कैलाश , दुबे , शायरी

शायरी


इश्क किया उनसे ,
और बो खफा हो गए ,


दिल लगाया भी हमसे ,
और कहीं दफा हो गए ,


राह ताकते रहे हम भी ,
जाने कहाँ बो खो गए,


हरेक जुल्फ से खिजाब ले आऊँ ,
तू कहे तो मैं लिहाफ ले आऊँ ,


न बुढ़ापे का पता न ठंड का पता चल पाये ,


गर तू कहे तो मैं और खिजाब ले आऊँ 


कैलाश , दुबे ,


 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...