एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली*

*विविध हाइकु।।।।।*



दिया सलाई
यही घर जलाती
या रोशनाई


तेरा लहज़ा
तुम्हें बिगाड़ता भी
या है सहेजा


काम में मज़ा
थकान होती नहीं
न बने सज़ा


झूठा आईना
होता न कभी चाहे
टूटा आईना


तेरा तरीका
तेरी   पहचान  है
तेरा सलीका


संवर जाती
हाथ की लकीरें भी
बदल जाती


घृणा का नर्क
जब मन में बसे
तो बेड़ा गर्क



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मो    9897071046
        8218685464


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...