कुमार कारनिक कविता (उम्र भर) उस जिंदगी को- संवारने मे,

कुमार कारनिक
उम्र भर


उस जिंदगी को-
संवारने मे,
पसीने के बूंदों से-
घबराया नही हूँ।
अजायब घरों मे-
मौत आनी है,
उसे आने दो-
मौत से हारा नही हूँ।
धड़़कने तेज-
अहसास है,
घर-द्वारों मे-
कभी ठहरा नही हूँ।
कदम कदम बढ़ते-
किसकी पसंद है,
जीवन की ओर-
अभी बहका नही हूँ।
काँटों मे फूल खिला-
सर्तकता से,
माली बनके-
खुद को सँवारा नही हूँ।
शिक्षा मुझे मिला-
सत्य राह पर चलना,
डरपोक की तरह-
डरा नही हूँ।
सार्थक होगा-
जीवन मेरा,
राहों मे-
अभी थका नही हूँ।


******************


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...