गोपाल बघेल ‘मधु’ , ओन्टारियो, कनाडा 

काल चक्र घूमता है !
(मधुगीति २००२१२ अग्ररा ) ०१:३८


काल चक्र घूमता है, केन्द्र शिव को देखलो; 
भाव लहरी व्याप्त अगणित, परम धाम परख लो! 


कितने आए कितने गए, राज कितने कर गए;
इस धरा की धूल में हैं, बह के धधके दह गए !


सत्यनिष्ठ जो नहीं हैं, स्वार्थ लिप्त जो मही;
ताण्डवों की चाप सहके, ध्वस्त होते शीघ्र ही !


पार्थ सूक्ष्म पथ हैं चलते, रहते कृष्ण सारथी;
दग्ध होते क्षुद्र क्षणों, प्रबंधन विधि पातकी !


पाण्डवो तुम मोह त्यागो, साधना गहरी करो;
‘मधु’ के प्रभु की झलक को, जीते जगते झाँक लो ! 


✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’


रचना दि. १२ फ़रवरी २०२० रात्रि 
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा 
www.GopalBaghelMadhu.com


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