इन्दु झुनझुनवाला जैन बंगलौर

होरी लोकगीत


मन की बतियां ,कांसे कहूँ सखी री ।
पिया तो सुनत ,नाही कोई बतियां ।


हम तो सखी री, देखे नाही दुनिया।
पिया तो हमारे भएल परेदेसिया।
मन की बतियां -----


प्यार की भाषा अँखियाँ करे सखी,
बोले तो कैसे, बोले ऐसी बतियाँ।
मन की बतियां -----


हमरे पियाजी अंगरेजी मा बोले,
समझ परे नाही मोहे उनकी पतियाँ।
मन की बतियां -----


चाकी पिसत सारी उमर गुजारी रे,
हमसे चलत अब नाही फटफटिया।
मन की बतियां -----


पाउडर लिपिसटिक कबहुँ ना जानो,
कईसे रिझाउँ ,बनढन के सजनिया।
मन की बतियां ---'


अब तो सखी री,आँख नाही लागे,
 विरहा की आग मे, जलूँ सारी  रतिया।
मन की बतियां -----


होरिया के रंग में  भीजे मोरा तन सखी,
प्रीत के रंग में तोहे  रंग दूँ सजनवा।
मन की बतियां---------


इकबार साजन गलवा लगा ले रे,
उमर भर ना माँगे कछु और मनवा।
मन की बतियां ---
इन्दु झुनझुनवाला जैन 


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