मत्त सवैया तन मन सब पावन तुलसी सम,

मत्त सवैया


तन मन सब पावन तुलसी सम, अधरन से रस धार बहाती।
इस हिय को प्रिय लगती हैं वो, नयनन को भी बहुत सुहाती।
वो  प्यार  पगी बातें करके, इस  मरु  उर  पर जल बरसाती।
हिरनी सम बल ख़ाकर चलती, मुँह ढककर के मृदु मुस्काती।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


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