संजय जैन (मुम्बई)

*भाग जाते है वो*
विधा: कविता


लगाकर आग वो, 
अक्सर भाग जाते है।
कहकर अपनी बात,
अक्सर भाग जाते है।
बिना जबाव के भी,
क्या वो समझ जाते है।
तभी तो बार बार आकर,
मुझसे वो कुछ कहते है।।


लगता है उन्हें प्यार हो गया।
दिल की धड़कनों में,
शायद में बस गया।
तभी तो हंस हंसकर, 
आंखों से तीर छोड़ते है।
शायद मेरे दिल को,
दूर से ही पढ़ लेते है।।


अब ये दिल भी उनकी, 
 हंसी का आदि हो गया है।
निगाहें मिलाने को तरसता है।
तभी तो सुबह होने का,
रोज इंतजार करता है।
की कब हँसता हुआ 
चेहरा उनका देखूं।।


जिस तरह वो बैचैन, 
 मिलने को रहते है।
हमारा मन भी उनसे, 
मिलने को तड़पता है।
तभी दोनों इधर उधर,
देखते रहते है।
निगाहें मिलने पर,
मानो एक हो जाते है।।


भले ही वो मुझे,
कुछ न कहे मुंह से।
पर दिल उनकी आंखों को,
पढ़कर सब समझता है।
हंसते हुए होठों से मानो, 
 कोई गुलाब खिलता है।
सामने खड़ा भंवरा भी,
गुलाब को पसंद करता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
18/02/2020


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