रह में डॉ भोला दत्त जोशी, पुणे की दो कविताएं " परमवीर चक्र विजेताओं का हम शतश: वंदन करते हैं " और " सर्वोच्च बलिदानी वीर सपूत " प्रकाशित हुईं हैं जिनमें उन सभी वीरों की वीरगाथाओं का उल्लेख किया गया है। उनकी वीरता को नमन करते हुए कवि ने स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया है और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है।

प्रख्यात कवि डॉ. भोला दत्त जोशी


ने लिखा - 


'सूबेदार बानासिंह संघर्ष कर सियाचिन में विजयी हुए थे

शहीद अरुण के वज्रप्रहार ने पाकटैंक बहु ध्वस्त किए थे

परमवीरचक्र-सम्मानित सैनिक-रज का पूजन करते हैं

परमवीर चक्र विजेताओं का,हम शतशः वंदन करते हैं।'

एक अन्य रचना वह लिखते हैं - 


'भारत मां की रक्षा में जिन वीरों ने सर्वोच्च बलिदान दिया 

उनकी अमर गाथाओं को,परमवीर चक्र देकर मान दिया।

मेजर सोमनाथ कुमाऊं रेजीमेंट के पाक सीमा पर डटे रहे

एक एक कर दुश्मन को मारा अंत तक बहादुरी से डटे रहे'


हर्ष का अवसर है कि प्रकाशित पुस्तक ' भारत के इक्कीस परमवीर ' का विमोचन सेना के सर्वोच्च अधिकारी पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह राज्य मंत्री, सड़क परिवहन मंत्रालय, भारत सरकार के हाथों 14 फरवरी को दोपहर दो बजे दिल्ली के हिंदी भवन में देश एवं विदेशों से आए कई गणमान्य कवियों और सेना वरिष्ठ अधिकारी वर्ग की उपस्थिति में हो रहा है। परमवीर चक्र विजेताओं में ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव साक्षात् उपस्थित होने वाले हैं। डॉ भोला दत्त जोशी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए ' परमवीर सृजन सम्मान ' से सम्मानित किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि डॉ भोला दत्त जोशी की विभिन्न विधाओं में 15 किताबें एवं 19 सांझा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्हें पहले अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मानों मसलन अमेरिका के केंद्रीय विश्वविद्यालय से डी.लिट. से सम्मानित किया जा चुका है।

परमवीर चक्र विजेताओं पर यह एक अनूठा , अद्भुत और पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ है जो मील का पत्थर साबित होगा। देश सबसे ऊपर है इसी बात को लोगों के ध्यान में लाना और सेना के बलिदान को उचित सम्मान देने की भावना नई पीढ़ी में अंकुरित करना इसका उद्देश्य है।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-8

मिलि सभ सासु सियहिं नहवाईं।

भूषन-बसन दिव्य पहिराईं ।।

       बामांगी सीता बड़ सोहैं।

       चढ़े बिमान ब्रह्म-सिव मोहैं।।

गुरु बसिष्ठ मँगाइ सिंहासन।

मंत्र उचारि दीन्ह प्रभु आसन।।

       राम-सिंहासन सुरुज समाना।

        करै जगत बहु-बहु कल्याना।।

देखि राम-सिय बैठि सिंहासन।

जय-जय करहीं सुरन्ह-ऋसीगन।।

       प्रथम तिलक बसिष्ठ गुरु कीन्हा।

        बाद असीस द्विजन्ह सभ दीन्हा।।

सोभा दिब्य निरखि सभ माता।

करहिं आरती प्रभु सुख-दाता।।

      सभे भिखारी भे धनवाना।

       पाइ क दान,खाइ पकवाना।।

देखि सिंहासन पे रघुराई।

सुरन्ह दुंदुभी मुदित बजाई।।

      भरत-शत्रुघन-लछिमन भाई।

       अंगद-हनुमत अरु कपिराई।।

साथ बिभीषन लइ धनु-सायक।

छत्र व चवँर-कटार अधिनायक।।

       सोहैं रघुबर सँग सभ लोंगा।

       हरषहिं सुख लहि अस संजोगा।।

सीता सहित भानु-कुलभूषन।

पहिरि पितंबर-भूषन नूतन।।

       लगहिं कोटि छबि-धाम अनंगा।

        साँवर तन,धनु-बान-निषंगा।।

राम-रूप अस संकट-मोचन।

बाहु अजान व पंकज लोचन।।

       अस प्रभु-रूप बरनि नहिं जाए।

        राम-रूप अस संकर भाए।।

दोहा-धारि भेष तब भाँट कै, आए बेदहिं चारि।

         करन लगे प्रभु-वंदना,सुंदर बचन उचारि।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

नूतन लाल साहू

 कर्म


कर्म का,धर्म से अधिक महत्व है

क्योंकि,धर्म करके

भगवान से मांगना पड़ता हैं

पर,कर्म करने से

भगवान स्वयं,फल देता है

पिंजरा रूपी काया से

स्वांस का पंछी बोले

तन है नगरी, मन है मंदिर

परमात्मा है जिसके अंदर

दो नैन है,पाक समुंदर

ओ पापी,अपने पाप को धो लें

हाथ में आया,रतन

लेकिन कदर न जानी

जानबूझकर तू,अनजान बनता है

जैसे सदा,तू जिंदा रहेगा

खुद ही खुद को तुम पहचानो

और करो,अमृत पान

उलझी हुई है,जिंदगी तेरी

कर्म कर,फिर से सजा लेे

गुरु की मूर्ति से ही सीख लें

एकलव्य,श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया

माता पिता की सेवा कर

श्रवण कुमार का नाम,अमर हो गया

कर्म ही बनाता है

सपनों को साकार

जिसने भी सत्कर्म किया

उसका बेड़ा पार हुआ

कर्म का, धर्म से अधिक महत्व है

क्योंकि, धर्म करके

भगवान से मांगना पड़ता हैं

पर,कर्म करने से

भगवान स्वयं फल देता है


नूतन लाल साहू

डॉ निर्मला शर्मा

 भूकम्प


धैर्य धारिणी धरित्री का धैर्य जब

 खंड खंड हो जाता

धरती करती हो रौद्र कम्पन 

चहुँ ओर तांडव मच जाता

शोषण, दोहन और प्रतिबंधों की

 जब आँच सुलगती है

तब क्रोध की भीषण ज्वाला की 

लपटें धरती पे पहुँचती हैं

मानवीय तिरस्कार से आहत

जब वसुधा दहकती है

दारुण दुख का दरिया बन

भूकम्प में बदलती है

हो कम्प कम्प कम्पायमान

धरती करतल नृत्य करती है

सर्वत्र मचा है शोर और कोलाहल

मानव प्रजाति आर्त स्वर में क्रंदन करती है

ढह गई सभी अट्टालिकाएँ

सूनी पड़ी हैं सब वीथिकाएँ

सब नष्ट भृष्ट धरती करती है

गिरते कठपुतली से मानव

भूकम्प की लहर जब चलती है

चीत्कार मचा देता है भूकम्प

आपदा ये जब आती है

बचता न कोई इस त्रासदी से

आहत होता है जन जन

नष्ट कर जाता है सब कुछ

क्षण भर में ही मानव जीवन

ये प्राकृतिक आपदा बन

जाती बड़ी दुखदाई

तब मस्तक पर चिंता की रेखा खिंच

ये बात समझ में आई

धरती है पूज्या नहीं ये भोग्या

न करो तिरस्कार इसका तुम

है मानव जाति का सुदृढ़ आधार

रखो ध्यान इसका तुम


डॉ निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

सुनीता असीम

 मन जब भी घबराता है।

तेरा साथ    सुहाता  है।

****

तू है मेरे तन      मन में।

जन्म जनम का नाता है।

****

तुझमें मैं  मुझमें  है  तू।

फिर क्यूँ हाथ छुड़ाता है।

****

दूर कभी पास हुए तुम।

रूप तेरा भरमाता है।

****

हम दोंनो जब मिल बैठें।

बातें  खूब     बनाता है।

****

तुझ बिन श्याम अधूरी मैं।

छोड़ मुझे क्यूँ  जाता है।

****

मिलता तू उसको केवल।

रोकर सिर्फ बुलाता है।

****

सुनीता असीम

१२/२/२०२१

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-7

भवन गए तब रघुकुल-नायक।

करुना-सिंधु राम,सुखदायक।।

      देखन लगे अटारिन्ह चढ़ि सब।

      साँवर रूप सराहहिं अब-तब।।

साजे रहे सभें निज द्वारा।

कनक-कलस सँग बन्दनवारा।।

      पुरे चौक गज-मुक्तन्ह द्वारे।

      गलिनहिं सकल सुगंध सवाँरे।।

चहुँ-दिसि गीति सुमंगल गावैं।

बाजा-गाजा हरषि बजावैं ।।

     जुबती करहिं आरती नाना।

      गावत गीति सुमंगल गाना।।

राम-आरती नारी करहीं।

सेष-सारदा सोभा लखहीं।।

      नारि कुमुदिनी,अवध सरोवर।

        सूरज बिरह रहे तहँ रघुबर।।

अस्त होत रबि लखि ते चंदा।

नारी कुमुद खिलीं सभ कंदा।।

      हरषित करत सभें भगवाना।

      कीन्ह भवन निज तुरत पयाना।।

जानि मातु कैकेई लज्जित।

प्रथम मिले मन मुदित सुसज्जित।।

      बहु समुझाइ राम तब गयऊ।

       आपुन भवन जहाँ ऊ रहऊ।।

जानि घड़ी सुभ सुदिन मनोहर।

द्विजन बुलाइ बसिष्ठ सनोहर।।

      कहे बिठावउ राम सिंहासन।

       पावहिं राम तुरत राजासन।।

सुनत बसिष्ठ-बचन द्विज कहहीं।

राम क तिलक तुरत अब भवहीं।।

     सुनत सुमंत जोरि रथ-घोरे।

     नगर सजा बोले कर जोरे।।

मंगल द्रब्यहिं अबहिं मँगायो।

अवधपुरी बहु भाँति सजायो।।

     सुमन-बृष्टि कीन्ह सभ देवा।

     सोभा पुरी चित्त हरि लेवा।।

राम तुरत सेवकन्ह बुलवाए।

सखा समेत सबहिं नहवाए।।

     पुनि बुलाइ भरतहिं निज भ्राता।

     निज कर जटा सवाँरे त्राता ।।

बंधुन्ह तिनहुँ सबिधि नहवाई।

गुरु बसिष्ठ कहँ सीष नवाई।।

     आयसु पाइ तासु रघुराऊ।

     छोरि जटा निज तहँ पसराऊ।।

पुनि प्रभु राम कीन्ह असनाना।

भूषन-बसन सजे बिधि नाना।।

दोहा-अनुपम छबि प्रभु राम कै, भूषन-बसनहिं संग।

        लखि-लखि छबि अभिरामहीं,लज्जित कोटि अनंग।।

                        डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

नूतन लाल साहू

 अभिमान छोड़ दें प्यारे


आसमान में उड़ने वाले

धरती मां को पहचान ले

हमेशा नहीं रहना है जग में

रहना है,दिन चार

अभिमान को छोड़ दें प्यारे

हे पिंजरे की,ये मैना

भजन कर लें,प्रभु श्री राम की

मिलता है सच्चा सुख केवल

प्रभु जी के चरणों में

अभिमान को छोड़ दें प्यारे

चाहे बैरी सब संसार बने

जीवन चाहे,तुझ पर भार बने

चाहे संकट ने,तुझे घेरा हो

चाहे चारो ओर अंधेरा हो

बाल न बांका कर सकें कोई

जिसका रक्षक कृपा निधान हो

अभिमान को छोड़ दें प्यारे

जो मिला है,वह हमेशा

पास नहीं रह पायेगा

मै,मेरा यह कहने वाला

मन किसी का है दिया

मै नहीं,मेरा नहीं

यह तन,किसी का है दिया

देने वाला ने दिया है

वह भी दिया,किस शान से

सूखी जीवन का,क्या राज है

पहले यह जान लीजिए

अभिमान छोड़ दें प्यारे

अंत समय,पछताएगा

गया समय,नहीं आयेगा

डरते रहो यह जिंदगी

कहीं बेकार न हो जाए

अभिमान हरै,सुख शांति

हर क्षण,इसे याद रख

अभिमान छोड़ दें प्यारे

आसमान में उड़ने वाले

धरती मां को पहचान ले

हमेशा नहीं रहना है,जग में

रहना है दिन चार

अभिमान को छोड़ दें प्यारे


नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *विषय।। बाग।।बगीचा।।उपवन।।*

*रचना शीर्षक।।हम सब फूल हैं*

*माँ भारती के उपवन के।।*

*विधा।।मुक्तक।।*

मेरा देश महान इक    गुलशन

बाग    बगीचा    है।

मराठी गुजराती जैन सिंधी  ने

मिल कर सींचा है।।

इसके फूलों के       रखवाले हैं

सिख  हिन्दू  ईसाई।

मुस्लिमों ने भी      देकर   साथ

गोरों से     खींचा है।।


माँ भारती का     यह     उपवन

एकता की मिसाल है।

हर पत्ता बूटा    दिखता    बहुत

ही       खुशहाल   है।।

एक फूल ना  तोड़ने    देंगें   इन

नापाक चालबाजों को।

हरियाली    इसकी       हर   रंग 

बहुत     बेमिसाल  है।।


हमारी  मातृभूमि    की   बगिया

विश्व में चमक रही है।

महक इसकी बहुत      दूर  तक     

दमक     रही       है।।

तिनका   पत्ता   डाली   महफूज

हर भारतीय के हाथ में।

छू न पायेगा बाड़े की   तार  यही

इसकी धमक     रही है।।


बेला चंपा चमेली   गुलाब    मिल

कर साथ  साथ हैं।

गेंदा जूही कनेर    मोगरा     लिये

हाथों में   हाथ  हैं।।

दिल बहुत   विशाल    बगिया का

दे चैन आराम दर्द में।

ध्येय देना शीतल छाया ओ करना

बस     परमार्थ    है।।


चारों ओर   आम    नीम    बरगद

की       दीवार     है।

चिनार चीड़ के दरख़्त   रोकते हर

तीरो     तलवार    हैं।।

गुलमोहर चंदन वृक्ष    महका   रहे

इस   बाग           को।

मातृभूमि माँ भारती   का    उपवन

चहक रहा बार बार है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"।।बरेली*

मो 9897071046/8218685464

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


गर्दिश में आ गये हैं क्या आज सब सितारे 

डूबी है नाव अपनी  आकर  के ही किनारे 


आवाज़ देते देते साँसें ही थम गयीं थीं

कोई भला कहाँ तक बोलो उन्हें  पुकारे 


जब मौसम-ए-बहाराँ में साथ तुम नहीं हो 

बेरंग  लग रहे हैं दिल को सभी नज़ारे


बचता भी मैं कहाँ तक उस शोख की नज़र से 

तक तक के तीर उसने मेरे जिगर पे मारे


राह-ए-सफ़र में इतनी दुश्वारियाँ थीं लेकिन

*मंज़िल पे आ गये हम बस आपके सहारे*


कैसे बताओ हमको यारो  सुकून आये 

नाराज़ जब हैं वोही जो खास हैं हमारे 


इस बात का ही *साग़र* दिल को मलाल होता

बरसे थे संग हम पर हाथो से ही तुम्हारे 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

31/1/2021

मधु शंखधर स्वतंत्र

 गज़ल

122 122 122 122

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गुमां आप दिल में जो पाले हुए हैं।

यूँ हीं अंजुमन से निकाले हुए हैं।।


बदी आज भी दरबदर है भटकती,

 वफा़ की जुबा़ँ पर भी ताले हुए हैं।।


बसर करना मुश्किल रहा साथ जिसके,

खुदी आज उसके हवाले हुए हैं।।


अँधेरों में घिर के बहुत की मशक्कत,

कहीं जाके तब यह उजाले हुए हैं।।


तुम्हें ढूँढ़ते हर नगर हर गली में,

चलें कैसे पैरों में छाले हुए हैं।।


जिन्हें कर पराया किया दूर खुद से,

वही आज हमको सम्हाले हुए हैं।।


ज़माना हमें *मधु* करे याद कैसे

यहाँ हीर राँझा निराले हुए हैं।।

*मधु शंखधर स्वतंत्र*

*प्रयागराज*

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गजराज*(दोहे)

सज-धज कर शोभन लगे,चलत-फिरत गजराज।

मस्त चाल मन-भावनी,वन्य-जीव-सरताज ।।


ओढ़ दुशाला झालरी,पग-पहिरावा लाल।

मग में झूमत जा रहे,जैसे वे ससुराल ।।


सूँड़ लचीला तो रहे,पर वह गज-हथियार।

तोड़े झटपट तरु-शिखा,डाले मुख के द्वार।।


भीमकाय ये जंतु गज,रखें समझ बेजोड़।

स्वामिभक्त होते सदा,शत्रु-मान दें तोड़।।


युद्ध-भूमि में जा करें, अद्भुत कला-कमाल।

स्वामी की रक्षा करें,बनकर रण में ढाल।।


जंगल के हैं जीव ये,पर समझें संकेत।

निज कुल की रक्षा करें,रहकर सदा सचेत।।


रहें सदा ये झुंड में,करके गठित समाज।

रखें सोच नर भाँति गज,धन्य-धन्य गजराज।।

              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

निशा अतुल्य

 बसंत

12.2.2021

हाइकु


खोल नयन

देखे बसंत मुस्काय

उर्जित धरा।


कलियाँ खिली

धीरे से फूल बनी

हँसती धरा।


भँवर आए

मधुर राग सुनाए

कली मुस्काई ।


बाण चलाए

काम,रति हर्षाए 

उन्माद छाया ।


प्रेम की ऋतु

प्रणय निवेदन 

करें  हैं सभी ।


हैं ऋतुराज 

बसंत सुकुमार

हर्षित है मन ।


भूल सबको

अब ढूंढ स्वयं को

कुछ न यहाँ ।


हो आल्हादित

कर मन शृंगार 

हो सुवासित ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *माँ*(दोहे)

माता का वंदन करें,पूजें चरण पखार।

पालन-पोषण माँ करे,देकर ममता-प्यार।।


स्वयं कष्ट सह-सह करे,निज सुत का उत्थान।

बेटा-बेटी उभय का,रखे  बराबर  ध्यान ।।


जीव-जंतु के जन्म का,केवल माँ आधार।

इसी लिए इस सृष्टि पर,माँ का है उपकार।।


माँ की कोख कमाल की,अद्भुत प्रभु की देन।

राम-कृष्ण को जन्म दे,रावण-कंस-सुसेन।।


मूर्ति यही है त्याग की,रखे न निज सुख-ध्यान।

हे जननी तुम धन्य हो, तेरा  हो   यश-गान ।।


माँ के ही व्यवहार से,निर्मित होय चरित्र।

नहीं हृदय यदि स्वच्छ है,हों संतान विचित्र।।


माँ चाहे जैसी रहे, माँ  है  ईश्वर-रूप ।

पूजनीय है माँ सदा,इसका रूप अनूप।।

            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

अखिल भारतीय साहित्यिक मंच)सहरसा


 *साहित्य साधक मंच के द्वारा कवि सम्मेलन का शानदार आयोजन*


10 फरवरी 2021 के संध्या साहित्य साधक (अखिल भारतीय साहित्यिक मंच)सहरसा ,बिहार द्वारा आहूत आनलाईन काव्य गोष्ठी जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि साहित्यकार डॉ. राणा जयराम सिंह 'प्रताप' ने की।

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री माधुरी डड़सेना 'मुदिता' जी थी l कार्यक्रम का श्री गणेश अध्यक्ष के द्वारा मां शारदे के प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन एवं विशिष्ट अतिथि के द्वारा माल्यार्पण के साथ हुआ, शिव प्रकाश साहित्य जी के शानदार संचालन में

कवयित्री डॉ. लता जी द्वारा सरस्वती वंदना की प्रस्तुति की गई।

प्रथमतः हरियाणा से उपस्थित सरला कुमारी द्वारा  किसान पर एक कविता प्रस्तुत की गई - 

"लिखती मैं किसान के लिए, लिखती मैं इंसान के लिए।

नहीं लिखती मैं धनवान के लिए, नहीं लिखती मैं भगवान के लिए।"

लखनऊ उत्तर प्रदेश से सरिता त्रिपाठी ने अपने कविता के माध्यम से कहा-प्रियतम तेरी याद में, हाल हुआ बेहाल। नैनो से आंसू झरे, तुमको नहीं ख्याल।।

छत्तीसगढ़ से आरती मैहर गीत ने श्रृंगार रस की एक कविता:-  देखें मैंने हैं कई सपने, होते उनमें मेरे अपने। पूरे कहां होते सपने,दगा दे जाते हैं अपने।

रायबरेली उत्तर प्रदेश से गीता पांडे अपराजिता ने प्रस्तुत किया:-सागर की गहराई में, जैसे कोई फूल खिला हो। कौन कहेगा अबला नारी, सचमुच तू तो सबला हो। वहीं इस कार्यक्रम में डॉ. विनय सिंह, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश

,सुरंजना पाण्डेय, पश्चिमी चंपारण बिहार,प्रीति चौधरी "मनोरमा", बुलन्दशहर, उत्तरप्रदेश,अंजना सिन्हा रायगढ़,संदीप यादव, अधिवक्ता, उच्च न्यायालय-इलाहाबाद,डॉ लता,नई दिल्ली,रेखा कापसे "होशंगाबादी" म.प्र.,नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई,जितेन्द्र कुमार वर्मा खैरझिटीया छत्तीसगढ़,संतोष कुमार वर्मा"कविराज' कोलकाता,डॉ राजश्री तिरवीर, बेलगांव कनार्टक,अमर सिंह निधि, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश,सुशीला जोशी, विद्योतमा, मुजफ्फरनगर,राधा तिवारी 'राधेगोपाल' उत्तराखंड,प्रियदर्शनी राज,जामनगर गुजरात,संतोष अग्रवाल,मध्य प्रदेश

मीना विवेक जैन, मंच के राष्ट्रीय सलाहकार सपना सक्सेना दत्ता, तोरणलाल साहू, अमित कुमार बिजनौरी, केवरा यदु मीरा, अनुश्री, सहित कई प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।


वही दूसरे चरण में वर्तमान राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शशिकांत शशि जी को राष्ट्रीय महासचिव, तथा सियाराम यादव मयंक को राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया साथ ही राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अमर सिंह निधि एवं सह मीडिया प्रभारी अमन आर्या को बनाया गया।

अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि आदरणीया माधुरी डड़सेना 'मुदिता' जी ने कहा:- बड़े हर्ष की बात है, कि आज साहित्य साधक मंच अपने ऊंचाई को छूने के लिए लालायित है,और इस दृष्टिकोण से सप्ताह भर में कई विधाओं में साहित्यकार सृजन कर रहे हैं। उन्होंने नवांकुर साहित्यकारों के प्रति विशेष स्नेह व्यक्त किया जो अपने जिज्ञासानुरूप अपने भावों को सर्जन विधा में स्थान देकर आगे बढ़ा रहे हैं । उन्होंने साहित्य साधक मंच के मुख्य अतिथि पद के रूपमें सबों के प्रति साधुवाद एवं आभार जताया। अध्यक्षीय उद्बोधन में आदरणीय डॉ. राणा जयराम सिंह 'प्रताप' ने साहित्यकारों को मंचीय अनुशासन का अनुपालन करते हुए निरन्तर साहित्य-साधना करते रहने और मंच को प्रगति-शिखर की ओर गतिमान करने की अपील की। अंत मेंमंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्ण कुमार क्रांति ने धन्यवाद ज्ञापन में मंच के समस्त साहित्यकारों के प्रति उनके योगदान के लिए साधुवाद और बहुत-बहुत आभार व्यक्त किया।

सुनीता असीम

 विषय-मां पर दोहे


मां की सेवा सब करो, कर दे बेड़ा पार।

तीन देव से है बड़ी,इसपर सब बलिहार।

***

मत मांगे तू भीख यूँ, करके हाथ पसार।

दुख भरे सुख करनी मां,महिमा अपरम्पार।

***

फैला देती रोशनी,देखे जिस जिस ओर।

मात कृपा हो हर दिशा,न ओर मिले न छोर।

***

आंचल में हो दुख भले, सुख की करे बयार।

महकाती है सृष्टि यूँ, जैसे  दाल  बघार।

***

जितनी हो सेवा करो,जब तक टूटे तार।

पछताना मत बाद में, दिना बचे हैं चार।

***

सुनीता असीम

११/२/२०२१

सुषमा दिक्षित शुक्ला

 बासन्ती विरह 


सुनु आया मधुमास सखि,

 लगा हृदय बिच बाण ।


देहीं तो सखि  है यहाँ ,

 प्रियतम ढिंग हैं प्राण ।


केहिके हित संवरूं सखी,

 केहि हित करूं सिंगार।


 बाट निहारूं रात दिन ,

क्यूँ सुनते नाहि पुकार।


 ऋतु बासन्ती सुरमई ,

पिया मिलन का दौर ।


 पियरी सरसों खेत में ,

बगियन  में है  बौर ।


कैसो ये मधुमास सखि,

जियरा  चैन ना पाय ।


नैनन से आंसू  झरत ,

उर बहुतहि अकुलाय ।


 पिय कबहूँ तो आयंगे ,

वापस घर की राह ।


बाट निहारूँ दिवस निसि ,

उर धरि उनकी चाह।


 सबके प्रियतम संग हैं ,

बस मोरे हैं परदेस।


 जियरा तड़पत रात दिन ,

याद नहीं कछु शेष ।


मन मेरो पिय सँग  है,

 ना भावे कोई और ।


वो दिन सखि कब आयगो ,

 पिय सिर साजे मौर ।


 रात दिवस  नित रटत हूँ,

 मैं उनही को नाम ।


उनके बिन ना चैन उर,

ना  मन को आराम ।


डर लागत है सुनु सखी ,

वह भूले तो नाह ।


 हम ही उनकी प्रेयसी ,

हम ही उनकी चाह।


ऋतु बासंती सुनु ठहर ,

जब लौं  पिया ना आय ।


तू ही सखि बन जा मेरी,

 प्रियतम  दे मिलवाय ।


 सुषमा दिक्षित शुक्ला

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *मधुमास*(चौपाइयाँ)

आया अब मधुमास सुहाना।

प्रियजन को है गले लगाना।।


आम्र-मंजरी महँ-महँ महँके।

खग-कुल प्रमुदित होकर चहके।।


मदमाते भौंरे मड़राएँ।

कलियाँ भी खिल-खिल इतराएँ।।


कमल-पुष्प सँग सर अति शोभन।

जिन्हें देख हर्षित हों लोचन।।


कोयल-बोल लगे मन-भावन।

प्रकृति सुंदरी-रूप सुहावन।।


प्रियतम की यादें हैं आतीं।

कहें लताएँ भी बलखातीं।।


कामदेव भी वाण चलाएँ।

सृष्टि-धर्म-दायित्व निभाएँ।।


है मधुमास तुम्हारा स्वागत।

अर्चन-वंदन हे अभ्यागत।।


थलचर-जलचर-नभचर सब में।

प्रेम-संचरण हो सब उर में ।।

           "©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 माँ

           *माँ*

देती है जन्म माँ ही,तुमको भी और हमको,

कर लो सफल ये जीवन,छू-छू के उस चरण को।।


सह-सह के लाख विपदा,माँ ने तुम्हे है पाला,

गीले में खुद को रख कर,पोषा है निज ललन को।।


त्रिदेव को सुलाया,पलने पे माँ की ममता,

सीता को माँ है माना,शत-शत नमन लखन को।।


माता विधायिका है,है रक्षिका व पालिका,

झुकता रहे ये मस्तक,उसके ही नित नमन को।।


निर्मित है होती संस्कृति,माँ के ही संस्कारों से,

उनपर करो ही अर्पण,नित प्रेम के सुमन को।।


माँ ही तो होती लक्ष्मी,दुर्गा-सरस्वती भी।

हो प्रेम-वारि अर्पित,जीवन के इस चमन को।।


चिंतन व धर्म-कर्म की,है केंद्र-बिंदु माँ ही,

होने न व्यर्थ देना,उस ज्ञान-कोष-धन को।


माता से श्रेष्ठ होता,कोई नहीं जगत में,

रखना सदा सुरक्षित,शिक्षा-प्रथम-सदन को।।

                    © डॉ0हरि नाथ मिश्र

                      9919446372

मौनी अमावस्या आशुकवि नीरज अवस्थी

 आज मौनी अमावस्या के उपलक्ष्य में मेरे द्वारा रचितकुदरती दोहे--


घन के उर से कर रही रिमझिम बूंदे गान।

बिना भेद के कर रही अभिसिंचित श्रीमान।

भीग गया तन मन मेरा भीग गये है प्रान।

मौन अमावस्या सुखद हुआ करो स्नान।


मौन धरो दानी बनो जब तक यह में प्रान।

गुरुवारी मौनी पड़ी करो दान स्नान।

दान पुण्य के साथ ही करो प्रेम व्यवहार।

जन जन में उपजाइये शिक्षा प्रद सहकार।

ठिठुरन आयी लौट कर लगे सभी को शीत।

जीवन मे सबको मिले सीधा सच्चा मीत।

राग द्वेष मिट जाय सब संकट का हो अंत।

सबको शुभ कारी लगे सुंदर सुखद बसन्त।

सोमवती मौनी अमावस्या पर विशेष-

आत्मीय मित्रो आज सोमवती मौनी अमावस्या पर मौन व्रत एवम मौन रहते हुए स्नान का महत्व है।स्मृतिशेष मेरी पूज्य माता जी का कथन है कि "याक चुप्प म हजार बलाई टरती है" वास्तव में आप के पास सबसे बड़ा साधन अस्त्र शस्त्र है कोई तो वह मौन है अतः जब भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़े मौन आपको सारी समस्याओं से निजात देकर लक्ष्य तक पहुंचाएगा।आप सभी लोग सदैव प्रसन्न रहे।

आशुकवि नीरज अवस्थी मो0-9919256050

💐💐💐💐💐

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।। सूरत नहीं सीरत मायने रखती है*

*किरदार की जिन्दगी में।।*


जैसा देते आप     यहाँ वैसा

ही लौट कर    आता है।

विश्वास     घाती एक   दिन

खुद भी धोखा खाता है।।

आज नहीं तो    कल   मिल

जाता    है     छल  उन्हें।

आदर देने वाला ही   सामने

से      सम्मान   पाता है।।


तिल तिल कर    मरना  नहीं

मुस्करा कर ही जीना है।

वास्तविक आनंद  जीवन में

मेहनत  खून  पसीना है।।

छोड़ कर देखो    अहम   को

मंत्र जीने का आ जायेगा।

मत गवांना   इस जीवन  को

एक अनमोल नगीना है।।


कभी बहुत मुश्किल तो कभी

आसान    भी है  जिन्दगी।

कश्मकश भी बहुत  तो  कभी

नादान      भी है जिन्दगी।।

लाखों रंग समेटे हुए  जिन्दगी

अपनी   इस        जंग में।

हर   सवाल   का जवाब लिये

ऐसा इम्तिहान है  जिंदगी।।


हार और   जीत     तो  हमारी

सोच    का   किस्सा  है। 

गर मन में ठान लिया तो जीत

बनती हमारा हिस्सा है।।

वक्त की कद्र करो   तो  समय

करता  हमारी  इज़्जत।

किरदार की  खूबसूरती से  ही

मिटता    हर घिस्सा है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

बच्चों के लिए स्कूल खुलने पर छोटी सी रचना - "आहिस्ता ही सही गुलज़ार हुई बगिया को देख, था तिमिर घिर चुका दानिस्ता तदबीर को देख"- दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

 बच्चों के लिए स्कूल खुलने पर छोटी सी रचना

            ______गज़ल_____

आहिस्ता ही सही गुलज़ार हुई बगिया को देख,

था तिमिर घिर चुका दानिस्ता तदबीर को देख।


अब कोरोना का ये दरिया थम गया है जहां में,

चल रहे थे कशमकश सारे हर नशेमन को देख।


खिल उठें  हैं  चेहरे नज़ारे  हैं अदीवा देख सारे,

है हक़ीकत शिक्षा का मंदिर उसकी अडीना को देख।


अब ये खुशियां वाबस्ता हैं बच्चों सी जागीर से,

दामन सारा भीग गया मुदर्रिस के हौसले को देख।


है ये गौरव शिक्षा जनसलभ कायद़े-कानून से

फैले गांव से शहरों तलक अब सफ़ीने को देख।


हम तो सजदे में खड़े हैं तहज़ीब के पेश-ए- नज़र,

फैली खुशियां अरुणिमा है व्याकुल मुदर्रिस को देख।


    दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल


गुलज़ार - खिला हुआ बाग-बगीचा

दानिस्ता तदबीर - सोच कर निकाली हुई युक्ति

नशेमन - घर, घोंसला

आदीवा - सुखद, कोमल

अडीना - पवित्र, गुडलक

वाबस्ता - जुड़ी हुई

मुदर्रिस - शिक्षक या अध्यापक

सफ़ीने - आदेश पत्र, समन, नाव, कश्ती

अरुणिमा - लालिमा




डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-6

भेंटेउ राम सत्रुघन भाई।

लछिमन-भरतहिं प्रीति मिलाई।।

     धाइ भरत सीता-पद धरेऊ।

    अनुज शत्रुघन साथहिं रहेऊ।।

सभ पुरवासी राम निहारहिं।

कौतुक की जे राम सराहहिं।।

     अगनित रूप धारि प्रभु रामा।

      मिलहिं सबहिं प्रमुदित बलधामा।।

सभकर कष्ट नाथ हरि लेवा।

हरषित सबहिं राम करि देवा।।

     रामहिं कृपा पाइ तब छिन मा।

     रह न सोक केहू के मन मा ।।

बिछुड़ल बच्छ मिलै जस गाई।

मातुहिं मिले राम तहँ धाई ।।

     मिलहिं सुमित्रा जा रघुराई।

      कैकइ भेंटीं बहु सकुचाई।।

लछिमन धाइ धरे पद मातुहिं।

कैकेई प्रति रोष न जातुहिं ।।

     सासुन्ह मिलीं जाइ बैदेही।

      अचल सुहाग असीसहिं लेही।।

करहिं आरती थार कनक लइ।

निरखहिं कमल नयन प्रमुदित भइ।।

    कौसल्या पुनि-पुनि प्रभु लखहीं।

     रामहिं निज जननी-सुख लहहीं।।

जामवंत-अंगद-कपि बीरा।

लंकापति-कपीस रनधीरा।।

     हनूमान-नल-नील समेता।

     मनुज-गात भे प्रभु-अनुप्रेता।।

भरतहिं प्रेम-नेम-ब्रतसीला।

बहुत सराहहिं ते पुर-लीला।।

      तिनहिं बुलाइ राम पुनि कहहीं।

       गुरु-पद-कृपा बिजय रन पवहीं।।

पुनि प्रभु कहे सुनहु हे गुरुवर।

ये सभ सखा मोर अति प्रियवर।।

      इनहिं क बल मों कीन्ह लराई।

       रावन मारि सियहिं इहँ लाई।।

ये सभ मोंहे प्रान तें प्यारा।

प्रान देइ निज मोहिं उबारा।।

      जदपि सनेह भरत कम नाहीं।

       इन्हकर प्रेम तदपि बहु आहीं।।

दोहा-सुनत बचन प्रभु राम कै, मुदित भए कपि-भालु।

         छूइ तुरत माता-चरन, छूए राम कृपालु ।।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                             9919446372

नूतन लाल साहू

 रहस्य


अच्छा स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है

संतुष्टि सबसे बड़ा संपत्ति

मुस्कुराहट सबसे बड़ी ताकत, और

वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता होता है

अजर, अमर,अविनाशी प्रभु जी

बिगड़े काम बनाता है

एकाध यदि न हो पाया तो

इंसान,क्यूं शोर मचाता है

अगर कुछ अहित हो भी जाए तो

खो मत देना होश

हरि की इच्छा समझकर

कर लेना संतोष

प्रारब्धो का योग फल है

दुःख सुख की सौगात

आम आदमी यूं लगा है

जैसे कि पिचका आम

संतुष्टि सबसे बड़ा संपत्ति और

मुस्कुराहट सबसे बड़ी ताकत है

होनी तो होकर ही रहेगा

बदल सका न कोय

चाहे कितना ही निरमा मलो

कौव्वा,हंस न होय

जिन प्रश्नों का हल,इंसान को

समझ में नहीं आ रहा है

उन्हें छोड़ दें,प्रभु जी पर

पर,समय बर्बाद न कर

समय आयेगा समय पर

इसको निश्चित जान

एक तुम्हारे ही नहीं है

सबके दाता है,प्रभु श्री राम

अच्छा स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है

संतुष्टि सबसे बड़ा संपत्ति

मुस्कुराहट सबसे बड़ी ताकत और

वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता होता है


नूतन लाल साहू

नूतन लाल साहू

 आलस्य


जिसने कहां कल

दिन गया टल

जिसने कहां परसो

बीत गए बरसो

जिसने कहां आज

उसने किया राज

अंदर मन का ताला खोल

हो जायेगा,निज से पहचान

खुल गया,अंदर का कण कण तो

बढ़ जायेगी,जीवन की शान

दैव दैव तो आलसी पुकारे

दूर करे,आंखो का परदा

जग की ममता को छोड़

भगवान से नाता जोड़

जिस जिस ने प्रभु से प्यार किया

श्रद्धा से मालामाल हुआ

एक शब्द दो कान है

एक नज़र दो आंख है

यूं तो गुरु गोबिंद एक ही है

झांक सके तो झांक

मत उलझो, तुम

जहां के झूठे ख्यालों में

जो अपने को जान गया

वो ही भवसागर पार हुआ

पाया है,मानुष का यह तन

नर से तू बन जा,नारायण

वर्तमान को साथ ले

बीते से कुछ सीख

चाहता है,परम सुख तो

आलस्य को त्याग दें

जिसने कहां कल

दिन गया टल

जिसने कहां परसो

बीत गए बरसो

जिसने कहां आज

उसने किया राज


नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।लहरों से सीखिये गिर गिर कर*

*फिर उठना।।*


इक जर्रा भी      आफताब

बन   सकता   है।

इक लफ्ज़    भी   जज्बात

बन  सकता   है।।

करने वाले कर   देते  चाहे

हालात कैसे  हों।

डूबते को  तिनका भी बन

खैरात  सकता है।।


बुरे वक्त में ही    अच्छे   बुरे

की पहचान होती है।

ढूंढो समाधान  तो    जिंदगी

आसान    होती  है।।

बिखर  कर   भी     संवरना 

सीखो    दुनिया में।

फिर  हर       तकलीफ  दूर

आसमान  होती है।।


हर लहर   गिर    कर    नये

जोश से   उठती है।

हर कठनाई   हौंसलों     के

आगे झुकती    है।।

परीक्षा समझ   कर    सहो

हर   दुःख      को।

मुस्कराने से ही   तकलीफ

हर   रुकती     है।।


खुद पे रखो यकीन तो बुरा

वक्त    गुज़र जाता है।

सब्र से धागा  उलझनों  का

पल में सुलट जाता है।।

मन मस्तिष्क शीतल     रहे

हर     निर्णय      में।

बिगड़ कर भी   हर हालात 

फिर सुधर जाता है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

निशा अतुल्य

 लेखनी और विचार

10.2.2021



बहती मन की भावना

कभी आँखों के रास्ते राह बनाती 

कभी लेखनी से पिघल जाती 

मैं हो कभी आहत 

संभलती,उठती,चलती जाती ।


विचारों की लौ जलाती नकारात्मकता 

जिसे नहीं समझ पाती दुनिया

करती परिहास विचारों का मेरे 

चलती लेकर संग बेवज़ह स्वयं की कुंठा ।


मन के उद्गार मेरे 

निरन्तर करते यात्रा

मन से मस्तिष्क तक 

बन कर ज्वाला निकलते

लेखनी से मेरे ।


पिघलते,मचलते,जलते विचार 

करें खड़ा 

बनाने को एक भगत,राजगुरु, आजाद 

 फिर से पाने को स्वतंत्रता 

अपनी मानसिक परतंत्रता से 

मन से मस्तिष्क तक उमड़ते

बिखरते,संवरते,पिघलती लेखनी से

हो पंक्ति बद्ध साथ मेरे चलते 

बहते मनोभाव मेरे ।


स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल ----


कैसे उत्तर दे पाते हम दानिस्ता तदबीर से 

निकले हैं मफहूम हज़ारों उसकी इक तहरीर से


शायद उसको रोक रहीं हैं रस्मे-वफ़ा की ज़ंजीरें 

रो रो कर लिपटा जाता है वो मेरी तस्वीर से


प्यार मुहब्बत की यह दुनिया हर कोशिश आबाद रहे 

सारी ख़ुशियाँ वाबस्ता हैं इस दिल की जागीर से


कहने को तो सारी दूरी तय कर लेते हम यारो

बाँध दिये हैं पाँव किसी ने क़समों की ज़ंजीर से


ऐ दुनिया कुछ ख़ौफ नहीं है इन ऊँची दीवारों का 

हिम्मत वाले कब डरते हैं ख़्वाबों की ताबीर से


आँखों से आँसू बहते हैं दामन भीगा भीगा है 

कैसे दिल का हाल सुनायें हम उनको तफ़सीर से


शायद हम भी बिक ही जाते इन दिलकश बाज़ारों में

चलती रही है जंग हमारी सारी उम्र ज़मीर से


किस किस का अफ़सोस करें कैसे दिल के ज़ख़्म भरें

कर देता है वार कई वो ज़ालिम इक इक तीर से


हार गये हम एक नशेमन की तामीर में  ही *साग़र* 

बनते हैं यह  महलों से घर शायद सब तक़दीर से


🖋 *विनय साग़र जायसवाल*

दानिस्ता तदबीर -सोच कर निकाली हुई युक्ति

वाबस्ता-जुड़ी हुई 

ख़्वाबों की ताबीर-सपनों का फल 

नशेमन-घोंसला , घर ,नीड़

तफ़सीर-विस्तार ,व्याख्या सहित

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *त्रिपदियाँ*

देव-भूमि पर विपदा आई,

संभव नहीं हानि-भरपाई।

कोप प्रकृति का है यह भाई।।

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पिघल ग्लेशियर हुआ प्रवाहित,

नदियों में घर हुए समाहित ।

हुए सभी जन हतोत्साहित।।

-----------------------------------

प्रकृति संतुलन को है कहती,

मनुज-सोच है बहुत फितरती।

भौतिक-सुख उद्देश्य समझती।।

------------------------------------

ऐसी सोच बदलनी होगी,

प्रकृति की रक्षा करनी होगी।

सुख-सुविधा कम रखनी होगी।।

-------------------------------------

वन-संरक्षण ही ध्येय रहे,

पर्वत-सरिता से नेह रहे।

तभी सुरक्षित भव-गेह रहे।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

गायत्री जैन जी मन्दसौर की बेटी पर कविता अवश्य सुने

 गायत्री जैन जी मन्दसौर की बेटी पर कविता अवश्य सुने


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-5

सानुज धरे चरन गुरु रामा।

मुनि नायक बसिष्ठ अरु बामा।।

     कहहु राम आपनु कुसलाई।

      पूछे गुरु तब कह रघुराई।।

गुरुहिं कृपा रावन-बध कीन्हा।

लंका-राज बिभीषन दीन्हा।।

    जाकर गुरु-पद महँ बिस्वासा।

     पूरन होहि तासु अभिलासा।।

भरतै धाइ राम-पद धरेऊ।

जिनहिं देव-सिव-ब्रह्मा परेऊ।।

     प्रभू-चरन गहि भरत भुवालू।

     विह्वल भुइँ पे परे निढालू।।

बड़े जतन प्रभु तिनहिं उठाए।

पुलकित तन प्रभु गरे लगाए।।

छंद-अइसन मिलन प्रभु-भरत कै,

              मानो मिलन रस लागहीं।

       अपनाइ तनु जिमि रस सिंगारहिं,

              प्रेम-रस सँग पागहीं ।।

सोरठा-जब पूछे श्रीराम, रहे बरस दस चारि कस।

           रटतै-रटतै राम,कहे भरत सुनु भ्रात तब।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                                9919446372

भारत के इक्कीस परमवीर का लोकार्पण 14 फरवरी को हिंदी भवन दिल्ली में।

 भारत के इक्कीस परमवीर का लोकार्पण 14 फरवरी को हिंदी भवन दिल्ली में।


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हिन्दी साहित्य के लिये अनुपम  ऐतिहासिक,काव्य ग्रन्थ, शौर्य पराक्रम की भाषा का काव्य ग्रन्थ, देश के इक्कीस परम वीर चक्र विजेताओं की सर्वोच्च वीरता का अंतरराष्ट्रीय  काव्य ग्रन्थ " भारत के इक्कीस परम वीर"  का लोकार्पण समारोह 14 फरवरी 2021 को  देश की राजधानी दिल्ली के हिन्दी भवन में  होगा। जिसमें भारत के कई राज्यों के एवं विदेश के रचनाकार सहभागिता करेंगे।

भारत के इक्कीस परमवीर संकलन के सम्पादक प्रख्यात साहित्यकार एवं काव्यकुल संस्थान के अध्यक्ष डॉ राजीव कुमार पाण्डेय ने बताया  बताया कि  भारत ने अपने वीर जाँबाज सैनिक जिन्होंने अपने अदम्य साहस  बलिदान से देश के स्वाभिमान की रक्षा की और राष्ट्रीय ध्वज की मर्यादा को अक्षुण्ण बनाये रखा,युद्ध भूमि में दुश्मन के दांत खट्टे कर विजय पताका फहराई । उन्हें भारत ने अपने सर्वोच्च सैनिक सम्मान से परम वीर चक्र से सम्मानित किया। 

देश के ऐसे सच्चे वीर सपूतों की वीरता को हिंदी साहित्य में उचित स्थान मिले और हमारी पीढियां उनके चरित्र को पढ़कर गौरव कर सकें एवं देश के लिये सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा प्राप्त कर सकें । इसलिये काव्यकुल संस्थान ने  अंतरराष्ट्रीय स्तर नवम्बर में परम वीर चक्र विजेताओं पर डिजिटल रूप से 151 कवियों का कवितापाठ कराकर एक रिकॉर्ड स्थापित किया था। उन्हीं में से  चयनित 101 कवियों  की रचनाएं संकलित कर *भारत के इक्कीस परमवीर* काव्य संकलन तैयार किया गया जिसमें संकलन कर्ता के दायित्व को वरिष्ठ गीतकार ओंकार त्रिपाठी ने निभाया। इस ग्रन्थ को सुंदर कलेवर में जिज्ञासा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। 

श्री पाण्डेय ने बताया  कि इस ग्रन्थ का भव्य लोकार्पण 14 फरवरी रविवार दोपहर 2 बजे हिंदी भवन विष्णु दिगम्बर मार्ग दिल्ली में होगा,जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में जनरल (डॉ) वी के सिंह (सेवानिवृत्त) केंद्रीय राज्य मंत्री सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय  होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली नगर निगम के पूर्व महापौर एवं दिल्ली साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष महेश चंद्र शर्मा करेंगे।  इस भव्य समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल विष्णुकांत चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) , एडीशनल डीजी बीसी एफ पी के मिश्र, प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया के चेयरमैन  सी एम प्रसाद, वरिष्ठ साहित्यकार समीक्षक ओम निश्छल, वरिष्ठ कवयित्री डॉ इंदिरा मोहन, के कर कमलों द्वारा इस ग्रन्थ का लोकार्पण भारत के कई राज्यों से आये साहित्यकारों एवं बुद्धिजीवियों के समक्ष किया जाएगा।

इस अवसर पर इस ग्रन्थ के रचनाकारों को परमवीर सृजन सम्मान से अलंकृत किया जायेगा।

विराट कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये आयोजन समिति में यशपाल सिंह चौहान, ब्रज माहिर, अनुपमा पाण्डेय 'भारतीय' कुसुमलता 'कुसुम' दीपा शर्मा, गार्गी कौशिक, राजेश कुमार सिंह 'श्रेयस' डॉ रजनी शर्मा 'चन्दा' , अशोक राठौर,  राजीव कुमार गुर्जर को लिया गया है।


प्रेषक 

डॉ राजीव कुमार पाण्डेय 

राष्ट्रीय अध्यक्ष 

काव्यकुल संस्थान(पंजी) गाजियाबाद

मोबाइल -9990650570

ईमेल - kavidrrajeevpandey@gmail.com

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-4

अवधपुरी महँ प्रकृति सुहानी।

नगरी भे जनु सोभा-खानी।

      त्रिबिध समीर बहन तब लागा।

       धारि उरहिं रामहिं अनुरागा।

सीतल सलिला सरजू निरमल।

लागल बहै प्रसांत-अचंचल।।

    परिजन-गुरु अरु अनुज समेता।

     चले भरत जहँ कृपा-निकेता।।

चढ़ि-चढ़ि भवन-अटारिन्ह ऊपर।

नारी लखहिं बिमान प्रभू कर ।।

     पूर्णचन्द्र इव प्रभु श्रीरामा।

      अवधपुरी सागर अभिरामा।।

पुरवासी सभ लहर समाना।

लहरत उठि-उठि लखैं बिमाना।।

     कहहिं राम लखाइ निज नगरी।

      लखु,कपीस-अंगद बहु सुघरी।।

लखहु बिभीषन-कपि तुम्ह सबहीं।

अवधपुरी सम नहिं कहुँ अहहीं।।

     सरजू सरित बहै उत्तर-दिसि।

     मम नगरी बड़ सुघ्घर जस ससि।।

बड़ पवित्र अह सरजू-नीरा।

मज्जन करत जाय जग-पीरा।।

      मम संगति-सुख ताको मिलई।

      मज्जन करन हेतु जे अवई ।।

परम धाम मम नगर सुहावन।

बहु प्रिय मम पुरवासी पावन।।

      प्रभु-मुख सुनि अस नगर-बखाना।

      भए मगन कपि-भालू नाना ।।

धन्य भूमि अस सभ पुरवासी।

होंहिं जहाँ कर राम निवासी।।

     उतरा झट बिमान तेहिं अवसर।

       पाइ निदेस राम कै सर-सर।।

दोहा-उतरि यान श्रीराम कह,पुष्पक जाहु कुबेर।

         रखि के हरष-बिषाद उर,उड़ बिमान बिनु देर।।

        प्रभु-बियोग कृष बपु-भरत,लइ बसिष्ठ गुरु बाम।

        पुरवासिन्ह लइ संग निज,गए पहुँचि जहँ राम।।

                            डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

नूतन लाल साहू

 विश्वास


दुनिया का सबसे सुंदर पौधा

विश्वास होता है

जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है

उठ जाग मुसाफिर,भोर भई

अब रैन कहा, जो सोवत है

जो सोवत है,वो खोवत है

जो जागत है,सो पावत है

जो कल करना है,आज कर लें

जो आज करना है,वो अब कर लें

जब चिड़ियों ने चुग गया खेत तो

फिर पछतावे,क्या होवत है

कैसे बैठे हो,आलस में

तुमसे राम नाम कहा न जाय

जानकी नाथ सहाय करें तब

कौन बिगाड़ करे नर तेरा

दुनिया का सबसे सुंदर पौधा

विश्वास होता है

जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है

सोचत सोचत उमर बीत गई

काल, शीश मंडराय

लख चौरासी योनि भटक

बड़े भाग्य से,मानुष देह पाया है

डरते रहो कि यह जिंदगी

कहीं बेकार न हो जाये

मंजिल असल मुकाम की

तय करनी है, तुम्हें

राजा भी जायेगा,जोगी भी जायेगा

गुरु भी जायेगा,चेला भी जायेगा

माता पिता और भाई बन्धु भी जायेंगे

और जायेगा,रुपयों का थैला

जानकी नाथ सहाय करें तब

कौन बिगाड़ करै,नर तेरा

वो ही तो,भक्त जनों का संकट

क्षण में दूर करेगा

दुनिया का सबसे सुंदर पौधा

विश्वास होता है

जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है


नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।। यह जीवन आज और बस इसी*

*पल में है।।*


यह जीवन आज   और  बस

इसी   पल   में    है।

वह जीता नहीं   जिन्दगी जो

रहता  कल में    है।।

ना राज ना  नाराज़    जीवन

बसता बस आज में।

जो सोचता भविष्य  की सदा

वो जीता छल में है।।


आज में ही   आनन्द  का हर

आभास    लीजिए।

अच्छे कल की मत  आज ही

आप आस कीजिए।।

यदि आज अच्छा है  तो कल

खुद   संवर जायेगा।

बस संबकोअच्छी भावना का

अहसास    दीजिए।।


हर रोज़  जिन्दगी   एक   नया

आज    देती     है।

कर्म ही    होती  पूजा      यही

आवाज़  देती   है ।।

तेरा कल तेरे  आज   का    ही

होता    है  सुफल।

रोज़ ही   जिन्दगी संबको यही

आगाज़    देती  है।।


कल की सोच कर   जो हमेशा

दुःखी    रहता   है।

आज को भी खो कर   नहीं वो

सुखी    रहता   है।।

जान लो बिना मेहनत   निराशा

ही हाथ है   लगती।

करे हर काम समझ के वो सदा

बहुमुखी  रहता   है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।*

मोब।।             9897071046

                      8218685464

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल-


आँखों आँखों में  दास्तान हुई

यह ख़मोशी भी इक ज़ुबान हुई


इक नज़र ही तो उसको देखा था

इस कदर क्यों वो बदगुमान हुई 


कैसा जादू था उसकी बातों में

एक पल में ही मेरी जान हुई


इस करिश्मे पे दिल भी हैरां है 

 वो जो इस दर्जा मेहरबान हुई


मिट ही जाते हैं सब गिले शिकवे 

गुफ्तगू  जब भी दर्मियान हुई 


जब से वो शामिल-ए-हयात हुए

ज़िंदगी रोज़ इम्तिहान हुई


इक लतीफ़े से कम नहीं थी वो

बात जो आज साहिबान हुई


जब से रूठे हुए हैं वो *साग़र*

हर तरफ़ जैसे सूनसान हुई 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

8/2/2021

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/14)

वृंत-वृंत पर फूल खिलें हैं,

और समीर सुगंधित है।

कलियों पर भौंरे मड़राएँ-

उपवन मधुकर-गुंजित है।।


पवन फागुनी की मादकता,

हृदय सभी का हुलसाए।

सजनी को उसके साजन की,

मीठी यादें दिलवाए।

बहक उठे मन उसका चंचल-

जो प्रियतम-सुख वंचित है।।

     उपवन मधुकर-गुंजित है।।


आम्र-मंजरी की सुगंध पा,

विरही मन भी बौराए।

तड़पे जल बिन मीन सदृश वह,

इधर-उधर भी भरमाए।

लगे नहीं मधुमास सुहाना-

उसको तो जग-वंदित है।।

     उपवन मधुकर-गुंजित है।।


पंछी अपने नीड़ बनाएँ,

कल-कल सरिता बहती है।

जीव-जंतु सब प्रेम जताएँ,

नई जिंदगी पलती है।

नव पल्लव से सजा वृक्ष भी-

खुशियों से अनुरंजित है।।

      उपवन मधुकर-गुंजित है।।


रचे लेखनी रुचिकर रचना,

छवि मधुमास बसा मन में।

कवि-मन योगी जैसा रमता,

उच्च कल्पना के वन में।

ध्यान मग्न जो भाव उपजता-

होता मधुरस-सिंचित है।।

      उपवन मधुकर-गुंजित है।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                      9919446372

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 ये पवन बसन्ती मतवाली,

फागुन आया पीत बसन  


 राग रंग कुछ मुझे न भाता ,

जब से मथुरा गया किशन।


 सपना सा हो गया सभी कुछ,

 हुई  कहानी सी  बातें ।


रह रह उठती हूक हृदय में ,

 कौन सुने मन की बातें।


 सोच रही थी अपने मन में,

किशन  कन्हैया मेरा  है ।


 नहीं जानती थी गोकुल में,

 पंछी  रैन  बसेरा है ।


सोची बात नहीं होती है,

 होनी  ही होकर होती।


 हंसकर जीना चाह रही थी

 लेकिन है आंखें बहती ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला

निशा अतुल्य

 अतुकांत

जीवन

9.2.2021


शाख से गिरे पीले पत्ते

कुछ कहते हैं ,

देखो

कुछ दोहराते हैं,

जीवन का सार बताते हैं 

होना है कल हमको भी जुदा

धीरे से समझातें हैं ।


खिलती कलियाँ

मुस्काती हैं 

जीवन का राज बताती हैं

काँटो संग भी मुस्काना

झूम झूम बतलाती हैं ।


काले भँवरे यूँ डोल रहे

कलियों के मुख चूम रहें

गिर जाएगी कल ये कलियाँ

नई कली फिर आएगी 

जीवन का सन्देश सुनाएगी ।


पतझड़ के बाद बसंत ही है

हर जीवन सुख दुख का डेरा

कभी साथ मिला इनका हमको

कभी हाथ छूटा जीवन का ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः ०९.०२.२०२१

दिवसः मंगलवार

छन्दः मात्रिक

विधाः दोहा

शीर्षकः बढ़े मान चहुँदिक प्रगति


गौरव    है   मुझको   वतन , शत  शत उसे प्रणाम।

बढ़े मान  चहुँदिक प्रगति , जन धन यश सुखधाम।।


हो   शिक्षा सब  जनसलभ, स्वस्थ  रहे   जन गात्र।

जाति   धर्म   भाषा   बिना ,   मानक  बने  सुपात्र।।


मर्यादित    आचार   हो ,  नित    प्रेरक   वात्सल्य।

मौलिकता   पुरुषार्थ  हो ,  कर्मशील      साफल्य।।


साधु समागम कठिन जग, सद्गुरु  दुर्लभ   लोक।

मातु  पिता  भू गगन  सम ,  मिले   ज्ञान आलोक।।


राष्ट्रधर्म      कर्तव्य      हो ,  लोकतंत्र     विश्वास।

परमारथ    सेवा     वतन ,  नीति  प्रीति  आभास।।


हरित भरित सुष्मित प्रकृति , ऊर्वर   भू    संसार।

तजो  स्वार्थ  संभलो मनुज , प्रकृति  बने उपहार।।


यह   ग्लेशियर   चेतावनी  ,  भूकम्पन     तूफ़ान।

जलप्लावन  ज्वालामुखी , रोक प्रकृति अपमान।।


जो कुछ जीवन में मिला , समझ    ईश   वरदान।

पाओ  सुख  संतोष  को ,  खुशी प्रीति यश मान।।


सब प्राणी समतुल्य जग ,  सबका जग अवदान।

पंच भूत  निर्मित   जगत , जीओ  बन    इन्सान।।


जन मन  मंगल भाव  मन ,जन विकास अवदान।

जीवन  अर्पित  देश  को ,   मातृशक्ति    सम्मान।।


छवि निकुंज मन माधवी , खिले कुसुम मकरन्द।

फैले  खुशियाँ अरुणिमा,धवल कीर्ति निशिचन्द।।


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक (स्वरचित)

नई दिल्ली

निशा अतुल्य

 मूषक

7.2.2021



सुनो गणेश

लंबोदर विशाल

सवारी चूहा ।


मूषक राज

करते मनमानी

है अभिमानी  


लड्डू भाता

ले हाथ बैठ जाता

तुम्ही विधाता ।


प्रथम पूज्या

रिद्धि सिद्धि ले संग 

बुद्धि प्रदाता ।


रोली, चँदन

तेरे भाल सजाऊँ 

दूर्वा चढ़ाऊँ ।


मूषक राज

अर्जी लगाओ मेरी

सुनो पुकार ।


स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

सुनीता असीम

 हे कन्हैया मैं तुम्हें ज़िन्हार करती हूँ।

मान जाओ मैं तुम्हीं से प्यार करती हूँ।

*****

इक नज़र मुझपे कभी तो डाल लेना तुम।

दिल मेरा तुझसे लगा इकरार करती हूँ।

*****

तुम भले मिलना नहीं मुझसे कभी देखो।

नाम अपना  नाम  तेरे  यार  करती  हूँ।

*****

दिल धड़कता है मेरा तब जोर से कान्हा।

आइने  में  जब  तेरा   दीदार  करती  हूँ।

*****

अब पराया और अपना भा नहीं सकता।

मान अपना सब तुझे श्रृँगार करती हूँ।

*****

मान जाओ  हे सुदामा के सखा  मोहन।

फिर न कहना मैँ नहीं मनुहार करती हूँ।

*****

अब सुनीता कह रही तुमसे यही माधव।

कंत अपना बस तुम्हें स्वीकार करती हूँ।

*****

ज़िन्हार=सावधान

सुनीता असीम

६/२/२०२१

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल

1

हल मसाइल का अगरचे आज तक निकला नहीं 

क्यों निज़ाम-ए-सलतनत को आपने बदला नहीं

2.

उनके होंटो पर था कुछ आँखों में था कुछ और ही 

इसलिए उस  गुफ्तगू से दिल ज़रा बहला नहीं 

3.

उनके उस पुरनूर चेहरे में झलकता दर्द था

यूँ भी उनके दर्मियाँ यह दिल मेरा मचला नहीं 

4.

चाँद के नज़दीक जाकर यूँ पलट आया  हूँ मैं

उनके जैसा ख़ूबसूरत चाँद भी निकला नहीं 

5.

जब तवज्जो ही नहीं है इस तरफ़ सरकार की 

दिल की इस बारादरी का हाल भी सँभला नहीं

6.

बेवफ़ाई के तेरे दामन पे गहरे दाग़ हैं

धोते धोते थक गया तू पर हुआ उजला नहीं

7.

इस सियासत में हैं *साग़र* हर तरफ़ रंगीनियाँ

कौन है वो शख़्स जो आकर यहाँ फिसला नहीं


🖋️विनय साग़र जायसवाल

6/2/2021

एस के कपूर श्री हंस

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-2

बचा रहा बस एक दिवस अब।

अइहैं रामहिं पुरी अवध जब।।

     होवन लगे सगुन बड़ सुंदर।

     अवधपुरी महँ बाहर-अंदर।।

दाहिन लोचन-भुजा भरत कय।

फरकन लगी सगुन कइ-कइ कय।।

     सगुन होत हरषी सभ माता।

      दिन सुभकर अस दीन्ह बिधाता।।

होय भरत-मन परम अधीरा।

काहे नहिं आए रघुबीरा ।।

    पुनि-पुनि कहहिं कवन त्रुटि मोरी।

     भूले हमका जानि अघोरी ।।

लछिमन तुमहीं रह बड़ भागी।

रहत नाथ सँग बनि सहभागी।।

     कपटी जानि मोंहि बिसरायो।

     यहिं तें नहीं अबहिं तक आयो।।

पर प्रभु दीनबंधु-जगस्वामी।

तारहिं पतित-खडुस-खल-कामी।।

     अइहैं नाथ अवसि मैं जानूँ।

     यहिं तें भवा सगुन मैं मानूँ।।

तेहि अवसर आयो हनुमाना।

बटुक-बिप्र कै पहिरे बाना।।

     तापस भेषहिं भरत कुसासन।

      सोचत रहे राम कै आवन।।

दोहा-देखि पवन-सुत भरत कहँ,बिकल नयन भरि नीर।

        पुलकित तन हरषित भए,कहहिं बचन धरि धीर।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

नूतन लाल साहू

 कारवां गुज़र गया


सजग नयन से तूने देखा

रवि का रथ पर चढ़कर आना

किन्तु कभी क्या तूने देखा

धीमी संध्या की गति को

कारवां गुज़र गया,पर

प्रकृति ने अपना नियम न बदला

याद आता है वह दिन, अब भी

जब तेरे मेरे,आंसू का मोल एक था

पल में ही परिवर्तित होकर

तेरे मेरे भाव अनेक हुआ

कारवां गुज़र गया,पर

नहीं समझ सका कि मांजरा क्या था

यदि तू ने आशा छोड़ी तो

समझो अपनी परिभाषा छोड़ी

एक चिड़िया अपनी चोंच में तिनका

लिए जा रहीं हैं

वह सहज भाव में ही

उंचास पवन को,नीचा दिखाती

कारवां गुज़र गया,पर

नहीं समझ सका,प्रभु की लीला को

नाश के दुख से कभी

दबता नहीं,निर्माण का सुख

अंधेरी रात में दीपक

जलाते कौन बैठा है

कारवां गुज़र गया, पर

नहीं समझ सका,काल की चाल को

अति क्रुद्ध मेघो की कड़क

अति क्षुब्ध विद्युत की तड़त

इन्द्र धनुष की छंटा

प्रलयंकारी मेघो पर

कारवां गुज़र गया, पर

नहीं समझ सका,ये कौतूहल को


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *दोहा-लेखन*

विनय

 विनय सदा करते रहें,प्रभु का रखकर ध्यान।

निश्चित जग में यश बढ़े, मिले हमें सम्मान।।


काल

 देश-काल सँग पात्र का,रख विचार कर काम।

मिले सदा फल मधुर जग,सुंदर हो परिणाम।।


भावना 

जिसकी जैसी भावना,वैसी उसकी सोच।

प्रभु की छवि पाषाण में,दिखती निःसंकोच।


शब्द

अक्षर-अक्षर मिल बने,किसी शब्द का रूप।

शब्द करे स्पष्ट जग,क्या है ज्ञान अनूप??


दर्शन

दर्शन-पूजन से मिले,परम आत्मिक तोष।

प्रभु की महती कृपा से,बढ़े ज्ञान-धन-कोष।।

              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372के

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