सुनीता असीम आगरा

कभी तो दूर करो मेरी ये शिकायत भी।
करोगे सिर्फ कभी हमपे कुछ इनायत भी।
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कि पाप के हो गए आज तो  सभी पेशे।
नहीं बची है जलालत से अब वकालत भी।
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लगाए तुमने थे इल्जाम तो बहुत सारे।
कभी तो सुन लेते उनकी ज़रा हकीकत भी।
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अगर चले गए हम तोड़के कभी तुमको।
नहीं सुनेंगे रही कोई जो शिकायत भी।
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दो बोल प्यार के क्या सुन लिए जरा तुझसे।
कि उसके बाद भली लगती है जलालत भी। 
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सुनीता असीम
१६/१/२०२०


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