सत्यप्रकाश पाण्डेय

तेरे बिन अधूरा हूँ.....


जब से जीवन ज्योति बनकर
किया आलोकित हृदय आँगन
अपनी यौवन सुरभि से सजनी
महकाया है मेरा मन उपवन


डाल बाहों का हार प्रियतमा
मेरा हृदय कर दिया अलंकृत
पिक सी मीठी वाणी सुनकर
रोम रोम हो जाता है झंकृत


कुंतल पुंज अलि बन करके
मुखरित करते है मुख मण्डल
मोती सी आभा दन्त अवलि
शोभित है मकराकृत कुण्डल


भूल गया सारे गम जगती के
तुम्हें पाकर ही भव में पूरा हूँ
तुम नहीं तो कुछ न जीवन में
सजनी मैं तेरे बिना अधूरा हूँ।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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