प्रिया सिंह लखनऊ गजल

ए खुदा मेरे महबूब से मुझे मिला क्यों नहीं देते
इन्तजार का मेरे कुछ तुम  सिला क्यों नहीं देते 


गर____ वजूद को मेरे उखाड़ फेंकना है तुझे 
तो जड़ मोहब्बत का तुम हिला क्यों नहीं देते 


बेहोश कर रखने से कोई फायदा नहीं हमदम
तुम चाशनी मोहब्बत की पिला क्यों नहीं देते 


बना कर गर कठपुतली रखा है इस दिल को
इजाज़त__ मोहब्बत की दिला क्यों नहीं देते 


एक ख्वाब की वादी को भर रखा है गुलों से 
मेरे आंगन में भी, फूल खिला क्यों नहीं देते 


 


Priya singh


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