किशोर कुमार कर्ण  पटना बिहार

~~ वसंत का खुमार ~~


ऐसा मुख जो स्वप्न में देखा
गगन से उतरी धरा पर देखा
नख-शिखा से अद्भुत लगती
स्वप्न लोक की परी सी लगती


मुख आभा पर किरणें पड़ती 
स्वर्ण अनूठी चमक सी लगती 
पतली गरदन सुराही जैसी 
मृगनयनी सी नैनन उसकी


है वसंत का, खुमार है उस पर
माघ महिने का उभार है उन पर 
पोर-पोर आज ॠतुराज बना है
मंद-मुस्कान में राज छूपा है


भौहें जैसे कमान है साधे
अधर है, पुष्प, कली आधे-आधे
मन-चंचल, चितवन नभ को भागे
मुख-मंडल उर्वशी से लागे आगे


-किशोर कुमार कर्ण 
पटना बिहार


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...