सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन कान्हा तेरी बंशी मन को लुभाती है

 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


भजन


कान्हा तेरी बंशी मन को लुभाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


सुन वेणु का नाद मिले खुशी मुझको
विश्रांति मिलती करके स्मरण इसको


एक उमंग सी मेरे हृदय में समाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


मझधार में जीवन झंझावात ने घेरा है
बिन कृपा स्वामी चहुंओर अंधेरा है


बन अरुणिमा बंशी प्रभात बुलाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


कैसा सौभाग्य मिला अधरों पै विराजे
गोवर्धन धारों उन करकमलों पै राजे


निशदिन माधव तेरे संग सुहाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


मुरलीधर घनश्याम की जय💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...