कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" एतिहासिक नगरी हांसी ,  हिसार , हरियाणा

 ग़ज़ल


टूटे हैं अरमान सारे आज दिल के ।
रह गए पीछे की राहों में फिसल के ।


क्या गिला किस्मत से अब अपनी करूं मैं ,
मैं सदा प्यासा रहा हूं जल से मिल के ।


हर तरफ दलदल नजर आए यहां पर ,
इससे कोई तो दिखाए अब निकल के ।


अब करू किससे शिकायत में बता दो ,
लग गए सब राह अपनी मुझको छलके ।


एक दिन तूने भी तो छोड़ा अकेला ,
जिंदगी को मेरी चाहत से बदल के ।


ढल गए हम कौन सी सूरत में जाने ,
आज साथी मोम के जैसे पिघल के ।


हमने भी पत्थर बनाया है कलेजा ,
अब लगा दो आग घर को मेरे चल के ।


हम लिखेंगे अब नई अपनी कहानी ,
छोड़ देंगे सब जो किस्से थे कल के ।


"टेंपू" जलने दो खुद को आग में तुम ,
सच खरा ही तो हुआ है सच में जल के ।


रचित ----- 13 - 06 - 2009 
Mo. 09992318583


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली।*

*विविध हाइकु।।।।।।।*


गलती जान
सुधार तभी होगा
गलती मान


आय अठ्ठनी
खर्चा रूपया करें
ओ काटे कन्नी


मन हो शुद्ध
आचरण पवित्र
बनो प्रबुद्ध


सांसों की डोर
वक्त से पकड़ लो
प्रभु का छोर


*महा शिवरात्रि(हाइकु)*


कैलाश पति
शंकर भोलेनाथ
गिरजा पति


हैं महा देव
वह त्रि काल दर्शी
देवों के देव


शिव शंकर
कैलाश पर्वत पे
निवास घर


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो  9897071046
      8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली।*

*विविध हाइकू।।।।।*


इज़्ज़त देता
सबका प्रिय बने
इज़्ज़त लेता


शब्द हैं खास
बोलते हैं खराब
करें उदास


कठिन श्रम
सही आय का मार्ग
ईमान धर्म


मौका दस्तूर
सोच समझ देख के
बोलो जरूर


बनना ऐसे
दर्द में सकूं मिले
बनना वैसे


अधूरी दास्ताँ
भूलती नहीं कभी
मिटे न निशां


मेहरबां हो
भावना.   संवेदना
जो हो सके दो


मकां से घर
जरूरी नहीं ज्यादा
प्यार हो पर


बात निकली
दूर   तलक    जाये
जुबां फिसली


रिश्ते निभायो
पानी   सर  ऊपर
दूर हो जायो



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
       8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली।*

*जीवन,,,भाग्य का तपोवन*
*मुक्तक*


डूब कर   मोती निकालो
जीवन के मंथन से।


उत्साह की  बूंदे  उछालो
जीवन के वंदन से।।


ये जीवन  भरपूर  है रोज़
कुछ नये रहस्यों से।


चाहो तो तक़दीर  बनालो
जीवन के चंदन से।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली।*

*हो गया घिनौना है आदमी*
*मुक्तक*


मिट्टी   से      बना   एक 
खिलौना है आदमी।


पर न जाने  क्यों   इतना
घिनौना है आदमी।।


भूल गया है  इंसा मानव
जीवन   के ही अर्थ।


आज स्वार्थ सिद्धि में  हो
गया बौना है आदमी।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
            8218685464


निशा"अतुल्य"देहरादून


शिवरात्रि पर सभी को ढ़ेर सारी शुभकामनाएं


ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय 
हर हर बोलो ॐ नमः शिवाय 
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
हे त्रिनेत्र,त्रिपुंड त्रिपुरारी बाघम्बर धारी
बांध जटा में वेगी गंगा 
बन गये तुम पल में अविनाशी
करते धरा का पोषण 
सहजता जीवन की सिखलाई।
शिश धरा चाँद को तुमने
जिसपर थी विपदा गहराई
नाग कंकण धार हाथ में
बेरी से करना प्रेम सिखाया।
रत्न तो बांटे सब देवो ने 
भागे जब हलाहल सागर से आया
पी लिया पल में हलाहल तुमने 
 किया जगत कल्याण
धार कंठ में विष को बने नीलकंठ 
हो गए देवों के देव महादेव कहलाये
भांग धतूरा हो गया प्यारा 
औघड़ दानी समाधि रमाये
बन बेरागी जमाई धूनी श्मशान 
मरण की सत्यता बताये।
किया तप पार्वती ने ऐसा
समाधिस्थ न रह पाए
किया वरण पार्वती का
भूत,प्रेत,नंदी गण बराती बन आये
फागुन त्रियोदशी का दिन
महा शिवरात्रि कहलाये।
हुई सती हवन कुंड में समाधिस्थ
बन प्रेमी त्रिलोक में घूमें।
राग विराग का अनुपम्य संगम
तुमसा कोई देख ना पाये
रचा ब्याह बैरागी कहलाये।
त्रिनेत्र धारी तांडव तेरा विनाश कारी 
रहो शांत 
करो जग का उद्धार हे त्रिपुंड धारी 
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय 
हर हर बोलो ॐ नमः शिवाय का
जो करे जाप वो भव से तर जाये ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


निशा"अतुल्य" देहरादून


जीवन


शिव होना आसान नही 
कोई देखे भांग धतूरा
कोई गंगा विशाल
किसी ने देखी नागों की माला
किसी ने डमरू और काल
सोच सबकी अलग अलग
अलग सबका व्यवहार 
फिर भी साथी 
कहीं न कहीं 
एक दूजे के साथ।
नही होता जीवन पार
अकेले 
बनाना पड़ता है कारवाँ
जीवन का
जो चले साथ धूप छाँव में
भूख प्यास में 
पता है अंततः 
सफर अकेले ही निभाना है।
फिर भी मोह माया राग द्वेष से मुक्त
जीवन कहाँ मिल पाता है ।
शिव बनना कहाँ है बस में
पीकर गरल कौन 
जीवित रह पाता है।
रोक कर कंठ में विष 
शिव ये बताता है 
बड़ा विष बोल का 
इसे जिसने रोका कंठ में
वही इस भव से तर जाता है ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


निशा"अतुल्य"

ख़्वाब जो बस जाते हैं ज़हन में 
बन कर सुन्दर मंज़र
और करने को उसे पूरा 
मैं दौड़ती दिन रात यहां से वहां।
क्या समझता है कोई मेरी ये व्यथा
भागती हूँ जिन ख़्वाबों के पीछे
क्या वो मेरे सिर्फ मेरे लिए हैं 
नहीं हर्गिज़ नहीं।
कभी माँ बाबा के लिए
कभी जीवन साथी के लिए 
और अंततः बच्चों के लिए 
और मैं खाली खड़ी रह जाती हूँ
आज उम्र के इस मोड़ पर 
सोचने को मजबूर 
क्या किया ख़ुद के लिए।
तुम समझ सकते हो इसे हार मेरी 
पर ये ही बन जाती है 
जीवन की जीत मेरी।
ये चमकती हुई चांदी बालों में
कुछ ख़्वाब पूरे होने की कहानी है
चेहरे की चंद महीन रेखाएं
शायद उन ख़्वाबों ने खींच दी
जो कहीं अधूरे हैं।
आज समय ही समय है 
मगर अपने कोई ख़्वाब नहीं
फिर भी महकती गुलाब की तरह
हर सुबह मेरी 
नित देखती नए ख़्वाब 
हर दिन रात के जो हैं
मेरे अपनो के लिए 
हर रोज भरी रहती है 
मदहोश किसी न किसी ख़्वाब से।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
         *"साथी"*
"जग में छाया बंसत साथी,
क्यों-आई गम की छाया?
ढल जाने दो गम के आँसू,
खिल उठेगी कंचन काया।।
मिलकर साथी-साथी उनसे,
महक उठे जीवन सारा।
मोह माया के बंधन संग,
अपनो से जीवन हारा।।
हारे जो अपनो से साथी,
पाये सुख जीवन धारा।सुख-दु:ख इस जीवन में साथी,
दे जाते मन को सहारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

सुख स्वरूप श्री माधवाय
श्री राधे शान्त स्वरूपाय
मोहिनीछवि मन को भाय
श्री गिरिधर दिव्यरूपाय


तव गुण स्वभाव अनुपाय
स्वामी सकल जगतभूपाय
अवर्चनीय सौम्य विभूताय
नमामि राधे संग माधवाय


श्रीमुरलीधर जगत नाथाय
श्री केशवाय मधुसूदनाय
प्रणमामि राधा बल्लभाय
जगतपति श्री परमेश्वराय।


श्रीराधे कृष्ण🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेन्द्र रायपुरी

  जमाना बुरा है   


ज़माना   बुरा  है  कहें  लोग  भाई।
रहो  दूर  इससे  इसी   में   भलाई।


ज़माने  में  है  कौन  ये  तो बताएं।
तभी  तो  सभी  उनसे  दूरी बनाएं।


ज़माने  में  हम हैं ज़माने  में वो हैऺऺऺं।
कहें  दूर  रहना  ज़माने  से  जो  हैं।


रहे  दूर  किससे,  कहो  कौन  भाई।
हमें बात बिल्कुल समझ ही न आई।


हमें  तो  समझ यार इतना ही आए।
बनें खुद भला तो जहां बन ही जाए।


सुधर हम  गए  तो  है सुधरा ज़माना।
समझ आ गया हो तो सबको बताना।


ज़माना  बना  है  हम्हीं  से  ये  भाई।
उन्हें बात छोटी समझ क्यों न आयी।


सही बात  मेरी  तो दिल में बिठाना।
नहीं  तो  इसे  आज  ही भूल जाना।


             ।। राजेन्द्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल  मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

शुभ प्रभात
🌷🌹🌻🎋🎍🥀
मूल्यांकन
********
सोने वालोंं जागो,
जाग जाओ।
यह जीवन
यूं ही न खोओ,
इसका मूल्य समझो
इसकी कीमत जानो
अपना विवेक जगाओ।
तुम्हारा धन गया 
तो क्या गया
कुछ  भी नहीं,
तुम्हारा स्वास्थ गया
तो समझो कुछ नहीं गया,
किन्तु 
यदि चरित्र ढहा
तो समझना
जीवन धन ही गया,
सब कुछ निकल गया,
क्यों कि
चरित्र ही धर्म है,
सबसे बड़ा।
चरित्र जीवन की कुंजी है।
जीवन में
चरित्र ही अमूल्य निधि है,
जहां कहीं
जिस किसी
गली -कूचे 
गांव शहर से गुजरेगो
तो, इसी से होगा
तुम्हारा मूल्यांकन।।
*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
 मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

............. मतवाले दो नैन.............


मतवाले दो नैन हमेशा  याद आते हैं।
नैनों से ही नैनों में फरियाद जाते हैं।।


जिन नैनों में डूबे रहते थे रात - दिन ;
उनकी गहराई हमेशा याद आते  हैं।।


देखे बिना चैन न मिलता था पलभर;
नैनों का वो नशिलापन याद आते हैं।


नैनों से नैनों की दूरी तो बर्दाश्त नहीं;
उनमें पूरे जहां दिखना याद आते हैं।


नैनों में बसी याद कभी  मरती नहीं ;
नैनों में इंतजार केभाव याद आते हैं।


जिन मज़ेदार नैनों के दीवाने हुए थे;
उनके दीवानापन हमें याद आते हैं।।


भले ही अपनी जान जाए"आनंद" ;
नैन रहे कायम जिनमें याद आते हैं।


---- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


विवेक दुबे "निश्चल

ॐ हृदय राखिए , ॐ करे शुभ काज ।
  ॐ श्रीगणेश हैं , ॐ शिव सरकार ।


 जो थे कल में, जो होंगे कल में।
 जो हैं पल में , जो प्रतिपल में ।
 जो थे तब भी , जो न था कुछ भी ।
 जो हैं तब भी, जो है सब कुछ भी ।


 सूक्ष्म शिव , अति विशाल शिव हैं ।
 काल शिव,    महाकाल   शिव हैं।
 प्रतिपाल शिव , प्रलयंकार शिव हैं ।
 आकर शिव , निराकार ही शिव हैं ।


 वो हर हलचल में ,सृष्टि के कण कण में।
 वो सदा शिव हैं, सत्य सनातन शिव हैं ।


हे रुद्रनाथ  ,  नागनाथ    ,  मंगलेश्वर।
हे उमापति , कैलाशपति , गौरीशंकर।
हे शिवाकांत , महादानी  ,  रामेश्वर ।
हे दीनानाथ , जटाधारी ,   जोगीश्वर।
 हे मणि महेश, अमर दानी,अभ्यंकर।
हे जगत पिता ,औघड़दानी,अतिभयंकर।
 हे महाकाल  , त्रिपुरारी   ,  वृषशेश्वर। 
 हे महाज्ञान  , महा माया ,  शिव शंकर ।


        तुम माह देव  महेश्वर ,
        तुम देते मनचाहा वर ।


   हे महाकाल , हे  त्रिपुरारी ,
    मैं आया ,  शरण तुम्हारी ।
    हे माया शंकर , महाज्ञानी,
    माया तेरी ,न जाए बखानी ।


  जो सहज भाव, तुम्हे बुलाते ,
  हे दया शंकर ,औघड़ दानी,  ।
   खुशियाँ ,   उनके जीवन मे  ,
   एक पल में,  आन समातीं ।
 
   सुनो विनय  , हे जटा धारी ,
   रखियो तुम  , लाज़ हमारी ।
   प्रभु ,आया मैं , द्वार तुम्हारे,
   भक्ति भाव, हृदय भर भारी।


   हर हर शिव शंकर , हे त्रिपुरारी ।
   हर हर शिव शंकर , हे त्रिपुरारी ।
   तेरे   चरणों   का   मैं  अनुचारी ।
    तेरे   चरणों    का मैं  अनुचारी ।
 
    ..... विवेक दुबे "निश्चल"


संजय जैन (मुम्बई)

*छोड़ आया*
विधा : कविता


दिलके इतने करीब हो,
फिर भी मुझसे दूर हो।
कुछ तो है तेरे दिल में,
जो कह नही पा रही हो।
या मेरी बातें या मैं तेरे को,
अब समझ आ नही रहा।
तभी तो मुझ से दूरियां,
तुम बनाती जा रही हो।।


गीत गुन गुने की जगह, 
तुम उदास हो रही हो।
कैसे समझ पाऊंगा में,
तुम्हारे बोले बिना।
क्योंकि दिल मेरा,
बहुत साफ पाक है।
मोहब्बत की इवादत के लिए।
अब तय तुम्हें करना है की,
इसे परवान चढ़ने दे या नही।।


हंसी वादियां छोड़,
आया हूँ तुम्हारे लिये।
तेरे दर्द को कम करने आया हूँ,
अपने गमो को छोड़ के।
जितने श्रध्दा प्रेम से,
तुमने चाहा है मुझे।
उतनी ही श्रध्दा से,
तुम्हें अपनाने आया हूँ।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
22/02/2020


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली।*

*उम्र भी हार जाती है।।*
*मुक्तक।*


हराना है उम्र को तो  हमेशा
शौक  जिंदा  रखो।


सबके  लिए  तारीफ   और
निंदा    कम   रखो।।


जिन्दगी जियो कुछ अंदाज़
और नज़र अंदाज़ से।


सपने देखो  ऊँचे आसमान 
के मन  परिंदा  रखो।।


*रचयिता।  एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो                9897071046
                    8218685464


एस के कपूर श्री हंस।।* *बरेली।*

*गरूर अभिमान मिटा देता है*
*तेरे निशां।मुक्तक।*


तुम्हारा चेहरा बनता कभी तेरी
पहचान   नहीं     है।


अभिमान से मिलता किसी को
कभी सम्मान  नहीं है।।


लोग याद रखते हैं  तुम्हारे दिल
व्यवहार  को   ही  बस।


न जाने कितने  सिकंदर  दफन
कि नामो निशान नहीं है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस।।*
*बरेली।*
मो।      9897071046
           8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस

*ईश्वर एक है।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।*


राग  द्वेष    भेद     भाव   की
गिर   जाये  हर  इक   दीवार।


भाषावली से ही मिट जाये हर
शब्द  जो   लाता हो तकरार।।


"ईश्वर एक है"भावना बस जाये
हर   दिल   में    सबके   लिए।


धरती  पर  तब    बन  जायेगा
स्वर्ग   से  ही  सुन्दर    संसार।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब   9897071046   ।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस

*बुनियाद का आधार।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


नींव का   पत्थर  कभी
नज़र  आता  नहीं    है।


शीर्ष की शिला  को ही
सराहा जाता  वहीं  है।।


कभी न  भूलना चाहिए
बुनियाद के  महत्व को।


इसी पर  तो  हर   मकां 
आधार   पाता  यहीं  है।।


*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।*
मोब  9897071046।।
8218685464।।।।।।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे युगलछवि मेरे जीवन में भरदो मोद प्रमोद
बनी रहे कृपा आपकी भरे खुशियों से गोद


हे बृषभानु सुता ठाकुर से कहना हमारी पीर
कोई भय व्यापै नहीं रहूँ तुम्हारे लिए गंभीर


अदभुत और अनन्त छवि अदभुत भाव प्रभाव
हे अनादि परमेश्वर तुम्ही हो भवसागर की नाव


युगलरूप परम् ज्योति से फैला जीवन आलोक
श्री राधे कृष्ण दया से मिट जायेंगे सभी शोक।


श्रीराधे कृष्ण🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

🎍🌷दोहे🌷🎍
********************
मानव धन का दास है,
धन न किसी का दास।
जो समझा इस राज को,
वही प्रभु  का  खास।
       🎍
यौवन जाता देख कर,
मन में   उठे   विचार।
जीवन में कुछ कर चलो,
होगा   बेड़ा   पार।।
       🎍
बात - बात  में बात हो,
अगले क्षण हो विवाद।
सब बातों का एक हल,
मौन    रहो  निर्विवाद।।
        🎍
कथनी करनी एक सी,
जिस दिन होगी  जीव।
धरती पर आनन्द की,
वृष्टि   होगी  अतीव।।
      🎍
पाती है जब आत्मा ,
सन्तो   का  सत्संग।
तब आता सद् आचरण,
बदल जायें  सब रंग।।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २२५
दिनांक: २२.०२.२०२०
वार: शनिवार
विधा: कविता
शीर्षक: शिवशंकर मैं नमन करूं
हे   कैलाशी असुर विनाशी  बैद्यनाथ  शिव  मैं  नमन  करूं। 
हे   उमापति  चैतन्य  महाप्रभो   नंदीश्वर   मैं   नमन   करूं।
महाकाल  विकराल परंतप  शिव  महादेव  मैं  नमन   करूं।
अविनाशी  त्रिपुरारी  शंकर  विश्वंभर  शिव  मैं  नमन  करूं।
शूलपाणि  डमरूधर  नटवर  शिव रावणेश  मैं  नमन करूं।
भष्मराग  तनु  कण्ठहार  अहि  जय  भोले  मैं नमन  करूं।
हे उमेश गिरिजेश त्रिलोचन बाघम्बर शिव  को नमन  करूं।
आनंद  कंद   परब्रह्म  सनातन  चतुर्वेद  शिव  नमन  करूं।
कार्तिकेय  स्कन्ध   पिता  प्रभु  नागनाथ शिव नमन  करूं।
पिनाकी  मरघट  के  वासी काशी  विश्वनाथ मैं नमन करूं।
ओंकारेश्वर जय नीलकण्ठ शिव हे सोमनाथ मैं नमन करूं।
पंचानन पशुपति  परमेश्वर पावन रामेश्वर शिव नमन  करूं।
हो  प्रसीद  दिगम्बर  निर्मल  शिव शंकर  शंभू  नमन करूं।
देव  पूजित  दानव  से वन्दित ज्ञानेश्वर मैं  नित नमन करूं।
हे  त्रिदेव  वाणासुर  नाशक  त्र्यम्बकेश  प्रभु  नमन  करूं।
घुश्मेश्वर  भीमेश्वर  सादर  जग प्रतिपालक मैं नमन  करूं।
भष्मासुर  वरदायक  नाशक संन्यासी शिव मैं नमन करूं।
प्रलयंकर शंकर नटराजन  वृषवाहन  को  मैं  नमन  करूं।
जय सतीश भुवनेश पुरातन अमरेश सदाशिव नमन करूं।  
दूं भांग धतुर बम भोले बाबा दे विल्वपत्र शिव नमन करूं।
गुणागार  गौरीश   महातम  अर्द्धनारीश्वर  मैं  नमन  करूं।
गणाधीश गणपति  जगदीश्वर  चन्द्रमौलि  मैं  नमन  करुं।
दुष्टदलन दानव खल नाशक रुद्राक्षमाल शिव नमन करूं।
हरो  आपदा  दो सुख वैभव जग अडरंधर  मैं नमन करूं। 
गंगाधर भागीरथ हरिहर भवानीश महारुद्र मैं  नमन करूं।
जटाजूट    हालाहल    शम्भु  अपर्णेश  शिव  नमन करूं।
विश्वम्भर  कामेश्वर पूजन शैलश्वर  शिव नित  नमन करूं।
त्रिभुवनेश्वर हैं अरिमर्दक शिव उमारमण शत्  नमन करूं।
शरणागतवत्सल देवेश्वर ओंकार शान्ति शिव  नमन करूं।
खिले चमन भू सुखद मधुर समरस निकुंज मैं नमन करूं।
प्रीति रीति नटराज गुणेश्वर पालक शिवशंकर मैं नमन करूं।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 

भोजपुरी देश भक्ति होली गीत -5 सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा |
हम तोडब तोहरो गुमनवा हो  |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
बेरी बेरी करेला काहे हमसे तू झगड़ा |
हम फोरब कपार तोहार पाकिसतनवा हो | 
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
चिनवा सहकावल तू घमन्ड खूब करेला |
होलिया मे गोलीया से खेलब दुशमनवा हो |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
अँखिया देखवा जनी हमरे भारत देशवा |
 फागुन मे फाड़ डेब तोहरो सिनवा हो |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
हम हिन्दुस्तानी हमके ललकारा जनी बाबू |
 खुनवा से रङ्गब टोहरों फगुनवा हो |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
अबो त सुधार जा माना हमरो बतिया |
 घुसी घरवा उजाडब तोर मकनवा हो |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 
मोब।/व्हात्सप्प्स -9955509286


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

पेश ए ख़िदमत हैं इक नई  ग़ज़ल


ये  मोहब्बत  इतनी  भी  आसान  नही थी।
इसकी  हमकों  भी  पूरी पहचान  नही थी।


अब   तो   मानूँगा  सारी   ग़लती  मेरी  हैं।
वैसे  वो  भी  तो  इतनी  नादान  नही  थी।


ठीक ज़रा भी होता ये दर्द ए दिल जिससे।
उस  नुस्ख़े  की  भी कोई  दूकान नही थी।


वो महलों की जीनत हैं उन्हें क्या मालुम।
ये इज्ज़त कोई बिकता  सामान नही थी।


खूब खिला रहता था हर रुख का नूर यहाँ।
पहले  ये  बस्ती  इतनी  सुनसान  नही थी।


मुफ़लिस हूँ पर इक दिन सब दुरुस्त कर दूँगा।
झोपड़ियाँ   कोई   मुक़र्रर  मकान   नही  थी।


हर रोज़ 'अभय' शिद्दत  से सम्हाला इसको। 
ये  जिंदगी  कोई  उनकी  एहसान  नही थी।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

इक मतला दो शेर


ये  मोहब्बत  इतनी  भी  आसान  नही थी।
इसकी  हमकों  भी  पूरी पहचान  नही थी।


अब   तो   मानूँगा  सारी   ग़लती  मेरी  हैं।
वैसे  वो  भी  तो  इतनी  नादान  नही  थी।


ठीक ज़रा भी होता ये दर्द ए दिल जिससे।
उस  नुस्ख़े  की  भी कोई  दूकान नही थी।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


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