प्रिया सिंह लखनऊ

शहर की सड़कों पर वो अदाकारी दिखाती है 
पतली सी रस्सी पर वो कलाकारी दिखाती है


नाजुक से पैरों में उसके छाला मोटा दिखता है
मासूमियत के पीछे से वो होशियारी दिखाती है


चढ़ कर रस्सी पर आसमान छूने का हौसला है
नज़ाकत बेच कर यहाँ वो रोजगारी दिखाती है


छिप छिपा कर कभी पढ़ते भी देखते हैं  उसे
भविष्य के साथ अपने ईमानदारी दिखाती है 


गंवार भले है वो दुनिया भर की नजरों में आज
नन्हें कदमों से चल कर दुनियादारी दिखाती है 


 


Priya singh


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