कैलाश , दुबे होशंगाबाद

यूं चिराग जलते रहे रात भर ,


हम उजाले कै तरसते रहे रात भर 


यूं ही सहमे बैठे रहे हम रात भर ,


जब हवा का झोंका आता वहां ,


डरते रहे और सहमते रहे रात भर ,


कोई न अपना था वहां पर ,


बैठे रहे हम उजाले को तरसते रात भर , 


कैलाश , दुबे


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...