कुमार कारनिक  छाल रायगढ़ छग        

मनहरण घनाक्षरी
  गौ माता
      
यह   हमारी  गौ  माता,
दूध  दही   घी  मिलता,
सेवा से मुक्ति  मिलता,
      गाय भैंस पालिए।


चरें   गाय   कहाँ   पर,
कब्जा   हर  जहाँ  पर,
बंधे   पशुओं  के   पैर,
      चारागाह छोड़िए।


देव   रूप  पूजी  जाती,
अमृत   दूध   दे  जाती,
घर   घर   बाटी  जाती,
     शुद्ध दुग्ध पीजिए।


ग्वाल  बाल  बन   कर,
गौ माता की सेवा कर,
बंधु   चारा  दान   कर,
     गाय गोद लीजिए।
                 


             
                    ******


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...