विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल ---
1.
क्या खाक जुस्तजू करें हम सुब्हो-शाम की 
जब फिर गईं हों नज़रें ही माह-ए-तमाम की 
2.
शोहरत है इस कदर जो हमारे कलाम की
नींदें उड़ी हुई हैं यूँ हर खासो-आम की 
3.
हर शख़्स हमको शौक से पढ़ता है इसलिए
करते हैं बात हम जो ग़ज़ल में अवाम की 
4.
जो कुछ था वो तो लूट के इक शख़्स ले गया 
जागीर रह गई है फ़कत एक नाम की
5.
 खोली किताबे-इश्क़ जो उसकी निगाह ने
उभरीं हरेक हर्फ़ से मोजें पयाम की 
6.
ज़ुल्फों में उसकी फूल भला कैसे टाँकता
हिम्मत बढ़ाई उसने ही अदना गुलाम की 
7.
ज़ुल्फ़े-दुता का नूर अँधेरों को बख़्श दे 
प्यासी है कबसे देख ये तक़दीर शाम की 
8.
*साग़र* धुआँ धुआँ है फ़जाओं में हर तरफ़
शायद लगी है आग कहीं इंतकाम की 

🖋️ग़ज़ल ---
1.
क्या खाक जुस्तजू करें हम सुब्हो-शाम की 
जब फिर गईं हों नज़रें ही माह-ए-तमाम की 
2.
शोहरत है इस कदर जो हमारे कलाम की
नींदें उड़ी हुई हैं यूँ हर खासो-आम की 
3.
हर शख़्स हमको शौक से पढ़ता है इसलिए
करते हैं बात हम जो ग़ज़ल में अवाम की 
4.
जो कुछ था वो तो लूट के इक शख़्स ले गया 
जागीर रह गई है फ़कत एक नाम की
5.
 खोली किताबे-इश्क़ जो उसकी निगाह ने
उभरीं हरेक हर्फ़ से मोजें पयाम की 
6.
ज़ुल्फों में उसकी फूल भला कैसे टाँकता
हिम्मत बढ़ाई उसने ही अदना गुलाम की 
7.
ज़ुल्फ़े-दुता का नूर अँधेरों को बख़्श दे 
प्यासी है कबसे देख ये तक़दीर शाम की 
8.
*साग़र* धुआँ धुआँ है फ़जाओं में हर तरफ़
शायद लगी है आग कहीं इंतकाम की 

🖋️विनय साग़र जायसवाल बरेली
जुस्तजू -खोज ,तलाश
माह-ए-तमाम-पूर्णमासी का चंद्रमा 
ज़ुल्फ़े-दुता-स्याह गेसू 
नूर-प्रकाश 
इंतकाम-बदला 
24/5/1979 बरेली
जुस्तजू -खोज ,तलाश
माह-ए-तमाम-पूर्णमासी का चंद्रमा 
ज़ुल्फ़े-दुता-स्याह गेसू 
नूर-प्रकाश 
इंतकाम-बदला 
24/5/1979

नूतन लाल साहू

सुंदरता निखारिए,सदाचरण से

धैर्यवान, व्यवहार कुशल
सहनशील व विवेकी बने
उच्च विचार एवं सुंदर विचार ही
व्यक्ति की सुंदरता है
अवगुण और बुरे कर्म
व्यक्ति की सुंदरता को
नष्ट कर देता है
व्यक्ति और समाज की भलाई
करने वाला इंसान
चाहे कुरूप हो या रूपवान
कोई फर्क नही पड़ता है
क्योंकि सभी व्यक्ति
अच्छे कामों का प्रशंसा करते है
मैं सच कहता हूं
इंसान के बुरे कर्म
व्यक्ति के सुंदरता को
ढक लेता है
व्यक्ति के गुणों अवगुणों का संबंध
उसके सुंदरता या कुरूपता से नहीं
बल्कि अच्छे और बुरे
विचारों और कर्मो से होता है
सोने के प्याले में यदि
विष भरा हो तो
उसे कोई पीना नहीं चाहेंगे
जबकि मिट्टी के प्याले में
अमृत हो तो
उसे सभी पीना चाहेंगे
धैर्यवान, व्यवहार कुशल
सहनशील व विवेकी बने
उच्च विचार एवं सुंदर विचार ही
व्यक्ति की सुंदरता है
अतः सुंदरता निखारिए
सदाचरण से
यही तो आत्म ज्ञान है

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पहला*-1
 पहला अध्याय(श्रीकृष्णचरितबखान)-1 
            बंदउँ सुचिमन किसुन कन्हाई।
            नाथ चरन धरि सीष नवाई ।।
मातु देवकी पितु बसुदेवा।
नंद के लाल कीन्ह गो-सेवा।।
           राधा-गोपिन्ह के चित-चोरा।
            नटवर लाल नंद के छोरा।।
गाँव-गरीब-गो-रच्छक कृष्ना।
गीता-ग्यान हरै जग-तृष्ना ।।
         मातु जसोदा-हिय चित-रंजन।
         बंधन मुक्त करै प्रभु-बंदन।।
दोहा-कृष्नहिं महिमा बहु अधिक,करि नहिं सकहुँ बखान।
सागर भरि लइ मसि लिखूँ, तदपि न हो गुनगान ।।
        जय-जय-जय हे नंद किसोरा।
       निसि-दिन भजन करै मन मोरा।।
पुरवहु नाथ आस अब मोरी।
चाहूँ कहन बात मैं  तोरी  ।।
       कुमति-कुसंगति-दुर्गुन-दोषा।
        भागें जे प्रभु करै  भरोसा  ।।
कृष्न-कन्हाइ-देवकी-नंदन।
जसुमति-लाल,नंद के नंदन।।
      चहुँ दिसि जगत होय जयकारा।
      नंद के लाल आउ मम द्वारा ।।
हे चित-चोर व मक्खन चोरा।
बासुदेव के नटखट छोरा  ।।
      मेटहु जगत सकल अँधियारा।
      ज्ञान क दीप बारि उजियारा  ।।
दोहा-सुनहु सखा अर्जुन तुमहिं, आरत बचन हमार।
चहुँ-दिसि असुर बिराजहीं,आइ करउ संघार ।।
           श्रीकृष्ण का प्राकट्य-
रोहिनि नखत व काल सुहाना।
रहा जगत जब प्रभु भय आना।।
          गगन-नखत-ग्रह-तारे सबहीं।
          सांत व सौम्य-मुदित सब भवहीं।।
       निरमल-सुद्ध नदी कै नीरा।
       हरहिं कमल सर खिल जग-पीरा।।
बन-तरु-बिटप पुष्प लइ सोभित।
पंछी-चहक सुनत मन मोहित  ।।
    सुर-मुनि करैं सुमन कै बरसा।
      होइ अनंदित हरसा-हरसा ।।
नीरद जाइ सिंधु के पाहीं।
गरजहिं मंद-मंद मुस्काहीं।।
     परम निसीथ काल के अवसर।
     भएअवतरित कृष्न वहीं पर।।
पसरा रहा बहुत अँधियारा।
लीन्ह जनर्दन जब अवतारा।।
      जस प्राची दिसि उगै चनरमा।
      लइ निज सोरह कला सुधरमा।।
गरभ देवकी तें तहँ वयिसै।
बिष्नु-अंस प्रभु प्रगटे तइसै।।
  दोहा-निरखे बसुदेवइ तुरत,अद्भुत बालक-रूप।
  नयन बड़े मृदु कमल इव,हाथहिं चारि अनूप।।
                   डॉ. हरि नाथ मिश्र
                    99194463

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश

 

परिचय
ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश


मैंने मनोविज्ञान और समाज शास्त्र विषय में एम ए किया है,और शास्त्रीय गायन में खैरागढ़ युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है।
मुझे बचपन से ही लेखन और संगीत में गहन रुचि रही है।
सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में  रचनाएं प्रकाशित होती रहती है।

लोकजंग भोपाल समाचार पत्र में लघुकथाएं व कविताएं प्रकाशित
साझा संकलन- व्यक्तित्व दर्पण लघुकथा संग्रह,
काव्य साझा संकलन-साहित्य सरीता, अपराजिता,
संगीत में पंचम सादी खां समारोह में पुरस्कृत व गायन।
नमामि देवी नर्मदे मंच द्वारा गायन में विशेष पुरस्कार।
गणगौर मंच द्वारा भजन गायन में पुरस्कृत।
काव्य रांगोली, साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर, काव्य मंजरी साहित्यिक मंच, उड़ान साहित्यिक मंच,प्रेरणा साहित्यिक मंच, भावांजलि साहित्यिक मंच द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत।

*बसंत* *प्रीति*

इंद्रधनुषी गगन,सुरभित है पवन,
पुष्पित हरित धरा,मन को लुभाती है।

मंद स्वच्छंद पवन,मधुर गंध सुमन,
शुचित मुदित मन, प्रीति बढ़ाती है।

सिंदुरी सांझ सुहानी, महकती रातरानी,
तुहिन कण पल्लव, मोती बिखराते है।

प्रकृति की पुलकन,प्रेमभाव मधुवन,
प्रणय निवेदन से, बसंत रिझा रहा।

श्याम राधा स्नेह बंध,गोपियन रासरंग,
ऋतुराज मधुमास,प्रेम बरसाते हैं।

मनभावन बसंत, केसरिया मकरंद,
प्रसून अलि गूंजत, सौंदर्य बढ़ाता है।

सुगंधित तन-मन, आल्हादित है ये मन,
उमंग की प्रीत में, प्रसन्न हो जाइए।

मलय है मदमाती, चांदनी है छिटकाती,
सितारों की लड़ियों से,धरा जगमगाई है।

द्वेष द्वंद छोड़कर, हृदयों को जोड़कर,
शुचित पुनीत प्रेम,मन में बसाइये।

स्वरचित (मौलिक रचना)
ममता कानुनगो इंदौर

नमन मंच
सायली छंद
सुर्योदय

अरुणोदय,
स्वर्णिम लालिमा,
उज्जवल आकाश नवप्रभात,
प्रकृति पुलकित,
आल्हादित।

दिवाकर,
आरुष प्रखर,
सिमटी ओस दोपहर,
तेजस्वी ओजस्वी,
सुप्रभात।

सुर्योदय,
अर्पित अर्घ्य,
जागृत तन मन,
सकारात्मक जीवन,
सुखमय।

आदित्य,
प्रभात ज्योतिर्मय,
मंद सुरम्य पवन,
सुरभित मन,
हृदयानंदित।

ममता कानुनगो इंदौर

नमन मंच
धनाक्षरी
*अंजुरी*

अंजुरी में भर स्नेह,
लागी श्याम संग नेह,
दधि माखन मिश्री से,
कान्हा को रिझाए रही।

मन में बसे मुरारी,
गोवर्धन गिरधारी
चरण धूलि पाकर,
आनंद पाए रही।

चहक रही चांदनी,
महक रही यामिनी,
अंजुरी में चांद भर,
मन मुस्काए रही।

गोपियन वृंदावन,
राधारानी मधुवन,
कृष्ण की मुरली सुन,
रास रचाए रही।

ममता कानुनगो इंदौर

विषय आराधना
विधा-सेदोका
5-7-7,5-7-7

भावपूरित,
करुं मैं समर्पित,
ईश तेरी वंदना,
साध मन को,
तप उपासना से,
करूं मैं आराधना।

पुष्प दल,
मन की सुगंध से,
कर्म की कलम से,
अभिव्यंजना,
सत्यप्रकाश दो हमें,
प्रभु सुनो प्रार्थना।

मन तरंग,
नवरस के संग,
नादयोग ही सत्य,
ह्दयदल,
स्वीकारो हे! नाथ,
अर्पण सद्भावना।
ममता कानुनगो

एस के कपूर श्री हंस

*।।विषय।।मिलन।।*
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।धैर्य,बुद्धि,विवेक,विश्वास का*
*मिलन ही जीवन है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
जिन्दगी की  तस्वीर  में 
हमको ही रंग  भरना है।
अपनी   तकदीर  से भी
हमको जंग     करना है।।
मुक़द्दर की  कलम हाथ
हमारे  है    अपने     ही।
जीवन में हमें अपने  ही
ढंग    से    बढ़ना      है।।
2
बुद्धि विवेक  वालों   को 
ही याद किया   जाता है।
धैर्यवान को  ही   जीवन
में साथ  दिया   जाता है।।
धन बल     सदा    काम 
आते नहीं  किसी के भी।
नफ़रत  से  तो    आदमी
बर्बाद   जिया     जाता है।।
3
पत्थर सा     तराश  कर
हीरा बनना      पड़ता है।
ज्ञान की   रोशनी  से भी
भरपूर   करना पड़ता है।।
भीतर  छिपी     प्रतिभा
है   निखारनी      पड़ती।
धैर्य  विवेक   का     पुट
खूब  भरना     पड़ता है।।
4
बुरी स्तिथि  में   आदमी
को  संभलना     चाहिये।
अच्छी  स्तिथि    में नहीं
उसे  उछलना     चाहिये।।
सच झूठ     परखने  की
चाहिये    तासीर  रखनी।
बस नित   प्रतिदिन  को
व्यक्ति  सुधरना  चाहिये।।

*रचयिता।।एस के कपूर " श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।         9897071046
                       8218685464


*।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  51 ।।*
*।।काफ़िया।। आस।।*
*।।रदीफ़।। नहीं चाहिये।।*
1
दीन हीन का    परिहास  नहीं चाहिये।
असत्य के ऊपर विश्वास नहीं चाहिये।।
2
संवेदनशीलता   कदापि कम नहीं हो।
धन बल वैभव भोग विलास नहीं चाहिये।।
3
मूल्यों का कदापि पतन न हो जीवन में।
मद्यपान मे डूबा उल्लास नहीं चाहिये।।
4
हर घर को मिलेगा उजाला और निवाला।
हमें ऐसा झूठ आस पास नहीं चाहिये।।
5
खत्म हो जाये जहाँ पर दर्द का ही रिश्ता।
हमें ऐसा कोई रिश्ता शाबास नहीं चाहिये।।
6
अमीरी गरीबी का जहाँ उड़ता हो मजाक।
हमें ऐसा मानवता का उपहास नहीं चाहिये।।
7
स्वार्थ के ही हों जहाँ पर सब रिश्ते नाते।
प्रेम सौहार्द का हमें ऐसा खलास नहीं चाहिये।।
8
छल कपट झूठ अदाकारी से भरा हुआ।
इंसानियत का काला इतिहास नहीं चाहिये।।
9
*हंस* हमें चाहिये सवेदनायों से पूर्ण मनुष्य।
हमें दिखावटी आदमी खास नहीं चाहिये।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

*।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  51 ।।*
*।।काफ़िया।। आस।।*
*।।रदीफ़।। नहीं चाहिये।।*
1
दीन हीन का    परिहास  नहीं चाहिये।
असत्य के ऊपर विश्वास नहीं चाहिये।।
2
संवेदनशीलता   कदापि कम नहीं हो।
धन बल वैभव भोग विलास नहीं चाहिये।।
3
मूल्यों का कदापि पतन न हो जीवन में।
मद्यपान मे डूबा उल्लास नहीं चाहिये।।
4
हर घर को मिलेगा उजाला और निवाला।
हमें ऐसा झूठ आस पास नहीं चाहिये।।
5
खत्म हो जाये जहाँ पर दर्द का ही रिश्ता।
हमें ऐसा कोई रिश्ता शाबास नहीं चाहिये।।
6
अमीरी गरीबी का जहाँ उड़ता हो मजाक।
हमें ऐसा मानवता का उपहास नहीं चाहिये।।
7
स्वार्थ के ही हों जहाँ पर सब रिश्ते नाते।
प्रेम सौहार्द का हमें ऐसा खलास नहीं चाहिये।।
8
छल कपट झूठ अदाकारी से भरा हुआ।
इंसानियत का काला इतिहास नहीं चाहिये।।
9
*हंस* हमें चाहिये सवेदनायों से पूर्ण मनुष्य।
हमें दिखावटी आदमी खास नहीं चाहिये।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

सुषमा दीक्षित शुक्ला

होली के रँग 

होली के शुचि पर्व में ,
रँगो प्रेम से मीत।
 प्रेम करो हर एक से
 लिखो प्रेम के गीत ।

फागुन आया झूमता ,
हैंबगियन में बौर ।
रंगों का त्यौहार ये ,
मधुर मिलन का दौर ।

होली के रँग में रँगो ,
 छोड़ो सारे क्लेश ।
हो जाओ सब एकरँग ,
भूलभाल कर द्वेष  ।

पिचकारी भर भर रँगो ,
डालो लाल गुलाल।
 होली में मिल झूम लो,
 रँग दो सब के गाल ।

कोई बैरी  ना रहे ,
होली से लो सीख ।
 प्रेम रंग से जग रँगों ,
 बनो सभी के मीत ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-51
संजम-नियम कृपा भगवाना।
नासहिं रोग जगत जे नाना ।।
      प्रभु कै भगति सँजीवनि नाई।
      श्रद्धा बहु जड़ ब्याधि नसाई।।
मन निरोग तुम्ह जानउ तबहीं।
उपजै जब बिराग तव उरहीं ।।
      बढ़ै सुबुधि अरु घटै बासना।
      राम-भगति-जल-ग्यान चाहना।।
श्रुतिहिं-पुरान-ग्रंथ सभ कहहीं।
राम-भगति बिनु सुख नहिं लहहीं।।
      होइ असंभव संभव बरु जग।
       मिलै न सुख बिनु राम-भगति खग।।
मथे बारि बरु घृत जग पावै।
सिकत पेरि बरु तेल लगावै।।
      प्रगटै पावक बरु हिम-खंडा।
       करै नास तम भानु प्रचंडा।।
पाथर मूलहिं उपजै फूला।
भानु उगै पच्छिम प्रतिकूला।
      पर न होहि खगेस कल्याना।
      बिनू कृपा राम भगवाना ।।
दोहा-राम-कृपा जग बहु प्रबल,भगति प्रबल प्रभु राम।
        महिमा गावैं चतुर जन,पावहिं ते सुख-धाम ।।
        राम क चरित जल-निधि इव, जल अथाह नहिं पार।
        तैरत रह प्रभु-चरित-जल, मिलहीं रतन अपार ।।
                       डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919446372

 *दोहे*(मादकता/मानवता)
होली के हुड़दंग में,मादकता अधिकाय।
रहे मनुजता शेष तो,होली परम सुहाय।।

उभय बीच संबंध मधु,बहुत कठिन है मीत।
स्नेह-रज्जु से यदि बँधें,बने मधुर जग-गीत।।

मादकता ने ही जना, रावण जैसा नीच।
जिसके ही उत्पात से,भरा लोक-सर कीच।।

पुनि आए प्रभु राम ले, मानवता-हथियार।
मादकता को कुचल कर,किया लोक-उद्धार।।

होली के हुड़दंग में, दोनों का रख ध्यान।
मने अगर त्यौहार यह, बढ़े पर्व - सम्मान।।

होली के त्यौहार पर, मिलें गले दो यार।
रिपुता को सब भूलकर,करें शत्रु-सत्कार।।

होली-पावक पावनी, करे भस्म अभिमान।
मादकता को भी जला,दे मानव को ज्ञान।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

नूतन लाल साहू

होली

परिवार संग खेलो होली
बीती उमर न आयेगी कल
हंस लें जरा, गा लें जरा
होली है होली है होली है
बड़ी जादू भरी है ये दुनिया
दुनिया के मजे लूट लें
रंग गुलाल का त्यौहार
होली है होली है होली है
खुशी से नाचें मेरा मन
पायल बोले छन छनाछन
एक साथ मिलकर बोलो
होली है होली है होली है
रात भर का है मेहमान अंधेरा
तुझको ये पल न मिलेगा
रंग डाल लें,गुलाल लगा लें
और प्रेम से बोलो
होली है होली है होली है
यही तो वो सांझ सबेरा है
जिसके लिए तड़पे
मानव सारा जीवन भर
आ गई है,खुशियों की बेला
पूरा परिवार मिलकर बोलो
होली है होली है होली है
आया है कोरोणा का बवंडर
हमेशा नहीं रह पायेगा
कही खुशी तो कहीं गम है
बुराई पर अच्छाई का पर्व
होली है होली है होली है
परिवार संग खेलो होली
बीती उमर न आयेगी कल
हंस लें जरा, गा लें जरा
होली है होली है होली है

नूतन लाल साहू

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

🌹🌹होली की शुभकामनाएं 🌹🌹

प्रेम रंगो की हो वर्षा नित, 
सौहार्द गुलाल की फुहार,
सूरज की सुनहरी किरणे , 
करें खुशियों की बौछार,
चन्दन की खुशबु बिखरे , 
संग सदा अपनों का प्यार,
जीवन हो मधुर मंगलमय,
हर्षाए अंग-अंग आनंद अपार,
हे हरि ! हो हर दिन होली
रास रंग सज जाए  घर द्वार,
गिले-शिकवे सारे भूल कर,
करें इक दूजे पर  प्रेम की बौछार,
करें आजाद अकेला अभिनंदन,
मुबारक हो होली का त्यौहार।

  ✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला (बरबीघा वाले)

जय जिनेंद्र देव

*गाँव की होली...*
विधा : कविता

होली आते ही मुझे
याद गाँव की आ गई। 
कैसे मस्ती से गाँव में 
होली खेला करते थे।
और गाँव के चौपाल पर
होली की रागे सुना थे। 
अब तो ये बस सिर्फ
यादे बनकर रह गई।। 
क्योंकि

मैं यहां से वहां
वहां से जहां में। 
चार पैसे कमाने
शहर जो आ गया।। 

छोड़कर मां बाप और 
भाई बहिन पत्नी को। 
चार पैसे कमाने 
शहर आ गया। 
छोड़कर गाँव की 
आधी रोटी को। 
पूरे के चक्कर में 
शहर आ गया। 
अब न यहाँ का रहा 
न वहाँ का रहा।
सारे संस्कारो को
अब भूल सा गया।। 
चार पैसे कमाने....। 

गाँव की आज़ादी को 
मैं समझ न सका। 
देखकर शहर की
चका चौन्ध को। 
मैं बहक कर गाँव से
शहर आ गया।
और मुँह से आधी रोटी
भी मानो छूट गई।। 
चार पैसे कमाने...। 

सुबह से शाम तक 
शाम से रात तक। 
रात से सुबह तक
सुबह से शाम तक। 
मैं एक मानव से 
मानवमशीन बन गया। 
फिर भी गाँव जैसा मान
शहर में  न पा सका।। 
चार पैसे कमाने 
यहाँ वहाँ भटकता रहा।
छोड़कर गाँव को
मैं शहर आ गया।। 

आज होली के दिन
रंगो के उड़ते ही 
बीतेदिन याद आ रहे। 
पर जिंदगी को अपनी
वहाँ से कहाँ तक ला दिया।
और भूल से गये शहर में
अब तो होली खेलना।
कहाँ गाँव का चौपाल है 
अब तो बंद है चार दिवारी में, बस चार दिवारी में।। 


आप सभी को होली की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं। 

जय जिनेंद्र देव
संजय जैन मुंबई
28/03/2021

पुनीता सिंह

शीर्षक -
*मन में बरसे फाग*
इस होली में दफन करो हर दुख देती बात,
नेह रंग में रंग डालें हम अपनें जज़्बात।
💞💞
हम अपने जज़्बात, करें ना अब बरजोरी,
प्रीत के रंग में रंग जाए, आओ सब हमजोली।
💕💞
मिल करके हमजोली, सजायें मन का आंगन,
यही दुआ रब से है मेरी, मन में बरसे फागुन।
💞💞
मन में बरसे फाग, प्यार से भर पिचकारी,
बेरंग भाव हटे जीवन से, महके मन फुलवारी।
💞💞
खुशियों में सेंध लगी, साल भर मची तबाही,
पूरी कसर करें होली में, अंसुअन की करें विदाई।।
*पुनीता सिंह दिल्ली*

उषा जैन

विषय -होली

रूत बसंती मन बसंती 
तने बसंती फागुन की मस्ती
मदमाता फागुन  आ गया
फागुनी खुमार चढ़ा गया

टेसू कनेर के फूल है महके
लाल पलाश सब और है दहके
केसरिया सा मन हो गया 
मेरा अंग अंग महका गया 
मदमाता फागुन आ गया

ढोल नगाड़े मृदंग है बचते
फागुनी गीत हवा में गूंजे
छम छम गोरी गोरी ने पायल छनकाई
झूम रही है सारी  अमराई
कोयल भी फिरती है बौराई
एक नशा  सा हवा में छा गया
 मदमाता फागुन आ गया

आज न छोटा बड़ा है कोई
झूम रहे सब लोग लुगाई
आज न कोई राजा प्रजा है
खेल रहे रंग बनके हमजोली
रंगो के बहाने छेड़े भाभी को
देवर भी आज करे मनमानी
भाभी के गालों को रंग गया
मदमाता फागुन आ गया

तुम भी आ जाओ मेरे रंगरसिया
मुझ पर भी रंग बरसा दो मनबसिया
सूखी फीकी है मोरी चुनरिया
तुझे बिन रहा ना जाए सांवरिया
मन की अगन और भी दहका गया 
मदमाता फागुन आ गया गया

पीली पीली चुनर ओढ़ कर
अवनी भी आज रंग बरसाए
हर सजनी अपने सजना के संग
गीत प्यार के झुमके गाए
आज न  कोई तन्हा रह जाए
दुश्मन को भी गले लगाएं
रूठे हुए को आज मना ले 
प्रेम प्यार से तन मन रंग ले 
मन का बैर भाव  मिटा गया
मदमाता फागुन आ गया

स्वरचित उषा जैन कोलकाता
28/3/2021

रामकेश एम.यादव

होली!
आओ नफ़रत जलाएं होली में,
गिले -शिकवे भुलाएं होली में।
रूठ गए हैं  अर्से  से  जो रिश्ते,
उन्हें    बचाएँ   इस   होली  में।
जिनके सजन  परदेश में छाए,
उन्हें   भी   बुलाएँ   होली   में।
गोल गप्पे खाएं,रसगुल्ले खाएं,
गुझिया भी खाएँ इस होली में।
अबीर  लगाएं,  ग़ुलाल  उड़ाएं,
तन- मन को मिलाएँ होली में।
ढोल की थाप पे  थिरकें  सभी,
प्यार     बरसाएं     होली    में।
कब की प्यासी हैं नजरें उसकी,
चलो,अंगियाँ भिगोयेँ होली में।
यौवन- रस  से झुक  गईं  डालें,
पियें -  पिलाएं  हम  होली  में।
भीगा ये मौसम, भीगी  दुनिया,
खुशियाँ    मनाएँ    होली    में।
तन  को  छुए  भले  पिचकारी,
पर  मन  भी  भिगोए होली में।
फिर से वायरस का खतरा बढ़ा,
मास्क न  हटाएँ  इस  होली में।

        - रामकेश एम.यादव
    (कवि, साहित्यकार),मुंबई

सुधीर श्रीवास्तव

ले ही लूँ
********
आ गई है होली, थोड़ा सा तो पी लूं ,
बीत गया है अर्सा थोड़ा तो बहक लूँ।
देखता हूँ तो कुछ अच्छा नहीं लगता,
बस थोड़ा सा लेकर कुछ अच्छा हो लूँ।
पीना अच्छा नहीं है पता तो मुझे भी है
थोड़ा सा जीवन का कुछ मजा तो ले लूं।
पीकर बहक जाऊं ऐसा नहीं हो सकता
नाली में गिरने का अनुभव तो कर लूं ।
राज की बात है किसी से भी मत कहना
बीबी के लात घूसों का स्वाद तो चख लूँ।
होली है तो होली का खूब आनंद उठा लूँ
पीता नहीं हूँ,पीने का नाटक तो कर लूं।
आया है आज फिर से त्योहार होली का
आज तो आप सबका आशीष ही ले लूँ।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921
©मौलिक, स्वरचित,अप्रकाशित

जय जिनेन्द्र देव

*होली अपनो के संग*
विधा : कविता 

आओ हम सब, 
मिलकर मनाएं होली।
अपनों को स्नेह प्यार का, 
रंग लगाये हम।
चारो ओर होली का रंग, 
और अपने संग है।
तो क्यों न एकदूजे को, 
रंग लगाए हम।
आओ मिलकर मनाये, 
रंगो की होली हम।।

राधा का रंग और 
कान्हा की पिचकारी।
प्यार के रंग से,
रंग दो ये दुनियाँ सारी।
ये रंग न जाने कोई, 
जात न कोई बोली।
आओ मिला कर मनाये, 
रंगो की होली हम।।

रंगों की बरसात है, 
हाथों में गुलाल है।
दिलो में राधा कृष्ण, 
जैसा ही प्यार है।
चारो तरफ मस्त, 
रंगो की फुहार है।
हर कोई कहा रहा, 
ये रंगो का त्यौहार है।।

बड़ा ही विचित्र ये, 
रंगो का त्यौहार है।
जो लोगो के दिलों में, 
रंग बिरंगी यादे भरता है।
देवर को भाभी से, 
जीजा को साले से।
बड़े ही स्नेह प्यार से, 
रंगो की होली खिलता है।
और अपना प्यार, 
रंगो से बरसता है।।

होली मिलने मिलाने का, 
प्यारा त्यौहार है।
शिकवे शिकायते, 
भूलाने का त्यौहार है।
और दिलों को दिलों से, 
मिलाने का त्यौहार है।
सच मानो और जानो, 
यही होली का त्यौहार है।।

जय जिनेन्द्र देव 
संजय जैन (मुंबई ) 
29/03/2021

रामकेश एम. यादव

हे ! दुनिया के मालिक

सुबह -सुबह जगकर चिड़िया,
मेरी   मुंडेर   पर   आती   है।
अपने  मीठे   कलरव  से  वो,
सबसे    पहले   जगाती   है।
बाग -  बगीचों   की   खुशबू ,
फिजाओं  में  घुल  जाती  है।
हे! दुनिया के मालिक मुझको,
याद    तुम्हारी     आती    है।

सागर  की  लहरों  से  बादल,
जब  नील  गगन में  छाता है।
उमड़-घुमड़कर करता बारिश,
धरा   को   धानी   करता  है।
सज्जित तन को देख-देखकर,
धानी   धरा    मुसकाती    है।
हे! दुनिया के मालिक मुझको,
याद    तुम्हारी    आती     है।

बंजर  को   उपजाऊ   बनाने,
पर्वत   से   नदी  उतरती  है।
कहीं पे गहरी,  उथली  कहीं,
सूरज  की  पाती  पढ़ती  है।
जीना मुहाल किया ये मानव,
धुन -धुन  जब  पछताती  है।
हे! दुनिया के मालिक मुझको,
याद     तुम्हारी    आती    है।

मानव  भी  है  नभ  में उड़ता,
इसको   बड़ा  अभिमान   है।
एटम-बम  की सेज पर सोता,
मन   में    बड़ा   तूफ़ान   है।
अपनी भाषा में जब कुदरत,
लोगों   को    समझाती    है।
हे! दुनिया के मालिक मुझको,
याद    तुम्हारी    आती     है।

ऊपर  से  कोई   साया   नहीं,
वो  जिस्म का धंधा करती है।
उसके  हक़ की धूप  चुराकर,
दुनिया    मौज    मनाती   है।
आंसू  की  दरिया  में  बेचारी,
जब जख्म वो अपना धोती है।
हे! दुनिया के मालिक मुझको,
याद    तुम्हारी     आती    है।

- रामकेश एम. यादव (कवि, साहित्यकार)मुंबई

शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर

शुभ रंगोत्सव..💞🎨☺🎭
ग़ज़ल
*****
चढ़े संसार के सिर पर अजब सी भंग होली में।
लगाते हैं मुहब्बत से सभी जब रंग होली में।।

करें सब एक दूजे को भले ही तंग होली में।
नहीं होती मगर तकरार कोई जंग होली में।।

बड़े-छोटे थिरकते हैं खिलें घर-द्वार भी सबके,
नगाड़े- ढोल  बजते  हैं  चले  हुड़दंग  होली में।

कहीं होती ठिठोली तो हुआ मदहोश है कोई,
पुलक उठता खुशी से झूमता हर अंग होली में ।

रँगा जो भक्ति के रँग में हुआ प्रहलाद सा प्यारा,
करे वो होलिका का दंभ पूरा भंग होली में।

सिखाती आग होली की बुराई को जलाना पर,
सिखा सकता नहीं कोई  किसी को ढंग होली में।

उमा-शंकर सिया-राघव रँगे हैं कृष्ण-राधा भी,
कथाएँ यह बताती हैं इन्हीं से रंग होली में।

गुज़ारिश है मुक़म्मल हो 'अधर' दिल की यही चाहत,
कि मैं खेलूँ सदा होली तुम्हारे संग होली में।

*****************************

आप सभी आत्मीयजनों को रंगों के पावन पर्व #होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।☺🙏💐

🌹।।जय जय श्री राधेकृष्ण।।🌹

 #शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'❤️✍️

एस के कपूर श्री हंस

*।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  50  ।।*
*।।काफ़िया।। आया।।*
*।।रदीफ़।। जाये ।।*
1
जमीं है  जो धूल  उसको हटाया जाये।
दिलों में इक़ नई लौ को जलाया जाये।।
2
थक हार कर जो बैठ   गई  है उम्मीद।
उस उम्मीद को फिर से जगाया जाये।।
3
चला गया है  जो दूर   हमसे  रूठ कर।
लग कर गले उसको फिर बुलाया जाये।।
 4
क्योंकर लगी है आग सीने में नफरतों की।
उसीआग को अब बिलकुल बुझाया जाये।।
5
जो बात कर रही दूर हमको एक दूजे से।
हटा कर प्यार के गीतों को सुनाया जाये।।
6
बेवज़ह लगा दिये इल्ज़ाम एक दूजे पर।
उन दागों को सिरे से  अब मिटाया जाये।।
7
बीत गए जो पल बने थे महोब्बत को।
उन लम्हों को   फिर से  चुराया जाये।।
8
ये जो बेवजहआ गए बीच में राहुकेतु से।
उन्हें अबकी तो बहुत  दूर भगाया जाये।।
9
एक वक़्त थे जो अपने हमजोली हमराह।
उनको आज फिर   सीने से लगाया जाये।।
10
प्रेम और मिलन का त्यौहार है ये होली।
इसे मिलकर  महोब्बत से मनाया जाये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-52
दोहा-सुनि भसुंडि-मुख प्रभु-चरित,भगति-बिमल रस सानि।
        कहेसि गरुड़ मम हिय भई, नवल प्रीति गुन-खानि।।
        मोह व माया जनित दुःख, गए तुरत सभ भागि।
        मोह-मुक्त तुम्ह कीन्ह मोहिं,बंदउँ चरन सुभागि ।।
         भयो जनम मम अब सुफल,पा प्रसाद तव नाथ।
          संसय-भ्रम मम बिगत मन,भजउँ नवा निज माथ।।
          सिर झुकाइ अरु करि नमन,हृदय राखि प्रभु राम।
          गयो गरुड़ बैकुंठ तब, सुमिरत हरि कै नाम।।
सुरसरि बास धन्य ई देसा।
धन्य नारि बहु धन्य नरेसा।।
        धर्महि धन्य,धन्य सभ लोंगा।
         भुइँ भारत प्रधान जप-जोगा।।
धन्य धरनि जहँ नित सतसंगा।
जप-तप-नियम-धरम नहिं भंगा।।
         सभ जन सुनहिं रुचिर मन लाई।
          राम-कथा पुनि-पुनि हरषाई।।
गुरु-पद प्रीति रखहिं नर-नारी।
राम-भगत सुख कर अधिकारी।।
       सकल कामना पूरन होवै।
       कथा कपट बिनु सुनै न खोवै।।
दोहा-राम-भगति दुर्लभ मुनिन्ह,बरु ते करहिं प्रयास।
        बिनु प्रयास नर पावहीं, कहि-सुनि रखि बिस्वास।।
   प्रार्थना-
         हे दीन दयालु-कृपालु प्रभो,
                  सद्बुद्धि सभी जन को दीजै।
       पथ-भ्रष्ट न हों,न हों कपटी,
                  नहिं लोलुप हों,न हों हवसी।
      अज्ञान-अँधेर को छाँटि प्रभो,
                   रवि-ज्ञान-प्रकाश उदित कीजै।
      माया-भ्रम-मद-मोह क जाल,
                     जंजाल-प्रभाव जरा हरिए ।
      नारि क लाजि बचाइ प्रभो,
                      खल-बुद्धि क शुद्धि जरा करिए।
      बालक जो बिनु मात-पिता,
                      असहाय प्रभो तू शरण लीजै।
     राष्ट्र बेहाल-विवाद-विकल,
                       कहीं जाति-विभेद त धर्म-विभेद।
     आतंक भरा है सकल जग में,
                        कहीं वर्ण- विभेद त कर्म-विभेद।
      हे जग-नायक राम प्रभो,
                        जनमानस - शुद्धिकरण कीजै ।
      राष्ट्र सभी आपस मिलकर,
                        बस एक कुटुंब बने सबहीं।
      सुख में,दुख में सब साथ रहें,
                          अरु नेह - सनेह करें सबहीं।
       हे जग-स्रस्टा - पालनकर्ता,
                           जग-कल्य�

नूतन लाल साहू

बाधाओं से कैसा घबराना

नदी नाले की पानी
तब तक निरंतर, बहता रहता है
जब तक वह समुद्र में
नही मिल जाता है
धरती की बड़ी बड़ी चट्टाने भी
उसके वेग को रोक नहीं पाया है
मार्ग की सभी बाधाओं को
नजर अंदाज करना पड़ता है
जब पानी अपने लक्ष्य तक
पहुंचने में सफल हो सकता है
तो आप तो इंसान है
सुर दुर्लभ मानव तन पाया है
फिर भी क्यों घबराता है
जो बिना संघर्ष मरता है
उसे भगवान भी माफ नहीं करता है
सतगुरु ने पूरण ज्ञान दिया है
भव तरने का सामान दिया है
सत्संग का प्याला
जो पियेगा,वह है किस्मत वाला
मोह माया के नशे में
खुशी की तलाश में
व्यर्थ ही फिरता रहता है
इंसान जहां में
मोह माया के बंधन छूटे
मेरी तेरी के भरम भी टूटे
इसीलिए प्रभु जी ने
एक शब्द दो कान दिया है
एक नजर दो आंख दिया है
और इंसान को ही
ज्ञान की ज्योति दिया है
हमें तो लक्ष्य तक जाना है
बाधाओं से कैसा घबराना
आप ही अपनी जिंदगी का
शिल्पकार है

नूतन लाल साहू

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल

ग़ज़ल को इस हुनरमंदी से हम अल्फाज़ देते हैं 
परिंदे जिस तरह से पंख को परवाज़ देते हैं

छुपाओगे कहाँ तक तुम मुहब्बत के सबूतों को 
ये आँखें और चेहरे खोल दिल का राज़ देते हैं

हमारी ख़ासियत को जानता सारा ज़माना है
जिसे छू लें बना उसको ही हम मुमताज़ देते हैं

मुहब्बत में कशिश यह सब तुम्हारी ही बदौलत है
तुम्हारे नाज़ ही इसको नया अंदाज़ देते हैं

हमारे लम्स से उस जिस्म में बजती है यूँ सरगम
कि जैसे मीर की ग़ज़लों को मुतरिब साज़ देते हैं

हमारी ख़्वाहिशें भी क़ैद कर लीं उसने कुछ ऐसे
परों को बाँध जैसे कुछ कबूतरबाज़ देते हैं

हवेली दिल की इस खातिर ही बस आबाद है *सागर*
वो लम्हें दौरे-माज़ी के मुझे  आवाज़ देते हैं

🖋 विनय साग़र जायसवाल
लम्स-स्पर्श 
मुतरिब-गायक
मुमताज़-विशिष्ट ,ख़ास

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

परिवर्तन
       
लगीं हैं बहने नदियाँ अब तो,निर्मल-निर्मल नीर लिए,
चंद्र-चंद्रिका छिटके नभ में, अब तो धवल अभीर हुए।
बरगद-पीपल-आम्र-नीम तरु लगते निखरे-नखरे हैं-
पर्यावरण-प्रदूषण गायब, शीघ्र हुआ जग-पीर लिए।।

लगा है दिखने अब तो हिमालय दूर देश से अपने,
धूल-गंदगी लगीं हैं छँटने, करतीं पूर्ण सभी सपने।
लगतीं जो थीं सकल दिशाएँ, धुँधली सी अति धूमिल-
हो आलोकित हुईं उजागिर रुचिर धवलिमा तीर लिए।।

गाँव की गड़ही-ताल-पोखरे,झीलें जल से भरन लगीं,
जल-सिंचित समयोचित फसलें,खेतों में अब उगन लगीं।
कृषि-प्रेमी हों प्रमुदित मन से निरख फसल निज धन्य रहें-
रखें नित्य घर-द्वार स्वच्छ,मन निर्मल,हिय अति धीर लिए।।

समय नियंत्रण-नियमन का कुछ ऐसा ही तो आ ही गया,
हुए सतर्क सब जन कुछ ऐसे, नियमन सबको भा ही गया।
नियमन और नियंत्रण तो ही अपनी जीवन-पद्धति है-
आज उसी को लगे हैं करने ग्रहण सभी मन थीर लिए।।

शिक्षा-दीक्षा-नव तकनीकें,नव विधान,नव सोच प्रखर,
नई दृष्टि सँग नित मानव की,गई सोच है पूर्ण निखर।
शोर-शराबा,हल्ला-गुल्ला,भारी भीड़ की नीति गई-
नव संस्कृति अब दस्तक दी है,नव प्रभात गम्भीर लिए।।

राजनीति के नायक-चिंतक जितने साधक-शिक्षक हैं,
सब हिमायती परिवर्तन के,सब नव सूर्य समर्थक हैं।
अब नव भारत नव बिहान ले,नवल गगन से है उतरा-
विश्व-पटल पर छा जाएगा निज सीना बलवीर लिए।।
              ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
              9919446372

निशा अतुल्य

स्वरचित सृजन
30.3.2021

मन के पके भाव जब व्यक्त करती 
तो किसी का अहम् रोकता है 
रिश्तों की दुहाई स्वयं को देती
भूल जाती स्त्री फिर उन्हें ।
नारी उत्थान की बातें करने वाले
घुसते ही घर में जब 
स्त्री से पैर धुलवा 
दर्प से काँधे पर टँगे अंगौछे से 
झुकी निगाहों पर 
अहम् की दृष्टि गड़ाते हैं 
तब खो जाती हैं 
अनगिनत चीत्कार
घुटी साँसों में 
जो दिखा भी नहीं पाती रोष
पलकें ऊपर कर ।
घर की चार दीवारी और निकले कदम 
ऐसे ही हैं जैसे धरती अंबर
देखते है हर क्षण एक दूसरे को,
पर दूर से 
तरसती निगाहों को कब किसने समझा
नाम दे दिया क्षितिज का ।
नारी ढकती सबके ऐब 
अपने में समेटती सभी राग विराग
पीती नित गरल भावनाओं के 
बन जाती शक्ति से शिव ।
पर कौन समझे उसे, 
याद तभी आती है,जब कोई रक्तबीज
नहीं आता बस में 
तब साम दाम दण्ड भेद से 
बना चंडिका उपयोग करते उसे ।
और स्त्री फिर धीर,शील टूटी कड़ियों को जोड़ने में लग जाती 
नित पीती हुई विष
कभी अपने परिवार के लिए
कभी समाज के लिए ।
और फिर एक ढोल बजता 
रोज की तरह नारी शक्ति जिंदाबाद ।
स्त्री आधी आबादी जिंदाबाद
एक अनचाही हंसी 
फिर मन में ठहाका लगाती करती चीत्कार अंतर्मन में ।
ये ही सच्चाई है नारी उत्थान की
इस सृष्टि पर ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार जाकड़

 परिचय  

नाम-आशा जाकड़

जन्म स्थान-शिकोहाबाद

जन्म तारीख -10जून1951

शिक्षा-एम.ए.(हिन्दी व समाजशास्त्र)बी.एड.

व्यवसाय-सेंटपॉल हा.से. स्कूल में 28 वर्ष अध्यापन  व सेवानिवृत्त।वर्तमान में लेखन।

प्रकाशन कृतियाँ- 5 पुस्तकों का प्रकाशन

                ..... .राष्ट्र को नमन(काव्य संग्रह)

               अनुत्तरित प्रश्न (कहानी संग्रह )

              नये पंखों की उड़ान(काव्य संग्रह)

            सिंहस्थ महोत्सव2016,(निबंध)

            हमारा कश्मीर।   ( काव्य संग्रह 

लगभग 90 पुस्तकों में कहानी ,कविताओं व समीक्षा आदि का प्रकाशन

 उपलब्धियाँ --काव्य रस की अध्यक्ष और अनेक साहित्यिक संस्थानों की सदस्या।

अहिसास संस्था की सलाह कार सदस्य

अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद की.इन्दौर जिला अध्यक्ष।

आकाशवाणी पर कविता ,वार्ता पाठ

 दूरदर्शन भोपाल से कविताओं का पाठ

लगभग 100,सम्मानों  से ,सम्मानित। फिल्म एसोसिएशन राईटर्स क्लब की सदस्य।


पता 747,सांईकृपा कोलोनी

      होटल रेडीशन के पास

    ..कुशाभाऊ ठाकरे मार्ग

     452010 इन्दौर म.प्र.

मोबाइल-9754969496


वैक्सीन ः दोहे


 करुना ने पीड़ा दई ,कबहु भूल ना पाय , 

वैक्सीन आगमन से ,कष्ट निवारण पाय।



वैक्सीन दवा आ गई तबहुँ आजाद न कोय,

 हाथ धोए दूरी रखियो गले न मिलियो कोय।


वैक्सिन ने आवत ही दुख को तमस भगाय,

खुशियन की लहरें दिखी हिरदै उमंग जगाय।


वैक्सिन  तो आय गई, आशा किरण लिवाय,

खुशीयाँ संग आय गई  जीवन आस जगाय।


वैक्सिन तो लगवइयों ,पर रहना सवधान,

भिड़- भाड़ से दुर रहियो जिवन होगो असान।


सब वैक्सीन लगइयो ,  करोना दूर भगाय,

डरन की कछु बात नहीं, इक दूजे कु बताय।


  जीवन हमरो   कीमती,  करोना  ने  बताय,

  वैक्सीन लगवा लियो अपनो जिवन बचाय।


आशा जाकड़

9754969496



वज्रपात


कोरोना तूने  कैसा किया वज्रपात 

पूरे विश्व  के बिखर गए पात- पात।


अचानक सारा मंजर थम गया 

लोकडाउन से हृदय धक रह गया

 बेमौसम  ही मौसम सर्द हो गया

 ऐसी बीमारी जिसका ना कोई इलाज 

करोना  तूने कैसा किया वज्रपात 


सब अचानक घर में कैद हो गए 

स्कूल कॉलेज सब बंद हो गए 

ऑफिस कार्य घर से शुरू हो गए

 बेचारे बच्चे घर में कर रहे उत्पात

करो ना तूने कैसा किया वज्रपात ।।


हर जगह सुनसान वीरान हो गए 

बाग बगीचे  सब मौन हो गए

 मानुष सूर्य दर्शन को तरस गए

 जानवर सड़कों पर करें  धमाल

 करोना तूने कैसा किया वज्रपात ।।


गरीब बेचारे बेरोजगार हो गए 

बेघर अपने गांव नगर चलेगए 

चलने से पैरों में छाले पड़ गए 

 भूखों को नहीं मिला दाल भात 

करो ना तूने कैसा किया वज्रपात ।


अनचाही पीड़ा का शिकार हो गए

 किसी के परिजन हॉस्पिटल चले गए 

पर परिजन के दर्शन को तरस गए

अंतिम न लगासके अपनो को हाथ 

करोना तूने कैसा किया वज्रपात।।


आशा जाकड़               24 नवंबर

9754969496





"गीता का सार"


गीता ज्ञान की ज्योति है 

गीता  है जीवन का सार 

जन्म मरण तो निश्चित है

छोड़ो क्रोध और अहंकार।


कर्म करो फल- चाह नहीं 

यही तो है  गीता का सार 

कर्म करना ही धर्म हमारा  

अकर्म नहीं  है अधिकार।


जबभी होवे धर्म की हानि 

और अधर्म की हो  वृद्धि 

तब कृष्ण धरती पे आते

करते धर्म  की  उत्पत्ति। 


सज्जनों  के उद्धार हेतु 

पापियों का नाश चाहिए

धर्म की स्थापना के लिए

कृष्ण प्रगट होना चाहिए।


जो ईर्ष्या- द्वेष न करता 

ना किसी की आकांक्षा

वही कर्मयोगी सन्यासी

जग -,बंधन मुक्त रहता।


जन्म मिला है मानव का

तो मरण भी  निश्चित है

अच्छे कर्म -  धर्म करो 

मानुष ही श्रेष्ठ जीवन है।


कर्म- क्षेत्र का ज्ञान देती 

गीता जीवन काआधार 

जीवन मूल्यों से परिपूर्ण

गीता है ज्ञान का भंडार।


जीवन तो ये  नश्वर है 

और आत्मा  है अमर 

निस्वार्थभाव सेवा करो 

जीवन जायेगा    तर।


आशा जाकड़    ..       .28नवम्बर

9754969496



"समरसता के मोती लुटायें"0०


आओ साथी हम सब मिलकर समरसता के मोती लुटायें


कर्म क्षेत्र से कभी न डिगना,

धर्म क्षेत्र में कभी ना झुकना।

चाहे  कितने  मुश्किल आए,

सत्य राह से कभी ना  हटना।

कोटि- कोटि कंठों  से हम पावन संदेश सुनाएं।

आओ साथी हम सब मिलकर समरसता के गीत सुनाए।।


 भेदभाव को दूर भगा कर,

 एकता का भाव सिखाएं।

 स्वार्थ निशा में सोए जग को,

 हम  परमारथ सिखलाएं ।

 सत्कर्मों से आज धरा को हम सब स्वर्ग बनाएं ।

आओ सखी हम सब मिलकर समरसता के मोती लुटाए।।


 मेहनत की तलवार लेकर,

 बंजर   में  फूल  खिलाए।

 हौसलों के पंख लगाकर, 

 मंजिल  पार   लगाएं ।

 सुप्त परिश्रम के भावों को हम फिर से आज जगायें। आओ साथीःःःःःःःःःः

कटुता की अंगार बुझा कर 

जनमानस में प्यार जगा दें

 दुश्मन आंख उठाए गर तो 

शांत सिंधु में ज्वार उठा दे

उर वीणा के तारों से हम गीता ज्ञान सिखाएं

आओ साथी हम सब मिलकर समरसता के मोती लुटायें।



आशा जाकड़

9754969496०



नारी तू नारायणी है 


नारी ही परिवार की शक्ति है 

नारी अपने कुल की लक्ष्मी है

नारी से ही रिश्तों की खुशी है

नारी में  ही भारतीय संस्कृति है 

नारी तू सचमुच नारायणी है।।



तू ही भक्ति है ,तू नर की शक्ति है,

तू ही त्याग , तपस्या की मूर्ति है

नारी में प्रेम , ममता की शक्ति है

तू ही दुनिया की अनुपम कृति है 

सच  में नारी तू ही नारायणी है ।।


 तू ही लक्ष्मी हैं , तू ही कमला है

 तू ही राधा है , तू ही तो सीता है 

 तू ही शारदा ,तू ही भगवद्गीता है 

 नारी में सृजन की अनुपम शक्ति है 

 नारी तू सचमुच  में नारायणी है।।


तू ही लक्ष्मीबाई है  तू दुर्गा बाई है

तू ही दुर्गा है और तू ही  भवानी है

 तू ही अहिल्या तू पद्मिनी रानी है

निज रक्षा हेतु जौहर की शक्ति है।

नारी तू सचमुच  में  नारायणी  है।


तू ही करुणामयी है ,तू  ही प्रेममयी है

तू ही वात्सल्यमयी.,तू ही कालजयी है,

नारी  ही पुण्य  है और आशीष मयी है

तुझ में माँ काली की संहारक शक्ति है।

  हे नारी तू सचमुच में  नारायणी है।।



आशा जाकड़ 


9754969496


होली 2021 आशुकवि नीरज अवस्थी

 



 बसंत   एवम्  होली   

आशुकवि नीरज अवस्थी - KAVYA RANGOLI - https://kavyarangoli.page/article/aashukavi-neeraj-avasthee/ofOlBQ.html

माघी पूर्णिमा 28 फरवरी 2021
कविता लिखने से कभी लिख ना पाया गीत।
मातु शारदे की कृपा से लिख जाते गीत।1
खण्ड काव्य भी रच दिए समय हुआ अनुकूल।
एक पंक्ति में फंस गए गए व्याकरण भूल।2
नित्य सृजन साहित्य का करते सुकवि सुजान।
जैसे धरती शीश पर धरे शेष भगवान।3
जो जन्मा है जगत में,उसका होगा अंत।
सदा आपके ह्रदय में बीते सुखद बसन्त।। 4
नीरज नयनो से करूँ वन्दन बारम्बार।
हंस वाहिनी की कृपा बरसे अपरम्पार।।5
आशुकवि नीरज अवस्थी 2021

फाग महोत्सव
आज से  आपको नित्य ही एक नया छंद प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा यह पूरे माह चलेगा रात 10 बजे स्टेटस में।

देवर-भौजी,जीजा-साली, सरहज ते मनुहार।
फागुन में आ गले लगाऊं हो जाओ तैय्यार।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

लाल लाल मुंह हमने रंगा, खा कर मीठा पान।
लाल लाल मुंह हमने रंगा, खा कर मीठा पान।
भर पिचकारी तेरे मेरी ओ मेरी दिलजान।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

पेड़ आम के लदे बौर से महके डाली डाली।
पेड़ आम के लदे बौर से महके डाली डाली।
हर प्राणी के जीवन मे हो जबरदस्त दससाली।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

पत्नी बिल्कुल नीकि न लागय जैसे डेली ड्यूटी।
पत्नी बिल्कुल नीकि न लागय, जैसे डेली ड्यूटी।
सारी सरहज मन का भावे, जैसे पेरिस ब्यूटी।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

दादा तो परदेस बसे है,घरे अकेली भौजी।
दादा तो परदेस बसे है,घरे अकेली भौजी।
लरिकन का टॉफी पकराई, बिस्कुट अउजी,अउजी।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

दुष्ट कोरोना पलटी मारे,
रंग फ़ाग सब फीका।।
दुष्ट कोरोना पलटी मारे,
रंग फ़ाग सब फीका।।
घर के लरिका मरे जाय,
ठेलुहन का बाटे टीका।
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
आशुकवि नीरज अवस्थी

अबकी होली मा परिगा परधानी क्यार चुनाव।
अबकी होली मा परिगा परधानी क्यार चुनाव।
हरिजन सीट भई तो बड़े बड़ेंन कि बूड़ी नाव।
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
आशुकवि नीरज अवस्थी


होली का त्योहार मनावै,दारू पी कै लल्लू।
होली का त्योहार मनावै,दारू पी कै लल्लू।
अपनी इज्जत खुदै गवावै बने काठ के उल्लू।
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
आशुकवि नीरज अवस्थी


घर घर पापड़ चिप्स बने है,हमरे घर मा कचरी।
घर घर पापड़ चिप्स बने है,हमरे घर मा कचरी।
महगाई की मार पर रही, ताल भवा घर बखरी।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

लाल लाल हैं गाल तुम्हारे, उजली उजली खाल।
लाल लाल हैं गाल तुम्हारे, उजली उजली खाल।
पतली कमर छिपकली जैसी ,नैना बने रसाल।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

निजीकरण का चल रहा है भारत मे जोर।
निजीकरण का चल रहा है भारत मे जोर।
योगी मोदी ठीक है बाकी दिखते चोर।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

दाढ़ी लम्बी हो रही जाने क्या है राज।
दाढ़ी लम्बी हो रही जाने क्या है राज।
चिड़िया कुछ समझी नही क्या कर देगा बाज।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

नीक मीठ पकवान बनाओ खाओ ओर खिलाओ।
नीक मीठ पकवान बनाओ खाओ ओर खिलाओ।
अपने अपने आइटम के घर होली खेलै जाओ।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

पंचायती चुनाव आ गए,गुणा भाग का दौर।
पंचायती चुनाव आ गए,गुणा भाग का दौर।
पांच साल मा पेटु भरा ना ये दिल मांगे मोर।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

न्यायालय आदेश आ गया,प्रत्याशी बिल्लाय।
न्यायालय आदेश आ गया,प्रत्याशी बिल्लाय।
संशोधित आरक्षण सूची सीट बदल ना जाय।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

साली सरहज भाभियाँ हमसे रहती दूर।
साली सरहज भाभियाँ हमसे रहती दूर।
यह रिश्ते मस्ती भरे मौज लेव भरपूर
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा



फगुआ भौजी के लिए साली जी को नोट।
फगुआ भौजी के लिए साली जी को नोट।
आवे सरहज सामने मनवा लोटमपोट
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

होली में हो हँसी ठिठोली,नेह प्रेम की बोली।
होली में हो हँसी ठिठोली,नेह प्रेम की बोली।
प्यार मोहोब्बत से दिल जीतो छोड़ो लाठी गोली
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

मुझे भुलाने वालों तेरी याद बहुत है आई।
मुझे भुलाने वालों तेरी याद बहुत है आई।
अता पता सन्देश नही मिसकाल क्यो नही आई
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

साली जीजा से करे,अनुपम सच्चा प्यार।
साली जीजा से करे,अनुपम सच्चा प्यार।
सरहज धोखेबाज से रहो सदा हुशियार।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा


हमरे भौजी एकौ नाही,केहिके रंग लगाई।
हमरे भौजी एकौ नाही,केहिके रंग लगाई।
मेहरी कि भौजी लिफ्ट न देती,कहौ कहाँ मरिजाई।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा


जिसके घर मे दुःख दरिद्र हो उससे नाता रखना।
जिसके घर मे दुःख दरिद्र हो उससे नाता रखना।
बड़े आदमी होकर दुखियो के भी संकट हरना।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा
आशुकवि नीरज अवस्थी

राधा कृष्ण बाल योगेश्वर जैसा करिए प्यार।
राधा कृष्ण बाल योगेश्वर जैसा करिए प्यार।
जिसने याद किया दुख में पहुंचे करुणा अवतार।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

दुश्मन से कर प्रीति पर, मत करना विश्वास।
दुश्मन से कर प्रीति पर, मत करना विश्वास।
बूढ़ा भूखा भेड़िया नही करेगा घास।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

इस होली में दारू भांग नशे को देना त्याग।
इस होली में दारू भांग नशे को देना त्याग।
अपने जामा में रहकर लूटो फगुई का फाग।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

हमरी भौजी याक सुनीता सुकलाइन है टॉप।
हमरी भौजी याक सुनीता सुकलाइन है टॉप।
पछपन की है उमर मगर लगती है लल्लनटॉप।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा


रानी ऊषा निशा प्रभाती कुन्नी बबली डाली।
रानी ऊषा निशा प्रभाती कुन्नी बबली डाली।
बसी वन्दना मम नैनो में हाय रंजना साली।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

सोना मोना शिल्पी लाली शशीकला ओ पुतली,
सोना मोना शिल्पी लाली शशीकला ओ पुतली,
चन्द्रप्रभा पत्तो परभतिया, हमरी साली असली।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

फाग महोत्सव 28 मार्च 2021नित्य एक नया छंद
प्रियम आरती स्वीटी रानी हमसे रहती दूर।
प्रियम आरती स्वीटी रानी हमसे रहती दूर।
होली में भी मुंह ना बोली खट्टे है अंगूर।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा
आशुकवि नीरज अवस्थी

मेरी प्यारी सरहज मधु है ज्योति करे प्रकाश।
मेरी प्यारी सरहज मधु है ज्योति करे प्रकाश।
टोनी भाई लाल विदुर साले लोगन ते आस।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

फाग महोत्सव 29 मार्च 2021नित्य एक नया छंद
इस होली में बाइस महिने का है सबका श्याम।
इस होली में बाइस महिने का है सबका श्याम।
मेरे सारे दुःख दर्दो को जिसने दिया विराम।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा
आशुकवि नीरज अवस्थी

राम कृष्ण दुर्गा सहित, गौरी शंभु सुजान।
गणपति की कर वन्दना धर शारद का ध्यान।
इस होली नव वर्ष में मेरी विनती मान।
जिनको हमसे प्रेम है, उनका हो कल्याण।
होली में बोले नही,जिनको अति अभिमान।
वह मेरे संसार से होये अंतर्ध्यान।।
आशुकवि नीरज अवस्थी


मुक्तक ...
मुझे पग पग मिला धोखा, सहारा किस को समझूँ मै.
डुबाया हाथ से किश्ती, किनारा किस को समझूँ मै.
जो मेरे अपने थे, वो काम जब, आये नहीं मेरे..
तो तुम तो गैर हो, तुमको दुलारा कैसे समझूँ मै.
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950       

इस होली में वह मिल जाये, जो बचपन मे खेली थी।
रीति प्रीति की मिलन बिछड़ना प्रीती एक पहेली थी।
बीस साल से खोज रहा हूँ कितनी हेली मेली थी।
दिल्ली में मिल गयी अचानक अब तक नई नवेली थी।।
आशुकवि नीरज अवस्थी

     
होली जलती दिलो में भस्म हो गया प्यार।
मेल मिलन की है बहुत ही ज्यादा दरकार।।
दूरी इतनी बढ़ गई ,जैसे धरती चंद।
इसी लिए फीकी लगी अग्नि होलिका मंद।
अग्नि होलिका मंद, तो,कैसे जले विषाद।
खाने में पकवान है,नही मिल रहा स्वाद।
द्वेष भावना का शमन करिए कृपा निधान।
मंगलमय होली रहे यह दीजै बरदान।
आशुकवि नीरज अवस्थी

अटल विश्वास हो भगवान पर तो काल भी टलता।
लगाया नेह था प्रह्लाद ने फिर किस तरह जलता।
वो फ़ायरफ़्रूफ़ लेडी जल गई भगवान की माया,
कभी उसकी इजाजत के बिना पत्ता नही हिलता।।
आशुकवि नीरज अवस्थी

बहुत कविताये है लेकिन यह मुक्तक सबसे अलग है ईश्वर पर भरोसा रखते हुए अटूट श्रद्धा रखिये उससे ऊपर कोई नही।होली की अशेष बधाइयां
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


दिलों में प्रेम की गंगा बहाने आ रही होली.
सभी शिकवे गिलों को दूर करने आ रही होली.
धरा से दूर होती जा रही सर्दी कड़ाके की ,
सभी के उर मे अति स्नेह को उपजा रही होली..

अगर अपना कोई रूठे,तो झट उसको मना लेना.
बिगड़  जाए कोई  रिश्ता तो झट ,उसको बना लेना.                                                                          नयन में नीर नीरज के,अमित अविरल असीमित है.
अगर मिल जाउ होली मे , गले मुझको लगा लेना     
2-किसी को याद कर लेना, किसी को याद आ जाना ,
बड़ा रंगीन है मौसम हमारे पास आ जाना. 
सभी  बागों मे अमराई है, मौसम खुशनुमा यारों,
कसम तुमको है"प्रीती"तुम मेरे ख्वाबों में आ जाना.
                                               
   
दिल के बागों में प्रीति पुष्प खिला कर देखों 
नेह  का रंग अमित प्रेम लुटा कर देखो..                            
तेरी यादें  मुझे लिपटी है अमरबेलों सी,
होली आती है मुझे फ़ोन लगा के देखो.. [5]    
                    
तेरे चेहरे को रंगदार बना सकता हूँ,। तुझको मे अपना राजदार बना सकता हूँ ।
दुनियाँ  की भीड़ में तुम खो गये,अकेले हम , 
जो मिले गम उसे मे यार बना सकता हूँ,, [6]     

गोरे गालों को न बदरंग  करो,
प्रीति के रंग को न भंग करो.
ये तो शालीन पर्व मिलने का ,
भूल कर इसमे ना हुड़दंग करो.[7] 

दुश्मनों को गले लगाते हैं,
प्रीति के गीत गुनगुनाते है,
नेह  रुपी गुलाल हाँथो से,
प्रीति के रंग हम लगाते हैं.. [8]     

दुख शोक परेशानी सारी,होलिका अगिन में जल जाए..                                  
सब बैर भाव बदरंग त्याग सब जन मन माफिक फल पाए.
घर घर मे प्यार अपार रहे,जन जन में भाईचारा हो.
दुश्मन भी आकर गले मिले ऐसा ब्यवहार हमारा हो .-

(9)

जिस जिस भाई बहनों ने होली की बधाई संदेश भेजे उनको मेरी चन्द पंक्तियां समर्पित है--💐💐

             आभार गीत

जिसने भी हमको भेजी होली की मित्र बधाई।
मेरे दर्द भरे मन में खुशियों की हवा चलाई।
उनके लिये प्रार्थना है वह बहने हो या भाई।
इसी वर्ष उनकी शादी हो बजे खूब शहनाई।।

जिनका है परिवार बस गया उनके होये बच्चे।
बिल्कुल मेरे तेरे जैसे सारे जग से अच्छे।
मैं भावुकता में बहता हूँ तुम मेरी परछाईं।
दुआ हमारी घर में सबके प्रतिदिन बटे मिठाई।

हर दिन होली के जैसा हो रात बने दीवाली।
जीवन के हर एक कोने में दिखे सिर्फ खुशहाली।
सुख समरद्धि विजय की धुन है कानो से टकराई।
सबका मैं आभारी हूँ जिस ने भी दिया बधाई।।

                     
दिल के बागों में प्रीति पुष्प खिला कर देखों 
नेह  का रंग अमित प्रेम लुटा कर देखो..                             तेरी यादें  मुझे लिपटी है अमरबेलों सी,
होली आती है मुझे फ़ोन लगा के देखो.. [5]    
                    
तेरे चेहरे को रंगदार बना सकता हूँ,। तुझको मे अपना राजदार बना सकता हूँ ।
दुनियाँ  की भीड़ में तुम खो गये,अकेले हम , 
जो मिले गम उसे मे यार बना सकता हूँ,, [6]     

गोरे गालों को न बदरंग  करो,
प्रीति के रंग को न भंग करो.                                                                   ये तो शालीन पर्व मिलने का ,
भूल कर इसमे ना हुड़दंग करो.[7]    
                                                  दुश्मनों को गले लगाते हैं, प्रीति के गीत गुनगुनाते है,                                                                            नेह  रुपी गुलाल हाँथो से,प्रीति के रंग हम लगाते हैं.. [8]     

जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर  हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.। 
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।1
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ , 
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.2

बागन में है बौर और बौरन मां  अमराई 
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 3
जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
हरी चुनरिया बिछी खेत  में सुन्दर सुघड़  छटा । 
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 4    
आशुकवि नीरज अवस्थी
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950

                                                                                   बसंत में---------                                                                                                नीबू के फूल महके,है ,देखो बसंत में.
अमराई बौर की, है जी देखो बसंत में.
नव कोपले पेड़ो  में, है निकली  बसंत में .
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में.
मधुमक्खियों के छत्ते शहद से भरे हुए,
उनके बेचारे बच्चे भूख से मरे हुए.
कंजड़ के हाथ अमृत देखो बसंत में.
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में. 
सरसों की पीली पीली चुनरिया उतर गई.
गेहू की बाली खेत में झूमी ठहर गई.
गन्ना लगाये देखो ठहाके बसंत में..
पतझड़ सा मेरा जीवन ,देखो  बसंत में. 
लव मुस्कुरा रहे है दर्दे दिल बसंत में,
मिलाता नहीं है कोई रहम दिल बसंत में,
बस अंत लग रहा हमें नीरज बसंत में,.
पतझड़ सा मेरा जीवन देखो  बसंत में. 
30 वर्षो से यह वन्द आज बन्द हो गया 23 मई 2020
चिड़ियों की चहचहाना है किलकारियाँ नही,
होली का पर्व सर पे है , पिचकारियाँ नही..
सूना है घर दुवार नौनिहाल के बिना,
मनमीत बिना प्रीति के तड़पे बसंत मे ..
पतझर सा मेरा जीवन देखो बसंत में[५]''
भगवान के खेलों को तो भगवान ही जाने।
भगवान भरोसे को बहुत ठीक से जाने
वारिस मेरा है श्याम पुत्र बाप की तरह,
नीरज खुशी के सिंधु में डूबे बसन्त में।
आशुकवि नीरज अवस्थी
.....................................आप सभी का सादर आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950

होली पर आप सभी को चंद पंक्तियाँ अग्रिम समर्पित करता हूँ..---------------

       होली पर कविता
भारत की नारियां सभी हो राधिका के तुल्य,
मानंव हो जैसे वासुदेव कृष्ण श्याम से।।
कष्ट कट जाये दुःख दूर रहे जिंदगी से,
प्यार से मनाये होली दूर रहे जाम से।।
रंग रंग से रंगो कुरंग से बचो सदा,
लुटाते रहो प्रीती का गुलाल सुबह शाम में।
देश की अखण्डता व् एकता सलामती हो,
नीरज की एक ही प्रतिज्ञा प्रण प्राण से।
💐💐💐💐💐💐💐💐

 बसंत   एवम्  होली     
जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर  हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.। 
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ , 
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.
बागन में है बौर और बौरन मां  अमराई 
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 
हरी चुनरिया बिछी खेत  में सुन्दर सुघड़  छटा । 
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..     
आशुकवि नीरज अवस्थी
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950

होली 2021 सभी को कल्याणकारी ओर प्रसन्नता दायक हो-
*प्रतिदिन प्रतिपल नवसंवत का,
तुमको मंगलकारी हो ।*
*घर आंगन द्वारे खेतों तक ,
*खुशियों की फुलवारी हो ।*
*मीत प्रीति की रीत यही है ,*
*अमित अगाध नेह बांटो,*
*दो हजार इक्किस की होली,*
*सबको ही सुख कारी हो।*

*वात्सल्य देवर भाभी का,*
*युगो युगो तक बना रहे।*
*लता सहारा हरदम पाए ,*
*तना हमेशा तना रहे ।*
*जीजा साली के रिश्तो की ,*
*मर्यादा गुमराह न हो,*
*हर रिश्तो में जन जन का,*
*विश्वास अलौकिक बना रहे।।*

आशुकवि नीरज अवस्थी
प्रबन्ध सम्पादक काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका
संस्थापक अध्यक्ष
श्याम सौभाग्य फाउंडेशन
पंजी ngo
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950

कमर तोड़ महंगाई मे, त्योहार मनाना मुश्किल है.
दुशमन बाँह गले मे डाले जान बचाना मुश्किल है,
खोया पहुचा आसमान,पकवान बनाना मुश्किल है.
दारू तौ है महँगी, अबकी भाँग पिलाना मुश्किल है;[२]
नेता अइहै द्वारे-द्वारे चाय पिलाना मुश्किल है.
गन्ना भी अनपेड बिका कपड़ा बनवाना मुश्किल है;[३]
विरह वेदना अगनित पीड़ा मिलन प्रीति का मुश्किल है.
होली का त्योहार प्रीति की रीति निभाना मुश्किल है;[४]

आप सब का अपना ही ---आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950

जिसने भी हमको भेजी होली की मित्र बधाई।
मेरे दर्द भरे मन में खुशियों की हवा चलाई।
उनके लिये प्रार्थना है वह बहने हो या भाई।
इसी वर्ष उनकी शादी हो बजे खूब शहनाई।।

जिनका है परिवार बस गया उनके होये बच्चे।
बिल्कुल मेरे तेरे जैसे सारे जग से अच्छे।
मैं भावुकता में बहता हूँ तुम मेरी परछाईं।
दुआ हमारी घर में सबके प्रतिदिन बटे मिठाई।

हर दिन होली के जैसा हो रात बने दीवाली।
जीवन के हर एक कोने में दिखे सिर्फ खुशहाली।
सुख समरद्धि विजय की धुन है कानो से टकराई।
सबका मैं आभारी हूँ जिस ने भी दिया बधाई।

आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950

होली 2021

 हम किसी भी  त्योहार पर रोना नही रोना चाहते लेकिन कमर तोड़ महंगाई और पंचायत चुनाव के परिप्रेक्ष्य में चन्द लाइने देखे।


कमर तोड़ महंगाई मे, त्योहार मनाना मुश्किल है.

दुशमन बाँह गले मे डाले जान बचाना मुश्किल है,

खोया पहुचा आसमान,पकवान बनाना मुश्किल है.

दारू तौ है महँगी, अबकी भाँग पिलाना मुश्किल है;[२]

नेता अइहै द्वारे-द्वारे चाय पिलाना मुश्किल है.

गन्ना भी अनपेड बिका कपड़ा बनवाना मुश्किल है;[३]

विरह वेदना अगनित पीड़ा मिलन प्रीति का मुश्किल है. 

होली का त्योहार प्रीति की रीति निभाना मुश्किल है;[४]


आप सब का अपना ही ---आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार पूनम यादव,वैशाली (बिहार )

 मेरा  परिचय 


पूनम यादव 


जन्म - 15/08/1994


पिता - श्री प्रभु प्रसाद यादव 

माता - अनिता राय



शिक्षा - स्नाकोतर (जन्तु विज्ञान )

कम्प्यूटर  (adca)


राष्ट्रीय साहित्यिक (राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान, आचार्य रामचंद्र शुक्ल साहित्य  सम्मान  एव the pen club सम्मान ,  व  अन्य संस्थान से वाद विवाद प्रतियोगिता, निबंध लेख प्रतियोगिता, कबड्डी प्रतियोगिता  , संगीत प्रतियोगिता, गोला फेंक, बैडमिंटन, लम्बी कूद प्रतियोगिता से सम्मान प्राप्त इत्यादि!


शौक -  विज्ञान एवं साहित्य की किताबें पढ़ना!


रूचि ~  कविता लिखना ।


बिहार पटल प्रभारी - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान(रजिं) ,भारत


पता - सदापुर महुआ 

पोस्ट - महुआ , थाना - महुआ 

जिला - वैशाली ,

पिन - 844122        

Whatapps - 8434357256

Email id - poonam7544@.Gmail. com


शीषर्क - बेईमानी का धुंआ 





तेरे ही बेईमानी का धुंआ जो निकला, फैला हर परिवेश में।

तभी तो भष्टाचार की आग लगी है, आज हमारे देश में।


ये लपटें बढ़ रहे है ऐसे, जिसे रोक लेना अब आसान नही ।

केवल सच का करें प्रदर्शन, आज वैसा हिन्दुस्तान नही ।


कहना तो मुमकिन बहुत है, पर कर लेना कोई खेल नही ।

जब नियम बनाने वाले ही स्वयं नियम को सकते झेल नही ।


आज स्वयं लुटेरा बन बैठा, जब संचालक इस देश का ।

तो कौन करेगा फैसला , न्याय सहित इस केस का ।


आज टूट रहा ये मुल्क हमारा, इन नेता ओ की  ताना तानी से।

रक्षा करना है हमें देश की, इन लोगो के भष्ट मनमानी से ।


आज धिक्कारती हर महल तुम्हारी मत भर मुझको बेइमानी से ।

अब भी वक्त है संभलो यारों, यही विनय है हर हिन्दुस्तानी से।


ना हो मातृभूमि की सेवा तो तुम चुपचाप ये कह देना ।

पर बंद करो तुम सब ऐसे गद्दारो जैसा  सह देना ।


इस गद्दारो के आवारापन से ,भारत का   

नीवं यदि हिल जाएगा ।

जरा भान रहे सम्मान देश का मिट्टी मे मिल जाएगा ।


पूनम यादव 

वैशाली जिला से




गीतिका

लिख सकू तो, मैं आ कुछ बेहिसाब लिखॅ दु।

हो पढ़ने लायक कुछ ऐसा किताब लिख दु।

जाग उठे पुरी दुनिया सच के अंदाज में

दिल के कोने-कोने मे, मै वो इंकलाब लिख दु।


इस धरती से हो जाए झूठ का सर कलम

पूरी दुनिया मे, मै सच्चाई का सैलाब लिख दु।


बहुत जलजले है, जिस दुनिया मे हम पले है 

सारे प्रश्न का मुहब्बत ही एक जवाब लिख दु।


उतरने लगा है कोई दिल की गहराई में

दर्द से भरा दिल है ये खबर तुझे महताब लिख दु।


बलिदान हो मेरी खुशियाँ किसी और के खातिर 

खुद को हराकर उन्हे जीत का खिताब लिख दु।


पर्दे डालकर सच छुपाने से क्या फायदा 

लिख सकू तो सच को बेनकाब लिख दु।


छुप जाए सच कभी न हो पाए उजागर 

गलतफहमी मे न मैं कोई दवाब लिख दु।


हर आॅखे जी रहे है, आँसुओं में डूबकर 

बुझते दिल में मैं पूनम कोई ख्वाब लिख दु।


पूनम यादव 

वैशाली जिला से



पानी और रंगो ने अपनी दिल खोली।

 ये रगं गुलालों की अपनी हमजोली ।

घर घर निकल पड़ी दोस्तो की टोली 

चलो हम सब मिलकर मनाये होली ।

  

होली की हार्दिक बधाई 

पूनम यादव


तु पड़ जितना भी काटों, पर मुझे उड़ान बनना है।

मेरा जिद एक ही है , बस मुझे महान बनना है।


पुरे विश्व में ये देश मेरा एक अलग परचम लहराये

भारत माँ के आँचल का वही सम्मान बनना है।


अधिकार मांगो ठीक है पर फर्ज भी भुलो नही 

इसी उद्देश्य के लिए हमे जन उत्थान बनना है।


हर दिल में उतर जाऊ मैं,जाग्रति

आगाज लेकर 

हमें पूरे विश्व पटल पर एक नई पहचान बनना है


तु पड़ जितना भी, ,,,,,।

मेरा जिद एक ही,,,,,,,।

पूनम यादव, वैशाली  (बिहार )



शीषर्क -भारत छोड़ो देशद्रोहीयो 


भारत छोड़ो देशद्रोहीयों तेरा आखिरी वांरट ये जारी है ।

बहुत देखे कारनामें तेरे बहुत सह ली हमने गद्दारी है।


अरे बहुत चला ली घर हमने अब देश चलाना बाकी है ।

भारत के चप्पे-चप्पे में जब फैल चुकी तेरी चालाकी है।


भारत है ये देश हमारा जाग उठी इस देश की नारी है।

छुपो मत बाहर निकलो जो जो भी वतन व्यापारी है।


तुम जैसे भष्ट बईमानो से तो हम बच्चे भी हुए प्रभावी है।

क्या दशा बना दी भारत की जिस भारत के हम भावी है।


देश के ऐसे लुटनहारो का बहुत जरूरी यह गिरफ्तारी है।

यदि भारत की सरकार चुप तो आज ये आदेश हमारी है।


पूनम यादव, वैशाली  (बिहार )



रघुकुल तिरंगा 


मेरे मन में एक ही  शोर हो।

राम नाम की गुंज चहुँओर हो।


मेरे मन में एक ही मोड़ हो।

रे मन राममय भक्ति विभोर हो ।


वही है मझधार के कोर हो।

रे मन नदियाँ बही बिजोर हो।


ले लो डुबकी छूटेगी सब पाप हो।

राममय नदियाँ है पुण्य का धाम हो।


जोड़ दो मन के मेरे भी तार हो।

उनकी चरणों की कृति अपार हो।


मेरे मन भी भवसागर से पार हो।

कर दो मृत्यु से  मेरा उद्धार हो।


जिसके संग लक्ष्मण जैसा भाई हो।

धन्य धन्य वह वीर रघुराई हो।


श्रीराम की भक्ति जिसने पाई हो।

धन्य वह जो भजता प्रभुताई हो।  


जो प्रेम भक्ति आनन्द का झंडा हो।

जिसमे लक्ष्मणरूपी भावुक डंडा हो।


जिसके संग परम पतिव्रता स्नेही हो।

जिसके प्राणप्रिया सीता वैदेही हो ।


जो परम धमज्ञ गुणी संगा हो।

धन्य-धन्य यह रघुकुल तिरंगा हो।


पूनम यादव,वैशाली  (बिहार )


8434357256


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार तिवारी "मक्खन" झांसी उ.प्र.

 पं.राजेश कुमार तिवारी  " मक्खन"

कवि / साहित्यकार

एम. ए.(संस्कृत ) बी. एड.

जन्म तिथि 1/12/1964

पता : टाइप 2/528 बी एच ई एल 

आवास पुरी भेल झांसी ( उ. प्र.)

सम्प्रति : जिला परिषद इण्टर कालेज भेल झांसी

मो. व वाट्सेप नं. 09451131195

पिता : श्री मनप्यारे लाल तिवारी

माता : श्री मति कौशिल्या देवी 

जन्म स्थान : ग्राम पिपरा पो . बघैरा जि. झांसी 

विधा :कविता ,गीत ,गजल ,हास्य, व्यंग अनेक पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित ,आकाश वाणी से प्रसारित , कुछ चैनलों से प्रसारण अनेक मंचों पर काव्य पाठ एवं समाचार पत्र व मासिक पत्रिका का सम्पादन ।विशेषांक आदि ।

समीक्षा : तपस्विनी ( उपन्यास , लेखक सत्य प्रकाश शर्मा , सानिध्य बुक्स प्रकाशन नई दिल्ली )

सम्बन्ध : मंत्री ,सत्यार्थ साहित्य कार संस्थान झांसी 

               महा मंत्री , कवितायन साहित्य संस्था झांसी

               सचिव , नवोदित साहित्य कार परिषद भेल झांसी

               उपाध्यक्ष , प्रगतिशील साहित्य संस्था झांसी

सम्मान : ( निम्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है )

१. सत्यार्थ साहित्य कार संस्थान झांसी

२. कवितायन साहित्य संस्थान झांसी

३. सरल साहित्य संस्थान झांसी

४. निराला साहित्य संस्थान बड़ागांव झासी

५. काव्य क्रांति परिषद झांसी

६. बुन्देल खण्ड साहित्य संगीत कला संस्थान झांसी 

७. श्री सरस्वती काव्य कला संगम नगरा झांसी द्वारा साहित्य सम्मान 

८.विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा साहित्य सम्मान

९. वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई साहित्य सम्मान

१०. बुन्देली साहित्य व संस्कृति परिषद द्वारा विधान सभा भोपाल में साहित्य सम्मान

११. आचार्य श्री १०८ श्री ज्ञान सागर महाराज द्वारा साहित्यकार सम्मान

१२. नवांकुर साहित्य एवं कला परिषद झांसी द्वारा कीर्ति शेष पं. बन्द्री प्रसाद त्रिवेदी स्मृति सम्मान 

१३. विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा लक्ष्मी बाई मैमोरियल एवार्ड  सम्मान

१४ . विश्व मानवाधिकार मंच द्वारा राष्ट्रीय गौरव सम्मान

१५. निराला साहित्य संगम संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवा सम्मान


होली 


मधुर बोली होली , जो कानों में आई ।

तन मन में मेरे भी ,   मस्ती थी छाई ।


वो बचपन का माहौल  मुझे याद आया ।

थे संग में सखा सब  फागुन गीत गाया ।

पडी पीक  पावन वो पिचकारी सुहाई ।..............१


भस्म होलिका को सब सिर पर सजाते ।

रसिया कबीरा          फाग के गीत गाते ।

ढोलक मजीरा झाँझ  नगड़िया बजाई ।............२


भंग का संग सुन्दर       यौवन तरंग होता ।

महबूब मुख को देखत मन भी सब्र खोता ।

जवानी दिवानी रही तब तन थी छाई ।.............३


अब हाल ये बुढापा तुम्हें क्या सुनाये ।

है दाँत नहीं मुख में चूमें चाट  न  खाये ।

है जान नहीं तन में , पर जान याद आई ।..........४


राजेश तिवारी 'मक्खन'

झांसी उ प्र


होली 


तुम्हें अब रंग में रंगना , नहीं मैं चाहता मोहन ।

तुम्हारे रंग रंगजाँऊ , यही बस चाहता मोहन ।

तुम्हें नित देखने को मैं ,नयन जो  बंद करता हूँ,

मुझे भी तुम निहारो तो , यही बस चाहता मोहन ।..........॥१॥


लगा दो श्याम रंग ऐसा ,  दूसरा चढ़ नहीं पाये ।

लगा दो नाम का चस्का , रातदिन जो रटा जाये ।

जिधर देखू उधर मुझको , श्याम ही श्याम दिखते हों ,

कोई संसार की वस्तु ,   श्याम को छोड़ न भाये ।...........॥२॥


राजेश तिवारी 'मक्खन'

झांसी उ प्र



माँ जगजननी जगत धात्री जगपालन कारी ।

उमा  रमा  ब्रह्माणी  माता माँ भव भय हारी ।।

माँ  सीता सावित्री  गीता माँ  सबसे प्यारी ।

माँ की महिमा मैं क्या वरनु माँ सबसे न्यारी ।।......१


माँ कबीर की साखी  सुन्दर , माँ  काबा  काशी ।

अल्प बुद्धि से मैं क्या कहदू  , महिमा है खासी ।।

माँ तुलसी  की  रामायण  है , मीरा पद वासी ।

माँ की कृपा  कटाक्ष होत  ही, दुर बुद्धि नासी ।।.......२


माँ वेदों का मूल स्रोत है , माँ मंगल  वाणी ।

माँ है सब सुख सार यार , माँ ही  है कल्याणी ।।

माँ ही  स्वर  की शुभ देवी है , माँ  वीणा पाणी ।

मातृ की प्रेरणा से उपजत है , निरमल हिय वाणी ।।.......३


माँ गंगा यमुना कावेरी , सरस्वती सतलज है ।

शीतल मंद सुगंध पवन नित , माँ ही यह मलयज है ।।

माँ पाटल  चम्पा  वेला  , माँ पावन पुष्प जलज है ।

माँ ही नृत्य मोर की थिरकन , माँ ही एक सहज है ।।..........४


माँ ममता का मान सरोवर , हिमगिर उच्च शिखर है ।

माँ पूनम की धवल चांदनी , दिनकर ज्योति प्रखर है ।।

माँ जिस पर करुणा कर देती , उसका भाग्य निखर है ।

जिस पर माँ की भ्रगुटी टेड़ी , वह तो अवश्य बिखर है ।।........५


माँ धरती की हरी दूब है , माँ केसर की क्यारी है ।

सकल विश्व में श्रेष्ठ हमारी , भारत माता प्यारी है ।।

यह पूरब के पुण्य हमारे , सुन्दर  मति हमारी है ।

दिये मातु संस्कार सुमति संग , निश्चत बुद्धिसुधारी है ।।.........६


माँ धरती के धैर्य सरीखी , माँ ममता की खान है ।

माँ की उपमा केवल माँ से , माँ सचमुच भगवान है ।।

मातृ भूमि की महिमा माने , वह ही देश महान है ।

मक्खन सा मन जिसका होता , वही सही इंसान है ।।................७


माँ सामाग्री शकुन्तला है , माँ सु नीति की जननी  ।

माँ सुरेश की सह धर्मणी , माँ सु भ्रात की भगनी ।।

दिव्य नीति की ज्योति जलाई बनी सुभग ये सजनी ।

वह अनन्त आकाश सुशोभित  हुई शुभ तारा गगनी  ।।..................८

मैं घोषणा करता हूँ कि मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है ।

कवि 

राजेश तिवारी  "मक्खन "

टाइप 2/528 भेल झांसी उ. प्र.

9451131195

ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं


तेरी लीला गजब निराली ,

जय हो जय जय कृष्ण मुरारी ।

जय हो जय जय कृष्ण मुरारी ,

जय हो गिरि गोबर्धन धारी ।।,....,


मौसम क्या वसंत को आयो ,

डाड़ो होरी को गड़वायो ।

आयो सज पीताम्बर धारी ।.....,.,,...१


रसिया संग खेलन खौ प्यारी , 

पहनी सखी सुरंग तन सारी ।

मन में खुशी है छायी भारी ।............२


मक्खनप्रिय संग सखा सुहाये ,

जुर मिल वरसाने सब आये ।।

खेलें फाग दिव्य वनवारी ।......,,,,.,,३


दैखें या छवि धन्य सो नैना ,

बोलें मधुर मधुर प्रिय बैना ।।

प्रभु पर तन मन सब बलिहारी ।..........४


व्रज  में लट्ठ मार जा होरी ,

मन उमंगमय खेलत गोरी ।।

राजेश अपलक नयन निहारी।.............५


राजेश तिवारी 'मक्खन'

झांसी उ प्र



युवराज आपका अभिनन्दन ,  ऋतुराज आपका अभिनन्दन ।।


नूतन पल्लव परिधान पहिन ,

लतिकायें वंदन वार बनी ।

कर केलि कोकिला कूक रही ,

मंजरी आम तरु आन तनी ।।

अलि यत्र तत्र करते गुन्जन ।..............................१


मद मस्त हुए मधुकर आके ,

गुन गुन करके मड़राते है ।

कलियों का करते आलिंगन ,

चुम्बन ले के उड़ जाते है ।।

वहे वायु ऐसी जैसे हो नन्दन ।........................२


 सरसों की प्यारी क्यारी पर ,

देखो तितली मड़राती है ।

कभी इत आती कभी उत जाती , 

पीकर पराग इठलाती है ।।

सुन्दर सदृश्य का अभिवंदन ।.......................३


बागों में बहारें आने लगी ,

तरुओं पर छाई तरुनाई ।

मानव के मन भी उमंग भरे ,

बाकी वसंत की ऋतु आई ।।

सुमनान्जलि सहित करू वंदन ।......................४


ऋतुराज आगमन शुभ होवे ,

जन मानस में सद्भाव भरो ।

इस सृष्टि के हर प्राणी का ,

कल्याण करो कल्याण करो ।।

दुनिया में कही न हो क्रन्दन ।...........................५


राजेश तिवारी "मक्खन"

झांसी उ.प्र.


ंंंंंंंंंंं

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार शर्मा

 परिचय 

नाम  आशु शर्मा 


शैक्षणिक योग्यता  पोस्ट ग्रेजुएट (कैमिस्ट्री)  बी एड

सम्प्रति शिक्षाविद (कोचिंग)  गीतकार, लेखक,  अनुवादक, संपादक 

सम्पर्क सूत्र-

+91 88500xxxx

उपलब्धियां  मेरे द्वारा निम्न लिखी चार पुस्तकें एमेज़ोन पर उपलब्ध हैं ।

1.किताब ए ज़िन्दगी 

2.Come on success for all 

3. Tea time khyal  कड़क ज़ायका 

 4. उपन्यास 'कंटीली झाड़'


राबिन शर्मा की '5ए एम क्लब' तथा अवि योरिश की 'तुम्हें नवनिर्माण करना होगा' का सम्पादन , रयूहो ओकावा की 'लक्ष्य के नियम' सहित कई पुस्तकों का अनुवाद व सम्पादन किया है ।


ईमेल  ashus1223@gmail.com


 1. ख़्वाब 


सूरज और चाँद को 

आँखों में भर कर 

जुगनू ढूंढने 

निकल पड़ते थे हम 

फौलादी सपने थे तब 

उनके टूटने से 

से कहाँ डरते थे हम 

और अगर कभी 

ऐसा हुआ 

कोई सपना जो पूरा 

नहीं हुआ 

तो इसका भी गम 

नहीं करते थे हम 

तब की बात है यह

जब बच्चे थे हम

रिश्तों में कच्चे पर 

अहसासों के सच्चे थे हम


 वक़्त बीता 

फिर थोड़े बड़े हुए

थोड़े थोड़े 

ज़मी पर खड़े हुए

अब भी उड़ लेते थे 

सपनों के आसमानों में 

और ले आते थे उन्हें 

पकड़ अपने ठिकानों में 

महल सजा लेते थे हम 

अपने छोटे छोटे मकानों में 

सपनों की सौदागिरी 

ढूँढते थे दुकानों में

फिर डरते भी थे 

कहीं ऐसा न हो कि 

ज़मी से भी उखड़ जाएं

और गिर पड़ें आसमानों से


जवानी में जब कदम पड़े 

हम अब भी थे सपनों पर अड़े 

छोड़ खुला दरीचों को 

ताकते थे दहलीज़ों पर खड़े 

इक चोर दरवाज़ा भी था रखा

लगा रखे थे जिस पर पहरे कड़े

पंख तो थे उड़ने को मगर 

पर सपने थे पिंजरे में पड़े 

पिंजरे की दीवारों के अन्दर

ख़्वाब हकीकत आपस में लड़े 

कभी ख़्वाब तो कभी हकीकत ने 

तमाचे थे इक दूजे पर जड़े 

अब धीरे धीरे हमने भी 

सपनों के गहने थे गढ़े


अब पहुँच गए 

उस मोड़ पर हम 

सपनों में अब

नहीं बचा है दम 

हिम्मत नहीं हारी है हमने 

पर ख्याली दुनिया में 

रहते हैं कम 

कभी हंसते 

तो कभी रोते हैं 

पर नहीं पालते 

कोई भी गम

कभी पलती हकीकत 

ख्वाबों में तो 

कभी ख़्वाब हकीकत 

में पालते हम



रचनाकार    आशु शर्मा 

मुम्बई 




2. ज़ख्म


तन भीगा है 

मन भी भीगा

सूखे अश्क भी गीले हैं 

अब के बारिश के मौसम ने 

पुराने ज़ख्म भी छीले हैं 


भरे नहीं थे 

हरे नहीं थे 

कई परतों में दबे पड़े थे 

पानी की बूँदों में धुल कर 

सामने मेरे खड़े थे 


भूल चुके थे 

गम अपने को 

फिर रहे यूँ बेफिक्र थे 

टिप टिप बूंदों की आहट में 

मेरी बेचैैनी के जिक्र थे 


सड़कें गीली 

छत पर पानी 

बूँदे दिखती पत्तों पर मोती हैं 

सावन की बौछारें हैं पर

तन्हाईयाँ हम पर रोती हैं


रचनाकार आशु शर्मा

 मुम्बई 



3.जननी माँ 


माँ की बाहों में हमने 

स्वर्ग के झूले झूले हैं

तेरे आँचल की खुशबू 

माँ आज तलक नहीं भूले हैं 


हर जन्म मुझे तेरी गोद मिले 

इक यही दुआ बस करते हैं

हर बात तेरी है याद हमें 

और यादें ताज़ा रखते हैं 


माँ की रोटी की खुशबू के 

आज भी हम भूखे हैं

अश्क हैं बहते अब भी मगर 

गीले नहीं हैं सूखे हैं


चाहूँ कहना कह न पाऊँ

माँ की ममता का हिसाब नहीं 

यह ब्यौरा जिस में मिल जाए 

लिखी गई कोई किताब नहीं


रचनाकार आशु शर्मा 

मुम्बई 



4. चलो इक ख़्वाब बुनें


चलो इक ख़्वाब बुनें

और पूरा करने को 

थोड़ा थोड़ा तुम चुनो

थोड़ा थोड़ा हम चुनें


बुनियाद अहसास रखने को 

दिलों के पास रखने को

कुछ रेशम तुम ले आना 

कुछ मेरे पास रखा है 

अहसास को बुनने का 

स्वाद हमने चखा है 


जिन्दादिल बनाने को

और थोड़ा सजाने को 

रंगों को भी चुनना है 

आपस में मिलकर 

कुछ शोख कुछ अहसास रंग

बोल उठेंगें खिलकर 


फिर ख़्वाब इक जिन्दा होगा

न तुम न मैं और 

न ही कोई अधूरापन 

कभी आपस में शर्मिन्दा होगा


रचनाकार आशु शर्मा 

मुम्बई 




 5. देखो बसन्त है आया 


चीर पीताम्बर पहन धरा का 

कण कण है मुस्काया 

धानी चुनरी ओढ़ के सज गई

रोम रोम हर्षाया

देखो बसन्त है आया 


फूलों ने भी महक महक कर

हवा में इत्र फैलाया 

नई कोपलें निकल आई हैं

नवजीवन है पाया

देखो बसन्त है आया


पक्षियों ने भी कलरव करके 

मौसम है महकाया 

भौरों की मदमस्त गुंजार ने 

वन उपवन महकाया 

देखो बसन्त है आया 


शरद ऋतु जाने को आई 

मौसम कुछ गरमाया 

पेड़ पौधों हर प्राणी के जीवन 

में आनन्द है छाया 

देखो बसन्त है आया 


ऋतुओं का राजा प्रकृति का 

यौवन ले कर आया 

दुल्हन जैसी सज गयी धरती 

पर्वतों ने मुकुट सजाया 

देखो बसन्त है आया

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ. अर्चना मिश्रा शुक्ला कानपुर

 जीवन परिचय

नाम- डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला

पति का नाम- नागेन्द्र प्रकाश शुक्ला

स्थाई पता- 1/139 अम्बेड़कर पुरम्, आवास विकास नं0 3, कल्यानपुर, पिन कोड- 208017, उत्तर प्रदेश

फोन नं0- 7905975057, 9451281671

जन्म एवं जन्मस्थान- 20/06/1976, ग्राम लोमर, जिला- बाॅदा, उत्तर प्रदेश

शिक्षा- परास्नातक हिंदी, संस्कृत, विद्या वाचस्पति उपाधिधारक 2004, बी0एड0

व्यवसाय- शिक्षक

प्रकाशन विवरण- बालगीत, नित्या पब्लिकेशन, भोपाल


काव्यपाठ का विवरण- संस्कार भारती जहांगीराबाद, हिमालय अपडेट न्यूज, मेरी कलम से काव्य मंच रीवा, स्वर्णिम

        साहित्य, महाविद्यालय स्तर पर काव्यपाठ-1994, शिवपुराण पाठ में काव्य सम्मेलन में प्रस्तुति।

अप्रकाशित रचनाएं-

1- माँ शंखुला महिमा

2- बातगीत भाग दो

3- नल दमयंती काव्यमय वृत्तान्त

4- कर्ण की काव्यमय संक्षिप्त कथा

5- युद्ध और आधुनिक काव्य

6- मेरी कहानियाँ

7- समसामयिक कविताएं

8- समसामयिक लेख आलेख

9- विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख ,आलेख ,कहानियां

कविता आदि।

 पुरस्कार व सम्मान

1- सद्‌भावना पुरस्कार 1994

2- कला साहित्य नाट्य विज्ञान परिषद द्वारा पुरस्कृत 1995

3- सम्मान अलकरण 1996

4- क्रीड़ा कौशल सांस्कृतिक पुरस्कार 1990

5- सांस्कृतिक चेतना निर्माण पुरस्कार 1996

6- हिम रतन प्रेरणा सम्मान2021

7- नारी शक्ति सागर सम्मान 2021

8- विंध्य कलम गौरव सम्मान 2021

9- हिमालयन रत्न सृजन सम्मान 2020

10- उ० प्र० शक्तिस्वरूपा प्रणयन सम्मान 2021



**** आजादी के सपूत ****

दिल लगा बैठे थे अपने देश से

आशिकों सी वो वफा फिर कर गए

सिर उठाकर ये जिए और कह गए

सिर झुकाने की यहाँ आदत नही

ये अमर बलिदान, भारत -भूमि मे

राजगुरू ने राज ,भारत को दिया ।

सुखदेव ने सुखराह देकर चल दिया ।

ये भगत भक्ति की धारा दे गए,

ये शहादत देश हित में कर गए ।

वीरमाता के अजब ये पूत थे,

मातृभूमि में जाँ निछावर कर गए ,

भारती माँ को आजादी दे गए,

दासता की बेड़ियों को काटकर,

चूमते फाँसी का फंदा वो गए,

देश की माटी में वो चंदन बने,

भारती माँ का वो वंदन कर गए,

है नमन शत-शत ये भारत देश का, 

पथ तुम्हारे हम चलें यह कह गए,

जो विरासत में हमे वो दे गए,

वीर सैनिक बन युवा धारण करें,

अब ये परिपाटी निभाते हम चलें ।

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व रचनाकार

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश


*****माँ की सीख*****

लड़खड़ा कर गिरना

मेरी आदत नहीं ।

लड़खड़ा कर सीधे खड़ा होना,

सदा माॅ ने सिखाया ।

हौसला ऐसा बढ़ाया

कि कारवाँ चल निकला 

निकला ही नही

निकला ही नही

दौड़ा

भागा और नई ऊँचाइयों को

दोनो हाँथों से पाया

पाया और लुटाया

यही तो मेरी माँ ने सिखाया ।

और गिराने वालो को!!!

अचम्भे में डाल देना

हैरत तो उनको तब हुई,

जब शमशान से उठ,

उस रुह ने

अपना नया जन्म पाया ।

अपने स्वाभिमान की खातिर

अपने असतित्व की खातिर

अपनी पहचान की खातिर

यह संघर्ष है न

यह भी मेरी माँ ने सिखाया ।


डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ता

शिक्षक व रचनाकार

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश



+++ वर्ष की आखिरी सॉझ +++

आज का दिन तो ऐसे बीत रहा है,

जैसे बस व ट्रेन में उतरते चढ़ते लोग,

जैसे लिफ्ट में निकलते घुसते लोग,

स्टेशन मे आते जाते लोग,

पिक्चर हाल मे जाते लोग,

और देखकर निकलते लोग,

आज मन की भावुकता बढ़ गई,

जाते हुए साल मे,

कितना कुछ सुना है बेचारे इस साल ने,

कोरोना की आफत उठाए पूरा साल है,

माना कि बहुत कुछ छूटा इस साल है ,

बहुत कुछ नया करके भी गया,

बहुत कुछ नया देकर भी गया,

अब नए के स्वागत को,

सब बाँह फैलाए खड़े हैं,

मन कुछ भावुक हो चला,

ऐ जाते हुए साल,

आना और जाना ही तो सत्य है,

इस सत्य को जीना पड़ता है,

जीते हैं जीते रहेगें,

पर आज मन कुछ भावुक हो चला है ।

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार

कानपुर नगर

उत्तर प्रदेश

7905975057



कविता

शीर्षक- ‘गरीबी’

घर हीन, भूमि से हीन

वो फिरते मारे-मारे

फुटपाथों को घेर

कभी उद्यानों में वह

हर सरकारी आफिस की, दीवारों से जुड़

कही हरित पट्टी पर, 

वह हैं पन्नी ताने

यही सुखद उनका घर

पीढ़ी दर, पीढ़ी है

कुछ छोटे-मोटे काम करें

दो-चार रोटियों की खातिर

हर शाम झोपड़ी में लौटें

कुछ गिना-चुना सामान लिए

किरणों से अमृत कहाॅ गिरे???

उनके घर खीर न बनती है!!!

सूखी रोटी ही मिल जाएं 

यह खुशनसीबी उनकी है।

सिसकी भरती माँ मिलती है

हठ बच्चे उससे करते हैं

मचल-मचल माॅ-बापू से

माँगें अपनी वो करते हैं

बेबस वत्सलता विलख रही

कह-कह अभागिनी विलख रही

ममता की रोती आॅखों में 

मुस्कान अभी कैसे आए ???

जादू की छड़ी न आएगी

जो चमत्कार कर जाएगी

उनको हक उनका देना है

हर देश की जिम्मेदारी है

हम सबकी जिम्मेदारी है।


डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार

कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश



******   बेटी   ******

बेटी बचाने वालों को कभी

करीब से देखा है क्या ????

मैने तो हजारों लरजती सांसों

हॉ सांसों !!!

की कपकपाहट के साथ

एक बेटी को 

बेटी बचाते देखा है ????

दुनिया की दुनियादारी में

एक नारी को अपना सम्मान बचाते देखा है

मैने एक बेटी को

एक बेटी बचाते देखा है ????

माॅ के घर से विदा हो

पति के आंगन को संवारते देखा है

जिसे परमेश्वर माना

उसकी दुत्कार , धिक्कार और तिरस्कार

साथ में तीन-तीन बेटियों का उपहार

बेटी का उपहार अकेलेदम झेला है

अपनी जिम्मेदारी से जो बाप भागा है!!!

माँ ने अकेले ही

बेटी को बचाया है

राह चलते चलते 

मिला कोई अपना

जिसने बेटियो सहित

बेटी की माॅ को भी अपनाया है 

वह दिन भी आया

जब बेटी पराई होती है

एक- एक कर

दीन-हीन दशा में भी

डोली पर बिठाया

इस तरह एक बेटी को बचाया

छुटकी बिटिया की बारी

और माँ - बाप की हीनता भारी 

कण- कण और तृण-तृण को मोहताज खड़ी थी माई

बापू का सर नतमस्तक

सिर रखे हाँथ तो कोई

बेटी को बचाया था 

उस बेटी ने उठाया

बेटी के भाग्य से

लक्ष्मी ने लक्ष्मी बरसाया

चॉदनी सी छाया 

सर्वत्र फैलाया 

इस तरह मैने भी एक बेटी बचाया

एक बेटी बचाया

जीवन परिचय

नाम- डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला

पति का नाम- नागेन्द्र प्रकाश शुक्ला

स्थाई पता- 1/139 अम्बेड़कर पुरम्, आवास विकास नं0 3, कल्यानपुर, पिन कोड- 208017, उत्तर प्रदेश

फोन नं0- 7905975057, 9451281671

जन्म एवं जन्मस्थान- 20/06/1976, ग्राम लोमर, जिला- बाॅदा, उत्तर प्रदेश

शिक्षा- परास्नातक हिंदी, संस्कृत, विद्या वाचस्पति उपाधिधारक 2004, बी0एड0

व्यवसाय- शिक्षक

प्रकाशन विवरण- बालगीत, नित्या पब्लिकेशन, भोपाल


काव्यपाठ का विवरण- संस्कार भारती जहांगीराबाद, हिमालय अपडेट न्यूज, मेरी कलम से काव्य मंच रीवा, स्वर्णिम

        साहित्य, महाविद्यालय स्तर पर काव्यपाठ-1994, शिवपुराण पाठ में काव्य सम्मेलन में प्रस्तुति।

अप्रकाशित रचनाएं-

1- माँ शंखुला महिमा

2- बातगीत भाग दो

3- नल दमयंती काव्यमय वृत्तान्त

4- कर्ण की काव्यमय संक्षिप्त कथा

5- युद्ध और आधुनिक काव्य

6- मेरी कहानियाँ

7- समसामयिक कविताएं

8- समसामयिक लेख आलेख

9- विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख ,आलेख ,कहानियां

कविता आदि।

 पुरस्कार व सम्मान

1- सद्‌भावना पुरस्कार 1994

2- कला साहित्य नाट्य विज्ञान परिषद द्वारा पुरस्कृत 1995

3- सम्मान अलकरण 1996

4- क्रीड़ा कौशल सांस्कृतिक पुरस्कार 1990

5- सांस्कृतिक चेतना निर्माण पुरस्कार 1996

6- हिम रतन प्रेरणा सम्मान2021

7- नारी शक्ति सागर सम्मान 2021

8- विंध्य कलम गौरव सम्मान 2021

9- हिमालयन रत्न सृजन सम्मान 2020

10- उ० प्र० शक्तिस्वरूपा प्रणयन सम्मान 2021



**** आजादी के सपूत ****

दिल लगा बैठे थे अपने देश से

आशिकों सी वो वफा फिर कर गए

सिर उठाकर ये जिए और कह गए

सिर झुकाने की यहाँ आदत नही

ये अमर बलिदान, भारत -भूमि मे

राजगुरू ने राज ,भारत को दिया ।

सुखदेव ने सुखराह देकर चल दिया ।

ये भगत भक्ति की धारा दे गए,

ये शहादत देश हित में कर गए ।

वीरमाता के अजब ये पूत थे,

मातृभूमि में जाँ निछावर कर गए ,

भारती माँ को आजादी दे गए,

दासता की बेड़ियों को काटकर,

चूमते फाँसी का फंदा वो गए,

देश की माटी में वो चंदन बने,

भारती माँ का वो वंदन कर गए,

है नमन शत-शत ये भारत देश का, 

पथ तुम्हारे हम चलें यह कह गए,

जो विरासत में हमे वो दे गए,

वीर सैनिक बन युवा धारण करें,

अब ये परिपाटी निभाते हम चलें ।

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व रचनाकार

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश


*****माँ की सीख*****

लड़खड़ा कर गिरना

मेरी आदत नहीं ।

लड़खड़ा कर सीधे खड़ा होना,

सदा माॅ ने सिखाया ।

हौसला ऐसा बढ़ाया

कि कारवाँ चल निकला 

निकला ही नही

निकला ही नही

दौड़ा

भागा और नई ऊँचाइयों को

दोनो हाँथों से पाया

पाया और लुटाया

यही तो मेरी माँ ने सिखाया ।

और गिराने वालो को!!!

अचम्भे में डाल देना

हैरत तो उनको तब हुई,

जब शमशान से उठ,

उस रुह ने

अपना नया जन्म पाया ।

अपने स्वाभिमान की खातिर

अपने असतित्व की खातिर

अपनी पहचान की खातिर

यह संघर्ष है न

यह भी मेरी माँ ने सिखाया ।


डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ता

शिक्षक व रचनाकार

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश



+++ वर्ष की आखिरी सॉझ +++

आज का दिन तो ऐसे बीत रहा है,

जैसे बस व ट्रेन में उतरते चढ़ते लोग,

जैसे लिफ्ट में निकलते घुसते लोग,

स्टेशन मे आते जाते लोग,

पिक्चर हाल मे जाते लोग,

और देखकर निकलते लोग,

आज मन की भावुकता बढ़ गई,

जाते हुए साल मे,

कितना कुछ सुना है बेचारे इस साल ने,

कोरोना की आफत उठाए पूरा साल है,

माना कि बहुत कुछ छूटा इस साल है ,

बहुत कुछ नया करके भी गया,

बहुत कुछ नया देकर भी गया,

अब नए के स्वागत को,

सब बाँह फैलाए खड़े हैं,

मन कुछ भावुक हो चला,

ऐ जाते हुए साल,

आना और जाना ही तो सत्य है,

इस सत्य को जीना पड़ता है,

जीते हैं जीते रहेगें,

पर आज मन कुछ भावुक हो चला है ।

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार

कानपुर नगर

उत्तर प्रदेश

7905975057



कविता

शीर्षक- ‘गरीबी’

घर हीन, भूमि से हीन

वो फिरते मारे-मारे

फुटपाथों को घेर

कभी उद्यानों में वह

हर सरकारी आफिस की, दीवारों से जुड़

कही हरित पट्टी पर, 

वह हैं पन्नी ताने

यही सुखद उनका घर

पीढ़ी दर, पीढ़ी है

कुछ छोटे-मोटे काम करें

दो-चार रोटियों की खातिर

हर शाम झोपड़ी में लौटें

कुछ गिना-चुना सामान लिए

किरणों से अमृत कहाॅ गिरे???

उनके घर खीर न बनती है!!!

सूखी रोटी ही मिल जाएं 

यह खुशनसीबी उनकी है।

सिसकी भरती माँ मिलती है

हठ बच्चे उससे करते हैं

मचल-मचल माॅ-बापू से

माँगें अपनी वो करते हैं

बेबस वत्सलता विलख रही

कह-कह अभागिनी विलख रही

ममता की रोती आॅखों में 

मुस्कान अभी कैसे आए ???

जादू की छड़ी न आएगी

जो चमत्कार कर जाएगी

उनको हक उनका देना है

हर देश की जिम्मेदारी है

हम सबकी जिम्मेदारी है।


डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार

कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश



******   बेटी   ******

बेटी बचाने वालों को कभी

करीब से देखा है क्या ????

मैने तो हजारों लरजती सांसों

हॉ सांसों !!!

की कपकपाहट के साथ

एक बेटी को 

बेटी बचाते देखा है ????

दुनिया की दुनियादारी में

एक नारी को अपना सम्मान बचाते देखा है

मैने एक बेटी को

एक बेटी बचाते देखा है ????

माॅ के घर से विदा हो

पति के आंगन को संवारते देखा है

जिसे परमेश्वर माना

उसकी दुत्कार , धिक्कार और तिरस्कार

साथ में तीन-तीन बेटियों का उपहार

बेटी का उपहार अकेलेदम झेला है

अपनी जिम्मेदारी से जो बाप भागा है!!!

माँ ने अकेले ही

बेटी को बचाया है

राह चलते चलते 

मिला कोई अपना

जिसने बेटियो सहित

बेटी की माॅ को भी अपनाया है 

वह दिन भी आया

जब बेटी पराई होती है

एक- एक कर

दीन-हीन दशा में भी

डोली पर बिठाया

इस तरह एक बेटी को बचाया

छुटकी बिटिया की बारी

और माँ - बाप की हीनता भारी 

कण- कण और तृण-तृण को मोहताज खड़ी थी माई

बापू का सर नतमस्तक

सिर रखे हाँथ तो कोई

बेटी को बचाया था 

उस बेटी ने उठाया

बेटी के भाग्य से

लक्ष्मी ने लक्ष्मी बरसाया

चॉदनी सी छाया 

सर्वत्र फैलाया 

इस तरह मैने भी एक बेटी बचाया

एक बेटी बचाया

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला


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