संजय शुक्ल कोलकाता।

हथेलियों की दुआ साथ लेके आई हो।
कभी तो रंग मेरा हाथ की हिनाई हो।।


कोई तो हो जो मेरे मन को रोशनी कर दे।
किसी का प्यार सबां मेरे नाम लाई हो।।


आरिज़े गुल की छुवन खुशबू-ए वफ़ा लाई।
किसी के हाथ की खुशबू बहार लाई हो।।


कभी तो हो मेरे घर में भी ऐसा मंज़र ।
बहार खुद ही मेरी खिडकी से मुस्कुराई हो।।


वो सोने-जागने का मौसमों का फुसूं ।
संजय नींद में हो मगर नींद भी न आई हो।।


✍🏻रचनाकार: संजय शुक्ल
कोलकाता।


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