अशोक सपरा

करना अखण्ड भारत का सपना तुझे ही अब कवी अशोक साकार है


इस राजनीति की नीति में नैतिकता की हर एक परिभाषा स्वीकार है


 


विश्वासो का यहाँ कत्ल हुआ इस कदर की राम ने जला डाली मथुरा


भारत भूमि पे कन्हैया लगाये लांछन प्रभु नाम भी होने लगे गद्दार है


 


सरे आम अब निर्भया की आबरू दांव पर लग जाती यहाँ


मर्यादा का कंकाल शेष रह गया यहाँ न्याय हुआ अब बेकार है


 


यहाँ गरल उगलता देखा आस्तीन के पाले हुए सांपो को हमने


जिस थाली में खाते उसमे छेद कर जाते छुपे यहाँ रंगे सियार है


 


इससे अधिक अब क्या लिखूँ की ध्वाजा सकल विश्व पर फहरा दूंगा मैं


राम राज्य हो विश्व में जनता का शासक पर होगा सामान अधिकार है


 


अपने गुणों पर गर्व मुझे लिख दूंगा साहित्य में नया इतिहास


विश्व मंच की महफ़िलों में मेरे भारत देश का होगा अभिसार है


 


अशोक के अंदर की ज्वाला धधकती कब होगा महिमा मंडित भारत का


शत खण्डों में बिखरा भारत कब होगा इसका सम्पूर्ण विरस्तार है


 


भारत माता रोते रोज सपनों में आती अशोक होता मन आहत 


ले निर्णय भारत को गुलामी से आजाद कर गर देश से प्यार है


 


अंतरात्मा तक आहत हुई आज भारत माता की लिख दे कविता में अशोक


जो कहता भारत तेरे टुकड़े होंगे उन कपूतों के इस कृत्य पे धिक्कार है


 


अशोक सपरा 


श्लेष चन्द्राकर

अपना ये मुल्क़ जान लो कितना महान है


सबसे अलग जहान में हिन्दोस्तान है


 


हर ओर बहती पाक हवाएँ सुहावनी


हर बाग़ में महकता यहाँ ज़ाफ़रान है


 


अच्छा करेंगे काम सदा इसके वास्ते


हमको उठाना देश का दुनिया में मान है


 


भारत की पाक मिट्टी पे लेता है जन्म जो


वो तो समझता खुद को बहुत भाग्यवान है


 


बिल्कुल नहीं अदू का हमें ख़ौफ दोस्तो


उत्तर में हिमगिरी जो खड़ा पासबान है


 


आँगन में जिसके खेल के हम सब बड़े हुए


भारत हमारा एक वो प्यारा मकान है


 


रहते हैं लोग प्यार से हर धर्म के यहाँ


ऐ श्लेष अपने हिन्द पे मुझको गुमान है


 


श्लेष चन्द्राकर,


पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27, 


महासमुन्द (छत्तीसगढ़) 


योगिता तलोकर

 


वतन की मेरे देखो शान,


नाम है जिसका हिंदुस्तान।


 


धरती है यह ऋषि मुनियों की


राम, कृष्ण, नानक जैसे देवों की।


 


अद्भत है देवताओं की कथाएं,


इतिहास कहता शूरवीरों की गाथाएं।


 


संस्कृति इसकी कोई मिटा ना पाया,


चाहे, तैमूर, गौरी गजनवी आया।


 


लक्ष्मीबाई ,शिवाजी सांगा राणा,


दुनिया ने इनका लोहा माना।


 


स्वंत्रता की सैकड़ों सुनो कहानी,


सुनकर आंखो में भर आए पानी।


 


टैगोर ,तिलक, आजाद भगत सिंह,


बोस जैसे जांबाजों की बलिदानी।


 


ना झुका है ना झुकने दिया,


वतन की खातिर जवानों ने शीश दिया।


 


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,


आपस में हैं सब भाई- भाई,


 


दुश्मनों को भी यह बात समझाई,


जब जब बात वतन की आई।


 


तो क्या हुआ कि आज कल,


सत्ता की लालच मचाती हैं हलचल।


 


ये मेरा, मेरा वतन है,


सह लेगा सारी उथल पुथल।


 


आज फिर एक नए युग की शुरुआत है,


हस्ती इसकी ना मिटी है,


ना कोई मिटा पायेगा ,


मेरे वतन की निराली बात है।


मेरे वतन की निराली बात है।।


 


योगिता तलोकर


मोबाइल --- 9200099254


Sindhuja Srivastava

ऐ  मेरे वतन के लोगों,


                      तुम खूब लगा लो नारा 


ये प्रण होगा हम सब का,


                   चीनी सामान से करें किनारा


यह मत भूलो गलवान में,


                   वीरों ने हैं प्राण गँवाए


कुछ याद उन्हें भी कर लो,


                 जो लौट के घर ना आये।-2


_______________________________


ए मेरे वतन के लोगों,


                 जरा आँख में भर लो पानी। जो शहीद हुए हैं उनकी,


                    जरा याद करो कुर्बानी।


____________________________(2)


 


जब पागल हुआ चीनी ड्रैगन,


                       किया कृत्य बड़ा उन्मादी 


शान्ति-अमन की बात किया वो,


                      फिर कर दिया धोखेबाजी 


गिरगिट की तरा- रंग बदल कर,


                      ड्रैगन है किया नादानी


 जो कृत्य किया है चीनी ड्रैगन,


                  उनकी याद रखो कारिस्तानी


जब देश लड़ रहा था कोरोना से,


                    वो बुन रहे थे चालसाजी


 


धोंखे से निहत्थे वीरों पर,


                     कर दिये वो पत्थर बाजी 


थे धन्य शैतान वो चीनी,


                     थी धन्य उनकी शैतानी 


जो कुकृत्य किये हैं उसने,


                    जरा याद रखो कारिस्तानी


कोई सिख कोई यूपीवासी,


                     तेरह वीर बिहार के वासी


शरहद पर मरने वाला,-2


                     हर वीर था भारतवासी।


जो खून गिरा पर्वत पर,


                     वो खून था हिन्दुस्तानी 


जो शहीद हुए हैं बीसों,


                    उनकी बीस रही है जवानी 


थी खून से लथपथ काया,


                    फिर भी वे ना घबराते दो-दो के औसतन मारा,


                    फिर गिर गये होश गवांके।


जब अन्त समय आया तो,-2


                   कह गये कि हम मरते हैं।


ड्रैगन पे भरोसा ना करना,-2


                   वो धोखा ही करते हैं।-2


 


 क्या लोग थे वे दीवाने,


                  क्या लोग थे वे अभिमानी 


जो शहीद हुए हैं उनकी,


                    जरा याद करो कुर्बानी


तूम भूल न जाना उनको,


                    इस लिए लिखे ए कहानी।


जो शहीद हुए हैं उनकी,


                     जरा याद करो कुर्बानी।


जय हिंद,जय हिन्द,जय हिन्द,जय हिंद की सेना।--------


 


Sindhuja Srivastava 


सीमा निगम 

आजादी का जश्न सब मनाते रहे,


मेरे देश में शांति और अमन हो |


 


भाई-चारे समानता का भाव रहे,


सबके लिए ईद और दीवाली हो |


 


शहीदों की शहादत याद रहे ,


आजादी के वीरों का गुणगान हो |


 


कानून के प्रति लोगों का विश्वास रहे,


लूट हिंसा आतंक का सर्वनाश हो |


 


जन-जन में देशप्रेम का लहर रहे,


देश के लिए मर मिटने का जज्बा हो |


 


देश की एकता-अखंडता बनी रहे, 


अधिकारों और कर्तव्यों का निर्वहन हो|


 


गणतंत्र की सार्थकता बनी रहे,


एक राष्ट्रधर्म का नया आगाज हो|


 


 


रचना सक्सेना

मत नापो भारत को अपने सरहद की सीमाओ मे,


आत्मा इसकी अमर रहेगी दुनिया के हर गाँवों में।


जब जब धर्म की बात चलेगी- भारत पूजा जाएगा ,


सब धर्मों को एक धर्म के रूप मे देखा जाएगा।


प्रेम भाव और इंसानियत धर्मो के आधारो मे,


मत नापो भारत को अपने सरहद की सीमाओ मे।


 


उपजी सभ्यता कितनी और दफन हुई इस मिट्टी में,


जलकर लकड़ी राख हो जाऐ- जाकर जैसे भट्टी मे,


जलकर भी न राख हुई - कनक रूप दिख जाऐगा,


भारत का गौरव आज भी वैसे ही मिल जाऐगा।


रीतिरिवाज और संस्कारों के मूल तत्व आधारो मे,


मत नापो भारत को अपने सरहद की सीमाओ।


 


जब भी हवा चलेगी कोई कही किसी दिशाओ से,


भारत के पुष्पो की महक उत्साह भरी आशाओ से।


महकाती धरती विश्व को -हर जगह मिल जाऐगी,


धर्म शास्त्र के ज्ञान की छाया हर जगह दिख जाऐगी।


देशभक्ति से ओझल इस धरती के सब लालो मे,


मत नापो भारत को अपने सरहद की सीमाओ मे।


 


रचना सक्सेना


इलाहाबाद


मौलिक


डॉ. अर्चना दुबे रीत

है राह यह सुहाना, चाहे शीश हो कटाना ।


तुम सुन लो देशवासी, यह देश है हमारा ।


भारत के ऐ सपूतों, विश्वास को जगाओ ।


कमजोर करके दुश्मन, को देश से भगाओ ।


छायी रहे सदा ही, स्वाधीनता की लाली ।


आजाद हुई जननी, छाये सदा हरियाली ।


आकाश में लहराओ, तुम देश का तिरंगा ।


मन प्रशन्न होकर, जय हिंद गान गायें ।


उस लाल किले ऊपर, फहरे तिरंगा प्यारा ।


तुम सुन लो देशवासी, यह देश है हमारा ।


जय हिंद की धरा पर, गोरों का कैसे हक था ।


हर भारतीय बहादुर, खाया भी यह कसम था ।


करते थे कैसे पीड़ित, पूर्वज को वो हमारे ।


हक छीन लो तुम अपना, जननी तुम्हें पुकारे ।


डर भय को त्याग करके, हाथों में भाल ले लो ।


आवेश को जगाओ, उत्साहित होकर जाओ ।


दुश्मन न टिकने पाये, उन्हें देश से भगाओ ।


तुम सुन लो देशवासी, यह देश है हमारा ।


गांधी, सुभाष, नेहरु, आजाद, भगत, विस्मिल ।


सुखदेव, वीर अब्दुल, थे वीर साहसी वो ।


जिनके हृदय में जागी, पीड़ित हैं अपनी जननी ।


सर पर कफ़न को बांधे, निकली थी ऐसी टोली ।


दुश्मन के खून खेलें, स्वतंत्रता की होली ।


गोरों तुम्हें है जाना, भारत है यह हमारा ।


दुश्मन को खेद करके, वीरो ने गान गाया ।


तुम सुन लो देशवासी, यह देश है हमारा ।


है राह यह सुहाना, चाहे शीश हो कटाना ।


तुम सुन लो देशवासी यह देश है हमारा ।


 


डॉ. अर्चना दुबे रीत


परमानंद निषाद

जिस मातृभूमि पर हमने जन्म लिया है,


वह भारत देश हमारा है,


जो हमारे प्राणों से भी प्यारा है,


जो हमें देती है प्रेरणा वह सीख है,


मातृभूमि की लाज के खातिर,


सर्वश अपना लुटाऊंगा,


इस माटी में जन्म लिया है,


इस माटी में मिल जाना है,


बदन को महकाने के सारी उम्र काट ली,


रूह को अब अपनी महकाओ तो अच्छा है,


वो मातृभूमि की रक्षा करते है,


हम मातृभाषा की कर लेते है,


मातृभूमि का बेटा हूं,


पर सोच हमारा संकीर्ण है,


मातृभूमि का मान लिए उग्र रूप को देखा है,


हर सेनानी इस जग में वीरभद्र को देखा है,


मातृभूमि की रक्षा करने में चाहे,


जीवन तेरा सौ बार आ जाए,


नमन नमन नमन है उनको,


जो मातृभूमि की रक्षा करते है,


जिस मातृभूमि पर हमने जन्म लिया है,


वह भारत देश हमारा है।।


 


*परमानंद निषाद*


*ग्राम- निठोरा,पोस्ट- थरगांव*


*तहसील- कसडोल,जिला- बलौदा बाजार (छत्तीसगढ़)*


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

जन-जन में बस जायेगा


जब राष्ट्रवाद की दृढ़ता


तब भारत में होगा 


भारत की ही स्थिरता।


 


मिट जायेंगे फिर दुश्मन


जो घात लगायें ताक रहे


दिन-दिन विश्व में नाम बढ़े


दोहरे चरित्र वाले कांप रहे।


 


दोहरे चरित्र के क्या कहने


खाते, रहते हिन्द में पलते हैं


मां भारती के गौरव को लेकर ही


नयी - नयी चालें चलते रहते हैं।


 


भारत की पावन धरा रज


हम नित शीश चढ़ाते हैं


आनबान और शान के लिये


मर मिटने को इतराते हैं।


 


सत्य अहिंसा नित बतलाता


भारत की अखण्ड स्वतंत्रता रहे


यह स्वप्न हर भारतवासी का है


हर युगों तक तिरंगा फहरता रहे।



  दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


   महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


संजय निराला

बलिदानों भूल ही सब हुए प्रखर ,


उर में लिए हुए छल कपट !


नीले अम्बर के नीचे है खड़ा तिरंगा ,


स्वेत प्रखर उर लिए हुआ सतत् प्रहत ! 


 


किसने समझा किसने है जाना ,


इसकी पीड़ा को अपना माना !


नित्य खड़ा ये आहें भरता ,


रह गया अब बन भीड़ा !


 


भूल गए सब निर्वासन को ,


बहनों की चीख-पुकारों को !


नित्य लिए स्वाद अपने उर में ,


राष्ट्र पिता बन भटके जग में !


 


सब मिल अब करों जयघोष ,


वंदेमातरम् का ही करो उद्धोष !


है वतन से अगर तुम्हें प्रेम ,


आओ मिल करें इसे अजेय !


                  _____संजय निराला ✍️


दीप्ति मिश्रा 

मेरे सपनों का भारत 


 


बैठी थी एकाकी स्वगेह में 


रही थी निहार शून्य खे में 


सहसा एक कंपित स्वर ने चौंका दिया 


क्षण भर में स्वप्नलोक से धरा पर पहुँचा दिया 


पूछ रहा था कोई मुझसे 


क्या यही है मेरे सपनों का भारत 


भारत मेरा भारत वह भारत 


जिसके लिए वीरों ने प्राण गंवाए 


और स्वतंत्रता के आशा दीप जलाए 


क्या था स्थान भ्रष्टाचार का उसमें 


नेताजी ने जो सपना पलकों में संजोया था 


क्या भुखमरी बेरोजगारी से पीड़ित


 जनता के शोषण का संकल्प कराया था 


राजनीति की बिसात पे झंडा 


सांप्रदायिकता का फहराया था 


छोड़कर अपनी संस्कृति पश्चिमी सभ्यता अपनाने को 


आज की नवयुवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट किया था 


क्या ऐसे ही भारत का स्वप्न अपनी पलकों पर उन्होने संजोया था 


न दे सकी मै उसके एक भी प्रश्न का उत्तर 


खड़ी रही बस यूँ ही मूक बनी हो निरुत्तर 


धीरे धीरे वह आवाज लुप्त हो गई 


किसी देश की समृद्धि का आधार 


होती है उस देश की युवा पीढ़ी 


कर सकती है वही भारत का पुनरुद्धार 


खोजकर सफ़लता की पहली सीढ़ी 


कर सकते हैं कामना प्रयास से पूर्ण सफ़लता की 


जैसी कल्पना की थी पूर्वजों ने हमारे भारत की 


पाप घृणा स्वार्थ से दूर सौहार्द से परिपूर्ण 


क्या ऐसा ही वातावरण दे सकेंगे हम अपने भारत को


 


दीप्ति मिश्रा 


रचित रेनू बाला धार

आजादी वीरों ने दी है


 हम इस के रखवाले हैं 


आज हमारी मातृभूमि


अब हमारे हवाले हैं 


तो देश की आन ,देश की शान


 देश का मान बढ़ालें हम


 आजादी के रखवाले हम 


 


देश के पहरेदार हम हैं 


भावी कर्णधार हम हैं 


वक्त आने पर दिखला देंगे


 हम में कितना दम है 


मुंह की खानी होगी


 जो कोई भी टकरा ले अब 


आज हमारी मातृभूमि 


बस हमारे हवाले हैं


 


 जय जवान जय किसान 


जय विज्ञान का नारा है 


प्यारा प्यारा हिंदुस्तान 


हिंदुस्तान हमारा है


 बहुमुखी प्रगति से इसे


 विश्व विजई बना ले हम 


आज हमारी मातृभूमि बस 


हमारे हवाले हैं


 


 देश हमारा मोम नहीं


 जो यूं ही गल जाएगा


 टीला सा यह नहीं हिमालय 


जो पल में ढल जाएगा


 सबसे ऊंची चोटी पर


 तिरंगा फहरा लें हम 


आज हमारी मातृभूमि 


बस हमारे हवाले हैं 


तो देश के आन देश की शान


 देश का मान बढ़ाने हम ।।


जय हिंद।।


 


रचित रेनू बाला धार


मनोज शर्मा मधुर

बेटे ने पैगाम लिखा है ।


अपनी माँ के नाम लिखा है।।


 


छोटों को है प्यार, बड़ों को


आदर सहित प्रणाम लिखा है।


 


बन्दूकें और तोप खिलौने,


युद्ध खेल का नाम लिखा है।


 


जंग ही होली,जंग दीवाली,


फतह,ईद का नाम लिखा है।


 


संगीनें ही बनीं संगिनी,


कर्म,सजग अविराम लिखा है।


 


मातृभूमि अब माँ है मेरी,


घर को हिन्दुस्तान लिखा है।


 


यदि वैरी रावण-सा तो क्या,


खुद को उसने राम लिखा है।


 


तेरी कोख की पुण्य शहादत,


शोणित से युद्ध-विराम लिखा है।


 


मेरी वीर - प्रसूता माँ,


इस देश ने तुझे सलाम लिखा है।


 


© मनोज शर्मा मधुर


रूपबास,भरतपुर, राजस्थान


मो० 9784 999 333


सुशीला जोशी विद्योत्तमा

इस वतन के हर बशर की शान है पन्द्रह अगस्त।


हर बशर के मान की आन है पन्द्रह अगस्त ।


 


लाखों की कुर्बानियाँ इस दिन में समायी हैं ।


आजादी जनून की पहचान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


मिल जुल सभी के हौसलो ने हासिल इसे किया ।


भारत के हर बशर का ईमान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


खुश नसीब है जो देश पर मर कर अमर हुए ।


वीरो की शहादत का अंजाम है पन्द्रह अगस्त ।।


 


अपने वतन का मजहब इंसानियत है फ़क़त ।


लहराते तिरंगे की मुस्कान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


आजादी का ये जश्न मुबारक सभी को हो ।


हर बशर का एक सम्मान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


सुशीला जोशी " विद्योत्तमा "


मुजफ्फरनगर


वीरेन्द्र सिंह वीर

क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


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तुम ऋषि अगस्त्य के वंशज हो


जो चुल्लू में सागर पी डाले,


पन्द्रह अगस्त के तुम मतवाले


जो दुश्मन के सपने धो डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


दाधीच की तुमको मिली विरासत


संधान-समर में दे अस्थि वज्र,


हर बार मिले क्यों तुझे नसीहत


तू तो काल को वश में कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


परशुराम के तुम सुत कहलाते


जन-विहीन जो धरा कर डाले,


मीरा की माटी से तुम्हें रज मिली


जो विष को भी अमृत कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


शून्य को तू-परिपूर्ण करे


व्योंम को 🕉️से भर डाले,


आर्यभट्ट सा तू युग दृष्टा


चाणक्य-चंद्रगुप्त घड़ डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


तू ही पार्थ, तू ही प्रताप


तू ही कर्ण का सामर्थ्य भरे,


तुझमें ध्रुव, एकलव्य भी तू


अभिमन्यु क्षत व्यूह को कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा 


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


गोविन्द के सपूतों की तुम्हें शपथ


है तेरी भुजा में शिवा-भगत,


आ जाए 'वीर' अपनी करनी पर


तू सागर का भी मंथन कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


           वीरेन्द्र सिंह ' वीर '


           म.न. ६१/३६२


           भारी पानी कॉलोनी


           भाभा नगर(३२३३०५)


           रावतभाटा, कोटा, राजस्थान


           


पवन गौतम बमूलिया

आज हिमालय की छाती 


की पीर सुनाने आया हूँ !


फिर से निकले कोई गंगा 


नीर बहाने आया हूँ ! 


लैला को मजनूं रांझा से


हीर मिलाने आया हूँ !


खण्ड खण्ड भारत की मैं 


तस्वीर दिखाने आया हूँ !


 


त्याग तपस्या और कुर्बानी 


हाय सभी बेकार हुई !


 


आजादी की मौज गुलामी 


सेज्यादा दुश्वार हुई ! 


===================


अब ना कोई चन्दरशेखर 


ओर ना राजगुरू होगा !


यवनो से लडने वाला ना 


झेलम वीर पुरू होगा !


जौहर के त्योहार तो जैसे 


नानी की बातें होगी !


आलम अंधकार का कायम 


हाँ ! काली राते होंगी !


 


आज खडी सीमा पर सेना


बेबस हो लाचार हुई!!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!


===================


राजनीति वाचाल हो गई


नेता हुए खूब मक्कार !


छीना झपटी हाथापाई 


और संसद हैै शर्मोसार !


क्या गाँधी ने इसीलिए 


थी खाई अंग्रेजों की मार !


बालतिलक ने माँगा था क्या 


ऐसा जन्म सिद्ध अधिकार !


 


मानवता जख्मी है और 


घावों से ये चीत्कार हुई!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!


================


हत्या चोरी और डकेती 


जाति धर्म वाला भूचाल !


किसने डाला दूध में खट्टेपन


का चुपके से कूचाल !


एक और रोटी के लाले 


उस पाले में मालामाल ।


भूख मिटाने की मजबूरी 


हवस भेडिए बने दलाल ।


 


हाय! यही कारण है फूलन सी


देवी बन खूंखार हुई! 


 


आजादी की की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!


===================


*राष्ट्रीय चिह्नो की स्थिति* 


===============


'हॉकी' हारी 'मोर' तडपता 


'बाघ' भागता जंगल से !


गुमसुम है मासूम 'तिरंगा' 


मंगल चिह्न अमंगल से !


'कमल' महकना छोड़ चुका है 


'राजभवन' है दंगल से !


'राष्ट्रगीत' और 'राष्ट्रगान' अब 


गाये जाते जिंगल से !


 


'बट' की छाया को तडपे 'राही' 


की करूण पुकार हुई!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!!


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रचनाकार-पवन गौतम बमूलिया।


अंता जिला बाराँ(राज)


 


कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी

स्वतंत्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा ।


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.......


 


अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरे शान की ।


ये बात आ खड़ी है अब तो तेरे स्वाभिमान की ।।


कटे नहीं मिटे नहीं झुके नहीं तो बात है ।


अपने फ़र्ज पर सदा डटे रहे तो बात है ।।


तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जाएगा ।


जो देश प्रति है फर्ज़ अपने फ़र्ज तू निभाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम......वन्दे मातरम.....


 


जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले ।


छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले ।।


भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गई ।


नही झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गई ।।


उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो ।


एक एक करके सबको देश से मिटाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.....


 


मिली हमें आजादी कितने माँ के लाल खो गए ।


हँसते हँसते भारती की गोद जाके सो गए ।।


आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें ।


ना भेद भाव मे बँटे वो साथ जो मिला इन्हें ।।


सौंप ये वतन गए उम्मीदें हमसे बाँध जो ।


संवार के उम्मीद उनकी देश को सजाये जा ।।


 


कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी"


धौरहरा लखीमपुरखीरी


विजयश्री वंदिता

रहे याद सदा भूले ना कभी, बलिदान उन वीर जवानो का 


मर मिटते है सीमा पर जो रहे मान उन वीर जवानो का 


 


आज मुख पर जो आजादी कि लाली ये हमने पाई है 


ये रंगत उनके लहू की है परिणाम है उनकी जानो का 


 


हम अपने घर पर अक्सर जो ये चैन की सांसे लेते है 


ये उनकी बदौलत संभव है करते जो वरन तुफानो का 


 


हम ये जो तिरंगा फहराते ये उन जानो की कीमत है 


ये शान जो उसकी सलामत है ये त्याग है वीर जवानो का 


 


है खड़ा हिमालय अडिग जो है पल पल का पहरेदार है वो 


वहां बिखरी पड़ी बर्फ पर है अनकही कहानी जवानो की 


 


करती हूँ नमन मै उन सबको पाए जो वीरगति को है 


नहीं कोई भी कीमत मुझ पर दे दू जो वीर जवानो को 


 


कहो लिखें वंदिता कैसे अब ये दर्द भरी पाती उनकी 


लिखा होता माँ भारती को प्रणाम लहू से जवानो का ।


 


विजयश्री 'वंदिता'


सुनीता सुवेंद्र सिंह

नन्ने नौनिहाल चले हैं, स्कूल


लेकर हाथ में तिरंगा और फूल


है ,आज इन्हें आजादी का दिवस मनाना


भारत का राष्ट्रीय गान है गाना


किसी ने धरा है गांधी वेष


किसी ने दिया जनसंदेश


मिलकर बदलेंगे भारत की तस्वीर


हम सब बनेंगे ऐसे वीर


भारत प्यारा देश हमारा


तिरंगा निराला है हमारा


सदा रखेंगे इसका मान


इससे ही है हमारी पहचान


भारत प्यारा देश हमारा


है हमें यह अति प्यारा


सैकड़ों वीर हुए कुर्बान


तभी तो मिला हमें


 यह आजादी का जहान


इनकी कुर्बानी है महान


करना है सदा इन पर अभिमान


भारत प्यारा देश हमारा


है हमें यह अति प्यारा।


 


सुनीता सुवेंद्र सिंह


५- जवाहर नगर खंदारी चौराहा


आगरा (उत्तर प्रदेश)


अर्चना बामनगया

रक्त शिराओं में बहता


भारत का स्वाभिमान है।


मैं उस भारत की बेटी हूँ


जहां जन्म लिए भगवान हैं।


पतित - पावनी धरती इस पर


महापुरुषों ने जन्म लिया।


शौर्य और साहस के बल पर


भारत को आजाद किया।


लाज तिरंगे की खातिर


कुर्बान हुए कई प्राण है।


मैं उस भारत की बेटी हूँ - - - - -


हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई


आपस में भाई भाई हैं।


इसके वीरों की गाथा


जन जन के मन में छाई है।


कभी दिवाली कभी ईद


कभी होली के त्योहार है


मैं उस भारत की बेटी हूँ - - - - -


गंगा यमुना सरस्वती


तन मन को पावन करती है।


तपोभूमि यह रिषि मुनियों की


रामायण को पढती है।


इस धरती की गोद में खेले


राम कृष्ण भगवान हैं।


मैं उस भारत की बेटी हूं - - - -


रूपा व्यास

ओ!मेरी जन्मदाता।


तेरी वजह से ही मैं बहुत कुछ पाता।


लेकिन तुझसे भी बढ़कर है,मेरे लिए भाग्य-विधाता।


वो,है,मेरी 'भारत माता'।


 


ओ!मेरी अर्धांगिनी।


तू,है,मेरी संगिनी।


तो 'भारत माता' है,मेरी सर्वस्व ।


जिसका अनुकरण करता पूरा विश्व ।।


 


ओ!मेरी बहना अभी है,राखी दूर।


तू,है बस रक्षा-सूत्र बाँधने में चूर।


मैं भी हूँ, मज़बूर।


'भारत-माता' की रक्षा के लिए मरना है मंजूर ।।


 


ओ!मेरे मार्गदर्शन पिता!


तुझसे है,मेरे जन्मों का नाता।


लेकिन मुझे मातृभूमि-प्रेम भाता।


क्योंकि हम-सब की है,एक 'भारत माता'।।


 


ओ!मेरी पुत्री, यदि मैं वापस न आऊं।


और देश-हित मिट्टी में मिल जाऊं।


तो रखना लाज तू ,मेरी बेटी।


बन जाना तू भी राष्ट्र-खातिर भारत माता की मिट्टी।।


 


नाम-रूपा व्यास,


पता-व्यास जनरल स्टोर, न्यू मार्केट, दुकान न.07,'परमाणु नगरी'रावतभाटा


जिला-चित्तौड़गढ़(राजस्थान)


ओ पी मेरोठा हाड़ौती

शहीदों को नमन 


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में बारंबार नमन करता हूं


भारत के वीर शहीदों को


नमन करूं उनकी उस धन्य जवानी को


उनके उस धन्य समर्पण को


है नमन मेरा उन माताओं को


जिन्होंनें अपने बेटे खोये


जिनकी पथराही आंखो ने


है रक्त - रक्त आंसू रोये


जिसने उनको पाला था


जो , जी भरकर रो भी न सके


जो कतरा कतरा मरते है


है पिता वो धन्य शहीदों के


हर रोज जो जीकर मरते है


है नमन मेरा उन विधवाओं को


जिन्होंनें अपना सब कुछ खोया


जब महेंदी वाले हाथो ने


सिंदूर स्वयं अपना धोया


नमन करू उन बच्चो और मासूमों को


जिनके कोमल से हाथो ने


कितनी मासूम निगाहों से


जब अग्नि पिता को दी होगी


क्या बीती होगी बहनों पर


राखी वाले उस शुभ दिन पर


जब देख़ वह रक्षा सूत्रो को


तब फूट - फूट रोयी होगी


है धन्य तिरंगा लिपट गया जो


उसके धन्य समर्पण पर


है नमन मेरा सो बार नमन


भारत के वीर शहीदों को


 


 ओ पी मेरोठा हाड़ौती कवि 


   बारां , राजस्थान


मोब -: 8875213775


रामानन्द सागर

ये तन भारती है,वतन भारती है।


लगे इसमें तन, तो वो तन भारती है ।।


 


दीन दुखियों की सेवा में आयें।


आश्रय विहीनों को,आश्रय दिलायें।।


 


लगे इसमें धन तो वो धन भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


कहें जो करें, कह कर फिर बदलें न ।


प्राण चलें जाये फिर भी कहना टले न ।।


 


टले न वचन तो वचन भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


देश की रक्षा में निज तन को लगायें।


 


हंसते हंसते शहीद हो जायें।।


 


मिले जो "तिरंगा" सागर वो कफ़न भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


रामानन्द सागर दरियाबाद बाराबंकी उ०प्र०


अशोक कुमार मिश्र 

यह नींव बनाई है जिन्होंने,


                करके जीवन कुर्बान अपना।


खुशहाली में ही रहें अपनें,


                देखे होंगे यही उन्होंने सपना।।


 


सोंचा भी नहीं होगा यह वे,


                जिसके लिए किया हूँ अर्पण।


हस्र उसका ऐसा भी होगा,


                बन न सकूँगा उसी का दर्पण।।


 


उतावले होंगे पा अधिकार,


                समझेंगे न अर्थ आजादी का।


ब्याख्यायें वह मन की कर,


                खोदने लगेंगे गढ्ढे बर्बादी का।। 


 


ज्ञानी 'पथिक' भी स्वार्थ में, 


                समझ न पाये वे मतलब को। 


स्वतंत्रता प्रतिबन्ध होती है, 


                भूल गया वह उस तलब को।। 


 


सीमाओं में है निखरते रुप, 


                 होते कुरुप जब तोड़ चलते। 


अक्ल ठीकानें लगते सभी, 


                 नशीहतें जैसे वे छोड़ चलते।।


 


मंथन करें आओ मिलकर, 


                  यह वही है क्या ? आजादी। 


जिसको मनाते हैं हम सब, 


                  होके निरंकुश यह आजादी।। 


 


                 


अशोक कुमार मिश्र 


सुगम पार्क, आसनसोल


सुनीता यादव

है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


भार सहकर तदपि आज जीवन दिया।


धैर्य रखकर मुसीबत रवाना किया।


मातृ रत्नावती का करें अनुगमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


पितृवत स्नेह संबल हमेशा दिया।


हो मुसीबत लड़ें वीर जीवन जिया।


आज प्यारे गगन पर फिदा है चमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


राष्ट्र के प्रेम बिन हैं अधूरे सभी।


देश से ही हुए आज पूरे सभी।।


हो सजग आज हम सब करें अब मनन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


   --सुनीता यादव


-- हरगाँव, सीतापुर


 -- 9918711020


रागिनी उपलपवार

ना रुके कदम ना रूकेंगे न हम


ना झुके कभी ना झुकेंगे न हम


देश के खातिर जीते हैं ,


देश पर मर मिटेंगे हम।


 


ना लड़ते कभी ना लडा़ते हैं।


पर दुश्मन के छक्के छुड़ाते है।


एटम बमों से डरती दुनिया


और राम का पाठ पढ़ाते हम।


 


ऋषियों की वाणी ,वेदों का ज्ञान


क्षमा दया और करके दान


तकनीकी ज्ञान से बढ़ती दुनिया


और मानवता का भाव जगाते हम।


 


प्रेम भाई चारा और सद्भाव


जीवन में देते सुख की छा़व।


भौतिकता से पीडित दुनिया


और ज्ञान का मार्ग दिखाते हम।


 


 


पता-, रागिनी उपलपवार,एम जी 20,फार्चुन इस्टेट फेस -2कोलार भोपाल मध्यप्रदे


डॉ दिवाकर दिनेश गौड़

कर लें राष्ट्र को नमन


चले देशभक्ति की पवन।


        राष्ट्र है तो मिलजुल कर सब


        प्रेम- शांति से रहते हैं


        राष्ट्र है तो लोग सुखी हैं


        अपने मन की करते हैं


        राष्ट्र है तो गौरव है


        राष्ट्र बिना कुछ भी नहीं


        राष्ट्र है तो जीवन है


        बिना राष्ट्र पल भी नहीं


है राष्ट्र ही चमन


कर लें राष्ट्र को नमन।


 


         राष्ट्र है तो सारे दुख


         छोटे, लघुत्तम लगते हैं


         राष्ट्र है तो कांटे भी


         फूल सुगंधित लगते हैं


         राष्ट्र है तो तिरंगा भी 


         उत्सव पर लहराता है


         हर नागरिक आजादी के


         गीत मज़े से गाता है


हों राष्ट्र में मगन


कर लें राष्ट्र को नमन।


चले देशभक्ति की पवन


कर लें राष्ट्र को नमन।


 


 


प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़


गोधरा (गुजरात)


मो- 9426387438


निभा राय नवीन

भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा, 


जिसकी धरती उगले सोना, सूरज करता उजियारा l


जिसके रज कण-कण मे संचित, स्नेहिल भाईचारा, 


पावन नदियाँ गंगा-यमुना, बहती है जलधारा ll


 


श्वेत, हरा, केशरिया पहने, झंडा ऊँचा रहे हमारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर मे सबसे न्यारा ll1ll


 


जहाँ नारी त्याग की मूरत हो, हर माँ ममता की सूरत हो,  


है रीत-रिवाजों का संगम, हर नर-नारी करते वंदन l


हर भाषा-भाषी मिलकर रहते, जैसे इंद्रधनुष के रंग, 


सागर जिसका चरण पखारे, उस भारत माँ का है दम्भ ll


 


जहाँ बुद्ध-विवेका ज्ञान चक्षु ले, धरती पर अवतारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll2ll


 


 जहाँ अतिथि को ईश्वर माना, छः ऋतुएँ लगे सुहाना, 


जहाँ ऋषि-मुनि का डेरा है, गुण-ज्ञान अनन्त बसेरा है l


जहाँ हर डाली पर सुन्दर चिड़ियाँ, गाए शाम-सवेरा, 


जहाँ नित-नूतन रश्मि प्रभा, हर लेती घोर अँधेरा ll


 


जहाँ देव-दनुज के दलन हेतु, मानव तन ले अवतारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll3ll


 


जहाँ सत्य-अहिंसा और धर्म का, पाठ पढ़ाया जाए, 


जहाँ गाँधी-गौतम बुद्ध पुरुष को, शीश नवाया जाए l


जहाँ रामायण और गीता से,जन-जन का गहरा नाता, 


 जहाँ दुराचरण शोषण विरुद्ध, आवाज उठाया जाता ll


 


जहाँ श्वेत, हरा, केशरिया में, सजता है जीवन सारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll4ll


 


जहाँ गौ माता की पूजा हो, नारी देवी सम् पूजनिया, 


मात्-पिता-गुरु चरणों मे, शीश नवाती है दुनिया l


सभ्यता-संस्कृति और स्नेह का अतुलित है भंडारा, 


नर-नारी के स्वर से फूटे, अविरल काव्य की धारा ll


 


जहाँ राम पुरुषोत्तम, केशव प्रेरणा स्रोत पधारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll5ll


 


गौरवमय इतिहास जहाँ का,वेद पुराण बखाना है, 


शौर्यवान सुत शरहद पर, मातृभूमि की शान है l


जँह नारी दुर्गा, झाँसी की रानी बनकर संहार करे, 


सती अनसुइया से ब्रम्हा,विष्णु,महेश स्तनपान करे ll


 


जँह वात्सल्यता यशोदा का, पाने को कृष्ण पधारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll6ll


                                     


नाम -"निभा राय नवीन"


स्थान - (चुनापुर, पूर्णियाँ), बिहार 


गीता सिंह 

भारत माँ का अभिमान बढ़े,


जब ख़ाकी सीना तान चले ।।


 


रात रात भर जागे खाकी,


दिन सड़कों पर काटे खाकी,


मिट्टी की द्योतक है खाकी,


मिट्टी से इसको मान मिले ।। जब खाकी सीना.....


यह संविधान की रक्षक है,


और कर्तव्यों की बोधक है,


जब मातृभूमि हो संकट में,


खाकी रंग फूल तमाम खिले।।जब खाकी सीना .....


खाकी फैशन परिधान नही,


धारण करना आसान नही,


यह लक्ष्य भेदने का प्रतीक,


है झंडे के अभिमान तले ।। जब खाकी सीना ...


माटी से नेह लगाती है,


मिट्टी से जुड़कर जीती है,


कर शपथ ग्रहण दायित्वों का,


आशा के दीप हजार जलें ।। ...जब खाकी सीना..


जब लिए तिरंगा धीर चलें,


खाकी में रंगे वीर चलें,


गाँधी के प्यारे तीर चलें ,


स्वर्णिम स्वप्नों के वितान तले।।जब खाकी .....


जय हिन्द कहा नेता जी ने,


सिंगापुर से ललकार उठी,


मतवाले वीर जवान चले,


गोरों के तोप कमान हिले ।।जब खाकी सीना..


हम भी ख़ाकी तुम भी खाकी,


जय हिन्द कहो भारत माँ की,


खाकी की ताकत देख देख,


अत्याचारी की चूल हिले ।।जब खाकी सीना...


 


गीता सिंह 


पता-सिविल लाइन,प्रयागराज


प्रिया चारण

आओ मिलकर मनाए 15 अगस्त ,


कहते है, गर्व से जिसे स्वंतत्रता दिवस ।


 


तिरंगे को नील गगन में लहराए ,


भारत के हर बच्चे के हाथो में तिरंगा थमाए ।


 


तीन रंगों से मिलकर जो बना है ,


अशोक चक्र जिसमे ,विकासशील विद्यमान है।


 


रंग इसके निराले जग से प्यारे ,


कफ़न तिरंगे सा सुशोभित वाह वाह रे,


 


बिना खड़क ,बिना ढाल किया था, चरखे ने कमाल,


पर इंक़लाब के नारे भी ,हिंदुस्तान से गूँजे थे,


भारत माँ के ,हज़ारो लाल ,फाँसी के फन्दों पर झूले थे।


क्या ? फिर इतनी सस्ती थी आज़ादी ,


जो हम इन वीरो के बलिदान को, 


स्वंतत्रता दिवस के बाद अनदेखा कर यूँ भूले थे ।


 


खेल नही था आज़ादी ,


शब्दों का केवल मेल नही था ,


इंक़लाब और अहिंसा का बेजोड़ द्वन्द था आज़ादी ।


 


जब सुहागन के लाल जोड़े का रंग सफेद हुआ था ।


सिन्दूर माँग का आँसू बन आँख से रुक्सत हुआ था।


जब अपनी माँ का आँचल छोड़, भारत माँ पर ,


लाल केसरी सा ,न्योछावर हुआ था।


 


 


फिर एक नई क्रान्ति आएगी, पुलिस अहिंसा अपनाएगी,


डॉक्टर की टीम इंक़लाब से कोरोना को भगाएगी,


कोरोना से आज़ादी दिलाएगी,


वर्दी रंग जो सफेद हुआ ,


ये ऐतिहासिक 15 अगस्त उन्हें भी सलामी दे जाएगी।


 


जश्ने आज़ादी एक कुर्बानी । जय हिंद


 


प्रिया चारण ,उदयपुर ,राजस्थान


8302854423


माधुरी पौराणिक

आजादी का जशन मनाये


आओ तिरंगे को फहराये।।


लहर लहर लहराए तिरंगा


 


जय भारती जय भारती


हम सब उतारे आरती


आजादी का गीत गाये


मिलकर सब भारती।।


^^


लहर लहर लहराए


तिरंगे को फहराये


नजर उठती जहा तक


हिमालय पर झंडा लपहराये।।


^^


वीर सपूतों का बलिदान


भारत की सुरक्षा का मान


करो शहीदों का सम्मान


नहि भूलेगा ये जहान


^^


जय भारती जय भारती


दुश्मन को संघारती


सीमा पर बैठा है प्रहर


देख रहा भारत भारती।।


^^


15 अगस्त के पावन दिन


सबको याद दिलाता है


वीर सपूतों के बलिदानों का


गाथा के गीत सुनाता है


^^


आओ आजादी का जशन मनाए


आओ तिरंगे को पहरायेB


वन्दे मातरम वन्दे मातरम।।


 


 माधुरी पौराणिक


सहायक अध्यपिका 


प्रा.वि.हस्तिनापुर झाँसी बड़ागाँव


अनुराग दीक्षित

अब हो वीरो ऐसा बसंत !


 


माता करती आर्तव पुकार


अरि शांति भंग करता अपार


सीमा उल्लंघन बार बार


अब शीश काटने हैं अनंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


है महाशक्ति का अरुण रंग


फड़के सैनिक का अंग अंग


रिपु का करने को अंग भंग


फिर रोक सकेगा कौन कंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


दुंदभी बजे फिर इधर तान


डमरू शिव तांडव का विधान


रणभेरी का हो अखिल गान


सीमा भारत की हो अनंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


हो वायु शक्ति या जल कमान


सब मिलकर रक्खें देश मान


गौरव का अपने रहे भान


हल सभी प्रश्न होवें ज्वलंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


अरि का मस्तक फिर डोल उठे


हल्दी घाटी फिर बोल उठे


रिपु का फिर शोणित पीने को,


पाताल भैरवी डोल उठे


एक बार दिखा दो दुनिया को,


भारत की ताकत दिग- दिगंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


रणभेरी से ही हल होंगे


इतिहास पूछता मूक प्रश्न


सिर हेमराज का बोल उठे


क़तरा क़तरा फिर खौल उठे


करना ही होगा आज तुम्हें,


इस छद्म युद्ध का सकल अंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


 


अनुराग दीक्षित


फर्रुखाबाद


लवी सिंह

हे भारत के वीर सपूतों,


नमन तुम्हें शत बार है।


 


दिखाकर जज़्बा देशभक्ति का,देशहित में 


लड़ने को वीर सिपाही रहता हरदम तैयार है


हे देश के वीर सैनिकों तुमको बारम्बार प्रणाम है।  


 


मौत की बिन फिक्र किये,


होठों पर सदा मुस्कान लिये,


देश हित में सीना तान


खड़ा देश का पुत्र महान


हे देशरक्षक हम सब करते तुम्हारा सम्मान। 


 


है देश में रौनक तुमसे ही,


तुमसे ही मांग का सिन्दूर है,


बेटी, बहन की लाज भी तुमसे है,


तुमसे माँ की ममता भरपुर है। 


 


हे मातृभूमि के वीर सिपाही,


तुमको सौ बार प्रनाम है


 


लवी सिंह


असिस्टेंट प्रोफ़ेसर 


इनवर्टीस विश्वविद्यालय 


बरेली


अनन्तराम चौबे अनन्त

लाल किले में फहराया था


तीन रंग का तिरंगा प्यारा ।


स्वतंत्रता पाई थी जब हमने


15 अगस्त का दिन था प्यारा।


 


आजादी पाने को वीरों ने


अपनी जान गंवाई थी ।


तभी तो देश में आजादी


15 अगस्त को पाई थी ।


 


लक्ष्मीबाई ने सबसे पहले


आजादी की लड़ी लड़ाई थी।


आजादी को पाने अंग्रेजों से


वो खूब लड़ी मर्दानी थी ।


 


स्वतंत्रता पाने को रानी ने


अपनी जान गंवाई थी ।


मशाल फूंकी थी आजादी 


की वो झांसी की रानी थी ।


 


भगतसिंह,सुभाषचन्द्र ने


आगे की राह दिखाई थी।


चन्द्रशेखर आजाद ने भी


आजादी की विगुल बजाई थी।


 


राजगुरू सुखदेव ने भी


मिलकर लड़ी लड़ाई थी ।


ऐसे वीर योद्धाओं ने


अंग्रेजों की नींद उड़ाई थी।


 


ऐसे वीर योद्धाओं ने देश


को आजादी दिलाई थी ।


फांसी पर चढ़कर भी


अपनी जान गंवाई थी ।


 


15 अगस्त 1947 को


स्वतंत्रता हमने पाई थी ।


सारा सच तो यही है भाई


वीरों ने जान गंवाई थी ।


 


जन्माष्टमी के दिन भगवान


कृष्ण की खुशियां भी मनाई थी।


सभी देश भक्तों ने मिलकर


जन्माष्टमी खूब मनाई थी ।


 


वीर शहीदों की कुर्बानी को


याद करके फिर दोहरानी है ।


स्वतंत्रता दिवस के शुभ दिन


को तिरंगी की शान बढ़ानी है ।


 


 अनन्तराम चौबे अनन्त


रश्मि लता मिश्रा

मैं हिंदुस्तानी


 


हिंदुस्तान मेरी जान,


 मेरी यही कहानी ।


फक्र मैं हिंदुस्तानी  


फक्र मैं हिंदुस्तानी।


 


ऊँचे पर्वत गहरी नदियाँ


बल खाता सागर है 


नदियों को कहते हैं माता 


पूजें पीपल जड़ है 


पावन गंगा माता का है ,


झर झर बहता पानी।


 फक्र में हिंदुस्तानी।


 


उत्तर ,दक्षिण, पूरब, पश्चिम 


मिलकर सारे एक हैं ।


एक बनाएं अपना भारत ,


सब के इरादे नेक हैं ।


 जात -पात और धर्म भेद की


हुई पुरानी कहानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


 सीमा पर तैनात हैं प्रहरी ।


अपनी आंख बिछाए।


 भारत माता को तड़पाने ।


गर कोई दुश्मन आये।


गांव घरों से निकल पड़ेंगे ।


बनकर हम बलिदानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


विश्व गुरु की राह चलाएं ।


भारत अपने प्यारे को ।


विश्व ताज सर पर रख वाएँ ।


भारत अपने न्यारेको ।


पूरी दुनिया के वतनो में


  भारत का नहीं सानी।


 फक्र मैं हिंदुस्तानी।।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी।


पंडित डीडी पाठक अनुराग वशिष्ट

चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा,


देश की रक्षा की खातिर सरहद पर लड़ने जाऊंगा।


 


सेना में शामिल होकर मैं भी रक्षक बन जाऊंगा,


दुश्मन देश की सेनाओ के खट्टे दांत कराऊंगा।


चुन चुन कर दुश्मनों को जहन्नुम में पहुंचाऊंगा।


भारत मां का बनकर सेवक देश का मान बढ़ाऊंगा।


 


कश्मीर से कंयाकुमारी तक तिरंगा मैं फैराऊंगा।


देश की आन की खातिर हंसकर बलिदान हो जाऊंगा। 


चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा।


देश की रक्षा की खातिर सरहद पर लड़ने जाऊंगा।


 


वीर शिवाजी राणा के पद्चिन्हों पर मैं चल जाऊंगा।


खंड खंड में बटे देश को अखंड भारत बनाऊंगा।


स्वामी जी के सपनों का विश्वगुरू भारत मैं बनाऊंगा।


देश की रक्षा की खातिर मैं कुरवानी दे जाऊंगा।


 


चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा।


देश की रक्षा खातिर शरहद पर लडने जाऊँगा।


 


पंडित डीडी पाठक अनुराग वशिष्ट


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 मधुरिम रिश्ते नित सुखद , हैं जीवन वरदान। 


अति कोमल नाजुक सतत , निर्भर नित सम्मान।।१।।


 


निर्भर हो रिश्ते मधुर , त्याग शील परमार्थ।


लघुतर जीवन तब सफल, रिश्ते हो बिन स्वार्थ।।२।।


 


घर बाहर समाज हो , चाहे देश विदेश। 


आपस के व्यवहार पर , रहते रिश्ते शेष।।३।।


 


रिश्ते हैं अनमोल धन , मधुरामृत उपहार।


सखा सहोदर पूत सम , जीवन का आधार।।४।।


 


नीति रीति नित प्रीति पथ , रिश्ते चले अघात।


सरल सहज औदार्यता , रिश्ते मधुर सुहात।।५।।


 


पलभर दुर्लभ जिंदगी , मधुरिम हो सम्बन्ध।


वाच सुभाष सुहास जन , हों रिश्ते तटबन्ध।।६।।


 


राष्ट्र तभी उन्नत शिखर , रिश्ते बिना सबूत। 


शान्ति प्रेम समरस सुखी , हों पड़ोस मज़बूत।।७।।


 


आकर्षण स्नेहिल हृदय , रिश्ते बिना प्रपंच। 


भातृ बन्धु पशु खग सखा , बिना रखे मन रंच।।८।।


 


छोटी सी भी भूल बस , रिश्ते बने खटास।


पल भर में दुश्मन बने , भूले सभी मिठास।।९।।


 


सब मिलकर खिलता निकुंज,पशु पादप खग वृन्द।


तब हो भुवि सुष्मित प्रकृति , रिश्ते सम अरविन्द।।१०।।


 


कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


नई दिल्ली


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे ज्योतिपुंज शत् शत् प्रणाम


हे ज्योतिपुंज ब्रह्म शत् शत् प्रणाम


लीला तेरी अपरम्पार


कहीं दृश्य तो कहीं अदृष्य 


भ्रम में खोया यह संसार।


 


तेरी अनुभूति से तेरा रुप बनाया


अगणित आकार बना बैठे


मानस मंदिर से दूर कहीं


तेरा घर द्वार बसा बैठे हैं।


 


हर चिंगारी तू अंगार बना


सौरभ बन फूलों का प्राण बना


ले रहे श्वास जो जड़ और चेतन


उसके रग-रग का रक्त संचार बना।


 


हे ज्योतिपुंज ब्रह्म शत् शत् प्रणाम


लीलाएं तेरी अपरम्पार


सर्वत्र व्याप्त छवि तेरी


अविनाशी ब्रह्म तू घट-घट वासी।।


 


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-40


 


चले मिलन जनकहिं रघुनाथू।


गुरु बसिष्ठ-लछिमन लइ साथू।।


    पाछे सकल समाजइ गयऊ।


    सचिव सुमंतु संग जे रहऊ।।


गुरु बसिष्ठ कौसिक ऋषि मिलि के।


करैं बिचार भविष-गति लखि के।।


    कीन्हा नमन राम कौसिकहीं।


    सिय-पितु नृप जनकहिं प्रति नवहीं।।


सिय जननी तब रानि सुनैना।


तुरत गईं जहँ रानिन्ह रहना।।


     सुख-दुख कह सभ समधिन्ह मिलि के।


      हरष-बिषाद नयन जल भरि के।।


जथा-जोग सभ जन मिलि भेंटहिं।


कहहिं-सुनहिं कलेस निज मेंटहिं।।


दोहा-राम-लखन दोउ भाइ मिलि, ऋषिहिं झुकावैं सीष।


        बामदेव-जाबालि सँग,कौसिक देहिं असीष।।


        आयसु पा मुनि अत्रि कै,भरत संग सभ लोग।


        चित्रकूट-कामद-छबी,निरखे भा संजोग ।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तीसरा अध्याय(श्रीकृष्णचरितबखान)-3


 


स्थिर चितइ जोरि निज हाथा।


प्रभु-चरनहिं नवाय निज माथा।।


    तजि भव-भय बसुदेव असोका।


    करन लगे स्तुति बिनु रोका।।


प्रकृति अतीत नाथ पुरुषोत्तम।


जानहुँ मैं प्रभु तुमहिं नरोत्तम।।


    नाथ रूप-अनुभूति अनंदा।


    दरस प्रभू कै नंदइ-नंदा।।


मात्र एक प्रभु बुद्धि-प्रमाना।


कहहिं सकल अस बेद-पुराना।।


     जगत त्रिगुनमय सृष्टी करहीं।


     नाथहिं प्रकृति जगत भर रहहीं।।


बिनू प्रबिषटहिं प्रभू प्रविष्टा।


अदृस रहहिं प्रभु जग कै स्रष्टा।।


     कारन-तत्त्व पृथक सभ रहहीं।


     पृथकहिं-पृथक सक्ति सभ अहहीं।।


मिलतइ पर षट दसहिं बिकारा।


तत्व-सक्ति-इंद्रियादिहिं सारा।।


     रचना करि ब्रह्मांडहिं नाथा।


     रहहिं अलख जग-तत्वहिं साथा।।


बुद्धिमात्र गुन-लच्छन देवहिं।


इंद्रिमात्र गुन बिषयहिं सेवहिं।।


    जदपि प्रभू कै उहहिं निवासा।


    पर नहिं दरस नाथ तहँ आसा।।


अंतरजामी,आतम-रूपा।


सत परमारथ नाथ अनूपा।।


     अजर-अमर अरु अलख-असीमा।


     प्रभुहिं अंस सभ जीव महीमा।।


देह-गेह अरु बाग-बिलासा।


साँच नहीं ए रखु बिस्वासा।।


     जदपि नाथ गुनरहित बिकारा।


      तदपि करहिं रचना संसारा।।


रच्छहिं-नासहिं तीनिउ लोका।


सकल प्रकास प्रभू-आलोका।।


     सत्व सुकुल प्रभु बिष्नुहिं रूपा।


     पोषहिं-सरजहिं नाथ अनूपा।।


रुधिर बरन रज ब्रह्मा बनि के।


रचहिं बिस्व प्रभु इहवाँ ठहि के।।


तमोगुनहिं प्रभु कृष्नहिं बरना।


रुद्र रूप बनि नासहिं रचना।।


     नाथ कृपालू सक्ति अनंता।


      मम गृह जनम लीन्ह भगवंता।।


तुमहीं प्रभो सकल जग-स्वामी।


करउ सँहार असुर नृप नामी।।


      सुनहु नाथ ई कंसइ पापी।


       तव अवतार सुनत संतापी।।


धावत इहँ आई लइ सस्त्रा।


मुक्त बृषभ इव परम सुतंत्रा।।


सोरठा-भ्रातन्ह तव सभ जेठ,हता कंस निर्मम हृदय।


           सुनि अवतारहिं श्रेष्ठ,प्रभु सन कह बसुदेव अस।।


           कहे मुनी सुकदेव, सुनहु परिच्छित ध्यान धरि।


          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


सुनील कुमार गुप्ता

बदल गये


"रास्ते वही जीवन के,


यहाँ कदम बदल गये।


जीवन के पथ में साथी,


फिर साथी बदल गये।।


पत्थर की दीवारो के,


यहाँ रूप बदल गये।


कही भक्त कही भगवान,


इस जग में बदल गये।।


भगवान तो वही साथी,


उनके रूप बदल गये।


पहन चोला भक्ति का फिर,


यहाँ भक्त बदल गये।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


 


नूतन लाल साहू

बनावटी दुनिया


स्मार्ट दिखना और स्मार्ट हस्ताक्षर बनाना


एक कला है, जो हर किसी को नहीं आता है


मेरे पास एक खबर आई, पता नहीं


सच है या किसी ने उड़ाई है


एक व्यक्ति के साथ,बुरा घात किया


एक पागल कुत्ते ने,उन्हें काट लिया


पड़ोसी की आवाज आई,कपड़े देख शक था,भाई


स्मार्ट दिखना और स्मार्ट हस्ताक्षर बनाना


एक कला है, जो हर किसी को नहीं आता है


फिल्म की हीरोइन,प्लास्टिक सर्जरी कराते हैं


हाथ हिलाने और कमर मटकाने का ही दाम


हजारों नहीं,लाखो में कमाते हैं


लोग हरिनाम छोड़,उन्हीं का गुणगान गाते हैं


स्मार्ट दिखना और स्मार्ट हस्ताक्षर बनाना


एक कला है, जो हर किसी को नहीं आता है


विश्व सुंदरी का,प्रतिस्पर्धा होता है


खिताब आते ही,हीरोइन सा छा जाता है


विश्व सुंदरी, ऐश्वर्या राय को ही देखो


पहले उन्हें,कहा कोई जानता था


सदी का महानायक भी, बहु बनाने आतुर हो जाता है


स्मार्ट दिखना और स्मार्ट हस्ताक्षर बनाना


एक कला है, जो हर किसी को नहीं आता है


स्मरण शक्ति कैसे बढ़ाये


इस विषय पर एक किताब लिखी


कव्हर स्मार्ट था,लिखने वाला कवियित्री थी


बाजार में आते ही,किताब खूब बिकी


शोधार्थी अपनी शोध कथा,सबको बताता है


सुनकर दर्शक, कुंभकर्णी नींद में सो जाता है


स्मार्ट दिखना और स्मार्ट हस्ताक्षर बनाना


एक कला है, जो हर किसी को नहीं आता है


यह सच है कि,स्मार्ट दिखना चाहिए


पर हस्ताक्षर बनाने की कला,जरूर आना चाहिये


जो दोनों कला जानता है,वह इस जग में महान हैं


क्योंकि घर के बाहर,वो ही सच्चा इंसान है


स्मार्ट दिखना और स्मार्ट हस्ताक्षर बनाना


एक कला है, जो हर किसी को नहीं आता है


यह मेरा निजी विचार है


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

घिसाई बाद में करना 


                अभी रख दो वहीं चंदन।


उठा लो गोद बेटे को


                 बहुत ही कर रहा क्रंदन।


 


न छोड़ो यूं उसे देखो


                    बहुत मासूम बच्चा है,


सुना कर बाल क्रंदन तुम


              बढ़ाओ मत मे'री धड़कन।


 


हजारों बार समझाया 


                  नहीं तुम ध्यान देती हो,


भला फिर क्यों नहीं होगी


                हमारे बीच कुछ अनबन।


 


बुरा क्यों मानती कहता 


                   भलाई के लिए हरदम,


खिला है फूल किस्मत से 


                अभी तो एक ही आॅ॑गन।


 


अगर मुरझा गया तो 


                जी न पाऊॅ॑गा सुनो मैं तो, 


न कहना फिर गए क्यों


          छोड़कर मुझको मे'रे साजन।


 


कहा तुम मान जाओ तो 


               रहेंगे सुख से' ही हम-तुम,


दमकती तुम रहोगी और 


                     दमकेगा सदा कंगन।


 


गले में बाॅ॑ह डालोगी 


                    सदा तुम प्यार से मेरे,


बजेगी हाथ की चूड़ी 


             सदा ही प्यार से खन-खन।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

इससे बड़ा न धर्म कोई...


 


भूखे को भोजन पिला प्यासे को पानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी


 


मन्दिर मस्जिद जाकर पढले मंत्र नमाज


चारों धाम की यात्रा कर बना नया समाज


 


संतुष्ट नहीं नर तुझसे व्यर्थ है जिंदगानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी


 


दीन हीन का बन आश्रय हर उनके संताप


दिल दुखाकर किसी का मत ओढ़े तू पाप


 


परोपकार ही मानव है तेरी सच्ची कहानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी


 


व्यर्थ गया तेरा जीवन द्वेष और द्वन्द में


मानव को मानव न समझा तूने घमंड में


 


झूठी ही शान में बीती मूरख तेरी जवानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी


 


बन मसीहा धरती पे हर ले पर पीड़ा


दीन दरिद्र की सेवा में आये न ब्रीड़ा


 


अपने सदकर्मों की छोड़ ऐसी निशानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी।


 


सच्चिदानंद रूपाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


अर्चना पाठक

श्री राम अर्चन


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 राघव वंश सभी ने माना।


 रामचंद्र तेजस्वी जाना ।।


 गुण सर्वज्ञ सरल मृदुभाषी।


 चौड़ी छाती शत्रु विनाशी।।


 


रामभक्त के चरण पखारूँl


तेरे सम्मुख अब मेँ हारूँll


कामक्रोध से मुक्ति दिलाओl


राम नाम का पेय पिलाओll


 


अर्चना पाठक


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

1-जिंदगी एक संग्राम है आशा का परचम लहरा जिंदगी के कदमों के


निशाँ है।।


 


जीवन एक संग्राम है 


दुख ,दर्द ,धुप और छाँव है


आशा,निराशा रेगिस्तान और तूफ़ान है।।


 


आंसू ,गम ,मुस्कान है


शोला और शैलाभ है


जीवन में आस्था हथियार है


विश्वाश विजेता का व्यहार है।।


 


जिंदगी का होना विजेता का


आशा का परचम लहरा


जिंदगी जवाँ ,जोश की शान है


जवां ,जज्बा जिन्दा जिंदगी


पहचान है।।


 


आशाओं की अवनि ,आरजू का आसमान नौजवान है 


आशाओं का परचम लहरा


वर्तमान की चुनौती कर रहा स्वर्णिम इतिहास का निर्माण है।।


 


जिंदगी के धुप ,छाँव का योद्धा


तपती रेगिस्तान के शोलो की अग्नि पथ को पथ विजय में बदलता अवरोध सारे तोड़ता आशा का परचम लहरा समय काल की जान की मान जिंदगी जिन्दा नौजवान है।।


 


2- नौजवान आशा का परचम लहरा--


 


 मर्द मूल्यों का ,दर्द का एहसास


 नहीं तमाम दर्दो को दामन में समेटे लड़ता जिंदगी का संग्राम


आशा का परचम लहरा


दुनियां में रौशन नाज जिंदगी


नौजवान है।।


 


 तपिस के अंगार को शबनम की


बूँद में तब्दील कर दे सर्द के बर्फ


को अपनी ज्वाला से अंगार कर दे


वक्त को मोड़ दे आशा का परचम


लहरा निराशा को विश्वाश में बदलता जिंदगी के जंग का जाँबाजनौजवान है।।


 


नज़रों में मंज़िल मकसद आंसू


भी मंजिलों का अंदाज़ है मंजिल


मकसद के कारवां का अकेला मुसाफिर ज़माना देखता चलता 


उसकी राह है हर हाल में अपनी


मकसद मंजिल की मुस्कान आशा


का परचम लहरा जिंदगी का अंदाज़ नैजवान् है।


 


अपने हद हस्ती को निर्धारित करता दुनियां के दामन की खुशियों का तरन्नुम तराना


आशा का परचम लहरा जज्बा


ज़माना की आन बान नौजवान


जिंदगी जहाँ में होने का वाहिद आगाज़।।


 


3--मुश्किलों का विजेता नौजवान आशा का परचम लहरा----


 


 हर जहमत से दो दो हाथ 


हर मुश्किल की माईयात उठाता


दुस्वारी की महामारी को दुकडे


टुकड़े करता अंधेरो की चाँदनी


सूरज चाँद आशा का परचम लहरा वक्त की अपनी इबारत


का नौजवान।।


 


तूफानों से लड़ता लडखडाती


कश्ती का मांझी उम्दा उस्ताद


जिंदगी के भंवर मैं नहीं उलझता


मझधार में मौके का पतवार आशा का परचम लहरा लहरों


को चीरता भवरों से निपटाता


जिन्दंगी का जांबाज नौजवान।।


 


जिंदगी वही जिन्दा हर सवाल


का रखता हो जबाब आई किसी


भी सूरते हाल से टकरा जाने की


मस्ती का माद्दा आशा का परचम


लहरा दिलों में बुझाते रोशनी का चिराग नौजवान।।


 


ना जज्बा ना जज्बात ना 


हिम्मत ना हौसलों की उड़ान


ना इरादे फौलाद हो ना अपने


वक्त कदमों की शान पहचान


मुर्दा उस जिंदगी को जान।।


 


जिन्दा जिंदगी हिम्मत की जागीर


हौसलो का नया आसमान इरादों


की बुलंद इबादत की इबारत आशा का परचम लहारा जिंदगी


का विजेता जहाँ में गुजने वाली


आवाज का नौजवान।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


निशा अतुल्य

बिंदिया 


छूट जाएं कुछ पूर्वाग्रह 


बिखर जाएं कुछ थोपे हुए चिन्ह


जो गुलामी के से लगते हो 


तब जो बिंदिया चमकेगी 


तेजस्वनी होगी वो 


सूर्य की तरह निखरेगी ।


सूर्य छूप जाता है 


समय पर अपने


बिंदिया की चमक


हर पल बिखरेगी।


कभी बन चाँद देगी शीतलता


कभी प्रखर सूरज सी निखरेगी


जब हो जाएगा खत्म भेद 


स्त्री पुरुष का समाज से ,


सच मानो 


उस दिन स्त्री के भाल पर


एक ऐसी बिंदिया चमकेगी 


जो घर ही नही 


जग सारा रोशन करेगी ,


क्योंकि वो उसके 


अंतःकरण से उपजेगी


किसी विवशता की शिकार नहीं होगी । 


उन्नत भाल 


स्वतंत्र विचार 


समानता के कदम


भरता विश्वास 


बनाएंगे एक नया समाज 


जिसमें स्त्री शृंगार 


उसके अपने होंगे 


बंधनो में बंधे नही 


कोई नही पौंछ सके 


जहाँ 


उसकी चमकती बिंदिया


या आँखों का काजल ।


आज खंडित करती स्वयं को


करती तिरस्कार 


हर शृंगार का नारी 


क्यों 


स्वयं ही


थक गई है बंधनो का 


बेमानी बोझ ढोते ढोते


चाहती है उतार फेंकना 


अपने ही आपसे ।


अपनाएगी स्वयं से ही


अपने आत्मविश्वास को


बिंदी, चूड़ी, कजरा, गजरा 


किसी के नाम का नहीं


सजायेगी स्वयं के मनोभाव को ।


तब जो बिंदिया चमकेगी


उन्नत भाल पर


जगमगाएगी सकल संसार पर 


जैसे क्षितिज में उदय होता 


सूरज


कर देता है सिंदूरी पूरे आकाश को ।


 


निशा अतुल्य


डॉ बीके शर्मा 

श्री कृष्ण उवाच:


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है पुरातन 


जो सनातन 


है अजन्मा 


शोक उसका क्या करें |


 


जलता नहीं 


जो गलता नहीं 


जो है अविनाशी


शोक उसका क्या करें |


 


कटता नहीं 


जो सूखता नहीं 


जो है अच्छेद


शोक उसका क्या करें |


 


गिरता नहीं 


जो मरता नहीं 


है अव्यक्त 


शोक उसका क्या करें |


 


अर्जुन उवाच:


------------------


बीच भंवर में जीवन नैया 


बीच भंवर में फंसा खेवैया


तुम कहते हो आओ किनारे 


क्यों दूर खड़े हो देख रवैया


 


करुणा घेरे व्याकुल उर को 


दुख घेरे कंठ से सुर को 


नहीं ज्ञात मुझे अपना पराया 


नहीं जानता सुर-असुर को 


 


कृष्ण उवाच:


-----------------


तुम तो पार्थ हो मेरे प्यारे 


छोड़ो मोह और रिश्ते सारे 


जो जन्मा नहीं उसे क्या मारोगे 


जीता क्या है जो तुम हारोगे


क्या साधन तुम साथ में लाए 


क्या साधन तुम ले जाओगे


 


हो जाओ सजग तुम


"पार्थ" ओ मेरे 


धर्म युद्ध है 


सामने तेरे


 


 अर्जुन उवाच:


-------------------


 


कर्ता क्या कर्म क्या


अकर्म क्या है |


धर्मा क्या धर्म क्या 


अधर्म क्या है ||


 


क्यों नहीं कर्म मेरे 


दिव्य निर्मल |


क्यों काम राग भय


बनाते निर्बल ||


 


क्यों घिरते मुझे यहां 


वर्ण भेद हैं |


आप हैं आप में


चारों वेद हैं ||


 


क्यों कर्म में 


अकर्म मैं देखता नहीं |


क्यों अकर्म में 


कर्म मैं सोचता नहीं ||


 


आप अविनाशी हैं


आपसे सर्व है |


आपसे शून्य है 


आपसे ही गर्भ है ||


 


फिर कर्म लिप्त हूं


मैं यह जानकर |


क्यों रहता अधर्म


भृकुटी तानकर ||


 


जग आश्रित है


आप आश्रय हैं |


अधर्म है अकर्म है 


आप तो श्रेय हैं ||


 


करें भस्म कामना 


राग द्वेष मेरे |


आप तो जानते हैं


सब भेष मेरे ||


 


 श्री कृष्ण उवाच:


-----------------------


 


 


क्या पाया है 


जो दिया है तुमने |


क्या ग्रहण किया 


क्या त्यागा तुमने ||


 


यह तो बस 


साधन है तेरे |


तुम तो प्रिय


"पार्थ" हो मेरे ||


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


विनय साग़र जायसवाल

भड़कते शोले बुझा दे साक़ी


शराबे-उल्फ़त पिला दे साक़ी


 


सुराही पैमां छलक न जायें


लबों से मेरे लगा दे साक़ी


 


ये तशनगी जान ही न लेले


तकल्लुफ़ों को भुला दे साक़ी


 


पियूं मैं जी भर के आज सहबा


समाँ यूँ रंगी बना दे साक़ी


 


जिधर भी देखूँ नज़र तू आये


तमाम पर्दे हटा दे साक़ी


 


नशा रहेगा ये उम्र भर तू


निगाहे-मय भी मिला दे साक़ी


 


दुआएं तुझको ये देगा साग़र


तू जामो बोतल सजा दे साक़ी


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


तशनगी--प्यास


सहबा-शराब


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चितचोर


चित को चुरा के मेरे,


किस देश जा बसे हो?


तुम तो बड़े हो छलिया-


किस प्यार सँग लसे हो??


 


बंसी बजा-बजा कर,


यमुना-किनारे सैयाँ।


वादे किए बहुत थे,


बैठे कदंब-छैंयाँ।


कसमों को भूल कर के-


किस जाल में फँसे हो??


 


अब तो पता बता दो,


चितचोर ऐ सँवरिया।


किस राह से ये पहुँचे,


तेरी गली बँवरिया?


तुझको निकालूँ आ के-


जिस कीच में धँसे हो।।


 


तेरा-मेरा ये नाता,


सदियों पुराना साजन।


तेरे हृदय की मलिका,


तुझको पुकारे राजन।


चितचोर मेरे छलिया-


क्यूँ दिल मेरा झँसे हो??


 


आ जाओ मेरे कान्हा,


तुझको पुकारे राधा।


निर्मल-विमल व सच्चा,


समझे न प्यार बाधा।


हर लो वियोग-विष को-


बन नाग जो डसे हो।।


       चित को चुरा के मेरे,


       किस देश जा बसे हो??


               © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


एस के कपूर श्री हंस

 हम आज कहाँ जा रहे हैं।


 


मैं एक मस्त अल्हड़ बाला, अति


आधुनिक कन्या हूँ।


मैं सुसंस्कृत, संस्कारी, सुकन्या नहीं


धन दौलत लिप्त धन्या हूँ।।


प्यार,धोखा, पैसा, ब्यूटी, ग्लैमर


ही मेरे रोज़ के शगल हैं।


शॉपिंग मॉल सैर सपाटे मेरे जीने के तो अंदाज़ ही अलग हैं।।


शादी विवाह के बंधन मेरे लिए कोई मायने रखते नहीं हैं।


कोई भी सामाजिक रस्मोरिवाज मुझे


रोक सकते नहीं हैं।।


फेरे,विदा,चूड़ा, कंगन, सिंदूर, मेहंदी यह शब्द मेरे लिए पुराने हैं।


मैं सुपर अल्ट्रा मॉडर्न लड़की मुझे तो


ऐशो आराम ही बस पाने हैं।।


बिन फेरे हम तेरे, हमारी इस नई हाई


सोसाइटी का चलन है।


पार्टी ड्रग मौज मस्ती, में ही हमारा


जीवन मरण है।।


बिंदास अंदाज़ नैन मटक्का ही रोज़


हमारी जिंदगी है।


इंस्टाग्राम फोटोज, चैट ,से ही होती हमारी बन्दगी है।।


जलेबी सी मीठी हूँ ,पर ज्यादा अंदर विष हाला है।


आवश्यकता होती तो ओढ़ लेती हूँ, भारतीयता का दुशाला है।।


बिन शादी के भी हम ,साथ साथ घर में रहते हैं।


हमारे उच्चवर्गीय समाज वाले, इस को ही ठीक कहते हैं।


यूँ ही नहीं हमारी सोच ,अति आधुनिक


कहलाती है।


आज़ाद खयाल इसको, लिव इन रिलेशनशिप बतलाती है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


डाo सम्पूर्णानंद मिश्र

कहां से लाऊं


 


आज दिहाड़ी नहीं मिली


रोटी कहां से लाऊं 


अरी, पगली तुम लोगों 


को कैसे खिलाऊं 


बिकने के लिए तो 


गया ही था ‌


बीच चौराहे पर


खड़ा ही था 


किसी के द्वारा 


मैं नहीं खरीदा जा सका 


आज इन हाथों में 


एक भी पैसा नही पा सका 


आज दिन भर नहीं खा सका


किसी ने देखा भी नहीं 


सबकी नज़रों में झांका 


सबने मुझे घूर कर ताका 


मानों मैं कोई अपराधी हूं !


  बाबूजी- बाबूजी


 कह-कहकर गिड़गिड़ाया 


सब वहां से भाग खड़े हुए


मैंने कहा, आज ऐसा क्यों है


जो देख रहा हूं वैसा क्यों है


किसी एक पढ़े लिखे 


मज़दूर ने कहा, 


जब तक कोरोना रहेगा


तब तक यही हालात रहेंगे 


इस महामारी मैं हम लोगों को 


छटपटाते हुए भूख का करोना


ऐसे ही मार डालेगा 


इन रसूखदारों का क्या


इनके घर के चूल्हे


  तो हंस रहे हैं 


इसीलिए इनके


 चेहरे पर हंसी है


हम लोगों का क्या 


अगर कुछ दिन


 ऐसे ही रहा 


तो हम लोग 


थाली और ताली बजाने लायक 


भी नहीं रह जायेंगे ।।


 


डाo सम्पूर्णानंद मिश्र


सुनीता असीम

नाम होंठों पर तेरा ही रह गया।


ख्वाब का था इक महल जो ढह गया।


****


देखकर भी जुल्म तेरे हमनशीं।


मन मेरा था बावरा जो सह गया।


****


कुछ नहीं रक्खा दिलों के मेल में।


हिज्र का मुझसे हरिक पल कह गया।


****


जो बचा मुझमें रहा था तू कहीं।


आंसुओं के साथ वो भी बह गया।


****


इंतिहा थी दर्द की जितनी रही।


दिल कराहों से उसे भी कह गया।


****


सुनीता असीम


मदन मोहन शर्मा सजल

धुँआ धुँआ सी जलती रही जिंदगी,


खून कतरा बिखरती रही जिंदगी,


 


हजारों ग़म लिये दिल की पनाह में,


लबों पे हँसी' सँवरती रही जिंदगी,


 


करवटें बदलती रही हसीं यादें, 


बेखुदी में महकती रही जिंदगी,


 


टूटती गई मिलन की तमाम आस,


ख्वाब दरिया में' पलती रही जिंदगी,


 


जिंदगी न होती न होता इश्के' ग़म,


सोचकर हाथ मलती रही जिंदगी।


 


मदन मोहन शर्मा सजल


कोटा (राजस्थान)


डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

विस्थापन एक त्रासदी


 


चीखें, चिल्लाहटें


   करुण क्रंदन 


जैसे जायज़ शब्दों से


  निकले स्वर भी


इक्कीसवीं सदी की सड़क पर


   प्रजनन स्त्रियों की


  समग्र पीड़ाओं को


न्याय दिलाने के लिए


मुकम्मल साक्ष्य नहीं है


       क्योंकि


किसी स्त्री पर 


नाज़ायज संतति द्वारा हमला


उतना ख़तरनाक नहीं है


जितना उसके पाले स्वप्न को 


      गिद्धों सदृश


 नोंच- नोंच कर भक्षण करना 


   वर्तमान साक्षी है 


  यह बीमारी वैश्विक है


 इसने न जाने कितनों को मारा


     कितनों को तोड़ा


        कितनों के मुंह को कूंचा


        उस सांप की तरह 


     जो छटपटाते हुए 


      दम तोड़ देता है


        घुप्प अंधेरों के 


     भयानक जंगलों से निकलकर


     जो कभी बाहर की रोशनी में 


      पुनः न कभी नहाया हो


     कितनी आशाओं के शलभ


     वापसी की लौ में जर गए


     कितनों के सपने मर गए


     आत्माएं भी दुःखी हैं


      ग्राम- देवताओं के 


   ‌‌ शरीरों को त्यागकर 


    रेल की पटरियों पर


    न‌ जाने कौन सी काली छाया 


   आज जीवित आत्माओं 


      को डरा रही है 


    अपनी बेगुनाही का


    पुख्ता सबूत मांग रही हैं 


    इन छायाओं को 


  इतना डरा हुआ नहीं देखा गया 


 अपने ही नीड़ में आने से


    पखेरू भी घबराए हैं 


    अपना- अपना आशियाना भी आज पराया सा उन्हें लग रहा है


  उनमें जलता हुआ चूल्हा 


   बेगाना सा लग रहा है


धधक रही प्रत्याशा की लकड़ियां


   न जाने कब बुझ जायेंगी 


    शेष ज़िन्दगी की 


अंतिम आशाओं की सूई 


  कब रुक जायेगी


साहब! यह महामारी 


तो जरूर दूर हो जायेगी


लेकिन विस्थापित हुए 


लंगड़े लूलों की ज़िंदगी 


 क्या फिर पटरी पर आ पायेगी ?


 


 


डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र 


संजय जैन

तेरे चाहाने वालो के,


किस्से बहुत मशहूर है।


तेरी एक झलक के लिए,


खड़े रहते है लाइन से।


चेहरा छुपाना दुपट्टे से


लोगो की समझ से परे है।


कैसे देख सकेंगे वो तुझे,


खुले आसमान के नीचे।।


 


किसी पर तो तुम्हारा,


दिल आ रहा होगा।


धड़कने दिल की तेरी,


निश्चित बड़ा रहा होगा।


पर बात दिल की तुम,


व्या कर नही पा रहे हो।


मन ही मन जिसे चाह रहे हो,


उसे अपनी चाहत बता पाये हो।।


 


देखते देखते भी प्यार होता है।


पत्थरदिल भी प्यार के लिए पिघलता है।


कमबख्त दिल भी ऐसा होता है,


जो किसी न किसी पर तो फिसलता है।


और विधाता की बनाई जोड़ीयों का,


इस संसार में मिलन होता है.....।।


 


जय जिनेन्द्र देव


संजय जैन (मुम्बई)


शिवांगी मिश्रा

जग का मेरा प्यार नहीं था ।


 


प्रेम दीप में जलते जलते ।


प्रेम आश में पलते पलते ।।


ह्रदय किया था तुम्हें समर्पित , साधारण उपहार नहीं था । (१)


 


जग का मेरा प्यार नहीं था ।।


 


नयी किरण थी खिली खिली सी ।


उठी लहर थी मिली मिली सी ।।


तुम पर जीवन किया था अर्पित , गहनों का श्रृंगार नहीं था । (२)


 


जग का मेरा प्यार नहीं था ।।


 


तेरे मिलन की आशाओं में ।


दीप जला रक्खे राहों में ।।


भला मेरा अनमोल प्रेम ये , क्यूँ तुमको स्वीकार नहीं था । (३)


 


जग का मेरा प्यार नहीं था ।।


 


शिवांगी मिश्रा


धौरहरा लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


डॉ0 रामबली मिश्र

फिर भी बहुत जरूरी पीना


 


भोजन का है नहीं ठिकाना।


फिर भी बहुत जरूरी पीना।।


 


मन कहता जीना या जी ना।


पर देखो पीने का सपना।।


 


बीबी-बच्चों की मत सुनना।


रोटी की मत चिन्ता करना।।


 


पीने से बस मतलब रखना।


फटेहाल ही जीते रहना।।


 


लगा हुआ है जीना मरना।


इससे कभी न विचलित होना।।


 


जीने का मतलब है पीना।


भले झोपड़ी में ही रहना।।


 


मेहनत करके पैसे पाना।


पी कर सायं घर को आना।।


 


मुँह से बदबू भले उगलना।


फिर भी आवश्यक है पीना।।


 


भले राह में गिरना-पड़ना।


फिर भी आदत नहीं छोड़ना।।


 


भले कर्ज लेकर हो पीना।


या पत्नी को गीरो रखना।।


 


भूजी भाँग भले घर में ना।


फिर भी जीने को है पीना।।


 


सूदखोर की गाली सुनना।


जीवन को ही पीते रहना।।


 


रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नीरजा बसंती गोरखपुर

परिचय


नाम -नीरजा बसंती 


पद -स. अ. 


विभाग -बेसिक शिक्षा विभाग 


निवास -रुस्तमपुर, गोरखपुर


 


कविता 1


हे, दिव्य प्रभा अभिनन्दन, 


हे, दिव्य दिवस अभिनन्दन, 


हुई अयोध्या पुनः दिव्यमय, 


हे, राम आपका अभिनंदन !


है कोटि -कोटि अभिवंदन !!


 


नवल प्रात की आभा से, 


सरयू की पावन धारा से, 


भावों के पूर्ण समर्पण से, 


हे, दशरथ नंदन अभिनंदन !


है कोटि -कोटि अभिवंदन!!


 


विह्वल, अहलादित है जन -जन, 


पूरित आशा सज गए स्वप्न, 


अनगिन दीप जले मन -मन, 


हे, सियाराम शुभ अभिनंदन !


है, कोटि -कोटि शुभ अभिवंदन !!


 


दिव्य भूमि का पूजन दिवस, 


विजय दिवस -सा खिला हर्ष, 


मंगल, पावन, सुखद प्रहर, 


हे!परम् पुरुष, हे !पुरुषोत्तम, 


हे, राम आपका अभिनंदन !


है कोटि -कोटि अभिवंदन !!


 


नीरजा बसंती 


05/08/2020


 


कविता 2


नव नेह--


 


 


नैनो में 


नव नेह सजे 


हिय, हर्षित 


अभिलाषित।


दिवा, उमस 


शीतलता, सरस।


सब समतल 


परिभाषित !!


दृढ़ संकल्पित मन 


चले निरंतर कंटक पथ, 


फिर भी सुखमय 


लगे प्रहर 


क्षण-क्षण हो 


अह्लालादित !!


छूने को 


अक्षय आकाश 


कौतुहल मन उड़े उड़ान 


अति उमंग 


उल्लासित !!


रवि द्युतिमा से 


आयुष्मान, 


जीवन ज्योति प्रसार, 


प्राणो को 


नव संचय दे, 


लक्ष्य अटल हो 


ज्योतिर्मान !!


 


नीरजा बसंती 


29/6/2020


 


कविता 3


!!!मिट जायेगा गहन तिमिर यह !!


(कोरोना महामारी के संदर्भ में )


 


 


सहमी सी है वसुधा अपनी,


डरा हुआ अम्बर है, 


मुश्किल में है ये जन जीवन, 


कांप रहा हर मन है !


 


हवा के झोंके हुए विषैले, 


स्पर्श में है बीमारी, 


श्वास की घड़िया दुभर हो गयीं, फैली है महामारी !


 


मंदिर मस्जिद बंद हो गए, 


खुले हैं श्मशानों के द्वार, 


खुशियों पर पड़ गयीं बेड़िया, 


बनी है विपदा पहरे दार !


 


प्रलयनाद सी यह महामारी, 


जनमानस पर भारी, 


मानव जीवन लील रही, 


यह 'पशुओं की बीमारी ' !


 


विश्व युद्ध -सा द्वन्द चल रहा, 


हर जर्रे -जर्रे में, 


हुए अचंभित सोच रहे हैं, 


मृत्यु छिपी कण- कण में !


 


बड़े -बड़े विकसित देशों पर, 


छाई लाचारी -सी, 


दिखे नहीं कोई उजियारा, 


दुनिया बेचारी -सी !


 


विश्व पटल के विकसित देश, टिक न सकें इस रण में, 


जो अपना डंका बजा रहे थे, 


समृद्धि और बल में !


 


जो जितने विकसित थे, 


वे उतने ही बर्बाद हुए, 


पर अपनी 'संस्कृति' के बल पर, 


हम सबकी मिसाल हुए !


 


'संयम' और 'सामर्थ्य' छुपा है, 


देश के जनमानस में, 


सक्षम और समृद्ध खड़े, 


हम विपदा के इस क्षण में!


 


'मिट जायेगा गहन तिमिर यह,'


आशा के दीप जलाने से, 


विजयगान का शंख बजेगा, 


'सतर्कता' अपनाने से !


 


सन्नाटे -सी गलियों में, 


फिर फैलेगा सुखमय उजियारा, 


महानिशा के अंधकार में, 


चमकेगा फिर ध्रुवतारा !


 


अपनी 'सभ्यता' और 'संस्कृति', 


दुनिया को सिखलाना होगा, 


वही सनातन धर्म हमें, 


फिर से अपनाना होगा !


वही सनातन धर्म हमें, 


फिर से अपनाना होगा !!


 


नीरजा बसंती (सहायक अध्यापक )


प्रा.वि.-गहना 


ब्लॉक -खजनी 


गोरखपुर


 


 


 


कविता 4


मनभावन सावन...


 


 श्याम जलद नभ छाये, 


वर्षा ने मोती सी बुँदे, 


धरा के आँचल में बिखराया, 


मनभावन सावन आया !


 


वर्षा की शीतल शीतलता, 


मन की तपन बढ़ाये, 


चमक चमक गरज बादल के, 


विरही का विरह जगाये, 


मनभावन सावन आया !!


 


ताल -तलैया, वृक्ष, धरा, 


सब पर हरियाली छायी, 


पके आम, जामुन की डलियाँ, 


मह -मह सी खुशबू आये, 


सूखी मन की डाली, 


इंद्र धनुष न भाया, 


मनभावन सावन आया !!


 


कूक कोकिला मन न भाए, 


दादुर टेर भी शोर मचाये, 


पपिहा ने पीर बढ़ाया, 


मनभावन सावन आया !!


 


गोकुल छोड़ गए तुम कान्हा, 


वृन्दावन पतझड़ छाया, 


धरा ने ओढ़ी हरी चुनरिया, 


विरही मन मुरझाया, 


प्रेम जलद नभ छाये, 


कब मनभावन सावन आये? मनभावन सावन आया !!


 


नीरजा बसंती


 


कविता 5


टूटती सी आश.... 


--------------------


खुशनुमा ख़्वाबों का


मौसम 


ले रहा अंगड़ाईया 


सर्द सी चलती हवाये 


संग जैसे परछाईया !


आश पूरित स्वप्न लेकर 


गा रहा मन झूम कर।


मन की आशाये 


मचलती,सँवरतीं।


बज रही शहनाईयां !


स्वप्न में,आशा से भरे 


दृग ,


चपल, चंचल हो चले 


ताकतें नित राह को 


हैं ढूंढते, नित प्राण को !


टूटती सी आश में भी 


मन शांत हो अविचल खड़ा 


क्षण तनिक क्या सोच 


यह दृग सजल फिर हो चले !


फिर बढ़ चली यह रात्रि भी 


अंतिम प्रहर के रैन में 


चंद्र भी धूमिल निशा है


बढ़ रही अवसाद में !


हाय !यह दिन भी गया 


प्रिय तुम्हारी याद में 


आश बन कर रह गयी 


शहनाईया फिर ख्वाब में !!


 


 



28/6/2020


सेतराम साहू सेतु

आज फिर 15 अगस्त है,


हर कोई आज़ादी के जश्न में मस्त है


पुलिस वाले कुछ दिन पहले से ही


परेड में व्यस्त है


नौकरशाहों और नेताओं का जलवा,


आज दिखता ज़बरदस्त है।।


 


बच्चों ने सारा घर सुबह से सर पर उठाया है


उनके लिये नया-नया १५ अगस्त जो आया है


युवा तो एक दिन पहले से तैयारी करके है बैठे


क्यो की आज बंद रहने वाले है ठेके


महिलाओं को आज भी कहा आराम है


रोज़ से ज़्यादा तो आज काम है


सारे पतियों की है छुट्टी


बन रहे घरो में नये नये पकवान है


 


देश का क्या कहना है


वह तो निरंतर तरक़्क़ी के शिखर चढ़ रहा है


थोड़ा बन रहा तो थोड़ा बिगड़ रहा है


हर तरफ़ आज भी फैला अत्याचार है


बलात्कार है,भ्रष्टाचार है


मानवता का हो गया अंत है


शैतान घूम रहा बनकर संत है


कही कोई बन गया


ज़रूरत से ज्यादा धनवान है


तो कही कोई भूख और ग़रीबी से


बेतहाशा परेशान है


अस्पताल में मर रहे है बच्चे


और सड़कों पर किसान है


 


कहने को तो देश लगता आज़ाद सा है


थोड़ा आबाद सा है,थोड़ा बर्बाद सा है


हर तरफ़ बुराई है,समाज हो गया है गंदा


सिग्नल पर एक छोटा बच्चा बेच रहा है झंडा


बह जायेगी उस दिन सच में आज़ादी की गंगा


जब मजबूरी में कोई नही बेचेगा चोराहे-चोराहे पे तिरंगा।


 


अराजक्ता फैला रखी है


धर्मों के नाम पर


उँगलियाँ उठाई जाती है


ईमानदारों के काम पर


पुरानी संस्कृति का रंग हो चला है फीका


क्यो की अब भारत बनने जा रहा है अमरीका


आधुनिकता के नाम पर बन रहे है उधोग हज़ार


धुँआ छोड़ प्रकृति की छाती करते है तार-तार


 


प्रकृति को माँ तुम समझो,


ज़रा रखो तो उसका ध्यान


मानवता को धर्म बनालो


करो सबका सम्मान


खतरा तुम पर मँडरा रहा है,


ज़रा बचा लो अपने प्राण


अहिंसा जो तुम अपना लोगे


बन जाओगे गांधी जैसे इंसान


सकारात्मक होगा विचारों में बदलाव


तभी तो होगा देश का कल्याण


तभी तो कहलायेगा मेरा भारत महान।


 


सेतराम साहू सेतु


कौहाकुड़ा पिथौरा


मो. 9399434293


🇮🇳🙏🏻🇮🇳🙏🏻🇮🇳


डॉ कुमुद बाला

बढ़ो साथियों , लेके तिरंगा चलना है


---------------------------------------------


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है


अब आँधी आये या तूफ़ां जाँ हथेली पे लेके चलना है 35


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


पूरब में सूरज उगता है मेरे वतन की खातिर


चंदा भी तम से मिलता है मेरे वतन की खातिर


सब तारे झिलमिल करते हैं मेरे वतन की खातिर


यह नीला व्योम चमकता है मेरे वतन की खातिर


हमें वतन की खातिर जीना दिल में वतन को लेके मरना है


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है।


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


देखो कितने वीरों ने दी देश पे अपनी कुर्बानी


हम भी तो कुछ कर जाएं रुक जाये नैनों का पानी


हँसकर पहने बासंती चोला चढ़ गये फाँसी पे


न्यौछावर देश पे की वीरों ने खिलती वह जवानी


उन वीरों की शहादत पे हमको जलाके मशालें चलना है


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है।


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


दुश्मन करता है गद्दारी पर कुछ अपने भी गद्दार हैं


लालच ये पैसों की करके उठाते फिर हथियार हैं


प्रण लें चलो निकालें चुनकर ऐसे धोखेबाज़ों को


तिलक लगा कहती है भाई अब बहनें भी तैयार हैं


मुण्डों की माला पहन बन काली दुश्मन का रक्तपान करना है


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है।


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


शर्म नहीं आती तुझको छुप देश पे वार करता है


नापाक इरादे ले मुख में मिश्री घोल के रखता है


हम वो हैं जो चट्टानों में भी अपनी राह बनाते हैं


सीने पे गोली खाने की जवान तमन्ना रखता है


अगर मैदान में तुम आ जाओ सर दल के तुम्हारे चलना है


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है।


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


डॉ कुमुद बाला


हैदराबाद


छगनराज राव दीप

वीर सपूत शहीदों पे


अभिमान करता है वतन


भारत के रण वीरों को


शत शत करता आज नमन


 


जोश दिल में था भरपूर


डरकर मुंह मोड़ा नहीं


सरज़मीन से हिले नहीं


जब तक साँस छोड़ा नहीं


अड़े रहें वे डटे रहें


सैनिक शहीद माटी में


खूं से लिख गये नाम वे


वीर गलवान घाटी में


माँ भारती की लाज को


बचाने को ओढ़ा कफ़न


भारत के रण वीरों को


शत शत करता आज नमन


 


ड्रैगन तू कायर है जो


सोये सैनिक मार दिए


धोखेबाजी से तुमने


पीठ पीछे वार किए


खून का बदला खून हो


फौजों को खुली छूट दो


ड्रैगन को दिखा दो शक्ति


अब ऐसा इक सबूत दो


माटी तेरे लालों को


शीश झुकाता आज छगन


भारत के रण वीरों को


शत शत करता आज नमन


 


वीर सपूत शहीदों पे


अभिमान करता है वतन


भारत के रण वीरों को


शत शत करता आज नमन


 


छगनराज राव दीप


जोधपुर


9414301484


रणजीत सिंह रणदेव

ये प्यारा जग में न्यारा,भारत कुंज हमारा ।


ए शहीदों इसके गौरव में भी नाम तुम्हारा ।।


ये प्यारा जग में न्यारा ……………………….1


 


तुम सिमा पर इसके पहरी बनें खडें हों ,


आता कोई संकट तुम डटकर लड़ें हों ।


तुम भारत सिमा पर राही बन हो प्यादा ,,


भूखें-प्यासे रहकर रखतें तुम अमन इरादा ।।


तुम पहरी जिसे गुजरें हम सबका जमारा ,


ये प्यारा जग में न्यारा …………………………2


 


मुठभेड़ में तुम सिमा पर रंग लहरातें हो ,


भारत माता की जय ललकार लगातें हो। 


सीना गोली लगे तो मिट्टी मलम लगातें हो ,,


तुम देश रक्षा में जीवन शहीद कर जाते हों।।


तुम्हारें रक्त का फोलादी देते जवाब करारा ,


ये भारत जग में न्यारा …………………………3


 


ए नमन मेरे वतन के शहीदों वारि -वारि ,


तुम्हारे बलिदान से होता ह्रदय ज्वालाधारी ।


तुम्हारे बालिदानो की वाणी हम पर गूँजे ,,


याद दिलाती तेरी रक्त रंगीली माटी धूँजें। 


तेरी याद दिलाती कुर्बानी तू शहीद प्यारा ,


ये भारत जग में न्यारा ………………………..4


 


भारती का तूहीं सपूत अमर कहलाया हैं ।


सदाही तुनें भारती का ध्वज ऊंचा लहराया हैं।।


तेरे पर नाज हैं यहां रहने वाले बसेरों का,,


नमन तेरी कुर्बानी को हम जैसे मजबुरों का ।।


रणदेव तेरी गाथा लिखे तु अमर द्वीप हमारा ,


ये प्यारा जग में न्यारा, भारत कुंज हमारा ।


ए शहीदों इसके गौरव में भी नाम तुम्हारा ।।


_________________________________


रणजीत सिंह “रणदेव” चारण


राजसमंद


डॉ वन्दना सिंह

यह कैसा आजादी का दिवस आया ?


घरों में कैद हैं हम 


यह कैसा डर है फिजाओं में है छाया?


 घरों में कैद हैं हम 


आजादी कब मिलेगी दिल सोचता है ?


कब फिर से उड़ेंगे हम?


 हटेगा कब यह मनहूसियत का साया?


 घरों में कैद हैं हम


 यूं ही अनायास बिना कुछ किए 


जो मिल गई थी हमको आजादी 


नहीं उसकी कीमत जानते थे 


हर चीज से थी शिकायत 


जो मिल रहा ,कीमत ना उसकी 


पहचानते थे


एक अदृश्य वायरस के खौफ ने 


सब को रुलाया 


मंडरा रहा है सबके सिरों पर 


मौत का साया


  


 आजादी हमको मिली 


73 साल हो गए


पर आजादी की कद्र हमने


 नहीं थी जानी 


आजादी के नाम पर दंगे हुए 


  इस देश में


 करते रहे सब मनमानी


 बिना आत्मनिर्भर हुए 


आजादी के मायने भी क्या?


  सुई से लेकर जहाज तक 


विदेशों से मंगाते हैं हम 


खुद की संस्कृति का ज्ञान नहीं 


विदेशी पर इतराते हैं हम 


कहने को हम


 आजाद हैं बरसों से 


पर मानसिक गुलामी करते हैं हम


 खोखला सिस्टम हमारा 


खोखला समाज है


 आज भी पश्चिम की हर बात में


 हामी भरते हैं हम 


हम भी भारत को विश्व का 


सिरमौर बना सकते थे 


पर आपसी फूट ने और 


   तंत्र की लूट ने 


  देश को आगे बढ़ने न दिया।


 ये वक़्त है ठहर कर


 एक बार फिर


 गलतियों को समझो ,सुधारो।


ये बरस जैसे भी जाये 


 अगले बरस मन में 


नई उमंग भरकर पधारो ।


एक दिन झंडा फहराकर 


  देशभक्ति के गीत गाकर 


अकर्मण्यता की चादर में 


    फिर खुद को छुपा कर


  आपसी विद्वेष को 


    अपने ज्ञान से हम सींचते हैं


   GDP का पहाड़ा पढ़ने वाले


       बात बात में चीखते हैं!


       TV पर देखिए -


     रोज़ बढ़ते आंकड़ों को 


      और डिबेट में रोज आनेवाले


      नए पुराने रणबांकुरों को।


     कैसे कोरोना ने कर दिया 


     जीवन का एक बरस जाया!


  कैसा इस बार आज़ादी का दिवस आया?


 कैसा इस बार आजादी का दिवस आया


 


Written by -Dr. Vandana Singh


डॉ. आभा माथुर

भादों आया


      नीले नभ में 


छाये बादल 


        ज्यों गोरी के


नील- नयन में


         शोभित काजल


झरें मेघ झर 


        झर- झर-झर- झर


करें प्रकंपित 


         तन-मन, थर-थर


तनिक देर में


           चमका सूरज चम-


चम-चम-चम


            उड़ती तितली


 हर्षित कर मन


              जन जन प्रमुदित


चहुँ दिशि कलरव


               बच्चों का दल


लिये राष्ट्र ध्वज


                मधुर कंठ से


गगन गुँजाता


                छटा विलक्षण


इन्द्रधनुष बन


                 मन हर्षाता


राष्ट्र पर्व यह


                 याद दिलाता


निज गौरव रख


                 सबसे ऊपर


उड़े तिरंगा


              फर-फर-फर-फर


 


      डॉ. आभा माथुर


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