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विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल

कितने अजब ये आज के दस्तूर हो गये
कुछ बेहुनर से लोग भी मशहूर हो गये 

जो फूल हमने सूँघ के फेंके ज़मीन पर
कुछ लोग उनको बीन के मगरूर  हो गये 

हमने ख़ुशी से जाम उठाया नहीं मगर
उसने नज़र मिलाई तो मजबूर हो गये 

उस हुस्ने-बेपनाह के आलम को देखकर
होश-ओ-ख़िरद से हम भी बहुत दूर हो गये 

इल्ज़ाम उनपे आये न हमको ये सोचकर
नाकरदा  से गुनाह भी मंज़ूर हो गये

रौशन थी जिनसे चाँद सितारों की अंजुमन
वो ज़ाविये नज़र के सभी चूर हो गये

हर दौर में ही हश्र हमारा यही हुआ
हर बार हमीं देखिये मंसूर हो गये

*साग़र* किसी ने प्यार से देखा है इस कदर
शिकवे गिले जो दिल में थे काफूर हो गये 

विनय साग़र जायसवाल 
3/5/2008
मफऊल फायलात मुफाईल फायलुन

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---
2122-1122-1122-22
अपने जलवों से वो हर शाम सजाते रहते
उनके हम नाज़ यूँ हँस हँस के  उठाते रहते 

कितनी रौनक़ है मेरी रात की तन्हाई में
उनकी यादों के मुसाफ़िर यहाँ आते रहते

इसलिए नूर बरसता है मेरे कमरे में
रात भर ख़्वाब में जलवा वो दिखाते रहते

भूल जाते वो किसी रोज़ तकल्लुफ़ ख़ुद ही
गाहे गाहे ही सही हाथ मिलाते रहते

छू नहीं सकती कभी आँच ग़मों की तुझको
तू रहे ख़ुश ये दुआ रोज़ मनाते रहते

तीरगी ज़हनो-ख़िरद से है यूँ घबराई हुई
सब्र के दीप जो हम रोज़ जलाते रहते 

फिर कोई आपसे शिकवा न शिकायत होती
जाम पर जाम निगाहों से पिलाते रहते

पास रक्खा न कभी उसने वफ़ा का *साग़र* 
दौलत-ए-इश्क़ हमीं कैसे लुटाते रहते 

🖋️विनय साग़र जायसवाल 
13/6/2021

रवि रश्मि अनुभूति

         एक प्रयास 
*********
बह्र ----
2122    1212    22

हिंद की यह धरा सुहानी है .....
प्यार की ये सदा कहानी है .....

खुशनुमा आज तो हैं सब राहें .....
हर डगर प्यार की निशानी है .....

रोक दें राह दुश्मनी की हम .....
राह प्यारी अभी दिखानी है .....

रूप मलिका यहाँ रही देखो .....
वाह हर ओर शादमानी है .....

रंजिशें छोड़ कर बढ़ो आगे .....
प्यार से हर अदा सजानी है .....

कोकिला कंठ से ज़माने में .....
कूक न्यारी अभी लगानी है .....

देश के गीत हम सुनो गायें .....
एकता की नज़्म सुनानी है .....

आज भारत विजय करें हम तो ..... 
चीन की चीज़ हर जलानी है । 
%%%%%%%%%%%%%%%%%

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
मुंबई   ( महाराष्ट्र ) ।
######################
●●
C.
🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--
221-2122-221-2122
क़िस्मत जहां में होती ऐसी किसी किसी की 
ख़्वाहिश हरेक पूरी हो जाये आदमी की 

जिससे शुरू हुई थी बस बात दिल्लगी की
वो बन गयी है मूरत अब मेरी बंदगी की 

उसको चटक भटक की होगी भी क्या तमन्ना
महबूब कर रहा हो तारीफ़ सादगी की 

 वो चाँद आ रहा है बरसाता चाँदनी को 
आफ़त में जान आई अब देखो तीरगी की

हर शेर मेरा उसकी लिख्खा है डायरी में
दीवानी हो गयी है वो मेरी शायरी की 

साक़ी तेरी नज़र से पी पी के रोज़ साग़र
आदत सी हो गयी है अब हमको मयकशी की 

बस ख़्वाब ही दिखाता जाता हो जो बराबर
हमको नहीं ज़रूरत है ऐसी रहबरी की 

करते हैं लोग मेरी तारीफ़ पीठ पीछे 
सारी कमाई  *साग़र* बस यह है ज़िन्दगी की 

🖋️विनय साग़र जायसवाल ,बरेली
26/6/2021

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

खेल क़िस्मत के तो दिन रात बदल देते हैं
आदमी बदले न हालात बदल देते हैं

जब भी करता हूँ मैं इज़हारे-मुहब्बत उनसे
मुस्कुरा कर वो सदा बात बदल देते हैं

सोचिये दिल पे गुज़रती है मेरे क्या उस दम
जिस घड़ी आप  मुलाकात बदल देते हैं

आज के दौर में क़ासिद पे भरोसा ही नहीं
बीच रस्ते में जवाबात  बदल देते हैं

मशविरा करना किसी से तो रहे ध्यान यही
लोग शातिर हैं ख़यालात बदल देते हैं

किस तरह कोई ग़ज़ल छेड़े मुहब्बत वाली
सारा माहौल फ़सादात बदल देते

अपनी नाकामी पे रोने से भला क्या *साग़र*
हर नतीजे को  तज्रिबात बदल देते हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
25/6/2021

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--
221-2122-1221-212
 वो मुझको चाहता है मुझे यह गुमान था
मतलब परस्त दौर में जो मेहरबान था

जब उसने मेरे फूल को मसला ज़मीन पर 
उस वक़्त उस के सामने मैं बेज़ुबान था

होती भी कैसे उनसे मुलाकात बारबार
मेरी पहुँच से दूर जो उनका मकान था

दो पल में मेरे दिल की हवेली ही जीत ली
इतना ख़ुलूसमंद मेरा मेज़बान था

महबूब के जो साथ निकलते थे  सैर को 
सहरा भी उन पलों में हमें गुलसितान था 

उस बेवफ़ा का नाम न बदनाम हो कहीं
यह मेरी ज़िन्दगी का बड़ा इम्तिहान था 

अपनी सफाई पेश मैं करता भी किस तरह
उसका हिमायती जो मेरा खानदान था 

मसरूफ़ हर बशर  है यहाँ ख़ुदनुमाई में
इससे तो पहले ऐसा नहीं यह  जहान था 

*साग़र* वो आज मुझसे मिला ग़ैर की तरह
कल तक जो कहता रहता मुझे मेरी जान था

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
24/6/2021

एस के कपूर श्री हंस

*।।ग़ज़ल।।संख्या 115 ।।*
*।।काफ़िया, आन।।रदीफ़, में।।*
*।।पूरी ग़ज़ल मतलों में।।*
1   *मतला*
मत ढूंढ तू खुशी दूर   आसमान में।
बसी तेरे अंदर झाँक   गिरेबान  में।।
2    *मतला*
फैली हर कोने कोने तेरे  मकान में।
बात तो कर   सबसे    खानदान में।।
3   *मतला*
मिलती नहीं   खुशी सौ  सामान  में।
मिल बांटकर खाओ हर पकवान में।।
4    *मतला*
हर जर्रे जर्रे में छिपी  इसी जहान   में।
जरूरी नहीं मिले बस ऐशो आराम में।।
5    *मतला*
छिपी है   खुशी तेरी   ही   दास्तान  में।
बस जरा मिठास घोलअपनी जुबान में।।
6   *मतला*
मिलती है खुशी हर चढ़ती पायदान में।
मत ग़मज़दा हो तू   हर    नुकसान में।।
7    *मतला*
कोई बात   अच्छी रहती हर पैगाम में।
नाराज़गी जरूरी नहीं हर हुक्मरान में।।
8    *मतला*
कभी कभी हवा  खोरी खुले मैदान में।
मिलेगी तुझको खुशी ऐसे भी वीरान में।।
9    *मतला*
कभी मिलेगी न खुशी गलत अरमान में।
सच्चे मन से मांगो मिलेगी भगवान में।।
10    *मतला*
नफरतों को  थूक दो तुम पीक दान  में।
खुशी देगी दिखाई तुम्हें हर मेहरबान  में।।
11    *मतला* 
महसूस करो खुशी मिलती देकर दान में।
देखो नज़र से मिलेगी  हर   मेहमान में।।
12     *मतला*
सोच से आती खुशी हो कश्ती तूफान में।
जरूरी नहीं कि जाना पड़े दूर जापान में।।
13      *मतला*
बात है टिकती कैसे रिश्ते दरमियान में।
खूब खुशी मिलेगी बन कर मेजबान में।।
14     *मतला*
जरा बन कर तो  देखो तुम कद्रदान में।
मिलेगी खुशी   तुमको   हर   इंसान में।।
15       *मक़्ता*
*हंस* बात आकर रुकती जीने के हुनर पर।
जान लो खुशी गम रह सकते एक म्यान में।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस'।।बरेली।।*
मो 9897071046/8218685464

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---

हमारे दिल में जो चाहत है हम ही  जाने हैं
कि तुमसे जितनी मुहब्बत है हम ही जाने हैं

तेरे बग़ैर जो आलम था वो बतायें क्या
हमें जो तेरी ज़रूरत है हम ही जाने हैं 

बिना तुम्हारे हमारा वजूद क्या होता
तुम्हारी जितनी इनायत है हम ही जाने हैं

किसी भी और का खाना हमें नहीं भाता
तेरे पके में जो लज़्ज़त है हम ही जाने हैं 

हरेक रिश्ता निभाती है तू सलीक़े से 
जो तेरे होने से इज़्ज़त है हम ही जाने हैं

गुरूर टूट के बिखरा है उनके जाते ही 
जो दिल में आज मलामत है हम ही जाने हैं 

वो घर को रखते थे *साग़र* बड़े करीने से
बग़ैर उनके जो दिक्क़त है हम ही जाने हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
22/6/2021

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---

है अदा यह भी रूठ जाने की 
कोई कोशिश करे मनाने की 
हुस्ने-मतला---
इन अदाओं को हम समझते हैं
बात छोड़ो भी आने-जाने की

आज छाई हुई है काली घटा
याद आती है आशियाने की 

एक दूजे को यह लड़ाते हैं 
नब्ज़ पहचान लो ज़माने की 

आजकल हर बशर के होंठों पर 
सुर्खियां हैं मेरे फ़साने की 

उड़ रहे हैं परिंद जो हर सू
जुस्तजू है इन्हें भी दाने की 

कौन कब तक किसी के साथ चले
किसमें ताक़त है ग़म उठाने की 

प्यास इतनी शदीद है *साग़र*
कौन जुर्रत करे बुझाने की 

🖋️विनय साग़र जायसवाल ,बरेली
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
एक संशोधन के बाद 🙏

विनय साग़र जायसवाल

🌹
1212-1122-1212-112
उधर भी इश्क़ के अब फूल मुस्कुराने लगे
मेरी ग़ज़ल वो अकेले में गुनगुनाने लगे

नज़र के तीर चलाये जो उसने छुप छुप कर 
बला के तेज़ कलेजे पे वो निशाने लगे

चले भी आओ कि दिल बेक़रार होने लगा 
फ़लक से चाँद सितारे भी अब तो जाने लगे

करीब इतना मेरे पास वो जो बैठ गये 
हज़ारों दीप अँधेरे में जगमगाने लगे 

उठा लिए थे तकल्लुफ़ को छोड़ पैमाने
क़सम दिला के हमें अपनी जब पिलाने लगे

बना दिया हमें आदी शराब का फिर वो
अँगूठा दूर से हँस हँस के अब दिखाने लगे

 इसी लिहाज़ से कर ली शराब से तौबा
हमारे बच्चे भी अब आइना दिखाने लगे

ली जिनके वास्ते दुनिया से दुश्मनी *साग़र*
वो आज मेरी मुहब्बत को आज़माने लगे
🍷🍷🍷🍷🍷🍷🍷🍷
🖋️विनय साग़र जायसवाल
17/6/2021

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

नसीब का ही है खेल सारा किसी की कोई ख़ता नहीं है
तमाम हस्ती लुटाई जिस पर मिली उसी से वफ़ा नहीं है
हुस्ने-मतला-----
हमारे ग़म की क्या ऐ तबीबों जहान भर में दवा नहीं है 
हज़़ार कोशिश के बाद भी जो मिली अभी तक शिफ़ा नहीं है 

है लाख माना वो दूर हमसे मिले भी मुद्दत हुई है उससे
मगर वो दिल की नज़र से मेरी किसी भी लम्हा जुदा नहीं है

हमारे क़िस्से हैं लब पे उसके सुनाता रहता है हर किसी को 
बशर बताते हैं फोन करके किसी तरह बेवफ़ा नहीं है 

करम की नज़रें ख़ुदाया रखना रहे सलामत वो हर तरह से 
हमारी नज़रों में उससे बढ़कर कोई हमारा सगा नहीं है 

हजारों सदमे लिपट गये हैं रह-ऐ-वफ़ा में क़दम ही रखते
फ़रेबी दिल ने कहा बराबर ये सौदा फिर भी बुरा नहीं है

उलझती जाती है दिन ब दिन ही हयात अपनी बताओ *साग़र*
हमारी मुश्किल के रास्तों में कोई भी मुश्किलकुशा नहीं है 

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली

एस के कपूर श्री हंस

*।।ग़ज़ल।। संख्या 112।।*
*।।काफ़िया।। आन ।।*
*।।रदीफ़।। बन कर देखो।।*
1
तुम गैरों पर भी मेहरबान बन कर  देखो।
तुम जरा सही    इंसान   बन कर देखो।।
2
बच्चों के साथ   बच्चे बन  कर   खेलो।
तुम भी जरा मासूम नादान बनकर देखो।।
3
मत भागो   हमेशा झूठी शोहरत के पीछे।
तुम  औरों के भी कद्रदान बन कर  देखो।।
4
जमीं पर ही रह कर जरा सोच रखो ऊँची।
तुम जरा ऊपर    आसमान बन कर देखो।।
5
जड़ से उखाड़  फेंकें  काँटों के पेड़ को।
तुम जरा  वह   तूफान   बन   कर  देखो।।
6
जज्बा  और जनून   हो खूब  अंदर तेरे।
तुम वैसे   इक़   रहमान   बन  कर देखो।।
7
अपने ही सुख में मत मशगूल रहो हमेशा।
किसीऔर के गम में परेशान बनकर देखो।।
8
मसीहा सी सूरत संबको नज़र आये तुममें।
तुम ऐसी ही   सबकी शान बन कर देखो।।
9
*हंस* अपने अंदर भी   झांको  टटोलो खूब।
तुम खुदअंदर दुनिया जहान बन कर देखो।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

मौसम-ए-गुल है सनम लुत्फ़ उठाने के लिए
कितना अच्छा है समाँ प्यार जताने के लिए

दिल की बेताब तमन्नाएं मचल उठ्ठी हैं
साज़े -दिल छेड़ ज़रा गीत सुनाने के लिए 

यह बुज़ुर्गों ने बताया है कई बार हमें
बात बन जाती है गर सोचो बनाने के लिए

इससे बेहतर था मुलाकात न करते उनसे
जब भी मिलते हैं तो बस दिल को दुखाने के लिए

ऐसे रूठे कि न आने की क़सम  खाके गये
*हमने क्या क्या न किया उनको मनाने के लिए*

 उनके घरवाले मुहब्बत को तरस जाते हैं
जो भी परदेस गये रोज़ी कमाने के लिए 

हमने जो पेड़ लगाये है यहाँ पर *साग़र*
छोड़ जायेंगे  विरासत ये ज़माने के लिए

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
1/6/2021

देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

.................कागज के फूल..................

प्रकृति के फूल  तो बहुत  ही सुंदर  होते हैं।
कागज के फूलभी कम सुंदर नहीं होते हैं।।

भले ही इनमें  प्राकृतिक खुशबू  नहीं होते;
पर इनमें काँटे-सी चुभन  तो नहीं होते हैं।।

माना कि ये देवी -देवों पर नहीं चढ़ा करते;
पुजन बाद इन्हें फेंकनेभी तो नहीं होते हैं।।

खिलने वक्त  की खुबसुरती  इनमें न सही;
मुरझाने  से भी  तो कोसों  दूर ही होते हैं।।

भँवरे भले ही इन पर गुंजन न करें ,न उड़ें;
पराग चुसभागने के भय तो नहीं होते हैं।।

फूलवारी का  मजा भले हमें  न दें ये फूल;
सिंचाई  के  मेहनत भी  तो नहीं  होते हैं।।

जीवन में हो कागज  के फूल-सा"आनंद";
उतार चढ़ाव की संभावनाएं नहीं होते हैं।।

-----------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

नहीं बात ऐसी कि पहरा नहीं है
किसी के वो रोके से रुकता नहीं है

तड़प है मुहब्बत की उसके भी दिल में
जो तोड़ा कभी उसने वादा नहीं है

बयां क्या करूँ ख़ूबसूरत है कितना
यहाँ उसके जैसा भी दूजा नहीं है

मुहब्बत है उससे ये कैसे मैं कह दूँ
वो इतना भी खुलकर के मिलता नहीं है

तेरे ग़म से फ़ुर्सत ही मिलती कहाँ है
किसी सिम्त यूँ हमने देखा नहीं है 

वो चाहें तो पत्थर लगें तैरने भी
अभी वाक्या हमने भूला नहीं है 

उसी के करम पर भरोसा है हमको
सिवा उसके कोई हमारा नहीं है 

कभी क़द्रां होंगे लाखों हमारे
ज़माना अभी हमको समझा नहीं है

असर शेरगोई में कैसे हो *साग़र*
लहू तो ग़ज़ल में निचोड़ा नहीं है 

🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली

एस के कपूर श्री हंस

।।ग़ज़ल।।
*।।काफ़िया।। आर ।।*
*।।रदीफ़।। है जिंदगी।।*
1      मतला
प्रभु की    दी यह उधार   है   ज़िंदगी।
चार दिन का  कारोबार    है   जिंदगी।।
2        *हुस्ने मतला*
जान लो अनमोल  उपहार है जिंदगी।
सुख दुःख का       दीदार है   जिंदगी।।
3
बख्शी ऊपरवाले ने सोच समझ कर।
सही से जीने की हक़दार है   जिंदगी।।
4
बनावटी उसूलों नफरतों में उलझे तो।
बन जाती यही    धिक्कार है जिंदगी।।
5
जो रहते   हैं हर बात में हद के   अंदर।
बनती उनकी सिलसिलेवार है ज़िंदगी।।
,6
देखना सुनना सबको, हो अपना पराया।
बनानी होतीअपनी सलीकेदार है जिंदगी।।
7
अच्छा बुरा सब तुम्हारे   ही तो हाथ है।
तुम्हारी अपनी ही  सरकार   है  जिंदगी।।
8
हर गम और खुशी में   साथ है निभाती।
बहुत ही यह     वफादार  है    जिंदगी।।
9
डूबे रहो   जब अपने में हर फ़र्ज़ से दूर।
तब   कहलाती   गुनाहगार  है जिंदगी।।
10
*हंस* जब थाम लेते   हैं काम का दामन।
बन जाती जीत की  दावेदार है जिंदगी।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।     9897071046
                     8218685464

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

बड़े खुलूस से जब वो ख़याल करते हैं
इसीलिये उन्हें हम भी निहाल करते हैं

हमें भी दिल पे नहीं रहता अपने फिर काबू
अदाओ नाज़ से जब वो धमाल करते हैं

जवाब कोई मुझे सूझता नहीं उस दम
वो बातों बातों में ऐसा सवाल करते हैं

खँगाल लेते हैं चुपचाप मेरा मोबाइल
*वो इस तरह से मेरी देखभाल करते हैं*

पकड़ में आती हैं जब जब भी  ग़लतियाँ उनकी 
वो उस घड़ी ही मुझे अपनी ढाल करते हैं

ख़ुदा भी बख़्श उनके गुनाह देता है
पशेमाँ होके जो दिल से मलाल करते हैं

बड़े बुज़ुर्ग भी हैरत में आज हैं *साग़र*
ये दौरे नौ के जो बच्चे कमाल करते हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
27/5/2021

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल ---
1.
क्या खाक जुस्तजू करें हम सुब्हो-शाम की 
जब फिर गईं हों नज़रें ही माह-ए-तमाम की 
2.
शोहरत है इस कदर जो हमारे कलाम की
नींदें उड़ी हुई हैं यूँ हर खासो-आम की 
3.
हर शख़्स हमको शौक से पढ़ता है इसलिए
करते हैं बात हम जो ग़ज़ल में अवाम की 
4.
जो कुछ था वो तो लूट के इक शख़्स ले गया 
जागीर रह गई है फ़कत एक नाम की
5.
 खोली किताबे-इश्क़ जो उसकी निगाह ने
उभरीं हरेक हर्फ़ से मोजें पयाम की 
6.
ज़ुल्फों में उसकी फूल भला कैसे टाँकता
हिम्मत बढ़ाई उसने ही अदना गुलाम की 
7.
ज़ुल्फ़े-दुता का नूर अँधेरों को बख़्श दे 
प्यासी है कबसे देख ये तक़दीर शाम की 
8.
*साग़र* धुआँ धुआँ है फ़जाओं में हर तरफ़
शायद लगी है आग कहीं इंतकाम की 

🖋️विनय साग़र जायसवाल बरेली
जुस्तजू -खोज ,तलाश
माह-ए-तमाम-पूर्णमासी का चंद्रमा 
ज़ुल्फ़े-दुता-स्याह गेसू 
नूर-प्रकाश 
इंतकाम-बदला 
24/5/1979

एस के कपूर श्री हंस

।ग़ज़ल।
।काफ़िया।। आल ।
।रदीफ़।। है जिंदगी।।
1
खेलो तो  तब  गुलाल  है   जिंदगी।
बहुत ही यह बेमिसाल है   जिंदगी।।
2
हार जाये जब मन से कोई आदमी।
तो बस फिर इक़ मलाल है जिंदगी।।
3
बस यूँ ही गुजारी तनाव में  गर  तो।
जान लीजिए कि बेहाल है  जिंदगी।।
4
गर ढूंढा न जवाब हर बात का  हमने।
तो मानो सवाल ही सवाल है जिंदगी।।
5
जियो जिंदगी अंदाज़ नज़र अंदाज़ से।
नहीं तो फिर बस   बवाल है   जिंदगी।।
6
गर जी जिंदगी मिलकर   सहयोग  से।
तो जान लो फिर   कमाल है  जिंदगी।।
7
बस लगे रहे हमेशा. अपने मतलब में।
तो बन   जाती    बदहाल  है  जिंदगी।।
8
गर घिर गए हम नफरत के   जाल में।
तो फिर ये   बिगड़ी चाल.  है जिंदगी।।
9
जियो और जीने दो की राह पर चलो।
तो फिर   बनती   जलाल   है जिंदगी।।
10
*हंस* बस हँसकर ही काटो गमों दुःख में।
यकीन मानो रहेगी खुशहाल है जिंदगी।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

डाॅ०निधि मिश्रा

*हर एक अदा को मेरी कोई राज समझ लेते हैं* 

हर एक अदा को मेरी कोई राज समझ लेते हैं, 
बेवजह नाम मेरा उसके संग यूँ ही जोड़ देते हैं। 

कसूर है नही किसी का सब वक्त-ए-गुनाह है, 
हम साँस भी लेते हैं वो आहों का नाम देते हैं। 

इन आँखों के तरन्नुम में मेरी सादगी छिपी, 
जाने क्यूँ इनको सभी इश्क़ ए सलाम कहते हैं। 

चहरे को देखते न दिल का आइना देखें, 
हँसीं रुखसार को उसी की मुहब्बत करार देते हैं। 

खुशियाँ तमाम मिल जाये मेरे रकीब को, 
ये सोच कर हम अपने गम पे गुमान करते हैं। 

जिसको नहीं परवाह रश्म-ए-वफा की हो, 
भूले से भी नहीं हम अब उसका लेते हैं। 

 *स्वरचित-* 
 *डाॅ०निधि मिश्रा ,*

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