कहानी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
कहानी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

अनिल गर्ग

लघु दृष्टांत,,,

एक बार की बात है एक बहुत ही पुण्य व्यक्ति अपने परिवार सहित तीर्थ के लिए निकला .. कई कोस दूर जाने के बाद पूरे परिवार को प्यास लगने लगी , ज्येष्ठ का महीना था , आस पास कहीं पानी नहीं दिखाई पड़ रहा था ..  उसके बच्चे प्यास से ब्याकुल होने लगे .. समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ... अपने साथ लेकर चलने वाला पानी भी समाप्त हो चुका था!!

एक समय ऐसा आया कि उसे भगवान से प्रार्थना करनी पड़ी कि हे प्रभु अब आप ही कुछ करो मालिक ... इतने में उसे कुछ दूर पर एक साधू तप करता हुआ नजर आया..  व्यक्ति ने उस साधू से जाकर अपनी समस्या बताई ... साधू बोले की यहाँ से एक कोस दूर उत्तर की दिशा में एक छोटी दरिया बहती है जाओ जाकर वहां से पानी की प्यास बुझा लो ...

साधू की बात सुनकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुयी और उसने साधू को धन्यवाद बोला .. पत्नी एवं बच्चो की स्थिति नाजुक होने के कारण वहीं रुकने के लिया बोला और खुद पानी लेने चला गया.. 

जब वो दरिया से पानी लेकर लौट रहा था तो उसे रास्ते में पांच व्यक्ति मिले जो अत्यंत प्यासे थे .. पुण्य आत्मा को उन पांचो व्यक्तियों की प्यास देखि नहीं गयी और अपना सारा पानी उन प्यासों को पिला दिया .. जब वो दोबारा पानी लेकर आ रहा था तो पांच अन्य व्यक्ति मिले जो उसी तरह प्यासे थे ... पुण्य आत्मा ने फिर अपना सारा पानी उनको पिला दिया ...

यही घटना बार बार हो रही थी ... और काफी समय बीत जाने के बाद जब वो नहीं आया तो साधू उसकी तरफ चल पड़ा .... बार बार उसके इस पुण्य कार्य को देखकर साधू बोला - " हे पुण्य आत्मा तुम बार बार अपना बाल्टी भरकर दरिया से लाते हो और किसी प्यासे के लिए ख़ाली कर देते हो ... इससे तुम्हे क्या लाभ मिला ...? पुण्य आत्मा ने बोला मुझे क्या मिला ? या क्या नहीं मिला इसके बारें में मैंने कभी नहीं सोचा .. पर मैंने अपना स्वार्थ छोड़कर अपना धर्म निभाया ..

साधू बोला - " ऐसे धर्म निभाने से क्या फ़ायदा जब तुम्हारे  अपने बच्चे और परिवार ही जीवित ना बचे ? तुम अपना धर्म ऐसे भी निभा सकते थे जैसे मैंने निभाया ..

पुण्य आत्मा ने पूछा - " कैसे महाराज ? 
साधू बोला - " मैंने तुम्हे दरिया से पानी लाकर देने के बजाय दरिया का रास्ता ही बता दिया ... तुम्हे भी उन सभी प्यासों को दरिया का रास्ता बता देना चाहिए था ... ताकि तुम्हारी भी प्यास मिट जाये और अन्य प्यासे लोगो की भी ... फिर किसी को अपनी बाल्टी ख़ाली करने की जरुरत ही नहीं ..."  इतना कहकर साधू अंतर्ध्यान हो गया ...

पुण्य आत्मा को सब कुछ समझ आ गया की अपना पुण्य ख़ाली कर दुसरो को देने के बजाय , दुसरो को भी पुण्य अर्जित करने का रास्ता या*आज का प्रेरक प्रसंग*

*एक बहुत ज्ञानवर्धक सीख देने वाला शिक्षाप्रद लघु दृष्टांत,,,,,,*

एक बार की बात है एक बहुत ही पुण्य व्यक्ति अपने परिवार सहित तीर्थ के लिए निकला .. कई कोस दूर जाने के बाद पूरे परिवार को प्यास लगने लगी , ज्येष्ठ का महीना था , आस पास कहीं पानी नहीं दिखाई पड़ रहा था ..  उसके बच्चे प्यास से ब्याकुल होने लगे .. समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ... अपने साथ लेकर चलने वाला पानी भी समाप्त हो चुका था!!

एक समय ऐसा आया कि उसे भगवान से प्रार्थना करनी पड़ी कि हे प्रभु अब आप ही कुछ करो मालिक ... इतने में उसे कुछ दूर पर एक साधू तप करता हुआ नजर आया..  व्यक्ति ने उस साधू से जाकर अपनी समस्या बताई ... साधू बोले की यहाँ से एक कोस दूर उत्तर की दिशा में एक छोटी दरिया बहती है जाओ जाकर वहां से पानी की प्यास बुझा लो ...

साधू की बात सुनकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुयी और उसने साधू को धन्यवाद बोला .. पत्नी एवं बच्चो की स्थिति नाजुक होने के कारण वहीं रुकने के लिया बोला और खुद पानी लेने चला गया.. 

जब वो दरिया से पानी लेकर लौट रहा था तो उसे रास्ते में पांच व्यक्ति मिले जो अत्यंत प्यासे थे .. पुण्य आत्मा को उन पांचो व्यक्तियों की प्यास देखि नहीं गयी और अपना सारा पानी उन प्यासों को पिला दिया .. जब वो दोबारा पानी लेकर आ रहा था तो पांच अन्य व्यक्ति मिले जो उसी तरह प्यासे थे ... पुण्य आत्मा ने फिर अपना सारा पानी उनको पिला दिया ...

यही घटना बार बार हो रही थी ... और काफी समय बीत जाने के बाद जब वो नहीं आया तो साधू उसकी तरफ चल पड़ा .... बार बार उसके इस पुण्य कार्य को देखकर साधू बोला - " हे पुण्य आत्मा तुम बार बार अपना बाल्टी भरकर दरिया से लाते हो और किसी प्यासे के लिए ख़ाली कर देते हो ... इससे तुम्हे क्या लाभ मिला ...? पुण्य आत्मा ने बोला मुझे क्या मिला ? या क्या नहीं मिला इसके बारें में मैंने कभी नहीं सोचा .. पर मैंने अपना स्वार्थ छोड़कर अपना धर्म निभाया ..

साधू बोला - " ऐसे धर्म निभाने से क्या फ़ायदा जब तुम्हारे  अपने बच्चे और परिवार ही जीवित ना बचे ? तुम अपना धर्म ऐसे भी निभा सकते थे जैसे मैंने निभाया ..

पुण्य आत्मा ने पूछा - " कैसे महाराज ? 
साधू बोला - " मैंने तुम्हे दरिया से पानी लाकर देने के बजाय दरिया का रास्ता ही बता दिया ... तुम्हे भी उन सभी प्यासों को दरिया का रास्ता बता देना चाहिए था ... ताकि तुम्हारी भी प्यास मिट जाये और अन्य प्यासे लोगो की भी ... फिर किसी को अपनी बाल्टी ख़ाली करने की जरुरत ही नहीं ..."  इतना कहकर साधू अंतर्ध्यान हो गया ...

पुण्य आत्मा को सब कुछ समझ आ गया की अपना पुण्य ख़ाली कर दुसरो को देने के बजाय , दुसरो को भी पुण्य अर्जित करने का रास्ता या विधि बताये ..

मित्रो - ये तत्व ज्ञान है ... अगर किसी के बारे में अच्छा सोचना है तो उसे उस परमात्मा से जोड़ दो ताकि उसे हमेशा के लिए लाभ मिले, उसे हमेशा के लिए लाभ मिले।
अनिल गर्ग, कानपुर

अनिल गर्ग

कहानी बुद्धिहीन सेवक

किसी शहर में एक सेठ रहता था । किसी कारणवश उस बेचारे को अपने कारोबार में घाटा हो गया और वह गरीब हो गया। गरीब होने का उसे बहुत दुख हुआ था। इस दुख से तंग जाकर उसने सोचा कि इस जीवन से क्या लाभ? इससे तो मर जाना अच्छा है । 

यह सोचकर एक रात को वह सोया तो रात को उसे सपने में एक संन्यासी नजर आया जो उसे कह रहा था, 'सुनो, सेठ, तुम मरो मत, मैं तुम्हारे सारे दु:ख दूर करने के लिए कल सुबह तुम्हारे घर पर आऊंगा। तुम मेरे सिर पर डंडा मारना, मैं उसी समय सोने का बन जाऊंगा।' संन्यासी की बात सुनकर दुःखी सेठ ने सोचा कि चलो एक बार और देख लेते है। 
यही सोचकर वह सुबह से ही अपने घर पर बैठे संन्यासी की प्रतीक्षा करने लगा। उसका नौकर नाई भी उस समय उसके पास ही बैठा था। थोड़े ही क्षणों के पश्चात् जैसे ही यह संन्यासी सेठ को आता दिखाई दिया तो उसने झट से अपना डंडा उठाकर उसके सिर पर दे मारा। 

बस फिर क्या था, देखते-ही-देखते वह सोने का बनकर गिर पड़ा। उसे वहां से उठाकर खुशी से नाचता सेठ अंदर ले गया। उसने नाई को इनाम में कुछ रुपए देकर कहा, "तुम जाओ, लेकिन यह बात बाहर जाकर किसी से मत कहना ।‘ 
नाई ने अपने घर जाकर सोचा कि जितने भी ये संन्यासी फिर रहे हैं यदि इनके सिर पर डंडा मारा जाए तो ये सोने के बन जाएंगे । सो मैं भी सुबह उठते ही इन सबके सिर पर डंडे मारूंगा और फिर...मैं भी अमीर... 
बस फिर क्या था, सुबह उठते ही उसने एक बड़ा लठ लिया और चल पड़ा सन्यासियों की खोज में और एक स्थान पर जहाँ बहुत से भिक्षुक ठहरे हुए थे,उन्हें अपने घर पर आने का निमंत्रण दिया। जैसे ही वह खाने के लिए घर पर आए तो नाई पहले से ही द्वार पर लठ लेकर बैठा था।

बस फिर क्या था,जैसे ही साधु अंदर आने लगे,नाई बारी-बारी उनके सिर पर लठ मारता रहा। उनमें से कोई मर गया कोई  गहरे घाव  खाए धरती पर तड़पता रहा। यह सूचना राजा की पुलिस तक पहुंच गई। पुलिस ने नाई को बंदी बना लिया और साथ ही साधुओं की लाशें  और घायल साधुओं को लेकर राजा के पास पहुंचे।

राजा ने नाई से पूछा,'तूने यह पाप क्यों किया?'उत्तर में नाई ने सेठ वाली सारी कहानी राजा को सुना डाली। नाई की कहानी सुन राजा ने सेठ को बुलाया और सब बात पूछी तो  सेठ ने अपना सारा सपना राजा को बता दिया।सेठ की बात सुन राजा ने कहा,'यह सारा दोष नाई का है, इसे फांसी दे दी जाए।'इस प्रकार नाई को फांसी दे दी गई। इसलिए कहा है-
'जो ठीक से देखा,जाना और सुना न हो, वह न करना चाहिए,जैसा कि नाई ने किया और मारा गया।
 अनिल गर्ग, कानपुर

किन्नर अभिशाप नहीं - नंदलाल मणि त्रिपाठी पितम्बर

किन्नर अभिशाप नहीं------

पंडित परमात्मा जी के कोई औलाद नही थी विबाह के लगभग पंद्रह वर्ष बीत चुके थे पण्डित जी एक औलाद के लिये जाने क्या क्या जतन करते सारे तीर्थ स्थलों पर गए कोई मंदिर कुरुद्वारा नही बचा जहां एक औलाद की मुराद न मांगी हो पण्डित जी एक दिन उदास निराश गांव लखपत पुर के बाहर बरगद के पेड़ के नीचे बैठे थे जेठ की प्रचंड धूप थी बीच बीच मे हवा चलने से बरगद के बृक्ष के नीचे शीतलता का आभास होता पण्डित जी घण्टो से बरगद के बृक्ष के नीचे बैठे जैसे किसी का इंतज़ार कर रहे हों एकएक पण्डित जी ने देखा कि एक सन्यासी केशरिया धारण किये हाथ मे सारंगी लिये उनकी तरफ ही आ रहा था धीरे धीरे सन्यासी पंडित जी के करीब पहुंचे जो भयंकर गर्मी कारण पसीने से लथपथ और व्यथित थे पण्डित जी के पास आकर बोले बच्चा मुझे बहुत प्यास लगी है थोड़ा पानी पिला दो पंडित परमात्मा  जी तुरंत उठे और सन्यासी का कमंडल लेकर गए और पास के कुएं से शीतल जल ले आकर सन्यासी को दिया सन्यासी ने जल पीने के बाद कहा बच्चा तुम बहुत निराश हताश दिख रहे हो जो प्रारब्ध में है ही नही उसके लिये तुम व्यर्थ परेशान हो तुम्हारे किस्मत में संतान सुख है ही नही तो कहा से तुम्हे संतान की प्राप्ति होगी तुम्हारा भाग्य लिखने वाला जगत पिता सबके भविष्य जीवन का निर्धारण करता है और उसे मिटाने की क्षमता स्वयं उसी में है फिर भी तुमने मुझे जल पिलाया है मुझे तुम्हे आशीर्वाद स्वरूप कुछ देना ही होगा मैं भी तुम्हे विधाता के लेख के इतर कुछ नही दे सकता तुम संतान के लिये दुखी हो मैं तुम्हे पुत्र या पुत्री का आशीर्वाद तो नही दे सकता मैं सिर्फ पिता बनने का आशीर्वाद तुम्हे देता हूँ पण्डित परमात्मा आश्चर्य में पड़ गए कि जब पुत्र और पुत्री होगा ही नही तो मैं पिता कैसे बन सकता सन्यासी महाराज बोले मैं सन्यासी हूँ मुझे सांसारिकता से कोई मोह नही है मेरे आशीर्वाद से तुम पिता बनोगे ईश्वर के अर्धनारीश्वर स्वरूप के जो ना पुत्र होगा ना पुत्री वह महाभारत के शिखंडी जैसा होगा इतना कहकर सन्यासी कहां गायब हो गए पता नही चल सका पंडित परमयात्रा व्याकुल होकर इधर उधर ढूढने का बहुत प्रयत्न किए मगर कोई फायदा नही हुआ अंत मे निराश होकर घर चले गए पंडित परमात्मा पहले से ज्यादा व्यथित हो गए उनको लगा कि इससे बेहतर तो निःसंतान होना लेकिन अब कर ही क्या सकते थे इसे ही अपनी नियत मानकर घर गए और पत्नी अनिता को सारी घटना बताई पंडित जी की पत्नी समझदार थी उन्होंने पण्डित जी को समझाया कि जब औलाद हमारे किस्मत में नही है तो जो ही है उसी को प्रारब्ध मानकर स्वीकार करना ही पड़ेगा सर पीटने निराश  होने से  कोई फायदा नही है जो ईश्वर को मंजूर है उंसे ही किस्मत मानकर स्वीकार कर लेने में हर्ज क्या है। पंडित जी ने अपने नियत का लेखा मानकर भविष्य का इंतजार करने लगे। पण्डित परमात्मा का दिन ज्यो त्यों बीत रहा था लगभग डेढ़ वर्ष उपरांत अनिता के घर एक शिशु ने जन्म लिया पंडित जी को सन्यासी की बात पहले से ही याद थी उनको सन्यासी की बात सत्य हुई क्योकि जो बच्चा उनके यहॉ पैदा हुआ था वह वास्तव मे ना लड़का था ना लड़की था पंडित परमात्मा ने पत्नी से कहा कैसे गांव और रिश्ते नातो को घर मे नए मेहमान आने की सूचना दी जाय क्या बताया जाय क्या कहा जाय जो भी जानना चाहेगा पूछेगा की पैदा होने वाली संतान लड़का है या लड़की लेकिन यह बात छिपाई भी तो नही जा सकती है अभी पंडित जी के घर नए मेहमान के आये एक सप्ताह ही हुआ था कि किन्नरों का एक दल बधाई गाने के लिए आ धमका पण्डित जी के समझ में यह नही आ रहा था कि किन्नरों को क्या बताये लेकिन किन्नरों के दल की मुखिया सुरैया ने पण्डित जी से कहा पण्डित जी काहे शर्मा रहे हो हम लोंगो को दुनियां  चाहे जो भी समझे कितना भी अपमानित करे हम लोग दुनियां की खुशियों में ही आशीर्वाद की बधाई देने आते जाते है किसी भी अपसगुन के अवसर पर नही जाते ये हमारा वसूल है अब आप बच्चे को बाहर लाते है या हम ही लोग बच्चे के पास जाए पंडित जी ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर किन्नरों ने पण्डिय जी की एक भी बात न सुनी और सीधे अनिता के पास पहुंच कर नवजात को अपने गोद मे बिठा कर बधाई गाने लगे और पण्डित जी से न्यौछावर की मांग करने लगे तभी किन्नरों के दल की एक सदस्य नीलम ने कहा सुरैया देख तो ले पंडित जी के घर लड़का भवा है या लड़की सुरैया ने तत्काल बच्चे का निरीक्षण कर बताया कि यह तक ना लड़का है ना लड़की यह तक अपनी बिरादरी का है नीलम बोली तब पंडित जी से बधाई क्या लेना ये तो अपने ही परिवार में आया है पंडित जी से बधाई में यही बच्चा मांग लेते है इसे नाचना गाना सिखाएंगे जब हम लोंगन का हाथ पैर थक जाएगा तब ये कमाके खिलायेगा।पंडित जी को जैसे सांप सूंघ गया क्या करे क्या ना करे उनके समझ मे कुछ भी नही आ रहा था किन्नरों और पण्डित जी मे बात विबाद चल रहा था कि बात पूरे गांव में फैल गयी और गांव के लोग किन्नरों का कौतूहल देखने के लिये पण्डित जी के दरवाजे पर एकत्र हो गए पंडित जी किन्नरों से बार बार कहते कि आप लोग अपनी बधाई लो और जाओ मगर सारे किन्नर जिद्द पर आड़े थे कि बढ़ाई में कोई रुपया पैसा नही लेंगे अगर लेंगे तो पण्डित जी का बच्चा ही लेंगे गांव वालों को जब सच्चाई की जानकारी हुई तब सारे गांव वाले पंडित जी के साथ खड़े हो गए  और पंडित जी की बातों का समर्थन करने लगे किन्नरों ने जब देखा कि पूरा गांव पण्डित जी के लिये मरने मारने के लिये खड़ा है तो जाते जाते कहने लगे कि ठिक है पंडित जी आज तो हम लोग जा रहे है लेकिन यह बच्चा हम लोंगो की अमानत है जितने दिन भी इसकी परवरिस आपको नसीब है कर लो यह बच्चा हमारे ही कुनबे की अमानत संमझ कर संभालना किन्नर पंडित जी को चेतावनी धमकी देकर चले गए  पंडित जी का मन किसी अनहोनी आशंका से विचलित होने लगा गांव वालों ने पंडित जी को बहुत ढाढस बधाया मगर मंडित जी की आत्मा को चैन नही था।पंडित जी ने बड़े बिधि विधान से बच्चे के प्रत्येक सांस्कार को सम्पन्न कराया और प्यर से उसका नाम मनोहर रखा पण्डित जी को सदैव याद रहता कि मनोहर सन्यासी के आशीर्वाद की धरोहर उनके पास है अतः मनोहर में सदैव उस सन्यासी का बचपन देखते जिसे उन्होंने कभी देखा नही था उंसे मनोहर के बचपन मे देख रहे थे।धीरे धीरे मनोहर पांच साल का हो चुका था पण्डित जी किन्नरों की धमकी को भी धीरे धीरे भूलने की कोशिश करते एकाएक एक दिन पंडित जी को किसी कार्य से अपनी बहन नीमा के घर जाना पड़ा पंडित जी किसी अनजान खतरे की डर से मनोहर को भी साथ लेते गए पंडित को लौटने में शाम हो गयी गांव के रास्ते अक्सर सूर्यास्त के बाद सुन सान हो जाते है सूर्यास्त होने के बाद जब सुनसान रास्ता शुरू हुआ कुछ देर बाद ही एक भयंकर आवाज पंडित जी के कानों में पड़ी पंडित जी हमारी अमानत को कब तक पालोगे पंडित जी ने देखा कि किन्नरों का दल
जिसका नेतृत्व सुरैया कर रही थी उनको घेर कर खड़ा हो गया पण्डित जी के मुख से घबराहट के मारे कोई
शब्द नही निकल पा रहे थे पंडित जी कुछ बोल पाते उससे पहले किन्नरों ने उन पर धावा बोल दिया और मनोहर को पण्डित जी के आगोश से छुड़ाने का प्रयास करने लगे मगर पंडित जी दो चार पर अकेले ही भारी थे तब जब किन्नरों ने मनोहर को पंडित जी से नही छीन पाए  तब पंडित जी पर डंडों से वार करना शुरू कर दिया फिर भी पण्डित जी ने मनोहर पर आंच नही आने दी जबकि स्वयं खून से लथपथ थे किन्नरों को लगा कि इतनी आसानी से पंडित से मनोहर को नही झीना जा सकता है तब सारे किन्नरों ने पंडित जी को पेट मे छुरा भोंक दिया पंडित जी जमीन पर तड़फड़ाने लगे मगर फिर भी मनोहर को उन्होंने नही छोड़ा किन्नरों ने आस पास से सूखी खास जिसे किन्नरों ने पहले से एकत्र कर रखी थी उसमें आग लगा कर पंडित जी पर डाल दिया अब पंडित जी का सब्र जबाब दे गया लेकिन उन्होंने तब भी मनोहर को अपने गले लगाए रखा जब मनोहर के जिस्म में आग के गर्मी की ज्वाला लगी तो वह स्वयं पण्डित से अलग हुआ ज्यो ही मनोहर पण्डित जी के आगोश से बाहर हुआ सुरैया ने उसे गोद मे उठा लिया और सब किन्नर उसके साथ भागने लगे पण्डित जी ने जो जीवन मृत्यु से स्वयं संघर्ष कर रहे थे जब मनोहर को किन्नरों द्वारा ले जाते देखा तो उन्होनें उस सन्यासी को पुकारते हुए जिसके आशीर्वाद से मनोहर पैदा हुआ था चिल्लाने लगे आपने मुझे कैसा आशीर्वाद दे दिया जो मेरे एव मेरे परिवार के लिये घातक
और खतरनाक है यह तो किसी श्राप से भी बदतर है अब आप ही अपने आशीर्वाद की रक्षा करे इतना कहने के बाद पण्डित जी अचेत हो गए आग तेजी से जल रही थी पंडित जी जलती आग में झुलस रहे थे मगर उनमें इतनी शक्ति नही थी कि अपनी रक्षा कर सके पता नही कब आग बुझी पंडित जी आब अध जले शव की तरह पड़े थे रात समाप्त हो चुकी थी सूर्य की किरणें अपनी नई ऊर्जा के साथ नव प्रभात का शुरुआत कर चुकी थी रास्तो की वीरानियाँ समाप्त हो चुकी थी एका एक गुजरने वाले मुसाफिरों ने देखा कि अधजला शव पड़ा हुआ है पहले तो उनको विश्वास नही हो रहा  था कि यहाँ कौन सा श्मशान है कि अध जला शव यहाँ पडा हुआ है नजदीक जाकर देखा झुलसा जला घायल एक आदमी जो जिंदा है जीवन की आशा में चिल्लाने की कोशिशें तो कर रहा है मगर आवाज नही निकल पा रही है मांसाहारी पंक्षी जानवर जैसे गिद्ध आदि पंडित के ऊपर आस पास मंडरा रहे है।आने जाने वाले मुसाफिरों ने देखा कि पड़ा हुआ व्यक्ति मुर्दा नही बल्कि जिंदा है जल्दी जल्दी उठाकर उंसे पास के गांव ले गए जो कोस की दूरी पर था गांव वाले बिना बिलम्ब किये बैलगाड़ी से नजदीक अस्पताल पहुंचे इतनी ततपरता के बावजूद पँडित परमात्मा को अस्पताल पहुचने में दिन के लगभग तीन बजे चुके थे जब चिकित्सको ने पण्डित जी को  देखा तो इलाज करने से ही इनकार कर दिया मुसाफिरों और गांव वाले जो पंडित जी को जानते तक नही थे उनके बहुत अनुनय विनय पर चिकितको ने चिकित्सा इस आधार पर शुरू की बच गए तो भगवान की कृपा नही बचे तो ईश्वर की मर्जी इधर इलाज शुरू हो गया पंडित जी की पत्नी अनीता ने सोचा कि बहन के घर गए है रुक गए होंगे मगर लगभग एक सप्ताह बाद पंडित जी नही लौटे तब चिंतित होने लगी और पंडित जी के अभिन्न मित्र कृपा शंकर को बुलाया और पंडित जी के बहन के घर भेजा।
कृपा शंकर ने लौट कर बताया कि पण्डित जी तो उसी दिन शाम लोटे रहे थे  जिस दिन गए थे रास्ते की अनहोनी विस्तार से बताया और अनिता को अस्पताल लेकर गए जहाँ
पंडित परमात्मा की चिकिसा चल रही थी अनिता के आने के बाद गांव वाले चले गए।
सुरैया एव अन्य किन्नर जब मनोहर को लेकर अपने अड्डे पहुंचे मनोहर बड़ी करुण पुकार कभी माँ अनिता की करता कभी पिता की पुकार करता क्योकि मनोहर अनिता और परमात्मा के अतिरिक्त किसी को नही पहचानता था मगर किन्नरों में ना तो कोई वात्सल्य भाव था ना ही कोई दया उन्होंने तो मनोहर को व्यवसायिक दृष्टि और अपने निहित स्वार्थ में  अपहृत किया था मनोहर के चीखने चिल्लाने का कोई असर नही था वे निरंतर जल्लाद की तरह मनोहर पर मानसिक दबाव बना रहे थे लेकिन अबोध मनोहर पर कोई असर नही हो रहा था वह निरंतर रोता रहता और अपने माँ बाप को याद करता खाना पीना छोड़ दिया लाख डर भय शाम दाम दंड का उसके बाल हठ पर कोई
असर नही हो रहा था। तब किन्नरों ने मनोहर को एक कमरे बंद कर दिया और अब क्रूरता की हद करने लगे एक तो लगभग दस दिन से मनोहर ने कुछ खाया पिया नही था बावजूद किन्नरों ने मनोहर को लोहे की गर्म सुर्ख लाल सलाखों से उसके गुप्तांगों को बुरी तरह जला  दिया कुछ घंटों के लिये मनोहर अचेत सुध बुध खोया पड़ा रहा फिर उंसे होश आया तो चीखने चिल्लाने लगा अब उसके आवाज में पीड़ा वेदना का वह स्वर था कि भगवान भी कांप गया अब किन्नरों के
लिये और आफत का पहाड़ खड़ा हो गया सुरैया बहुत घबड़ा गयी मगर अब भी उसके मन मे लाकच और नज़रों में
क्रूरता का वहशियाना अंदाज़ था बार बार वह चाहता कि मनोहर को फिलहाल चुप कराया जाय  उसने तुरंत मनोहर के आंखों में लाल मिर्च पीसकर डाल दिया और फिर उसे सुकून  नही मिला उसने सुर्ख सलाखों से मनोहर के सारे बदन को दाग दिया मनोहर फिर बेसुध अचेत हो गया और  जब किन्नरों को लगा कि या तो यह मर जायेगा या तो कम से कम दो दिन तक इसे चेतना नही आयेगी अगर मर गया तो इसे जूते चप्पल मारते नदी में फेंक देगे ऐसी मान्यता है कि किन्नर जब किन्नर मरता है तो उसे जूते चप्पलों से पीटते उसका अंतिम सांस्कार करते है ताकि उसे पुनः दुनियां में किन्नर का जन्म ना मिले यदि मनोहर बच गया तो कितने दिन नही टूटेगा जबसे मनोहर को लेकर किन्नर आये थे किसी धंधे पर नही गए थे सुरैया ने बीड़ी की लंबी कस छोड़ी और बीड़ी के खाली पैकेट मनोहर के पास फेंक कर कमरा बन्द किया और सारे किन्नर धंधे पर निकल पड़े किन्नर दल धंधे के चक्कर मे बहुत दूर निकल गया जहां से लौटना दिन भर में किसी तरह असंभव था इधर शाम को मनोहर को होश आया तो उसकी निगाह सबसे पहले सुरैया के फेके बीड़ी के खोखे पर गयी जिस पर भगवान शंकर की छवि बनी थी वह एक टक भगवान शंकर की छवि को देखता हुआ फिर करुण रुदन करने लगा लगभग रात्रि के बारह बजे दो तीन सन्यासियों का दल उधर से गुजर रहा था उन्होंने करुण रुदन किसी बालक की सुनी तो रुक कर अंदाज़ लगाने लगाने लगे कि आवाज किधर से कहाँ से आ रही है जल्दी ही उन्होंने पता कर लिया कि आवाज सामने बन्द कमरे से आ रही है तीनो सन्यासी  उस मकान के कमरे के सामने गए और किन्नरों के बुजुर्ग मुखिया से कमरा खोलने का संत आग्रह किया किन्नरों का बुजुर्ग मुखिया सुगना ने पुरज़ोर विरोध किया और टांगी उठा कर सन्यासियों  पर आक्रमण कर दिया एक सन्यासी घायल हो गए अब सन्यासियों ने संत परम्परा को त्याग कर  हर हर महादेव जय भवानी बोलते सुगना पर एक साथ धावा बोल दिया चूंकि किन्नरों की बस्ती अमूमन नगर मोहल्लों से दूर होती है और मध्य रात्रि का सन्नाटा अतः सुगना और सन्यासियों के मध्य भयानक भयंकर तकरार मारपीट को भगवान के सिवा कोई नही देख रहा था थोड़ी ही  देर में
तीनो सन्यासियों ने सुगना को मार मार कर अचेत कर दिया और अपने चिमटे से बंद कमरे का ताला तोड़ दिया कमरे के अंदर दाखिल हुए वहाँ का दृश्य देखकर उनके होश उड़ गए जमीन पर पड़ा मनोहर बीड़ी पर भगवान शिव की छवि को एक टक देखता करुण कराह से जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा था उसकी सांस अब तब छूटने ही वाली थी तुरन्त एक सन्यासी ने मनोहर को गोद मे उठाया और तीनों सन्यासी बाहर निकले और चले गए कहा गए ना किसी ने देखा ना किसी को पता नही चला जब दूसरे दिन किन्नर अपने धंधे से लौटे देखा कि सुगना बेहोश पडा है और कमरा खुला मनोहर गायब है किन्नरों का माथा ठनका उनको यह तो कत्तई विश्वास  था कि पंडित परमात्मा तो मनोहर को ले जाने के लिए परमेश्वर के दरबार से नही आये  होंगे क्योंकि उतने घातक प्राण घातक मार और आग में झुलस कर निश्चय ही जिंदा नही होंगे फिर मनोहर को ले कौन गया किन्नरों ने किसी तरह से सुगना को अस्पताल लेकर गए जहां उसे होश आया होश आने और थोड़ा सहज होने पर उसने बताया कि तीन सन्यासि आये और कभी जद्दोजहद करने के बाद भी मनोहर को छुड़ा कर ले गए कहाँ ले गए पता नही सुरैया ने अपने कुछ किन्नरों को साथ छोड़कर कुछ साथियों को साथ लेकर मनोहर की तलाश में निकल पड़े दिन भर मंदिर 
मंदिर तलाश करने के बाद मनोहर का
तो कोई बात नही किसी सन्यासी का कोई पता नही चला शाम को मायूस सुरैया लौटी सुगना के हालत में सुधार
हो रहा था अब प्रतिदिन सुरैया अपने साथियों के साथ मनोहर को खोजने जाती और हर शाम निराश होकर लौट आती बहुत प्रयास के बाद भी जब मनोहर का कही पता नही चला तब सुरैया ने किन्नरों की महासभा बुलाई और उसमें मनोहर की कहानी आप बीती बताई मगर यह नही बताया कि 
उसने मंनोहर के पिता के साथ क्या किया सारे किन्नरों ने मनोहर को जमीन आसमान से खोज निकलने का बीड़ा उठाया सारे किन्नर अपने अपने दल बल के साथ मनोहर को खोजने का प्रयास करने लगे उधर पंडित परमात्मा की हालत में उतार चढ़ाव का नियमित सिलसिला जारी था एक महीने का समय बीत चुका था पंडित परमात्मा की हालत स्थिर नही हो रही थी चिकित्सको के दल को भी निराशा होने लगी । इधर तीनो सन्यासी जिसमे स्वामी गंभीरा नंद जी महाराज घायल थे शेष दो स्वामी निरंजन जी एव स्वामी अखंडानंद जी लगभग मरणासन्न मनोहर को एक गुफा में जहाँ  शंकर भगवान का प्राचीन मंदिर था पहुंचे जहां किसी भी प्राणि का पहुँच पाना सम्भव नही था वहाँ पहुंचकर उन्होंने मनोहर और स्वामी गंभीरा नंद की जंगली जड़ी बूटियों से
इलाज शुरू किया जितनी भी कोशिश
उस निर्जन स्थान पर की जा सकती थी सन्यासियों ने की लगभग पन्द्रह दिनों की कठिन परिश्रम के बाद मनोहर को होश आया और स्वामी गंभीरा नंद विल्कुल भला चंगा हो चुके थे अब संन्यासीयो को विश्वास हो चुका था कि जिस बालक को वे साथ लाये थे वह स्वस्थ हो जाएगा उन्होंने पूरे ईश्वरीय आस्था से बालक का गहन उपचार जारी रखा लगभग छ महीने बाद मनोहर भी जंगा हो गया
अब सन्यासियों ने मनोहर को स्वामी
बालक नाथ नाम देकर उसी संबोधन से बुलाते मनोहर को भी इतनी क्रूरता की यातना से सन्यासियों का स्नेह भाने लगी और वह भी मगन होकर
भगवत भजन करता उसका मन भी लगता ।सुरैया प्रतिदिन जहाँ भी जाती  मनोहर के विषय मे अपने तौर तरीके से पता करती मगर मनोहर का कही पता नही चलता उधर सन्यासियों ने मनोहर को साथ लेकर हरिद्वार नासिक उज्जैन आदि अनेको तीर्थ स्थलो का दर्शन कराया मनोहर का बाल मन उस क्रूर काल को भूलने लगा और उसका मन सन्यासियों की संगत में रमने लगा सन्यासी लोग जब भी फुर्सत पाते मनोहर को संस्कृत व्याकर्ण धर्म शत्रो का अध्ययन कराते 
जिसमे बालक राम मनोहर का मन खूब लगता धीरे धीरे समय बीतने लगा
उधर पंडित परमात्मा को अस्पताल में ईलाज होते एक वर्ष से अधिक हो चुका था लेकिन कोई खास फायदा नही था पण्डित परमात्मा ब्रेन डेड की स्तिथि में थे लेकिन उस वक्त चिकित्सा विज्ञान आज की तरह विकसित नही था अतः कोई इलाज संभव नही था एकाएक चिकित्सा कर रहे चिकितक
डॉ शोभन थॉमस को लगा कि क्यो न 
परमात्मा को इमोशनल ट्रीटमेंट दिया जाय एकाएक सुबह डा शोभन थॉमस
उठे और सीधे पंडित परमात्मा के पास पहूँचे और बेड के पास बैठकर एका एक बोले परमात्मा जी उठिए देखिये कौन आया है जल्दी उठिए आपकी इकलौती औलाद आपसे मिलने आई  है इसी बात को डा थॉमस ने पहले धीरे धीरे फिर बाद में जोर जोर से दोहराने लगे उन्होंने देखा कि पण्डित परमात्मा के निर्जीव शरीर मे हरकत हो रही है डा थॉमस और तेज उसी बात को दोहराते रहे एकाएक पण्डित
परमात्मा को होश आ गया और होश आते ही उन्होंने पूछा मनोहर कहा है 
डॉ थॉमस ने कहा कि पँडिन जी धीरज रखिये मनोहर भी आ जायेगा डा थॉमस का प्रयोग कारगर हुआ और पंडित परमात्मा के स्वस्थ में तेजी से सुधार होने लगा जब पंडित परमात्मा पूरी तरह से संजीदा और होश में रहने लगे तो डॉ थॉमस ने पुलिस को सूचना
दी जिसे परमात्मा के अस्पताल में भर्ती होने से पूर्व भी सूचित किया गया था थोड़ी ही देर में दारोगा विश्वेन्द्र सिंह आ गए और उन्होंने पंडित परमात्मा की पूरी कहानी सुनी सुनकर उनके आंखों में आंसू भर आये लेकिन  भारतीय दण्ड संघीता में इस प्रकार के अपराध जिसमे किन्नर शामिल हो पर कोई धारा दफा नही थी फिर भी दारोगा विश्वेन्द्र सिंह ने पण्डित परमात्मा को आश्वस्त किया कि जो सम्भव होगा करेंगे ।पंडित परमात्मा लवभग चौदह माह चिकित्सा के बाद घर वापस लौटे उनकी पत्नी अनिता को कुछ औलाद पति दोनों के खोने की विपात्ति से एक तरफ से निश्चिन्ता हुई घर आने के बाद पंडित जी की पत्नी ने खूब सेवा की और जल्द ही पंडित जी पहले की तरह स्वस्थ हो गए पंडित जी ने गांव वालों को बुलाकर आप बीती सुनाई गांव वालों ने एक स्वर में पंडित जी के साथ संकल्प लिया कि मनोहर को किसी प्रकार ढूंढ निकालेंगे अब पण्डित परमात्मा के साथ पूरे गांव के लोग जहां भी जाते सुरैया का हवाला देकर उसके विषय मे पूछते इधर दारोगा विश्वेन्द्र भी  अपने स्तर से तहकीकात में जुट गए यह बात जब सुरैया के कानों में पड़ी तो वह पूरी मंडली लेकर मध्यप्रदेश होते हुए महाराष्ट्र चली गयी गांव वाले और पंडित परमात्मा निरंतर सुरैया की खोज करते रहे मगर कुछ पता नही चल रहा था धीरे धीरे लगभग दो वर्ष का समय बीत चुका था दारोगा विश्वेन्द्र का स्थानांतरण दूसरे थाना हो गया मगर ना तो सुरैया का कोई सुराग मिल रहा था ना ही मनोहर का कुछ पता चल रहा था उधर सन्यासियों के मध्य मनोहर को लगभग तीन वर्ष हो गए थे इतने दिनों में इसने गीता रामायण आदि धर्म ग्रंथो का गम्भीरता से अध्ययन कर लिया था संस्कृति व्यकर्ण आदि का अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया था जहाँ भी मनोहर सन्यासियों के साथ जाता वहाँ उनकी प्रतिष्ठा अपने आचरण ज्ञान और योग्यता से बढ़ाता महज़ आठ साल की अवस्था मे उंसे लगभग सम्पूर्ण ज्ञान हो गया था एक दिन स्वामी गंभीरा नंद ने कहा अब इस बालक का हम लोंगो के सानिध्य का समय पूर्ण हुआ अब इसे जगत में अपना कार्य पूरा करना होगा चलो हम लोग इसके जन्मदाता माँ बाप की खोज करते है लेकिन कहां गंभीरा नंद जी ने कहा कि हवा के विपरीत दिशा चलना होगा सन्यासी गंभीरा नंद जी मनोहर एव साथियों के साथ पूरब दिशा को चल दिये दिन भर गांव गांव घूमते जो मील जाता उंसे शाम को मनोहर के साथ ग्रहण करते मनोहर सन्यासियों के साथ रहते पाक कला में भी निपुण हो चुका था समय बीतते देर नही लगती एक वर्ष से ऊपर का समय मनोहर को सन्यासियों के साथ घूमते फिरते बीत चुके थे।पंडित परमात्मा और अनिता गांव वालों के साथ मनोहर के मिलने की अपेक्षा छोड़ चुके थे शिव रात्रि का दिन था पंडित जी ने भगवान की पूजा अर्चना करने के उपरांत अश्रुपूरित नेत्रों से दोनों हाथ जोड़कर शिव लिंग के समक्ष खड़े होकर करुण पुकार करते बोले है औघड़ दानी भूत भाँवर विश्वेशर शिव शम्भू भोले शंकर आप काल महाकाल  त्रिलोक के सुख दुख के दाता है आपने भी मुझे निःसंतानी के कलंक से मुक्त करते अपना ही अर्धनारीश्वर रूप औलाद के रूप में दिया मैन उंसे आपका आशीर्वाद मानकर बड़े लाड प्यार से पांच वर्ष तक पाला उंसे बचाने के लिये स्वयं मौत को चुना मौत मुझे छूकर चली गयी सारे यत्न करने के उपरांत मनोहर को बचा नही पाया और किन्नर उसको पता नही किस हाल में कहा रखे होंगे आप उसकी रक्षा करना प्रार्थना करने के बाद पण्डित परमात्मा गांव के उसी पुराने बरगद के बृक्ष के नीचे बैठ गए धूप नही थी बौछारें और हल्की बारिस रुक रुक कर हो रही थी पण्डित परमात्मा अतीत की यादों में खोए हुये थे तभी तीन सन्यासी सामने आकर रुके उनके पीछे मनोहर था स्वामी गंभीरा नंद जी बोले किस बात की चिंता करते हो तुम्हारा मनोहर साथ लाये हैं पंडित जी को जैसे भगवान मिल गए तब तक मनोहर पँडित परमात्मा के चरण पकड़कर रोने लगा परमात्मा की आंखों से जैसे अश्रु की गंगा जमुना बह पड़ी पिता पुत्र के इस मिलन को देख बैरागी सन्यासियों का भी मन करुणा से भर गया फिर स्वामी गंभीरा नंद जी ने पंडित परमात्मा से कहा आज हम सभी आपके यहाँ विश्राम करेंगे और सुबह चले जायेंगे मनोहर के लौटने को बात पूरे गांव में आग की तरह बात फैल गयी  जैसे सबके मन का आकर्षण आ गया हो पूरा गाँव उस पुराने बट बृक्ष के नीचे एकत्र होकर सन्यासियों के प्रति कृतज्ञता से नतमस्तक होकर कृतज्ञता आभार व्यक्त करने लगा।पंडित परमात्मा ने सन्यासियों का आतिथ्य सत्कार पाकर अपने भाग्य कर्म ईश्वर  के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की पत्नी अनिता से कहा आज हमारे भाग्य है जो स्वयं भगवान भोले नाथ सन्यासियों के वेश में पधारे है इनको कही से ये न लगे कि हमारी सेवा में कोई त्रुटि या कमी रह गयी अनिता ने भी बड़ी सावधानी श्रद्धा से सन्यासियों के लिये भोजन  आदि की व्यवस्था की सन्यासियों के भोजन के उपरांत जब  सोने के लिये गए तब पंडित परमात्मा मनोहर एव अनिता ने उनके पांव दबाना शुरू किया सन्यासियों के आदेश पर ही मनोहर अनिता एव पण्डित परमात्मा सोने के लिये गए सुबह हुई तब सन्यासी उठे दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर साधना ध्यान आदि नियमित पूजा की उसके बाद उन्होंने अनिता और पंडित परमात्मा के साथ मनोहर को बुलाया तीनो एक साथ उपस्थित हुये तब स्वामी गंभीरा नंद जी महाराज बोले देखो पंडित जी एक बार भगवान भोले नाथ स्वयं अर्ध नारीश्वर स्वरूप मनोहर को अनिता के कोख में दे गए थे अब पुनः उसकी रक्षा का माध्यम हम सन्यासियों को बनाया वैसे तो इस पर कोई आंच आएगी नही फिर भी अगर कोई बात आती है तो भगवान शिव का ध्यान करिएगा  आपकी परेशानी तुरंत दूर हो जाएगी ।इतना कह कर तीनो सन्यासी उठे और चल दिये लाख अनुनय विनय करने पर भी नही रुके ।मसनोहर को सन्यासियों के बिछड़ने की पीड़ा बर्दास्त नही हो पा रही थी। सन्यासियों ने मनोहर की शिक्षा के दौरान समाज संसार जीवन मृत्यु मोह संबंधों के संबंध में शिक्षित किया था जो मनोहर के बाल मन पर पत्थर की लकीर की तरह छा गयी थी अतः समूर्ण दुख पीड़ा से बाहर निकल कर  वह अपने जीवन के उद्देश्य पथ पर निकल पड़ा पंडित परमात्मा ने मनोहर की शिक्षा के लिये लगभग सभी विद्यालयों के दरवाजों को खटखटाया मगर किसी ने भी प्रवेश देने से इनकार यह कह कर दिया कि मनोहर के आने से विदयलय का वातावरण दुषित हो सकता है अतः प्रवेश असम्भव है हार थक कर पंडित परमात्मा ने मनोहर को स्वयं मार्ग दर्शन में शिक्षा देना शुरू किया सारी पुस्तके विषयनुक्रम और सलेबस के अनुसार खरीद कर लाते और मनोहर उन्हें स्वयं पड़ता संसय का हल खोजता  और व्यक्तिगत परीक्षा देता इसी प्रकार समय बीतता गया मनोहर ने आयुर्वेद साहित्य व्याकर्ण गणित ज्योतिष आदि में उच्च योग्यता हासिल कर ली और संबंधित परीक्षाएं उत्तिर्ण कर ली  शिक्षा उपाधि प्राप्त करने के बाद मनोहर ने पाँच वर्ष तक स्वयं अध्ययन से विषया गत परिपक्वता हासिल किया और गांव के बाहर बरगद बृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना किया गांव वालों ने मिल कर खूबसूरत भगवान शंकर का मंदिर बनवा दिया जहाँ सुबह शाम दोपहर जब जिसको समय मिलता मंदिर पर आता मनोहर से आध्यात्मिक सानिध्य प्राप्त करता मसनोहर ने आयुर्वेद नृत्य गायन आदि कला में दक्षता हासिल की थी अतः गांव की कन्याओं को नृत्य गायन कला सिखाता कोई लड़का भी सीखना चाहता उंसे भी सिखाता गांव के बच्चों को पढ़ाता कोई बीमार होता तो उसको अपने पास रख कर इलाज करता धीरे धीरे मनोहर की ख्याति दूर दूर तक फैल गयी आस पास के बच्चे बच्चियां उसके पास अध्ययन करने आते नवयुवकों के लिये जीवन उपलब्धि नामक सत्र चलाता देश के विभिन्न भागों से जिनको चिकितको द्वारा इलाज से इनकार कर दिया जाता वे मरीज आते मनोहर की कीर्ति इस प्रकार देश के कोने कोने फैल गयी। इधर सुरैया का दल महाराष्ट्र में बहुत दिनों से घूमता फिरता ऊब चुका था और आय भी नही होती सुरैया बीमार रहने लगी और लाख इलाज के  बाद चिकित्सको ने जबाब दे दिया कि अब भगवान ही कोई चमत्कार  कर सकता हैं सुरैया ने कहा कि मरना ही है तो अपने देश ही मरेंगे सुरैया के दल के सभी सदस्य सुरैया को लेकर लौट आये और उसके मरने का इंतजार करने लगे चूंकि किन्नरों के ठौर कभी एक जगह नही होता है सुरैया के साथी भी रोज धंधे पर निकलते कही से उनको पता चला कि मनोहर नाम के कोई जाग्रत संत है वहाँ सुरैया को ले जाने पर वह निश्चित ठिक हो जाएगी सुरैया के साथी उसको लेकर मनोहर के पास गए जहाँ गांव वाले और बुजुर्ग हो  चुके पंडित परमात्मा भी मौजूद थे जब गांव वालों एव परमात्मा ने देखा कि सुरैया के साथी सुरैया को मरणासन्न ले कर आये है सभी ने कहा मारो मारो जब यह आवाज़ सुरैया के कानों में पड़ी तो उसने अपने साथियों से कहा मुझे गांव वालों एव परमात्मा के समक्ष ले चलो उसके साथी उसको लेकर वहाँ गए सुरैया ने बड़े करुणा भाव से कहा मैं आप लोंगो की अपराधी हूँ आप लोग मुझे मार डाले मेरे अपराध का दंड भी पूरा हो जाएगा और मुझे भयंकर भयानक बीमारी की पीड़ा से मुक्ति भी
इतने में भीड़ को चीरता हुआ मनोहर सुरैया के सामने पहुँचा और बोला यह तो स्वयं मरणासन्न है इसे मारने से क्या फायदा इसे मंदिर पर ले चलिये इसका इलाज हम करेंगे सुरैय्या को लेकर उसके साथी मंदिर पर गए मनोहर ने उनका इलाज शुरू किया लगभग एक माह की चिकित्सा के बाद सुरैया को फायदा होना शुरू हो गया लगभग छः माह बाद सुरैया विल्कुल स्वस्थ हो गया अब सुरैया किन्नरों के कार्य से विरत मंदिर में सेवा करता और मनोहर के कार्यो में हाथ बताता उसके सभी साथी भी उसी के रास्ते पर चल पड़े।एक दिन एका एक भोर में उठा देखा कि मंदिर की सीढ़ियों पर नवजात शिशु के रोने की आवाज़ आ रही है तब उसने मनोहर को जगाया मनोहर ने उस बालक को देखा वह किसी  तेजश्वी की तरह लग रहा था पौ फटा सुबह हुई गांव के लोग एकत्र हुए उस अदभुत बालक को गांव वालों ने एक स्वर में कहा यह भगवान की तरफ से मनोहर को पुरस्कार है जो पंडित पमात्मा के खानदान को रोशन करेगा क्योंकि वह बच्चा लड़का था पंडित परमात्मा के परिवार एव गांव की खुशी की लहर दौड़ गयी सुरैया और उसके साथी एक स्वर में बोल उठे की हम लोंगो ने किन्नर का कार्य छोड़ दिया है मनोहर की संगत में मगर आज हम लोग पंडित परमात्मा के वारिस के लिये बड़ाई गाएंगे झट सुरैया ने अबोध बालक को गोद मे उठा लिया और सारे साथी घंटो नाचते गाते उस बालक को अनिता के गोद मे देते हुये बोले आज भी हम बधाई नही लेंगे क्योकि बधाई में हम लोंगो ने मनोहर मांगा था जो मिल गया जिसने जलालत अपमान के जीवन मे सूरज की रोशनी दिखाकर हम किन्नरों को नया जीवन दिया है पंडित जी आप धन्य हो जिसे मनोहर जैसा ईश्वर का अर्धनारीश्वर संतान मिली जिसने ईश्वरीय विधान में दोष देखने वालों का मान मर्दन कर दिया अब हम लोग बधाई में आपको आपकी पीढ़ी सौंपते है और इसके सलामती के लिये ईश्वर से प्रार्थना करते है पूरे गांव आस पास के गांवों में उल्लास उत्साह का माहौल था मनोहर की ख्याति उपलब्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही थी।

कहानीकार ---नंदलाल मणि त्रिपाठी पितम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

          -----काबा जाए कि काशी--------           


पंडित धर्मराज के तीन बेटे हिमाशु ,देवांशु ,प्रियांशु थे तीनो भाईयों में आपसी प्यार और तालमेल था पूरे गाँव वाले पंडित जी के बेटो के गुणों संस्कारो का बखान करते नहीं थकते पंडित जी के पास एक अदद झोपडी कि तरह घर था खेती बारी भी नहीं थी पंडित जी के  परिवार कि परिवरिस आकाश बृत्ति से चलती थी पंडित जी के यजमानो के दान दक्षिणा से परिवार का भरण पोषण होता ।पंडित के बच्चे भी पंडित जी के पुश्तैनी कार्य में हाथ बटाते पंडित जी ने अपने बेटों को बचपन से ही पांडित्य कर्म कि शिक्षा दी थी पंडित धर्मराज जी कि गृहस्थी बड़े आराम से गुजर रही थी।पंडित जी के गांव में लगभग सौ परिवार मुस्लिम समाज का रहता था गांव का माहौल बहुत ही सौहादरपूर्ण था हिन्दू मुस्लिम सभी एक दूसरे के सुख दुःख में सम्मिलित होते आपस में क़ोई धार्मिक या जातीय भेद भाव नहीं था गाँव को लोग अमन चैन भाई  चारे के नजीर के रूप में मानते ।पंडित जी का भी परिवार इस गाव कि शान था आर्थिक सम्पन्नता बहुत अधिक नहीं थी फिर भी पंडित जी के रसूख में क़ोई कमी नहीं थी।धीरे धीरे समय बीतता गया पंडित जी के तीनों बच्चे जवान हो चुके थे बड़े बेटे हिमांशु का विवाह हो गया और परिवार में एक सदस्य संख्या बढ़ गयी आमदनी सिमित थी और खर्ज बढ़ गया देवांशु को परिवार कि आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा था सरकारी नौकरी तो मीलने वाली नहीं थी अतः उसने योग कि शिक्षा प्राप्त कि और पहले गाँव पर ही लोगो को इकठ्ठा कर योग शिविर लगाने लगा धीरे धीरे जब गांव वालों को योग से अनेको बीमारियों से लाभ हुआ और लोग स्वस्थ होने लगे तब हिमांशु की ख्याति एक दक्ष योग गुरु के रूप में होने लगी और आमदनी होने लगी  कुछ दिनों बाद हिमांशु को एक अवसर शहर में योग शिविर लगाने का प्राप्त हुआ संयोग से उस शिविर में पोलेंड के मिस्टर ट्राम अपने कुछ मित्रों के साथ आये थे वे सभी हिमासु के योग कला से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने हिमासु को पोलैंड आने का निमंत्रण दे दिया ।हिमांशु लगभग एक वर्ष बाद पोलेंड गया वहाँ उसे पोलेंड वासियों ने हाथो हाथ उठा लिया हिमांशु वहां दिन रात तरक्की कि सीड़ी चड़ता जा रहा था फिर उसने अपनी पत्नी को भी वहां बुला लिया और पूर्ण रूप से पोलेंड वासी हो गया।पंडित जी का दूसरा बेटा दिव्यांसु मुंबई में अंतरराष्ट्रीय बड़ी कंपनी में इज़्ज़त और रसूक के पद पर कार्यरत था वैसे तो पंडित जी के दो बेटो ने पंडित जी का नाम बहुत रौशन किया लेकिन दोनों बेटे दूर थे और क़ोई ख़ास आर्थिक मदद नहीं करते पंडित जी ने सोचा कि तीसरे बेटे को कही नहीं जाने देंगे और उसे पुश्तैनी कार्य पांडित्य कर्म में लगा देते है हिमांशु और देवांशु तो दूर न चुके थे अब पंडित धर्म राज और उनकी पत्नी सत्या और तीसरा बेटा प्रियांसु तक परिवार सिमट गया था प्रियांशु यजमानो के बुलावे पर उनके मांगलिक कार्य संपन्न करता दिन धीरे धीरे गुजर रहे थे कि एक दिन प्रियांसु शाम को किसी यजमान के यहाँ से लौट रहा था रास्ते में देखा कि बहुत ही खूबसूरत खोडसी सड़क के किनारे कराह रही थी प्रियांशु उसके नजदीक पंहुचा तो देखा कि लड़की के सर से खून का रिसाव हो रहा है प्रियांशु जल्दी जल्दी उसे अपने कंधे पर लादा अपनी सायकिल वही छोड़ दी और लगभग दो किलोमीटर पैदल चल कर प्राथमिक स्वस्थ केंद्र मोती चक ले गया जहा ड़ॉ तौकीस ने उसका तुरंत उपचार प्रारम्भ किया और पूरी रात निगरानी में रखने को कहा प्रियांशु तो आफत में फंस गया क्योकि उसके माँ बाप परेशान होंगे मरता क्या न करता वह मन मार कर उस अनजान लड़की कि देखभाल कर रहा था रात के लगभग बारह बजे रात को उस लड़की को होश आया तब प्रियांशु ने पूछा तुम्हारा नाम क्या है तरन्नुम लड़की ने बताया प्रियांशु ने पूछा किस गाँव कि रहने वाली हो लड़की ने बताया बंगाई प्रियांशु ने कहा बगाई तो मेरा गाव भी है मगर मैंने तुम्हे कभी नहीं देखा लड़की ने बताया वह मुसलमान हूँ और खलील कि बेटी हूँ इधर पंडित धर्मराज और सत्या प्रियांशु के घर न आने के कारण चिंतित थे सुबह के पांच बजने वाले थे डा तौकिश ने प्रियांशु से कहा अब आप इसे ले जा सकते है फिर डा तौकीस ने कहा बैसे आपकी ये लड़की क्या लगाती है जोड़ी खुदा के करम से बहुत शानदार खूबसूरत है खुदा तुम दोनों को सलामत  रखे प्रियंशु बिना कुछ बोले डा तौकीस का धन्यबाद ज्ञापित किया और तरन्नुम को साथ लेकर प्राथमिक स्वतः केंद्र से बाहर निकाला सौभाग्य से एक तांगा बंगाई गाँव जा रहा था प्रियांशु ने तरन्नुम को उस पर बैठा दिया और किराया देता बोला क़ि इन्हें छोड़ देना जहाँ से ये आसानी से घर पहुँच सके।प्रियांशु पैदल चला और जहाँ पिछले शाम अपनी सायकिल छोड़ कर गया था वहां पंहुचा वहां उसकी सयकील सुरक्षित पडी थी सायकिल लिया और घर चल पड़ा थोड़ी देर बाद घर पहुंचा तब माँ सत्या और पिता धर्मराज ने विलम्ब का कारण पूछा प्रियांशु ने बड़ी ईमानदारी से पूरी घटना बता दिया ।पंडित धर्मराज ने पूछा मुसलमान कि लड़की को छुआ तू अपवित्र हो गया है जा जल्दी से स्नान करो मैं पंचगव्य बनाता हु जिससे तुम पवित्र हो सकोगे प्रियांशु ने स्नान किया और पञ्च गव्य वैदिक रीती स ग्रहण कर पवित्र हुआ।
 प्रियांशु इस घटना को भूल चुका था
 लेकिन तरन्नुम प्रियांशु को नहीं भूल पायी वह कोइ न कोई बहाना खोज लेती और प्रियांशु को छेड़ती प्रियांशु तरन्नुम से दूर भगता क्योकि पिता धर्मराज का डर उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था एक बार पंचगव्य से शुद्ध होकर दुबारा अशुद्ध नहीं होना चाहता था तरन्नुम कि शोखियों शरारते उसके मन को झकझोरती फिर भी वह दूरी बनाये रखता एक दिन तरन्नुम ने अपनी शरारतो में कह ही दिया पोंगा पंडित यह  बात प्रियांशु को ज्यादा संजीदा कर गयी अब वह तरन्नुम के शरारतो को निमंत्रित करता इसी तरह धीरे धीरे दोनों में प्यार हो गया और दोनों के प्यार कि बात गांव में घर  घर चर्चा का विषय बन गयी।जब इसकी जानकारी दोनों के परिवारो में हुई तो पूरे गाँव का माहौल तनाव पूर्ण हो गया और अमन प्यार का गांव नफ़रत के जंग का मैदान बन गया।
गाँव में एक तरफ हिन्दू और दूसरी तरफ मुसलमान आपस में कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे किन्तु कुछ हिन्दू विद्वानों और कुछ मुस्लिम विद्वानों ने सर्व सम्मति से यह निर्णय दिया कि प्रियांशु और तरन्नुम गांव छोड़कर चले जाय क्योकि पंडित धर्मराज के यजमानो का कहना था कि आपका बेटा धर्म भ्रष्ठ हो चुका है और उसे ब्राह्मण समाज में रहने का कोइ हक नहीं है उधर मुस्लिम समाज ने कहा तरन्नुम ने एक काफ़िर से मोहब्बत करने कि जरुरत कि है अतः उसे इस्लाम में रहने का हक नहीं है।
इसी बीच तरन्नुम ने प्रियांशु का हाथ पकड़ा और दोनों सम्प्रदाय के मध्य जाकर खड़ी शेरनी कि तरह दहाड़ मारती उसने अपने हाथ और प्रियांशु के हाथ कि हथेली पर चाक़ू से गहरा घाव बना दिया दोनों के हथेलियों से खून बहने लगा तब तरन्नुम ने दोनों सम्प्रदायो के लोगो से सवाल किया अब बताओ किसका खून इस्लाम का है किसका खून हिन्दू का है जब अल्लाह खुदा भगवान् ने सिर्फ इंसान बनाया तब तुम लोग कौमो और फिरको में बाँट कर नफरत क्यों फैलाते हो ।दोनों सम्प्रदाय के लोग आवाक रह गए फिर तरन्नुम ने ही सवाल किया बताओ हम दोनों कहाँ जाये काबा या काशी।
 दोनों ने एक दूसरे का हाथ थामा और गांव छोड़कर चले गए दोनों और मुम्बई पहुच गए तरन्नुम कपड़ो कि सिलाई करती और प्रियांशु मजदूरी करता खली समय में दोनों पड़ते कहते है न कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो नई मंजिल कि उड़ान का रास्ता खुल जाता है करीब दस सालो के कठोर परिश्रम से तरन्नुम का चयन भारतीय प्रसाशनिक  सेवा में हुआ और प्रियांशु का भारतीय पुलिस सेवा में दोनों कि नियुक्ति उनके राज्य में ही  हुई ।आज उनके गॉव के हिन्दू मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग फक्र से कहते है तरन्नुम और प्रियांशु उनके गाव के अभिमान है।

कहानीकार- नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

_______________&______________&_____________

-----बिचित्र प्राणी बिशन-----


किशन सुबह ब्रह्म मुहूर्त की बेला में उठा और शाम के दिये बापू के आदेशों को याद कर बेचैन हो गया बापू ने शाम को किशन को समझाते हुए कहा था बेटा हम लोग गरीब है कोई रोजगार तो है नही सिर्फ थोड़ी बहुत खेती है जिसके कारण दो वक्त की रोटी मिल जाती है और खेती मेहनत श्रद्धा की कर्म पूजा मांगती है ।तुम्हारे ऊपर दोहरी जिम्मेदारी है एक तो एकलौते संतान होने के कारण खेती बारी में मेरा सहयोग करना और दूसरा मनोयोग से पढ़ना जिससे कि जो अभाव परेशानी मुझे अपने जीवन मे झेलनी पड़ी वह तुम्हे न उठानी पड़े मेरे पिता जी यानी तुम्हारे दादा जी ने मुझे अच्छी शिक्षा देने की अपनी क्षमता में पूरी कोशिश की मगर आठ जमात से अधिक  नही पढा सके जिसका उन्हें मरते दम तक मलाल था। मैं मजबूरी में पढ़ नही सका इसका मलाल मुझे मरते दम तक रहेगा किशन शाम को दी बापू  की नसीहत से खासा बैचैन था क्योंकि खेत मे प्याज की रोपाई  होनी थी और अभी खेत पूरी तरह तैयार नही था ।जल्दी जल्दी किशन उठा दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर माँ से गुड़ मांगा और गुड़ पानी पीकर फावड़ा लेकर खेत की तरफ चल दिया खेत पहुंच कर खेत की गुड़ाई का कार्य करने लगा और खेत के खास को निकाल एकत्र करता   जिसे अपनी गाय के लिए ले जाना था किशन अपने  कार्य को बड़ी एकाग्रता के साथ कर रहा था सुबह के लगभग साढ़े चार ही बजे थे गांव के एक्का दुक्का महिलाएं बाहर जाती दिख जाती कभी कभार गांव के अधेड़ बुजुर्ग भी दिखाई पड़ते किशन को आठ बजे घर पहुचकर स्कूल जाने की तैयारी करनी थी अतः वह बिना समय गंवाए पूरी तल्लीनता से अपने कार्य मे  मशगूल था तभी उसके सामने एक अजीब सा प्राणी नज़र आया किशन बिना ध्यान दिए अपना कार्य करता चला जा रहा था आज सोमवार था और तीन दिन बाद उसे बृहस्पतिवार को खेत मे प्याज़ के फसल की रोपाई करनी थी एकाएक वह अजीब सा दिखने  वाला प्राणि किशन के बिल्कुल सामने आ गया किशन खेत की गुड़ाई का कार्य रोक कर उस अजनवी की तरफ मुखातिब हुआ उसने देखा कि उस अजीब प्राणी की बनावट बड़ी विचित्र थी वह पृथ्वी के इंसानों से बिल्कुल भिन्न तो था ही किसी जानवर से भी मेल नही खा रहा था कुछ देर के लिये किशन सहमा और डरा भी मगर उस अजीब से दिखने वाले प्राणी का व्यवहार दोस्ताना और प्यार भरा था अतः किशन ने उससे पूछा क्यो भाई आप कौन है और कहां के बिचित्र प्राणी है यहाँ पृथ्वी पर क्यो भटक रहे है किशन के इतने सारे प्रश्नों का मतलव वह विचित्र प्राणी नही समझ पा रहा था अतः उसने आकाश की तरफ इशारा करते बताया कि मैं वहां से आया हूँ किशन को लगा कि वह विचित्र प्राणी कह रहा हो कि वह भगवान के यहां से आया है किशन को उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी का व्यवहार बहुत अपनापन सा लग रहा था अतः किशन उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी से अपने दोस्त शुभचिंतक की तरह बात इशारों में करने लगा कुछ इशारों को वह संमझ पाता और कुछ इशारों को नही संमझ पाता यही दशा किशन की थी वह उस बिचित्र प्राणी के कुछ इशारों को संमझ पाता और कुछ को नही किशन और उस बिचित्र प्राणी के इशारों इशारों की बातों में सुबह कब पौ फ़टी सूर्योदय हो गया पता नही चला सुबह के लगभग आठ बजने ही वाले थे किशन खेत के गुड़ाई  का कार्य के उस दिन के निर्धारित लक्ष्य से बहुत पीछे उस बिचित्र प्राणी के चक्कर मे रह गया था। मगर उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी का अपनापन प्यार उसके मन मे लक्ष्य अधूरा रहने के मलाल को जन्म नही दे रहा था किशन को घर लौटना था वह असमंजस में था कि यदि उस विचीत्र से दिखने वाले प्राणी को अकेला छोड़ दिया तो गांव वाले उसे मार डालेंगे इशारों इशारों में उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी ने भी आशंका जाताई थी एकाएक किशन ने निश्चय किया कि वह उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी को अपने साथ घर ले जाएगा और वह उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी को लेकर घर की ओर चल दिया घर चलने से पहले उसने  उसे अपने अंगौछे से ढक दिया रास्ते मे गांव वाले पूछते किशन ये क्या है किशन कहता कुछ नही यह मेरा दोस्त है किशन उस बिचित्र प्राणी को लेकर घर पहुंचा तो किशन के बापू अरदास बोले बेटा ये क्या है किशन ने बड़ी सहजता से जबाव दिया यह मेरा दोस्त  है किशन ने ज्यो ही उस बिचित्र प्राणी से अपना अंगौछे को हटाया किशन के बापू अरदास दंग रह गए बोले बेटा यह तुम्हारा दोस्त कैसे हो सकता है यह तो इस पृथ्वी के ना तो किसी जीव जंतु जैसा है ना ही आदमी जैसा तभी उस अजीब प्राणी ने बड़े ही आदर से झुक कर किशन के पिता अरदास के पैर छुए अरदास आश्चर्य से भौचक्के रह गए और उनका क्रोध समाप्त हो गया उन्होंने किशन से पूछा बेटा यह तुम्हे कहाँ मिला किशन ने अपने बापू से उस बिचित्र प्राणी से मुलाक़ात का पूरा व्योरा बताया और बोला बापू हम तो अभी स्कूल चले जायेंगे इस बिचित्र प्राणी का ख्याल रखना  और गांव वालों की नज़र  से बचाना अरदास बोले ठिक है बेटा लेकिन अपनी अम्मा को इससे मिला दो और उन्हें बता दो वह इसका बेहतर ख्याल रखेंगी किशन उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी को लेकर ज्यो ही माँ मैना के पास गया उस बिचित्र प्राणी ने झट जा माँ मैन के पैर छूकर उनकी गोद मे बैठ गया कुछ देर के लिये तो माँ मैना डर के मारे सहम गई मगर उस बिचित्र प्राणी का प्यार भरा व्यवहार देखकर निडर होकर किशन से पूछा ये  क्या है बेटा किशन बोला माँ यह मेरा दोस्त  है जैसे माँ तू मेरा ख्याल रखती हो ठीक वैसा ही यह भी तुम्हारा खयाल रखेगा हमे स्कूल  जाना है देखना इस पर गांव वालों की नज़र ना पड़े माँ मैना बोली बेटा ठीक है तुम निश्चिन्त होकर स्कूल जाओ यह मेरे पास उसी प्रकार रहेगा जिस प्रकार तुम रहते हो किशन तैयार होकर स्कूल चला गया इधर वह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणि माँ मैना के साथ घर पर माँ के हर काम मे हाथ बटाने लगा माँ बर्तन मज़ती वह शुरुआत ही  करती मगर सारा बर्तन थो देता कपड़ा साफ करना हो या खाना बनाना सभी कामो में माँ की आगे बढकर हाथ बटाता मैना को तो एक ही दिन में लगने लगा कि बिचित्र सा प्राणी उनका ही छोटा बेटा है।
एक ही दिन में बिचित्र सा दिखने वाला  प्राणी किशन के माँ बापू का दुलारा बन गया उसका व्यवहार इसांनो से अधिक संवेदनशील और व्यवहारिक था उसके  व्यवहार आचरण में औपचारिकता बिल्कुल नही थी  आभास ही नही होता था कि बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी किसी शिष्ट सभ्य समाज से ताल्लुक नही रखता सिर्फ फर्क था तो मात्र इतना कि वह कार्य सभी इंसानों वाला करता मगर कुछ भी खाता पिता नही सिर्फ वह चूल्हे की आंच के सामने कुछ देर बैठ कर ही तरोताज़ा ताकत ऊर्जा से भरपूर हो जाता उसके आचरण व्यवहार को देख किशन के पिता अरदास पत्नी मैन से बोले आज जब इंसानों के समाज  द्वेष ,घृणा, लालच, स्वार्थ में अंधे एक दूसरे की टांग खिंचते कभी कभी एक दूसरे के खून के प्यासे हो नैतिक मूल्यों मर्यादाओं का परिहास उड़ाते है ऐसे में यह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी पृथ्वी वासी मनुष्यों के लिये एक सिख देता मार्गदर्शक  है ।निश्चय ही मेरे किशन ने इस जन्म या पूर्व जन्म में कुछ अच्छे कर्म किये है जिसके कारण किशन की मुलाकात इस प्राणी से हुई मैना  भावुक होकर बोली जी मैं तो चाहती हूँ कि यह हमारे घर हमारा दूसरा बेटा बनकर रहे लेकिन पता नही क्यो डर लगता है कि कही यह हमें छोड़ कर चला न जाये जिसने सुबह से शाम केवल एक दिन में ही मर्यादा प्रेम और संस्कारों के भाव मे ऐसा बांध लिया है कि मुक्त होना कठिन है।शाम होने को आई किशन भी स्कूल से आ चुका था किशन के आते ही वह बिचित्र सा प्राणि किशन के साथ दूसरे भाई की तरह हो लिया किशन को इस बात पर बहुत आश्चर्य था कि अम्मा बापू पर इस अबोध अंजान बिचित्र से दिखने वाले प्राणी ने  कौन सा जादू कर दिया है कि वे लोग उससे ज्यादा प्यार और सम्मान उस प्राणी का कर रहे है रात को जब किशन जब पढ़ने बैठा तब वह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी भी किशन के साथ बैठा और किशन को उसकी पढाई में सहयोग करता उलझे प्रश्नों का उत्तर बताता पढाई समाप्त करने के बाद किशन खाना खा कर सोने के लिये गया तो वह बिचित्र प्राणी भी साथ हो लिया सुबह किशन उठा तो वह विचित्र प्राणी भी साथ उठा वह कब सोया यह किशन को  मालूम नही हो सका किशन जल्दी से दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर गुड़ पानी पी कर खेत की गुड़ाई करने चल दिया साथ साथ वह विचित से प्राणी भी साथ चल पड़ा
जब किशन खेत की गुड़ाई कर रहा था  तब विचित्र सा  दिखने वाले प्राणी ने फावड़ा किशन के हाथ से ले लिया और जैसे जैसे किशन खेत की गुड़ाई कर रहा था वह करने लगा और लगभग तीन घंटे में पूरे खेत की गुड़ाई कर दी किशन को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने उस विचित सा दिखने वाले प्राणी जिसकी लम्बाई साढ़े तीन फीट और बनावट अजीब सी थी को गले लगा लिया औऱ भावुक होकर बोला कि तुम अब विचित्र प्राणी नही तुम मेरे भाई बिशन हो वह विचित्र प्राणि यानी बिशन अब पृथ्वी वासियों की भाषा समझने लगा था और बोलने की कोशिश करता किशन और बिशन दोनों साथ घर की तरफ चल दिये घर पहुंचकर बापू अरदास को किशन ने बताया कि विचित्र प्राणि  को सभी लोग बिशन नाम से बुलाएंगे अरदास और मैना बिशन के आने से किशन के साथ बहुत खुश थे परिवार में एक ऐसा सदस्य जुड़ गया था जो सबका ख्याल रखता था उसकी अपनी जरूरते बहुत सीमित थी पूरे परिवार में उल्लास उत्साह और खुशी का माहौल बिशन के आने से बन गया था।बिशन को आये दो दिन ही हुये थे कि मेंहदी पुर गांव में कानो कान खुसर फुसर चल  रही थी कि अरदास के यहॉ एक बहुत खास और बिचित्र प्राणी पता नही कहां से आया  है किशन स्कूल जाते समय बापू से बोला बापू आज गांव के कुछ लोंगो ने बिशन को खेत मे मेरे साथ देखा है सम्भव है मेरे स्कूल जाने के बाद गांव के लोग आपसे बिशन के विषय मे जानकारी चाहे मगर बापू मेरी कसम आप किसी को कुछ मत बताना नही तो सब मिलकर हमारे बिशन को हमलोंगो से दूर कर देंगे अरदास बोले बेटा तुम निश्चित रहो मेरे होते हुये बिशन को कोई हमसे अलग नही कर सकता किशन निश्चिन्त होकर स्कूल चला गया जैसी की आशंका थी किशन के स्कूल जाने के कुछ ही देर बाद गांव वाले गांव के मुखिया मुनेश्वर के साथ अरदास के दरवाजे आ धमके अरदास ने जब देखा कि गांव वाले उनके दरवाजे आ धमके उनको अंदाजा तो था ही उन्होंने अपनी पत्नी मैना को हिदायत दी कि किसी भी सूरत में बिशन बाहर ना निकले अपने दरवाजे पर गांव वालों को देख कर अरदास ने सबको गुड़ का शर्बत पिलाया और आदर सम्मान से बैठाया और पूछा आप लोग हमारे दरवाजे की शोभा बढ़ाने आये हम आप लोंगो की क्या सेवा करे प्रधान मुनेश्वर बोले अरदास जी सुना है आपके घर कोई बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी आया है गांव वालों की मंशा है कि आप उंसे गांव वालों से मिलवाये परिचय करवाए अरदास  बोला प्रधान जी एक तो हमारे यहां कोई विचित्र प्राणि नही रहता जो रहता है वह मेरा दूसरा बेटा बिशन है जो पंद्रह साल पहले विकृत पैदा  हुआ था सो हमने उसे समाज के तानों और परिहास से बचाने के लिये छिपा के रखा मगर आज मैंना उंसे लेकर बाहर गयी है उसका इलाज झाड़ फूँक करवाने क्योकि उसकी तबीयत कुछ गड़बड़ लग रही थी  ज्यो बिशन स्वस्थ होगा पूरे गांव वालों से उसका परिचय करवा देंगे अरदास ने इतना सटीक और खूबसूरत बहाना बनाया की गांव वाले निरुत्तर हो गए  और  चले गए मगर गांव वालों के मन मे दुविधा बनी रही कि अरदास झूठ क्यो बोल रहे है अब गांव में हर घर चर्चा होने लगी कि अरदास की बीबी मैना ने ऐसा बालक जना है कि जो पृथ्वी के किसी प्राणि से मेल नही खाता धीरे धीरे यह बात आग की तरह पूरे इलाके जनपद में फैल गयी हर दिन अरदास के दरवाजे पर सुबह से शाम हज़ारों लोंगो उस बिचित्र संतान को देखने की जिद करते मगर किशन उंसे लेकर कभी इधर कभी उधर छिपता फिरता इसी चक्कर मे उसका स्कूल जाना बंद हो गया बात फैलते फैलते स्थानीय पुलिस और  जिलाधिकारी तक पहुंच गयी जिलाधिकारी सुबोध मुखर्जी मीडिया पोलिस और पूरे जनपद के संभ्रांत लोंगो के साथ साथ चिकित्सको और दिल्ली से कुछ खास वैज्ञानिकों की एक टीम बनाकर अरदास के दरवाजे मेहंदी पुर गांव पहुंचे अरदास इतने बड़े बड़े हाकिम और पुलिस को देखकर हैरत और भय में टूट गया बोला हाकिम बिशन जो मेरे बेटे के समान है उंसे मैं आपलोगों के समक्ष तभी प्रस्तुत कर पाऊंगा जब आप लोग यह लिखित आश्वासन दे कि आप लोग  द्वारा उसका कोई नुकसान नही किया जाएगा और उसे हमारे  परिवार से अलग नही किया जाएगा  काफी ना नुकुर करने के बाद पूरे प्रशासनिक अमले ने विचार विमर्श करके इस निष्कर्ष पर पहुंची की अरदास जो कह रहा है उंसे लिख कर देकर आश्वस्त करने में कोई हर्जा नही है  तुरंत जिलाधिकारी सुबोध मुकर्जी ने लिखित आश्वाशन वैसा ही दे दिया जैसा अरदास चाहते थे अब अरदास अपने घर के अंदर गए और मैना  के साथ बिशन किशन को साथ लेकर बाहर आये बिशन मैना की गोद मे उसी प्रकार बैठा था जैसे कोई बेटा अपनी माँ की गोद मे बैठता है जब जिलाधिकारी और उनकी टीम जिसमें बैज्ञानिक चिकित्सक और इलाके के संभ्रांत लोग थे के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा क्योकि अरदास जिसे अपना विकृत दूसरा बेटा कह रहे थे वास्तव मे वह परग्रही प्राणी एलियन था जो किसी कारण भटक कर अरदास के परिवार को मिल गया था वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिये शोध खोज का विषय था जिसके लिये उंसे साथ ले जाना आवश्यक था मगर जिला अधिकारी ने लिखित आश्वासन दे रखा था कि उसे अरदास के परिवार से अलग नही किया जा सकता है। अतः सभी मन मसोश कर चल दिये ।
अब प्रतिदिन अरदास के दरवाजे पर सुबह पूरे प्रदेश और जनपद के सुदूर इलाको के लोंगो की भीड़ लग जाती टी वी चैनल्स अखबार वालो के लिये मसालेदार खबर थी जिससे उनके चैनल्स और अखबार की स्वीकृति और रेटिंग बढ़ रही थी आने वाले लोंग और चैनल्स अखबार वालो ने जमकर अरदास के परिवार वालो पर पैसे की बरसात की अरदास ने पच्चीस एकड़ का फार्महाउस खरीद लिया और शानदार हवेली बनवा की बिशन को आये लगभग एक वर्ष पूरे हो चुके थे लेकिन अरदास के दरवाजे पर भीड़ का तमाशा कम होने का नाम ही नही ले रहा था प्रतिदिन भीड़ बढ़ती ही जा रही थी इस बात की खबर सबको थी अब कुछ बाहुबलियों की निगाह अरदास के कमाई पर पड़ी और उन लोंगो ने अरदास को आदेश दिया कि बिशन को उसके हवाले कर दे उधर प्रदेश औऱ देश की सरकारें बिशन को अपने कब्जे में लेकर शोध कार्य करना चाहती थी अरदास पर चौतरफा दबाव था देश की सरकार ने एक प्रतिनिधिमंडल बाकायदे राज्य सरकार की सहमति से बिशन को लाने के लिये भेजा प्रतिनिधि मंडल अरदास के घर बिशन को लेने पहुंचा अरदास की संमझ में कुछ भी नही आ रहा था कि वह अपने जिगर के टुकड़े जैसे एलियन बिशन को सौंपे या नही अन्त  में अरदास ने फैसला किया कि वह किसी भी सूरत में बिशन को किसी को नही सौंपेगा सरकारी प्रतिनिधिओ ने बिशन को सौंपने के एवज में अच्छी खासी रकम अरदास को देने की पेशकश की वार्तालाप में लगभग एक सप्ताह का समय बीत चुका था मगर कोई हल निकलता नही दिख रहा था ठिक आठवें दिन अरदास के दरवाजे पर भीड़ एकत्र थी सरकार के प्रतिनिधि भी मौजूद थे उसी समय एलीयन्स का एक समूह वहां उतरा जिसे देखते ही बिशन अरदास को उनकी तरफ इशारा किया अरदास और मैना और किशन बिशन को लेकर भीड़ को चीरते हुए एलियन्स के समूह के पास गए ज्यो ही वे उनके समूह के पास गए उनमें से एक मैना के पास आया जिसकी गोद मे बिशन बेटे की तरह बैठा था उसने बिशन को अपनी तरफ आने का इशारा किया अरदास ने मैना से कहा यह बेटा हम लोंगो के लिये इतने ही दिनों के लिये ही अपनी माँ परिवार से बिछड़ कर आया था तुम एक माँ हो अब तुम्हारी जिम्मेदारी है कि बिशन को उसके परिवार माँ के हवाले कर दो मैना के आंख से आंसु के धार फुट पड़े किशन और अरदास भी रोने लगें वहां एकत्र भीड़ यह करुण दृश्य देखकर गमगीन हो गई मैना ने भारी मन से बिशन को ज्यो ही अपनी गोद से छोड़ा सारे एलियन्स खुशी खुशी बिशन को लेकर आकाश की ओर उड़ चले सभी यह दृश्य देखकर हतप्रद रह गए ।।

कहानीकार --नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

        ---------मौन------

जुबान ,जिह्वा और आवाज़ जिसके संयम संतुलन खोने से मानव स्वयं खतरे को आमंत्रित करता है और ईश्वरीय चेतना की सत्ता को नकारने लगता है।अतः जिह्वा जुबान का सदैव
संयमित संतुलित उपयोग ही नैतिकता नैतिक मूल्यों को स्थापित करता है जिह्वा जुबान का असंयमित असंतुलित प्रयोग घातक और जोखिमो को आमंत्रण देता है ।प्रस्तुत लघुकथा इसी ईश्वरीय सिद्धान्त पर आधारित आत्मिक ईश्वरीय तत्व  का बोध कराती समाज को एक सार्थक संदेश देती है-- जमुनियां गांव में बहुत बढ़े जमींदार मार्तंड सिंह हुआ करते थे आठ दस कोस में उनसे बड़ा जमींदार कोई नही था उनके परिवार की सेवा में पूरे गांव के लोग चाकरी करते थे चाहे खुद जमींदार मार्तण्ड सिंह की ही बिरादरी के लोग क्यो न हो ।मार्तण्ड सिंह के गांव के ही उनके पट्टीदार थे अनंत सिंह जो बहुत साधारण हैसियत के व्यक्ति थे किसी प्रकार उनका खर्चा चलता जब उन पर जमींदार मार्तण्ड  सिंह की कृपा होती ।अनंत सिंह  का बेटा मार्तण्ड सिंह का घरेलू कार्य करता जैसे मालिक को नहलाना
उनकी मालिश करना पैर दबाना आदि
मार्तण्ड सिंह के दो बेटे और एक बेटी थी जिनका नाम शमसेर सिंह दुर्जन सिंह और बेटी का नाम प्रत्युषा था तीनो अंग्रेजी कान्वेंट स्कूल में क्लास थर्ड फोर्थ फिफ्थ में पढ़ते थे अनंत सिंह के बेटे  निरंकार सिंह को भी पढ़ने का बहुत शौख था मगर एक तो अनंत सिंह की हैसियत नही थी दूसरे मार्तण्ड सिंह का खौफ वे हमेशा कहते खाने का ठिकाना नही बेटे को हाकिम
कलक्टर बनाने का सपना देखोगे तो  दो रोटी पूरे परिवार को मेरी चाकरी से मिलता है उसे भी बंद करा दूंगा।अनंत सिंह एवं उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी मार्तण्ड सिंह की गुलामी ईश्वर का न्याय और भाग्य मानकर मन मसोस करते जाते।मगर उनका बेटा निरंकार मन ही मन ईश्वर की शक्ति अपनी आत्मा से प्रतिज्ञ था कि वह पिता की विवसता की दासता तोड़ेगा वह मार्तण्ड सिंह की चाकरी करता और बेवजह चाबुक लात बेत की मार ठकुराई जमीदारी के शान की खाता रहता इन सबके बीच वह  समय निकाल कर मार्तण्ड सिंह के बेटे बेटियों की किताब माँगकर पढ़ता
मार्तण्ड सिंह के बेटो बेटी को पढ़ने में
कोई रुचि नही रहती सिर्फ बाप के भय से पढ़ने की औपचारिकता करते 
इधर निरंकार मार्तण्ड सिंह की चाकरी  में प्रतिदिन चाबुक डंडे लात घूंसों की
मार सहता कभी नाक फूटती कभी
हाथ पैर में घाव के दर्द से परेशान हो
जाता फिर भी वह अपने पिता अनन्त सिंह से कुछ नही बताता ना ही इतने जुल्म पर मार्तण्ड सिंह से ही कुछ कहता सिर्फ मौन रह सबकुछ बर्दास्त करता अपने उद्देश्य पथ शिक्षा हेतु सारे प्रयास करता एक दिन ठाकुर मार्तण्ड सिंह ने निरंकार को पढ़ते देख लिया और कुछ सवाल किया उनको लगा कि निरंकार उनके बेटे बेटियों से ज्यादा तेज और कुशाग्र है सो उन्होंने क्रोध से उसे सलाखों से दाग दिया छटपटात तड़फड़ाता निरंकार कुछ नही बोला और फिर नित्य की भाँती अपनी कार्य मे लग गया।समय बीतता गया निरंजन ने चोरी चोरी हाई स्कूल प्राईवेट पास प्रथम श्रेणि में पास किया जिसकी जानकारी मार्तण्ड सिंह जी को नही थी।उनके दोनों बेटों एव बेटी ने भी किसी तरह हाई स्कूल पास कर लिया अब ठाकुर मार्तण्ड सिंह ने माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिये अपने बच्चों को शहर के स्कूल भेजा और निरंकार को साथ बच्चों का भोजन बनाने और सेवा के लिये साथ भेजा आब क्या था निरंकार को ईश्वर ने अवसर दे दिया वह खुशी खुशी शमशेर दुर्जन प्रत्यूषा के साथ साथ लखनऊ चला गया और वहां इनका खाना बनाता बर्तन माजता कपड़े साफ करता और समय निकाल कर उन्ही की किताबो से चोरी छिपे पड़ता रहता धीरे धीरे मार्तण्ड सिंह के बच्चों ने इंटर मीडिएट स्नातक की परीक्षा पास की  निरंजन ने स्नातक व्यक्तिगत छात्र के रूप में विश्विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया जब समाचार पत्रों में खबर छपी तब शमशेर दुर्जन ने उसकी इतनी धुनाई की वह लगभग मरणासन्न हो गया उसे मरा जानकर शमसेर एव दुर्जन ने पास की झाड़ी में फेंक दिया।सुबह फजिर की नवाज़ से पहले मिया नासिर उधर से गुजर रहे थे कि किसी इंसान के कराहने की आवाज़ सुनाई दी फौरन जाकर देखा तो एक इंसान जो मरणासन्न था मगर सांसे चल रही थी मिया साहब उसे उठाकर अपने घर ले गए और उसका देशी इलाज शुरू किया होश आने पर जब उसका नाम नासिर ने पूछा तो उसने सारी घटना  आप बीती बताकर अपना असली नाम छुपाने की बिना पर नासिर को अपना  असली नाम बताते हुये उसे छुपाने का आग्रह किया और नकली नाम रहमान से परिचय करवाया नासिर को कोई आपत्ति नही थी । नासिर जूते चप्पलों की मरम्मत का काम करता था नासिर के ही कार्य को रहमान उर्फ निरंकार ने शुरू किया।एक दिन फुटपाथ पर बैठा रहमान जूतो चप्पलों की मरम्मत का कार्य कर रहा था कि उधर से गुजरते शमशेर और दुर्जन की नज़र उस पर पड़ी दोने जाकर अपने जूते पालिश करवाये और उसके उपरांत उसे अपने बूटों से इतनी तेज मारा की निरंकार सड़क के एक किनारे जा गिरा उसके नाक हाथ मे घाव हो गए और खून गिरने लगा फिर भी वह कुछ नही बोला देखने वाले लोगो को दया और शर्मिदगी महसूस हुई मगर वे भी कुछ बोल नही सके। इसी तरह समय बीतता गया निरंकार ने स्नातकोत्तर में विश्विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया ।अब उसका मकशद जीवन भर की जलालत जुर्म की जिंदगी को स्वयं परिवार को आज़ाद कराना उसने दिन रात कड़ी मेहनत की और भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हुआ उसके चयन की खबर उसके गांव उसके पिता और मार्तण्ड सिंह को हो चुकी थी ।चयन होने के बाद निरंकार नासिर के साथ अपने गांव गया और सबसे पहले अपने पिता का आशिर्वाद प्राप्त किया उसके पिता अनंत देव अपना आशीर्वाद देने के बाद अपने बेटे को ठाकुर मार्तण्ड सिंह के पास ले गए ठाकुर मार्तण्ड सिंह ने पिता
अनंत देव सिंह से कहा तुम्हारे बेटे ने  हमारे परिवार के क्रूरता अन्याय अत्याचार को अपने संयम संतुलन आचरण से बर्दाश्त किया  कभी कुछ नही बोला मौन रहा ठीक
उसी प्रकार जैसे कोई पत्थर की मूर्ति
संवेदन हीन जिसे दर्द पीड़ा का एहसास नही था यह निरंकार की निरंकुशता के खिलाफ सहनशक्ति थी और उसके चैतन्य सत्ता आत्मा में जीवन मूल्य उद्देध्य की जागृति का जांगरण का परिणाम हैं जिसने उसे सफल किया जैसे कि मरे हुये जानवर की खाल की सांस से लोहा भस्म हो जाता है ठीक उसी प्रकार निरंकार के मौन ने हमारी निरंकुशता की जमीदारी को भस्म करने की प्रतिज्ञा पूर्ण की है तुम भाग्यशाली हो ठाकुर अनंत सिंह और हम अन्याय क्रुरता में रक्त सम्बन्धो को भूलने वाले
अब शनै शैन अपने समाप्त होने की दर्द पीड़ा में जलते जाएंगे।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश


 _____&___&___&___&___&___&___&____&____

-------संस्कार की शिक्षा----------

एक गाँव मे एक गरीब ब्राह्मण रहते थे    उस गरीब ब्राह्मण के पास अपनी छोपडी के अलावा खेती की कोई जमीन नही थी जिसके कारण पंडित जी अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिये पांडित्य कर्म करते उससे भी परिवार का पेट नही भरता तो भिक्षाटन भी करते बड़ी मुश्किल से  परिवार का गुज़र बसर हो पाता कभी कभार भाका मस्ती के कारण पानी पी कर ही दिन रात गुजारनी पड़ती।पंडित  की चार पुत्र थे  जिनका पढने लिखने में मन नही लगता पंडित जी अपनी पूरी क्षमता से कोशिश करते कि उनके बेटे कम से कम इतना तो पढ़ ही ले कि कम से कम पांडित्य कर्म करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकने में सक्षम हो सके मग़र उनके चारों पुत्रो पर कोई प्रभाव नही पड़ा धीरे धीरे समय बीतता गया और पंडित जी के चारों बेटे जवान हो गए मगर शिक्षा के नाम पर मात्र संस्कृत के कुछ अक्षर शब्द ज्ञान तक ही सीमित थे।अब पंडित जी के ऊपर जवान चार बेटो के भरण पोषण का भी भार था पंडित जी को देखकर अक्सर लोग कहते थे पंडित जी की क्या किस्मत है जिसके चार चार जवान बेटे नाकारा हो क्या कहा जाय भगवान के न्याय को पंडित जी कोल्हू के बैल जैसे दिनरात खटते और पत्नी के साथ साथ चार जवान बेटों का पेट भरते पंडित जी बूढ़े भी हो चुके
थे एक दिन पंडित जी ने अपने चारों बेटों सुरेश ,रमेश, दिवेश ,शिवेश को बुलाया और वात्सल्य से भाव विभोर होते हुए कहा मेरे प्यारे सुपुत्रों मैन तुम लोगो पर कभी कोई दबाव पिता होने के नाते नही बनाया तुम लोंगो की जब जो इच्छा हुई करते रहे मैने सदैब तुम लोंगो की प्रसन्नता में खुद की भलाई और खुशी का अनुभव किया अब मैं बूढ़ा हो चुका हूँ पता नही कब ईश्वर के यहाँ से बुलावा आ जाय मैं चाहता हूँ कि तुम लोग अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करो इतना कहने के बाद पंडित जी की आंखों से आंसू आ गए पंडित जी के चारो बेटो ने जब पिता शुखराम की स्वयं के कारण यह दशा देखी चारो ने एक स्वर में कहा पिता जी अब हम लोग आपको अपनी शक्ल तभी दिखाएंगे जब कुछ समाज मे आपके लिये कर सकने में सक्षम होंगे इतना कह कर चारो भाई उठे और एक साथ आपस मे मंत्रणा करने लगे कि वे ऐसा क्या करे कि उनके बुढे पिता को आत्म सन्तोष मिले चारो ने कहा कि चुकी हम लोंगो ने अपने पिता को जबान दे रखा है कि
हम लोग अपनी शक्ल तभी दिखाएंगे जब समाज मे किसी सम्मान जनक स्तर पर पहुँच जाएंगे चारो भाईयो ने किसी तरह रात काटी और ब्रह्म मुहूर्त की बेला में साथ उठे और स्नान आदि नित्य क्रिया से निबृत्त होकर बिना किसी को बताए घर छोड़ बाहर निकल पड़े चारो भाई एक साथ पैदल चलते चलते थक चुके थे एक जामुन के बृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे तभी जामुन के बृक्ष से जामुन का एक फल नीचे गिरा बड़ा भाई सुरेश बोला (जामुनी अन्त न पाईओ) थोड़ी देर विश्राम करने के उपरांत चारो भाई फिर भूखे प्यासे चल पड़े कुछ दूर चलने के बाद फिर चारो भाई एक पीपल के बृक्ष के नीचे बैठ कर विश्राम करने लगे उसी समय दो व्यक्ति आपस  मे लड़ते झगड़ते चले जा रहे थे जिनको देखकर दूसरे भाई रमेश के मुँह से बरबस निकल पड़ा (ता पर मंडे  रार) पंडित सुखराम की नीद खुली तब उन्होंने अपनी पत्नी सुचिता से पूछा कि हमारे चारों पुत्र कहां चले गए सुचिता ने कहा कि आपसे कल चारो ने कहा था कि वे जब तक समाज मे सम्मानित स्तर पर नही पहुंच जाते तब तक अपनी शक्ल नही दिखाएंगे पता नही कब चारो कहाँ चले गए और फुट फुट कर रोने लगी पंडित सुख राम ने सुचिता को ढाढ़स बधाया और। बोले हमने पूरे जीवन मे किसी का कभी कुछ नही बिगाड़ा विश्वास रखो मेरी संतानों का भी अनभल भगवान नही करेगा किसी तरह से सुचिता ने अपने कलेजे पर पत्थर रख दिन रात अपने बेटों के इंतज़ार करने लगी।ईधर दो दिन से भूखे प्यासे चारो भाई चलते थकते विश्राम करते फिर चलते ना कोई उद्देश्य था ना निश्चित रास्ता चारो विश्राम कर रहे थे कि दो व्यक्ति आपस मे प्रेम करते जा रहे थे तभी तीसरे भाई के मुख से निकला (प्रीत करंता द्वी जने)  फिर चारो भाई साथ चलना शुरू किया कुछ दूर पैदल चलने के बाद फिर चारो भाई एक बट बृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे तभी चारो ने देखा कि एक पुरुष एक स्त्री को जबरन हाथ पकड़ कर घसीटते ले जाने की कोशिश कर रहा है शिवेश के 
जुबान से निकला(ता हरि लाओ नारी)
अब चारो भाईयो ने तय किया कि हम चारो ने जो शब्द बोले है उन्हें इकठ्ठा करके देखते है कि क्या हमने कुछ सार्थक किया या नही चारो ने क्रमश अपने शब्द बोलना  प्रारम्भ किया (जामुनी अंत न पाईओ ,ता पर मंडे रारी ,प्रीति करंता द्वी जने ता हरि लायो
नारी।।)चारो भाईयो ने देखा कि उनके द्वारा बोले शब्दो से बहुत सुंदर श्लोक का निर्माण  हो गया जो किसी वेद पुराण या धर्म शास्त्र में नही मिलेगा चारो भाई बड़े उत्साह से भूख प्यास भूल  कर चल पड़े लगभग एक सप्ताह की भूखे प्यासे  यात्रा के बाद चारो ने अपने राज्य की सीमा पार कर ली अब वे अपने देश राज्य की सीमा से बहुत दूर निकल चुके थे दूसरे राजा के राज्य सिमा में ज्यो चारो भाईयो ने प्रवेश किया तभी देखा कि बहुत से लोग राज दरबार की ओर जा रहे थे तभी चारो भाईयो ने जिज्ञासाबस जानना चाहा कि इतनी भीड़ कहाँ किस उद्देश्य से जा रहे है लोगो ने बताया कि   काम्पिल्य के राजा विभ्राट ने विद्वानों की एक सभा बुलाई है और शास्त्रार्थ का आयोजन किया है जो भी शास्त्रार्थ में विजयी होगा उसे राज पंडित की उपाधि प्रदान कर कीमती हीरे मोती जवाहरात के पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाएगा ।चारो भाईयो ने निश्चय किया कि वे भी राजा विभ्राट की विद्वत शास्त्रार्थ में भागीदारी करेंगे चारो दस दिनों से भूखे पेड़ के पत्तो से झुधा मिटाते किसी तरह राजा विभ्राट की विद्वत सभा मे जा पहुंचे राजा चारो भाईयो को देख बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला कि ये हमारे लिये गौरव की बात है कि हमारी विद्वत सभा के शात्रार्थ में दूर देश के विद्वत जन पधारे   चारो भाईयो का राज दरबार मे विधिवत सम्मान और स्वागत हुआ और राजकीय अतिथि के रूप में ठहराया गया ।दूसरे दिन शास्त्रार्थ प्रारम्भ हुआ सभी विद्वान एक दूसरे को परास्त करते रहे अब अंत मे चारो भाई सुरेश, रमेश, दिवेश ,शिवेश की बारी आई चारो भाईयो ने कहा हम चारो भाई एक एक शब्द बोलेंगे जिससे एक श्लोक का निर्माण होगा उसका अर्थ इस विद्वत सभा को बताना होगा तब राजा विभ्राट ने आदेश दिया आप चारो भाई अपना शब्द बोले एक एक कर चारो भाईयो ने अपना शब्द बोलना शुरू किया -।।जामुनी अंत न पाईओ ता पर मंडे रार
प्रीत करंता द्वी जने ता हरि लायो नारी।।अब राजा विभ्राट ने विद्वत सभा को आदेश दिया कि चारो भाईयो द्वारा निर्मित श्लोक का अर्थ विद्वत सभा बताये।विद्वत सभा ने वैचारिक मंथन शुरू किया मगर कोई अर्थ नही समझ आ पा रहा था क्योंकि उक्त श्लोक किसी धर्म शास्त्र वेद पुराण से तो था नही जिसे किसी ने पढ़ा हो अतः एक माह का समय बीतने के बाद भी कोई विद्वान चारो भाईयो द्वारा निर्मित श्लोक का अर्थ नही बता पाया अंत मे काम्पिल्य नरेश विभ्राट ने चारों भाईयो को स्वय निर्मित श्लोक का अर्थ बताने का आदेश दिया तब बड़ा भाई सुरेश बोला जमुनी अंत न पाईओ अर्थात जिसका ऋषि मुनियों ने अंत नही पाया दूसरे भाई रमेश ने अपने शब्द ता पर मंडे रार का अर्थ बताया जिससे  जबरजस्ती दुश्मनी किया तीसरे भाई दिवेश ने अपना शब्द बोला प्रीति करंता द्वी जने अर्थात राम लक्ष्मण जैसे भातृत्व प्रेम करने वाले भाईयो चौथा भाई शिवेश बोला ता हरि लायो नारी अर्थात जिनकी भार्या को छल पूर्वक हरण कर लिया फिर राजा विभ्राट ने चारो भाईयो के शब्दार्थों की संयुक्त व्यख्या के लिये कहा तब सुरेश ने तीनों भाईयो का प्रतिनिधित्व करते बोला महाराज --जिसका ऋषि मुनियों ने अंत नही पाया जो राम लक्ष्मण जैसे भ्रातृत्व प्रेम के आदर्श है ऐसे दयालु कृपालु भगवान राम की पत्नी सीता माता का छल पूर्वक हरण कर दुष्ट रावण ने दुश्मनी मोल ली ।राजा विभ्राट बहुत प्रसन्न हुए और चारो भाईयो को विद्वत शिरोमणी के सम्मान  से पुरस्कृत कर ढेर सारे हीरे मोती आती कीमती रत्नों से सम्मानित किया   और राज्य का पंडित घोषित किया।
 धीरे धीरे चारो भाईयो की यश कीर्ति का पताका चहु ओर लहराने लगा एक राजा विभ्राट भी चारो भाईयो से बहुत प्रसन्न रहते थे एक दिन राजा ने चारों भाईयो से कहा हम आपके माता पिता से मिलना चाहते है आप अपने गांव का पता बताये हमारे सैनिक आपके माता पीता को संम्मान यहां ले आएंगे चारो भाईयो ने राजा का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया राजा को अपने गांव का पता बता दिया राजा  ने उन्हें आदर के साथ लाने हेतु अपने सैनिकों को आदेश दिया राजा का आदेश पाते ही सैनिक गए और चारो के माता पिता पंडित सुखराम और माँ सुचिता को साथ लेकर आये राजा विभ्राट ने स्वयम पंडित सुखराम और सुचिता को उनके चारो पुत्रो से मिलवाया पंडित सुखराम और माँ सुचिता गर्व से अभिभूत हो कर प्रसन्न हुए ।
अब पंडित सुखराम सुचिता अपने चारों बेटो के साथ राजा विभ्राट के राज्य में सम्मान के साथ रहने लगे एक दिन राजा विभ्राट और पंडित सुखराम सुचिता और उनके चारो बेटों को बुलवाया और पंडित सुखराम से प्रश्न किया कि आपने अपने चारों बेटो को क्या शिक्षा दी पंडित सुखराम ने कहा सत्य आचरण नैतिकता और वचन बद्धता की संस्कृति संस्कार की मैं बहुत गरीब ब्राह्मण था फिर भी मेरे जवान बेटो ने कभी भी अनैतिक आचरण पर चलना स्वीकार नही किया और जब इन्होंने मुझे वचन दिया कि ये तब तक अपनी शक्ल नही दिखाएंगे जब तक कि ये समाज मे सम्मान जनक स्तर पर नही पहुंच जाते इन्होंने अपने वचन का निर्वहन किया ये पंद्रह दिनों तक भूखे प्यासे रहे लेकिन किसी अनैतिक रास्ते पर  नही गए और इस भीषण चुनौती में भी इनमें कुछ करने की जिज्ञासा जागृत रही और अनेको कठिनाईयों में भी चारो भाईयो में परस्पर प्रेम में कोई कमी नही आई यहां तक कि आपके दरबार मे जिस श्लोक की चर्चा है उसे चारो भाईयो ने संयुक्त रूप से निर्माण किया ।महाराज यही शिक्षा मैन गरीबी में अपने चारों पुत्रो को दी है राज विभ्राट पंडित सुखराम की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए बोले यदि संसार के सभी माता पिता पंडित सुखराम और सुचिता जैसे हो जाय तो निश्चित ही संसार ही स्वर्ग बन जाय।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

आस्था का आभाष विश्वास       


सेठ जमुना दास की एकलौती बेटी नम्रता बचपन से ही धर्म भीरु
और भारतीय परम्परा में विश्वास करने वाली माँ बाप का अभिमान थी। पढ़ने लिखने में सदैव अव्वल अपने मोहल्ले शहर का गुमान रहती मोहल्ले आस- पास के पड़ोसी अपने बच्चों को नम्रता जैसा बनने की नसीहत देते रहते।
नम्रता धीरे सारे सदगुणों की दक्ष हो चुकी थी पाक शास्त्र ,सिलाई कड़ाई बुनाई ,नृत्यसंगीत आदि शिक्षा भी स्नातकोत्तर करने के उपरांत पूरी हो चुकी थी।अब सेठ जमुना दास को अपनी सर्वगुण संपन्न पुत्री के लिये योग्य वर कीतलाश थी। मगर मुश्किल यह था की नम्रता के योग्य क़ोई वर मिल ही नहीं पा रहा था।एका एक एक दिन सेठ जमुना दास के मित्र सेठ मंशा राम अचानक पुराने मित्र जमुना दास से मिलने आये सेठ जमुना दास ने बचपन के मित्र का जोरदार स्वागत किया सेठ मंशा राम को पुराने मित्र से मीलकर अपार प्रसन्नता हुई दोनों अपने बचपन की यादो को ताज़ा करते और उन यादों  को बातों ही
बात  साझा कर रहे थे।की अचानक सेठ मंशा राम के मुख से निकल ही पड़ा की यार जमुना मेरा लड़का जवान हो चुका है उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुका है सुशील और सौम्य है उसके लिये बिरादरी में क़ोई
लड़की हो तो बताओ ।तब तक नास्ते से भरा ट्रे लेकर नम्रता कमरे में दाखिल हुई ट्रे मेज पर ज्यो ही रखा सेठ जमुना ने कहा बेटा ये है सेठ मंशा राम इनका आशीर्वाद लो ये हमारे बचपन केमित्र है ।नम्रता ने सेठ मंशा राम के पैर छुकर आशीर्वाद लिया ।मंशा राम ने आश्चर्य से कहा जमुना ये तेरी बेटी है जमुना ने ठहाके लगाते हुये कहा हां मंशा भगवान् ने मेरे हिस्से में यही एक अदत लक्ष्मी पुत्री के रूप में बक्शी है।सेठ मंशा ने कहा फिर तो भगवान् ने मुझे आज सही मुहूर्त पर तेरे पास भेजा है जमुना ने कौतुहल बस पूछा क्या मतलब तब मंशा ने कहा आज मेरी पुत्री की तलाश पूरी हुई मैं नम्रता को अपने पुत्र की बधू और अपनी बहू बेटी बनाना चाहता हूँ। सेठ जमुना को बैठे बैठाये मन की मुराद मिल गयी और दोनों ने अपने बेटी बेटों का विवाह निश्चित कर दिया।सेठ मंशा राम के एकलौते बेटे मृगेन्द्र और सेठ जमुना दास की एकलौती बेटी नम्रता का विवाह बड़े धूम धाम से संपन्न हुआ। बचपन की दोस्ती रिश्ते में बदल गयी दोनों ही परिवार में ख़ुशी का वातावरण वैवाहिक संबंध से बन गया।धीरे धीरे एक वर्ष बीतगया दोनों ही परिवारों में दिन दुनीरात चौगुनी तरक्की होती रही एकाएक दोनों परिवारों की ख़ुशी में चार चाँद लगाने वाली ख़ुशी आ गयी नम्रता माँ बनने वाली थी नौ माह बाद नम्रता ने बेहद खूबसूरत बेटे को जन्म दिया दोनों परिवारों के खुशियों का  ठिकाना ही न रहा।नवजात का नामकरण अन्नपरशन आदि संस्कार संपन्न कराये गए नवजात का नामकरण  संस्कारिक नाम माधव रखा गया घरेलू नाम
कारन रखा गया धीरे धीरे दोनों परिवारों के लाड प्यार में करन बड़ा होने लगा और देखते देखते एक वर्ष का हो गया  पहली वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई गयी सारे मित्र, रिश्तेदार बेशकीमती तोहफे का  नज़राना तोहफा लेकर आये दावते हुई खुशियो का आदान प्रदान हुआ पहले वर्ष गाँठ के उत्सव समाप्ति के बाद मध्य रात्रि को करन जगा हुआ था और मकान के हर कमरे आँगन में बेरोक टोक घूम खेल ऊधम मचा रहा था की अचानक एक जहरीले सांप ने उसे डस लिया उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी सेठ मंशा राम के परिवार में हाहाकार मच गया धीरे धीरे यह खबर पूरे कस्बे में फ़ैल गयी और सेठ जमुना दास भी अपने पुरे पतिवार के साथ सेठ मंशा राम के घर आ पहुंचे सबका रोते रोते बुरा हाल था।अब सुबह हो चुकी थी सबने मिल कर
यह निर्णय लिया की कारन् का अंतिम संस्कार कर दिया जाय सब लोग जब करन के अंतिम संस्कार के लिये करन को उठाने के लिये चले तभी नम्रता हाथ में तलवार लिये रणचंडी की भाँती
बोली खबरदार किसी ने यदि मेरे करन को हाथ लगाया वह  मरा नहीं है रात अधिक शोर शराबे के कारण थक कर सौ रहा है। लोंगो के लाख समझाने के बाद भी नहीं मानी और जिद्द पर अड़ी रही नम्रता के आँख में ना आँसू थे ना ही कोई बेचैनी डाक्टर को बुलाया गया जिसे देखकर नम्रता ने पुनः रौद्र रूप धारण कर लिया डॉक्टर भय के मारे भाग खड़े हुए।।
जब किसी का कोइ बस नहीं चला तब लोगो ने नम्रता को करन् के शव के साथ अकेला छोड़ दिया ।
नम्रता करन का शव गोद में लेकर घर के आँगन में बैठ गयी और कहती बेटा सो जब नीद पूरी हो तब उठाना ये लोग तुम्हारी नीद में खलल डाल रहे है और तुम्हे सदा की नीद सुलाने का इंतज़ाम कर रहे है। मेरे रहते तुह्मारा क़ोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता मैं माँ हूँ तेरी रक्षा करुँगी।इस तरह बेटे के शव के साथ एक दिन दो दिन बीतते गए तेज धुप वारिश् ने भी नम्रता के मातृत्व शक्ति की परीक्षा लेने की बहुत कोशिश की परन्तु नम्रता को उसके इरादे से डीगा नहीं सका सेठ मंशा राम की हवेली एक नया तीर्थ स्थल में तब्दील हो गया नम्रता को देखने इतनी भीड़ होने लगी की प्रसाशन के लिए चुनौती बन गयी ।नम्रता का आभास एहसास वास्तव में उसके मातृत्व की ममता की आस्था की अवनि आकाश पराकाष्ठा लोंगो को आश्चचर्य चकित कर रखा था। करन् को मरे पैतालीस दिन  हो चुके थे मगर उसके शारीर से ना कोइ दुर्गन्ध थी ना ही सड़ने के लक्षण लोगों के लिए यह कौतुहल का विषय था। नम्रता भी पैतालीस दिनों से जैसा करन को लेकर गोद में बैठी थी वैसी ही बैठी एक टक कारन् को निहारती ना भूख ना प्यास सिर्फ कारन के नीद से जागने का आभास विश्वास छियालिसवे दिन करन एकाएक सुबह जैसे रोज उठता था सूरज की लालिमा के साथ मुस्कूराते हुये उठा माँ माँ करता नम्रता की आँखों में तब वात्सल्य के आंसू छलके चारों और नम्रता के मातृत्व ममत्व का शोर नम्रता कलयुग में ऐसी माँ जिसने मृत बेटे का जीवन काल जमराज से छीन लिया।
लोंगो का कहना था कि मातृत्व शक्ति
दूँनिया में कुछ भी असंभव को संभव
कर सकती है ये कोई आभास विश्वाश नहीं यह तो आस्था के अतिस्त्व माँ की
ममता है।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर

************************************

--जन्मों के प्यार का इंतज़ार------   


जन्म दिन मुबारख हो बेटा रिया  आज तुम्हारा दसवीं का परिणाम भी आने वाला है आज का दिन तुम्हारे जीवन के लिये बहुत महत्व्पूर्ण है आज का दिन  तुम्हारी ढेर सारी खुशियो और जीवन कि दिशा दृष्टि के लिये बहुत महत्व पूर्ण है। तो बेटा जल्दी से तैयार हो जाओ सबसे पहले हम लोग मंदिर जाएंगे उसके बाद महेश सिंह ने पत्नी मनोरमा से कहा आज रिया का जन्म दिन है और हर साल इस साल से कुछ ख़ास हम सभी मंदिर जाएंगे आप और मिलिंद जल्दी से तैयार हो जाओ मैंने रिया से तैयार होने के लिये बोल दिया है।महेश सिंह मनोरमा मिलिंद रिया हम दो हमारे दो कुल चार सदस्यों का परिवार था महेश मनोरमा  दोनों बहुत खुश थे एक तो रिया के पेपर बहुत अच्छे हुए थे दूसरे कुल पुरोहित ने भी बताया था कि रिया बिटिया कि जन्म में बृहस्पति प्रवल है अतः शिक्षा के क्षेत्र में सदैव नाम और ख्याति अर्जित करेगी महेश, मनोरमा बेटे मिलिंद बेटी रिया को लेकर शहर के सारे  मंदिरों  पर गए आशिर्बाद लिया लगभग दिन के एक बजे घर लौटे देखा कि रिया कि स्कूल टीचर मैडम लियोनी पहले से ही पड़ोसीकृपा शंकर मिश्र के घर बैठी थी ।महेश मनोरमा को बहुत आश्चर्य हुआ कि पड़ोसी कृपा जी कि कोइ संतान तो रिया के साथ पढ़ती नहीं फिर रिया कि स्कूल टीचर वहाँ क्यों क्या ख़ास बात हो सकती  है। इसी उधेड़ बन में महेश और मनोरमा अपने घर का दरवाज़ा खोल ही रहे थे कि अचानक कृपा शंकर मिश्र और मैडम लियोनी आते ही एक साथ बोल उठे बधाई हो रिया बिटिया ने दसवीं कि परीक्षा में पूरे जनपद में प्रधम स्थान प्राप्त किया है ।कृपा शंकर जी ने बड़े आत्म अभिमान से कहा कि हमे आपका पड़ोसी होने पर गर्व है रिया बिटिया ने सारे मोहल्ले और ख़ास कर सभी पड़ोसियों का सर गर्व से ऊँचा कर दिया ।मनोरमा और रिया ने बड़े बिनम्र भाव से कहा कि रिया कि मेहनत आप सभी लोगो कि शुभकामना और आशिर्बाद से बिटिया ने सफलता हासिल किया है। घर का दरवाजा खोलते हुए मनोरमा ने मैडम लियोनी और कृपा शंकर जी से अंदर आने का आग्रह किया सभी लोग महेश सिंह जी के ड्राइंग रूम में दाखिल हुए और बैठे तब रिया ने सबका पैर छूकर आशिर्बाद लिया तब तक मिलिंद सबके लिये मिठाई लेकर आया सबने रिया कि शानदार सफलता कि मिठाई खाई तब मैडम लियोनी ने बोलना शुरू किया महेश जी चुकी रिया ने इतनी शानदार सफलता मेरे विद्यालय से प्राप्त कि है अतःमै चाहती हूँ कि रिया आगे भी हमारे स्कूल की छात्रा बनी रहे महेश और मनोरमा को क़ोई आपत्ति नहीं हुई वहां बैठे कृपा शंकर जी ने भी सहमति जताई मैडम लियोनी ने फिर बोलना शुरू किया कि जिन स्टूडेंट ने स्कूल प्रतिष्ठा बड़ाई है उनके पेरेंट्स को हम लोग सम्मानित करना चाहते है अतः आप मेरा अनुरोध निमंत्रण स्वीकार करे फिर मैडम लियोनी ने रिया को अपने पास बुलाकर कहा वेल डन माय स्वीट बेबी गॉड ब्लेस्  यू और जाने कि इज़ाज़त मागने लगी लियोनी के जाने के बाद घर में जश्न का माहौल हो गया मोहल्ले में सभी को मालूम हो चूका था कि महेश सिंह की बेटी रिया ने दसवी क्लास में जिले में सबसे अब्बल आयी है ।धीरे धीरे मोहल्ले वालों के आने और बधाईयों का सिलसिला शुरू हुआ ।सभी ने रिया कि शानदार सफलता के लिये बधाई और शुभकामनाये दी महेश  और मनोरमा को बेटी रिया पर गर्व महसूस हो रहा था ।छुट्टियां समाप्त होने वाली थी और नए सत्र का शुभारम्भ होने वाला था रिया नए सत्र नए क्लास में पढ़ने गयी तो बहुत से पुराने सहपाठीयो कि जगह नए स्टूडेंट्स ने ले रखी थी।पहले दिन स्कूल के हर क्लास में रिया को ले जाया गया और उसकी शानदार सफलता से नए पुराने सभी को प्रेरणा के रूप में अवगत कराया गया। स्कूल के सभी शिक्षकों ने बड़ी गर्मजोशी से रिया का स्वागत किया स्कूल में विल्कुल नया स्टूडेंट जिसने दसवी कि परीक्षा दूसरे जनपद से पास की थी यहाँ आगे कि पढ़ाई के लिए आया था बड़ी तन्मयता से स्कूल कि पहले दिन की गतिविधियों को देख रहा था नाम भी तन्मय पाण्डेय । वह बार बार रिया कि खूबसूरती मासूमियत को निहारता पता नहीं क्यों तन्मय कि कोमल भावनाये रिया कि तरफ पहले दिन ही आकर्षित हो गयी उसके मन में यह बात बार आती कि रिया ही उसकी सबसे अच्छी दोस्त हो सकती है। तन्मय प्यार जैसी किसी भी जज्बे से वाकिफ नहीं था शाम के चार बजे स्कूल कि छुट्टी हुई तन्मय अपने आप को रोक न सका वह रिया के पास जाकर बोला मै तन्मय पाण्डेय तुम्हारी क्लास में पड़ता हूँ हम दोनों को अगर पढ़ाई के दौरान किसी हेल्प कि जरुरत पड़ी तो आपस में साझा एवं सहयोग कर सकते है ।रिया ने उस वक्त तो क़ोई ध्यान नहीं दिया और धन्यवाद कहकर चली गयी दोनों अपने अपने घर चले गए रिया कि माँ और महेश सिंह ने पूछा बेटा स्कूल में नए क्लास के सत्र का पहला दिन कैसा रहा रिया ने सारा वाकिया बताया सुनकर माँ बाप का सीन गर्व से चौड़ा हो गया ।रात को जब रिया सोने के लिये अपने कमरे में गयी तब यकायक उसके सामने तन्मय का चेहरा घुमाने लगा बार बार तन्मय के कहे शब्द हाय मै तन्मय पाण्डेय रिया के कानो में गुजने लगे रिया को भी इसका क़ोई मतलब समझ नहीं आ रहा था छत कि दीवार देखते देखते कब सो गयी पता नही चला। समझ में नहीं आ  रहा था उधर तन्मय भी सोच रहा था कि रिया ने उसको नोटिस क्यों नहीं किया दूसरे दिन दोनों ही क्लास में अपनी अपनी सीट पर बैठकर क्लास करने लगे।जुलाई से सितम्बर तक रिया और तन्मय एक दूसरे पर क़ोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।सितम्बर में टीचर पेरेंट्स मीटिंग में उमेश सिंह और मनोरमा को रिया के बेस्ट परफोर्नेन्स के लिये सम्मानित किया जाना था।तन्मय के पिता धीरेन्द्र पाण्डेय एक साधारण किसान थे वे धोती कुर्ता में आये थे समारोह प्रारम्भ हुआ प्राचार्य अल्वर्ट के साथ लियोनी मैडम समारोह में उपस्थित थी उन्होंने बोलना शुरू किया रेस्पेक्टेड पेरेंट्स आज हम रिया के मदर फादर को सम्मानित करने के लिए गेदर हुए है रिया ने डिस्टिक में नबर वन रैंक हासिल कर स्कूल का नाम रौशन किया हैं रिया के इस अचीवमेंट में उसके मदर फादर के कंट्रीब्यूसन को नेग्लेक्ट नहीं किया जा सकता है अब हम प्रिंसिपल साहब से रिक़ुएस्ट  करते है कि रिया के मदर फादर को ऑनर करे पूरा हाल तालियों के गडग़ड़ाहट से गूँज उठा। फिर प्राचार्य अल्बर्ट ने मनोरमा और महेश सिंह का सम्मान करने के बाद बोलना शुरू किया उन्ही गार्जियन का बच्चा कुछ अच्छा करता है जिनके गार्जियन जिम्मेदार और बच्चों को अच्छा कल्चर देते है आज हमे मनोरमाऔर महेश सिंह जैसे गार्जियन बनने कि जरुरत है हाल एकबार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। प्रिंसिपल अल्वर्ट ने आगे बोलना शुरू किया मैं इस अवसार पर धीरेन्द्र पाण्डेय जी को इग्नोर नहीं कर् सकता जिनका सन् तन्मय पाण्डेय पुरे प्रदेश में ट्वेंटी फिफ्थ रेन्क पाकर हमारे स्कूल में डॉटर रिया के क्लास में ही स्टडी कर रहा है एकाएक हाल में तालियों कि गड़गड़ाहट गूंजने लगी रिया ने बड़े गौर से तन्मय कि तरफ मुस्कुराते हुये देखा। प्रिंसिपल अल्वर्ट बोलते रहे उन्होंने बताया कि धीरेन्द्र पाण्डेय जी एक साधारण किसान है और उन्होंने अपने सन् को हाई कल्चर दिया है यह आल गार्जियन के लिए इंस्पिरेशन है ।
 प्रिंसिपल अल्वेर्ट के सम्बोधन के बाद समारोह सम्पन्न हुआ सभी अभिभावक अपने अपने घर को चले गए रिया घर पहुंचकर तन्मय से पहले दिन कि मुलाक़ात के ख्यालो में खो गयी अगले तीन दिनों तक विद्यालय बंद था।तीन दिन की छुट्टिया रिया के लिये मुश्किल से बीती वह जल्दी से जल्दी खुद को तन्मय का बेस्ट फ्रेंड बनना चाहती थी इसके लिये आवश्यक था कि वह तन्मय से शीघ्र मिले छुट्टी बीताने के बाद स्कूल खुला रिया सबसे पहले स्कूल के मेन गेट पर तन्मय का इंतज़ार करने लगी तन्मय जब स्कूल मैन गेट पर ज्यों ही पहुंचा रिया  फ़ौरन उसके पास पहुंची और बड़े भोले अंदाज़ में बोली तन्मय आई ऍम सॉरी मैं आपको तब  समझ नहीं पाई जब आप पहले दिन हमारे पास आये थे क्या हम अब वेस्ट फ्रेंड हो सकते है तन्मय अपने अंदाज़ में मुस्कराते हुये बोला साँरी भी क्या वर्ड है जिसने भी इस वर्ड कि खोज कि होगी बहुत बुद्धिमान होगा यह एक शब्द सारे तकलीफ को  भुला देता है। फिर बोला हाँ बाबा मुझे तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड बनना है ।मेरे लिये प्राउड है रिया ने तुरंत सवाल किया रोज तो तुम स्कूल सबसे पहले पहुचते हो आज देर क्यों हो गयी  तन्मय ने मुस्कुराते हुये कहा कभी कभी भगवान् भी अच्छाई कि परख करते छोटी मोटी परीक्षाये लेता रहता है आज मेरी सायकिल पंचर हो गयी थी ।दोनों अपने वार्तालाप में मसगुल थे कि उधर से गुजरती मैडम लियोनी ने दोनों को वार्तालाप करते देखा कहा गूड तुम दोनों एक दूसरे के साथ हेल्दी कॉम्पेटिसन के साथ दोस्ती करो और स्कूल का नाम रौशन करो।अब लगभग प्रतिदिन रिया और तन्मय आपस में बात करते दोनों ही विज्ञानं और गणित के छात्र थे अतः किसी भी  बिषयागत प्रॉब्लम पर बात करते और मिलकर समाधान खोजते रिया के माँ बाप महेश और मनोरमा को भी रिया कि इस दोस्ती पर क़ोई एताराज नहीं था ।धीरे धीरे पूरे स्कूल में फ्रेंडशिप ऑफ़ टू एक्ससिलेन्ट ऑफ़ स्कूल के नाम से तन्मय और रिया की जोड़ी मशहूर हो गयी ।इसी तरह फर्स्ट इयर के होम एग्जाम में दोनों ने अपने कठिन परिश्रम से सयुक्त रूप से फर्स्ट रैंक हासिल कर् सेकंडियर यानि बारहवी कक्षा की तैयारी में जुट गए दोनों ने अपनी एक्ससलेंट फ्रेंड शिप ऑफ़ स्कूल को कायम रखते अपने अपने मकसद पर आगे बढ़ रहे थे सेकेंडियर के एग्जाम हुये रिजल्ट आया तो फिर दोनों के मार्क्स बराबर थे और दोनों ने ही जिले नहीं वल्कि पूरे प्रदेश में पांचवा स्थान हासिल कर अपने स्कूल का मान बढ़ाया ।अब रिया और मयंक का स्कूल से विदा हो कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाने का वक्त आ गया स्कूल द्वारा फिर से दोनों के विदाई समारोह सम्मान के लिये रखा गया सम्मान समारोह में प्राचार्य ने फिर कहा  रिया के मेरे स्कूल में पढने के बाद और तन्मय के आने के बाद शहर का हर गार्जियन कि चाहत है कि उनका वार्ड इस स्कूल में पढे यह अचीवमेंट हमारे और हमारे स्कूल के लिये बहुत प्राउड का सब्जेक्ट है। फ्यूचर में हम कोशिश करेंगे कि हमारे यहाँ पड़ने वाला हर स्टूडेंट रिया और तन्मय को फॉलो करे।अब रिया और तन्मय दोनों ही उच्च शिक्षा के अध्य्यन के लिये कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने हेतु निर्णय अपने अपने अभिभावको पर छोड दिया। तन्मय अपने गांव चला गया रिया को लगता कि उसकी सफलता तन्मय के बिना अधूरी है और वह तन्मय कि यादो और स्कूल में बीते दिनों कि याद में खोई रहती  ।पंडित धीरेन्द्र पाण्डेय ने अपने बेटे को जे एन यू पढ़ाई के लिये भेजा तन्मय को आसानी से दाखिला मिल गया और वह अपने अध्ययन कार्य में जुट गया उसे अपने किसान पिता के सपनो को सच साबित करने का जूनून था। मगर नियत कुछ और खेल खेलना चाहती थी अचानक एक दिन तन्मय लेक्चर रूम में बैठा अपने खयालो में खोया था तभी प्रोफेसर  वाजिद लेक्चर रूम में दाखिल हुए और क्लास शुरू किया जब प्रोफेसर वाजिद कि नज़र क्लास में बैठी एक नई लड़की पर पड़ी तभी उन्होंने इशारे से उस लड़की को खड़े  होने  के लिये कहा वह ज्यो ही खड़ी हुई प्रोफेसर वाजिद ने पूछा आपका नाम रिया सर तब भी तन्मय ने क़ोई ध्यान नहीं दिया फिर प्रोफ़ेसर वाजिद ने पूछा कि इस क्लास में तुम्हारा क़ोई मित्र है रिया ने तुरंत जबाब दिया यस सर प्रोफेसर वाजिद ने पूछा कौन रिया ने जबाब दिया तन्मय पाण्डेय अब तन्मय ने अपना सर घुमा कर देखा तो वास्तव में रिया ही थी। उसको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था प्रोफेसर वाजिद ने तन्मय पाण्डेय से पूछा कि क्या  रिया को जानते हो तन्मय ने कहा यस सर हम दोनों ही एक ही स्कूल में पड़ते थे और एक ही रैंक से टॉप किया था। प्रोफेसर वाजिद ने कहा गुड तुम दोनों  एक दूसरे का ख्याल रखना दिल्ली में अक्सर नए स्टूडेंट के साथ कुछ न कुछ गलत हो जाता है तुम दोनों बाहर से आये हो और एक दूसरे को अच्छी तरह जानते और समझते हो तन्मय और रिया ने स्वीकारोक्ति से सर हिलाया इसके बाद क्लास शुरू हुआ क्लास ख़त्म होते ही तन्मय रिया बाहर निकले तो तन्मय ने पूछा यहाँ कैसे आ गयी? रिया ने कहा कि तुम जे एन यू जाकर पड़ो और प्रशासनिक सेवाओं कि तयारी करों तोऔर  मैं भी यहाँ आ गयी वही उद्देश्य लिये जो तुम लेकर आये हो।चलो अच्छा ही हुआ अब हम दोनों मिलकर दिल्ली में जे एन यू में टॉप करेंगे और हां मैं गर्ल्स होस्टल में रहती हूँ और आप जनाब तन्मय ने  कहा मैं अपने दूर के रिश्तेदार के घर पर रहता हूँ रिया और तन्मय दोनों को अनजान महानगर में जरुरत थी दोनों एक दूसरे के पूरक थे दोनों  कि मुलाकाते रोज होती और अध्य्यन के विषयो पर दोनों एक दूसरे कि जानकारी साझा करते। लेकिन अब दोनों में इन मुलाकातो का अर्थ बदला हुआ था दोनों को प्यार के आकर्षण कि हद  अधिक अनुभूति होने लगी और दोनों कि पहली मुलाकात अब सहपाठी कि सीमा से पार कर प्रेम  कि पराकाष्ठा तक पहुँच गयी दोनों एक दिन भी एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह सकते थे ।लेकिन दोनों के शैक्षिक स्तर पर उनके प्यार का कोईं प्रभाव नहीं पड़ा दोनों ने स्नातक कि परीक्षा में अपना लोहा पुनः जे एन यू में मनवाया तीन वर्ष कैसे बीत गए पता ही नहीं चला एका एक दिन रिया के घर से उसके मामा  रमेश सिंह जी दिल्ली आये और रिया से गोरखपुर घर चलने को कहा और बताया कि माँ मनोरमा को लकवा मार गया है अतः उनकी देख रेख के लिये चलना होगा ।चूंकि भाई मिलिंद डॉक्टर होकर अमेरिका में शिफ्ट हो अमेरिकन लड़की से शादी कर चुका था अतः उसका माँ कि सेवा के लिये आना संभव नहीं था रिया ने मामा जी से तन्मय से मिलने कि अनुमति मांगी और वह तन्मय से मिलते ही फुट फुट कर रोने लगी तन्मय ने उसे चुप कराते हुये कहा मेरा प्यार इतना कमजोर नहीं कि उसकी आँखों से मोती से भी कीमती आंसुओ का शैलाभ आ जाए। बताओ क्या बात है रिया ने माँ मनोरमा के बीमार होने कि बात बताई और कहा हमे अभी गोरखपुर जाना है तन्मय ने कहा कि घबराओ नहीं यह तुम्हारे लिए सौभाग्य कि बात है कि तुम्हे माँ कि सेवा का अवसर मिल रहा है ये मत भूलो कि तुम्हारे अस्तित्व और संस्कार कि स्तम्भ है आज उस माँ को अपनी बेटी कि जरुरत है। जिसने अपनी बेटी के लिये ना जाने कितनी रातें इसलिये जाग कर बिताई होंगी कि बेटी सो सके बहुत सी अपनी  इच्छाओं  का दमन किया होगा जिससे कि तुम्हारी इच्छाये पूरी हो सके यह मेरे लिये आत्म अभिमान कि बात है कि मेरा प्यार मेरी रिया जीवन मूल्यों कि परीक्षा में जा रही है वहाँ भी एक नया कीर्तिमान स्थापित करेगी। रही बात मेरे मिलने कि तो मैंने आज तक तुम्हारे अलावा किसी दूसरी लड़की का चेहरा नहीं देखा प्यार कि नज़र से अतः मै वचन देता हूँ कि जीवन के अंतिम पल में भी तुम ही मेरे साथ होगी हर जन्म में तुम ही मेरा प्यार रहोगी तुम्हे मुझमे मिलना ही होगा मैं जन्म पे जन्म लेते हुये तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा या जन्म जन्म तुम्हारे साथ रहूँगा दोनों ने एक दूसरे को प्यार कि दुहाई की बिदाई दी ।रिया मामा जी के पास लौटी और सामान पैक करना शुरू कर दिया और मामा जी के साथ गोरखपुर चलने कि तैयारी करने लगी उसके मन में अपने प्यार के प्रति आत्म संतोष और विश्वास का भाव था सफर कि सारी तैयारी होने के बाद रिया मामा जी के साथ गोरखपुर चलने के लिये तैयार हो स्टेशन रवाना हुई नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उसकी ट्रेन भी तैयार थी रिया मामा रमेश के साथ ट्रेन में बैठी थोड़ी देर बाद  ट्रेन भी चल दी पूरी रात सफ़र करने के बाद रिया मामा जी के साथ दूसरे दिन बारह बजे दिन में गोरखपुर पहुँच गयी और लगभग आधे घंटे बाद वह अपने घर माँ मनोरमा और पिता महेश के सामने खड़ी थी ।माँ को जब रिया ने देखा माँ मनोरमा  बिस्तर पर लेटी घर के छत को एक टक निहारते ही जा रही थी रिया ने माँ के पास जाकर उसके सर पर हाथ फेरती बोली माँ मैं आ गई हूँ अब आप चिंता ना करो मनोरम ने जब बेटी रिया को देखा तो उसे गले लगाने कि कोशिश में उठने का अथक प्रयास करती रही मगर उनके शारीर में ना तो शक्ति थी ना ही चेतना सिर्फ उनकी आँख में विवसता कि अश्रु धरा का प्रवाह फुट रहा था रिया माँ कि इस दशा को  देखकर फुट फुट कर् रोने लगी पिता महेश और मामा रमेश ने रिया को सात्वना दिलाशा दे कर चुप कराया ।अब माँ कि सेवा ही रिया के जीवन का वर्तमान ध्येय बन गया था वह बेटी होने के फ़र्ज़ को जिए जा रही थी हर तीसरे दिन डॉक्टर चेक करने आता मगर माँ मनोरम कि हालत सुधरने कि बजाय और गंभीर होती जा रही थी भाई मिलिंद भी पिजड़े में फड़फड़ाते किसी पंक्षी की भांति डॉक्टरों से प्रतिदिन बात करता और चुकी वह खुद भी एक डॉक्टर था तो उचित सलाह भी देता ।धीरे धीरे  एक साल माँ मनोरमा को बिस्तर पर बीमार पड़े हो चुके थे ।तन्मय प्रतिदिन रिया को उसकी माँ के स्वास्थ कि जानकारी बाबत एक पत्र लिखता मगर रिया जबाब नहीं दे पाती प्रतिदिन के पत्रो को पढ़ती और सभाल कर रख लेती काल  अपनी निरंतर गति से चल रहा था लगभग दो साल बीत गए। माँ मनोरमा कि हालत जैसी कि तैसी ही थी अंततः महेश सिंह ने बेटी रिया से कहा बेटा तेरी माँ की नसीब में बीमार रहना ही लिखा है अतः तुम माँ कि देख रेख के साथ कुछ अध्ययन भी शुरू करो ग्रेजुएसन हो ही गया है बी एड कर लो रिया को बात समझ में आयी और उसने बी एड का फार्म भरा उसे तुरंत दाखिला मिल गया उसने कालेज जाना भी शुरू कर् दिया लेकिन माँ कि देख भाल में क़ोई कमी नहीं रखी इधर प्रतिदिन तन्मय के पत्रों का शिलशिला जारी रहा ।रिया ने बी एड किया एम एड किया माँ कि सेवा भी पूरी निष्ठां से करती रही माँ को बीमार बिस्तर पर पड़े पड़े पांच साल गुजर चुके थे मगर उसकी हालत में सुधार कि बात तो दूर नहीं  बिस्तर पर पड़े रहने से कई और बीमारियों ने जकड़ लिया डॉक्टरों ने उसके बचने कि रही सही उम्मीद भी छोड़ दी मिलिंद डॉक्टरो से निरंतर बात करता अपनी जानकारी के अनुसार माँ कि हालत को भगवान पर छोड़ दिया मिलिंद ने पिता महेश सिंह से बहन रिया के बिवाह के लिये कहा पिता महेश को भी महसूस हुआ कि बेटा ठीक कह रहा है  महेश सिंह ने भी हाँ करते हुये बताया कि गोरख पुर के बड़हल गंज निवासी उनके बचपन के मित्र सतमन्यु सिंह जो उत्तर प्रदेश पुलिश में इंस्पेक्टर थे और भिंड में डांकुओ से मुठभेंड में शहीद हुये थे का पुत्र समरेंद्र सिंह उनकी जगह पर अनुकम्पा पर  इन्स्पेटर नियुक्त हुआ है उसी से रिया का विवाह करना है क्योकि मैंने और सतमन्यु ने समरेंद्र और रिया का रिश्ता बहुत पहले ही पक्का कर दिया था मिलिंद भी इस सच्चाई को जनता था अतः उसने तुरंत हामी भर दी महेश सिंह ने रिया को बुलाया और समझाने के लहजे में बोले कि बेटी परया धन होती है उसे एक ना एक दिन बाबुल का घर छोड़ना ही होता है और तेरी माँ कि हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही इसकी भी इच्छा यही है कि तुम्हारी शादी धूम धाम से होते हुए देखे मैंने अपने बचपन के मित्र स्वर्गीय सतमन्यु सिंह ने बचपन में तेरा और समरेंद्र का रिश्ता निश्चित कर दिया था। मैं जानता हूँ बेटी तुम्हे यह रिश्ता रास नहीं आएगा मै यह भी जानता हूँ कि तुम तन्मय को चाहती हो मगर तन्मय से तुम्हारा विबाह इस जन्म में सम्भव नहीं है तन्मय का पिछले पांच वर्षो से निरंतर पत्रो का आना तुम्हारे और तन्मय के प्यार का प्रमाण है मैं जनता हूँ तन्मय बहुत अच्छा लड़का है मगर मैं और मेरा समाज बिजातीय बिबाह कि अनुमति नहीं देता ।हमारा परिवार राजपूतो का है और तन्मय भूमिहार इसके अलावा भी बहुत कारण है जो तुम्हे बताना आवश्यक नहीं समझाता।
 रिया पापा को बहुत समझाने कि कोशिश करते उसने कहा पापा तन्मय को भी आप उतना ही जानते है जितना मुझे तन्मय बहुत अच्छा लड़का है शाकाहारी है अच्छे परिवार खानदान का उसके पिता किसान होते हुये भी अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिये है तन्मय मुझे ज्यादा खुश रख सकेगा और देखिये माँ कि बीमारी में उतना दूर रहते हुये भी एक दिन भी ऐसा नहीं गया जिस दिन उसने माँ के स्वास्थ् के विषय में जानकारी के लिये पत्र न लिखा हो वह माँ और आपको भी उतना ही सम्मान करता है जितना मै और मिलिंद भैया जितना खुद अपने माँ बाप को इज़्ज़त देता है रही बात जाती कि तो जाती में भी वह हमसे उच्च ही है मेरी पसंद है मिलिंद भैया भी इस रिश्ते को पसंद करेंगे। पिता महेश सिंह ने कहा मिलिंद को समरेंद्र का रिश्ता पसंद है रिया ने कहा की भैया को तन्मय के बारे में आपने बताया ही नहीं होगा मैं भैया से बात करती हूँ महेश सिंह ने आदेशात्मक लहजे से कहा खबरदार जो तुमने मिलिंद से इस सम्बन्ध में और कुछ बात किया तो तुम्हारे लिये रिश्तों के सभी दरवाजे बंद हो जाएंगे रिया ने फिर पापा को समझने के लहजे में कहा कि भैया ने तोअन्तर्धर्मीय विवाह कर मानवीय मूल्यों को तरजीह दी है हम तो तन्मय जो उच्च कुल का भारतीय है इतना सुनते ही महेश सिंह आग बबूला हो गए जैसे उनकी दुखती रग पर रिया ने हाथ रख दिया हो बड़े ही  क्रोध में कहा तेरी माँ तो मरणासन्न है ही यदि तुमने और बहस इस सम्बन्ध में किया तो मेरा मरा हुआ मुँह देखेगी ।अब रिया के पास कोइ जबाब नहीं था वह रोती हुई माँ के  पास गयी माँ ने जब रिया को देखा तो बोलने कि कोशिश करती अपनी सबसे प्यारी औलाद से कुछ कहना चाहती मगर बेबस लाचार अपनी बेटी कि आँखों का आंसू देखती उसके आँखों में उसी तरह अश्रु धारा बहने लगे जैसा रिया के दिल्ली से वापस आने के बाद बहे थे ।माँ बेटी कि विवसता के आंसू देख कर विधाता भी अपनी विधान पर सोचने को विवस हो गया लेकिन रिया कि तकदीर भी उसीने लिखी थी अतः अपने निर्धारित भविष्य का खेल वह देखता रहा।रिया किसी तरह हिम्मत करके उठी और उसने तन्मय को एक पत्र लिखा पत्र में उसने तन्मय को सम्बोधन में लिखा प्रियतम हमारे प्यार का इस जन्म में परवान चढ़ना संभव नहीं है मेरे पापा ने मेरी  शादी कहीं और बचपन में तय कर राखी थी और वहीं मेरी शादी करना चाहते है मै विवस नहीं हूँ मगर मम्मी पापा कि परिवरिश के संस्कारिक संसार के रीती रिवाज को निभाना मेरा नैतिक तायित्व है वह मैं निभाने जा रही हूँ। लेकिन तुम मेरा इंतज़ार करना क्योकि मैं जब तक तुम्हारा प्यार नहीं पा लेती हूँ तब तक जन्म दर जन्म लेती रहूंगी तुम्हारी रिया पत्र पोस्ट करने के बाद उसने अपने आंसू पोछे और अब वह एक निर्जीव निरुत्साह जीवन्त शारीर या यूँ कहे कि कठपुतली या रोबोट कि तरह रह गयी थी जिसमे भाव और आत्मा नाम की कोइ जागृति नहीं थी सिर्फ कठपुतली या रोबोट जिसका संचालन उसके पिता के हाथ में था ।तन्मय ने रिया का पत्र प्राप्त किया पढ़के बाद उसे अपने प्यार रिया पर भरोसा और बढ़ गया उसे यकीन हो गया कि रिया का निर्णय उसके आत्मीय बोध का सच्चा  प्यार है। प्यार शारीरिक वासनाओं और भौतिक बंधनो से ऊपर है वह रिया का इंतज़ार करता रहेगा चाहे जितने बार जन्म लेना पड़े ।
 वह पूर्व कि भाँती रिया के माँ के स्वस्थ के जानकारी के लिये पत्र लिखता रहा और रिया उसे उसके प्यार की अमानत समझ सहेज कर रखती गयी और वह भी समय आ गया जब रिया को अपना प्यार अपना घर बार छोड़कर ससुराल जाना था महेश सिंह ने रिया कि शादी में रिया का  पिता बनकर रिया का कन्या दान किया तो अपने स्वर्गीय मित्र सतमन्यु कि तरफ से उसे उसके सुखी जीवन कि गारन्टी दी रिया का पति समरेंद्र और सास शांति देवी रिया को पाकर बहुत खुश थे उनको उनकी कल्पनाओ से अधिक खुबसूरत बहु और रिश्ता मिला था ।रिया कि शादी में अमेरिका से मिलिंद भी आया था उसने अपनी लाड़ली बहन कि बिदाई बड़े भाई के फ़र्ज़ का क़र्ज़ निभाते हुये किया रिया ससुराल जाने से पूर्व माँ के पास गयी और बंद जुबा और आँखों में बहती अश्रुधारा से माँ से अंतिम विदाई ली पता नहीं क्यों उसे आभास हो गया था कि उसके जाते ही माँ भी दुनियां छोड देगी माँ से भवनात्मक विदा लेकर वह ससुराल जाने के लिये बाबुल के घर से रुखसत हुई ।रिया के जाने के बाद घर वीरान हो गया तीन दिन बाद मिलिंद कि अमेरिका कि फ्लाइट थी विवाह कि भीड़ भाड़ से घर खाली हो चुका था अब मनोरमा कि देख भाल करने को रिया नहीं थी मनोरमा कि नजरे बार बार रिया को ढूंढ रही थी और बेबस लाचार आँखों से आंसू बहा रही थी मगर रिया तो सदा के लिये जा चुकी थी अन्ततः मनोरमा ने रिया के ससुराल जाने के तीसरे दिन जिस दिन मिलिंद की अमेरिका कि फ्लाइट थी दुनियां छोड़ दी महेश सिंह पर जैसे आफत का पहाड़ टूट पड़ा ।रिया के हाथों कि मेहंदी भी हल्कि नही पड़ी थी किसी तरह से मनोरमा का अंतिम संस्कार हुआ रिया भी आयी मगर अब घर वीरान हो चुका था अब सिर्फ घर में मिलिंद और उसके पापा महेश सिंह जी ही रह गए थे चुकी मिलिंद अमेरिका से अकेले ही बहन रिया के बिवाह में आया था उसकी अमरिकन पत्नी  कुछ आवश्यक कारणो से नहीं आ पायी थी मिलिंद ने पापा महेश सिंह से कहा कि क्यों न इस मकान और अन्य प्रापर्टी जैसे गाव कि खेती बाड़ी  कि देख भाल का जिम्मा मामा रमेश जी को सौंप दे और प्रापर्टी का एटॉर्नी रिया को नियुक्त कर आप मेरे साथ अमेरिका ही चले महेश सिंह को यह बात जच गयी उन्होंने एडवोकेट जयंती लाल जी से पवार ऑफ़ एटॉर्नी और कस्टोडियन रमेश सिंह के पक्ष में बनवा कर एक एक प्रति रिया और रमेश को देने के बाद निश्चिन्त हो गए पत्नी मनोरमा के तेरही के तीसरे दिन मिलिंद महेश सिंह रिया और समरेंद्र साथ साथ एयर पोर्ट गए और भाई मिलिंद और पिता को रिया ने अमेरिका के लिये विदा किया रिया और समरेंद्र बड़हल गंज लौट आये हवाई जहाज हवा से बाते करता आकाश में उड़ता जा रहा था महेश सिंह के दिमाग में एक  बात बार बार आ रही थी कि यदि अमेरिका में उनकी अमेरिकन बहु ने उन्हें मन से नाही स्वीकार किया तो क्या होगा जिसकी संभावना थी लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि यदि ऎसा हुआ तो उन्हें अच्छी खासी पेंशन मिलती है वे भारत वापस आकर ईश्वर को जैसा मंजूर होगा वैसी जिंदगी जिएंगे।
 मिलिंद पापा के साथ अमेरिका पहुँच गया और माहेश् सिंह को फौरी तौर पर वैसा कुछ महसूस नहीं हुआ जैसा कि उन्हें भारत से आते समय डर सता रहा था।अब रिया अपनी सास शांति देवी के साथ रह रही थी समरेंद्र कि पोस्टिंग दूसरे जनपद में चौकी प्रभारी के रूप में हो गयी वह वहां कार्य भार ग्रहण कर चुका था उसे पुलिस कि नौकरी में घर आने  का मौका नहीं मिलता रिया अकेले में हमेशा तन्मय कि यादों में खोई रहती थी इसे सौभाग्य कहे  या दुर्भाग्य समरेंद्र कि पोस्टिंग उसी जगह थी जहाँ तन्मय का घर था । तन्मय भी प्रसासनिक सेवा कि तैयारी के लिये दिल्ली ही रहता था वह तीन चार महीने कि छुट्टी में घर आया था जब उसे पता लगा कि उसके मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी पर कोई नैजवान् प्रभारी आया है तो वह मिलने चला गया पहली मुलाक़ात दो नौजवानो कि धीरे धीरे दोस्ती में बदल गयी ।अब दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे दोनों का मिलना जुलना रोज कि आदतो में सम्मिलित रोज मर्रा की जीवन शैली बन गयी ।समरेंद्र ने अपने दोस्त तन्मय से कहा कि मेरी नई शादी है सोचता हूँ कि परिवार ले आऊँ कुछ दिन परिवार को भी साथ रखु पता नहीं पुलिस कि नौकरी में कब ऐसी जगह पोस्टिंग हो जाए कि परिवार रखना सम्भव ही न हो तो दोस्त एक अच्छा सा पारिवारिक किराये के मकान कि ब्यवस्था कर दो पुलिस वालों को जल्दी क़ोई मकान किराये पर नहीं देता ।तुम लोकल हो तुम्हारे माध्यम से मकान किराये पर आसानी से उपलब्ध हो जाएगा तन्मय ने कहा दोस्त यह बहुत छोटी सी बात है आप समय निकालो मैं कुछ मकान दिखा देता हूँ तुम्हे जो पसंद हो किराए पर ले लेना ।दूसरे दिन तन्मय समरेंद्र को मकान दिखाने ले गया दो तीन मकान देखने के बाद उसे एक मकान पसंद आया जिसका अग्रिम किराया देकर समरेंद्र बोला कि अगले सप्ताह मैं परिवार लेने जाऊँगा ।अगले सप्ताह समरेंद्र घर गाया तो माँ शांति देवी ने कहा तू तो बिलकुल अपने बाप कि तरह पुलिस वाला बन गया है उन्होंने पुलिस कि नौकरी कि निष्ठा में जान दे दी और मुझे अकेला छोड गए तुम्हे तो अपनी नई नवेली दुल्हन के लिये फुरसत नहीं समरेंद्र ने कहा माँ तुम तो जानती हो कि पुलिस कि नौकरी में दिन रात कोल्हू के बैल कि तरह खटना पड़ता है और हर समय खतरे भी रहते है लेकिन मैं अब सोचता हूँ कि रिया को जितने दिन भी मौका मिले साथ रखूं माँ शांति देवी को लगा की समरेंद्र ने उसके मन कि बात कह दी शांति देवी ने तुरंत सहमति दे दी एक दिन घर रहने का बाद समरेंद्र रिया को लेकर अपने साथ चला गया रिया किराये के मकान को एकदम सजा सवारकर एक खूबसूरत आशियाने कि शक्ल दे दी ।परिवार लाने के बाद पहले दिन अपनी पोलिस चौकी जब समरेंद्र गया सबसे पहले उसने तन्मय को बुलवाया और कहा दोस्त मैं अपना परिवार ले आया हूँ और रोज मर्रा कि जरुरत जैसे गैस कनेक्सन अखबार दूध आदि कि व्यवस्था करवा दो चूकी दोनों हम उम्र थे अतः दोस्ती में औपचारिकता नहीं थी तन्मय ने समरेंद्र के कहे अनुसार उसी दिन सारी व्यवस्थाये कर दी ।रिया को कोई तकलीफ नहीं थी तन्मय अक्सर समरेंद्र से चौकी पर ही मिल लेता इस तरह लगभग एक माह बीत गए ।एक दिन जब तन्मय समरेंद्र से मिलने चौकी पर गया तब समरेंद्र ने कहा तन्मय तुमने हमारी गृहस्ती बसाने  में इतनी मदद कि है हमारे घर पर तुम्हारा एक कप चाय का हक तो बनाता ही है ऐसा करो तुम आज शाम को हमारे घर आओ ।तन्मय चला गया और समरेंद्र भी डियूटी पर गस्त पर निकल पड़ा जब शाम समरेंद्र घर पहुंचा उसके आधे घंटे बाद तन्मय भी पहुच गाया तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने कहा भाई तन्मय आपके शहर और आपके घर में आपका स्वागत है तन्मय सहम सा गया अपने पुलिस वाले दोस्त कि बात सुनकर और बोला समरेंद्र क्या बात करते हो समरेंद्र ने कहा ठीक ही तो कह रहा हूँ शहर तुम्हारा है और मकान तुम्हारी वजह से मुझे मिला है ।अब बेवजह का सवाल छोड़ो और बैठो तन्मय ड्राईंग रूम के शोफे पर बैठा समरेंद्र अंदर गया और पत्नी रिया को चाय लेकर आने को बोला और आकर ड्राईंग रूम में बैठ गया दोनों दोस्त आपस में गप्पे लड़ाने में मशगूल थे तभी रिया चाय लेकर ड्राईंग रूम दाखिल हुई रिया ने ज्यो ही तन्मय को देखा उसके होश उड़ गए उसके हाथ में चाय का ट्रे गिरने ही वाला था कि समरेंद्र ने सभल लिया और ट्रे मेज पर रखते बोला अरे दोस्त मेरी बीबी तो तुम्हे देख कर चकरा गयी क्या ख़ास बात है तुमसे तो हम तो रोज ही मिलते है तन्मय कि स्थिति और भी गभ्भिर थी उसे तो पूरी दुनियां घूमती नज़र आ रही थी पल भर के लिये रिया
तन्मय कि नजरे मिली और सदियों कि बाते कर गयी । तन्मय कुछ बेचैन होने लगा वो  बैठा तो समरेंद्र के ड्राईंग रूम में जरूर था मगर उसका मन अतीत में रिया के साथ गुजरे वक्त कि यादों में खो गया तन्मय सोचने लगा नियति कौन सा अजीब खेल उसके साथ खेल रही है उसने जल्दी जल्दी चाय ख़त्म की और तन्मय से जाने कि इज़ाज़त लेकर बहार निकल गया जल्दी जल्दी घर पहुंचा और रिया के खयालो में खो गया उसे ना तो भूख थी ना ही प्यास थी सिर्फ रिया के प्यार कि चाह की राह उसे यक़ीन नहीं था कि रिया कि उसकी मुलाक़ात ऐसे मुश्किल दो राहे पर होगी वह बड़ी दुविधा कि स्थिति में था। किसी तरह रिया कि यादों में जागता रात बीती सुबह वह सामान्य दिखने की और खुद की भावनाओं पर नियंत्रण करने कि कोशिश करता रहा शाम होते ही वह समरेंद्र से मिलने गया और समरेंद्र उसे अपनी बुलेट पर बैठा घर लेता चला गया फिर साथ बैठकर चाय पीना और गप्पे लडाना दो तीन बार समरेंद्र तन्मय को साथ अपने साथ घर ले गया अब तन्मय के मन से झिझक कम हो गयी वह अक्सर समरेंद्र से मिलने जाता कभी समरेंद्र के साथ उसके घर चला जाता कभी समरेंद्र गश्त में हल्के में चला जाता तो तन्मय अकेले ही समरेंद्र के घर पहुच जाता और रिया के साथ घंटो बात करता रहता  यह सिलशिला चलता रहा  एकाएक एक दिन शाम को समरेंद्र से तन्मय मिलने गया और वहाँ से समरेंद्र अपने चौकी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में गस्त पर निकल गया इस बात को समरेंद्र को जरा भी इल्म नहीं था कि तन्मय उसकी अनुपस्थिति में भी उसके घर जाता है उस दिन समरेंद्र को गस्त करते रात के तीन बज गए तन्मय और रिया में आपस में बात करने में मशगूल थे तभी समरेंद्र ने दरवाजा खटखटाया दरवाजा  तन्मय ने ही खोला समरेंद्र के होश् उड़ गए उसने आश्चर्य से पूछा तुम इतनी रात यहाँ क्या कर रहे हो तन्मय ने कहा रिया ने कहा बैठो जब तक वो नहीं आ जाते मै बैठ गया बातो ही बातो में पता ही नहीं चला कब इतना टाइम हो गया समरेंद्र ने तन्मय से कहा मित्र शरीफ व्यक्ति इतनी रात को किसी के घर उसकी अकेली बीबी से बात नहीं करते । तन्मय अपने घर चला गया समरेंद्र बिना कुछ कहे सो गया कहते है कि पुलिस शक के बिना पर असली मुजरिम तक पहुँच जाते है समरेंद्र सुबह उठा और अपने चौकी पहुँच कर् उसने अपने सबसे विश्वाश पात्र सिपाही को तन्मय के विषय में जानकारी हासिल करने के लिये गोपनीयता कि हिदायत के साथ लगा दिया और खुद अपने पड़ोसियों से तन्मय के अपनी अनुपस्तिति में आने के बाबत सूचना इकठ्ठा किया तो पता चला कि तन्मय लगभग रोज रात्रि के दी तीन बजे तक समरेंद्र के घर से   बहुत दिनों  आता जाता देखा जा रहा है कोई बोलता इसलिये नहीं है कि एक तो पुलिस से सम्बंधित और दूसरे दोस्ती का मामला ।समरेंद्र के दिमाग में क्या चल रहा था किसी को नहीं पता समरेंद्र अंतर्मुखी व्यक्तित्व था जिसका अंदाज़ा लगा पना बहुत कठिन था एक सप्ताह बाद समरेंद्र द्वारा नियुक्त विश्वसनीय सिपाही ने तन्मय के बचपन से वर्तमान तक का पता लगा कर बता दिया उसने बताया कि रिया और तन्मय इंटरमीडिएट से साथ साथ पढ़ते थे दोनों में बहुत प्यार था रिया ने तन्मय से शादी के लिये बगावत कर दी थी मगर दोनों का विवाह रिया के पिता महेश सिंह जी के जिद्द के कारण नहीं हो पाया समरेंद्र ने जानकारी हासिल करने के बाद अब स्वयं भी ख़ुफ़िया तरीके से तन्मय के अपने घर आने जाने के सिलसिले कि तस्दीक करने लगा वह जान बुझ कर चौकी से निकल जाता और अपने घर के आस पास अपने ही घर कि निगरानी करता।समरेंद्र ने प्रतिदिन देखा कि तन्मय उसके घर आता है और रिया से रोज रात एक दो बजे तक बात करता है समरेंद्र चाहता था कि तन्मय और रिया जब भी आपत्ति जनक स्थिती में हो तो उनको वह रंगे हाथों पकड़े मगर रिया और तन्मय का प्यार ईश्वर का विधान था जिसमे वासना का क़ोई स्थान नहीं था फिर भी समरेंद्र को तन्मय और रिया का मिलना नागवार लगता था एक तो पुलिस में कार्य करने से शक सुबहा उसके जीवन  का अभिन्न हिस्सा बन गया था मन ही मन उसने दृढ़ निश्चय कर् लिया तन्मय को रिया कि जिंदगी से हटा कर दम लेगा  अंतिम दिन जब तन्मय रिया से मिलकर जाने लगा उसने कहा अब हम मिलने नहीं आएंगे जन्म जन्मान्तर तुम्हारे आने कि प्रतीक्षा में रहेंगे ख़ुफ़िया निगरानी कर रहे समरेंद्र ने तन्मय कि बात सूनी ।तन्मय के जाने के आधे घंटे बाद वह घर में गया और सो गया सुबह उठा तो वह काफी गंभीर और प्रतिशोधात्मक लग रहा था रिया ने माहौल को हल्का करने के लिये मज़ाकिया अंदाज़ में कहा क्या किसी खतरनाक मुजरिम से पाला पड़ा था जो आप इतने गंभीर गुमसुम है समरेंद्र कुछ बिना बोले तैयार होकर चला गया रिया का मन किसी अनहोनी के डर से घबराने लगा शाम हुई रोज कि भाँती तन्मय समरेंद्र से मिलने पुलिस चौकी आया उस वक्त चौकी में सिर्फ समरेंद्र था उसने अपनी योजना के अनुसार सभी मातहतों को बाहर डियूटी पर भेज दिया था तन्मय दोस्त कि दोस्ती के गुरुर में था उसे जरा भी इल्म नहीं था कि उसका पुलिस दोस्त उसके लिये साक्षात् काल का रूप धारण कर चुका है तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने सवाल किया तुम देर रात मेरे घर मेरी पत्नी से बात करने क्यों जाते हो क्या कोइ दोस्त अपने दोस्त कि गैरहाजिरी में उसके घर रात दो तीन बजे तक उसकी पत्नी से अकेले में बात करता है यह  तुम्हारे साथ मैं करूँ तो कैसा लगेगा तन्मय ने समरेंद्र को समझने कि बहुत कोशिश कि उसने बताया कि रिया उसके साथ पढ़ी है मगर समरेंद्र ने कहा दोस्त पुलिस वाले कि दोस्ती कि धार तुमने देखी है अब उसके दुश्मनी कि मार झेलो इतना कहते उसने कहते उसने अपने सर्विस रिवाल्वर निकली और सारी गोलियां तन्मय के कनपटी सीने पेट में इस विश्वाश से उतार दी कि वह किसी हाल में जीवित ना बचे तन्मय जमीन पर गिरा तड़फड़ा रहा था समरेंद्र ने तुरंत ऑटो वाले को जिसे उसने पहले से बोल रखा था को बुलाया और तन्मय को उसमे अर्ध मृत्य अवस्था में लादते हुये कहा इसे सरकारी अस्पताल ले जाओ पुलिस चौकी के पास रहने वालों ने इस घटना को देखा उनमे से एक नौजवान चौकी के सामने तन्मय कि नृशंस हत्या पुलिस द्वारा किये जाने पर जनपद निवासियो को जोरदार ललकारा अब जनता का हुजूम ईकठ्ठा हो चुका था मौके कि नज़ाकत देख समरेंद्र फरार हो गया जनता के हुजूम ने जनपद के थाने पुलिस चौकियों को फूक डाला जनता कि मांग थी खून का बदला खून मगर समरेंद्र का कही पता नहीं था।जब घटना कि जानकारी रिया को मिली तो वह स्वयं मृत सामान हो गयी उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या करे ।जनपद की जनता उद्वेलित आंदोलित थी करोड़ो रुपये कि सरकारी सम्पति जनता के आक्रोश के भेट चढ़ गए सरकार द्वारा जनपद में अनिश्चित कालीन कर्फ्यू लगा दिया प्रशासनिक अमले का स्थानातरण कर दिया और नयी प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की गयी चुकी इस पूरे घटना में रिया का दोष नहीं था अतः उसे प्रशासन ने  चोरी छिपे जनता के आक्रोश से बचते बचाते उसके घर भेज दिया घटना के लगभग पंद्रह दिनों बाद समरेंद्र ने न्ययालय में आत्म समर्पण कर दिया ।शहर का माहौल समरेंद्र के आत्म समर्पण के बाद शांत होने लगा ।यह सुचना जब महेश सिंह और मिलिंद को मिली तो महेश सिंह आनन फानन भारत लौट आये और अपनी बेटी रिया को अपने घर वापस ले आये रिया का सब कुछ लुट चूका था पति अपराधी जेल में था और प्रेमी जन्म जन्म के इंतज़ार के लिये मर चुका था रिया एक स्कूल टीचर हो अपने इस जीवन का निर्वहन करती अगले जीवन में तन्मय के प्यार के इंतज़ार में जिए जा रही थी पिता महेश सिंह उसकी बेदना को मूक बनकर देखते पश्चाताप के आंसू बहाते सोचते काश वे रिया कि बात मान उसकी शादी तन्मय से किये होते मगर पश्चाताप का ना तो कोई फायदा था ना ही प्राश्चित ।

कहानीकार--नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...