निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार

मातृभूमि
अमृत सम जिसके रज में,
लोट पोट कर बड़े हुए हैं।
जिसकी आंचल में बीता था,
हर्षयुक्त अतिसुखद बालापन मेरा।


ऐसी पावन मातृभूमि को,
बारम्बार हो नमन मेरा।


जिसकी गोद में सोऊं जब मैं,
परमानंद सम अनुभव हो।
अति प्रसन्न रहें मन मेरा,
अलौकिक सुख का अनुभव हो।


प्रकृति से भरा जिसका आंचल,
गंगा यमुना की पहचान हो।
विदेशी खिलौना मन नहीं भावे,
बस प्रकृति से ही प्यार हो।


हे नाथ! एक विनती मुझसे,
पूरन हो अभिलाषा मेरा।
जब भी मरूं तो तेरे गोद में,
हे मातृभूमि ! बस यही इच्छा मेरा।
 (मेरी काव्य संग्रह अखण्ड भारत से)
        निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार
7250087926


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...