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स्व0 नीरज जी की स्मृति में समर्पित रचनाएं जिसके लिए नीरज स्मृति साहित्य सम्मान से कलमकारों को सम्मानित किया गया......कलमकारों की भाव पूर्ण श्रद्धांजलि......देखें।

स्व. नीरज जी की स्मृति में समर्पित यह रचना...एक भाव पूर्ण श्रद्धांजलि.....🙏🏼💐


कहाँ तुम चले गए नीरज?
प्रश्न यह बार बार आता।
जहां से ऐसे हँस कर के अचानक कौन है जाता।

हमेशा बात करते रहे  गगन को आप छूने की।
सदा साहस बढ़ाते रहे  नया रचने रचाने की।
आशु कविता मधुर प्रति जन  आशु जाना नहीं भाता।
कहाँ तुम चले गए नीरज....।।

कभी बचपन था भोला सा कभी परिपक्व ज्ञाता थे।
बना साहित्य साथ जीवन सृजनता के विधाता थे।
बना साहित्य का सुंदर काव्य रंगोली का नाता।
कहाँ तुम चले गए नीरज.....।।

श्याम सुंदर के जाए थे श्याम सुंदर सा लाला है।
बना रचना को ही साथी बँधा बंधन निराला है।
छोड़ कर अपने प्यारों का रुलाकर क्यूँ गए ज्ञाता।
कहाँ तुम चले गए नीरज...।।

बसाए थे ह्रदय दर्पण  सहज मन भाव में अपने।
ह्रदय के साफ सच्चे थे  सजाए थे बहुत सपने।
सभी बहनों में नटखट तुम  थे प्यारे एक ही भ्राता।
कहाँ तुम चले गए नीरज....।।

भक्ति की भावना लेकर यहाँ संगम पे आए थे।
दुबारा भी है आना अब यही वादा बताए थे।
बहुत सम्मान दे कहते देवी जी शब्द याद आता।
कहाँ तुम चले गए नीरज....।।

यहाँ से ले विदेशों तक सदा परचम ही फहराए।
दिलों में वास करते हो सभी को तुम बहुत भाए।
तुम्हें श्रद्धांजलि मेरी नैन मधु नीर बह जाता।
कहाँ तुम चले गए नीरज....।।

मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज ✒️

 नीरज अवस्थी जी श्रद्धा सुमन स्वरूप  कुछ पंक्तियां

वो आया गुदगुदाया हंसाया चला गया।
अपना बनाया और रुलाया चला गया।

ये उसकी थी नादानी या की शरारतें।
कुछ मेरी सुनी अपना सुनाया चला गया।

इस चार दिन की जिंदगी के हैं बड़े नखरे।
उसने भी अपना पाठ निभाया चला गया।

तू भी उसे खोकर नही पा सकती अब हया।
उसने तुझे सँवारा सजाया चला गया।

नीरज कि ही मानिंद खिला सा रहा नीरज।
वन बागवा बिठाया लगाया चला गया।

वो तो गया जहां से यादें हमारे पास।
इक आईना बनाया दिखाया चला गया।

दर साल दर घड़ी तुम्हे ढूंढेंगे बेवफा।
ये क्या हुनर सिखाया बताया चला गया।
       अखिलेश तिवारी डाली बल्दीराय सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश


 इंदु दीवान
C/303
पायनियर पार्क 
सेक्टर 61
गुरुग्राम
हरियाणा
पिन कोड 122011
मोबाइल 9448933596

आशुकवि नीरज को श्रद्धांजलि

काव्य रंगोली रचाकर भाई, तुम कहाँ चले गए?
इतनी छोटी वय में क्यूँ हमसे मुख मोड़ गए?

हम सबको रोते-बिलखते छोड़ कर तुम, 
अनंत अमर यात्रा पर जाने क्यों चले गए?

काव्य रंगोली को कामायनी से सजाया,
जयशंकर प्रसाद जी का खूब मान बढ़ाया।

हिंदी भाषा का है तुमने गौरव बढ़ाया,
अपनी कविताओं से उसे खूब सजाया।

साहित्य रथ को चलाने वाले सारथी, 
आशुकवि नीरज भाई, 
तुमने हम सबको साहित्य मार्ग दर्शाया। 

प्रकाशक बन तुमने साहित्य को गले लगाया,
नवोदित साहित्यकारों का हौंसला बढ़ाया।

अनगिनत कविताओं के तुम जनक 
जाने किस लोक में होगा अब तुम्हारा पटल?

कलम क्यूँ मौन हो गई स्याही क्यूँ सूख गई।
ये कैसी आपदा, तुम्हारी वाणी हमसे रूठ गयी 

तुमसा कवि संपादक कहाँ अब अवतरित होगा?
कहाँ अब तुमसा रचनाकार हमसे मुखरित होगा 

साहित्य का करुण-क्रंदन शायद तुम सुन भी पाओगे
लेकिन क्या हमारे अश्रुपुरित हृदय को समझा पाओगे 

काव्य मंच का करुण रुदन, तुमको वापस न ला पाएगा।
किंतु हमारा दिल तो सदा तुम्हारी ही कविताएँ दोहराएगा 

अविरल अश्रु  कदाचित समय के चलते सूख भी जाएँगे 
लेकिन अपने दिल से तुम्हारी यादें न कभी मिटा पाएँगे 

कहाँ अब काव्य रंगोली को तुमसा रचनाकार मिल पाएगा 
तो कहाँ हमें तुमसा कवि, प्रकाशक और भाई मिल पाएगा 

नीरज भाई तुम कहाँ चले गए? क्यूँ चले गए?
सदा ही विजेता बने तो यह समर कैसे हार गए?

टूटे हृदय से तुम्हारे शृंगारित इस काव्य मंच हम चलाएँगे 
संभवतः यही अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि हम तुमको दे पाएँगे
इंदु दीवान


 बिछुड़े साथी आशुकवि नीरज अवस्थी जी के प्रति
     ==============================
     नाम----प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
     पता--- आज़ाद वार्ड,मंडला,मप्र
    मोबाइल--9425484382
                     गीत
                  =====
हुआ यकायक सूर्य अस्त,देखो फैला अँधियारा है।
हम सारे स्तब्ध हो गए,लुप्त हुआ उजियारा है।।

तुम थे नीरज,खिले कँवल-से,चहरे पर मुुस्कान रही
सरस्वती के वरद् पुत्र तुम,नेह-प्रेम की गंग बही
तुमने सबका साथ निभाया,यारों के तुम यार बने
तुम सच में ही दिव्य पुरुष थे,भाव तुम्हारे प्यार सने
तुम बिन हमसब बिलख रहे हैं,मातम पसरा सारा है।
हम सारे स्तब्ध हो गए,लुप्त हुआ उजियारा है।।

आशुकवि सचमुच तुम चोखे,औरों को सम्मान दिया
हर लेखक,नव कवि को तुमने,जी-भरकर अरमान दिया
ख़ूब सँवारा,और सेवा की,फूल खिलाए हर डाली
 तुम तो थे सच्चे रखवाले,उपवन के थे तुम माली
तुमने साथ बीच में छोड़ा,हमसे छिना सहारा है।
हम सारे स्तब्ध हो गए,लुप्त हुआ उजियारा है।।


हुआ यकायक सूर्य अस्त,देखो फैला अँधियारा है।
हम सारे स्तब्ध हो गए,लुप्त हुआ उजियारा है।।
        *************************


आशुकवि नीरज अवस्थी जी की याद में कुछ पंक्तियाँ* 

नीरज जी थे एक अच्छे इंसान
करते थे साहित्य सेवा काम महान।
सबको रुला गया उनका जाना 
आसान नहीं उनको भूल पाना।

साहित्य के आप चमकते सितारे थे
कठिनाइयों से कभी न हारे थे।
संस्कार आप में कूट-कूट कर भरा था 
आपका साहित्य से संबंध गहरा था ।।

इतना जल्दी आपको नहीं जाना था
साहित्य सेवा का कर्म अभी निभाना था।
आपको हम कभी भूल नहीं पाएँगे
याद आएँगे आँखों में आँसू लाएँगे।

आप सरल हृदय, संयमी, मृदुभाषी थे
सबसे अच्छा था व्यवहार।
कर्मठ इमानदार और जिंदादिल
आप में दृढ़ इच्छाशक्ति थी अपार।।

आपको याद कर श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं
आपके काम मिलकर आगे बढ़ाते हैं।।

डाॅ. आलोक कुमार यादव
ग्राम- फुलवरिया मल्हनी
लक्ष्मीपुर, महाराजगंज


कवि नीरज स्मृति सम्मान 
 विषय - #नीरज से जुड़ी स्मृति #
 विधा - छंद मुक्त कविता 
आशुकवि नीरज अवस्थी जी की याद में कुछ  पंक्तियाँ समर्पित कर रहीं हूँ ।
 
बेरहम कोरोना ने, तुम्हें भी लिया लूट।
नहीं जानतीं थीं, इतनी जल्दी हम सब से  जाओगे छूट ।।

अभी पूरा करना था, कितने ही काम।
हो रहा था जग में  तुम्हारा  नाम ।।

हमें याद आ रहा है, वो सुहाना दिन ।
बाईस नवबंर अठारह के पल छिन ।।

भारत के  कोने-कोने से जुटें थें 
साहित्यकार ।
नीरज खड़े थें सबका , करने को सत्कार ।।

आज आँखो में वही मंज़र उभर कर आया है ।
 नीरज के कर कमलों से, साहित्य भूषण सम्मान पाया  है ।।

सभी को राह दिखाया, चाहतें थें सभी का हित ।
 क्यूं चल दिए नीरज , बना कर सबको मीत ।।

रीत , प्रीत , सीख मीत, मासूम  चेहरा ।
आज पूछती हूँ ईश्वर से, क्यूं लगा 
दिया पहरा ।।

आपके  साहित्य  शब्दों का  योग्दान।
युग युग तक रहेगी विश्व में  पहचान ।।

रत्ना वर्मा 
204अम्बिका अपार्टमेंट 
धनबाद -झारखंड



अर्चना वालिया
पता: मुंबई
मो०: 9220550712
कवि नीरज स्मृति सम्मान प्रतियोगिता

कविता: *साहित्य रत्न नीरज भाई*

हिंदी साहित्य-रथ के सारथी,
प्रिय भाई नीरज अवस्थी।
माँ भारती की सेवा में अविरल रत,
हिंदी के युवा साहित्यकार।
आपको नमन है, बारम्बार नमन है। 

काव्य रंगोली मंच के संस्थापक,
आप थे साहित्य जगत के महानायक।
नवोदित कवियों को दिया गौरवशाली मंच,
उनकी लेखनी को दिया पूर्ण संबल।
आपको नमन है, बारम्बार नमन है।

आप थे महाबली हनुमान के परम भक्त,
आप में था अद्भुत नेतृत्व कौशल।
हनुमान जयंती पर महायज्ञ रचाया था,
सबको उसमें शामिल करवाया था।
आपको नमन है, बारम्बार नमन है।

आपने प्रकाशन का दायित्व संभाला था,
हमारी पुस्तक रामायण का प्रकाशन करवाया था।
हमें रामराज्य दर्शाया था,
हमारे सपनों को साकार करवाया था।
आपको नमन है, बारम्बार नमन है।

महामारी में सृजनता का बीज अंकुरित किया था।
सबका हौंसला बढ़ाया था।
पर स्वयं अकेले ही दुख सह लिया।
परिवार को बेसहारा छोड़ दिया। 
श्रद्धा-सुमन अर्पित कर परम शांति की कामना करती हूँ।

💐💐

23 मई, 2021
*अर्चना वालिया*



अभय सक्सेना एडवोकेट
48/268,सराय लाठी मोहाल,
जनरल गंज, कानपुर नगर।
9838015019,8840184088

*************************सूरज अपना अस्त हो गया 
*************************
अभय सक्सेना एडवोकेट
            #######
काव्य जगत के पटल पर,
उदय हुआ एक सूरज।
अपनी काव्य रश्मियों से,
पायी खूब शोहरत।।

काव्य जगत को उसने फिर,
एक नया आयाम दिया।
जन जन के मन-मस्तिष्क पर,
देखा कैसा राज किया।।

मंच मंच की शान था वो,
कविताओं की खान था वो।
हम सबकी आंखों का तारा,
"नीरज" उसका नाम था प्यारा।।

काव्य रंगोली की अलख जगाई,
हम कवियों की प्यास बुझाई।
हमेशा करते सबका सम्मान,
तनिक नहीं करते अभिमान।‌।

समय  बड़ा बलवान था,
कोरोना सा भयंकर काल था।
गिरफ्त में आ गये नीरज भैया,
खूब लड़े पर सो गये भैया।।

ग्यारह मई को पस्त हो गया,
सूरज अपना अस्त हो गया ।
"नीरज"अपना विलीन हो गया,   
प्रभु चरणों में लीन हो गया।।

अश्रुपूर्ण दें "अभय "श्रृद्धांजलि,
रखकर चरणों में पुष्पांजलि ।।
×====×=====×====×===



🌹नीरज स्मृति सम्मान 🌹
     
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
नाम के ही अनुरूप,किया जिसने है काम।
पंक में भी पुष्प खिले,नीरज वो नाम है।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
लाख बाधाएं को जैसे,चीरते चले नीरज।
आम आदमी में नहीं,आदमी वो आम है।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
जल में ही जलज के,खिलने से खिले ताल।
बिन सुना लगे गले,द्वार और धाम है।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
नीरज नसीब देख,टूटकर जिन्दगी से।
राम चरणों में यश,सुबा और शाम है।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
       भिलाई दुर्ग छग


श्रद्धा सुमन💐 *नीरज़ज़ी*💐

काव्य पाठ में शामिल होना सिखाया आपने,
प्रदान भी की दिशा नयी जीवन में हमारे आपने,
काव्य रंगोली के माध्यम से एक संसक्त मंच भी दिया आपने,
अंगुली पकड़ के चलना भी सिखाया आपने,
अब हज़ारों महफ़िलें भी है लाखों मेले भी है,
लेकिन बिना आपके *नीरज़जीं*हम सब एकदम अकेले है।
बिछड़े ...आप कुछ इस तरह की रुत ही बदल गयी,
एक आप की सक्शियत सारें शहर को वीरान कर गयी,
हम नम अश्रुपूर्ण आँखो से देखते ही रह गए....
आप यूँ जीवन विराम की गाड़ी पकड़, ईश्वर में अनायास विलीन हो गये ।
🙏🙏
अरुना शाह (प्रेरणा)
कोलकाता



 *आहत स्मृति की काव्यांजलि*

युग युग का लगा परिचय, सात महीने का संवाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।

नीरज थे नीरज से कोमल,
अद्भुत था लेखनी का कौशल ।
जुड़ता उनसे जो एक बार,
थे बन जाते उसका संबल ।
समर्पित-लगनशील-प्रेमी, माँ वाणी का पवित्र प्रसाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।

निर्दयी काल ने लिया छीन,
छोड़ गये, न होता यक़ीन ।
है रुँधा गला, वाणी नि:शब्द,
क्षुब्ध लेखनी, मन उदासीन ।
पता चला कितना असहाय, हिय करता है आर्त्तनाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।

काव्य रंगोली हुई अनाथ,
पहला एकल आपके साथ ।
गीता पर भी बोला था मैं,
उनका ही पकड़ कर हाथ ।
यह अपनापन, यह रिक्तता, नहीं मिटेगा यह अवसाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।

नम आँसू से मेरे लोचन,
दु:खी करता यह खालीपन ।
आत्मा शान्ति हेतु प्रार्थना,
अर्पित हृदय के श्रद्धा सुमन ।
मित्र बने कई इस अवधि में, नीरज तो विशेष अपवाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


(जयप्रकाश अग्रवाल काठमांडू नेपाल ।)



स्मृति शेष नीरज अवस्थी जी को समर्पित मेरी मुक्त कविता-
★क्या लिखूँ, क्या छोड़ूँ!★

क्या लिखूँ, क्या छोड़ूँ!
कुछ मुझे समझ नहीं आता!
क्यों हाथ छुड़ाकर चले गये,
ये बात समझ नहीं आता! 

आप "साहित्य के सूरज" थे,
ऐसे ढल नहीं सकते!
आप हम कवियों के अगुआ थे,
ऐसे छोड़ नहीं सकते! 

नये-नये परिंदों को,
आप "खुला आसमां" देते थे!
हम सबके गलतियों को,
कैसे?  हँसकर भुला देते थे! 

आपके कदमों को,
हम सब मंजिल तक पहुँचाएंगे!
नये-नये कलमकारों को,
"काव्य रंगोली" मंच बताएंगे! 

हे! "हिन्दी-सहित्य" के वट-वृक्ष!
कवियों के तुम प्रथम पृष्ठ!
ऐसे जाना कुछ ठीक नहीं, 
यूँ अपनों को रुलाना ठीक नहीं! 

आप होकर भी "स्मृति-शेष"
 हम सब कवियों के लिए "विशेष"
क्या पता था, यूँ छोड़ जाओगे!
रोयेंगे हम, आप तारा बन जाओगे! 

आपके इस "साहित्य-प्रेम" को
हृदय से नमन करता हूँ!
आपके अन्तिम बेला पर,
मैं कबीर "पुष्प अर्पित" करता हूँ!

– ऋषि कबीर
पता- बांसी सिद्धार्थनगर, उ.प्र.
पिन कोड- 272153
सम्पर्क सूत्र-9415911010
ईमेल- rishikabir1010@gmail.com
            -----★★★------



आशुकवि नीरज अवस्थी जी के स्मृति के उपलक्ष्य में एक कविता सादर समर्पित! 

नीरज जी भारत के अपने, आशुकवी  हैं प्यारे! 
भारत नहीं बिदेशों में भी, 
छापे गीत  खजाने!! 

कविता, गीत छंद सार से, 
नीरज भरते सागर! 
सभी गमों को दूर भगाते, 
सुख के भरते सागर!! 

उनके काब्य में लहरें उठती, 
बहती थी प्रेम की धारा! 
सभी गमों दुख दूर भगाते, 
सभी को लगते न्यारा!! 

नीरज जग के सभी बेदना,
काब्य के जरिये टाला! 
गीत, गजल, दोहा से अपने, 
सब मन किये उजाला!! 

रुलाते वे कभी नहीं थे, 
रोते ब्यक्ति हसाये! 
जीवन जीना कला सिखाये, 
कविता गीत बताये!! 

नीरज असमय मृत्यु हो गई 
अर्क अस्त हो जाना! 
नीरज मिले पंच तंत्र में, 
प्रभू चरण का जाना!! 
                                  अमरनाथ सोनी "अमर" सीधी म.प्र.



आशुकवि नीरज अवस्थी जी को श्रद्धांजलि स्वरूप एक रचना....* 
*गीत*
नीरज जी की सोच का अनुपम प्यारा यह आधार है।
संकल्पित आधार शिला पर काव्य रंगोली सार है।।

कर्मशील बेबाक व्यक्ति तुम सदा बहुत ही मान दिए।
शंकर जी कहते थे हमको, हम तुम पर अभिमान किए।
सदा सत्य को अपनाए थे , नैतिकता व्यवहार है।
नीरज जी की सोच का अनुपम...........।।

एक अचानक आँधी आई तिनके जैसा गिरा महल।
हार गए जीवन तुम अपना, मन होता है बहु विह्वल।
महाकाल की इच्छा जैसी करना बस स्वीकार है।।
नीरज जी की सोच का अनुपम.......।।

आना जाना सतत सत्य है , पर होता स्वीकार नहीं।
सूना यह साहित्य जगत है, दिखता अब उस पार नहीं।
जो भी लोग जुड़े थे तुमसे, उनका प्यार अपार है।
नीरज जी की सोच का अनुपम......।।

यही कामना है ईश्वर से , साहस अपनों को देना।
पत्नी पुत्र का संबल बनकर , सुंदर सपनों को देना।
श्याम सुंदर ही नीरज जी के,  सपनों का संसार है।
नीरज जी की सोच का अनुपम......।।
*ब्रजेश कुमार शंखधर*
*प्रयागराज*


" नीरज जी को श्रद्धा सुमन "
----------------------------------------
      - डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी

शब्द  अटक  रहे  हैं  मुंह  पर ,
गिर  रहे   हैं  आँसू   झर-झर !
हे   ईश्वर !  तेरा   जो  बिधान ,
कभी  न  सकते  हैं  हम जान ।
ग्यारह    मई   का  प्रातःकाल ,
छीन   ले  गया  जबरन  काल  !
साहित्य जगत का था सितारा ,
नीरज अवस्थी  सबका प्यारा ।
विलखता  छोड़  कर  परिवार ,
विधाता  तेरी  यह  कैसी मार ?
थे काव्य रंगोली के संस्थापक ,
समीक्षक  व  प्रवन्ध संपादक ।
क्रूर  काल  ले  गया  छीनकर ,
तड़फ  रहा  साहित्यकार  हर ।
उनके  पद चिन्हों पर चलकर , 
समाज सेवा  करे  मानव  हर ।
होगी  यही  श्रद्धांजलि  सच्ची ,
शिक्षा  लें  सब  बच्चा - बच्ची ।
---------------------------------------
   - डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
ग्राम/पो.पुजार गाँव(चन्द्र वदनी)
द्वारा - हिण्डोला खाल
जिला - टिहरी गढ़वाल - 249122 (उत्तराखंड)
मोबाइल नंबर - 9690450659



कवि श्रेष्ठ नीरज जी को समर्पित यह कविता
🙏🙏🙏🙏🙏
काव्य जगत के दिव्य पुष्प हो,
इस उपवन की शोभा हो,
तुमसे सुरभित काव्य प्रांगण,
तुम साहित्य पुरोधा हो।
यथार्थ और जीवन को तुमने,
एक साथ है वहन किया,
जो कुछ तुमने देखा समझा,
काव्य रूप है उसे दिया,
अंतर्मन थी गहन वेदना ,
कलम उसे बाहर लाई,
प्रेम गीत जब लिख डाले तो,
प्रेम बेलि थी मुस्काई,
आंसू से उपजी जब पीड़ा,
नीरज का पद प्राप्त हुआ,
फूल अगर कोई मुरझाया,
तो नीरज को संताप हुआ,
काव्य रंगोली सजा के तुमको,
आज नमन मैं करती हूं,
हर युग में तुम आओ फिर से,
पुष्प समर्पित करती हूं।

स्वरचित
स्मिता पांडेय लखनऊ।



 नीरज जी की स्मृति में कुछ पंक्तियाँ


काव्य रंगोली से जिसने पहचान बनाई।
देश के विभिन्न प्रान्तों में काव्य गंगा बहाई।।

मातापिता के सच्चे सेवक नीरज ने बात बताई।
इनकी सेवा में रह जिसने साहित्य साधना पाई।।

नवोदित रचनाकारों को देश के बड़े मंच दिए।
काव्य रचनाएं कर प्रकाशित जग में की बढाई।।

सौम्य मृदुभाषी मिलनसार प्रकृति के लेखक थे भाई।
सम्पादक प्रकाशक कवि नीरज ने ऐसी  अलख जगाई।।

आशुकवि नीरज अवस्थी लाखों दिलों में है।
उन्होंने घर घर साहित्य ज्योति जगाई।।

बहुरंगी पत्रिका काव्य रंगोली जिसके हाथ आई।
श्रेष्ठ सम्पादन की करी पाठकों ने जमकर बढ़ाई।।

आज भले नीरज जी मध्य नहीं है हमारे।
लेकिन उनकी काव्य कृतियों ने उनकी याद दिलाई।।

डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
कवि,साहित्यकार
भवानीमंडी
जिला झालावाड
राजस्थान



कवि श्रेष्ठ नीरज अवस्थी जी को श्रद्धा सुमन 💐💐💐💐

अपने सुकृत से जग को 
देकर तुम अनुपम उपहार 
हे साहित्यदीप छोड चले 
असमय क्यूं यह संसार 

पाकर प्रेरणा तुमसे कई 
बने नवीन कई कलमकार 
और तुम्हारी सुकृतियों मे 
झलके तुम्हारे शब्दविचार 

दिव्य व्यकित्व व कृतित्व
अनुगामी जिसका संसार 
कालक्रुर ने छीना कैसे ये 
अनुपम सुंदरतम उपहार 

देती रहेगी प्रेरणा जग को 
आपकी बाते और विचार 
युग युग तक गाएगा जग 
हे 'नीरज' आपकी जयकार 

मौलिक व स्वरचित 
कमलेश जोशी 
कांकरोली राजसमंद 
9950741177
[23/05, 12:57] +91 91164 88506: *नीरज स्मृति सम्मान 2021*

*आशुकवि नीरज अवस्थी को समर्पित एक गीत*
🙏
*गीत*

है ! हिमगिरि के कलकल निर्झर
       निर्झर आँखे कर डाली।
चला गया काव्य का *नीरज*
       कविता है खाली खाली।।
-   -----
सत्य न्याय और कर्म पुजारी 
    आध्यात्मिक शुचिता धारी।
*काव्य रंगोली* के निर्माता
     सजा गया एक फुलवारी।।

 *लखीमपुर खीरी*  आँसू  में 
    क़लम डुबाकर  लिखती है।
प्रेम दूत के असमय निधन पर
    कुदरत भी  दुःख सहती है।।

धीरे धीरे फैल रही थी
             सूख गई वो हरियाली।
चला गया काव्य का *नीरज*
         कविता है खाली खाली।।
----
कोरोना के विषम समय पर
      लड़ता रहा वीर शमशीर।
राष्ट्र और मानवता के हित
        जूझा बहुत क़लम का वीर।।

याद हमे आता अंतिम पल
      एक बड़ा अनुष्ठान किया।
कोरोना में सबके हित को
      आध्यात्मिक आह्वान किया।।

औरों के  हित लड़ने वाले
       ख़ुद अपनी बलि दे डाली
चला गया काव्य का *नीरज*
         कविता है खाली खाली।।
- -----
आज नही तो कल नही तो 
           परसों आना ही होगा।
नीरज का जो रुका कारवां।
            आगे ले जाना होगा।।

काव्य चमन के उस माली के
            रथ को दौड़ाना होगा।
उनके सारे उद्देश्यों को
             पूर्ण बनाना ही होगा।।

सच्ची श्रदांजलि होगी तब
          जब ले हम सब जिम्मेदारी।
चला गया काव्य का *नीरज*
           कविता है खाली खाली।।
🌈🌈
*------------*
*रचनाकार*
*पवन गौतम बमूलिया*
*बाराँ(राज) 9116488506*
[23/05, 13:03] +91 88501 21797: स्व.आशुकवि श्री नीरज अवस्थी जी के श्री चरणों मे कोटि कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि 

थे मेरे साहित्यिक गुरु
किया मेरा साहित्य का सफर शुरू

था साहित्य मे परचम उनका 
थे साहित्य के महारथी

सरल सौम्य मृदुभाषी थे
कविता के थे खूब धनी

हँसते रहना खूब् हँसाना
एक अलग पहचान थी उनकी

नित नए करना आयोजन
था साहित्य को जीवन समर्पण

साफ सुथरी बेदाग छवि
थे महा धुरंधर आशुकवि

रचनाये थी अति उपयोगी
मनुष्य रूप थे वो जोगी

सबको प्रेम और सबको सम्मान 
नीरज जी थे कवि महान

अल्पायु मे ही परम धाम को प्रस्थान किये
रहे अमर आप सदा युगो युगो मे नाम रहे

सत्येंद्र पाण्डेय 'शिल्प'
गोंडा उत्तरप्रदेश
[23/05, 13:18] +91 88272 71176: * *आशुकवि नीरज अवस्थी जी के स्मृति में  प्रस्तुत कविता*

शीर्षक- *आशुकवि नीरज अवस्थी जी*

काव्य रंगोली के संस्थापक,
*नीरज अवस्थी* जी की योगदान अपार।
कवि लोक की उज्जवल चमकता तारा,
कवि हृदय से आपको नमन बारम्बार ।
कविता,छंद ,दोहे और चौपाई,
लखीमपुर खीरी के पावन भूमि का मान बढ़ाया है ।
लेखन कौशल से दुनिया भर में,
अपने सम्पादन कला से श्रेष्ठता का परिचय कराया है ।
विनम्रता और शिष्टाचार की धनी,
सरस्वती माँ के सच्चे उपासक हुआ ।
काव्य सरोवर के राजहँस,
*आशुकवि नीरज*  नाम अनमोल हुआ ।
नवोदित कलमकारों को मँच दिया,
उनके रचनात्मक गुणो को नव आकार दिया ।
मँच में सभी को सम्मान दिया,
रचनाओं का प्रकाशन कर सपना साकार किया ।
कर्मशील सत्यता के अनुरागी,
*नीरज* के दिये प्रेरक शब्द  अमूल्य है।
आपकी विचार एवं कल्पना अनन्त,
काव्य और भाषा शैली,विषय वस्तु अतुल्य है ।।
------------------------------------------------
*खेमराज साहू "राजन "*
*दुर्ग,छत्तीसगढ़*
[23/05, 13:20] +91 93361 74235: *स्वर्गीय नीरज जी को मैं इस कविता के माध्यम से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूं*।


थे साहित्य पुरोधा ज्ञानी काव्य रंगोली की शोभा।
 नवांकुरों की रहे प्रेरणा ऐसा था व्यक्तित्व घना।

प्रबल समर्थक राम राज्य के साहस सदा दिखाते थे ।
संयम, नियम  और दृढ़ता से नित्य नया रच जाते थे।

साहित्यिक परिवार बनाया काव्य रंगोली नाम दिया ।
कर अनाथ परिवार रंगोली काल तुम्हें ले कहाँ गया।

तुम बिन सूना पन छाया है चहुंदिस घिरी उदासी है ।
काव्य रंगोली  फीकी सी है आंखें नीर बहाती हैं ।

नीरज भाई दिया ज्ञान जो ,उसको सदा बढाएंगे ।
विफल न होगा कर्म तुम्हारा ज्ञान  ज्योति फैलाएंगे।
 
शब्द सुमन अंजुली में भर कर पुष्पांजलि चढ़ाते है ।
परमशक्ति में तुम विलीन हो, शत शत शीश नवाते हैं ।
मंजूषा श्रीवास्तव 'मृदुल, लखनऊ
[23/05, 13:41] +91 98970 71046: *(जाने तुम कहाँ चले गए।)*
*।।आ0 स्व0 नीरज जी की स्म्रति में ।।*
*((काव्य रंगोली लखीमपुर )पटल व संस्था*
*की विशिष्टता एवम स्व0 आ0 नीरज के काव्य रंगोली के प्रति समर्पण पर आधारित*
*रचना।)*
1
रंग रंग बिखरे हैँ   साहित्य
के     जहाँ    पर।
नित प्रतिदिन    नव सृजन
होता    वहाँ   पर।।
सुविख्यात  काव्य   रंगोली
संस्था कहलाती वो।
रचनाकारों  का      सम्मान
होता    यहाँ     पर।।
2
जिला स्थान  छोटा ही सही
दिल बहुत बड़ा था।
*नीरज जी* सा व्यक्ति स्वागत 
को आतुर  खड़ा था।।
हर उत्सव पटल   मनाता था
हर्षोल्लास        से।
कविता रंग   यहाँ हर   किसी
पर    चढ़ा       था।।
3
व्यवस्था  व  अनुशासन यहाँ
के प्रमुख   मापदंड हैं।
सहयोग व  सहभागिता  यहाँ
के मुख्य  मानदंड   हैँ।।
सीखने और सीखाने का क्रम
रहता यहाँ निरंतर जारी।
प्रतियोगिता  आयोजन संस्था
के मुख्य    मेरुदंड   है।।
4
भांति भांति के  रंग   मिलकर
बन गई है काव्य रंगोली।
प्रत्येक सिद्ध साहित्यकार की
यह तो    है   हम जोली।।
कविता लेख कहानी   हैं तरह
तरह        के           रंग।
 *स्व0 नीरज  जी* के कारण ये
बन गई सबकी मुँह बोली।।

*रचयिता।।एस के कपूर 'श्री हंस"*
*बरेली।।।*
मोब।।।           9897071046
                      8218685464
[23/05, 15:00] +91 94489 33596: इंदु दीवान
C/303
पायनियर पार्क 
सेक्टर 61
गुरुग्राम
हरियाणा
पिन कोड 122011
मोबाइल 9448933596

आशुकवि नीरज को श्रद्धांजलि

काव्य रंगोली रचाकर भाई, तुम कहाँ चले गए?
इतनी छोटी वय में क्यूँ हमसे मुख मोड़ गए?

हम सबको रोते-बिलखते छोड़ कर तुम, 
अनंत अमर यात्रा पर जाने क्यों चले गए?

काव्य रंगोली को कामायनी से सजाया,
जयशंकर प्रसाद जी का खूब मान बढ़ाया।

हिंदी भाषा का है तुमने गौरव बढ़ाया,
अपनी कविताओं से उसे खूब सजाया।

साहित्य रथ को चलाने वाले सारथी, 
आशुकवि नीरज भाई, 
तुमने हम सबको साहित्य मार्ग दर्शाया। 

प्रकाशक बन तुमने साहित्य को गले लगाया,
नवोदित साहित्यकारों का हौंसला बढ़ाया।

अनगिनत कविताओं के तुम जनक 
जाने किस लोक में होगा अब तुम्हारा पटल?

कलम क्यूँ मौन हो गई स्याही क्यूँ सूख गई।
ये कैसी आपदा, तुम्हारी वाणी हमसे रूठ गयी 

तुमसा कवि संपादक कहाँ अब अवतरित होगा?
कहाँ अब तुमसा रचनाकार हमसे मुखरित होगा 

साहित्य का करुण-क्रंदन शायद तुम सुन भी पाओगे
लेकिन क्या हमारे अश्रुपुरित हृदय को समझा पाओगे 

काव्य मंच का करुण रुदन, तुमको वापस न ला पाएगा।
किंतु हमारा दिल तो सदा तुम्हारी ही कविताएँ दोहराएगा 

अविरल अश्रु  कदाचित समय के चलते सूख भी जाएँगे 
लेकिन अपने दिल से तुम्हारी यादें न कभी मिटा पाएँगे 

कहाँ अब काव्य रंगोली को तुमसा रचनाकार मिल पाएगा 
तो कहाँ हमें तुमसा कवि, प्रकाशक और भाई मिल पाएगा 

नीरज भाई तुम कहाँ चले गए? क्यूँ चले गए?
सदा ही विजेता बने तो यह समर कैसे हार गए?

टूटे हृदय से तुम्हारे शृंगारित इस काव्य मंच हम चलाएँगे 
संभवतः यही अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि हम तुमको दे पाएँगे
इंदु दीवान
23/05/21
[23/05, 16:30] +91 99908 68117: आशुकवि नीरज अवस्थी जी को श्रद्धांजलि 💐💐🙏

तरह तरह के फूलों से 
काव्य रंगोली की बगिया सजा गये,
हर नये रचनाकारों को
मंच पे आने का मौका दिला गये।।

हर जरुरत मंद की सहायता
करने का हुनर सिखा गये,
खुद से बन पड़ता है जो करते रहना
ऐसा ज्ञान मार्ग हमें वो दिखा गये। 

काव्य जगत को एक नई
दिशा अनूठी दे गये,
नवांकुर रचनाकारों को
लिखना बहुत कुछ सिखा गये।।

अवस्थी जी चले गये अब
छोड़ शरीर पावन धाम को,
पर जग में पीछे छोड़ गये
कवि नीरज के पावन नाम को।।
🙏🙏💐💐

चंपा पांडे
उत्तराखंड अल्मोड़ा(चौखुटिया)
[23/05, 16:52] +91 75870 72912: आशुकवि आद. नीरज अवस्थी जी
को समर्पित भाव पुष्प
सादर श्रंद्धाजलि
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


सच्चें सेवक मातु के,अनुपम रचना कार।
भाव पुष्प अर्पित करूँ, ले शब्दों का हार।।

काव्य रंगोली पटल हमारा।
हमको लगता सबसे प्यारा।।
बहती जहाँ काव्य रसधार।
भैया  नीरज  थे  कर्णधार।।

सृजनकार  विचारक  ज्ञानी।
करूँ नमन आदर सनमानी।।
जथा नाम तस गुण अवधारें।
  कोमल भाव सदा उर  धारें।।

ज्ञान ज्योति का दीप  जलाया।
सृजन हेतु  नव राह  दिखाया।।
लोप  हुई   यह   नश्वर काया।
प्रभु की अदभुत लीला माया।।

अमिट भाव बन मन बसें, निशदिन आती याद।
दो नैना आँसू भरें,  करते है फरियाद।।


वन्दहुँ गरुवर पदकमल,सदा नवाऊँ शीश।
पावहुँ सदा सर्वदा, गुरु कृपा आशीष।।

  मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
सरगुजा छ. ग.
[23/05, 17:06] +91 98266 68572: नीरज जी आप बहुत याद आते हो।
काव्य रंगोली को सुन्दर सजाते थे।
वादा दो दूर तक साथ निभाने का था।
ईश्वर की मर्जी का सम्मान करना था।
वादा खिलाफी की यहा कोई बात नही।
अकेला छोड हमे आप जो चले गये।
यादों मे हमारे हमेसा के लिये बस गये।
मंच हमारा सुना विराण सा हो गया हैं।
ईश्वर आप को अपने चरणों में स्थान दे।
प्रार्थना यही कुन्दन ईश्वर से करता हैं।
कुन्दन पाटिल देवास मध्य प्रदेश
सम्पर्क - 9826668572
[23/05, 17:28] +91 93505 05009: *आशुकवि भाई नीरज अवस्थी जी को स्मृति स्वरूप विनम्र श्रद्धांजलि*


तारों के घराने का टिमटिम करता एक तारा,
उभरा था काव्य जगत के आसमां पर न्यारा।

बिखेर कर अपनी प्रतिभा चारों दिशाओं में
रुखसत हो गए नीरज भाई दूर कहीं जहाँ में।

क्यों छोड़ कर चल दिए काव्य रंगोली मंच को?
कौन होगा अब सारथी‌ सोचा न एक पल को।

इस जहाँ में सदा रहता नहीं कोई हरदम,
पर आप जैसे गए ऐसे भी नहीं कोई होता रुखसत।

कवि कभी मरते नहीं जिंदा रह जाते हैं
रंगमंच छोड़ अपनी कविताओं में।

आती रहेगी याद हमेशा कविताएँ जो आप लिख गए।
प्रेरणा लेकर हम चलते रहेंगे काव्य रंगोली मंच पर।

काव्य-पथ पर चलना आप सिखा गए।
मंजिल तक पहुँचने की दौड़ अभी है शेष। 

दुखमय दिन था 11 मई का जब अन्तिम पर्दा गिर गया 
निहारते रहे सब बेबस गमगीन निगाहों से और पंछी उड़ गया।

जाओ नीरज भाई, आप ज्यादा दूर मत जाना। 
जहाँ भी जाना पर वापसी की राह बनाना।

*डॉ वैंडी जैस*(स्वरचित)23/05/2021
 C-4-E /115, जनकपुरी,नई दिल्ली
110058
9350505009
[23/05, 17:34] +91 81046 39622: जो सजाता रहा काव्य के रंगों की रंगोली  ,
छोड़ गया रंगों की महफ़िल था सभी का हमजोली। 

शख्सियत थी अद्भुत बनाये नव प्रतिमान  ,
तनिक भी चिंता ना की था वो होनहार। 

बुझ गया वो सितारा जो सबको जलाता रहा, 
ना कोई स्वार्थ सबमें साहित्य की अलग जलाता रहा। 

सरस्वती का वरद पुत्र बहुमुखी प्रतिभा का धनी, 
खिलाता रहा रंगों की महफ़िल थाबहुत वो गुणी। 

चला गया ना जाने किस देश साहित्य का पुजारी, 
हमें मान दिया, सम्मान दिया हम है बहुत आभारी। ।

डाॅ राजमती पोखरना सुराना भीलवाड़ा राजस्थान
[23/05, 17:53] Yashpal Sir: *स्मृतिशेष नीरज अवस्थी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मेरी श्रद्धांजलि*

*काल चक्र*

हे प्रभु भूत भविष्य वर्तमान से परे, तू अनंत समय का स्वामी है। 
दिवस निशा चलते अविरल, तू कालचक्र का स्वामी  है।।

तेरे उपवन में अगणित कलियां, खिलती हैं मुड़ जाती है। 
सागर की उत्तल तरंगे, उठ उठ गिर गिर जाती हैं।।
ये आना जाना चक्र बना, प्रभु तू ही अन्तर्यामी है।।

संध्या आती है सुख देने, चांँद सितारे लिए प्रकाश ।
नव प्रकाश का स्वागत करने, जन-जन ने देखा आकाश।।
ये जीवन मधु प्रकाश निहित, यह सतत लोक शुभ गामी है।।

गाँव में नीरज का जन्म हुआ, साहित्य के पथ पर चलता रहा।
अविरल चलते रहने पर भी , मंजिल तक वह न पहुंँच सका।
हे महाकाल तेरी लीला, तू ही जाने तू नामी है।।

यह मायाजाल अनोखा है, हर जन्म स्वयं में धोखा है।
रिश्ते नातों में फँसा हुआ, यह जीवन बहुत अनोखा है।।

हे प्रभु ,नीरज की विनती सुन, मैं बँधा स्वयं निज धर्मों से।
साहित्य जगत का तारा बन, मुझे मुक्त करो सब कर्मों से ।
मेरे जो कर्म बचे जग में , तू पूर्ण करे यह हामी है।
 *यशपाल*
*नई दिल्ली*
[23/05, 17:59] +91 93500 55495: बिन्दु सिकन्द
C4E/125
जनकपुरी
नई दिल्ली
पिन कोड 110058
मोबाइल 9350055495

आशुकवि नीरज को श्रद्धांजलि

काव्य रंगोली का मंच सजाकर,
नये कवियों का हौंसला बढ़ा कर
ऐसे क्यों मुख मोड़ गए?
जग से क्यों नाता तोड़ गए?

प्रकृति ने कहर बरपाया।
कोरोना जैसा वायरस आया।
नीरज भैया को जकड़ लिया।
पर हौंसला उन्होंने टूटने न दिया।

इक दिन इसको हरा दूँगा।
जंग की  बाजी जीत जाऊँगा।
सकारात्मक सोच मैं रखूँगा।
मन को अपने हारने न दूँगा।

पालने में बच्चा सोया था।
घर वाले सब देख रहे थे।
दिल ही दिल में घबरा रहे थे।
पत्नी उम्मीद की बाती जलाए हुई थी।

11 मई ये दिन कैसा आया?
उगता सूरज अस्त हो गया।
करोना की जंग हार गया महायोद्धा।
अनंत यात्रा पर निकल गया।

देकर नयी सुबह हमको।
खुद अँधेरों में चले गए।
तुम अनंत यात्रा पर चले गए
सबको अलविदा कह गए।
[23/05, 18:19] +91 98384 06215: स्मृति शेष नीरज अवस्थी जी को विनम्र श्रद्धांजलि🌷🌷🌷


काव्य रंगोली वृक्ष को नीरज गए लगाए,
जड़ को सिंचित कर रहा सकल विश्व समुदाय,
बात आपकी बोलता तरुवर का हर पात,
लता तना से लिपट कर करे बहुत संताप,
नयन नीर निकसत नही बने सरोवर नैन,
"नीरज"नीरज सम खिले अब "अनुज"बहुत बेचैन
पापा पापा तुम कहा दिखते नही है आप
छोड़ भवर में है दिया क्या किया था हमने पाप
नीरज रचना देखकर "रचना"हुई अधीर
विधना तुमने क्या किया क्या लिखी मेरी तकदीर
हास्य व्यंग्य की बात अब हृदय करे आघात,
नही भुलाये भूलती वह लौकी वाली बात,

मुन्ना लाल मिश्र"अनुज"
ग्राम खमरिया पंडित
जिला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश
पिनकोड-262722
[23/05, 18:41] +91 99860 58503: स्वर्गीय श्री नीरज अवस्थी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि। 
----------------------------------------रंगोली  पटल  का  ध्रुव तारा
साहित्य जगत का उजियारा
इस दुनियां से मुंह मोड़ गया
असमय जगत कोछोड़ गया।

कोरोना  उनका  बना  काल
फेंका उन पर  यम का जाल
परिजन को  छोड़ उदासी में 
छोडे़ जग  को बस खांसी में।

नीरज सम कोई भी विभूति 
आती जग आलोकित करने
कर्तव्य  तुला पर  खरा उतर
परलोक पहुंचती रीता भरने। 

हे! कवि  श्रेष्ठ  तुम मरे नहीं 
हमको  रीता  कर  चले गये 
कोरोना के कठिन कलुष से 
तुम  असमय  में  छले  गए।

नव कवियों के पथ प्रदर्शक 
साहित्य जगत की शान बने
समाज सेवा में असीम रुचि
हम सबके यों अभिमान बने।

प्रभु चरणों  में जा कर आप
कह  देना  जनता  का  हाल
और  विनती  कर  कह  देना
प्रभु खत्म करो करोना काल। 

हृदय  की असीम गहराई से 
तेरी  याद में  आहें  भरते हैं 
निजशीशझुका तवचरणों में 
श्रद्धानत नमन  हम करते हैं।

महेन्द्र सिंह राज 
मेढ़े चन्दौली उ. प्र.
[23/05, 18:46] +91 87264 32299: स्व. नीरज जी को समर्पित एक रचना साथ मे नम आँखों से श्रंद्धाजलि🙏🙏🙏

तुम कहाँ गए तुम क्यों गए
ये बात समझ न आती है
तुम आए थे तुम्हे जाना था
ये बात पच न पाती है
जब जाना ही था तुमको
फिर जीवन मे क्यों लाए थे।।

मधुर मधुर स्वप्न दिखा कर
तुम मन मंदिर में आ बैठे
जब बढ़ने लगी मेरी बेचैनी
तुम दूर गगन में जा बैठे
साथ यहीं तक है अपना
तुमने ये भी तो न बोला था
अंत समय मै पास में था
तुमने मुह भी नही खोला था
क्या कम जाता तुम्हारा जो
अपना पता मुझे बता देते
या जहाँ गए हो वहाँ का
रास्ता ही मुझे दिखा देते।।
ममता वाला आँचल गया
गया प्रेम मेरा अभिमान
ऐसा लगता है नीरज
जैसे गया सकल जहान

©️सम्राट की कविताएं
[23/05, 19:10] +91 88268 41722: उड़ चल रे पंछी🐦 कोई न दीजे साथ...
लोभ मोह से भरी ये दुनिया
अपने पंखन की आस🕊️।
उड़ चल रे पंछी🐦 कोई न दीजे साथ...

अपनापन  दिखावा है सब, मिथ्या सबकी बात
उस चेहरे के पीछे छिपा, जाने कौन नकाब👺
मन चंचल, पथ भटक गया है, कैसी अंधियारी ये रात🌚
बस कुछ पहर का खेल है *नीरज*💐, फिर क्या शह और मात
डूब रही है नैया 🛶अपनी, अब कैसी ये ठाट🛀
उड़ चल रे पंछी🐦 कोई न दीजे साथ
लोभ मोह से भरी ये दुनिया, अपने पंखन की आस🕊️
उड़ चल रे पंछी🐦 कोई न दीजे साथ

दुसरो से क्या शिकवा करें जब अपने लगाएं घात
दुख की दुपहरी बीत रही🌞, अब होने को है सूर्यास्त🌥️
जीवन के इस भागदौड़ में🏃, कौन सुने जज़्बात⛄
नज़र बंदी का खेल है जग ये🎭, कोई नही करामात
'प्रभु भक्ति' की डोर में ही🙏, बंधी है अपनी सांस
लोभ मोह में डूबी ये दुनिया, अपने पंखन की आस🕊️
उड़ चल रे पंछी🐦, कोई न दीजे साथ।
               - ई० शिवम कुमार त्रिपाठी
Email: tripathishivam5@gmail.com

स्वरचित....सर्वाधिकार सुरक्षित
[23/05, 19:56] +91 97136 79207: आशु कवि नीरज जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह गीत प्रस्तुत करती हूं ।
नीरज जी की गौरव गाथा, गाती आज तराने में । 
यशोगान हो रहा आपका, देखो आज ज़माने में ।
1.सकारात्मक सोच प्रेरणा, देते सबको रहते थे ।
सम्मानों से किया अलंकृत, उपकृत हमको करते थे ।
अश्रुधारा हो रही प्रवाहित, स्मृति दीप जलाने में ।
2. समरसता का भाव भरे, अपनत्व आपका था सबसे ।
जहां रहो खुश रहना कविवर, प्रार्थना मेरी है रब से ।
योगदान अप्रतिम आपका, काव्य की सरिता बहाने में । 
3.काव्य रंगोली के संस्थापक, आशु कवि थे आप निराले।
सबका रखते ध्यान सदा ही, साहित्य क्षेत्र के रखवाले।
अर्पित है श्रद्धा के सुमन,साहित्य की जोत जगाने में ।
© रचनाकार
डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप" 
शिक्षाविद् एवम् कवयित्री
ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत
Mob 9713679207

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 2021 काव्य रंगोली नारी श्रद्धा सम्मान 2021

 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 2021


[08/03, 7:56 am] कवि रवीन्द्र प्रसाद, शिक्षक, झारखण्ड: नारी महान संस्कृति है
-‐--------------------------
नारी नारायणी तू
जननी कल्याणी तू
बेटी बहन माता है
सृष्टि की विधाता है।।

बेटियाँ गीत हैं संगीत हैं
आत्मा हैं ये मनमीत हैं
प्राण हैं घ्राण हैं श्वाँस हैं
माता पिता के आश हैं।।

कुल की पावन विधान हैं
संस्कृति की संविधान हैं
सृष्टि की आधारशिला ये
पाल रहीं पीयूष पिला ये।।

सृष्टि की अनुपम कृति है
नारी महान संस्कृति है
संस्कार की अनुकृति है
विश्व की यह विभूति है।।

जन-जन की अनुभूति है
बल बुद्धि विद्या श्रुति है
पुरुषार्थ की ये सीढ़ी है
बढ़ाती वंश की पीढ़ी है।।

आशीष पुत्रियों को नित्
अहर्निश सदा मिलता रहे
कामना यही प्रभु से नित्
आशीष सदा बरसता रहे।।

       रचना मौलिक एवं स्वरचित व सर्वाधिकार@ सुरक्षित है।
     रचनाकार:---
    रवीन्द्र प्रसाद "दैवज्ञ "
सम्पर्क सूत्र 8804276009
[08/03, 8:00 am] +91 88409 22449: *महिला दिवस काव्य रंगोली 21*
*अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस*
*काव्य सृजन समारोह*
***********************************
*नारी तू नारायणी*
***********************************
नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है
मां-बहन-बेटी-बहू कितने फर्ज निभाती है।
सुख हो या दुःख साथ सदा निभाती है
नारी तू नारायणी अपना फर्ज निभाती है।
बेटी रूप में तू घर बाबुल का चहकाती है
पत्नी रूप में तू घर पति का महकाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है।
बांध भाई की कलाई पर स्नेह का धागा
रक्षा कवच  बन जाती है
वक्त पड़े तो तू दुर्गा-चण्डी-काली बन जाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है।
ईश्वर का वरदान तू अनोखा
सृष्टि का आधार कहलाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर साथ निभाती है।
**********************************
स्वरचित व मौलिक रचना रचनाकार- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
मोबाइल नंबर- 6388172360
[08/03, 8:02 am] कवि सुरेश लाल श्रीवास्तव अम्बेडकरनगर: नारी जीवन-सम्मान

नारी- सम्मान   निराकृत से,
दुःखमय समाज हो जाता है।
नारी को सुख पहुंचाने से,
सुखमय समाज हो जाता है।।

इतिहास प्रत्यक्षित करने से,
यह विदित हमें हो जाता है।
जब-जब नारी अपमान बढ़ा,
उठता समाज गिर जाता है।।

निज देश में नारी की महिमा,
सज्जित थी पुरातन कालों में।
गायत्री, सावित्री अरु अनुसूया,
पूजित   थीं  उन  समयों में ।।

नारी    की  पूजा   होने  से,
उस काल की महिमा भारी थी।
सुखमय   समीर   चहुँ ओर बहे,
किंचिद     न     दुश्वारी   थी ।।

मध्य-काल   के  आते  ही,
नारी-जीवन अपमान बढ़ा।
जीवन -सम्मान  बचाने को,
सतियों   का  है ग्राफ चढ़ा।।

इनके जीवन की धारा को,
हर तरह से पहुँची पीड़ा थी।
फिर    भी  अपने बलबूते से,
रजिया, दुर्गा   हुंकार  उठीं।।

मीरा   के  भक्ती तानों से,
दुर्गा    के  बलिदानों से।
नारी -जागरण की डंका को,
कोई रोक सका न बजने से।।

ब्रिटिश -काल    में नारी ने,
अपनी शक्ति थी दिखलायी।
पुरुषों के समान नारियाँ भी,
रणक्षेत्रों    में   उतर  आईं।।

लक्ष्मी बाई,  विजय लक्ष्मी,
अरुणा आसफ अब बोल उठीं।
इनके     शक्ति   प्रदर्शन से,
अंग्रेजों  की  सत्ता डोल उठी।।

नारी महिमा का यह बखान,
जो  भी    है   सो  कम है।
हर क्षेत्र में नारियों का परचम,
लहराया  अब   भारत  में है।।

इंदिरा, बेदी,   मदर टेरेसा,
संधू की अब है शान बढ़ी।
एवरेस्ट विजेता बनी बछेन्द्री,
जज बनी फातिमा बीबी थीं।।

नारियाँ   अपनी     प्रतिभा से,
भारत  का मान   बढ़ा हैं रहीं।
मेधा पाटेकर  की सामाजिकता,
विश्व में आज भी   गूँज रही।।

मिशन शक्ति की ज्योति अब,
चहुँ   दिसि    प्रसरित  होय।
नारी -जीवन      सम्मान  से,
भारत    की    उन्नति   होय।।

        रचनाकार-----
       ----सुरेश लाल श्रीवास्तव--
                प्रधानाचार्य
         राजकीय इण्टर कालेज
       अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
   उत्तर प्रदेश,224122






परमादरणीय डॉ सरोज गुप्ता जी, सादर प्रणाम, रचना सेवा में सादर सम्प्रेषित
[08/03, 8:12 am] कवयत्री सीमा शुक्ल बेसिक टीचर मंझवा गद्दोपुर रायबरेली रोड अयोध्या: कमजोर कहां हो तुम नारी?

तुम भरती हो नभ में उड़ान,
संचालित करती रेल यान,
घर की थामें हो तुम कमान,
हर गुण है तुममें विद्दमान
जीवित करती हो सत्यवान,
ममता का गुण सबसे महान।

तुम नया जन्म ले लेती हो
जब बन जाती हो महतारी
कमजोर कहां हो तुम नारी।

मन प्रेम छलकता सागर है,
अंतस करुणा की गागर है।
अमृत रसधार बहे आंचल,
हर पीड़ा सहती हो अविचल।
जीवन में अनुपम धीर भरा।
है नयन नेह का नीर भरा।

तुम देहरी का जलता दीपक
घर घर में तुमसे उजियारी।
कमजोर कहां हो तुम नारी?

मन में नित भाव समर्पण है।
हर रूप प्रेम का दर्पण है।
प्रियतम की संग सहचरी हो
मां रूप बाल की प्रहरी हो।
मन क्षमा दया उर त्याग लिए,
प्रति पल जीती अनुराग लिए।

तुम ईश्वर की सुंदर रचना
यह सृष्टि सृजन तुमसे जारी
कमजोर कहां हो तुम नारी?

युग से इतिहास लिखा तुमने
वीरों को नित्य जनां तुमने।
नित नीर बहाना छोड़ो तुम
अन्याय भुलाना छोड़ो तुम
तुम उमा,रमा हो ब्राम्हणी,
तुम झांसी वाली हो रानी।

शमशीर उठा संहार करो
डाले कुदृष्टि जो व्यभिचारी
कमजोर कहां हो तुम नारी?

सीमा शुक्ला अयोध्या।
[08/03, 8:23 am] दुर्गा प्रसाद नाग: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 के पावन अवसर पर "नारी" विषय पर मेरी यह रचना कार्यक्रम प्रमुख आदरणीया माताश्री सरोज गुप्ता जी के चरणों में सादर समर्पित__

दोहा –
" नारी सुख का मूल ही नारी सुख की खान,
नारी का सम्मान कर होते मनुज महान।"

चौपाई–

इसलिए अगर सुख पाना हो तो नारी का सम्मान करो।
जो नाम अमर कर जाना है तो नारी का सम्मान करो।।

जग में वह देश उठा ऊंचा जिसने नारी का मन किया।
पर मिला खाक में लंका सा जिसने उसका अपमान किया।।

पहले जब महिला मण्डल का भारत में आदर ऊंचा था।
तब उसका चरण कलम वंदन करता संसार समूचा था।।

थे एक राम सीता के हित जिनने रावण का नाश किया।
पांडव थे जिसने कौरव का नारी के लिए विनाश किया।।

अब हरी जा रही हैं कितनी हरदम ही नारी भारत में।
पर कौन खोज करता उनकी रघुराई सा इस भारत में।।

कितनी ही पांचाली के अब नित वस्त्र उतरे जाते हैं।
पर कौन पाण्डवों की नाई बदले में शस्त्र उठाते हैं।।

इसलिए देश यह सदियों से हो रहा रात दिन गारत है।
अब तो बस नाम ही भारत है, भारत अब नहीं वो भारत है।।

भारत की बहनों माताओं यदि अब भी आप जाग जाए ।
तो निश्चय ही हम लोगो के सारे दुःख दैन्य भाग जाएं।।

फिर से यह भारत पहले के भारत सा गौरववान बने।
बलवान बने धनवान बने गुणवान बने विद्वान बने।।

बहनों तुम चाहो तो अब भी, आ सकता है फिर वक्त वही।
दिखलादो तुममें अब भी है, अपनी माता का रक्त वही।।

उठ पड़ो देख ले सब कोई भारत की कैसी नारी हैं।
दुर्गा यदि नहीं तो दुर्गा की अब भी कन्याएं प्यारी हैं।।
__________________________

दुर्गा प्रसाद नाग
नकहा– खीरी
उत्तर प्रदेश
मोo– 9839967711
[08/03, 8:33 am] कवयित्री सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ: ऐ!मातृशक्ति अब जाग जाग।
ऐ!शक्तिपुंज अब जाग जाग ।

रणचंडी बन तू स्वयं आज।
मत बन निरीह नारी समाज।

उठ हो सशक्त भय रहा भाग ।
अबला का चोला त्याग त्याग ।

चल अस्त्र उठा तज लोक लाज ।
शोषण का ले जग से  हिसाब ।

भारत की नारी दुर्गा है ,
भारत की नारी सीता है ।

रणचण्डी बन वह युद्ध करे ,
गीता सी परम पुनीता है ।

मां कौशल्या, जसुदा बनकर ,
जग् को सौगात दिया उसने ।

लक्ष्मीबाई रजिया बनकर ,
बैरी को मात दिया उसने ।

  वह  अनुसुइया वह सावित्री ,
वह पार्वती का मृदुल रूप ।

वह राधा है वह सरसवती
माँ लक्ष्मी का अनुपम स्वरूप ।

इसको अपमानित मत करना ,
ऐ!दुनिया वालों सुन लो तुम ।

सब  नरक भोग कर जाओगे ,
अब कान खोलकर सुन लो तुम ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला
[08/03, 8:37 am] भरत नायक "बाबूजी"
मु. पो. - लोहरसिंह
जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़): *"नारी"* (ताटंक छंद गीत)
****************************
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
****************************
*नारी अनुकृति परमेश्वर की, पूजन की अधिकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
नाते अनगिन जग में उसके, जिन पर तन-मन वारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।

*नारी के बिन नर आधा है, नर भी रचना नारी की।
त्याग-तपस्या की प्रतिमा है, जय हो जन हितकारी की।।
प्रीति दायिनी हर पल है वह, स्नेहिल अति  सुखकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है ।।

*सतत सजगता से नारी की, जग निश्चिंत सदा मानो।
विडंबना फिर यह कैसी है? सहती वह विपदा जानो।।
मान सभी उसका भी रखना, नारी शुचि प्रणधारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।

*देव करें उपकार वहाँ पर, मान जहाँ पाती नारी।
है अवलंब सदा वह घर की, फिर क्यों न सुहाती नारी??
नारी तो है द्वार स्वर्ग का, महिमा उसकी न्यारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।

*नारी का उपहास न करना, उसका मान बढ़ाना है।
रोक भ्रूण की हर हत्या को, पुत्री-प्राण बचाना है।।
नव प्रतिमान सुता नित गढ़ती, सुत पर भी वह भारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, पूजन की अधिकारी है।।

*सृष्टि समाहित जिस नारी में, उसकी किस्मत फूटे क्यों?
थाम ऊँगली तुम्हें चलाया, उसकी लाठी छूटे क्यों??
अपना भी कर्तव्य निभाओ, कर्ज-मुक्ति की बारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।

*मानवता का मान रखो तो, संशय कहीं न होता है।
तोष मिले सत्कर्मों से ही, नाश कुकर्मों होता है।।
कर्म कभी मत करना ऐसा, जिसमें जग-धिक्कारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*******************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग!)
मो. 9340623421
*******************************
[08/03, 9:15 am] Bharti Jain Divyanshi Nr 21: *अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य रंगोली*
में प्रेषित है 👇👇👇

गीत :-

सीने में रखती है ममता, आँखों में चिंगारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।

एक तरफ बन महिष- मर्दिनी ,
दुश्मन मार गिराती है।
छुई-मुई ,बन लजवन्ती सी,
दूजी ओर लजाती है।।

समझो मत इसको बेचारी, ये तलवार दुधारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।

ये अनुसुइया, सावित्री भी,
रामायण की सीता है।
यही अहल्या , शबरी राधा,
मीरा, भगवत -गीता है।।

है दशरथ की कौशल्या ये, मनुज नहीं अवतारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।

कहीं निर्भया, कहीं दामिनी,
कण-कण रूप भवानी है।
प्राण लुटा दे भारत माँ पर,
वो झाँसी की रानी है।।

कदम-कदम पर पौरुष के सँग, इसकी भागीदारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।

ये सतलुज, रावी, चिनाव है,
ये गंगा की धारा है।
दिव्य शक्ति ये परमेश्वर की,
काली का हुंकारा है।।
मर्यादा है इसका गहना, मत समझो लाचारी है।
अबला नहीं सदा से सबला ,ये भारत की नारी है।।

जय हिंद! जय मातृ शक्ति!

🙏🙏🙏

रचनाकार--भारती जैन 'दिव्यांशी'
मुरैना मध्य प्रदेश
मोबाइल--7000896988
                8103384949
(स्वरचित)
[08/03, 9:15 am] Nk अर्चना द्विवेदी अयोध्या फैजाबाद बेसिक टीचर: नारी दिवस की शुभकामनाएं

*दोहे*

नर-नारी जब साथ हों,गढ़ें नवल सोपान।
राष्ट्र प्रगति का पथ चुने,हो जग में उत्थान।।

अम्बर चूमे पाँव को,नारी करे प्रयास।
अपनों के सहयोग का,होता जब आभास।।

पग-पग पर सम्बल मिले,धरती करे विकास।
स्वर्ण अक्षरों में लिखा,नारी का इतिहास।।

नारी को प्रभु ने दिया, अतिशय रूप अनूप।
जैसे प्रतिदिन भोर में, खिलती छत पर धूप।।

करते हैं हर देवता,ऐसी भूमि निवास।
जीवन के अस्तित्व में,नारी का हो वास।।

जीवन की बाजी लगा, नार करे उत्थान।
काज सभी कर डालती,लेती है जो ठान।।
          अर्चना द्विवेदी
            अयोध्या
           सर्वाधिकार सुरक्षित
[08/03, 9:20 am] कवयित्री रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका'
लखनऊ: *देवी स्वरूप माँ बनकर सृष्टि को उद्भूत व परिपालन एवं संवर्धन करते हुए हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका का निर्वहन करने वाली समस्त नारी शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की अनंत हार्दिक शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत हैं रजनी की दो कुण्डलियाँ-*
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नारी का होता नहीं, जहाँ कहीं सम्मान।
खुशियाँ जातीं रूठ हैं, रोता है भगवान।
रोता है भगवान, न करता देश तरक्की।
खोती जग पहचान, बात यह पूरी पक्की।।
संकट खड़े विशाल, पड़े नित विपदा भारी।
सदन वही खुशहाल, जहाँ खुश रहती नारी।।
👩👩👩👩👩👩👩👩
नारी के सम्मान हित, करते बातें लोग।
पर संभव यह कार्य हो, होता नहीं प्रयोग।।
होता नहीं प्रयोग, समस्या बढ़ती जाती।
देवी सम है पूज्य, मगर यह पीटे छाती।।
करें इसी पर वार, प्रताड़ित करते भारी।
होता है अपमान, सहे कब तक यह नारी।।
👵👵👵👵👵👵👵👵
*©रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका'*
*लखनऊ✍*
*उत्तर प्रदेश*
*स्वरचित एवं मौलिक*
*1/12/2019 के संकलन से उद्धृत*
🙏🙏🌹🌻🌻🌹🙏🙏
[08/03, 9:42 am] प्रमिला पांडेय कानपुर: महिला दिवस
मां को समर्पित रचना

तुम गीता हो ,रामायन हो ,
तुम चारो वेदो की थाती।
तुम आरती, पूजा ,वंदन हो।
तुम जलती दीपक में बाती ।।
तुम स्वर हो मधुर कोकिला का तुम राग - रागिनी वर दाती।
तुम दोहा , रोला ,भजनामृत ।
तुम ही दीपक मल्हार गाती।।

तुम मधुर चाॅदनी चंदा की ।
तुम दिनकर का उजियारा हो
तुम ही बसंत सी पुरवाई
तुम  पतझड का पखवारा हो।
तुम ही नदियों में गंगा हो
तुम ही संगम की धारा हो।
तुम मंदिर, मस्जिद,गिरजाघर तुम  ही नानक गुरुद्वारा हो।।

 

प्रमिला पान्डेय
कानपुर
संम्पर्क सूत्र
7905988068
[08/03, 10:34 am] +91 96104 47000: आओ सभी बहने मिलकर हम भारत का उत्थान करें
भारत के आँगन से आओ शुरू नया अभियान करें

प्रश्न यही है कियूं आखिर, बहनों पर अत्याचार हुए ?
राजनीति के चक्रब्यूह में,कियूं बेटी पर वार हुए?
जले न नारी लुटे न इज्जत,शपथ उठायें ध्यान धरें|
भारत के आँगन से आओ,शुरू नया अभियान करें ||

नारी की ताकत बनकर,अब ऐसी अलख जगानी है |
दुर्गा काली तुम बन जाओ, बनना हमें भवानी है ||
कब तक रोयेंगे छिप-छिप,कर माँ चंडी का ध्यान धरें ?
भारत के आँगन से आओ,शुरू नया अभियान करें||

तीन रंग की ध्वजा सम्हालो, सश्त्र उठाओ हांथों में|
हर पापी का नाश करो, तुम मत टूटो जज्बातों में||
चलो एक उज्जवल भारत, का पुनः नया निर्माण करें|
भारत के आँगन से आओ, शुरू नया अभियान करें||

बहुत दुसाशन यहाँ मिलने, गलियों में चौबारों में|
मगर नहीं गोविन्द मिलेंगे, स्वार्थ भरे बाज़ारों में||
धरा और आकाश नापने, की शक्ती का ध्यान धरें|
भारत के आँगन से आओ शुरू नया अभियान करें ||
अमित तिवारी (आजाद )
जयपुर,राजस्थान
9610447000
[08/03, 10:34 am] +91 70142 26037: सादर मंच
दिनांक-7-03-21
विषय-=महिला दिवस पर विशेष
**************************
नारी तुम हो घर की इज्जत ,और रिश्तो की शान हो।
हर युग में पूजित तुम नारी, सबसे बड़ी महान हो।
************************************
घर कि तुम मर्यादा हो, रुप अनेकों तेरे हैं।
माता पुत्री बहन भार्या, रिश्तों में नाम घनेरे हैं।
************************************
जीवन की तुम छाया हो, मोह  ममता कि तुम माया हो
करे समर्पित अपना जीवन, प्रेम सिक्त का साया हो।
************************************
नारी का अभिमान सदा ही, प्रेममय उसका घर है
हो नारी का सम्मान जहां, प्रमुदित नारी का वह घर है।
************************************
नारी का सम्मान बचाना, सच्चा धर्म हमारा है।
वही सफल इंसान जगत में, लगे सभी को प्यारा है।
***********************************
प्रेम लुटा कर अर्पण करती, तन और मन बलिदान है।
कभी रूप रणचंडी बनकर, रखती निज का स्वाभिमान है।
***********************************
कवि संत कुमार सारथि नवलगढ़
[08/03, 10:36 am] Nr नीतू सिंह चौहान Lko: मंच को नमन
विषय - महिला दिवस  ( नारी)
विधा  - गजल
सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
****************************

नारियाँ अब चांद छूने आसमां चढने लगी हैं।
देखिये हर रोज एक इतिहास ये गढने लगी हैं।।

रूढियों के बंधनों को तोडकर के नारियाँ अब।
हौसलों से नित नये आयाम पर बढने लगी हैं।

खौफ कोई अब नहीं, आजाद होकर जी रही वो।
पंक्षियों सी गगन में ले पर नये उडने लगी हैं।।

मुश्किलों से ना डरी वो, पार हर बाधा किया है।
राह के हर कंटकों से, रात- दिन लडने लगी हैं।।

ज्ञान की उर में जलाकर लौ,उजाला कर रही वो।
जब कभी रूढियां बन शूल, हिय खाने लगी हैं।।

            कवयित्री नीतू सिंह चौहान
               जानकी अपार्टमेंट, बल्दीखेडा,
                  लखनऊ- 226012
                    मो0-  9453562919
[08/03, 10:39 am] कवयत्री नीरजा नीरू5/243
जानकी पुरम विस्तार
लखनऊ: *नहीं*चाहती*बनना*देवी*
~~~~~~~~~~~~~~

नहीं चाहती बनना देवी
बस इन्सान ही रहने दो
कतरो  मेरे पंख न देखो
मुझको मन की कहने दो

नहीं चाहती तुम मेरा
चंदन से ही अभिषेक करो
नहीं चाहती तुम मेरा
वंदन बस मुँह को देख करो
माँ के गर्भ में तो मुझको
जन्म समय तक रहने दो
कतरो मेरे ..

नहीं चाहती फल फूलों से
रोज मेरा श्रृंगार करो
नहीं चाहती धन दौलत को
मुझको निश्चित प्यार करो
मुझको मेरे दावानल में 
आप अकेले दहने दो
कतरो मेरे ...

नहीं चाहती निश दिन ही तुम
चरण कमल मेरे धोओ
नहीं चाहती मंगल स्वर लहरी में 
जग के पापों को रोओ
मुझको वस्तु न समझो बस तुम
मानव बन कर सहने दो
कतरो  मेरे ..

दुर्गा ,काली, लक्ष्मी कहकर
मत पूजो  तुम नारी को
सामाजिक ढाँचे में लेकिन
रख दो आधी पारी को
मंदिर ड्योढ़ी न मुझे सजाओ 
बस सम्मान से रहने दो
कतरो  मेरे ...

          _नीरजा'नीरू'
              लखनऊ
[08/03, 10:48 am] कवयित्री कुसुम चौधरी गंगागंज लखनऊ: अंतराष्ट्रीय महिला दिवस
---------------****-------------------

नारी तेरी अजब कहानी,कितनी
                    पीड़ा सहती  है।
गम के प्याले हरदम पीती नहीं
                   किसी से कहती है।

    माँ बहना ,पत्नी बन करके
          रिश्ता सदा निभाती है।
    सबको भोजन ताजा देकर
           बासी तू फिर खाती है।

नारी तू ममता की मूरत कितनी
                  भोली लगती है ।
गम के -----**-------------------।

     तेरे ऊपर अत्याचारों का अंबार
                            लगा रहता ।
      अन्तर्मन में कष्टों का तेरे
               शैलाब भरा रहता ।

फिर भी नहीं हारती नारी ,कुन्दन
                    सी तू जलती है।।
गम के ----------------------------।

    रानी लक्ष्मीबाई बनकर प्राणों
                   का बलिदान किया।
   मत पूछो अब तक नारी ने
          कितना है विषपान किया।

अंध रूढियों मेंजलकरके,बलि-
                  बेदी पर चढ़ती है।
गम के------------------------।

   जीत-जीतकर नारी हरदम-
          अपनो से फिर हारी है।
    सृष्टि रचयिता बनकर नारी -
         ,कुसुम, सदा बलहारी है।

सावित्री,अनुसुइया बनकर-
       अखबारों में छपती है।
गम के----------------------- ।

         डा0 कुसुम चौधरी
          गंगागंज लखनऊ
[08/03, 11:17 am] कवि शिवेंद्र मिश्र मैगलगंज: अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..

नारी*
नारी भगिनी औ वधू,नारी नर की शक्ति।
नारी जननी पुत्रियां, बिन नारी जग रिक्त।।
*कविता*
एक नारी जीवन मे हर पल,
संघर्ष   सदा   करती   रहती।
बचपन  से  वृद्धावस्था  तक,
बस घुट घुट कर जीती रहती।
वह इस दुनियाँ में आती जब,
पितु  मस्तक  रेखाएँ  छाती।
निज नेह बांटकर अपनो को,
सबके  दिल में हैं  छा जाती।
आंगन में किलकारी भरकर,
सबके दुःख  दर्द चुरा लेती।
रखती हर पग है फूंक फूंक,
निज-जन की मर्यादा सेती।
जीवन भर हर कठिनाई को,
बस हंसते हंसते सह जाती।
जब मां का आंगन छोड़ सदा,
अपने पति के घर को जाती।
स्वयं की समस्त इच्छाओं को,
निज अन्तर-मन में दफनाती।
जग में  जब  'मां' का रुप  धरे,
ममता  का  आँचल  फैलाती।
फिर बनके तपस्या की मूरत,
उपकार अनेकों  वह करती।
अपनी  इच्छाओं  का  स्वाहा,
कर्तव्य  की  बेदी  में  करती।
पति-पुत्र, पौत्र की  सेवा में,
अपना जीवन अर्पित करती।
'शिव' अनुपम कृति ये ईश्वर की,
इसकी  न  कोई  तुलना  होती।
शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'
( मैगलगंज-खीरी )
[08/03, 11:20 am] डॉ विद्यासागर मिश्रा लखनऊ: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर छन्द-

करते जो अत्याचार भारतीय नारियों पे,
उन अत्याचरियों को सबक सिखाइये।
डरिये न रंच मात्र ऐसे दुष्ट-पापियों से,
व्यभिचारियों के शीश धड़ से उड़ाइये।
नारियों की लाज पर आंच नहीं आने पाये,
देवी के समान यह इनको बचाइये।
भारतीय नारियों की लाज को बचाने हेतु,
आप भी जटायु के समान बन जाइये।।
डॉ0विद्यासागर मिश्र "सागर"
लखनऊ उ0प्र0
मो0नं09452018190
[08/03, 11:58 am] कवयित्री स्नेहलता नीर रुड़की: आप सभी को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🌹🌹🌹🌹

कुंडलिया छन्द
*************
1
नारी भोली गाय है,ये  मत समझो आप।
उसमें दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती की छाप।।
सरस्वती की छाप, भरम मत मन में पालो।
देख सुकोमल गात,दृष्टि कुत्सित मत डालो।
'नीर' कभी वह फूल,कभी तलवार दुधारी।।
सृजन और संहार, निभाती दोनों नारी।।

2

'नारी' माँ,अर्धांगिनी,बेटी , भगनी, मित्र।
सब रूपों में सन्निहित,प्रेम  भाव  का इत्र ।।
प्रेम भाव का इत्र,लुटा  घर  स्वर्ग बनाती।
दे ममता की  छाँव,सदा  जीवन महकाती।।
बनिता अबला नहीं,आज वह सब पर भारी।
करो  मान-सम्मान,  बढ़ेगी  आगे  नारी।।

-स्नेहलता"नीर"
1960 प्रीत विहार रुड़की
जनपद हरिद्वार ,उत्तराखंड 267667
[08/03, 12:18 pm] कवयत्री अनामिका श्रुति सिंह नागपुर: काव्य रंगोली
महिला दिवस के अवसर पर मेरी    एक कविता    -

भग्न हृदय
🌹🌹🌹

नारी जीवन सदा महान
सब करते इसका गुणगान
सीता हो या सावित्री हो
जग में कर गई अपना नाम ।

आदर्श स्थापित कर ऊँचा
जग में रहना कितना मुमकिन
सीता और सावित्री को भी
था चैन कहाँ रत्ती भर लेकिन।

सतयुग हो या त्रेता हो
द्वापर या कलयुग की रात
ग्रंथ उठाकर बांचे जो
हर जगह भग्न हृदय की बात ।

कभी सुना था किस्सो में
धंस जाती एक हाथ धरा
बेटियों के जन्म लेते ही
मां-बाप का बोझ बढ़ा।

क्या शापित है नारी सदा
इस धरा का बोझ उठाने को
प्यार ,दया और निष्ठा जैसी
कोमल भाव बहाने को।

सीता सावित्री तो नहीं
यह नवयुग की नारी है
पर त्याग, तपस्या, निष्ठा तो
युग- युग की विरासत पाई है।

खुद ही बंधी रही डोर से
शाप मुक्त कैसे होगी
होगी भले ही भग्न हृदय
पर भाव रिक्त नहीं होगी।

अनामिका सिंह
चंद्रपुर, महाराष्ट्र
7990615119
[08/03, 5:22 pm] कवियित्री गीता गुप्ता 'मन' C/o पंकज सिंह
नवीपुरवा धर्मशाला रोड
हरदोई: दोहे-नारी

नारी श्रद्धा रूप है, देवी रूप समान।
ममता का भण्डार है, सदा करो सम्मान।

नारी जीवन संगिनी, देती नर का साथ।
संकट कितना हो बड़ा, नही छोड़ती  हाथ।

कर्तव्यों की नींव है, वनिता  बड़ी महान।
जननी बन पालन करें, प्रेम पले सन्तान।

सीता अनुपम त्याग से, वैदिक युग की शान।
नारी देविस्वरूप है,ज्ञानवान गुणवान।

है ममता ,अनुराग की, समझो नारी   खान।
अबला न समझो इसे,रणचण्डी है जान।

आया संकट देश में, नारी बन पतवार।
बाँधा बेटा पीठ  पर,चला रही तलवार।

स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव-उत्तरप्रदेश
[08/03, 6:49 pm] +91 85328 52618: 🍋🍓    गीतिका  🍓🍋
              *************************
                          💧  नारी  💧
                     आधार- छंद-विधाता
         मापनी- 1222  1222  1222  1222
                 समांत- आन, पदांत- है नारी
     🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

हमारी  सृष्टि में  भगवान का  वरदान  है  नारी ।
वही  बेटी वही जननी अथक  पहचान है नारी ।।

बडी़ है त्याग की मूरति तपस्या जो करे सब को,
करे पय खून से पोषित  सभी की जान है नारी ।

लिया  जो जन्म  कहते  हैं पराई  है  चली  जाये,
बनी ससुराल में आश्रित बड़ी अनजान  है नारी ।

जगत की माँ प्रथम शिक्षक कराती बोध है हमको,
सिखा कर सत्य कथनों को भरे सत ज्ञान है नारी ।

बनाती  सुत सुताओं को  सदा ही योग्य  शिक्षा दे,
बसा  देती  सभी के  घर सुखी अरमान  है नारी ।

मनाती  है मनौती  वह  सभी संतान  के सुख  को,
सभी  उपवास व्रत करती  खुशी का दान है नारी ।

सजग ममता  दिखाती है  रहे खटती  हमेशा वह ,
खिलाती  है प्रथम  हमको बचा पकवान है नारी ।

कभी  सीता  कभी  राधा  कभी  अनुसूइया  माता,
गढ़ी है  कीर्ति सत पथ पर  हमारी  शान है  नारी ।

बनी  झाँसी  महारानी   नहीं  मानी  गुलामी  थी ,
महा  रणचंडिका बन के  वतन का  मान है नारी ।

सदा वह  दम्भ को  सहती  बहू  बेटे नहीं  समझें ,
दुखी फिर भी करे  चिन्ता गमों का  पान है नारी ।

कहें लक्ष्मी उसे घर की अरे उसका कहाँ घर है ?
पराश्रित है सदा ही वह दुखित मुस्कान है नारी ।।

             🍎🍀🌴💧🌸🌀🌺

🌴🌻...रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
               मो0- 8532852618
[08/03, 7:12 pm] कवयत्री पूनम रानी रांची: अन्तर्राष्टीय महिला दिवस  पर समस्त नारी-शक्ति  का वन्दन-अभिनन्दन  करती चार पंक्तियाँ:---
प्रतियुग-प्रति-ब्रह्माण्ड विदित है  ,
जिसकी महिमा भारी !
ब्रह्मा-विष्णु-महेश "बाल" बन,
जाते हैं  बलिहारी !!
पुत्री-पत्नी-मातृ रंप में,
अति आदर अधिकारी !
सकल सृष्टि का "मूल"-
प्रकृति की,
अनुपम "कृति" है "नारी" !!

[08/03, 7:52 pm] निरुपमा मिश्रा नीरू हैदर गढ़ बाराबंकी: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतु

विषय - नारी
विधा - दोहा

नारी बिन जीवन नही, जाने यह संसार।
यही सृष्टि का रूप है, यही जगत आधार।१।

जिस घर में होता नही, नारी का सम्मान।
विपदा की पहचान है, वह घर नरक समान।२।

विषम परिस्थिति को सदा, लेती रही संभाल।
सुख का बनती आसरा, दुख में बनती ढाल।३।

इंद्रधनुष जैसे लगे, नारी के हर रूप।
माँ बहन संगिनी सुता, जीवन सरल अनूप।४।

मानवता के हित में सदा, रखना है यह ध्यान।
शिक्षित सभ्य समाज हो, नारी का सम्मान।५।

नारी के माधुर्य में, शक्ति रूप सौंदर्य।
जीवन में है संतुलन, स्नेह शौर्य एश्वर्य।६।

अपने ही परिवेश में, लाना हमें सुधार।
सुरक्षित नारी अस्मिता, मिले सभी अधिकार।७।

वाणी कर्म विचार से, करिए मत अपमान।
आहत मन नैना सजल,चुभता शूल समान।८।

रचनाकार- निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
पता - हैदरगढ़-बाराबंकी (उ०प्र०)
मोबाइल नंबर- 8756697686
[08/03, 8:14 pm] कवि विनय कुमार बुद्ध असम: *नारी*
(विधा: चौपाई)
●●●●●●●●●
बहन सुता दारा महतारी ।
नारी जगत शक्ति अवतारी ।।
पर उपकार धरा महँ आई ।
नारी महिमा बरनि न जाई ।।

जहँ नारी पाबत दुख नाना ।
सो घर होयहु नरक सामना ।।
जे नर करहि नारि अवमाना ।
काहू न अधम ताहि समाना ।।

घाट बाट घर गली लजाई ।
दुष्टन नहीं तजे कटुलाई ।।
राबण बैठहि घात लगावा ।
आपन आपन सुता बचावा ॥

बैठहु कारन कवन बिचारा ।
नारी भोगत कष्ट अपारा ।।
करहु जतन सब सज्जन भ्राता।
समय रहत चेतहु अब ताता ।।        

हर घर सुता पढ़हि जब आजू ।
करहि प्रगति तब सकल समाजू।
धन्य धन्य समस्त परिवारा।
कान्धा देई बनै सहारा ।।
    ✒️ *विनय कुमार बुद्ध*, न्यू बंगाईगांव, असम, फोन: 9435913108.
[08/03, 9:14 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: कठिन होगी डगर लेकिन,
न तुम कभी डगमगाना।
करके दृढ़ संकल्प मन में,
पाँव को आगे बढ़ाना।

आत्म रक्षा के सभी गुण,
सीख सखियों को सिखाना।
रुक न जाना तुम ठिठक कर,
जीत कर दुनिया दिखाना।

खुद लड़ो अपनी लड़ाई,
छोड़ दो आँसू बहाना।
जो कहे कमजोर तुमको,
बल उसे अपना दिखाना।

बेड़ियाँ सब तोड़ डालो,
अपना तुम डंका बजाना।
नारियाँ भी कम नहीं हैं,
अब सभी को तुम बताना।

जिस्म को फौलाद कर लो,
भेड़ियों से डर न जाना,
कह रही 'प्रतिभा' सभी से,
लाज तुम अपनी बचाना।

प्रतिभा गुप्ता
भिलावां,आलमबाग
लखनऊ
मो-8601546171
[08/03, 9:19 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: महिला दिवस पर विशेष:

नारी में सीता बसती है।
नारी में राधा रमती है।।
नारी की अपनी गरिमा है।
नारी की अपनी महिमा है।
नारी अपने में सुषमा है।
नारी आराध्य अनुपमा है।।
नारी ममता की सागर है।
नारी करुणा की आगर है।
नारी से नर सम्मानित है।
नारी से नर अनुशासित है||
ऊषा की प्रथम अरुणिमा है।
ऋतु की मधुमास प्रियतमा है।।
चंदा की चारु चांदनी है।
संस्रति की सुभग कामिनी है।।

नारी तुम सुभग कामिनी हो!

-  योगेंद्र नाथ द्विवेदी
Mobile Number 07007571382
[08/03, 9:36 pm] कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी": काव्य रंगोली अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन समारोह हेतु
8 मार्च महिला दिवस
कार्यक्रम प्रमुख आदरणीया सरोज दीदी के समक्ष सादर प्रेषित

शीर्षक-: हे नारी !
विधा-: कविता

नारी तुम सुंदर चित्रण हो ।
मानव जीवन के पन्नों का ।।

साहस हो शील नेह श्रद्धा ।
तुम जीती हो मुस्कानों में ।।
बुझती लौ सी आशाओं में ।
तुम प्राण फूँकती प्राणों में ।।

तुम लज्जा का श्रृंगार किये ।
अधरों पर कोमलता लेकर ।।
तुम सृजन विश्व का करती हो ।
निज आँचल में ममता लेकर ।।

तुम त्याग धैर्य की मूरत हो ।
परहित के कष्ट उठाती हो ।।
निज सुख का कर बलिदान सदा ।
विष रूप अश्रु पी जाती हो ।।

हे नारी ! तुम हो शक्ति पुंज ।
करती तुम नव निर्माण सदा ।।
निश्चित जय सदा पराजय पर ।
दुष्टों का कर संहार सदा ।।

पीड़ा को सहज ही सहती हो ।
मुख पर धारण मुस्कान किये ।।
तुम मौन का पहने भूषण हो ।
इक्षाओं का हर घूँट पिये ।।

क्या क्या लिख दूँ नारी तुमको ।
तुम हो अंनत निर्मल धारा ।।
भव्यतम रूप लघु शब्दों में ।
कैसे उकरे चित्रण प्यारा ।।

प्रकृति बिन प्रेम नहीं जीवित ।
नारी से मोल है अन्नों का ।।
नारी तुम सुंदर चित्रण हो ।
मानव जीवन के पन्नों का ।।

स्वरचित-: शिवांगी मिश्रा
               धौरहरा,
              लखीमपुर खीरी
[08/03, 9:37 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन हेतु

एक बार चट्ट से जो टूट गया धागा कोई
आप किसी युक्ति से दोबारा जोड़ देंगे क्या?
चाक पर चढ़ा, बना और फिर पक गया
देख कुदरूप बार-बार फोड़ देंगे क्या?
धार सरिता की तेज बहे निज वेग में ही
आप जहाँ चाहे वहाँ वैसे मोड़ देंगे क्या?
बेटी हो हमारी,आपकी हो या किसी की भी हो
उसे सरकार के सहारे छोड़ देंगे क्या?
~शाश्वत अभिषेक मिश्र
[08/03, 10:27 pm] कवि ओंकार त्रिपाठी दिल्ली बाय राजीव पाण्डेय जी: *काव्य रंगोली अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतू।*

दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

जो जननी बन सन्तानों को अमृत सा पय-पान कराती।
सुर्य किरण बन जो अग-जग को ज्योति सरोवर में नहलाती।
जिसकी परछाईं दुलार है जिसकी ममतामय पुकार है
जो नारी दिग्भ्रमित मनुज को हर पल हर क्षण राह दिखाती।
जो कश्ती है स्वयं आज वह डूब रही क्यों बीच धार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

नारी के शोषण की गाथा दिल को दहलाने वाली है।
आज प्रभा के आनन पर क्यों छाई सघन घटा काली है।
सीता-सावित्री के कुल पर क्यों है विपदाओं का साया।
रस की नदी आज नीरस है क्यों मधु की प्याली खाली है।
आज भरी है किसने पावक, नारी मन के तार-तार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

कहीं पुरुष द्वारा शोषित है कहीं सास के व्यंग सताते।
बिन दहेज के क्यों नारी तन ज्वाला में झुलसाये जाते।
पत्थर शिला समझकर उसको क्यों ठोकर मारी जाती है।
क्यों न अहिल्या के चरणों में रघुवर फिर से शीश झुकाते।
नारी है मधु ऋतु की रानी फिर भी व्याकुल है बहार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

पुरुषों ने नारी के तन को केवल एक खिलौना माना।
गौतम ने कब यशोधरा सत्य कहो पूरा पहचाना।
नारी सिर्फ समर्पण वश ही बनती नर की अंक शायिनी।
रूप शमा पर जलने को आतुर रहता है हर परवाना।
लय माधुरी बसानी होगी फिर से सांसों की सितार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

नारी को वर्चस्व चाहिये फिर से पुरुषों के समाज में।
एक प्रबल स्वर लहरी बनकर फिर वह गूंजे सुप्त साज में।
नारी श्रद्धा और लाज की जग में रही सहचरी अब तक।
उसे सजाना होगा फिर से हमको गौरव भरे ताज में।
नारी जय की परिचायक है लेकिन कुण्ठित रही हार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

ओंकार त्रिपाठी,
दिल्ली
@सर्वाधिकार सुरक्षित
[08/03, 10:48 pm] Nr 21 शालिनी तनेजा: *काव्य रंगोली अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतू।*
************†************
"नारी" - तू खुद ही सक्षम

नारी तू खुद ही सक्षम है
    नव अंकुर तुझ में मुस्काता
जग क्या देगा अधिकार तुझे
     जब तु ही जग की निर्माता

झलक तेरे सार्मथ्य की
    उस पल भी जग ने देखी थी
लक्ष्मीबाई के रुप में
     जब तु हम सब के सम्मुख थी

कभी-कभी सम्मुख ना आकर भी
    तुने सार्मथ्य दिखाया है
तेरी ही शिक्षा से शिवाजी सा   
      शासक इस राष्ट्र ने पाया है

राष्ट्र भक्ति की पाराकाष्ठ
     तब भी जग ने देखी थी
असाधारण बलिदान तु जब
   पन्ना बनकर, कर बैठी थी

नारी के हर रुप में तु
     पुरुर्पों का संबल बनती है
फिर क्यों महिला सशक्तिकरण की
     बात ये दुनिया करती है?

     स्वरचित-
       शालिनी तनेजा (दिल्ली +91 9654861075)
[09/03, 8:12 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस को समर्पित नौ दोहे!🙏 

अटल सत्यवादी  रहे , हरिश्चंद्र  महाराज !
पत्नी शैव्या पुत्र की दे,बलि जिसके काज !!

अग्नि परीक्षा दें सिया,फिर भी हो वनवास!
रामराज्य के लिए भी , सीता सहतीं त्रास !!

पीड़ित है अपनी सुता, मां को आया ध्यान !
फटा हृदय तब भूमि का, मिला वहीं स्थान। 

चंद दिनों की प्रीत थी,वर्षों का अवसाद !
हुए द्वारकाधीश तुम , राधा सहे विषाद!!

लगे द्रोपदी दांव पर , द्यूत बने जब धर्म !
धर्मराज के धर्म का, जाने क्या था मर्म !!  

यशोधरा के प्रश्न का, उत्तर दो हे बुद्ध!
भागे थे क्यों छोड़कर,ये जीवन का युद्ध!!

राहुल का अपराध तो,कुछ बतलाओ आज!
पितृ धर्म से विमुख हो ,आयी ना क्यों लाज!! 

आज जशोदा बेन भी,भुगत रहीं वनवास!
नारी ही क्यों सदा ही , सहे पुरुष का त्रास !!

युगों युगों से जो हुआ , अनुचित अत्याचार !
क्या अनुचित जो अब करे,नारी भी प्रतिकार !!
                     
                    श्रीकांत त्रिवेदी, लखनऊ
[10/03, 9:48 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतु
**************************
दिन-रात मैं खटती रहती हूं
मेहनत से नहीं डरती हूं
बस एक दिवस से क्या होगा
सारे दिवस तो मुझसे हैं ।

मेरे बिना क्या जीवन होगा
मेरे बिना धरती सूनी है
कण कण में है मेरा बसेरा
मैं हूं तो हरियाली है ।

कदम मिलाकर चलें आज से
महिलाओं के संग
स्वर्ग सी सुंदर दुनिया होगी
होंगे प्यार के रंग ।

              @ महेंद्र जोशी
‌                     नोएडा
                9818198456
[10/03, 10:20 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन समारोह हेतु

हे नारी का अभिमान जगो,
रण की भीषण हुंकार जगो।
कल  नही  तुम  आज जगो,
हाथों में लेकर तलवार जगो।।2।।

जगना हैं तो बस आज जगो,
माँ  पद्मिनी  की  आन जगो।
लक्ष्मीबाई की ललकार जगो,
ले  एक  नया  इतिहास जगो।।2।।

तुमको तो अब  जगना होगा,
यह  समर तुम्हें लड़ना होगा।
यदि आज नहीं तो कब होगा,
हे  नारी  अब  न  कल  होगा।।2।।

अब न त्रेता, द्वापर युग होगा,
न राम  कृष्ण  का  युग होगा।
पांचाली अब खुद लड़ना होगा,
अब केश रक्त से धुलना होगा।।2।।

हे नारी अब तुम संधान करो,
ये वार तुम अंतिम बार करो।
रण भीषण अबकी बार करो,
यह रण ही अंतिम बार करो।।2।।

~कुमार नमन
लखीमपुर-खीरी

काव्य रंगोली नारी श्रद्धा सम्मान 2021 अन्तर्राष्जट्रीय महिला दिवस पर आयोजित समारोह 8 मार्च 2021

 परम् आदरणीया डॉ सरोज गुप्ता जी हिंदी विभागाध्यक्ष शासकीय कला एवम वाणिज्य महाविद्यालय सागर मध्य प्रदेश जी जो कि इस कार्यक्रम की प्रमुख है निर्णायक गई और काव्य रंगोली परिवार की विशिष्ट सहयोगी भी ऐसी महनीय विभूति की प्रेरणादायक उपस्थित को नमन करते हुए पूरे पत्रिका परिवार की ओर से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जो कि आपने इस कार्यक्रम को उत्कृष्टता प्रदान करने हेतु समय दिया।श।


नेह सनेह प्रतियोगिता 2020


 

नेह सनेह प्रतियोगिता 2020

काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव ऑनलाइन 2020

*********************
माधवी गणवीर
छत्तीसगढ़
राजनांदगांव
9685505911
*काव्य रंगोली  नेह कव्योत्सव*
कहते है आज प्रेम दिवस है
पर......प्रेम के लिए दिवस
प्रेम किसी दिवस का मोहताज नहीं
प्रेम तो हर इंसान में है
प्रेम अहसास है, रूह है,आत्मा है
बिना  इसके जीवन निराधार है।
हा....प्रेम है मुझे अपने मुझे
माता पिता से
जिन्होंने मुझे आकर दिया
रूप, रंग अनुभूति दी,
ज्ञान दिया,प्राण दिया, दुनिया दी।
हां......प्रेम है मुझे
अपने दोस्तो से जिन्होंने
हर वक़्त संभाला अच्छा
बुरा वक़्त साथ बिताया
आगे बढ़ने का हौसला दिया।
हां...... प्रेम है मुझे
अपने जीवन साथी से
जो प्राण है, धड़कन है
जिनका मिला साथ बना
सुख दुख का आधार
गर्व और विश्वास
हां......प्रेम है मुझे
मेरे बच्चो से
जिन्होंने मेरा वजूद बनाया
मेरे "मै" होने का हक दिलाया
मेरी खुशी और यश के
आधार स्तम्भ।
हां.....प्रेम है मुझे
अपने वतन की माटी से
जिसमें रच बस कर
जिनका अन्न जल खाकर
जीवन को पूर्ण से सम्पूर्ण बनाया।
आज प्रेम  दिवस पर
समर्पित करती हूं
उन तमाम सम्बन्धों को
जो दिन तिथि में बन्धे न होकर
प्रतिदिन खुशियां ओर प्रेम देते है
जीवन प्रतिफल आनंदित करते है
आज प्रेम दिवस पर उनको
मेरा आत्मीय नमन। 🙏🏻

*********************
9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

  वेलनटाइन डे           अतुकांत

  इज़हार करो
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
करते हो प्यार , इज़हार करो
कहूँ मै तुमसे प्यार करो
अधूरा जीवन प्यार बिना
अधूरा प्यार इज़हार बिना
कहाँ है पूरा इक़रार बिना
स्वीकार करो , कहो तुम भी कि प्यार करो ।
प्यार करो बस , इज़हार करो
जीवन भर का इक़रार करो
सात जन्मों तक याद रखेंगे
प्यार का त्योहार करो ।
********************
मधु गुप्ता "महक"*
गीत*
           *माँ*

कभी गरम कभी शीतल
     कभी छाँव तो कभी धूप,
ये माँ मुझे भाता है,
      तेरा यह सारा रुप।
ये माँ..................

धीरज कितना रखती माँ,
        देवी दुर्गा कहलाती हो।
अपने बच्चों की खातिर माँ,
    कभी काली बन जाती हो।
समान प्यार पुत्रों से करती,
    चाहे सुंदर या हो कुरूप
ये माँ................

घर तुमसे ही घर कहलाता,
         घर को स्वर्ग बनाती हो।
तुमसे ही उज्ज्वल होता
       तुम दीया संग बाती हो।
घर की पालनहारी माँ,
       तुम हो लक्ष्मी स्वरूप।
ये माँ..................

*********************
अरुणा अग्रवाल लोरमी
छग
मेरा वेलेंटाइन मेरा देश भारत
-:जग सिर मौर भारत :-

घन विपिन में  नृत्यरत  मोर,
कानन सुंदरी करती विभोर,
हिरनी हलचल मचाई,धीमी शोर,
दिव्य छटा धात्री अलौकिक भारत मोर।

वव्योयमें  खग गाती लहराती सुर
तितली रंगीली बागन में करती विभोर,
भ्रमर भीनी,-भीनी नाद करता धंधोर,
अपूर्व प्रकृति- रानी धात्री भारत मोर।

तारिणी गंगा पाप हरिणी करती कल शोर,
सुरभि कामधेनु ब्रजलाल करता माखनचोर,
कृष्ण संग राधा वल्लभ खुशी अपार,
अभूत पूर्व नजारा धात्री भारतवर्ष मोर।

आगरा में भव्य ताजमहल बना संगमरमर,
सात आश्चर्य में दर्शनीय करता जनमानस विभोर,
द्वारिका, पुरी,बद्रीनाथ,और रामेश्वर धाम चार,
अनुपम भारत-वर्ष जगसिर मौर ।

सभ्यता संस्कृति में चमत्कारी देश मोर,
  अनेकता में एकता निराला यही गोचर,
होली,दीपावली,ईद पर्व देता खुशी अपार,
अलबेली मनचली भारत-वर्ष मोर ।

जननी जन्मभूमि गरीयसी मोर,
वंदे मातरम राष्ट्रगान,तिरंगा करता विभोर,
श्री राम,श्री कृष्ण का अवतारी देश भारत मोर,
लव, कुश, प्रहलाद का जननी भी भारत मोर।

रामायण,महाभारत,उपनिषद मोर,
गायत्री मंत्र का ओमकार ध्वनि,शोर,
हर-हर महादेव गाता भक्त करता विभोर,
अतुलनीय,नन्दनीय जगसीर भारत मौर।

********************
जगदीश्वरी चौबे
वाराणसी
" तुम "

एक दो रोज़ की मुलाक़ात नहीं थी ।
एक दो रोज़ की पहचान नहीं थी ।
एक छोटी सी मुलाक़ात हुई थी ,
और शुरू हुआ था सिलसिला बातों का ।

तुम्हारी मुस्कुराने की आदत थी
और हमारी ,
तुम्हें मुस्कुराते देखने की ।
लगा था ज़िन्दगी बस ,
यूं ही गुज़र जाएगी ।

तब कहां पता था ,
एक दिन अचानक ,
बिना कुछ बोले ,
यूं रास्ता बदल दोगे तुम
और छोड़ जाओगे हमारे लिए ,
सिर्फ यादें ।

अभी पिछली मुलाक़ात में ही तो
वादा किया था मिलने का ।
होली के रंगों के साथ ,
रंग जाना था मुझे तुम्हारे  रंग में।

मगर ये क्या हुआ ?
किसने खेली ये खून की होली
तुम्हारे  साथ ?
वो कौन था ,
जिसने तोड़ दिया ,
सारे सपनों को ।

अब कहां ढूंढूं तुम्हें ?
कैसे पाऊं तुम्हें ?
किससे पूछूं तुम्हारा पता ?
वतन तुम्हारा पहला प्यार था।
तिरंगा तुम्हें जान से प्यारा था ।

जब देखा तुम्हें तिरंगे में लिपटे हुए ।
आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा ।
हमारा मिलना कितना सुखद होता ।

मगर जब देखा ,
तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा ,
तब समझी
ये मुस्कुराहट थी ,
पहले प्यार पर मर मिटने की ।

सबकी होली रंगों से सजी रहे ,
इसलिए
झेल गए तुम खून की होली ।
हां , याद तो तुम बहुत आओगे ।
मगर आसूं  नहीं बहाना है
क्यूंकि ,
मेरी होली के रंग
भले ही फीके हो गए ,
मगर कल
जब पूरा देश होली मनाएगा ,
तब उसकी वजह तुम होगे ।

मेरी मांग नहीं सजी
तो क्या हुआ
कई सुहागिनें मांग भर सकेंगी ,
तब उसकी वजह तुम होगे ।

गर्व है मुझे "तुम "  पर
याद तो तुम बहुत आओगे ।
दिल भी ये बहुत रोएगा ।
मगर जब भी देखूंगी
अपने चारों ओर ,
चैन से सोती मांएं ,
खिलखिलाते बच्चे ,
तब ख़ुशी होगी
क्यूंकि ,
इसकी वजह " तुम " होगे ।

********************
जयप्रकाश चौहान * अजनबी*
जिसने मुझे इस दुनिया में लाया,
पहला  प्यार  मैंने  माँ का पाया।
मुझपे रहती हैं उनके आँचल छाया,
ये सच्चा प्रेम हैं बाकी सब मोहमाया।

आगे बताते हैं हम आपको बात,
मेरे  भगवान हैं सिर्फ मेरे तात।
बस उनकी हैं ये सारी करामात,
उनके पदचिन्ह से बनी मेरी छाप।

बहुत प्रेम करती हैं  मेरी तीनों बहना,
वो हैं हमारे परिवार लिए अनमोल गहना।
घर सम्भालती हैं अब वे तीनो अपना,
परिवार बढ़े आगे उनका यही सपना।

जीजाजी मिले मुझे गौरीसहाय, विकास, गजानंद,
तीनो बहना रहती हैं सुख-चैन से,करती हैं आनंद।
ससुराल में मान बढ़ाकर पीहर का करती हैं उजियारा,
हम भी यही अरदास करे खुशीयों से बीते जीवन सारा।

अब मैं बात बताता हूँ अपने हसीन यारो की,
धरती के गुलाब व आसमां के चाँद-सितारों की।
उनके प्यार, मोहब्बत, जज्बात साथ सारो की,
खुशियां रहे हमेशा महक जीवन में फूल हजारों की।

*********************

शिवाँगी मिश्रा
लखीमपुर-खीरी

परिवार
...............

प्रेम का नाम आये तो तुम ही दिखे ।
प्रेम के पुष्प उर में तुम्हीं से खिले ।।
प्रेम का अंश क्या रूप क्या प्रेम का ।
देखने को नयन माँ तुम्हीं से मिले ।।

धूप में जो बने वो छाया प्रतिरूप हो ।
तेरी छाया तले सुख की ही धूप हो ।।
तुमसे ही खिलखिलाता ये आँगन मेरा ।
तुम जनक हो मेरे तुम मेरे भूप हो ।।

प्यार का है जुडा तुमसे नाता मेरा ।
मुस्कुराओ जो तुम दुख है जाता मेरा ।।
प्यार का इक अनोखा सा बन्धन है ये ।
प्यार की है कीमती देन भ्राता मेरा ।।

आज दिन मैं तुम्हारे लिए क्या लिखूँ ।
लिख सकूँ जो तुम्हें अपना सब कुछ लिखूँ ।।
माँ,पिता,भाई बन्धु के जैसी हो तुम ।
तुम में मिल जाऊँ ऐसे तुम्हीं में दिखूँ ।।

मेरा सम्बल हो तुम शक्ति हो प्रेम हो ।
अग्रजा मैं तुम्हारी ही छाया बनूँ ।।

मनाना क्या भला ये ऐसे वेलेंटाइन डे का प्यार ।
टिके जो सप्ताह भर भला किस काम का वो प्यार ।।

हमारे प्यार का आधार है हमारे प्यार का संसार ।
भरा है प्यार के सागर से मेरा  प्यारा सा परिवार ।।
********************
राजश्री शर्मा
विनायक कहान नगर
इंदौर रोड खंडवा

तुम चले आओ बनकर
एक अजनबी
मेरे कमरे में यूँ ही
इक लहर सी

सूझी है
इक शरारत यूँ ही

गैर करेंगे इशारे
चर्चे होंगे आम हमारे
हम मुंह छुपायेंगे
बनकर अनजान यूँ ही

आसमां के रौशनदान से
पूरा चांद झांकेगा
रौशन कर सपने हंसी
याद जवानी को कर
हंस देंगे हम बरबस यूँ ही।

********************
         
डा. निशा माथुर
जयपुर 
                                                                                                                                                         "पिता"
छंदमुक्त - स्वतंत्र

कन्या के जन्म लेते ही पिता, ऐसा पिता बन जाता है।
पल पल बङते उसके रूपों संग, उसका रूप ढल जाता है।

अपनी तनया को गोदी लेते ही वो मां जैसा बन जाता है,
अपने सीने से लगा प्यार से, थपकाकर उसे सुलाता है।

उसके रोने, उसकी सिसकी पर, जब वो लोरी बन जाता है,
पलको की कोरो पर अश्को के मोती, बीन बीन कर लाता है।

नन्हें नन्हे उसके कदमों संग, हरपल वो बच्चा बन जाता हैं,
अपनी बेटी की तुतलाती बोली में अपना बचपन जी जाता है।

तितली सी खिलती तनूजा का, फिर ऐसा साथी बन जाता है,
उसकी मुस्कान, हंसी खुशी के लिये, कैसे यारीयां निभाता है।

स्वप्न सजाती  वैदेही के लिये जब वो जनक बन जाता है,
अपने अनुभव और सामथ्र्य से बेहतर का, राम ढूंढकर लाता है।

ससुराल विदा होती आत्मजा का,  जब वो बाबुल बन जाता है,
अपने अंश वंश को भीगे नयनों संग,कैसे डोली में बैठाता है ?

आंगन में उङती फिरती चिङिया का, जब सूनापन छा जाता है,
अपनी उम्र उसे लगा,जीवन को हार, मन्नतें मांगता रह जाता है।

*********************
नरेश मलिक

हमारे  रहो  आरज़ू  है  हमारी
रही हर जुबां गुफ्तगू है हमारीl

रहे  साथ  तेरा  ये  चाहा  हमीं ने
यही आखिरी जुस्तजू है हमारीl

सदा तुमको पूजा खुदा से भी ज्यादा
इबादत  मेरी  जान  तू  है  हमारीl

वफ़ा ही वफ़ा हम करेंगें ये मानो
तेरा  साथ  दें  जुस्तजू है हमारीl

दिया कौल हमने निभायेंगे भी हम
न  समझो  जुबां  फालतू है हमारी

छुपाया न कुछ भी कभी हमने तुमसे
रही   जिन्दगी  रुबरू   है  हमारीl

कहा जो मलिक ने किया शान से वो,
कि  प्यारी  हमें  आबरू  है  हमारीl

*******************
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून

  देश प्रेम
-----------------
देश मेरा हैं  सर्वोपरि
यही हैं मेरा पहला प्यार
इस धरा को करती नमन,
इसके बाद मात -पिता।

पत्ते -पत्ते में बसी
मेरी जान हैं
हैं मेरी अमानत
और मेरी शान हैं।

ललकार आज तिरंगा रहा देश के दुश्मनों को,
भारत माँ भी गर्व कर रही
देख के देश भक्त संतानों को।

ली मैंने यहाँ की साँस और
किया जलपान ग्रहण यहाँ का,
देश सुरक्षित रहे मेरा
यही अंतिम भावना।

रहे जो मेरे देश में ईमानदारी
और सच्चाई  से,
करती हूँ शत -शत नमन
बहुत आदर और सम्मान  से।

**********************
गरिमा
डिंडोरी
मध्यप्रदेश

मेरे बच्चे

मेरे बच्चे मेरी
जिंदगी है
मेरी हर खुशी है

उनके बिना
मेरे जीवन
में एक कमी
सी थी

मेरी आँखों
में नमी थी
जो उनके
आने से पूरी
हो गई है

मेरी काँटो से भरी
जिंदगी में मेंरे बच्चे
फूलो का सुकून
लेकर आते है

मेरी मायूसी से
भरी जिंदगी को
खुशियों की
रोशनी से रोशन
कर जाते है
मेरे बच्चें
*******************
डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

विषय - " देश का फौजी"

अपनी जान की परवाह कब है
सीमा रक्षक  फौजी  को...।
डिग्री माइनस हिम में गलना
भारत देश के  फौजी  को.।।

इनका मजहब देश की रक्षा
मां  का  मान  बढ़ाते  हैं ।
पैटन  टैंक  उड़ाने  वाले
अब्दुल हमीद ही भाते  हैं।।

होली हो चाहे ईद, दिवाली
शादी की  हो ऋतु सुहानी।
इनका जज्बा सुन मेरी आलि
वंदेमातरम  की  जवानी।।

गोला - बारूद  बंदूकें  ही
गुलाल और पिचकारी हैं।
हंसते- हंसते, रक्त- रंग में
धन्य- धन्य हितकारी हैं।।

देख उन्नति मेरे  देश की
बन बैठे जो  जानी दुश्मन।
उनको सबक सिखाकर आया
हाँ राजदुलारा *अभिनंदन*।।

वह बब्बर शेर हैं भारत के
वह माता के रखवाले हैं ।
धड़कन सवा सौ करोड़ों की
सब  देशप्रेम  मतवाले  हैं ।।

अपनी जान की परवाह कब है
भारत देश के  फौजी  को......

*********************
डॉ0 शोभा दीक्षित 'भावना',
निजी सचिव, ग्रेड-3,
/ संपादक, अपरिहार्य
मो0 9454410576

मेरी प्रथम वेलेंटाइन माँ
- बाबू जी के श्रीचरणों में  नमन की चार पंक्तियों के साथ-

यह जीवन संचरण इसमें कहाँ विश्राम आता है।
कहाँ संघर्ष में अपना हमेशा काम आता है।
जो तेरे काम आये हो बिना कुछ चाह कर तुझसे-
अकेला बस अकेला उनमें माँ का नाम आता है।।

पिता

तुझे खुश देखकर जलता तबाही देख सकता है।
ज़माना रोशनी में भी, सियाही देख सकता है।
तू किस भगवान के कदमों में अपना सर झुकाता है-
तुझे खुद से बड़ा केवल पिता ही देख सकता है।।

********************
डर0मृदुला शुक्ल
काव्यरंगोली सखी संसार प्रमुख

वैलेन्टाइन डे पर मेरी बड़ी बहिन सुश्री उर्मिला शुक्ला दीदी को मेरे कुछ छंद–

"निर्मल, विमल,मृदु की उर्मिल
प्यारी हो"
------------------------------------

कचनार-कली जैसी सुकुमारी उर्मिल,
शीतल शरदचन्द-सम वपु तेरा है।
काले-काले केश तेरे मन्द-मन्द बोली मृदु,
गोरे-गोरे गाल मृदु गोरा बदन तेरा है।।
चिन्तन-मनन तुम करती रहती हो सदा,
विद्या में निपुण बहुमुखी ज्ञान तेरा है।
अग्रजा बना के भेजा विधि के विधाता ने ही,
मृदुल, कठोर दोनों,हृदय ये तेरा है।।

हो परमप्रिय तुम हम सभी बहिनों की,
माता-पिता की तो तुम सदा अति प्यारी हो।
धीर,गम्भीर, तुममें गुरुत्व समाया हुआ,
शान हम सभी की हो तुम अति प्यारी हो।।
मस्तक है तेजोमय आनन ये दीप्तिमान,
निर्मल, विमल, मृदु की उर्मिल प्यारी हो।
ज्ञान औ वैराग्य-कान्ति तुममें झलकती है,
शक्ति,भक्ति,साहस की ज्योति उर्मि प्यारी हो।।

धर्म,कर्म,निष्ठा में है आस्था अटूट तेरी,
पूजा-पाठ भगवान की सेविका प्यारी हो।
देवी-देवताओं को न बिसराती
कभी तुम,
ऋषि-मुनियों के सम वैरागिनी प्यारी हो।।
जग के प्रपंचों में न होती कभी लिप्त तुम,
शारदा, भवानी की माँ सुता प्यारी-प्यारी हो।
सागर की गहराई तेरे उर की है उर्मि,
अन्नपूर्णा, लक्ष्मी और दुर्गा तुम प्यारी हो।।

*******************
जितेन्द्र"जीत"भागड़कर
      कोचेवाही, लाँजी
जिला-बालाघाट,म.प्र.

        प्यार की समझ
हसीन ख़्वाब देखे हैं तुमने,
प्यार के
संजोकर रखना,
मन-हृदय-पलकों में।
आँखे चार ज़रा
सोचकर करना
दुनिया बिन बोले
शब्द भान लेता है,
बिन खोले
राज़ जान लेता है।
कहना नही फिर कि
ज़माना चोर है।
आँख-कान खुले रखने की,
सलाह देंगे लोग
पर कुछ बोलने
मौन रहने कहेगें
क्योंकि इस राह
उनको भी चलाना जोर है।

********************
काव्य रंगोली नेह स्नेह प्रतियोगिता 2020

डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड
9759252537

तुम्हीं से......

तुम्हीं से....
—————
मेरे दिन और रात
शुरू होते हैं तुम्हीं से
मेरे जीवन के हर तार
जुड़े हैं तुम्हीं से,
सृष्टि के कण-कण में
हर ओर दिखाई देते
जहाँ धूप दिखाई देती
वहाँ छाया कर देते,
जब भी देखूँ मैं तुमको
लगे खड़ा है विधाता!
आकुल-व्याकुल मन मेरा
तेरे आँचल से लिपटा जाता,
तेरे यादों के मोती से
माला अनुपम गूँथी है
आधार यही अब मेरा
निधि मेरी अनूठी है,
कुछ ऐसा कर सकूँ जो
तेरे दूध का मोल निभाऊँ
कुछ स्वप्न रहे जो अधूरे
उनको पूरा कर पाऊँ,
जब भी जन्म मिले इस भू पर
मेरे मात-पिता ही बनना
अपनी बेटी को फिर से
अपने जीवन में चुनना,
मेरी माँ! मेरे पापा!
उस पार तुम खड़े हो
इस पार मैं खड़ी हूँ
हर दिवस है तुम्हारा
प्रेम-अर्ध्य लिए खड़ी हूँ.....!!!
*********************

डाँ अंजुल कंसल"कनुप्रिया

  ऐ मां तुम्हारे पदरज की धूल अति पावन है
  पीली सरसों से रचा बसा हर्षित बसंत है
   हे पिता हम पर है कृपा अपरम्पार
   आपकी सुरभि से सुरभित जीवन है
   मां का वंदन पिता का अभिनंदन है
   पुलवामा के शहीदों आज करते हैं
   बारम्बार नमन अश्रु पूरित नमन है
   वसुंधरा के शहीदों करते प्रणाम हैं।
"

*******************
भूपसिंह 'भारती',
आदर्श नगर नारनौल (हरियाणा)

"वेलेंटाइन डे"

(1)
मिलने की आई घड़ी,  रहे   खुशी  म्ह  झूम।
वेलेंटाइन दिवस की,  खूब    माचरी     धूम।
खूब   माचरी   धूम,  झूमकै   कसमें   खावै।
एक  दूजे  नै   खूब,  प्यार  तै   गलै  लगावै।
कहै  'भारती'  लगे,  गुलाबी  सपने  खिलने।
प्रेम दिवस पर सभी,  प्यार से  लागे  मिलने।
           

(2)
वेलेंटाइन  डे  बणा,  आज दिवस ये खास।
जनता इसमै ढूंढती,  प्यार  और   विश्वास।
प्यार और विश्वास,  आस  यो  नई  जगावै।
बणा रहै यो प्यार,  सार  जीवन म्ह  ल्यावै।
कहै भारती प्यार,  सुरग को  सीधो  दगड़ो।
नफरत नै दो छोड़,  प्यार की  राही पकड़ो।
*********************

भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
*" प्रेम "*
(प आवृत्तिक अनुप्रासिक दोहे)- भाग- १
..................................
*पाकर प्रेम पवित्रता,
     पुलक प्रगट प्रतिमान।
प्लावित प्रहसित पग परे,
    प्राग पथिक पहचान।।१।।

*प्रेमी पावस प्रीत पा,
         प्रेमिल पंख पसार।
पूरित पावन प्रेरणा,
        पुलकित पारावार।।२।।

*परवश प्रभुता पाहुना,
    पल-पल पटल पुकार।
प्रेम परात पखारना,
        प्रीत-पाग पइसार।।३।।

*पाकर पावन प्रेरणा,
           पसरे प्रीत पसंद।
प्रखर प्रचुरता पाक पर,
           पावत परमानंद।।४।।

*प्रेम पहेली परमसुख,
       पग-पग पनपे प्यार।
परसत प्रेम पसीजता,
        पालक पालनहार।।५।।

*पाहन पिघले प्रेम पर,
            पावन प्रेमालाप।
परिजन पीड़ा परिहरे,
  पालन पन परताप।।६।।

*परिजन पुरजन पसरता,
       प्रीत पतन परिगान।
पीति प्रपोषक पालता,
   परचम प्रेम प्रतान।।७।।

*पंकिल पथ पर पग पड़े,
        प्राणी पालक-प्राण।
पान प्रीत पीयूष पय,
         पहचानो परमाण।।८।।

*प्रेम पुजारी पूजता,
        पारस परस प्रहास।
पातन पातक पाँवरी,
  प्रोष पतन प्रतिवास।।९।।

*पंख पसारे पाँखुड़ी,
         पसरे पुण्य प्रभात।
प्रेमामृत पिक पीकना,
       परिहरि प्रेम प्रघात।।१०।।

********************
अर्चना कटारे
        शहडोल (म.प्र)
*न करो छिछोरी हरकत*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
पहला फूल माँ की चरणों जिन्होंने जन्म दिया
🌹
दूजा फूल पिता के चरणों मे जिन्होंने दुनिया दिखाई
🌹🌹
तीसरा फूल गुरू के चरणों में जिन्होंने शिक्षा की ज्योति जगाई
🌹🌹🌹
चौथा फूल भाई बहन को जिन्होंने रिस्ते में मजबूती लायी
🌹🌹🌹🌹
पाँचवा फूल मेरे पति को जिन्होंने दुनिया की रौनक दिखाई
🌹🌹🌹🌹🌹
छठवां फूल मेरे सासू माँ और ससुर जी को
जिन्होंने माता समान प्यार दिया
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
सातवां फूल मेरे फूल से बच्चों को
जिन्होंने हमें माँ का दर्जा दिया
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
आंठवा फूल मेरे देश के सैनिकों को जिन्होंने हमें चैन दिया
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
नवमाँ फूल मेरी मात्रृभूमि को जहां हमने जन्म लिया
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
दसवां फूल मेरे मंदिर के भगवान को
जिन्होंने हमें प्राण दिये
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
.
        
*********************
उमेश प्रकाश,                              🥀एफ-2136 राजाजी पुरम,                                     🌀लखनऊ--226017                                   ⏩मोब:-9616135035
-::-🌹हैप्पी-वेलेंन-टाइन डे
           
प्रीत करो तुम मात से, पिता-बहन और भ्रात से l
प्रीत करो सम्बन्धों से, प्रभु के मिलते साथ से ll

प्रीत करो हर जीवन से, प्रभु से पाये इस धन से l
प्रीत करो तुम ईश्वर से, इस धरती के जन-जन से ll

प्रीत करो हर फूल से, अपनी धरती-धूल से l
खेतों और खलियानों से, अपने जीवन-मूल से ll

प्रीत करो हर व्यक्ति से, अपने देश की भक्ति से l
विश्व प्रेम भण्डार करो, देश की बढ़ती शक्ति से ll

प्रीत करे जो सब कुछ दे, प्रेम लुटाये कुछ न ले l
प्रीत! को कर के सभी समर्पण, हैप्पी-वेलेंन-टाइन डे ll
              🎇🎇🎇🎇
                                                
********************

काव्य रंगोली वेलेन्टाइन डे या मातृ-पितृ पूजन दिवस के लिए

सीमा निगम
रायपुर छत्तीसगढ़

"पहला प्यार "

कौन हो तुम,
मेरा बरसों से संजोया अरमान
मेरे अतंस में छिपा तुम्हारा नाम
या मेरा पहला पहला प्यार ..

प्रेमिल हृदय की की आस
मेरे धड़कनो की पुकार
नए उमंग नए एहसास
तुम्हारी हदय की तड़फन

कभी आंखों में आंसू
कभी चेहरे में मुस्कान
मेरी मासूम विवशता
तुम्हारी मादक मनुहार

काश, कर देती मैं
तुमको सर्वस्य समर्पण
कर लेती कबूल
तुम्हारे सब अर्पण

पर बात दिल की जुबा
ने कभी कहीं नहीं
जिस रास्ते तुम मिलो
वहां कदम पड़े नहीं

कह न पाए कभी पर
दिल ने किया स्वीकार 
तुम हो, हाँ तुम ही हो
मेरा पहला पहला प्यार.|
*********************
गीता सिंह
प्रयागराज
काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव ऑनलाइन 2020 हेतु

तिलक बनी माथे पर मेरे,
मातृ भूमि की मिट्टी होगी ।
माँ के रक्षण हेतु हमारी ,
लहू में भीगी वर्दी होगी ।।
     जाग रही हैं मेरी आँखें ,
     नींद तुम्हारी पूरी होगी ।
     अडिग हिमालय सा हूँ प्रहरी,
     चाहे जितनी ठंडी होगी ।।

********************
संतोष अग्रवाल
सागर म प्र

प्यार बांटते चलो
सबको मित्र बनाकर चलो
जो सबसे अच्छा हो
  माता पिता को प्यार  करो
माता पिता  मना कर  चलो
इस दुनिया में सबसे बड़े हैं
माता पिता   के पैर दबाकर चलो
माता पिता गुरु अच्छे हो
यह सफर अच्छा कट जाएगा
वैलेंटाइन डे का  सार यही है

*********************
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, विकास क्षेत्र- लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज)
'पेड़ों का संसार कहाँ है'

पेड़ों का संसार कहाँ
प्रकृति का श्रृंगार कहाँ है
सूखे से है त्रस्त वसुन्धरा
पानी का भण्डार कहाँ है।
पेड़ों का..................
शरद की तो चाँदनी है पर
वह झल-मल नीहार कहाँ है
उजड़ रहे हैं वन-उपवन सब
फूलों का अम्बार कहाँ है।
पेड़ों का....................
वह सुन्दर सा सर कहाँ है
कमल के ऊपर भ्रमर कहाँ है
जीवन का आधार कहाँ है
वह अपनापन प्यार कहाँ।
पेड़ों का...................
क्षण-क्षण चित्त चुरा ले जो
वह   चितवन वह सार कहाँ है
यूँ तो तार अनेकों हैं पर
वीणा का झंकार कहाँ है।
पेड़ों का..................

**********************

सुरेश चन्द्र "सर्वहारा"
  3 फ 22 विज्ञान नगर,
कोटा - 324005 (राज.)
  मो 9928539446
पिता
______
चले साथ में जब पिता, मेरी उँगली थाम।
दूर दूर तक था नहीं, तब चिंता का नाम।।
               *
लगता है जैसे पिता, घर की चारदिवार।
आ पाती ना आँधियाँ, जिसको करके पार।।
              *
सब सोते हैं चैन से, भर मन में उल्लास।
जब तक घर में है पिता, डर ना आते पास।।
              *
जीवन भर ढोते रहे, खुद कर्जों का भार
मुस्काए फिर भी पिता, पालन में परिवार ।।
             *
टूट न जाएँ हम कहीं, पड़ें नहीं कमजोर।
अतः पिता रोए नहीं, सह पीड़ाएँ घोर।।
             *
रहे पिता के स्वर भले, मधुर रसों से दूर।
लेकिन इनमें थी छुपी, मंगल धुन भरपूर।।
              *
अपने से ज्यादा रहा, जिनको प्रिय परिवार।
कर्त्तव्यों के रूप ही, रहे पिता साकार।।
              *
       -

********************
नाम--सुरेन्द्र पाल मिश्र
पता---ग्राम व पोस्ट जेठरा जिला लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश २६२७२२
मोबाइल नं-- ८८४०४७७९८३
स्नेह तथा ममता की प्रतिमा--मां
    मैया तू ममता का बादल
    प्यार दुलार बरसता हर पल
    कोख में तेरी जीवन पलता
   नव प्रकाश का दीपक जलता
  तेरी नाभि सरोवर में ही
   नव जीवन का शतदल खिलता
   तू जननी है परम पूज्य तू
  सतत स्रजन की सरिता अविरल
  मैया तू ममता का बादल
  तन का अमृत पान कराये
  शिशु को पुचकारे दुलराये
  और चाह ना कोई तेरी
बस मेरा शिशु कष्ट नपाये
  सुख सम्पत्ति स्वर्ग से बढ़कर
   तेरी गोदी तेरा आंचल
मैया तू ममता का बादल
पकड़े उंगली जब मैं चलता
तेरा मुख गुलाब सा खिलता
कभी पांव में लगे शूल यदि
मुझसे पहले तुझको चुभता
तेरा प्यार दुलार स्नेह मां
शरद चंन्द्रिका से भी निर्मल
मैया तू ममता का बादल
बड़े हो गए बीता बचपन
मुरझाया शैशव का उपवन
बेटा गया बहू के संग में
    बेटी ब्याही सूना आंगन
    बिन वरदान तपस्या तेरी
    सतत प्रतीक्षा तेरा सम्बल
    मैया तू ममता का बादल
    बांह के झूले स्वप्न हो गए
    स्वर लोरी के लुप्त हो गए
    तेरे संग ही मेरी मैया
     स्नेह प्यार के दीप बुझ गये
      मेरा शीतल कल तू मैया
     आज है मेरा तपता मरुथल
     मैया तू ममता का बादल
    कर दे क्षमा मुझे मेरी मां
   मैं तो कुछ भी कर ना पाया
   तेरे दूध का कर्जा़ मैया
   मैं शतांश भी चुका न पाया
   अपने स्वार्थी नयनों से मां
    मैं हूं अविरल बहता काजल
    मैया तू ममता का बादल
    रिश्ते रचे अनेक विधाता
    सबसे ऊपर मां का नाता
    मां की गोदी का सुख पाने
    ईश्वर भी धरती पर आता
    तू देवी है कामधेनु है
    मां तू ही पावन गंगा जल
    मैया तू ममता का बादल
   प्यार दुलार बरसता हर पल
(काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव आनलाइन २०२०)
*********************
नाम- नीलम मुकेश वर्मा
हिंदी में स्नातकोत्तर
झुंझुनू राजस्थान
Mob : 8094699141

प्रणय दिवस पर,मेरे प्रणय देव को समर्पित एक प्रणय गीत----

ख्वाहिश कोई और न दिल में,मांगूँ रब से एक इशारा।
हाथ उठें जब कभी दुआ में,आये लब पर नाम तुम्हारा।

           ख़्वाब सजाने का अँखियों को,
           तुमने ही अधिकार दिया है।
           आस न थी कतरे की जिसको,
           सागर जितना प्यार दिया है।

चाहूँ ऐसे हरदम तुमको,.............जैसे चाहे मौज किनारा।
हाथ कभी जब उठे दुआ में,आये लब पर नाम तुम्हारा।

             अँधियारा इस क़दर घिरा था,
             लाल,सफ़ेद दिखें सब काले।
             थी घनघोर घटाएं गम की,
             दूर-दूर तक थे न उजाले।।।

रोशन करने आँगन मेरा,...........रब ने पूरा चाँद उतारा।
हाथ उठें जब कभी दुआ में,आये लब पर नाम तुम्हारा।

            अरमानों की उजड़ी बस्ती,
            आज हुई आबाद तुम्हीं से।
            बरसों की पथराई अँखियाँ,
            पिघल उठी हैं आज ख़ुशी से।

तेरे बिन इन अँखियों को मेरी,भाए न कोई और नज़ारा।
हाथ उठें जब कभी दुआ में,आए लब पर नाम तुम्हारा।।
पाठ वफ़ा का सीखा तुमसे,..
हो तुम वेलेंटाइन मेरे,
हाथ लिया जब से हाथों में,
मन में दीप जले बहुतेरे।।

नीलम ने अब लिख डाला है, नाम तुम्हारे जीवन सारा।।
हाथ उठें जब कभी दुआ में,आये लब पर नाम तुम्हारा।।
                                     

*********************
चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र "
राय बरेली, उ० प्र०
काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव

गीतिका

तुम मेरी मधुमय प्रीत प्रिये !
मम जीवन का संगीत प्रिये !

नहीं बिलग हो मुझसे प्रियवर,
कह दूँ  कैसे  नवनीत  प्रिये !

तुम्हीं रुबाई तुम्हीं गीतिका,
लगती  जैसे  नवगीत  प्रिये !

मेरी  खुशियों में  सुख माना,
दुख में लगती भयभीत प्रिये !

कभी भूल से  रूठ गया यदि,
लेती  मेरा  दिल  जीत  प्रिये !

स्वास स्वास में बसी हुई हो,
तुम शब्द हीन अनुभूति प्रिये !

कह दूँ  तुमको  वैलेन्टाइन,
क्या तब होगी मनमीत प्रिये !

********************
सुमति श्रीवास्तव
जौनपुर
वेलेन्टाईन डे

हाथ में गुलाब सुर्ख लाल,
होंठ हँसी लिए कमाल ।
चल दिए हम सज धज कर,
डे वेलेंटाईन के पर्व पर ।
आज कहेंगें दिल की बात ,
दिखाएगें अपने जज्बात।
हम तेरे प्रेम में डूबे है ,
नयन तिहारे हृदयतार छुए है।
कहने को दिल की ,
घर की उसके राह पकडी़।
आज दिल की बात कहेंगें,
पूरा जीवन साथ रहेंगें।
पहुँचें घर इसी विचार में ,
मन डोल रहा था प्यार में।
घर के कोने में बैठी थी ,
हमने भी धड़ से इंट्री की ।
थोडा़ संकुचा रही थी,
जैसे कुछ कहना चाह रही थी।
देख गुलाब मुस्कुरा दी,
बोली भैया तुमने लाटरी लगा दी।
गुलाब हुआ  है महँगा ,
बाजार में नही मिला ।
दे दो मुझे उसे दे आऊँ ,
प्रेम को अपने आगे बढाऊँ।
सुनकर शब्द  ये भाई ,
छूटी मेरी अब रुलाई।
गुलाब उसे दे दिया ,
राखी में आने का वादा किया।
जिसने छीनी है मेरी लुगाई ,
कसम से भ ईया करूँगा पिटाई।
ये वेलेन्टाईन हमें न मनाना ,
बजरंगी हमें अपना भक्त बनाना।

********************
शशि कुशवाहा
लखनऊ,उत्तर प्रदेश

तुझसे मेरा रिश्ता कुछ यू जुड़ गया ,
प्रेम का धागा और भी गहरा हो गया ।
खुशियों से जिंदगी मेरी रोशन हो गयी ,
मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया।

आज भी याद हैं वो पहली मुलाकात ,
रिमझिम बरसती वो सावन की बरसात।
देख कर मैं तुझे डर से सहम सी गयी थी ,
धड़कने मेरी बेतहासा बढ़ सी गयी थी ।

समझ गए थे तुम मेरी बेबसी को ,
अँधेरी रात मुझे सहमा हुए देख के ।
पास आकर फिर एहसास दिलाया ,
हर इंसान गलत नही ये समझाया।

नयनो से नैना जो टकरा गई थी,
पलके मेरी झट झुक सी गयी थी ।
बारिश से बचने को छाता मेरे ऊपर लगाया था,
पहले प्यार का पहला एहसास कराया था।

मेरी नजरें उसको ही  के देख रही थी,
उसकी नजरें सड़क को चीर रही थी।
थमते ही बारिश के घर मुझे पहुँचाया था,
मोहब्बत का एहसास दिल में जगाया था।

उस दिन शुरू हुई खामोश मोहब्बत,
आज भी पल पल बढ़ती जा रही हैं ।
तेरे संग हर पल जीने मरने की ,
ख्वाहिशें दिल में बढ़ती जा रही हैं।

मोहब्बत तो एक एहसास है,
जो जीवन का हर पल महकाता हैं।
कभी हँसाता तो कभी रुलाता,
दिल में उतर रूह में समा जाता है।

*********************
कवयित्री प्रशंसा श्रीवास्तव

जब आया वेलेंटाइन तो हंगामा हो गया,
अंग्रेजों ने बनाया नया एक ड्रामा हो गया,
लड़के ने जब इज़हार किया बड़े प्यार से,
शिव सैनिक हर लड़की का मामा हो गया।
   
********************
अभिजित त्रिपाठी "अभि"
पूरेप्रेम, अमेठी,
उत्तर प्रदेश,
भारत
मो. - 7755005597
काव्यरंगोली
नेह स्नेह काव्योत्सव
मातृ-पितृ पूजन दिवस परचंद मुक्तक

दर दर भटके वो मानुष पत्थर ही जिसको प्यारा है।
वो जाएं दरगाहों पर मुर्दों का जिन्हें सहारा है।
मां ही मंदिर, मां ही मस्जिद, माँ ही तो गुरुद्वारा है।
भंवर बीच जब भी हूँ फंसता माँ ही बनी किनारा है।
मां की समता केवल मां है, उसके जैसा कौन है दूजा?
मंदिर - मस्जिद मैं ना भटकूं, मैं करता हूँ माँ की पूजा।
                         

किसी को ये ज़मीं दे दो, किसी को आसमां दे दो।
अधर मुस्काएं अब सबके, सभी को वो शमां दे दो।
बाँटनी ही है गर तुमको, आज बुनियाद इस घर की।
तो सबकुछ ले लो हिस्से में, मुझे बस मेरी माँ दे दो।
               

समंदर चाह ले कितना पर आगोश में भर नहीं सकता।
जहर का पी भी लूं प्याला तो भी मैं मर नहीं सकता।
मेरे सिर पर सदा उसकी दुवा का हाथ रहता है।
मेरी माँ जी रही मेरा कोई कुछ कर नहीं सकता।
              

मेरी खातिर खुद व्रत रखती, लेकिन मुझे खिलाती है।
कभी शाम तक घर ना लौटूं, बहुत अधिक घबराती है।
गलती पर मेरी मुझको जमकर के डाँट लगाती है।
पर पापा जब कभी डाँटते माँ ही मुझे बचाती है।

काव्यरंगोली
नेह काव्योत्सव

अभी दिल भिगोना भी बाकी है, दाग धोना भी बाकी है।
तुम्हें पाना भी बाकी है, तुम्हें खोना भी बाकी है।
दिल पर पड़ा पत्थर या पत्थर का ही दिल पूरा।
अभी हंसना भी बाकी है, अभी रोना भी बाकी है।
हमसफ़र चुनना भी बाकी है, ख्वाब बुनना भी बाकी है।
बहुत कहना भी बाकी है, बहुत सुनना भी बाकी है।
तेरे दिल में मेरा आना, अभी आना भी बाक़ी है।
दिल तोड़ मेहमा बन लौट जाना भी बाकी है।
दर्द की आँच पर तपकर, जाम-ए-गम पीना भी बाकी है।
अभी मरना भी बाकी है, अभी जीना भी बाकी है।

********************
सत्य प्रकाश पाण्डेय

हे प्रेम के पुजारी
तुमसे अधिक प्रेम को
किसने जाना
हे प्यार के उपासक
किया प्रेम को परिभाषित
और उसे पहचाना
फिर क्यों न तुम्हारा जन्मदिन
प्रेम दिन के रुप में मनाएं
तुम्हारी प्यार कहानी
क्यों न जग को बताएं
कि प्रेम वासना नहीं
दो दिलों का परस्पर समर्पण है
प्रेम में छल नहीं
कलुषित भावों का तर्पण है
प्रेम अंर्तमन के स्रोतों से
निसृत पीयूष है
प्रेम से मिलती खुशी
न होता कोई मायूस है
प्रेम वस्तु नहीं
जिसे खरीदा जा सके
या फिर मुझे प्यार है
कहकर
किसी पर लादा जा सके
वर्तमान परिवेश ने
इसे व्यापार बना दिया
जीवन मूल्यों का ह्रास
आधुनिकता का चोला पहना दिया
अरे प्रीति ही करो तो
मेरे कान्हा जैसी हो
हर दिन हर रात फिर
वेलेंटाइन डे सी हो।

*********************
स्वर्ण ज्योति
पॉण्डिचेरी

वेलेंटाइन दिन के लिए
हम होंगे
अक्षरों और शब्दों से बने वाक्य होंगे
बोलों और धुनों से सजे गीत होंगे
तेरे-मेरे बीच बंधे सब बन्धन
समय के पन्नों पर अंकित होंगे

हर तरफ खूबसूरत फ़िज़ा होगी
दिल के साज़ पर गूंजती सदा होगी
तेरे-मेरे प्यार का चाहे जो हो अंजाम
मोहब्बत की दास्तां हमेशा जवां होगी

तुझसे बिछड़ जाऊं इसका ग़म तो होगा
पर मेरे बाद मेरी वफाओं का संग होगा
तेरी मुस्कुराहट का वही गज़ब ढंग होगा
कि मेरे प्यार का उसमें घुला गहरा रंग होगा

ज़मी से फ़लक तक तेरा नाम होगा
मेरी भी यादों का पैग़ाम होगा
जाने वो कैसा मुक़ाम होगा
जब ज़मी पर फिर आशियाँ न होगा

कि तेरे-मेरे बीच बंधे सब बन्धन
समय के पन्नों पर अंकित होंगे

*********************

डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
रांची, झारखंड
वैलेंटाइन सप्ताह
......................
रोज़ डे
जीवन के कांटों के बीच
मुस्कुराना नहीं है आसान,
हंसाने वाले चेहरे होते हैं
"रोज़ डे"की पहचान।

प्रपोज़ डे
अपनी गलतियों का सिर
ईश चरणों में झुकाऊं
चढ़ा कर क्षमा के पुष्प
"प्रपोज डे"मनाऊं।

चाकलेट डे
अहं का पर्दा उतार
कभी अपनो के पास जाना
"चाकलेट डे"पर
रिश्तों में मिठास भर आना।

टेडी डे
खेलना अच्छा नहीं जज़्बातों से,
उन्हें टेडी समझकर,
"टेडी डे"मनाओ
किसी के अश्क पोंछकर।

प्रामिस डे
इरादा रखते हो गर नेक
बनना चाहते हो महान्
खुद से करो"प्रामिस"
पहले बनोगे इंसान।

हग डे
उपेक्षित बुजुर्गों को"हग"कर
कुछ बातें कर लें,
ठंडी हवाओं के झोंकों से
मुलाकातें कर लें।

किस डे
शहर की आपाधापी से चलो
थोड़ी दूर जाएं
गांव की मिट्टी को
"किस डे"पर चूम आएं।

वैलेंटाइन डे--
सिर्फ वैलेंटाइन डे पर नहीं
हर दिन करें सभी से प्यार
क्योंकि प्यार तो है अनंत
खुशबू है दिग-दिगंत
डूबकर इस सागर में देखें
रोम-रोम हो जाएगा संत।

*********************
देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
जन्म दायिनी मां.............

जन्म   दायिनी   मां ,  दुख  निवारिणी   मां ।
तेरे दम  से दुनियां  देखी , स्नेह पालिनी मां।।

तेरी गोद  लगे  ज़न्नत , मांगी मेरे  लिए मन्नत;
तेरा आँचल लगे प्यारा,शीतल प्रदायिनी मां।।

रखती ध्यान तू सबका,सुनती सबके मन का;
बिन तेरे बेकार सारा , कर्तव्य परायिनी  मां।।

चाही हरदम  प्रगति, टालती रही  हर विपत्ति;
तेरे जैसा कोई न दूजा,जीवन संवारिणी मां।।

करता रहूँ  तेरी  सेवा , संग ही  देश की सेवा;
ऐसे उतारूँ दोनो  कर्ज़,"आनंद"दायिनी मां।।

-
*********************
आशीष मिश्रा 'बागी'
9984964849

प्रेमदिवस (वैलेंटाइन डे स्पेशल ) काव्य रंगोली नेह सनेह प्रतियोगिता 2020 ..एक छंद ..अनुप्रास का प्रयास

प्रेम परमात्मा को पाने  का है प्रथम पग ,
प्रेम  ही  प्रतीति  प्रीति  और परवाह  है ।
प्रेम  परम   पावन   पवित्र   व  प्रसंनीय ,
प्रेम  प्रतिपल  प्रिय प्रीतमा  की चाह है ।
उद्धव से पंडित को पागल  बनाता प्रेम,
प्रेम ही प्रकृति  का  पवित्रतम् प्रवाह है ।
प्रेम नहीं पैजनिया प्राण प्रिय के पैरो की ,
प्रेम तो प्रभू को पाने की प्रधान राह हैं ।
                 
**********************
शिवानी मिश्रा
(प्रयागराज)
काव्य रंगोली नेहकाव्य उत्सव,

प्यार का रंग(मुक्तक)

प्यार है सच्चा, प्यार है गहरा,
प्यार का हर रंग है पक्का,
जीवन का हर सार है प्यारा,
समझ कर इसको जो पा जाये,
किस्मत का धनवान वह कहलाये,
इस प्यार के होते रंग अनेक,
माँ का प्रेम होता निराला,
पिता का प्रेम अद्भुत सारा,
बहन होती शैतानी की पुड़िया,
भाई-भाई हिम्मत की दवा कहलाये,
पति बन जाये हमसफर,कदम कदम
पर राह दिखाये,
परिवार मिले तो जग मिल जाये,
ऐसा अद्भुत प्यार हम और कहा से पाये,
वेलेंटाइन तो सिर्फ दिन है एक,
हम तो ठहरे भारतवासी,
सदा प्यार बरसाते हैं,दिन हो चाहे साल,सबको गले लगाते है।

********************
नाम-रीतु देवी"प्रज्ञा"
पता-करजापट्टी, दरभंगा, बिहार
रचना-माँ प्यार तुम्हारा

ढूंढू मैं पलपल जहां सारा,
वो है माँ प्यार तुम्हारा।
मैं हूँ तेरी आँखों का तारा,
जन्म दिया फाटक तोड़ अनेको कारा।
ईश्वर से माँगी ,सर्वत्र तीर्थस्थल आँचल फैलाकर
की पैरों पर खड़ा ,सहस्त्र रोड़े हटाकर।
ढूंढू  मैं पलपल जहां सारा,
वो  है  माँ  प्यारा तुम्हारा।
मिलता नहीं माँ मुझे जब कहीं सहारा ,
अपने तट मेरी नाव लगाती किनारा।
स्वार्थी रिश्तों से जुड़ती चली जाती,
सिर्फ तू ही  मुझे  निस्वार्थ चित्त बसाती।
ढूंढू मैं पलपल जहां सारा,
वो है माँ प्यार तुम्हारा।
          
*********************
अर्चना कटारे
शहडोल (म.प्र.)
नेह सनेह
*मेरे चारों धाम*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*मात -पिता ही होते असली चारों धाम*
*इनके चरणों तले ही रहते जग के चारों धाम*

*परिवार के लिये ही समर्पित रहते*
*सहते कष्ट महान*
*परिवार और बच्चों की खातिर देतेे अपना जीवन दान*

*दिन रात मेहनत करते रहते*
*करते नहीं आराम*
*मजदूर सा काम करते रहते*
*लेते नहीं विश्राम*

*हाँथ जोड विनती करूँ लेते रहें तेरा नाम*
*मात पिता तेरे चरणों में हैं  अनेकों सुख महान*

*वंदन ,करूँ ,स्तुति करूँ, जपूँ तेरा नाम*
*तेरे चरणों की छाया है तो जग में स्वर्ग समान
            
***********************

नाम: खुशबू कुमारी
पता: राँची
हैप्पी वैलेंटाइन

दुनिया मे जब आयी,
तो माँ ने हंसकर गोद लिया,
पिता ने जी भर लाड़ किया,
दादाजी ने मन भर दुलार किया,
दादीजी ने नम आँखों से प्यार किया,
यही तो है प्यार, जिससे बनता है हमारा प्यारा परिवार।

स्कूल में जब आयी,
शिछ्को ने साथ दिया,
दुनिया भर का ज्ञान दिया,
सही गलत की परख बताई,
दुनिया मे जीने की रीत सिखलाई,
दोस्तो का संग खिला,
जिंदगी जीने का ढंग मिला,
सबने स्कूल में थामा हाथ,
बढ़कर गुरुओं दोस्तों ने, दिया साथ,
ये है प्यार, जहाँ मिला ज्ञान की बौछार,
जहाँ मिली दोस्तो की यारी,
जहाँ समझ आयी करियर की जिम्मेवारी,
और इसने बनाया हमारा तीसरा परिवार।

फिर कदम पड़े कॉलेज में,
जहाँ मिले हम जिगरी यारों से,
बन गए जहाँ ग़ैर, अपनो से,
जहाँ मिले हम, अपने सपनों से,
जहाँ ख़्वाहिशें उड़ान भरते गयी,
जहाँ जिंदगी, ख्वाबों को सलाम करते गयी,
यहीं तो मिला हमे, जिंदगी जीने का सलीका,
और जिंदगी जैसे गुरु से, मिलने का मौका,
यही तो है प्यार, जो बनाता है हमारा अगला परिवार,
जहाँ सीखते है हम,
पूरे विश्व को जहाँ, पढ़ते है हम।

अब आयी अनजाने रिश्ते की बारी,
जहाँ दिल चल दिया, ढूंढ़ने प्यार की अनजानी सवारी,
मिला, वो कुछ था, अपने जैसा,
जैसा दिल ने चाहा,
मिला जीवनसाथी बिल्कुल वैसा,
अब दिल तो परिंदा बन गया,
अनजाने रिश्तों को, अपना कर गया,
अब तो दिल परिंदा बन गया,

ये है प्यार,
जिनसे बना हमारे जीवन का, हर परिवार,
जिनसे बने हमारे, रिश्ते और रिश्तेदार,
जिससे बना हमारा, दोस्ती का किरदार,
जिससे मिले हमारे, गुरूओ का ज्ञान,
जिससे बना हमारे, जीवनसाथी का सम्मान,
असली वैलेनटाइन तो ये बना है,
क्योंकी हर रिश्तों में, प्यार अपना है,
ये बना मेरा वैलेनटाइन,
मेरे हर रिश्तों को

*******************
रिपुदमन झा "पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
शीर्षक - मैंने प्यार कर लिया

देकर गुलाब प्यार का इकरार कर लिया
मैने सनम से ईश्क़ का इज़हार कर लिया।

भर  दी  मिठास  प्यार  में  चॉकलेट  से
बाहों में उसको अपने गिरफ्तार कर लिया।

वादा किया कि साथ ना छोड़ूंगा ऊम्र भर
उसने भी मेरे प्यार को स्वीकार कर लिया।

जब चूम लिया प्यार से माथे को सनम के
फिर झूम कर सनम ने भी इज़हार कर दिया।

हम सात दिन में जी गये हैं सात जनम को
मुझको भी हुआ प्यार मैने प्यार कर लिया।
**********************

प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
भारतमाता

मातृभूमि की मृदा सुपावन, स्वागत परछन सत अभिनंदन ।
पालक पोषक मात भारती, नेह वत्सला सत सत वंदन।।
किरीट हिमालय शुभ्र मनोरम ,सागर की उत्ताल तरंगें,
ध्वजा तिरंगा ऊर्ध्व गगन रुख, सुरभित माटी पावन चंदन ।।

यही अस्मिता आन बान मम, यही संस्कृति दिव्य धरोहर ।
यही सत्व जीवन का कारक, रग रग रमती प्रकृति मनोहर।।
कलकल नद्या  हरित बाग वन, धान्य पूर्णा भूमि उर्वरा,
जिसकी संतति कर्मठ ज्ञानी, समष्टि परायण बोले हरहर।।

जिसका आँचल परचम बनकर, ऊँचे लक्ष्य प्रमान छुए ।
जिसका अर्चन जन जन करता, द्रोह बैर अविलम्ब खुए।।
जिसकी सीमा सुफल साधना, प्रखर  उऋण  न हो पाएगा,
प्रथम प्रेम की वह अधिकारी, जिस पर सुत बलिदान हुए।।
*********************
नित्या नंदिनी शर्मा
देवास
प्रेम

प्रेम जगत का है आधार..
प्रेम  बिना सब निराधार
प्रेम ईश्वर का है वरदान..
प्रेम सृष्टी का सृजनकार
प्रेम की रित है सबसे अनोखी..
प्रेम की नीति है सबसे अनूठी
प्रेम ही शब्द है प्रेम ही अर्थ है
प्रेम ही तो है साकार मूरत-सा
प्रेम ही तो है निराकार ब्रह्म -सा
प्रेम सदा सर्वदा निष्छल
प्रेम सदा सर्वदा निर्मल
प्रेम सदा सर्वदा पावन
प्रेम सदा सर्वदा कोमल
देता मन को शीतलता
प्रेम मात है प्रेम पिता है
प्रेम ही कृष्ण..प्रेम ही राधा
प्रेम ही अश्रु ...प्रेम ही धारा
प्रेम त्याग है प्रेम समर्पण
प्रेम हर रिश्ते का आधार
प्रेम मधु है, प्रेम सुधा है
प्रेम ही जीवन की ज्योति
प्रेम ही दीपक, प्रेम ही बाती
प्रेम तपिश है, प्रेम कशिश है
प्रेम बिना ये जग है सूना
प्रेम बिना हर जीव अधूरा
प्रेम ही पूजा प्रेम सर्मपण
प्रेम ही तप है, प्रेम साधना II

*********************

मीना विवेक जैन
वारासिवनी
*काव्य रंगोली नेह सनेह प्रतियोगिता 2020*

साथ तुम्हारा प्रियेवर मेरे
जीवन में रस घोल रहा है
प्रेम प्रीत की डोर पकडकर
मनवा मेरा ढोल रहा है
अनजानी राहों पर साथी
थाम लिया है हाथ तुम्हारा
जीवन भर ये सफर सुहाना
कभी न छूटे साथ हमारा

*********************
एस के कपूर श्री हंस बरेली
मोब   9897071046
8218685464

*विषय।।।प्रेम।।
*शीर्षक।बनना पड़ेगा हमें प्रकर्ति प्रेमी।।*
*।।।।।।मुक्तक माला।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।1 ।।।।।।।*

सर्दी की ठिठुरन में मैंने तापमान
का दरवाजा खटखटाया।

कांपते  थरथराते  होठों  से  मैंने
उसको   कुछ   फरमाया।।

और  कितना  नीचे  गिरोगे  शर्म
नहीं आती है तुमको कभी।

फिर  कुछ  अपने  ही अंदाज़  में
प्रेम से उसको  हड़काया।।
*।।।।।।।।।।।।।2।।।।।।।।*
तापमान ने  बड़े  ही  ठंडे  दिमाग
से     कुछ       बतलाया।

बोला मैं प्रक्रति का दास  हूँ उसने
ही मुझको  है सिखलाया।।

हे मनुष्य तेरी भांति मैं अपने कर्ता
का   दोहन  नहीं  करता।

यही मेरे   संचालक ने   वर्षों   वर्ष
है   मुझको   दिखलाया।।
*।।।।।।।।।।।।।3।।।।।।।।।*
हे प्राणी अभी भी समय  है   बोलो
तुम  प्रकर्ति  की  बोली।

प्रकर्ति सृष्टि की रचनाकार है पूज्य
जैसे अक्षत चंदन रोली।।

यदि बचना है  तुझको  प्रकर्ति  के
प्रचंड   रूप     प्रकोप  से।

तो बनो तुम अभी से ही प्रकर्ति के
एक सच्चे प्रेमी हमजोली।।

**********************
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सम्पादक निर्णायक
काव्यरंगोली

Happy velentane day-- ----तू ही है नाज़, तू ही है ताज ,है  जमीं तू ही यकीं आकाश तुझे क्या नाम दूं  जानम।।
तू ही है जान ,तू ही पहचान , है तू दींन तू ही ईमान ,तू ही अल्ला है तू ईश्वर तू ही  कायनात है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
चाहतो की है तू  चाहत, तू है मोहब्बत कि मल्लीका ,मैं दीवाना तेरा ,तू मेरे मन के आँगन की काली मैं भौरा हूँ परवाना।।
तू चाँद और चांदनी है, है  सावन की घटाए तू, तू ही मधुमास की मस्ती है ,है यौवन की बाला तू ।।
तू ही बचपन, है जंवा जज्बा, तू ही जूनून, तू है ग़ुरूर ,तू ही हाला ,तू ही प्याला तू ही मधुशाला जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।                                     तू ही ख्याबो की ख्वाहिस है,है तू ही ख्वाबो की शहजादी।।
तू ही आगाज़ ,है तू अंदाज़  ,तू ही अंजाम है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
तू ही जाँ तू ही जहॉ तू ही जज्बा तू ही जज्बात है जानम।।
तू ही सांसे ,तू ही धड़कन, तू ही आशा, तू ही निराशा की आशा  विश्वाश जिंदगी का जानम।।
तू ही है प्रीत ,तू ही मनमीत ,तू ही संगीत है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
तू ही स्वर हैं ,तू ही सरगम ,तू ही सुर संगीत है जानम तुझे क्या नाम दूँ जानम।।
तू है खुशियां है तू ख़ुशियों की खुशबु है तू ही मुस्कान है जानम।।
सुबह सूरज की तू लाली तू ही, प्यार यार का मौसम प्यारी  ,तू ही लम्हा , है तू ही सुबह और शाम जानम।।                              तुझे क्या नाम दू जानम ,तू दिल के पास है इतनी ,तू दिल की दासता दस्तक, तू दिन रात है जानम।।                                तू दिल का आज है जानम ,कभी ना होना कल  जानम, तू ही है जिंदगी का सच दर्पण जानम।।
तू ही हसरत की हस्ती है, तू ही मकसद की मस्ती है ,तू ही मंज़िल कारवाँ है जानम।।                    तू ही मांझी तू ही कश्ती तू ही मजधार तू ही पतवार तू ही शाहिल है जानम।।
तू ही है अक्स ,तू ही है इश्क तू ही है हुस्न तू ही दुनियां का है दामन जानम।।                                 तू है शमां  रौशन अंधेरों की उजाला  तू है चमन की बहार बहारों का श्रृंगार है जानम।।
तू ही है झील ,तू ही झरना, तू है दरिया  समन्दर जानम  ।।           तू ही शबनम है तू शोला तू है बूँद बादल जानम।।
तेरी नजरों से दुनियां है ,तेरी नज़रों में दुनिया है ,तेरे साथ जीना तेरे संग मरना तू ही है आदि अंत जानम।।

*********************
अनामिका श्रुति सिंह
नागपुर

यह मेरे दिल के उद्गार हैं जो
शीर्षक -- प्यार

प्यार बहुत ही पाया मैंने ,
अपने पूरे बचपन में ।
नानी- दादी की थी दुलारी,
मम्मी के थी धड़कन में ।

दादा को न देखा मैंने ,
नाना की थी राजदुलारी ।
नटखटपन की बेला बीती ,
पापा के संरक्षण में ।

भाई बहन का प्यार मिला,
क्योंकि मैं सबसे छोटी थी ।
अपनी प्यारी बातों से ,
सबके दिलों में मिश्री घोली थी ।

बचपन बीता आई जवानी ,
प्यार का रूप भी बदला था ।
जो चाहा वह मिला मुझे ,
मैं बड़ी भाग्यशाली थी ।

दिया बहुत कुछ दाता ने ,
अब लौटाने की बारी है ।
सीखा मैंने बचपन से ,
प्यार ही सबसे न्यारी है।

***********************
निशा"अतुल्य"
देहरादून
माँ
14 /2/2020

माँ लिखने पर भावना बह जाती है
कलम ख़ुद वंदन में झुक जाती है
जीवन दिया दुःख सह कर जिसने
गुणगान उसका न कर पाती है ।

सोती रही गीले में खुद ही
मुझको न मालूम चला है
क्या होती है सर्दी गर्मी
माँ ने खुद ही सदा सहा है ।

मुझको सदा भरपूर है चाहा
नेह संचित संसार रहा है
कुछ कर्तव्य बताये मुझको
उपवन मेरा रहा खिला है ।

माँ ही मेरी प्रथम गुरु है
चलना उसने सिखलाया है
जीवन की कठनाई से लड़ना
उसने मुझको बतलाया है।

नत मस्तक मैं सदा रहूँगी
उनके क्या गुणगान है
मात पिता तो सृष्टि सारी
चला उनसे ही संसार है।

भूमि सा ठहराव है उसमें
नदियां सी बहती रहती है
जीवन धारा वो जीवन की
हरदम हँसती रहती है।

प्रथम वेलेंटाइन मात पिता है
जिन्होंने मुझको जन्म दिया है
शिश झुका कर मात पिता को
जीवन ख़ुद का सफल किया है ।
**********************

प्रिया सिंह मिष्ठी
लखनऊ
मेरा पहला और आखिरी प्यार मेरी डियर डायरी
हर साल रहता है तेरा इन्तजार मेरी डियर डायरी

वेलेंटाइन डे.... पर मेरे सिर्फ तेरा ही अधिकार है
मुझे सिर्फ तुझसे ही है प्यार....मेरी डियर डायरी

मेरे ख्वाबों का आसमान जिन्दगी का मुकाम है
हाँ तेरे लिए ही है मेरा इजहार मेरी डियर डायरी

मेरी नाकामियों मेरी नादानियां सब मंजूर तुम्हें
कहाँ हमारी होती है टकरार मेरी डियर डायरी

अब कह देती हूँ प्यार-प्यार-प्यार है हमें तुझसे
अब बस दिल में तेरा है खुमार मेरी डियर डायरी

*********************

विजय कनौजिया
काही अम्बेडकरनगर
मो0-9818884701

यही तो प्रेम है अपना
अभी तो पूर्ण जीवन का
नहीं सपना हुआ अपना
चलेंगे साथ मिलकर हम
यही अनुबंध है अपना..।।

नहीं है सरल जीवन पथ
सहज इसको बनाना है
नहीं होंगे कभी विचलित
निभाना साथ है अपना..।।

कभी विपरीत जीवन में
अगर हो जाएं स्थितियां
रहेंगे हम अडिग पथ पर
यही तो साथ है अपना..।।

सुहाना हर सफ़र होगा
खिलेंगे पुष्प जीवन में
यही अभिलाषा मेरी है
यही तो प्रेम है अपना..।।
यही तो प्रेम है अपना..।

**********************
सीमा शुक्ला
अयोध्या
वैलेंटाइन डे पर विशेष.......

प्यार का ये पक्ष है या पक्ष भर का प्यार है।
झूमकर आया विदेशी प्यार का त्योहार है।
आ गई ये रीति कैसी ?
हो गई ये प्रीति कैसी?
रंग बदला ठंग बदला
चार दिन मे संग बदला
एक दिन का प्यार कैसा?
ये नया त्योहार कैसा?
चार दिन की है बहारें
कौन फिर किसको पुकारे
रूप का फैला  भंवर है
प्यास से व्याकुल भ्रमर है
प्यार की कीमत बढे जितना बड़ा उपहार है
प्यार का ये पक्ष है या पक्ष भर का  प्यार है।
प्यार की कैसी नुमाइश?
हो रही हद पार ख्वाहिश
चार दिन गुल  खिल रहे हैं
प्यार मे दिल मिल रहे है।
रश्म वादों की निभायें
साथ मे कसमें भी खाये
जब तलक है चाद तारे
हम रहेगे बस तुम्हारे
देखता संसार जिसको
नाम दे क्या प्यार उसको ?
हो रही नीलाम इज्जत अब सरे बाजार है ।
प्यार का ये पक्ष है या पक्ष भर का प्यार है।
प्यार के क्या बोल समझे ?
न इसे अनमोल समझे?
प्रीति की क्या शर्त होती?
ये सदा वेशर्त होती
प्रेम की भाषा न होती
कुछ मिले आशा न होती।
प्यार है या खेल है ये ?
रूह का न मेल है ये
हो रही बदनाम चाहत
हम कहें कैसे मुहब्बत?
देखकर यह रूप मन धिक्कारता सौ बार है ।
प्यार का यह पक्ष है या पक्ष भर का प्यार है।

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रश्मिलता मिश्र
बिलासपुर छग
प्रेम दिवस पर मेरा प्यार

मुझे इश्क है वतन से
मेरी जान है तिरंगा
मैं तो चाहूँ भारतमाता
तेरा रूप रंग-बिरंगा।
तेरी गंगा प्यारी पावन
है हिमालय मनभावन।
दक्षिण में सागर है प्यारा,
उत्ताल तरंगे, कहाँ किनारा?
मुझको प्यारे मेरे प्रहरी
जिनकी बदौलत सुरक्षा ठहरी।
इश्क मुझे प्यारे मौसम से
शिशिर,हेमन्त शरद बसंत से
हर ऋतुओं की बयार मस्तानी
कभी खिले धूप कभी गिरे पानी
धूप से इश्क छाँव से इश्क
शहर से इश्क गाँव से इश्क
मुझे इश्क मेरे रब से जो
  बनाया हिन्दू बन्दा।
मैं तो चाहूँ भारतमाता
तेरा रूप रंग- बिरंगा

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संजय जैन
(मुम्बई)
मोहब्बत अंधी और सच्ची होती है
विधा : कविता

न दिल में गम है आज,
न ही गीले और सिखवे।
जब साथ हो तेरा,
तो क्या गम क्या सिखबे।
इसलिए तो दिल से,
तुम्हें चाहते है हम।
मेरी धडकनों में अब,
तुम ही तुम बसते हो।।

क्या तेरा है पैमाना,
मुझे आंक ने का।
तेरी मार्किंग ने मुझे,
दिये कितने अंक।
हो कितनी पारदर्शी तुम,
समझ आयेगा अंको से।
की कितना तुम हमें,
अबतक जान पाये हो।।

माना कि मन बहुत,
हमारा चंचल होता है।
जो दिलकी धड़कनों को,
जल्दी पढ़ नहीं पाता।
और बिना समझे ही वो,
मोहब्बत करने लगता है।
फिर ऐसी मोहब्बत के,
परिणाम अच्छे नही आते।।

आज के दिन प्रेमों को,
संजय देता है दुआ।
की सफल हो जाओ,
अपनी अपनी मोहब्बत में।
कुछ ऐसा करो आज,
की मोहब्बत परवान चढ़े।
और इतिहास के पन्नो में,
नाम तुम्हारा भी लिखा जाए।।

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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
बस्ती [उत्तर प्रदेश]
मोबाइल 7355309428

★प्रेम जीवन का आधार★

प्रेम दूजे के प्रति मनुहार है,
माँ का बेटे के प्रति दुलार है।
प्रेम ही जग में शाश्वत सत्य,
प्रेम जीवन का आधार है।। 

प्रेम  में हम  करते  हैं त्याग,
सीने में जलती है इक आग।
प्रेम में होता है अजीब जुनून,
निज स्वार्थ का है परित्याग।।

प्रेम कण कण में विद्यमान है,
सृष्टि में सर्वत्र विराजमान है।
प्रेम के बिना जीवन है अधूरा,
प्रेम में ही दिखे भगवान है।।

प्रेम कृष्ण के मुरली की तान,
प्रेम में छुपा  है ज्ञान विज्ञान।
प्रेम ही आदि और आरम्भ है,
प्रेम में  जीवन की  मुस्कान।।

प्रेम खिली हुई प्यारी सी धूप,
प्रेम जीवन का  इक स्वरूप। 
माँ, बहन, बेटी,पत्नी, प्रेमिका,
प्रेम के दिखते ढेर सारे रूप ।।

प्रेम में है जीवन की है आशा,
मन में  जगती है  अभिलाषा।
जीवन में  लगता ख़ूब आनंद,
छंट जाती जीवन की निराशा।।
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प्रतिभा गुप्ता
भिलावां,आलमबाग
लखनऊ
मो-8601546171
*******************
साथी जबसे मुझको तेरा प्यार मिला,
सुखमय जीवन जीने का आधार मिला।
*********
मुरझाई बगिया फिर देखो आज खिली,
चूड़ी,बिंदिया का मुझको श्रृंगार मिला।
********
जिन नैनों को हरदम कोई आस रही,
उन नैनो को सपनों का उपहार मिला।
********
जबसे पाया मैंने तेरा  साथ
प्रिये,
मुझको जैसे नित नूतन त्योहार मिला।
**********
दुनियाँ की मुश्किल राहें आसान हुईं,
मुझको जब प्रियतम का घर संसार मिला।

सच कहती हूँ प्रतिभा मैं यह बात सखी,
पति में मुझको ईश्वर का अवतार मिला।
*********************

नीतेश उपाध्याय

प्रेम एक दिन एक उत्सव का रुप नहीं
प्रेम तो जीवनोपरांत भी जीवनत्व  रहता है

प्रेम एक अलंकरण आभूषण नहीं अपितु
प्रेम तो ईश्वर प्रदत्त उपहार सदैव रहता है

प्रेम एक परिभाषा नहीं यह तो एक पुराण ग्रंथ है
जिसका हर एक अध्याय में वर्णनत्व रहता है

प्रेम एक जग में उपहास नहीं अपितु इतिहास का रचियता है
जिसे सदैव सँभालकर रखना हमारा दायित्व रहता है

परिवर्तन माना संसार के अनुकूलनों में होता है
लेकिन प्रेम में सदैव स्थायित्व रहता है

प्रेम के प्रति किसी की कोई भी भावना रही हो
किंतु प्रेम का एक सा ही महत्व रहता है
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अवनीश त्रिवेदी "अभय'
वैलेंटाइन डे स्पेशल
गीतिका

मेरी   हर  तरक़्क़ी    में   तेरी  सब   इनायत   है।
तुझमें  है   जहाँ   मेरा   तू  ही  तो    इबादत   है।

तुमसे  ही   मुक़म्मल  है   मेरी  ज़िन्दगी  अब  तो।
लफ़्ज़ों  में  तिरे  अब  तो  झलके इक नज़ाकत है।

अब दहलीज़ इस दिल की तुम भी लाँघ कर देखों।
तेरी   चाहतों   से  तो   मुझमें   यह   नफ़ासत   है।

जीने  का  सलीक़ा  भी  पाया   यह  तुझी  से  है।
हैं  इक  अदब  लहज़े  में  ज़ेहन   में  शराफ़त  है।

रौशन  आपसे   हैं   यह  मेरी   ज़िन्दगी  अब  तो।
तुम्हारा   बनूँ   मैं  अब    क्या   तेरी  इजाज़त  है।

दुनिया  से  कहूँ   क्यो  मैं दिल के आज अफ़साने।
अब  तो  बस  तिरी  हाँ  ही  मेरे  लिए ज़मानत  है।

हर   महफ़िल   तिरे   कारण    रंगारंग   होती   हैं।
अब   भूलूँ  "अभय"   कैसे  तू   मेरी   मुहब्बत  है।

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रासबिहारी नागेश
मु.पो.तेतलखुटी
गरियाबंद (छ. ग.)

          होगी प्यार की जीत

दिल में बसाया दिल से चाहा ।
यादों को तेरी भुल न पाया ।
सारी रातें बस तेरी ही बातें ।
चाह कर भी तुझे बता ना पाया ।
कैसे बताऊं  मनमीत ।
होगी प्यार की जीत।

सारी रातें करवटें बदलते रहना।
दिन भर खयालों में खोए रहना।
पास मिले तो कुछ ना कहना।
छुप-छुप कर देखते रहना।
क्या यही है दिल की प्रीत?
होगी प्यार की जीत।

मेरी महबूब मेरी जानेमन।
ऐसी लगी है दिल में अगन।
तु रुपवन्ती प्यार का सागर।
बाहों में आजा नखरा ना कर।
आजा संग मिल गाए गीत।
होगी प्यार की जीत।

बस इतनी सी आरजू।
मुझको है तेरी जुस्तजू।
इतना कर तू मेहरबां।
बन जा तू मेरी दिलरुबा।
हृदय में "रास" अपरिमित।।
होगी प्यार की जीत।
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सभी को बहुत बहुत बहुत बधाई एवम आभार

आज वैलेन्टाइन डे प्रेम दिवस या मातृ पितृ पूजन दिवस पर- -

निज मातु पिता के चरणों का, वंदन मैं बारम्बार करूँ।
उनकी स्मृतियो संदेशो को जीवन में स्वीकार करूँ।
इस प्रेम दिवस के अवसर पर,वासनामुक्त जीवन होवै,
नीरज के वैलेन्टाइन तुम को अमित अलौकिक प्यार करूँ।।
आशुकवि नीरज अवस्थी मो0-9919256950

वैलेन्टाइन डे पर एक सन्देशपरक हास्य गीत देखे और शेयर करे।

मेरे मोबाईल पर आती कम्पनियों की काल।
मेरी सीधी सादी बीबी ने रिसीव की काल।
मेरा नाम लिया कॉलर ने आँखे हो गयी लाल।
पूछा तुम हो कौन कहाँ की क्यूँ करती हो काल।
मोहतरमा बोली नीरज से अभी कराओ कॉल।
मेरी कम्पनी से उधार मंगवाया था कुछ माल।
फोन पटक कर मेरी पत्नी ने कर दिया बवाल।
वेलेंटाइन उसको समझा जिसने की थी काल।
बोल चाल सब बन्द हो गयी फुला लिए है गाल।
मोबाईल की कॉल बन गयी जी का है जंजाल।
ऐसे वेलेंटाइन डे पर मन में हुआ मलाल।
रिश्तों में विश्वास बनाये रखना जी हर हाल।

आपसी रिश्तों में विश्वास कभी भी खोने न दे।अपनी पत्नी माँ पिता भाई बहन मित्र एवम सभी सम्बन्धियो से रिश्तों का विश्वास हमेशा बनाये रखे।इससे बड़ा कोई वेलेंटाइन नही
आशुकवि नीरज अवस्थी
मो0-9919256950
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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...