विष्णु असावा                बिल्सी ( बदायूँ घनाक्षरी छन्द  शारदे नमन तुम्हें बार बार बार बार बार बार चरणों में बलिहारी जाऊँ माँ

विष्णु असावा
               बिल्सी ( बदायूँ


घनाक्षरी छन्द 


शारदे नमन तुम्हें बार बार बार बार
बार बार चरणों में बलिहारी जाऊँ माँ


है बसंत पंचमी की शुभ तिथि शुभ दिन
ऐसे शुभ अबसर शीश को झुकाऊँ माँ


सभा बीच लाज मेरी रख लेना मेरी अम्ब
पड़े जो मुसीबत तो तेरा प्यार पाऊँ माँ


कंठ में बिराजो स्वर साधना आकंठ करो
सजा थाल पूजन का तुझको मनाऊँ माँ


बसंत पंचमी की इन्हीं शुभकामनांओं सहित आपका अपना
                  विष्णु असावा
               बिल्सी ( बदायूँ )


कौशल महन्त"कौशल" जीवन दर्शन भाग !!१६!!* बालक बन जन्मा यहाँ,

कौशल महन्त"कौशल"


जीवन दर्शन भाग !!१६!!*


बालक बन जन्मा यहाँ,
           हर्षित हैं माँ बाप।
किलकारी की गूँज में,
           मिटे सभी संताप।
मिटे सभी संताप,
            उजाला घर में फैला।
उपजी खुशी अपार,
            प्रेम का भर-भर थैला।
कह कौशल करजोरि,
            विधाता है संचालक।
देख पुण्य प्रारब्ध,
           बनाया तुझको बालक।।
★★★
तुतली बोली बोल कर,
           बाँट  रहा   आनंद।
रुदन कभी हँसना कभी,
           मुस्काना भी मंद।
मुस्काना भी मंद,
           बाल लीला है करता।
पल में बनता वीर,
           और पल में है डरता।
कह कौशल करजोरि,
           नहीं है सागर उथली।
महके ज्यों मकरंद,
          तनय की बोली तुतली।।
★★★
माता की ममता भली,
           और पिता का प्यार।
पूत सुता माता पिता,
          बनते हैं परिवार।
बनते हैं परिवार,
          प्यार जब पनपे मन में।
सुखी सदा संसार,
         सुमत हो जब जीवन में।
कह कौशल करजोरि,
        हृदय में प्रेम समाता।
बचपन का सुखधाम,
        पिता पालक अरु माता।।
★★★


कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹


श्याम कुँवर भारती [राजभर] भोजपूरी लोकगीत (पूर्वी धुन ) – तोहरो संघतिया  याद आवे जब तोहरो संघतिया

श्याम कुँवर भारती [राजभर]


भोजपूरी लोकगीत (पूर्वी धुन ) – तोहरो संघतिया 
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
करे मनवा तनवा के झकझोर |
बिसरे नाही प्रेमवा के बतिया ,
बरसे मोरे नयनवा से लोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
कइके वादा हमके बिसरवला |
तोड़ी नेहिया के बहिया छोडवला |
सुनाई केतना हम आपन बिपत्तिया |
मिले नाही हमके कही ठोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
तोड़े के रहे काहे दिलवा लगवला |
सुघर काहे हमके सपना देखवला | 
साले हमके तोहार सावर सुरतिया |
चले नाही केवनों दिलवा प ज़ोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
भूखियो न लागे हमके नींदियों ना लागे |
मखमल के सेजिया कटवा जस लागे |
सही केतना हम लोगवा ससतिया |
तरवा गिनत हमके होई जाला भोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
जिनगी डुबवल भवरिया सवरिया |
बिरह के अगिया जरे ई गूज़रिया |
नागिन जईसे डसे कारी रतिया |
भरीला तू भर अंकवरिया माना बतिया मोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
करे मनवा तनवा के झकझोर |



श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


चंचल पाण्डेय 'चरित्र' वसंत पंचमी              छंद कलाधर श्वेत  वस्त्र  धारिणी  सुहंस  पै  रही  सवार,

चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


वसंत पंचमी 
            छंद कलाधर
श्वेत  वस्त्र  धारिणी  सुहंस  पै  रही  सवार,
मातु   ज्ञान   दान   दे   सुचेतना  उभार  दे|
अंधकार  हार  के  हरो  सभी  हिये   विकार,
दिप्त   शुभ्र   विश्व   में   सुलोचना   पसार  दे||
तत्व  ब्रह्म  वेद  की  समस्त  ज्ञान  धारिणी  तु,
लेखनी   मयूर   पंख   छंद   बंध   सार  दे|
शब्द   शब्द  में  रहे  स्वराष्ट्र   भावना  समाय,
नीति   सूर्य   के   समान   रोशनी  निखार  दे||
भक्ति  भाव  ज्ञान  से  हरो  सभी  मनोविकार,
दिव्य  भूमि  आज  राम  राज्य  को  प्रसार   दे|
पाप  अंधकार  गर्त  छाँट  के  कुतंत्र  मंत्र,
सत्य   सूर्य   चंद्र   सर्व   प्राण   में   उतार  दे||
स्वप्न  ले  हजार  द्वार  पे  खडा  निहार  मात,
काव्य  शिल्प  व्यंजना  प्रगीत - गीत  वार  दे|
आपकी   उदारता   महानता   विशुद्ध   शुद्ध,
हो  सके  पधार  मातु  मंच  को  प्रसार  दे||
हस्त   बद्ध   हो   चरित्र  भाव  ले  हिये  पवित्र|  
श्लेष   वंदना   करें   सदा   चरित्र  शारदे||
                चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


संजय जैन (मुम्बई) भारत है हमारा विधा : गीत सुनो मेरे देशवासियों,

संजय जैन (मुम्बई)


भारत है हमारा
विधा : गीत


सुनो मेरे देशवासियों,
में हूँ एक साधारण इंसान,
मुझे भारत से प्यार है।
मुझ वतन से प्यार है।।


कभी नहीं दिया किसी को धोखा, 
और न खाई झूठी कसमें,
जिन से की हमने दोस्ती,
दिया साथ सदा उनका।
चाहे वो कोई जाति धर्म का हो,
वो है हमारे देश की शान।
उन्हें कैसे दे हम धोखा
उन्हें कैसे दे हम धोखा।।


नहीं की कभी भी गद्दारी,
नहीं किया है भेदभाव।
नही देखा गलत नजरो से,
अपनी माता बहिनों को।
चाहे वो हो अमीर या हो चाहे वो हो गरीब,
हमारे देश की आन है,
हमारे देश की शान है।।


वतन से करते है हम बहुत प्यार,
हमारा देश बने गुलस्थान।
इसमें बसी है मेरी जान,
तो क्यो फैलाये इसमें नफरते हम।
यहां पर जन्मे हर मजहब के भगवान,
बसी है सब की देश में जान,
हमारा देश है बहुत महान।
हमे इससे बहुत प्यार है
हमे इससे बहुत प्यार है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
31/01/2020


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग (उत्तराखण्ड) शारदे वंदन

🙏🌹मां सरस्वती🌹🙏


हे मां सरस्वती
हे माँ जनोपकारणी
जग जननी, जल जीवधारणी। 
स्वर्णिम ,श्वेत, धवल साडी़ में
चंचल, चपल,चकोर चक्षुचारणी।


ज्ञानवान सारा जग करती माँ
अंधकार, अज्ञान सदैव हारणी 
विद्या से करती,जग जगमग
गुह्यज्ञान,गेय,गीत,  गायनी।


सर्व सुसज्जित श्रेष्ठ साधना सुन्दर
हर्षित, हंस-वाहिनी,वीणा वादिनी
कर कृपा,करूणा, कृपाल,कब कैसे,
पल में हीरक---रूप-- प्रदायिनी।


मूर्त ममतामय,ममगात मालती,
जब भटके,तम में माँ तुम्ही संवारिणी,
कितने कठिन, कष्ट कलुषित झेले माँ,
मार्ग प्रकाशित करदे माँ,मोक्षदायिनी।


जनप्रिय माँ जनोपकारणी
जग जननी, जल जीवधारणी। ।
💐💐💐💐💐💐💐💐
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग (उत्तराखण्ड)


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड बसन्त स्वागत है तुम्हारा

कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


बसन्त स्वागत है तुम्हारा
******************


*हे बसन्त तुम ऋतुओं में ऋतुराज हो*
*खग, नभ, और धरा*
*हम सब तेरी प्रतिक्षा कर रहे हैं*
*स्वागत है ऋतुराज वसंत तुम्हारा*


*हे ऋतुराज वसंत*
*निरस धरा और हताश जीवों में*
*करते हो तुम खुशियों का संचार*
*आओ ऋतुराज वसंत आओ*


*कोयल गान सुनाने को आतुर*
*आम, सरसों और पलाश*
*अपनी कलियों को बुलाने को व्याकुल*
*आओ ऋतुराज बसंत आओ*



*हे ऋतुराज वसंत*
*तुम को सब वन्दन करते है*
*तेरे आगमन की राह देखते है*
*आओ ऋतुराज वसंत आओ*
****************
*कालिका प्रसाद सेमवाल*
*रूद्रप्रयाग उत्तराखंड*


शारदे वन्दना कवि अतिवीर जैन "पराग"मेरठ  धार देना :-

शारदे वन्दना
कवि अतिवीर जैन "पराग"मेरठ 
9456966722


धार देना :-


हे माँ वाणी नमन तुम्हे,
आप मेरी कलम को, 
कुछ ऐसी धार देना.


देशद्रोहीयों पर करे प्रहार,
लेखनी में प्रहार देना.


दूर हो धर्म भिभेद,
कुछ ऐसे विचार देना.


राग देष से दूर रहे,
कुछ ऐसी धार देना.


देश आगे बढ़ता जाये,
कुछ ऐसा प्रवाह देना.


सौहार्द प्यार के गीत लिखूं,
मेरी लेखनी को धार देना.


देश हित में ही लिखे,
कुछ ऐसा उपहार देना.


हे माँ वाणी नमन तुम्हे,
सर्वे भवन्तु सुखिनः की
बात लिखूं,
ऐसा वर उपहार देना.


स्वरचित,
अतिवीर जैन पराग,मेरठ.


सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन

मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में
बिक जाते हैं कान्हा तो केवल प्यार में


जिनके दर्शन पाने में बीतें जन्म हजारों
जप करके हार गये ऋषि मुनि मेरे यारो


वो कान्हा दौड़े आयें भक्तों की पुकार में
मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में


ग्वाल बाल संग खेल कूदके वह बड़े हुए
धर्म रक्षा के लिए सदा ही वह खड़े हुए


कैसे अवर्चनीय गुण देखो मेरे करतार में
मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में।


श्रीश्यामाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन

अपने हृदय में हम कोई तस्वीर लगाये रहते है
मन के दर्पण में कोई प्रतिबिम्ब बनाये रहते है


कर दिया समर्पित यह जीवन जिसको हमने
अपने मन मंदिर में वही मूरत बिठाये रहते है


प्रातः काल अरुणिमा सी आलोकित करती वो
उस मोहिनी सूरत को आँखों में बसाये रहते है


कुंदकली सी मुस्कान आनन्दमयी कणिका वो
मेरे जीवन में सुखद अनुभूति दिलाये रहते है


अनुराग पीयूष से पूरित मकरन्द भरी वह
स्व यौवन सुरभि से अंग महकाये रहते है।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन

गुणातीत हे जगतपिता
तुम्ही आदि अंत सृष्टि के
श्रीराधा हृदय के प्राण 
तुमआधार सुख वृष्टि के


जो जपे तुम्हारा नाम
माधव वह तेरा हो जाये
जग कष्ट न कोई घेरे 
खुशी दौड़ दौड़के आयें


मानव देह मिली मुझे
पूजन अर्चन करूँ तुम्हारा
मोह माया में फँसकर
स्वामी भूला नाम तुम्हारा


नारायण हे राधे रानी
जीवन नौका की पतवार
जग बंधन से मुक्त करो
सत्य शरण हे करुणाधार।


श्रीराधे कृष्णाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय सरस्वती वंदना वीणापाणि वर दे

सत्यप्रकाश पाण्डेय


सरस्वती वंदना


वीणापाणि वर दे
झोली खुशियों से भर दे
पद्मासना हे माता
हृदय आलोकित कर दे
तेरा स्नेह पाकर
आती पतझड़ मे बहार
हिय सरोवर में माँ
प्रकटे है ममता की धार
जिसको कृपा मिली
वो जग में हुआ निहाल
ज्ञान दायिनी माता
हर लो तमस विकराल
शरण आपकी माते
मेरी भरो ज्ञान से झोली
रहे न कालिमा मेरे
माँ पिक सी करदो बोली।


माँ शारदे का प्राकट्य दिवस आपके जीवन में सुख समृद्धि और संपन्नता लेकर आये🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


बलराम सिंह पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पँ0 खीरी धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्याख्याता हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी।

बलराम सिंह पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पँ0 खीरी धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्याख्याता


हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी।
जे पर दूषन भूषन धारी।।
निज कबित्त केहि लाग न नीका।
सरस होउ अथवा अति फीका।।
जे पर भनित सुनत हरषाहीं।
ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि जोक्रूर,कुटिल और बुरे विचार वाले हैं और जो पराये दोषों को आभूषण रूप से धारण करने वाले हैं, वे ही मेरी इस कविता पर हँसेंगे।स्वरचित कविता किसको अच्छी नहीं लगती है चाहे वह रस युक्त हो अथवा फीकी हो।जो दूसरों की कविता सुनकर प्रसन्न होते हैं ऐसे श्रेष्ठ लोग संसार में बहुत नहीं हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  यहाँ गो0जी ने उन चार प्रकार के लोगों को कहा है जो उनकी इस कविता का उपहास करेंगे।
1--कूर अर्थात क्रूर अथवा दयारहित, दुष्ट व दुर्बुद्धि।
2--कुटिल अर्थात कपटी स्वभाव वाले।
3--कुविचारी अर्थात बुरे विचार व समझ वाले।
4--दूसरों के दोषों को देखने वाले व उन दोषों को आभूषण के रूप में ग्रहण कर धारण करने वाले।
  आज भी समाज में बहुत से लोग केवल दूसरों की बात का खण्डन ही करते रहते हैं और वे श्रीरामचरितमानस में विभिन्न विषयों पर अकारण ही कुतर्क करते रहते हैं।वास्तव में गुणों और दोषों की वास्तविक परख तो सज्जनों को ही होती है और वे भौरों की तरह केवल सुगन्धित पुष्पों का ही चयन करते हैं।दुर्जन लोग तो मक्खियों की तरह सड़ी गली दुर्गन्धित वस्तुओं को ही ढूँढते रहते हैं।इस श्रीरामचरितमानस जैसे सद्गुणों से युक्त महाकाव्य में दुष्टजन तो उसी प्रकार दोष खोजने का प्रयास करते हैं जैसे मणियों में भी चींटी छिद्र खोजने का प्रयास करे।गो0जी पुनः कहते हैं कि स्वरचित कविता तो सभी को प्रिय लगती है जैसे अपना बनाया हुआ भोजन सभी को स्वादिष्ट ही लगता है।दोहावली में गो0 जी कहते हैं---
 तुलसी अपनो आचरन भलो न लागत कासु।
तेहि न बसात जो खात नित लहसुनहू को बास।।
 कहने का तात्पर्य यह है कि जो दूसरों की कविता अथवा वाणी सुनकर प्रसन्न होते हैं, वे ही श्रेष्ठ व सज्जन पुरुष हैं।लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


डॉ. प्रभा जैन "श्री " देहरादून बसंत  -------- खिल    जाता मन 


डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून


बसंत 
--------
खिल    जाता मन 
सुनते ही नाम बसंत। 


सूरज की पहली किरण 
देखती धरा को मग्न, 
खिल गए फूल- फूल 
और खिली सरसों क्यारी। 


चल रही ठंडी  मधुर बयार 
कली -कली भँवरा  मल्हार, 
पत्ती -  पत्ती    डोल   रही 
गीत    सुहाने    बोल रही। 


पक्षियों   की   धुन  निराली
प्रार्थना प्रभु जी की कर डाली
राग    बसंती    गा   रहे, 
कोयल कुहू -कुहू कर रही। 


स्वर्ग   सा   नज़ारा  
बिखरा    धरा  पर, 
ऋतुओं का राजा 
बसंत, आया धरा पर
तितली भी मग्न हो रही। 


पीले वस्त्रों में आओ सखी 
प्रेम के गीत गाओ सखी,  
पीले चावल भोग लगाओ 
भर लो आँचल खुशियों से। 


सुन्दर   पवन    संग
 नृत्य  कर लो सखी। 


स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून 9756141150.


*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई सरस्वती वंदना अवधी

*चलते-चलते:0130*
आज बसंत पंचमी के पावन पर्व पर माँ सरस्वती की वंदना मेरे गृहनगर प्रतापगढ़ (उ. प्र.) के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली *अवधी* भाषा में। 


*⚜ बाँकी झाँकी मईया तोहरी ⚜*
*बाँकी झाँकी मईया तोहरी, हमका सोहात बा।*
*जऊने पल दिन मईया, वो ही पल रात बा।।* 


*बींदिया बा दिनकर सोहै, मईया के ललाट पे।* 
*तरवा व चन्द्र सोहै, आँख के विराट पे।।*
*मेघ सम केश सोहै, शीश पे सोहात बा।*
*बाँकी झाँकी मईया तोहरी, हमका सोहात बा।।*


*बाटै श्वेत सारी तन पा, कर मा बाटै वरदण्ड।* 
*कण्ठ पै माँ हार सोहै, दूजे कर सोहै छंद।।* 
*एक कर मा सोहै कमलिनी, चरण कमल पा राजत है।* 
*हँस के सवारी मईया, कैसी सुंदर साजत है।।*
*दर्पण मा रूप तोहरा, आवत की शर्मात बा।* 
*रूपवै मा दर्पण आज, अपुने देखात बा।।* 
*रूप क बयान के, मईया कऊन बिसात बा।* 
*बाँकी झाँकी मईया तोहरी, हमका सोहात बा।।*


*नाहीं बाटै चिंता हमका, खुश चहै नाराज रहा।*
*एतनी बाटै बिनती तोहसे, मईया सम तू साज रहा।।* 
*भूलि गऊ पूत का तो, बढ़ि के कवन बात बा।* 
*बाँकी झाँकी मईया तोहरी, हमका सोहात बा।।*


सर्वाधिकार सुरक्षित 
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*


श्लेष चन्द्राकर  महासमुन्द (छत्तीसगढ़) बसंत पंचमी दोहे मातु शारदे आपको, नमन अनेकों बार।

श्लेष चन्द्राकर 
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)


बसंत पंचमी दोहे


मातु शारदे आपको, नमन अनेकों बार।
सबको अनुपम ज्ञान का, देती हो उपहार।।


माता वीणा वादिनी, हरे सभी दुर्योग।
आने से ऋतुराज के, आनंदित हैं लोग।।


ज्ञान रश्मियों से मिटा, जढ़ता का अँधियार।
जीवन में माँ शारदे, लाती नई बहार।।


सब ऋतुओं से मानते, ऋतु बसंत को खास।
भरता इसका आगमन, हर मन में उल्लास।।


धरती ने धारण किया, वासंती परिधान।
अपलक जिसको देखना, चाहे सकल जहान।।


🌻 श्लेष चन्द्राकर 🌻
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)


शोभित सूर्य धौरहरा शारदे माता बुद्धि दाता विनती है इतनी ,

शोभित सूर्य धौरहरा


शारदे माता बुद्धि दाता विनती है इतनी ,
यह जीवन बीते आपके गुणगान में।


आप बसे रोम रोम धरा से  लेकर व्योम,
मैं सर्वस्व देख लूँ आपके प्रतिमान में ।।


बुद्धि औ विवेक रहे कामनाएं नेक रहें ,
घबराए नहीं देश हित बलिदान में।


भारत की हरे पीर तोड़ दे हर जंजीर ,
सुभाष जैसा वीर पैदा हो हिंदुस्तान में।।


शोभित सूर्य


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ, बसन्त( चौपाई) अलि बांवरा हुआ सखि देखो,

कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ,


बसन्त🌻🌻( चौपाई)


अलि बांवरा हुआ सखि देखो,
फूल फूल पर मंडराय है|
मकरंद लिपटी सगर तन पे,
बस इधर उधर बौवराय है|


पीला सूरज, पीली सरसों,
बही खेतों में रवानीं है|
ओढ़े धरती पीत  चादर,
गोरी की चुनरी धानीं है|


फैल रही सुगंध कलियों की,
झरे सब पीत -पात  धरा पर,
नये कोंपल संग वृक्ष  झूमें
लिपटे लता प्रेम निज तनपर |


बसन्त सुनाता प्रिय संदेशा,
मास फाल्गून का आनें को,
रंग-बिरंगा हो अंबर भी,
देगा सौहार्द मिलानें को|


स्वागत कर दिल से मौसम का,
हवा बसंती भाये मोंहे,
सुख की धूप खिली सखि देखो,
ऋतुराज बसन्त सोहे मोंहे|


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ,


किशोर कुमार कर्ण  पटना बिहार दो पुष्प ~~ वसंत आगमन पर 

किशोर कुमार कर्ण 
पटना बिहार


दो पुष्प ~~


वसंत आगमन पर 
कुसुम पल्लवित पुष्प खिले 
पावन दिन में 
धरा पर दो पुष्प खिले 


वो पुष्प सुवासित 
ज्ञान सुगंधित महके
एक नभ का प्रकाश जयशंकर 
तो दूजा धरा का मान निराला हुए


अनामिका, परिमल, गीतिका और  अणिमा 
निरालाजी की अविरल रचना हुई 
कानन कुसुम, झरना, आंसू और कामायनी 
जयशंकरजी ने अवर्णिय धाराएँ बहाई


---किशोर कुमार कर्ण 
पटना बिहार


प्रतिभा गुप्ता आलमबाग,लखनऊ माँ  तुम्हारी  वंदना  करती  रहूँ।

 


प्रतिभा गुप्ता
आलमबाग,लखनऊ
माँ  तुम्हारी  वंदना  करती  रहूँ।
काव्य की मैं साधना करती रहूँ।
************
धूप,दीपक और रोली, पुष्प से,
हो मगन मैं अर्चना करती  रहूँ।
***********
है तिमिर घनघोर माँ आलोक दो,
हो निडर मैं सामना करती रहूँ।
***********
श्रेष्ठ भावों से सजी हो गीतिका,
मैं कलम से सर्जना करती रहूँ।
***********
मन कभी ना चूर हो अभिमान में,
सिर झुकाकर प्रार्थना करती रहूँ।
********
अनवरत प्रतिभा चले यूँ लेखनी,
व्यक्त अपनी भावना करती रहूँ।
**********
प्रतिभा गुप्ता
आलमबाग,लखनऊ


महाकवि निराला जी की वन्दना द्वारा कैलाश दुवे होशंगाबाद वर दे, वीणावादिनि वर दे !

महाकवि निराला जी की वन्दना द्वारा कैलाश दुवे होशंगाबाद


वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे !


काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे !


नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे !


वर दे, वीणावादिनि वर दे।
*वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं*


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।बरेली शहीद हमारे अमर महान हो गए।*

एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली


शहीद हमारे अमर महान हो गए।*


*।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*


नमन है उन शहीदों को जो
देश पर कुरबान हो गए।



वतन   के  लिए देकर जान
वो   बे जुबान  हो   गए ।।



उनके प्राणों  की  कीमत से
ही सुरक्षित है देश हमारा।



उठ  कर  जमीन  से   ऊपर
वो जैसे आसमान हो गए।।


*रचयिता।।। एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।


ममता कानुनगो इंदौर ऋतुराज बसंत 

ममता कानुनगो इंदौर


ऋतुराज बसंत 
बसंत ऋतुराज,
पहना केसरिया ताज,
बौर अंबुआ फूले,
मतवाली कोयल कूके,
भंवरों से गुंजा उपवन,
महका महका यौवन,
नवकोपल ने ली अंगड़ाई,
शाख पात सब मुस्काई,
धूप गुनगुनी हो गयी तीखी,
तान कोकिला सुनाए मीठी,
सतरंगी हुई दिशाएं,
टेसू पलाश खिलखिलाए,
वीणावादिनी  ने स्वर छेड़ा,
रंग बासंती चहुंओर बिखेरा,
मां शारदा का करुं मैं पूजन,
बसंतोत्सव का हो रहा शुभागमन।


      ममता कानुनगो इंदौर


सन्दीप सरस बिसवां सीतापुर गीत~मां अभ्यर्थन शारदे   लेखनी  में  समा  जाइए, 

सन्दीप सरस बिसवां सीतापुर


गीत~मां अभ्यर्थन


शारदे   लेखनी  में  समा  जाइए, 
मेरे गीतों की गरिमा संवर जाएगी।


प्रेरणा आप हो अर्चना  आप हो ,
मेरे मन से  जुड़ी भावना आप हो।


काव्य की सर्जना स्नेह है आपका,
मेरे हर शब्द  की साधना आप हो।


हाथ रख  दो मेरे  शीश पर स्नेह से,
काव्य प्रतिभा हमारी निखर जाएगी।1।


सारगर्भित  रहे  मुक्तकों  सा सदा ,
और जीवन बने सन्तुलित छंद सा।


पारदर्शी   रहे   गीत   की   भावना ,
नव सृजन का हो संकल्प निर्द्वन्द सा।


ज्ञान की वर्तिका प्रज्वलित कीजिए,
मेरे जीवन में आभा बिखर जाएगी ।2।


मेरी अनुभूतियों को गहन कीजिए,
भावनाओं को अभिव्यक्ति दे पाऊं माँ।


भाव   ऐसे   हृदय  में  जगा   दीजिए
कल्पना को सहज शक्ति  दे  पाऊं माँ।


लेखनी  को हमारी  मुखर  कीजिए,
शब्द  की  साधना भी सुधर जाएगी।


सन्दीप सरस


सुनीता असीम अगर तन छोड़कर जाएँ जहाँ से।

अगर तन छोड़कर जाएँ जहाँ से।
नहीं हम मोह रक्खें आशियाँ से।
***
नहीं थकते कभी बातों से तुम हो।
कि बातें इतनी हो लाते कहाँ से।
***
जो फूलों को चमन से तोड़ना हो।
इजाजत लेना पहले बागबाँ से।
***
किसी से बात कड़वी मत करो तुम।
मुहब्बत की करो बातें जुबाँ से।
***
नहीं रहना उदासी से भरे तुम।
विदा लेना कभी जब कारवाँ से।
***
कचहरी में गवाहों का दखल है।
पलटते हैं गवाही में बयाँ से।
***
जिगर से चाक होंगे सब विरोधी।
चलाएं तीर सरकारें कमाँ से।
***
सुनीता असीम
३०/१/२०२०


डाॅ.रेखा सक्सेना  *बसंत के रंग*

डाॅ.रेखा सक्सेना 


*बसंत के रंग* 🌻🌻
****************************


ओ कुसुमाकर, ओ ऋतुराज,
 प्रमुदित नर-नारी सब आज।। 


तेरा आगमन, बड़ा मनभावन,
 तन- मन को करता है पावन।।


'सरस्वती' का प्रकटीकरण है, 
उल्लासपूर्ण  अंतः करण  है।।


 ना   जाड़ा है,  ना गर्मी   है ,
 संदेश   संतुलन   धर्मी  है।।


 दिगदिगन्त मादकता छाई
 सरसों भी फूली न समाई ।।


 कलियों ने अवगुन्ठन खोले
 भंवरें भी गुन गुन हो डोले।।


वन- उपवन सौरभ महका है,
 प्रेमाकुल खग- दल चहका है।।


 विविध पुष्प  चूनर सतरंगी, 
 धरा- वधु ओढ़े निज अंगी।।


इस बदलाव का है अभिनंदन,
मधुमास का  है  जग- वंदन ।।


वीणावादिनी शुभ वरदायिनी
 कुहुक तान कोकिला सुहानी।


🌻स्वागतम् ऋतुराज🌻
स्वरचित डाॅ.रेखा सक्सेना 
मौलिक  29-01-2020
 🌻🌻🌻🌻🌻🌻


डा० भारती वर्मा बौड़ाई ३० जनवरी बापू की पुण्यतिथि पर 

डा० भारती वर्मा बौड़ाई


३० जनवरी बापू की पुण्यतिथि पर 


बापू!
———-
आ गया 
दिवस वही 
लौट कर फिर 
जब खोया था हमने 
तुम्हें बापू!
अपने सपनों का भारत 
बनाने का सपना संजोये 
तुम चले तो गए बापू!
उस सपने का ध्वजवाहक
आ गया है,
तुम्हारे विचारों को 
करता हुआ प्रसारित 
नई पीढ़ी को बापू की देन 
समझाता है,
नहीं मरेंगे 
कभी तुम्हारे विचार!
बनेगा तुम्हारे 
सपनों का भारत
एक दिन विश्व गुरु!
तुम्हारा काम 
और बलिदान 
व्यर्थ नहीं जायेगा,
उसकी नींव पर 
खड़ा भारत अपना 
नया इतिहास लिखता जायेगा,
तुम देखना बापू!
तुम्हारे सपनों का भारत!
नये रंग लेकर आयेगा।
—————————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


जयपुर से-- डॉ निशा माथुर बसंत

नवयौवना ने बासंती यौवन की आज ली अंगड़ाई है
अलौकिक आनंद अनोखी छटा बसंत ऋतु आयी है
चंचल पुरवा,नवल मधुमास  ऋतुयों की ऋतु कुसुमायी है।
स्वर्ण धरा का सफल समागम गौरी ने पायलिया खनकायी है।


आज बसंत पंचमी की खनक, चारों और फूलों की प्यारी सी महक, धरती के इस सौलह श्रृंगार की दमक के साथ आप सभी को आज के दिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं ,ढेर ढेर सारी बधाई।, इसी शुभकामना के साथ हैप्पी पीले चावल
नमस्ते जयपुर से-- डॉ निशा माथुर🙏😃


गोविंद भारद्वाज, जयपुर

अंगारा हूँ अगर तपन से प्यार करो तो आ जाना,
मैं पागल दीवाना हूँ, स्वीकार करो तो आ जाना,
मेरे दिल की दिल्ली पर अधिकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


सोया दर्द जगाया तूने, महकी चाँदनी रातों में,
बिरहा की अग्नि में जलता, सावन की बरसातों में,
सूना मन मन्दिर है ये, श्रृंगार सजाने आ जाना।
आवारा बादल हूँ मैं, तुम बदली बनकर छा जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


तुमने चाही छाँव घनेरी, मैंने तपती धूप चुनी,
तुमने दिल की एक न मानी, मैंने मन की बात सुनी,
वीणा के तारों में तुम, झंकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


तेरी साँसों की सरगम से जाने कितने गीत सुने,
पलकों पर हँसते जख़्मों ने जाने कितने स्वप्न बुने,
बेबस गूँगे सपनों पर, उपकार करो तो आ जाना
मेरे दिल की दिल्ली पर अधिकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


गोविंद भारद्वाज, जयपुर


राहुल मौर्य 'संगम'            गोला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश  "ऋतुराज बसंत                विधा- दोहा

 


राहुल मौर्य 'संगम'
           गोला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश
 "ऋतुराज बसंत
               विधा- दोहा


नव किसलय की आंधियाँ, छायी आज अनंत ।
झूम  उठा  मन  आँगना ,  आयी   आज  बसंत ।।


मन  मयूर  थिरके  यहाँ ,  स्वागत में ऋतुराज ।
गाए   कोयल   बाबरी  ,  मतवाली   सरताज ।।


देव , मनुज   औ  राक्षसी , सब गाते गुणगान ।
देख  रूप  तब सृष्टि का , सुख  पाती  संतान ।।


रंगो   भरी   बयार   में , रँगी  सृष्टि  अरु फूल ।
रंग  संग  के  साथ  ही , मिटे  कष्ट  अरु शूल ।।


नव वधु सी धरती सजी ,  बने  बराती   बाग ।
कोयल  शहनाई  बजी , ना  बोले कुछ काग ।।
 
कुहू - कुहू के शोर से ,  मनवा  हुआ  अधीर ।
निशा गमन के भोर से,कसक उठी अब पीर ।।


अगन  लगाकर प्रेम की , करो  सदा  उद्धार ।
जग  में   छाये   एकता  ,  दुष्टों  का   संहार ।।
🌹🍀🌹🍀🌹🍀🌹🍀🌹🍀🌹🍀🌹
               
                   #स्वरचित /मौलिक
                ✍🏻राहुल मौर्य 'संगम'
           गोला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश


शशि कुशवाहा लखनऊ,उत्तर प्रदेश

"मनवा डोल रहा"


फगुनवा की आयी है बहार
कि मनवा डोल रहा....
चारो ओर फैली रंगों की फुहार
कि मनवा डोल रहा ...


कान्हा दोनों हाथ भरे है गुलाल
रंगना है राधा को लालमलाल
राधा हुई शर्म से लाल 
कि मनवा डोल रहा ....


झूमे , नाचे ,गाये खुशियाँ मनाये
गोपियों संग कान्हा रास रचाये
व्रन्दावन में हुआ रे धमाल 
कि मनवा डोल रहा ....


बच्चे दौड़ दौड़ रंग बरसाए
उछल कूद घर सर पे उठाये
हुड़दंग, हँसी ठिठोली का त्यौहार
कि मनवा डोल रहा .....


साजन लगाये रंग सजनी के गाल
प्रीत के रंग से रंगी है ये शाम
नैनो में भरे मिलन के ख्वाब
कि मनवा डोल रहा.....


गिले शिकवे मिटा जाओ
प्रेम से सबको गले लगाओ
भर गया मन में नया उल्लास
कि मनवा डोल रहा ......


फगुनवा की आयी है बहार
कि मनवा डोल रहा....
चारो ओर फैली रंगों की फुहार
कि मनवा डोल रहा ...


शशि कुशवाहा
लखनऊ,उत्तर प्रदेश


अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश          सरस्वती वंदना

अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश


         सरस्वती वंदना
माँ शारदे की वीणा,झंकार कर रही है
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है


आसन कमल विराजे,शुभ्र वस्त्र धारिणी है
मस्तक मुकुट है साजे,भय शोक तारिणी है


आभा मुखार विंद की,शोभा बढ़ा रही है।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है।।


मीरा सी भक्ति देना,विषपान भी बने सुधा
दुर्गा सी शक्ति देना,दैत्यों से मुक्त हो वसुधा


वरदायिनी है मैया,वरदान दे रही है।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है।।


महिमा तेरी है दिखती,रंगों में नजारों में
ज्ञान चक्षु खोलती है,मंदिर में गुरुद्वारों में


जगती बनी जगत को,लीला दिखा रही है ।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है। ।


मौसम हुआ बसन्ती,कलियाँ भी झूमती हैं
तरु लद गए हैं बौर से,कोयल भी कूकती है


तिथि पंचमी से ऋतु की,सूरत बदलरही है।
अज्ञान के तमस से हमें दूर कर रही है।।


राम शर्मा परिंदा

*बसंत पंचमी*
दिखाओ नित--नव पंथ पंचमी
जिस पथ चले सब संत पंचमी
अवगुण झड़े पतझड़ के  जैसे
रहे जीवन हमेशा बसंत पंचमी
*शारदे जन्मोत्सव की हार्दिक*
*बधाईयों के साथ*
*राम शर्मा परिंदा*


कहानी चिंता/महेश राजा महासमुंद।छत्तीसगढ़।।

चिंता/महेश राजा महासमुंद।छत्तीसगढ़।।
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   गर्मियों के दिन निकट थे। सब जानवर अपने-अपने ठिकानों में दुबके पड़ेथे।जंगल के राजा शेरसिंह को शिकार नहीं मिल पा रहा था।वह सोच रहा था,आजकल ईंसानों तो जंगल आना छोड ही दिया।उन्होंने अपना खुद का जंगल राज बना लिया है'।यह सोच कर उसे बड़ी कोफ्त हुई।वह भूख के मारे बैचेन था।शरीर साथ न दे रहा था।क्या करें,क्या न करें।वाली स्थिति थी।अब वह बूढ़ा हो चला था तो मातहत भी उसकी बात सुनते नहीं थे।


   तभी दूर से किसी गांव से भटकती,रास्ता भूलती हुयी  एक बकरी पर उसकी नजर पड़ी ।शेर की आँखे चमक उठी।उसने पुचकार  कर आवाज दी-"क्या बात है, ओ बकरी बहन .बड़ी कमजोर नजर आ रही हो?क्या बीमार चल रही हो।कुछ घांँस -फूस नहीं मिल रही हो  खाने को तो।आओ ,मैं तुम्हारे भोजन का प्रबंध कर दूँ।आखिर कार तुम मेरी प्रजा हो।और मैं तुम्हारा राजा।मेरे राज्य में कोई भूखा रहे, यह मुझे मँजूर नहीं।"



   बकरी ने यह सुन कर पैर जोड़े और लगभग भागते हुए जवाब दिया,-"आदरणीय शेर सिंह जी, आपको मेरी चिंता हो रही है या अपनी?"


    इतना कह कर वह दूर जंगल से गांँव की तरफ दौड़ पड़ी।


   शेरसिंह खिसयानी हँसी हँसते हुए सिर खुजा रहा था,-"सा...आजकल छोटे-छोटे जानवर भी कितने चालाक हो गये है।"


  अब वह   फिर से चल पड़ा,शिकार की तलाश में।।



....
*महेश राजा*,वसंत 51,कालेज रोड.महासमुंद।छत्तीसगढ़।।


कहानी दर्पण:महेश राजा/ महासमुंद छग

दर्पण:महेश राजा/
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     बस छूटने ही वाली थी।दरवाजे की तरफ से अजीब सा शोर उठा,जैसे कोई कुत्ता हकाल रहा हो।परेशानी और उत्सुकता के मिले जुले भाव लिये मैंने उस ओर देखा तो पता चला कोई बूढ़ा व्यक्ति है,जो शहर जाना चाह रहा था।वह गिडगिडा रहा था,'"-तोर पांव परथ ऊं बाबू.मोला रायपुर ले चल।मैंगरीब टिकीस के पैसा ला कहां लेलानहूँ।" "उसका शरीर कांँप रहा था।


     -"अरे चल चल।मुफ्त में कौन शहर ले जायेगा।चल उतर।तेरे बाप की गाड़ी नहीं है।कंडक्टर की जुबान कैँची की तरह चल रही थी।"।किसी गाड़ी के नीचे आजा,शहर क्या सीधे ऊपर पहुंच जायेगा."।
एक जोरदार ठहाका गुंँज उठा।


  
     एक सज्जन जिन्हें ड्यूटी पहुंँचने के लिये देर हो रही थी बोले,-"इनका तो रोज का है।इनके कारण हमारा समय मत खराब करो।निकालो बाहर"।


   
     एक अन्य साहब ने चश्मे के भीतर से कहा,-"और क्या।धक्के मार कर गिरा दो।तुम भी उससे ऐसे बात कर रहे हो.जैसे वह भिखारी न हो कोई राजा हो।"



    और सचमुच।!एक तरह से उसे धक्के मार कर ही उतारा गया।यात्रियों ने राहत की सांँस ली।डा्ईवर ने मनपसंद गाना लगाया।बस  गंतव्य की ओर चल पड़ी।


    मेरी सर्विस शहर में थी।रोज बस या ट्रेन से अपडाउन करता था।मैंनेअपने कान और आंँखे बंँद ली थी।नहीं तो और भी जाने क्या क्या सुनना पडता?


     पर साथ ही पिछले सप्ताह की एक घटना याद हो आयी।इसी बस में एक सज्जन जल्दबाजी में चढ़े।बाद में जनाब को याद आया कि बटुआ  तो वे घर पर ही भूल आये है।।मुझे अच्छे से याद है,चार चार लोग आगे बढ़े उनकी  मदद करने को,उनकी टिकीट कटाने को।अंँत में कंडक्टर  ने स्वयं,- ये हमारे रोज के ग्राहक है।कल ले लूंगा।" कह कर अपने रिस्क पर उन्हें शहर ले जाने को तैयार हो गये।



    सोचना बंद कर एक बार पीछे मूड़कर देखता हूँ।।सभी अबतक   वही
 बात कर रहे थे।जल्दी से आगे की तरफ नजर धूमा लेता हूँ।


तभी मेरी नजर सामने की तरफ लगे,दर्पण पर पडी।उसमें मुझे अन्य लोगों के साथ अपना भी चेहरा  साफ नजर आया। धबरा कर मैंने अपनी आंखेँ बंद कर ली।
.......


*महेश राजा*,वसंत 51'कालेज रोड।महासमुंद।छत्तीसगढ़


मधु शंखधर प्रयागराज विशेष प्रतिनिधि काव्य रँगोली इंद्रधनुष सी हो गई,धरती अब सतरंग।

मधु शंखधर प्रयागराज


विशेष प्रतिनिधि काव्य रँगोली


सभी मित्रों को बसंत पंचमी की अनंत शुभकामनाएं .....🌷🌷🌹🌹
इंद्रधनुष सी हो गई,धरती अब सतरंग।
मनु जीवन में हर्ष है, छाए नवल उमंग।।


धरा करे ऋंगार यूँ,नव दुल्हन सी नार।
पीत पुष्प ऐसे लगे,  स्वर्ण सुशोभित हार।
ऋतु बसंत के साथ ही,खुशियाँ आई संग।
इंद्रधनुष सी हो गई.................।।


लाल,गुलाबी पुष्प की, चुनर ओढ़े जात।
पवन बसंती जब चले, लहर- लहर लहरात।
इस जीवन के रंग का,अलग अनोखा ढंग।
इंद्रधनुष सी हो गई.................।।


सात रंग जीवन लगे,प्रियतम के सम प्यार।
प्रकृति का यह रूप ही,होता नव उपहार।
धरा मचलती यूँ दिखे, चढ़ गई जैसे भंग।।
इंद्रधनुष भी हो गई............।। 


देव धरा पर आ गए, देखन को त्यौहार।
मातु शारदा दे रहीं,ज्ञान रूप आधार।
खुशियाँ आई द्वार पे, *मधु* जीवन के संग।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी मिलता नहीं सभी को

देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी


मिलता नहीं सभी को.............


मिलता नहीं सभी को  अपना  अपना  प्यार।
जितना  है  तकदीर  में,मिलता उतना प्यार।।


वक़्त वक़्त की बात,कब मिले कब जुदा हुए;
कुछ के लिए बना है यह दिल का कारोबार।।


हकीकत में है  जो प्यार में  पूरा  डूबा  हुआ ;
उन्हें  दुनियादारी   से  नहीं  रहता  सरोकार।।


खुशकिस्मती से  जिसे  मिलता  प्यार अपना;
उसकी जिंदगी में तो फिर  पूरा रहता  बहार।।


बदकिस्मत प्यार की तपिश में ऐसा झुलसता;
उसकी  जिंदगी तो एकदम  ही रहता बेजार।।


प्यार का चिराग रौशन हो  हर  एक  दिल में ;
एक दूसरे में बांटते  रहें अपना अपना प्यार।।


हर एक गुंचे में  खिलाया  करें  गुल"आनंद" ;
सभी  का  सुखी  हो अपना अपना परिवार।।


-------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली* मुक्तक

एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली* मुक्तक


संभाल कर रखो अपने रिश्तों को।*
*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*


सच्ची दोस्ती तो बस महोब्बत
की   मेहमान   होती   है।


गर आ जाये   बेरुखी तो  फिर
ये    अनजान   होती   है।।


बुला लो जो बिछुड़ गये  रिश्ते
यूँ ही हाथ से फिसल कर।


जरा आवाज़ देकर देखो तो टूटे
रिश्तों में भी जान होती है।।


*गर चाहें तो हर तदबीर बदल सकते हैं।*
*।।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


गर इरादे मजबूत हों  तो तकदीर
बदल    सकते   हैं।


हम   चाहें   गर तो  हर   तकरीर
बदल   सकते    हैं।।


किस्मत  मोहताज    नहीं   होती 
हाथ की लकीरों की।


ठान ले जब हम तो  पूरी तसवीर
बदल    सकते    हैं ।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मोबाइल                9897071046
                             8218685464


एस के कपूर वंदना माँ शारदे की

*वंदना माँ शारदे की।।।।।।।*


हे माँ शारदे,माँ हंस वाहिनी,
आये तेरी शरण को,
ऐसा कल्याण कर ,
हम सब को  तार दे।


तू ही माँ सरस्वती, है
बुद्धि प्रदायिनी, आये
तेरे द्वार को, सबको
ज्ञान का  प्रकाश दे।


तू ही जग तारिणी, दया
प्रेम की देवी,
महिमा अपार तेरी,
इस भव सागर के पार दे।


हे माँ वागेश्वरी, जगत पालिनी,
कमल विराजित,
कष्ट हमारा हार दे,
अपने आशीष का उपहार दे।


श्वेत वस्त्र धारण,
पुस्तकें ही तेरे कारण,
आये तेरे वंदन को,
अंतर्मन को तू झंकार दे।


हे माँ मधुर भाषिणी,
हे वीणा वादिनी,ह्रदय
के अंधकार को ,सूर्य
का आकाश दे,प्रकाश दे।


हे माँ भुवनेश्वरी, तेज़
तेरा अनंत अपार,
तुझसे ही आलोकित संसार,
हर बाधा से उद्धार दे।


तेरा शीश वंदन करता हूँ,
पूजा तेरी नित करता हूँ,
हे मातेश्वरी ,बस
सर पर   हाथ वार दे।
*बस यही एक उपकार दे।।*
*बस यही एक उपकार दे।।*


*रचयिता,,,, एस के कपूर" श्री हंस"*
*बरेली*


मोबाइल            9897071046
                        8218685464


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"  सरस्वती - वन्दना हम अंजान हैं,न जाने वंदना की विधि;

देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


 सरस्वती - वन्दना


हम अंजान हैं,न जाने वंदना की विधि;
कैसे करें हम  वंदना,मां सरस्वती तेरी।
हम अज्ञान हैं,न जाने अर्चना की रीति;
कैसे करें हम अर्चना,हे भगवती तेरी।।


अंधकार में भटकते,कृपा की  चाह में;
तेरा  नाम  बसा है,हमारी हर आह  में।
तू ही दीप जला दे,ज्ञान और स्नेह की;
कुछ नहीं दिखता,जिंदगी की राह में।।


एक हाथ में पुस्तक,एक हाथ में वीणा;
कमल  आसन  पर,मां  तू  शोभित  है।
हमारी अज्ञानता पर तुम तरस खाओ ;
क्यों हमारी अज्ञानता  पर  कुपित  है।।


ज्ञान का तू भंडार , विद्या का तू अंबार;
सब कुछ  तुम्हारे ,  कर    कमलों   में ।
दे  ऐसी  बुद्धि  और  ज्ञान हमें , तू मां ;
ले आएं  जीवन  में,अपने अमलों  में।।


श्वेत   वस्त्र   और   हंस   की   सवारी ;
हे  मां ,  तुम्हारी  अद्भुत   निशानी  है ।
छात्रों में  विद्यादान  तथा  बुद्धि वर्धन ;
हे  मां ,  तुम्हारी  अनुपम   कहानी है।।


----- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


प्रिया सिंह लखनऊ तेरी परछाइयों ने सनम मुझे

तेरी परछाइयों ने सनम मुझे रूलाया बहुत है
और मैंने जान-ए-मन तुझे बुलाया बहुत है


बहुत थोड़ी सी बाकी  रह गई हूँ मैं मुझमें  
जरा सुनो सनम तुमने मुझे बुताया बहुत है


हर आहट मुझे तुझ तक खिंच ले जाती है
तेरी यादों को भी मैंने आज भुलाया बहुत है


कैसा तन्हाई में शोर करता है मेरा धड़कन
ये किस्सा हर बार तुमको सुनाया बहुत है


बहुत तकलीफों से हो कर गुजरता है दिल 
मैंने अश्क कई बार तुमसे छुपाया बहुत है


 


Priya singh


अवनीश त्रिवेदी "अभय" हंसगति छंद हे!  बसंत  ऋतुराज

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


हंसगति छंद


हे!  बसंत  ऋतुराज,  तुम्हें  नमन  हैं।
अभिनन्दन हैं आज, महका चमन हैं।
पीले   सरसों   फूल,  लुभाते  मन  हैं।
शोभा निरखि समूल, खुश हुये जन हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अंजुमन मंसूरी आरजू छिंदवाड़ा  छंद  पञ्चचामर /  नाराच / गिरिराज सरस्वती निरंजना

अंजुमन मंसूरी आरजू छिंदवाड़ा


 वसंत पंचमी की अनंत शुभकामनाओं सहित..
छंद   - *पञ्चचामर /  नाराच / गिरिराज*
विधान     -षोडषाक्षरावृत्ति , ऐइण
गण सूत्र   -जगण रगण जगण रगण+गुरु
मात्रा भार -121 212 121 212 121 2


ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
सरस्वती निरंजना नमामि पद्मलोचना ।
महाफला महाबला नमामि वारिजासना ।
नमामि पद्मवस्त्रगा सुवासिनी शिवानुजा ।
नमामि शास्त्ररूपिणी महाङ्कुशा महाभुजा ।


   -अंजुमन आरज़ू  ©✍
🌻🌻🌻🌻🌻


निशा"अतुल्य बसंत खुशियों का लगा मेला

निशा"अतुल्य


बसंत


खुशियों का लगा मेला 
जग हुआ पीला पीला 
गगन पतंग उड़े 
वंदना भी गाइये।


पीत वस्त्र धारण हो
मीठे मीठे चावल हो
भोग शारदा को लगा
सब जन खाइये।


नए नए पात आएं
हरी हरी धरा होएं
तितली भी उड़ चली
सुगन्ध उड़ाइये।


धानी चुनर कमाल
सबरंग बेमिसाल
मीठी भँवर गुंजार 
मन मे बसाइये ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य


अवनीश त्रिवेदी "अभय" प्रधानाचार्य एस वी सी आई द्वारिकापुरी, नेरी- सीतापुर (उत्तर प्रदेश बसंत अभिनन्दन ऋतुराज बसंत को कोटि प्रणाम हैं।

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


प्रधानाचार्य
एस वी सी आई
द्वारिकापुरी, नेरी- सीतापुर (उत्तर प्रदेश


बसंत अभिनन्दन


ऋतुराज बसंत को कोटि प्रणाम हैं।
प्रकृति बदल रही अपने  आयाम हैं।
भीनी महक़ चहुँओर  फ़ैल  रही  हैं।
मदमस्त  नायिकाएँ  टहल  रही  हैं।
हर वातावरण  सुगंधित  हो  रहा हैं।
दृश्य  देख  जहाँ अनंदित हो रहा हैं।
प्यारे  लगे  ये  सरसों  के   फूल  हैं।
फ़िज़ा  में  उड़ती  संझा की धूल हैं।
मनोरम छवियाँ चहुँओर दिखती  हैं।
हर जगह नेह कहानियां  लिखती हैं।
पवन  बसंती  हिचकोले   भरती  हैं।
सबको  छूकर   मनमानी  करती हैं।
बागों  में  कोयल की  मधुर तान  हैं।
सबसे  सुंदर  ये  अपना  जहांन   हैं।
सुबह  मनमोहक  मतवाली  शाम हैं।
ऋतुराज बसंत को  कोटि  प्रणाम हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


प्रधानाचार्य
एस वी सी आई
द्वारिकापुरी, नेरी- सीतापुर (उत्तर प्रदेश


संजय जैन (मुम्बई) अजनबी विधा: कविता ट्रेन में सफर के दौरान,

संजय जैन (मुम्बई)


अजनबी
विधा: कविता


ट्रेन में सफर के दौरान,
मिला था एक अजनबी।
फिर बातों ही बातों में, 
दोनों के दिल मिल गये।
लम्बा था सफर दोनों का, इसलिए एक दूसरे को,  
 अच्छे से समझ पाये।
और एक दूजे के 
दिलों में बसने लगे।
और अजनबियों के दिलों में,
प्यार के फूल खिल गये।।


अजनबियों का दिल मिलना,
बहुत बड़ी बात होती हैं।
और वो भी लड़का लड़की होना,  
बहुत बड़ी बात होती है।
फिर वार्तालाप से ही, 
प्यार अंकुरित हो गया। 
और दोस्ती का रिश्ता, 
मोहब्बत में बदल गया।
और फिर एक दिन दोनों ने,
एक दूजे को प्रोपोज कर दिया।।


कलयुग में भी सतयुग जैसा,
हमें देखने को मिला।
दिलों की भावनाओं का,
यहां मिलन हो गया।
इंसानियत भी दोनों की
जिंदा यहां रही।
ऐसी मोहब्बत का उदाहरण, 
लोगो को देखने को मिला।
आज वो अजनबी,
मेरा जीवन साथी है।
और उसकी के साथ,
जिंदगी जीये जा रहे है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
30/01/2010


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली विषयः  सरस्वती वन्दना

कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
नयी दिल्ली



विषयः  सरस्वती वन्दना
विधाः कविता
शीर्षकः🥀 हे भारती हर क्लेश जग🙏
पूजन  करूँ   मैं   आरती , नित  शारदे  माँ   भारती।
चढ़    सत्यरथ  नित   ज्ञानपथ , श्वेतवसना   सारथी।। 
हे सर्वदे सरसिज  मुखी  तिमिरान्ध  जीवन  दूर कर।
वीणा निनादिनी सन्निधि , सद्ज्ञान पथ  उन्मुक्त कर।।
नवनीत  कर  समधुर  सरस रव को  बना  माँ शारदे।
अज्ञान पथ  मदमत्त मन हर आलोक बन माँ  तार दे।।
स्वार्थ रत  नित छल कपट  असत् पथ नर  लोक  में।
हर  पाप जग  संताप सब  सम्बल करो हर शोक  में।।
श्वेताक्षि  मृदु  शरदेन्दु  शीतल  सरस्वती   वदनाम्बुजे।
नमन  करूँ नित कमल  पदतल माधवी  शुभदे  शुभे।।
कलहंस  वाहिनि  धवल गात्रे  चन्द्रमुख   जगदम्बिके।
समरस  सुधा सुललित  चित्त  करुणा दया भर शारदे।।
कटुभाव  हर  समशान्ति  मन उन्माद पथ नर  दूरकर।
नित कोप रिपु मद मोह तृष्णा घृणा जन मन मुक्तकर।।
चन्दन  धवल  कोमल हृदय वेदांग कर  नित  शोभिते।
दे सुमति नर  सद्विवेक  नित अरुणाभ जीवन  ज्ञानदे।।
सरस्वति महामाये देवासुर मनुज त्रिलोक नित पूजिते।
नयना  विशाल  सरोज सम स्मित वदन नित सुरभिते।।
हे भारती हर क्लेश जग अरि दलन  कर  द्रोही  वतन।  
प्रवहित सतत स्नेहिल सरित् समुदार जन रसधार मन।।
हर तिमिर जन आलोक जग दे सुज्ञान मानव चिन्तना।
संगीत बन  सुनीति पथ तू अवलम्ब  माँ  करूँ वन्दना।।
भव्या मनोहर भारती षोडश कला विद्या चतुर्दश गायिनी।
नृत्य गीत संगीत रीति गुण अलंकार साम नवरस भाविनी।
अज्ञान तम आबद्ध सुत मतिहीन नित दिग्भ्रमित  पथ।
माँ ज्ञान दे मेधा विनत सब संताप हर चलूँ आशीष रथ।।
कल्याण कर तिमिरान्ध हर सुख शान्ति जग समृद्ध दे।
निर्मल सबल पावन विनत माँ  सुकीर्तिफल वरदान  दे।। 
फाल्गुनी मधुमास में  ज्ञान  आलोक बन  जग तार  दे।
पूजन  करूँ  तिथि  पञ्चमी  नत  विनत  देवी  शारदे।।
नवपल्लवित कुसुमित मुकुल पादप रसाल निकुंज में।
वैदिक रीति सामग्री सकल पूजन आरती रत भक्ति में।।
हे ब्रह्मचारिणि शुभदे  शुभे संत्रास  से  जग उद्धार  दे।
सुविवेक सत्पथ प्रीति समरथ परहित वतन रत ज्ञानदे।।
कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


कवि अतिवीर जैन "पराग ",मेरठ 

कवि अतिवीर जैन "पराग ",मेरठ 
9456966722


जय माँ शारदे,
सभी को नमन,


माँ शारदे तुझे प्रणाम :-


माँ शारदे का जन्मदिन 
बसंतपंचमी,
छटा नई ले आता है,
मौसम में परिवर्तन होता,
शीत विदा हो जाता है.


नयी हवायें,नया कलेवर,
प्रक्रति को मिल जाता है.
सूरज की रोशनी से देखो,
नवअंकुर खिल जाता है.


रंग बिरंगे फूलो से धरती  पर यौवन आता है.
बासंती हवाओं से प्राणी,
नया जीवन पाता है.


यूँ तो वीणावादिणि,
मेरे उर में बेठि रहती है,
कलम उठाकर बार बार,
कुछ लिखने को कहती है.


पीले फूलों का थाल लिये,
मन में श्रध्दा अपार लिये,
जन्म दिवस उपहार लिये,
हे हँसवाहिनी,
कमलदायीनी,
वीणा -पुस्तक धारिणि,
वंदना तेरी बारम्बार,
माँ शारदे तुझे प्रणाम.
माँ शारदे तुझे प्रणाम.


स्वरचित,
अतिवीर जैन,पराग,
मेरठ
9456966722.


आशुकवि नीरज अवस्थी (बसंत)  जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली

बसंत 
जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली7। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर  हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.। 
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ , 
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.
बागन में है बौर और बौरन मां  अमराई 
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 
हरी चुनरिया बिछी खेत  में सुन्दर सुघड़  छटा । 
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..     
आशुकवि नीरज अवस्थी
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950


सुनील कुमार गुप्ता भगत सिंह कालोनी, कविता तालीम

नाम: सुनील कुमार गुप्ता
S/0 श्री बी.आर.गुप्ता
3/1355-सी,
न्यू भगत सिंह कालोनी,
बाजोरिया मार्ग,सहारनपुर-247001(उ.प्र.)


कविता: -
      *" तालीम"*
"तालीम ऐसी मिले बच्चो को,
जिससे- उपजे -
जीवन में संस्कार।
दे मान सम्मान अपनो को,
मिटे उनके मन मे-
छाया हुआ विकार।
तालीम ऐसी हो साथी,
भटके न युवा-
मिले रोजगार।
तालीम ही सीखती है,
आपस में भाईचार-
सभ्यता संस्कृति का बने आधार।
तालीम के बिना ही तो,
भटकते युवा-
उत्पन्न होते विकार।
तालीम ऐसी मिले बच्चो को,
जिससे-उपजे-
जीवन में संस्कार।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः       सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        30-01-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड नमन् करूँ माँ शारदे

नमन करूं मां सरस्वती
*******************
पार करो मां अंधकार से
अब तार दो मां अज्ञान से
दो नयन तेरे मतवाले है
मां सरस्वती वे तेरे दीवाने है।


बसन्त उत्सव आया है
अब रसना को संवार दे मां
आप्लावित कर  रस से मां
रस रसना पर वार दे मां।


मन हर्षित कर तन हर्षित कर
कर दे हर्षित मेरे रोम रोम मां
जो आये मां शरण तुम्हारे
शब्द  सोम  रस घोल दे।


दो नयन प्यालों में अब मां
शब्द   मद  मय  घोल  दे
मधुर  बैन बोले  हम सब
सभी जनों में रस घोल दे
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


सुनील कुमार गुप्ता कविता:-         *"मंज़िल"* "पा सके मंज़िल अपनी साथी,

सुनील कुमार गुप्ता


कविता:-
        *"मंज़िल"*
"पा सके मंज़िल अपनी साथी,
सहज नही-
इस जीवन में।
असम्भव नही काम कोई साथी,
जो कर न सके-
इस जीवन में।
सुख दु:ख धूप छाँव से,
साथी संग चलते-
इस जीवन मे।
भक्ति संग ही तो साथी,
मिलता सुख -
इस जीवन में।
थक न जाये तन-मन साथी,
जब तक आस -
इस जीवन में।
महकती रहे जीवन बगिया,
साथी अपनत्व संग,
इस जीवन में।
चलते रहना सत्य -पथ पर,
जब तक मिले न मंज़िल-
इस जीवन में।
पा सके मंज़िल अपनी साथी,
सहज नहीं -
इस जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         28-01-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय मेरे प्राणों के प्राण

मेरे प्राणों के प्राण प्रणय है तुमसे
प्रियतम प्रियवर प्रीति मेरी तुमसे


प्रण पालक प्रजा पालक हो तुम्ही
प्रियजन परिजन पावन हिय तुम्ही


प्रज्ञा पुंज प्रदीप्त प्रभा के आगार
प्रभव प्रभाव पापों से हो परिष्कार


पलक पांवड़े पल पल मैं बिछाऊँ
परमज्योति प्रकाश तेरा मैं पाऊँ।


श्रीकृष्णाय नमो नमः💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय मेरे प्राणों के प्रा


कवि अतिवीर जैन,पराग,मेरठ .इक फूल सा -- - - - :- कोहरे और बादलों को 

कवि अतिवीर जैन,पराग,मेरठ .
9456966722 


इक फूल सा -- - - - :-


कोहरे और बादलों को 
चीरता नज़र आता है.
इक अरसे बाद सूरज 
उगता नज़र आता है.
शीतलहर और कम्प्कपी से निजात दिलाता है.
इक फूल सा ख्वाबों में 
खिलता नज़र आता है.


ठंड खाये कुम्हलाए पौधे 
खिलते से नज़र आते है.
ठिठुरते इंसानों के ख्वाब
खिलते से नज़र आते है.
ठंड से बेरोजगार जब 
रोज़गार पा जाते है.
इक फूल सा ख्वाबों में 
खिलता नज़र आता है.


स्वरचित,
अतिवीर जैन, पराग,मेरठ


गजल हीरालाल बनी  यूँ   झूठ  का  बाज़ार  दुनिया

*ग़ज़ल*
1222 1222 122


बनी  यूँ   झूठ  का  बाज़ार  दुनिया।
नहीं करती है सच स्वीकार दुनिया।


भली  चंगी  नज़र आती  है लेकिन
बहुत  है  जेह्न  से  बीमार  दुनिया।


किया  करता  है  जो भी जी हुजूरी
लुटाती  है  उसी  पर  प्यार दुनिया।


यही  कहता  मिलेगा   आदमी   हर
है उसके ग़म की जिम्मेदार  दुनिया।


जहाँ   भी   देखती  है   प्रेम   बढ़ता
उठाती   है   वहीं   दीवार   दुनिया।


चले  जाते  नहीं  क्यों  छोड़  *हीरा*
लगे  इतनी  है  जो  बेकार  दुनिया।


                 हीरालाल


लघुकथाः महंगाईःमहेश राजा:

लघुकथाः महंगाईःमहेश राजा:
------------------------------------------
मैनें दूधवाले से पूछा-"क्यों भैया,ये ससुरी महंँगाई इतनी बढ़ी चली जा रही है,लेकिन आपने अपने दूध की कीमते अब तक नहीं बढ़ायी?


दूधवाला भ ईया हंसा,-"आपको हमारे
 दूध मे कोई फरक नजर आया क्या?


वैसा ही दे रहे है बरसों से।हमे जनता का बडा ध्यान रहता है साहब जी ।


बेचारे वैसे ही महंगाई के बोझ तले दबे जा रहे है।इसलिये हम ऐसा करते है कि दूध मे थोडा सस्ता वाला दूध पावडर और साफ पानी मिला देते है।"


*महेश राजा*  महासमुंद।।


अजय 'अजेय' अष्टपदी वासंती छंद ---- शीत के निष्ठुर अहम कूं तोड़े

अजय 'अजेय'


अष्टपदी वासंती छंद ----
शीत के निष्ठुर अहम कूं तोड़े
घर की अटिया घाम कूं ओढ़े
बयार बहे मन सिहरन लागे
भावज के बसना गावन लागे
फूल पात मिल करें ढिठाई
हँसि हँसि आपस लेंय बलाई
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
कामदेव कूं पिता बनाऐं
धरती रंग विरंग नहाएं
सृजन डुले सर्जना लहराऐं
कोमल कोंपल तोतली गायें
हिय हिरनी तन कूं हुलरायें
कोयल कूक खग मृग दुलरायें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
आम के बौर भरें किलकारी
चुनुआ मुनुआं बजावें तारी
सरसों मारे हिलोर रंगन की
छनक पीत बिछौना नी की
सूखे पत्ता खोंदर कारें
अम्मा रिसिआय आंगन बुहारें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
माघ माह शुक्ल पक्ष पंचमी
माँ वाणी अवतरण विक्रमी
कवि कोविद गावहिं चालीसा
राग बसन्ती रचें मुनीसा
शब्द गढ़ें साहित्य उवाचें
कविता कलरव भरे कुलाचें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
-- अजय 'अजेय'


विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर, छ.ग. इस जीवन से मुक्ति मिले

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर, छ.ग.


इस जीवन से मुक्ति मिले
----------------------------;;------
बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले
जिवित रहूं तो मान बच सके
ऐसी कोई युक्ति मिले ।


भाषा शब्द बदलने लगते
फिर नयनों की भाव भंगिमा
कर्कशता हो बहुत प्रभावी
छूटे छाया और मधुरिमा
मान बचा पाउं मर जाउं
ऐसी कोई शक्ति मिले
बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले ।


परिवर्तन के क्रूर पटल पर
आशाओं से परे घटे जब
किन कोनों मे जीवन ढूंढ़ें
खंड खंड मे हृदय बंटे जब
शब्द कैद हो निष्ठूरता के
फिर कैसे अभिव्यक्ति मिले
बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले ।


विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर, छ.ग. अभिव्यक्ति - 695


आलोक मिश्र 'मुकुन्द'* दोहे विषय - खाकी  साजन, सजनी से सदा, रहता है ज्यों दूर।

आलोक मिश्र 'मुकुन्द'*


दोहे विषय - खाकी 


साजन, सजनी से सदा, रहता है ज्यों दूर।
विरह पीर जलती रही, खाकी में मजबूर।।


खाकी को डसते सदा, राजनीति के नाग।
इसीलिए  देखो  बहुत, लगे  हुए  हैं  दाग।।


नींद  बेच खाकी  सदा, खड़ी  देश  रक्षार्थ।
कलियुग में इससे बड़ा, नहीं अन्य परमार्थ।।


देश भक्ति पथ पर सदा, नहीं स्वयं को रोक।
रोजी,  रोजा   से   बड़ी, होती   है  आलोक।।


खाकी से सबकी जुड़ी, अपनी- अपनी आस।
पर   कोई   रखता  नहीं, अंदर  उर  विश्वास।।


व्यथा पुलिस की देखिए, वेतन मिलता अल्प।
अंदर  शोषण  हो  रहा, बदलो  काया  कल्प।।


भारत   में  जयचंद  जो, खाकी  उनकी  काल।
कफन शीश धर चल दिए, भारत माँ के लाल।।


व्यक्त   करे    संवेदना, अश्रु    दिया   है  रोक।
देख पुलिस की उर व्यथा, दुखी हुआ आलोक।।


*✒ आलोक मिश्र 'मुकुन्द'*


अमित शुक्ल कब तक तसव्वुर से बहलाएँ खुद को।

कब तक तसव्वुर से बहलाएँ खुद को।
 कभी बुझाए कभी जलाएं खुद को।
आज तुमको भुलाने की कसम खाई है।
चलो फिर आज आजमाएं खुद को।
तुम्हें तलाशने से जो मिले फुर्सत।
तब कहीं जाकर नजर आएं खुद को।
गुजरता रात का सफर सिसकिंयों के तले।
रख के तकिया मुंह पर खुद से छिपाएं खुद को ।
सौ सवाल आते हैं अमित तुम को लेकर।
तुम ही बताओ अब क्या बताएं खुद को।
      @ अमित शुक्ला @


निधि मद्धेशिया कानपुर अथाह* धन-वैभव मिला है अथाह...

निधि मद्धेशिया
कानपुर


अथाह*


धन-वैभव मिला है अथाह...
मीराधा बनूँ इच्छा अथाह...


पहले ही कर दिया नाम
मेरे एक वन,जिसमें
बावली-सी फिरती रहूँ अथाह...


बनते नवगीत कैसे
छंद हैं सारे अधूरे, 
कर्मो को मिले मार्ग अथाह...


आयी कैसे धुन परदेशी
हैं अधूरे राग भी,
बस समझना है अथाह...


स्वांग की कोरी शहनाई सुन
कठिनाइयों में हो जाओ चुपके
बनती है बात अथाह...


1/1/2020
10:51 AM
निधि मद्धेशिया
कानपुर


डा० भारती वर्मा बौड़ाई देहरादून, उत्तराखंड  हे हंसवाहिनी! आ सबके घर में।

डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड 


हे हंसवाहिनी!
आ सबके घर में।


उतर कर सबके हृदय से 
ईर्ष्या-द्वेष दूर कर दे,
शूल पथ के सारे चुन कर 
चहूँ ओर सुमन भर दे,


हे वीणावादिनी!
आ सबके घर में।


चीर कर घनघोर तिमिर 
प्रकाश का रंग भर दे,
अज्ञानमय इस जग में आ 
ज्ञान का रंग भर दे,


हे ज्ञानदायिनी!
आ सबके घर में।


राह से भटके हुए नहीं जानते 
क्या लक्ष्य है जीवन का,
बस चल रहे बिन सोचे-समझे 
दुरुपयोग करते समय का,


हे नवान्नदायिनी!
आ सबके घर में।


मेरे शीश पर सदा तेरा हाथ हो 
बनूँ छाया धूप के लिए,
वेदना के गहन क्षणों में  साथ हो 
चलूँ दीन-दुखियों के लिए,


हे सुखदायिनी!
आ सबके घर में।
——————————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड 
9759252537


मुक्तक सोनू जैन मन्दसौर मोहब्बत मोहब्बत कभी किसी की नाकाम न हो,

सोनू जैन मन्दसौर


मोहब्बत


मोहब्बत कभी किसी की नाकाम न हो,
मोहब्बत किसी की चौराहे पर बदनाम न हो।
मोहब्बत की राह नही कोई आसान हम सब जानते है,,
मग़र मोहब्बत में किसी पर कोई तोहमतें इल्जाम न हो।✍✍✍✍😊😊
*सोनू जैन मन्दसौर की कलम से स्वरचित मौलिक*


एस के कपूर " श्री हंस"* *बरेली* विविध हाइकू।।।।

एस के कपूर " श्री हंस"*
*बरेली*


विविध हाइकू।।।।।।।।।।।।।*


महा नगर
संवेदनाएं शून्य
मौन डगर


ये पहनावा
फटी हुई जीन्स ये
कैसा दिखावा


यह मुस्कान
लोकप्रियता की ये
मानो दुकान


वाणी की आरी
यह तो  है   सबसे
तेज़   कटारी


यह सावन
मौसम   बहुत ही
मन भावन


यह   बसंत 
शरद ऋतु का ये
जैसे हो अंत


भाषा नमन
साहित्य समाज का
होता दर्पण


शब्द कलश
अमृत विष भरे
कटुता हर्ष


स्वर्ग नरक
तेरे अपने हाथ
हर तरफ


यह भक्षक
और हमारे बीच
भी हैं रक्षक


*रचयिता।।।एस के कपूर " श्री हंस"*
*बरेली*
*मोबाइल।*          9897071046
                        8218685464


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" ........जय माता सरस्वती....

.देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


........जय माता सरस्वती...........


जय माता सरस्वती, हम हैं तेरे सन्तान।
तेरी अर्चना के नियम से,हम हैं अज्ञान।


भटकते हैंअंधकार में,नहीं हमें है ज्ञान।
तेरी कृपा सेअब,होगा हमारा कल्याण।


तेरे वीणा की आवाज़,हरे हमाराध्यान।
तेरे हाथ में पुस्तक,बढ़ाये हमारा ज्ञान।


हँस तुम्हारी सवारी,श्वेत वस्त्र परिधान।
हमें चाहिए तुमसे,बुद्धिऔर विद्यादान।


कमल आसन शोभित,दे ऐसा वरदान।
जीवन बीते'आनंद'से,करें हमगुणगान।


-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


सुनीता असीम अक्स आता है नज़र प्यार की परछाईं में

सुनीता असीम


अक्स आता है नज़र प्यार की परछाईं में।
दूर होते हैं गिले इश्क की गहराई में।
***
प्यार माकूल सदा  उसके लिए सिर्फ रहा।
खो गया इश्क की जो भी यहाँ रानाई में।
***
दर्द दिल का हो बेहद जियादा तब तो।
डूबने आँसू लगे शादी की शहनाई में।
***
शायरी लिखने लगे फिर तो कलम खूब मेरी।
जोर मुझको जो मिला हौंसला अफजाई में।
***
जब समाँ आया उदासी का सताती थी हवा।
चाँद देता था तपन हिज्र की पुरबाई में।
***
 सुनीता असीम
२९/१/२०२०


ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश विधा:तांका विषय:बसंत

ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश


विधा:तांका
मापनी:५+७+५+७+७
विषय:बसंत
मनभावन,
सुखद सुहावन,
शीत पवन,
महका उपवन,
वो आ गया बसंत।
*****************
कुके कोयल,
अंबुआ डाली पर,
गूंजे भ्रमर,
पुष्प क्यारी पर,
लो छा रहा बसंत।
****************
पीत वर्णिका,
चुनर ओढ़ धरा,
मात शारदे,
दे आशीष विद्या का,
धन्य हो ये जीवन।
****************
ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश


डॉ0 नीलम अजमेर ऋतुराज भंवरों ने छेड़ा मधुर राग

डॉ0 नीलम अजमेर


ऋतुराज
भंवरों ने छेड़ा मधुर राग
कलियों का खोला घूंघट आज
छूआ जो पी ने हौले से गात
फूलों से महकने लगा
चमन का हर कोना आज


मौसमों का बनकर सरताज
आया आज *ऋतुराज*


पेड़ों से उतर गये जर्जर पात
झूम के शाखों ने फिर किया
नव श्रृंगार
खेतों पर छाया पीली सरसों का खुमार 


 फूलों की रंगीन दुनिया का सरताज आया आज *ऋतुराज*


लहक-लहक वन- उपवन में
मदिरामय भौरों के सुर गूंजे
पंछियों ने छेड़ी तान ,आम्र बौर महक गये
सौधी-सौंधी खुश्बू लेकर आया *ऋतुराज*


हवाओं ने छेड़ा बसंत राग
थिरका गया आँगन ,आया धूप में निखार
दिवस की सिहरन गई,
ठिठुरती रात को आया आराम


गुलाबी नरम-गरम शीत लेकर आया *ऋतुराज*


       डा.नीलम


संजय जैन (मुंबई) इंतजार है   विधा : कविता तुझे देखने का हर रोज,

संजय जैन (मुंबई)


इंतजार है  
विधा : कविता


तुझे देखने का हर रोज,  
हम इंतजार करते हैं।
दिल से हम तुम्हे बहुत,
प्यार करते है।
कल का दिन तुझे देखे,
बिना निकल गया।
अब आज हमे  तेरा,
बहुत इंतजार है ।।


आंखों से तीर छोड़ने की,
जो तेरी अदा है।
तेरी आँखों में नशा है।  
जो निगाहो से ओझल,
होकर भी उतरता नहीं।
तेरी इन्ही अदाओ पर,
कितने लोग फ़िदा है।।


दिल से मिलने की,
आज मुझे प्यास है।
तेरे हाथो से पिने की
बहुत आस है।
कुछ भी जी भरके,
हमे तुम पिला दो।
सोया हुआ अपना,
प्यार जगा दो।।


अब ये दिल तेरे बिना,
कही लगता नही।
क्योकि हर सांसो पर,
नाम जो तेरा लिखा है।
मेरे दिल में एक तूफान है,
जो तेरी आग को बुझा देगा।
कसम से कहता हूं मैं ,
की हम दोनों को प्यार है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
29/01/2020


निशा"अतुल्य" ऋतुराज       मनहरण घनाक्षरी छंद सरसों है खिली खिली

निशा"अतुल्य"


ऋतुराज
     
मनहरण घनाक्षरी छंद


सरसों है खिली खिली
धरा हुई पीली पीली
ऋतुराज आये अब 
खुद को संभालिये।


गन्ध मकरंद हुआ
महक चमन गया
मधुमास आया अब 
मन को मनाइये ।


भँवरे की है गुंजार 
मन वीणा है झंकार
तितली सी उड़ चलूं
सब को बताइये ।


गेंदा खिला क्यारी क्यारी
रात फैले रात रानी
मद मस्त है पवन
ऋतुराज आइये ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


अवनीश त्रिवेदी "अभय" कुण्डलिया बसंत सुखद  सदा रहे, जड़  चेतन आनंद।

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कुण्डलिया


बसंत सुखद  सदा रहे, जड़  चेतन आनंद।
कविता वनिता चमक हो, रचें मनोरम छंद।
रचें  मनोरम  छंद, खूब  रस  भूषण  छाये।
सरस् बने मकरंद, हर  तरफ खुशबू  आये।
कहत "अभय" कविराय, अब मिले विरहणी कंत।
वैर   सभी   बिसराय,  मनाओ   सब  जन  बसंत।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद जयति शारदे मातु जू शारद करहु  कृपा, अघ मेटहु दूषण तमस ढ़िठाई।

प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


जयति शारदे


मातु जू शारद करहु  कृपा, अघ मेटहु दूषण तमस ढ़िठाई।
मुद मंगल आंतर छाँव रहा।, परसै  बरसै माँ प्रभुताई।।
ज्ञान को करि आलोक हुए, पढ़ि पावौं प्रेम को आखर ढ़ाई।
आलस नींद प्रमाद हरौ, उजियार करौ देहु  नेह मिताई।।


श्वेतासन हंस वाहिनी माँ, वीणपाणि शुभदा  माई।
उछाह उमंग तरंग जिया, सरजन  मँह रखियो शुचिताई।।
देहु भगति विमल साधना प्रखर , रितम्भरा जग महामायी।
नाशहु संताप हरहु  संशय जग जननी उपजायी।।


सुपंथ गहैं शुभ काज सरैं, सोई नीति गुना जो वेद बताई।
आरूढ़ मराल को आसन ह्वै, आ दीजो ज्ञान प्रचुर माई।।
विभक्ति विभेद न द्रोह रहाय, कांखौं आखर शुभ फलदायी।
सुकंठ सुवर्ण लालित्य रम्य, शपणागत प्रखर शीश नायी।।


अज्ञान तमस की गहन कोर, आच्छादित बदरी संशय की।
देहु शब्द यथा अरु भाव गहन, वल्गाऐं थामौ प्रश्रय की।।
अर्थन को सकल निरुपण शुचि रुचि भाव व्यञ्जना आशय की।
रस राग रंग छांदस यति युति बल बुद्धि प्रबल मति निश्चय की ।।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


सूर्य नारायण शूर  । कर दो इतना उपकार प्रिये ।।


सूर्य नारायण शूर 


। कर दो इतना उपकार प्रिये ।।


          अभिवादन लो स्वीकार प्रिये ।
          है प्रेम का यह आधार प्रिये।
अभिवाद लो ।।।।1
          इस नये वर्ष की बेला में ।
          जीवन के तंग झमेला में ।
          कर दो इतना उपकार प्रिये ।।
अभिवाद लो ।।।।2
        उत्तर। दक्षिण  पूरब  पश्चिम ।
       तुम खुब बरसे मुझपर रिमझिम। 
       तन  मन  भीगा  इस बार प्रिये ।।
अभिवादन लो।।।।3
       तुम मिले हो जब से जीवन में ।
       तब से न निराशा   है मन में ।
       आशा का तुम हो द्वार प्रिये ।।
अभिवादन लो ।।।।


             सूर्य नारायण शूर 


🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में

 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में
बिक जाते हैं कान्हा तो केवल प्यार में


जिनके दर्शन पाने में बीतें जन्म हजारों
जप करके हार गये ऋषि मुनि मेरे यारो


वो कान्हा दौड़े आयें भक्तों की पुकार में
मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में


ग्वाल बाल संग खेल कूदके वह बड़े हुए
धर्म रक्षा के लिए सदा ही वह खड़े हुए


कैसे अवर्चनीय गुण देखो मेरे करतार में
मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में।


श्रीश्यामाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राम शर्मा परिंदा मनावर ज़िला धार मप्र

 
राम शर्मा परिंदा
मनावर ज़िला धार मप्र


मत सोचो आराम आएगा
सर्दी गई तो  घाम आएगा


शांति से परहेज़ किया तो
विश्व  में कोहराम आएगा


रावण सा जीवन बिताया
और सोचते  राम आएगा


आज दुकानें जद में आई
कल तेरा  गोदाम आएगा


आज असत्य के भाव बढ़े
सत्य का भी दाम आएगा


वश में होते दंड के दम पे
कैसे कह दे साम आएगा


ये आखिरी सूची  नहीं  है
'परिंदा' तेरा नाम आएगा


( घाम -धूप , साम-शांति )
मत सोचो
========
मत सोचो आराम आएगा
सर्दी गई तो  घाम आएगा


शांति से परहेज़ किया तो
विश्व  में कोहराम आएगा


रावण सा जीवन बिताया
और सोचते  राम आएगा


आज दुकानें जद में आई
कल तेरा  गोदाम आएगा


आज असत्य के भाव बढ़े
सत्य का भी दाम आएगा


वश में होते दंड के दम पे
कैसे कह दे साम आएगा


ये आखिरी सूची  नहीं  है
'परिंदा' तेरा नाम आएगा


( घाम -धूप , साम-शांति )
राम शर्मा परिंदा
मनावर ज़िला धार मप्र
मो 7869196304
मो 7869196304


अपना संविधान ---- ----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'

----अपना संविधान ----
----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'


अपने भारत का संविधान, सबकी आँखों का तारा है।
चाहे  नर  हो  या  नारी  हो, हम सबका यही सहारा है।।


अधिकार दिया इसने सबको सबको कर्तव्य बताया है
नित शिक्षित ज्ञानी होने का, सुन्दर मंतव्य सुझाया है।
हर तबके को  इंसाफ दिया,  शोषक तक इससे हारा है।।


है समता  का  सन्देश  दिया, आजादी  का परिवेश दिया।
नित प्रेम  मोहब्बत दे करके , सिखलाता  भाई  चारा  है।।


ये मानवता का पोषक है, पर नहीं किसी का शोषक है
भारत की उन्नति खातिर ही इसमें जनहित का नारा है।


हैं शब्द संयमित इसके सब, है जन जन का सम्मान यहाँ
अक्षर अक्षर में स्वाभिमान, ना प्राणी का अपमान यहाँ।
युग सृष्टा  कैसे  भारत  हो, बह रही समर्पित  धारा है।।


यह  संविधान है बतलाता , वीरों  की सुन्दरतम गाथा।
हर  अनुच्छेद  से  होता  है , भारत  का  बस ऊँचा माथा।
उजियारे  को  फैला करके उन्मूलित अब अँधियारा है।


सबको आगे  बढ़ने  का ही, अधिकार दिलाता संविधान।
नित दवा मर्ज  की बन करके , खुद आगे आता संविधान।
बस देश  विरोधी  गतिविधियां इसको अब नहीं गँवारा है।।


है सभा  संघ  भाषण  देने का,  यह देता अधिकार सदा
आने  जाने  रहने  का  भी  है अनुसूची में उल्लेख यहाँ
शोषित  पीड़ित  जनता  का , जीवन  बहुत  सँवारा है।


है लोकतन्त्र का प्रतिनिधि ये अधिकारों का भी रक्षक है।
है मजा चखाता उसको भी, जो हक़ का करता भक्षक है।
यह 'निडर'  भाव  सबमें  भरता, ये  दुनिया से भी न्यारा है।
          परिचय -
नाम देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सेवारत - बेसिक शिक्षा परिषद सीतापुर
ग्राम अल्लीपुर , पत्रालय कुर्सी तहसील  जिला सीतापुर ( उप्र )
चलभाष संख्या 9621575145


अवनीश त्रिवेदी "अभय" दोहा कंचन काया लग रही,

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


दोहा


कंचन काया लग रही,नयनन बसत सनेह।
"अभय" नही बरनत बनें, ऐसी पावन देह।।


 


हिय हरषै जब भी  दिखे, वह मनमोहक रूप।
अमलताश सम नेत्र  हैं,  शोभित  बड़े  अनूप।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कैलाश , दुबे , हर सख्स की निगाह तुझ पर है ,

कैलाश , दुबे ,


हर सख्स की निगाह तुझ पर है ,


पर तू देख रही है मुझे ऐ हसीं ,


ये एहसान भी तुझ पर ही है ,


ये दिल सोच कर ही देना मुझे ,


मेरा तो खाली मकान आज भी है ,


कैलाश , दुबे ,


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद स्वागतेय बसंत ऋतुराज बसंत सुखद आली,

प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
स्वागतेय बसंत


ऋतुराज बसंत सुखद आली, मनभावन सुरभि हिय चित्त हरै।
वन बाग तड़ाग सरोवर लौं , मनभायी पुरबा  केलि करै।।
बरै पियरी सरसौं मटकै खेतन, बस अंत भयो सखी शीत कठिन,
मंजरी खुली अमराई गमक,रुचि भोर अरुणिमा उमंग भरै।।


चंचल चितवन कजरारे नयन, पूनौ आभा आरोह वयस।
पारुल पांखुरि मधुरोष्ठ रसिक, लखि पिघला तिल तिल ह्रदय अयस।।
नखशिख भूषण अरुणाभ चिबुक, मतवारी  अंगना  बृजवारी,
झीनो घूँघट गजगामिनि तिय, प्रखर प्रेम उत्पल कसकस।।


 


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली विधाः दोहा छन्दः मात्रिक शीर्षकः रखो लाज हर चीर

कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
विधाः दोहा छन्दः मात्रिक
शीर्षकः रखो लाज हर चीर
नमक  हरामी  से  डरे , भरी  सभा  में  भीष्म।
दुश्शासन  ने हाथ  से , खींच  रहा  था  जिस्म।।१।।
बेची  ख़ुद  की  इज्जतें , पति  दुश्मन के हाथ।
बलशाली    नामर्द  थे , मिला  मीत  का साथ।।२।।
सत्ता  के  बन   लालची , बन  अंधा  नृप मौन।
व्यभिचारी  कामी  खली ,लाज  बचाए   कौन।।३।।
सब गुरुता कृप द्रोण का ,बल वैभव अस्तित्व।
नतमस्तक था नमक का, गुनहगार  व्यक्तित्व।।४।।
पड़ा कुसंगति दानवीर , ठोक  रहा  था जाँघ।
बुला   रहा   था   द्रौपदी , मर्यादा  को   लाँघ।।५।।
याज्ञसेनि   थी  चीखती , दुश्शासन तज चीर।
बचा रही  निज अस्मिता ,आकुल सहती पीर।।६।।
शिथिल पड़ा गांडीव धनु,लानत था दिव्यास्त्र।
सत्तर गजबल व्यर्थ था ,धर्मराज सब   शास्त्र।।७।।
लोभ मोह ईर्ष्या कपट, फँसे पाश  सब  लोग।
राजनीति  चौसर  तले , खल  कामी    दुर्योग।।८।।
लानत थी उस शक्ति को,अंधी थी जो   भक्ति।
देख रहे  सब  चीरहरण, भातृप्रेम     अनुरक्ति।।९।।
मानवता  लज्जि़त  हुई ,लखि   नारी अपमान।
भरी  सभा  नैतिक    पतन , अट्टहास   शैतान।।१०।।
विदुरनीति थी सिसकती , दुष्कर्मी   कृत  पाप।
सर्वनाश  की  आहटें , सुनी  नार्य    अभिशाप।।११।।
नफ़रत थी चारों तरफ़ , जनमानस    आक्रोश।
नार्यशक्ति थी   लुट   रही , सरेआम    मदहोश।।१२।।
शील त्याग  गुण  कर्म सब , चढे़  द्यूत  उपहार।
चालबाज़   शकुनि   प्रबल ,  दुर्योधन   सरदार।।१३।।
आज  न्याय लाचार  था , संकट  में  था   सत्य।
क्षमा  चुरायी  नज़र  को , निन्दनीय     दुष्कृत्य।।१४।।
था   नृशंस   खल   दास्तां , बलात्कार   प्रयास।
रजस्वला  थी   द्रौपदी , निर्मम  खल   उपहास।।१५।।
सजल नैन रक्षण स्वयं , माँग   दया  की  भीख।
बुज़दिल कायर  कुरुसभा , सुनी न नारी  चीख।।१६।। 
कैसी    थी    निर्लज्जता , दरिंदगी      दुष्काम।
आज  वही  तो  हो  रहा , शीलहरण   अविराम।।१७।।
मीत  बने   भाई   समा ,भक्ति   प्रीति   भगवान।
बढ़ा  चीर  रख  लाज  हरि , दे    नारी   सम्मान।।१८।।
द्वापर   हो या  कलियुगी , नहीं   सोच   बदलाव।
कामुक   कायर   घूमते , हिंसक    मन    दुर्भाव।।१९।।
सोच  घृणित  विक्षिप्त नर , फाँसी   से   निर्भीत।
बना    दरिंदा    नोंचता , नारी    जिश्म    पतीत।।२०।।
घूम  रहे    नित    दरिंदे , कीचक   बन  दुष्काम।
हरदिन  लुटती  द्रौपदी , अबला   बन    बदनाम।।२१।।
बदल  चुका  है  समय अब , है    नारी   निर्भीत।
पढ़ी  लिखी  सबला प्रखर  , अधिकारी   निर्मीत।।२२।।
रक्षा    खु़द   नारी   समर्थ , अवरोधक    संत्रास।
नहीं   चीख  होगी  श्रवण , कृष्णा का   उपहास।।२३।।
महाशक्ति  नारी   सजग , स्वयं  लाज    सम्मान।
उन्नत  जीवन शिखर पर , कीर्तिफलक अरमान।।२४।।
जहाँ  मान   न   पूज्य हो , नारी   देश    समाज।
शान्ति सम्पदा मान बिन,बन मरघट  बिन  ताज़।।२५।।
लोक लाज  मानक   वतन, घर   नारी अभिराम।
सकल देव रनिवास  बन , बने   गेह    सुखधाम।।२६।।
बनो वतन  हर पुरुष हरि , रखो लाज  हर  चीर।
लायी   जो    तुमको  धरा , रक्षक   नारी    नीर।।२८।।
कवि निकुंज अलिगुंज वन,सुरभित मन आनन्द।
खिले चमन मुस्कान बन , नार्य  कुसुम  मकरन्द।।२९।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


राजेन्द्र रायपुरी माता  देवी   शारदा,  विनती   बारंबार।

🌹🌹 माँ सरस्वती से विनय 🌹🌹


माता  देवी   शारदा,  विनती   बारंबार।
मैं  अज्ञानी  मूढ  मति, कर  दे तू उद्धार।


माता  तुझसे  है  विनय, दे दे थोड़ा  ज्ञान।
कर पाऊँ दोहा सृजन, श्रेष्ठ कबीर समान।


चाह नहीं रहिमन बनूँ,या फिर तुलसीदास।
चाह  नहीं  कबिरा  बनूँ, या मैं कालीदास।


चाह  यही माँ  लिख सकूँ, ऐसे छंद  हजार।
जिनमें मिल जाए हमें, इस जीवन का सार।


                 ।।राजेंद्र रायपुरी।।


परिवर्तन नूतन लाल साहू

परिवर्तन
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों सोच नहीं पाया
पितृ भक्त, पुत्र ने
पिता के मरते ही
उनकी ही याद में
उनकी ही पूंजी से
छोटी सी मठ
खलियान में बन वाली
मन में इतनी उमंग थी
जैसे स्वर्ग लोक बनवा दी
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों सोच न पाया
विरोधा भासी दृश्य देख
आश्चर्य हुआ,आत्मीय जनों को
शयन कक्ष में,भड़क दार कैलेंडर
टांग रखे हैं, घरवाली ने
मातृ पितृ भक्ति की जगह
आधुनिकता ने क्यों जन्म ली
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों, सोच नहीं पाया
छोटे छोटे बच्चो को,अंग्रेजी शिक्षा
सरकार दे रही,प्राइमरी में
नई सदी में,शिशु
पृथ्वी पर,आयेगा तो
रोयेगा भी अंग्रेजी में
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन,ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों,सोच नहीं पाया
प्यार की राह,दिखा दुनिया को
रोके नफरत की आंधी
तुममें से ही,कोई गौतम होगा
तुममें से ही कोई,होगा गांधी
नूतन लाल साहू


अंतरराष्ट्रीय कवयित्री डॉ0 कमलेश शुक्ला कीर्ति कानपुर। गीत--- मेरा भारत महान, मेरा भारत  है  सबसे महान।

अंतरराष्ट्रीय कवयित्री
डॉ0 कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।


गीत--- मेरा भारत महान
************************
मेरा भारत  है  सबसे महान।
  सभी को रखना है इसका ध्यान।।


कई भाषा  के  लोंग  हैं  रहते।
संविधान का सम्मान हैं करते ।
मिलजुलकर यहाँ सभी हैं रहते
घण्टा बजते अजान भी पढ़ते।
सबका रखते हम यहाँ हैं  मान ।
मेरा  भारत  है  सबसे   महान।


यहाँ पर गंगा  माता हैं बहती
सबके तन को पावन हैं करती।
लगता कुम्भ पर मेला  अपार
सभी वेदों से  मिलता  है  सार।
पर्वत  हैं  औषधियों  की खान।
मेरा  भारत  है  सबसे  महान।


वीर भगत सिंह यहाँ पर जन्मे
आजाद बसे  हैं सबके तन में।
कई  वीरों   की  जन्मभूमि  है
अब्दुल कलाम की कर्मभूमि है।
तिरंगे में बसती  सबकी जान
मेरा  भारत है  सबसे  महान।


यहाँ पर जन्मे वीर परशुराम 
 कण कण में बसते जहाँ हैं राम।
यहाँ सत्य से यमराज भी हारे
करने लगे सावित्री के जयकारे।
ब्रह्मास्त्र जैसे  हैं  तीर  कमान।
मेरा  भारत  है  सबसे  महान।


अंतरराष्ट्रीय कवयित्री
डॉ0 कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।


हिमांशु श्रीवास्तव *भानु* रुदौली,अयोध्या धाम। कहानी खाना बचा पर जान नही

मेरी "प्रथम" कहानी सादर प्रस्तुत है। कृपया इसे पूरा जरूर पढ़ें एवं अपने अमूल्य सुझाव दें।।  धन्यवाद
--------- *कहानी*---------
*खाना बचा पर जान नही*


गुप्ता जी ने बेटे के तिलकोत्सव में दिल खोलकर खर्च किया था। नोटबन्दी का उनपर जैसे कोई असर ही न हुआ हो। पूरी राजशाही व्यवस्था थी। कार्यक्रम परिसर को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि स्वर्ग में आ गए हो।
एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजन बनवाये गए थे। व्यंजनों की सूची गिनना आम आदमी के बस में नही था।
लोगो ने खाना शुरू किया । तभी मेरी नज़र दूर खड़े एक बूढ़े पर पड़ी जो कि गेट पर खड़े दोनों दरबानों से अंदर आने की विनती कर रहा था।
विनती क्या पूरी तरह से गिड़गिड़ा रहा था।
दरबान भला उसे क्यों आने देता, न आने देने के लिए ही तो उसे वहाँ नियुक्त किया गया था। घर मालिक का सख्त आदेश भी था बिना कार्ड के कोई भी अंदर न आने पाये।


भूख से व्याकुल बूड़े की आंख और पेट दोनों गर्त में चले गए थे। शायद उसे आज प्याज और सूखी रोटी भी नही नसीब हुई थी। लज़ीज़ व्यंजनों को देखकर भूख से त्रस्त पापी पेट उसे उसके स्वाभिमान को डगमगा रहा था। कई बार मना करने के बावजूद भी वो मात्र खाना खाने के लिए हाथ पैर जोड़ रहा था। अचानक दूर से घर मालिक को आता देख दरबान ने वाहवाही लूटने के चक्कर मे बूढ़े को जोरदार धक्का दे दिया और वो पुराने टेलीफोन के खंभे से जा टकराया। वहीं गिर गया उसकी परवाह भला कौन करता ? गरीब जो ठहरा।।।


और इधर अंदर , दावत अपने पूरे शबाब पर थी। क्या आम क्या खास, सभी के हाथों में प्लेट थी। सब भिखारियों के माफिक सब्जी,पूरी, मटर पनीर, पुलाव छप्पन भोग पर टूट पड़े थे। 
लालचवश ढेर सारा खाना ले रहे थे । 
और भला कोई आदमी खड़े-खड़े खा भी कितना सकता है ? 
ढेर सारा खाना बर्बाद कर रहे थे।
पढ़े लिखे लोग जो थे , थोड़ा खाना खा रहे थे, ज्यादा फेंक रहे थे। 
और अपनी झूठी शानो शौकत कथित 'प्रोफेशनल समाज' को दिखा रहे थे।


मैं भी सफारी सूट पहन कर शान से पैर पर पैर रख कर एक गद्देदार कुर्सी पर धंसा हुआ था। मेरा दयालू चित्त बार बार मुझसे कर रहा था कि जाओ और उस बूढ़े को भरपेट भोजन कराओ। क्योंकि इससे बड़ा पुण्य कोई नही हो सकता। एक आदमी खा लेगा तो कम नही पड़ जायेगा।


क्योंकि सागर से एक बूंद जल ले लेने से सागर का कुछ नुकसान नही होता है।
ये सारे उपदेश मुझे अच्छी तरह से याद थे लेकिन मैं टस से मस नही हो रहा था।
भला होता भी तो कैसे ? इस घर का दामाद जो ठहरा। मेरा अहम मेरे सामने दीवार बनकर खड़ा था। मैंने कई बार रिश्तों के बंधन से निकल कर उस बूढ़े की मदद करने की सोची किन्तु मेरी इज्जत का क्या होगा ये सोचकर ठिठक गया।
वो बूढा अभी भी उसी टेलीफोन के खंभे की ओट में निढाल सा बिठा था। मैं भी इधर गद्देदार कुर्सी में आराम से बैठा रह गया।
अच्छा ऐसा नही था कि गुप्ता जी सामाजिक,पढेलिखे,जागरूक नही थे ।
ये सब उनके अंदर था, तभी तो "Save Food, Save India" नामक संस्था को फोन करके बचे हुए खाने को ले जाने के लिए कहा।
बड़ी सी गाड़ी आयी, बाकायदा तीन चार लोग हाइजीनिक तरीके से सारे खाने को उस कंटेनर में ले जाने के लिए रखने लगे।
सारे आम और खास लोग गुप्ता जी की बार बार तारीफ किये जा रहे थे।
कैमरा मैन भी पूरी घटना को बड़े शिद्दत से रिकॉर्ड कर रहा था।
मैं भी चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाने की कोशिश कर रहा था। कैमरे के फ़्लैश बार बार चमक रहे थे। ये तो तय था कि, कल के क्षेत्रीय समाचार पत्र में खाना बचाओ अभियान की अनूठी पहल की न्यूज़ जरूर रहेगी। मैं खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा था। आखिर ऐसे घर का रिश्तेदार जो ठहरा।
रात काफी हो गयी थी। 
सारा प्रोग्राम समाप्त हो गया था।
टेंट वाले,आर्केस्ट्रा वाले, बैंड वाले, दरबान वाले, कैटर्स वाले सब लोग अपना अपना सामान पैकअप कर रहे थे।
सारे रिश्तेदार सोने के लिए अपने अपने रूम की तरफ प्रस्थान कर चुके थे।
उस बूढ़े की कोई हाल खबर लिए बिना सब के साथ मै भी आराम करने के लिए वहाँ से हट गया। बिस्तर पर पहुँच कर मैं लेट तो गया लेकिन नींद कोसो दूर थी।
बार बार उसी बूढ़े का झुर्रीदार चेहरा, फटी धोती, फटा हुआ थैला, हाथ मे बांस का पतला डंडा जिस पर कई रंग की पन्नी लपेटी हुई थी, ये सब मेरी आँखों के सामने नाच रहा था।
मैं सोच रहा था पता नही वो कितने दिनों से भूखा रहा हो ?
उसकी ऐसी हालत के पीछे कौन जिम्मेदार है ?
कहा रहता होगा ?
क्या खाता होगा ?
काफी देर तक मैं इन्ही उलझनों में खोया हुआ था।
मैंने अपनी जिज्ञासा बगल में लेटे हुए साढू भाई से बताई।
तो उन्होंने कहा ये सब ढोंगी होते हैं, यही इनका पेशा है।
बड़े लोगों की शादियों मे पहुँच कर नखरा करना इनके अभिनय का एक हिस्सा भर है।
इतने प्रबल तरीके से उन्होंने समझाया कि उस बूढ़े के प्रति मेरा नजरिया ही बदल गया।
थोड़ा गुस्सा भी आया, कि ऐसे ऐसे लोग भी होते हैं इस दुनिया में ?
कुछ देर बाद मुझे नींद आ गयी और मैं सो गया।
देर रात में सोने के कारण सुबह देर से आंखे खुली।
घर के बाहर निकला तो भीड़ जमा थी, कौतूहल वश मैं भी भीड़ की तरफ बढ़ चला।
पास जाकर देखा तो मेरे होश उड़ गए।
अरे ये तो वही रात वाले बूढ़े बाबा जी है।
क्या हुआ इन्हें ? मैने पूछा।
पता चला इनकी तो मौत हो गयी।मैं तो आवाक रह गया।
करीब से जाकर देखा तो सच मे वों अब इस दुनिया मे नही रहे। 
उनकी आत्मा ने
जर्जर शरीर, 
फटे वस्त्र, 
एक चौथाई प्याज, 
आधी रोटी, 
पेप्सी के गंदे बोतल में थोड़ा पानी, 
डंडे में बंधी हुई पन्नी, 
कुछ चिथड़े आदि उसकी निजी संपत्ति को छोड़ दिया था। 


आज के पेपर में कल के भोजन संरक्षण की खबर तो थी किन्तु भूख से मरने वाले बूढ़े बाबा की कोई खबर नही।
उस दिन सिर्फ वो बूढ़े बाबा ही नही मरे थे, बल्कि हम जैसों और हमारे कथित प्रोफेशनल समाज का ज़मीर भी मर चुका था। आइये हम सब मिलकर अपने समाज को सभ्य बनाये।।


कहीं ये न हो कि,
*खाना बचा, पर जान नही*
😞😞😞😞😞😞😞🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔
✍🏻हिमांशु श्रीवास्तव *भानु*
रुदौली,अयोध्या धाम।
15-04-2017


पूरी कहानी पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।।


निशा चड्ढा जीवन गर्म हवायें झेली तूने 

निशा चड्ढा
जीवन
गर्म हवायें झेली तूने 
वर्षा में भी भीगा , 
नीड़ बनाया तिनके चुन चुन 
सब को गले लगाया .
पीछे रह कर तुने सब को 
आगे आगे भेजा, 
पहुँच शिखर पर पीछे मुड़कर 
नहीं किसी ने देखा . 
नेक कमाई की है तूने 
काहे तू भरमाये, 
लेने से बेहतर है बन्दे 
कुछ दे कर ही जाये .


संजय वर्मा "दॄष्टि " 125,शहीद भगतसिंग मार्ग  मनावर (धार )मप्र विरहता विरहता के समय 

संजय वर्मा "दॄष्टि "


125,शहीद भगतसिंग मार्ग 


मनावर (धार )मप्र


विरहता


विरहता के समय 
आती है यादें
रुलाती है यादें 
पुकारती है यादें 
ढूंढती है नजरे 
उन पलों को जो गुजर चुके 
सर्द हवाओ के बादलों की तरह 



खिले फूलों की खुशबुओं से 
पता पूछती है तितलियाँ तेरा 
रहकर उपवन को महकाती थी कभी 
जब फूल न खिलते


उदास तितलियाँ भी है 
जिन्हे बहारों की विरहता 
सता रही 
एहसास करा रही 
कैसी टीस उठती है मन में 
जब हो अकेलापन 
बहारें न हो


विरहता में आँखों 
का काजल बहने लगता
तकती निगाहें ढूंढती 
आहटों को जो मन के दरवाजे पर 
देती थी कभी हिचकियों से दस्तक
जब याद आती 
विरहता में


संजय वर्मा "दॄष्टि "


125,शहीद भगतसिंग मार्ग 


मनावर (धार )मप्र


पुष्पा शर्मा अजमेर दोहा

दोहा


युगल चरण का आसरा,
       ब्रज जीवन आधार,
श्री राधे वृषभानुजा,
       मोहन नंदकुमार।।


पुष्पाशर्मा"कुसुम"🌹🌹🙏🏻


कवि सत्यप्रकाश पाण्डेय तेरी पलकों के साये में,

तेरी पलकों के साये में,
दिन रात गुजर कब जाते है।
मेरी आंखों में न जाने,
क्यों तेरे चित्र उभर कर आते है।।


नाहक सा लगता जीवन,
तेरे बिन पल पल लगता रूखा सा,
सावन की घोर घटाओं में,
मुझे तो लगता है सूखा सूखा सा।।


मैंने भी देखे थे सपने,
मिलेंगी प्यार भरी बौछारें मुझको।
तेरे हृदय वृक्ष के नीचे,
सुख देंगी बसंत बहारें मुझको।।


हिय चमन मुरझा गया,
जबसे मिला न स्नेह नीर तुम्हारा।
आंखों में वीरानी छाई,
जब तेरी वाणी का मिला न सहारा।।


परम् प्रकाशक बनकर,
मम हृदय ज्योति तुम आ जाओ।
पवित्र भाव प्रारब्ध रूप,
मम जीवन मोद से भर जाओ।।


प्रिया प्रेयसी हे प्रियतमा,
प्रेम प्रीति की पुंज मनोहर तुम।
प्रेरित रहूँ प्रेरणा पाकर,
परिणीति परिणय की प्रिय तुम।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छग कभी छांव कभी धूप

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग


कभी छांव कभी धूप
-----------------------;;------
पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप
आशा और निराशा दोनों
जीवन के दो रूप ।


बिरवा अगर लगाया है तो
शीतल छांव भरोसा रख
भ्रम भटकाव छोड़़ दे पगले
निज भावों को सदा परख
अंत एक सबकी गति
क्या सेवक क्या भूप
पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप ।


कुमति कपट से मुक्त हो
सुंदर स्वच्छ विचार 
अंतर मन की व्याधि का
एक यही उपचार
भव सागर से पार लगाए
निज कर्मों प्रतिरूप
पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप ।


विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-694


गज़ल     जयप्रकाश चौहान  अजनबी शीर्षक:--वो राज ना मिला 

गज़ल
    जयप्रकाश चौहान  अजनबी
शीर्षक:--वो राज ना मिला 


जितना दिया मैंने उसको वो मुझे आज ना मिला,
मूल की तो छोड़ो दोस्तो  उसका वो ब्याज ना मिला ।


जो ना बन सकी मेरी हमसफर इतना चाहने के बाद भी ,
उसकी इस बेवफाई का मुझे आज कोई भी वो राज ना मिला ।



उसके जीवन की महफिल में लय,तरंग,धुन सजाई मैंने,
सब खुश थे इस रंगमंच पर मगर उसका मुझे वो साज ना मिला ।


मैं भी खड़ा कर देता एक ओर ताजमहल उसकी याद में,
लेकिन दोस्तो मुझे मेरा हमसफर वो मुमताज ना मिला ।


पता ना चला किस हवा के झोंके में उड़ गई वो ,
इस तरह से बदलने का मुझे  वो अंदाज ना मिला ।


बहुत ही सावधानी से छाना मैंने उस गदले पानी को,
क्या करे दोस्तों *अजनबी* को आखिर गाज ही मिला ।


उस धोखे से थोड़ा झकझोर हुआ अब संभलकर चल रहा हूँ,
* अजनबी* को लेकिन अब तक हमसफर सा हमराज ना मिला।


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*


बलराम सिंह यादव पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पँ0 धर्म एवम अध्यात्म व्याख्याता

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बन्दउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि।।
देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्व।
बन्दउँ किन्नर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  संसार में जड़ और चेतन जितने भी जीव हैं, उन सभी को राममय जानकर उनके चरणकमलों की मैं सदा दोनों हाथ जोड़कर वन्दना करता हूँ।देवता, दैत्य,मनुष्य, नाग,पक्षी, प्रेत,पितर, गन्धर्व,किन्नर और निशाचर आदि सभी को मैं प्रणाम करता हूँ।अब आप सब मुझ पर कृपा करें।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
   महारामायण और श्रीमद्भागवत में भी सभी जीवों की वन्दना की गयी है।यथा,,,
भूमौ जले नभसि देवनरासुरेषु भूतेषु देवि सकलेषु चराचरेषु।
पश्यन्ति शुद्ध मनसा खलु रामरूपम् रामस्य ते भुवितले समुपासकाश्च।।
(महारामायण)
 अर्थात हे देवी,जो लोग पृथ्वी, जल,आकाश,देवता, मनुष्य, असुर ,चर अचर सभी जीवों में शुद्ध मन से प्रभुश्री राम का ही रूप देखते हैं, पृथ्वी पर वे ही श्रीराम के उत्तम उपासक हैं।
 इसी से मिलता जुलता एक श्लोक श्रीमद्भागवत में भी है।यथा,,,
खं वायुमग्निम् सलिलं महीञ्च ज्योतीम्पिसत्वानि दिशो द्रुमादीन्।
सरित् समुद्रानश्च हरे:शरीरं यत्किंचितभूतम् प्रणमेदनन्यः।।
अर्थात आकाश,वायु,अग्नि, जल,पृथ्वी, नक्षत्र, प्राणी,दिशाएं,वृक्ष आदि सभी नदियाँ और समुद्र जो कुछ भी है, वह सब भगवान का शरीर ही है।अतः सबको अनन्य भाव से प्रणाम करो।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


हमीद कानपुरी विषय - एकता विधा- दोहा बात  एकता  की  करें

हमीद कानपुरी
विषय - एकता
विधा- दोहा


बात  एकता  की  करें , बोते  पर बिखराव।
पल पल बढ़ता जा रहा , हर सू यूँ टकराव।


सिर्फ सियासत के सबब,नफरत वाले भाव।
जनता  कब है चाहती , आपस  में टकराव।


हमीद कानपुरी


नूतन लाल साहू आवत हे अवईया ह

सुरता
आवत हे अवईया ह
जावत हे जवईया ह
बाचे हे कहईया ह
सुनत हे सुनईया ह
समय के चक्का ह चलत रहिथे
जवईया के संगी
सिरिफ सुरता ह रहिथे
बऊसला म छोल छोल के
ददा बनावय गिल्ली भौरा
लईका पन के सुरता आथे
मिल के खेलन भौरा बाटी
अडबड़ मजा आवय संगी
जब भौरा मारय भन्नाटी
आवत हे अवईया ह
जावत हे जवइया ह
बाचे हे कहईया ह
सुनत हे सुनईया ह
समय के चक्का ह चलत रहिथे
जवईया के संगी
सिरीफ सुरता ह रहिथे
बड़े बिहनिया ले गोबर कचरा म
हाथ गोड सनाये
नानकुन परछी म
बछरू गरवा बंधाये
कांख कांख के चूल्हा फुंकई
माटी के बरतन भड़वा
बोचकु टुरा के डबरा छिंचई
धरे ओहर बाम्बी डड़वा
आवत हे अवइया ह
जावत हे जवईया ह
बाचे हे कहईया ह
सुनत हे सुनईया ह
समय के चक्का ह चलत रहिथे
जवईया के संगी
सीरिफ सुरता ह रहिथे
एक फूल कभी, दो बार नहीं खिलता
ये जनम, बार बार नहीं मिलता
जिन्दगी में मिल जाते है हजारों लोग
मगर सुनहरा पल, बार बार नहीं मिलता है
नूतन लाल साहू


देवेन्द्र कश्यप 'निडर'                                            सीतापुर-उत्तर प्रदेश  दीपक  ---------------------------- पैदा  स्वभाव  ऐसा  कर  लो , जैसे दीपक का होता है

देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
                                           सीतापुर-उत्तर प्रदेश
 दीपक  ----------------------------
पैदा  स्वभाव  ऐसा  कर  लो , जैसे दीपक का होता है
हो  महलों  या  झोपड़ियों में , रोशनी  भेद न करता है
रोज रोज वो जल करके, आलोकित जग को करता है 
पर नहीं किसी से जीवन में, वो लेश मात्र भी जलता है
समता स्वतन्त्रता कारण ही, वो विश्व विभूषित होता है 
नित  ईर्ष्या  से  दूरी  रखके , वो  घर घर पूजा जाता है
जो जीवन में  निज के  उर का , जला  दीप ना पाया है 
वो अज्ञान अंधेरे  में  पड़कर , कर देता जीवन जाया है 
न झुकता दीपक पैसों से , न ही तोप और  तलवारों से
'निडर' भाव  से  लड़  जाता, वितान  हुए अंधियारों से 
साहस तो देखो दीपक का , जो तम से लड़ता रहता है
नहीं डालता हथियारों को जब तक वो ज़िन्दा रहता है 
अपने जीवन में जो मानव इक दीप नहीं बन सकता है 
विश्वास मानिए मेरा भी , वो मनुज  नहीं बन सकता है
                      


राजेन्द्र शर्मा राही गजल शान है मेरी तिरंगा मत इसे कपड़ा समझना

राजेन्द्र शर्मा राही


गजल
शान है मेरी तिरंगा मत इसे कपड़ा समझना
ताक में दुश्मन खड़ा हैे मत कभी पलकें झपकना


मुश्किलों से मिल सकी है देश को आजाद धरती
अब नहीं स्वच्छंदता से मंच पर फूहड़ मटकना


ये धरा है ऋषि मुनी की तप तपोबल से भरी है
छोड़ तो तुम अब नशे को मत कभी पीना बहकना


काट डाले पेड़ वन के यह धरा विकसित बनाने
अब कहां है डाली पर वो पक्षी का  उड़ना चहकना


अब नदी नाले भरे हैं अपनी डाली गंदगी से
अब कहां वो बाग जिसमें फूल का खिलकर महकना


पाप की हर कामना को आज से अब से भगा दो
देशहित में नित जियो यह बात ढंग से सब समझना


मत जगाओ बाल मन में काम कुत्सित कामनायें
देख सुन बिगड़े युवा अब मंच पर  कैसा मटकना


अब चलो हम उठ खड़े हों राष्ट्र की इस वंदना में
बात राही कह रहा हैं सोचना ढंग से समझना
राजेन्द्र शर्मा राही


सुलोचना परमार उत्तरांचली नयन कजरारे जाते जाते

*नयन*
****************


नयन कजरारे जाते जाते
कह गए कुछ ऐसी बात।
दिल में हलचल मची है मेरे
चेन न आये अब दिन रात ।



 मृगनयनी है वो तो देखो
नयन करें उसके मदहोश ।
उन नयनों में डूब जाऊँ मैं
रहे न अब मुझे कोई होश ।



 कमल नयन हैं उसके यारो
मन्द -मन्द मुस्काये वो ।
गहराई मैं नाप रहा हूँ
 कितना और  डुबोएँगे वो ।



कभी नयन जो छलके उनके
उनमें नहाया करता हूँ ।
मन ही मन मैं करूँ प्यार
पर व्यक्त नहीं कर पाता हूँ ।



स्व रचित


🌹🙏 सुलोचना परमार🙏🌹


शेर सिंह सर्राफ शेर की कविताए... रक्त शिराओ मे भर लेना

शेर की कविताए...


रक्त शिराओ मे भर लेना
ज्वाला तुम सम्मान का।
कर्ज चुकाना है भारत के
वीरो के बलिदान का ।


भगवा और तिरंगा दोनो, 
साथ चले तो क्या होगा ।
धर्म राष्ट्र का मूल मंत्र तो,  
पीढी  को  देना  होगा ।


शेर सिंह सर्राफ


नीलम जैन बाड़मेर राजस्थान बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं,

नीलम जैन
बाड़मेर राजस्थान


बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं,
जाने कब से राह निहारुं।
जब से तुम आने का कह गए,
दहलीज पर तांक रही हूं ।।


भोर उजाले आते औं जाते 
दिन भर की थकान उतारुं।
चैन सुकून को परोस प्यार से, 
सुख की चादर बिछा रही हूं।। 


सांझ की लाली चटक रही हैं, 
रात के सितारें नगमें जड़ाऊं।
ख्वाबों की बेला इत्र सी महके
कस्तूरी सुगंध  फैला रही हूं।।


बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं,
जाने कब से राह निहारुं।
कान्हा की मुरली मन को मोहे,
मन की ज्योत जला रही हूं।।


**************
*नीलम जैन🌹*
*बाड़मेर राजस्थान*


ओम अग्रवाल बबुआ ये देश धरा की माटी का

*चलते-चलते:0127*
*⚜ मेरा गाँव ⚜*
(धाराप्रवाह गीत) 


*ये देश धरा की माटी का।* 
*ये भारत की परिपाटी का।।* 
*ये संस्कार का दर्पण है।* 
*ये पावन पुण्य समर्पण है।।*
*ये धरती सोंधी मिट्टी की।* 
*ये धरती चोखा लिट्टी की।।*
*ये खेत और खलिहानों की।*
*ये धरती है अरमानों की।।* 
*ये मेघों की आशा है।* 
*ये जीवन की परिभाषा है।।*
*ये संघर्षों की धरनी है।*
*ये आदर्शों की जननी है।।* 
*ये नंग धड़ंगे बच्चों की।* 
*ये अन्तर्मन के सच्चों की।।* 
*ये धरती है हल वालों की।* 
*ये धरती बाल गोपालों की।।* 
*ये चाचा ताऊ भईया की।* 
*ये जीवन नाव खेवईया की।।* 
*ये मस्जिद और शिवालों की।*
*ये धरती मेहनत वालों की।।*
*ये धरती का रंग धानी है।*
*ये इन आँखों का पानी है।।* 
*ये मेघों से आस लगाती है।* 
*ये नेह से सींची जाती है।।* 
*ये टूटी फूटी राहों की।* 
*ये मेहनतकश के बाहों की।।* 
*ये पुण्य धरा का वंदन है।* 
*ये सचमुच छुधानिकंदन है।।* 
*ये धरती भाव अभावों की।* 
*ये धरती अपने गाँवों की।।* 


सर्वाधिकार सुरक्षित 
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*


डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' दोहा मुक्तक दाँव-पेंच अब छोड़ दो,

डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' दोहा मुक्तक
दाँव-पेंच अब छोड़ दो,करो न थोथे काम।
मिट जायेगा इस तरह, नहीं चलेगा नाम।
उम्र बीतने तलक अभी,गर नहिं आया होश,
'सहज' यकीनन तय शुदा, मानो काम तमाम।
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
अधिवक्ता/साहित्यकार 


श्याम कुँवर भारती [राजभर]  कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी हिन्दी ओज कविता-अभिनन्दन बना लेंगे |

श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी


हिन्दी ओज कविता-अभिनन्दन बना लेंगे |
 मिट्टी वतन सिर माथे चन्दन बना लेंगे |
ऊंचा तिरंगा भारत सदा वंदन बना लेंगे |
रंगी शहीदो खून आजादी नमन उनको |
कुर्बानी शहीदों हम वचन बंधन बना लेंगे|
आजाद भारत आ पहुंचा किस मुकाम तक |
बिगड़े हालात इसे ब्रिज नन्दन बना लेंगे |
लाख तूफानो बुनियाद कोई हिला न सका |
हर वीर जवानो हिन्द अभिनन्दन बना लेंगे |
चाल चलता दुशमन मगर पार पाता नहीं |
मोदी अमित डोभरवाल दुश्मन क्रंदन बना लेंगे |
जड़े जमी भारत जमीन पाताल हिलाना मुश्किल |
पहरेदार ऊंचा हिमालय दीवार वतन बना लेंगे |
है हर खासो आम दीवाना हिन्द का बहुत |
मिल सब दुशमनों वतन दुख भंजन बना लेंगे |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


एस के कपूर श्रीहंस बरेली मुक्तक चमक नहीं रोशनी चाहिये।।

*चमक नहीं रोशनी चाहिये।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


वही अपनी  संस्कार  संस्कृति
यहाँ   पुनः बुलाईये।


वही स्नेह प्रेम की भावना फिर
यहाँ   लेकर आईये।।


हो उसी  आदर  आशीर्वाद  का
यहाँ     बोल बाला।


हमें  चमक   ही    चमक    नहीं
यहाँ  रोशनी  चाहिये।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब   9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


प्रिया सिंह लखनऊ सरगोशी सरगर्मियां सब शान्त हो जायेंगे

सरगोशी सरगर्मियां सब शान्त हो जायेंगे 
देशभक्ति राष्ट्रहित सब शान्त हो जायेंगे 


ये सूरज भी यहाँ अब कल की तैयारी में है
जोश और जूनून हर शब्द शान्त हो जायेंगे   


तारीख अपने कैलेंडर को समय से पलट दे
इतिहास में बहे वो खून भी शान्त हो जायेंगे 


तुम पलटते रहना अखबार का पन्ना धीरे-धीरे 
एक दिन ये देश के हालात भी शान्त हो जायेंगे 


तुम्हें बक-बक पसन्द नहीं तो कोई बात नहीं 
एक दिन आयेगा मेरे कलम शान्त हो जायेंगे


चिल्लाना आखिर नहीं पड़ेगा मुझे भी कभी
चाहतें एकता की एक दिन शान्त हो जायेंगे 



Priya singh


अवनीश त्रिवेदी "अभय" शायरी

शेर


कह दीजिये पैमाने से  हम  फूल  की शबनम हैं।
पानी की तरह कभी भी तुझमें मिल नही पाएंगे।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


निशा अतुल्य प्रीत की रीत निभाये कान्हा

प्रीत
दिनाँक    27/ 1/ 2020 



प्रीत की रीत निभाये कान्हा
वृंदावन में छाए कान्हा 
बैठ कदम्ब की छांव में 
बंसी की तान सुनाए कान्हा।


सुध बुध खोए राधा रानी
सपनो में भी बस आये कान्हा ।


गोपिन जब पनघट पे जाए
रास की रीत दिखाए कान्हा ।


कर्म योग का उपदेश दिया जब 
भूल गए वृंदावन कान्हा ।


भूले बंसी भूले कदम्ब को
सुदर्शन चक्र धारे कान्हा ।


मीरा ने भरा भक्ति का प्याला 
राधा ने भी प्रीत निभाई कान्हा


द्रौपदी के बन कर सखा फिर 
तुमने लाज बचाई कान्हा।


दिया गीता का ज्ञान जब तुमने
विरक्ति मन में जगाई कान्हा ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


कैलाश दुवे होशंगाबाद या खुदा मुझे भी

या खुदा मुझे भी एक कफन दे दे ,


मर सकूँ वतन के वास्ते कसम दे दे ,


न मेरे मरने का गम हो किसी को जरा भी ,


न तनिक किसी की रूह काँपे ,


मुझे तो मेरा वतन बस आजाद दे दे ,


कैलाश , दुबे ,


प्रिया सिंह लखनऊ गम्भीर होकर बस बिलखती रही जिन्दगी

गम्भीर होकर बस बिलखती रही जिन्दगी 
किताबों के पन्नो सी पलटती रही जिन्दगी 


शब्दों ने इसमें मिलकर चरित्र बना डाला 
एक ही किताब में सिमटती रही जिन्दगी 


किस्से कहानियाँ सब इकठ्ठा तो है इसमें 
कई पयाम देकर भटकती रही जिन्दगी 


गेसुओं की दरकार नहीं इस बेनज़ीर को
इश्क के इब्तिदा में उलझती रही जिन्दगी 


काँच के टुकड़ों पर कारीगरी दिखाती वह
इबादत के शाख से बिखरती रही जिन्दगी 


अल्लाह, बेदाद करती है मेरी मासूम सी जां 
मुक़द्दर के आस में निखरती रही जिन्दगी
 


पयाम:-संदेश
इब्तिदा :- आरम्भ/अनुष्ठान 
इबादत:- पूजा
बेदाद:-अन्याय /अत्याचार 
मुकददर:- किस्मत 


Priya singh


बलराम सिंह यादव धर्म अध्यात्म व्याख्याता

आकर चारि लाख चौरासी।
जाति जीव जल थल नभ बासी।।
सीय राम मय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  चार प्रकार के जीव चौरासी लाख योनियों में जल,पृथ्वी और आकाश में रहते हैं।सम्पूर्ण विश्व को श्रीसीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  उत्पत्ति के स्थान,मार्ग व प्रकार के आधार पर जीव चार प्रकार के होते हैं।
1--जरायुज अथवा योनिज---
मृगादि पशु,दोनों ओर दाँत वाले व्याल,राक्षस,पिशाच और मनुष्य आदि जरायुज अथवा योनिज कहलाते हैं क्योंकि ये सभी जरायु अर्थात झिल्ली में बन्द योनि मार्ग से जन्म लेते हैं।
 2--अण्डज---
  विभिन्न प्रकार के पक्षी, सर्प,घड़ियाल,मछली, कछुआ आदि अण्डज हैं क्योंकि ये सभी अण्डे से पैदा होते हैं।इनमें जलचर व थलचर दोनों प्रकार के जीव होते हैं।
3--स्वेदज-- स्वेद अर्थात पसीना।
  जो पसीना और गर्मी से उत्पन्न होते हैं उन्हें स्वेदज कहते हैं जैसे जुआँ,चीलर,मच्छर, मक्खी, खटमल,डांस आदि।
4--उद्भिज--
बीजों अथवा शाखाओं से उत्पन्न होने वाले स्थावर उद्भिज कहलाते हैं जैसे विभिन्न प्रकार के वृक्ष, लताएँ, वनस्पतियां आदि।इनके भी कई प्रकार होते हैं जैसे विभिन्न प्रकार के फल और फूल।जिनमें फूल और फल दोनों होते हैं और फल पक जाने पर जिनका नाश हो जाता है उन्हें औषधि कहते हैं।जिनमें फूल नहीं होता है और केवल फल होता है, उन्हें वनस्पति कहते हैं।जिनका अस्तित्व फल और फूल देकर भी बना रहता है उन्हें वृक्ष कहते हैं।मूल या जड़ से ही जिनकी लताएँ पैदा होती हैं और जिनमें शाखा नहीं होती हैं उन्हें गुच्छ कहते हैं।एक ही मूल से जहाँ बहुत से पौधे उत्पन्न होते हैं उन्हें गुल्म कहते हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


युवा दिलो की धड़कन नवल सुधांशु श्रंगार कवि लखीमपुर खीरी रात  का   है  पक्ष  भारी  उल्लुओं  के गांव में।

युवा दिलो की धड़कन नवल सुधांशु श्रंगार कवि
लखीमपुर खीरी


रात  का   है  पक्ष  भारी  उल्लुओं  के गांव में।


सूर्य  जब  धुंधला  दिखा 
नाखून सन्ध्या पर गड़ाए
चन्द्रमा के  हर ग्रहण पर
इन्होंने   उत्सव    मनाए


किन्तु फिर भी अमावस ने ला  दबोचा दांव में।
रात  का   है  पक्ष  भारी  उल्लुओं  के गांव में।


नयन   पर  पट्टी  बंधाये
जुगनुओं  की  चाल ढूंढें
रात  कुछ  तोते  प्रवक्ता
उल्लुओं  की  डाल  ढूंढें


कोयलों का स्वर मिला है काग की हर कांव में।
रात  का   है  पक्ष  भारी   उल्लुओं  के गांव में।


बिना  देखे  एक  कौवा
कर  रहा   था   मन्त्रणा
अप्रकाशित क्षेत्र को थी 
काटने     की    योजना


देख  पहली  किरण  भागे  भूत बांधे  पांव में।
रात  का   है  पक्ष भारी उल्लुओं  के गांव में।
                                  


अवनीश त्रिवेदी "अभय" सीतापुर- उत्तर प्रदेश बसंत अभिनन्दन ऋतुराज बसंत को कोटि प्रणाम हैं।

अवनीश त्रिवेदी "अभय"
सीतापुर- उत्तर प्रदेश


बसंत अभिनन्दन


ऋतुराज बसंत को कोटि प्रणाम हैं।
प्रकृति बदल रही अपने  आयाम हैं।
भीनी महक़ चहुँओर  फ़ैल  रही  हैं।
मदमस्त  नायिकाएँ  टहल  रही  हैं।
हर वातावरण  सुगंधित  हो  रहा हैं।
दृश्य  देख  जहाँ अनंदित हो रहा हैं।
प्यारे  लगे  ये  सरसों  के   फूल  हैं।
फ़िज़ा  में  उड़ती  संझा की धूल हैं।
मनोरम छवियाँ चहुँओर दिखती  हैं।
हर जगह नेह कहानियां  लिखती हैं।
पवन  बसंती  हिचकोले   भरती  हैं।
सबको  छूकर   मनमानी  करती हैं।
बागों  में  कोयल की  मधुर तान  हैं।
सबसे  सुंदर  ये  अपना  जहांन   हैं।
सुबह  मनमोहक  मतवाली  शाम हैं।
ऋतुराज बसंत को  कोटि  प्रणाम हैं।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"
सीतापुर- उत्तर प्रदेश


ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई ⚜बबुआ के दोहे⚜

ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
⚜बबुआ के दोहे⚜


*प्रिय प्रियतम प्रियवर प्रिये, पाहुन परम प्रवीन।*
*कृष्ण सुदामा मित्र द्वय, कौन भूप को दीन।।*


*सत्य सहज सुंदर सरल, सफल सुफल संयोग।*
*अभिलाषा श्रीकृष्ण की, मिटे भाव भय भोग।।*


*नमन नमस्ते नमस्कार, नमन नमूँ सौ बार।*
*बबुआ बस ये कामना, सुखी रहे संसार।।*


*चित चिंतन चितवन चपल, चपला चँद्र चकोर।*
*हरि इच्छा से हो निशा, हरि इच्छा से भोर।।*


*कारण कारक कर्मणा, कुदरत के कब काम।*
*जैसी मन की भावना, वैसो ही परिणाम।।*


सर्वाधिकार सुरक्षित 
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*


कुण्डलिया छंद अवनीश त्रिवेदी "अभय" अभिनन्दन  हैं  आपका,  हे!  बसंत  ऋतुराज।

कुण्डलिया छंद


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अभिनन्दन  हैं  आपका,  हे!  बसंत  ऋतुराज।
जल्दी  आप  पधारिये, खूब  बजे  फिर  साज।
खूब  बजे  फिर  साज, अब मधुर कोयल गाये।
हर्षित  सभी   समाज,  सदा  उपवन  महकाये।
कहत "अभय" कविराय, हैं हर धूल भी चन्दन।
पूजो  माथ   लगाय, करो  इसका  अभिनन्दन।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली रिश्ते

*।।।।।।।।। विषय।।।।।।।।।।*
*रिश्ते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


टुकड़ों   टुकड़ों  में न बंटे,
देश ,समाज ,हर घर।


रिश्ते नाते न  भटकें कभी,
इस  दर  , उस  दर।।


सबके  भीतर   जागृत  हो,
संवेदनायों की अलख।


मैं  बस   तेरी   बात    करूँ,
तू  मेरी     बात    कर।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।*
मोब   9897071046  ।।।
8218685464   ।।।।।।।।


सुनीता असीम विचार प्यारा ये हमने भी पाल रक्खा है।

विचार प्यारा ये हमने भी पाल रक्खा है।
सदा हि दिल में खुदा का जमाल रक्खा है।
***
हवा के जोर से हिलता हुआ तेरा आँचल।
के दिल हमारा उसीने उछाल रक्खा है।
***
दिया नहीं है दिखाई मुझे तेरा चहरा।
हिजाब कैसा भला तूने डाल रक्खा है।
***
ली बादलों ने हवाओं से आज अंगड़ाई।
कि धड़कनों ने मेरी ए'तिदाल रक्खा है।(संतुलन)
***
तेरी अदा ने मुझे कर दिया बड़ा घायल।
उदास रात ने जीना मुहाल रक्खा है।
***
सुनीता असीम
२८/१/२०२०


एस के कपूर श्रीहंस बरेली नफरत मुक्तक क्यों हम बांटते जा  रहे हैं इस,

*नफरत।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


*मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


क्यों हम बांटते जा  रहे हैं इस,
सुन्दर   से  जहाँ  को।


हमारी मंजिल तो कहीं और है,
हम   जा रहे कहाँ को।।


नफरत के घर में    मिलता नहीं,
किसी को भी सुख चैन।


प्यार    बसता   हो   जहाँ    पर,
बस हम चले वहाँ  को।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।*


मोब 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


निशा"अतुल्य" मुश्किल है जीना  स्वार्थ भरी इस  दुनिया में

निशा"अतुल्य"
मुश्किल है जीना 



स्वार्थ भरी इस  दुनिया में मुश्किल है जीना  
स्वार्थी है लोग सभी,नही मिले दिल को चैना 
स्वार्थ की इंतहा तो देखो बिन बात का विरोध करें
कानून है जो रखवाले तुम्हारे,उन्हीं को तुम तोड़ रहे ।


फिर कहते आजादी चाहिए, कैसी आजादी बोलो तो 
जब तब बात करो गद्दारों सी,देश को देते रोज ही गाली।


कभी करते हो टुकड़े देश के कभी कट्टरता की बात करो
सोचो पहले फिर तुम बोलो सोचो तुम क्या करते हो ।


मांग रहे तुम जैसी आजादी दूजे को भी  चाहिए वो ही
तुम कैसे हो दूध धुले और कैसे दूजा कट्टरपंथी ।


समझो आजादी की परिभाषा संविधान का मान करो 
प्रस्तावना है संविधान की प्रतिबद्धता सर्व प्रथम राष्ट्र की एकता,अखंडता ।


नही समझे जो मर्म देश का उसका मुश्किल है जीना
प्रेम और सद्व्यवहार रखो तो हर मुश्किल आसान रहे।


 


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

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