अजय 'अजेय' अष्टपदी वासंती छंद ---- शीत के निष्ठुर अहम कूं तोड़े

अजय 'अजेय'


अष्टपदी वासंती छंद ----
शीत के निष्ठुर अहम कूं तोड़े
घर की अटिया घाम कूं ओढ़े
बयार बहे मन सिहरन लागे
भावज के बसना गावन लागे
फूल पात मिल करें ढिठाई
हँसि हँसि आपस लेंय बलाई
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
कामदेव कूं पिता बनाऐं
धरती रंग विरंग नहाएं
सृजन डुले सर्जना लहराऐं
कोमल कोंपल तोतली गायें
हिय हिरनी तन कूं हुलरायें
कोयल कूक खग मृग दुलरायें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
आम के बौर भरें किलकारी
चुनुआ मुनुआं बजावें तारी
सरसों मारे हिलोर रंगन की
छनक पीत बिछौना नी की
सूखे पत्ता खोंदर कारें
अम्मा रिसिआय आंगन बुहारें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
माघ माह शुक्ल पक्ष पंचमी
माँ वाणी अवतरण विक्रमी
कवि कोविद गावहिं चालीसा
राग बसन्ती रचें मुनीसा
शब्द गढ़ें साहित्य उवाचें
कविता कलरव भरे कुलाचें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
-- अजय 'अजेय'


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...