सत्य प्रकाश पाण्डेय

तुम्ही बंधु और मीत हमारे
तुम्ही हो जीवन के रखवारे


स्वांत बून्द को तरसे चातक
माँ की ममता को ज्यों जातक
वैसे दरस परस को स्वामिन
है यहां व्याकुल प्राण हमारे
तुम्ही बंधु..........
तुम्ही हो ...........


फसल को है बरसा की चाहत
जल पाकर मछली को राहत
मझधार डूबती नैया को प्रभु
जैसे तिनका बन जाएं सहारे
तुम्ही बंधु.........
तुम्ही हो...........


अज्ञ हिय को वेदों की वाणी
जैसे पावस सबको लगे सुहानी
अंधकार सा घिरा यह जीवन
बनो आशा की किरणें प्यारे
तुम्ही बंधु .......
तुम्ही हो........


अलंकारों से काव्य अलंकृत
संस्कृति से संस्कार सुसंस्कृत
तेरी परम् ज्योति से स्वामी
अब हृदय मण्डित होंय हमारे
तुम्ही बंधु.........
तुम्ही हो जीवन ............।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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