गंगा प्रसाद भावुक

किसानों का देश,
अरमानों का देश,
गरीबी से त्रस्त
जवानों का देश,
बेरोजगारी सुरसा
है मुह बाये,
हुक्मरानों को
कौन बताये,
सेना की भर्तियों में
जाते हैं ग़रीब,
कब कहां सेना में
जाते हैं अमीर,
कुछ अपवादों को
छोड़ दें,
किसी ने कभी देखा है,
या किसी ने सुना है,
क्या कभी किसी नेता
की औलादें गयी
सेना में,
फिर क्यों जाये ?
या क्या कभी कोई
नेता मरा है दंगों में,
ऐसा कभी नही होता,
अकाल मौत को हम
गरीब बनें हैं,
ये सब तो सुख
सुविधाओं में
सनें हैं,
दंगों की,
आतंकी हमलों की
ख़ुराक सिर्फ हम
ग़रीब बने हैं,
ये बेशर्म हमारी
लाशों पर भी
राजनीतिक रोटियां
सेंकते हैं,
यहां सेना में भर्ती
एक जुनून है,
यहां जाति धर्म
का कोई नही कानून है,
फिर भी दोगले नेता
हमारी शहादत को
जाति धर्म भाषा
क्षेत्रवाद में बांटते हैं,
अपनी सत्ता के लिए
हमें जलती आग में
झोंकते हैं,
ये सदियों से चला
आरहा है,
अभी और कब तक
चलेगा,
हमारा देश आखिर
कब तक पुलवामा
जैसी घटनाओं में
जलेगा,
आओ अपने बीच
छिपे गद्दारों दलालों
का पर्दाफाश करें,
जो पुलवामा
की पवित्र आहुति में
फायदे का जिक्र करे
उन्हें तिरस्कृत करें,
मानवता का
साथ दें,
देश हित का
शिलान्यास
करें।।।।
भावुक


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