प्रखर दीक्षित

(वेब पोर्टल हेतु)


प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


मुक्तक
(कन्नौजी रस रंग)
*माँ पूत*


पौढ़ाए पूत पलोटति माँ, विहंसै  मनहीं लोरी गावै ।
द्वै  बूँद री! तेल कमाल करै, 
 रोवै कनुआ माँ दुलरावै।।
लखि गौर सलोनो मुख मण्डल, हरषाय कन्हैया कहि टेरै,
जुग जियऊ लला  पढ़िऊ लिखिऊ, पद मान प्रतिष्ठा घन पावै।।


धन भाग हमार जरा संभरीं , घर चहकै जग उडियार करौ।
लकुटी बनि अम्मा बाबू की, दुष्वृत्ति विषय संहार करौ।।
सतवादी सत पथ गहौ पूत, परहित जीवन सतचरित उच्च,
तोतर बानी मनमोहक छवि, मम लाल सपन साकार करौ।।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...