सत्यप्रकाश पाण्डेय

मधुशाला में जाकर प्याले 
गम के मैं पीने लगा हूँ
पुरानी यादों का सहारा ले
अब मैं भी जीने लगा हूँ


समझता रहा जिंदगी जिसे
वह मुझसे दूर चली गई
मेरे दिल की हसरत थी जो
वही तो चेन निगल गई


सुर्ख जवानी ललचाती रही
और हम आहें भरते रहे
वो सैलाव बन दहलाती रही
हम पाने के लिए मरते रहे



अब मदहोश रहने लगा हूँ मैं
जाम जवानी का देखकर
और एक वह है निशफिक्र सी
हमारी हालत से बेखबर


बहुत जुल्मोसितम सह लिए
सत्य मत नादान तू बन
खुदबखुद आ जायेगी पास
तूही है उसका जीवन धन।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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