स्नेहलता नीर रुड़की

गीत


छूकर मेरा तन-मन *मोहन* ,मुझे मलय कर दो।
दो सद्बुद्धि विवेक *दयानिधि* ,भाग्य उदय कर दो ।
1
अनजानी सी डोर *अनन्ता* ,बाँधे है तुमसे।
यही तुम्हारा ठौर- ठिकाना कहती है मुझसे।
निश्छल मन की प्रीति *साँवरे* , तुम अक्षय कर दो।
दो सद्बुद्धि विवेक *दयानिधि* ,भाग्य उदय कर दो।
2
स्वर मुरली के मधुर *चतुर्भुज* ,अति मन को भाते.।
बजने लगती है पायलिया,पाँव थिरक जाते।
मेरी बातों में मीठे स्वर, *कृष्ण* विलय कर दो।
दो सद्बुद्धि विवेक दयानिधि,भाग्य उदय कर दो।
3
आ जाओ *देवेश* , *मनोहर* ,तुम्हें बुलाती हूँ।
करती हूँ मनुहार तुम्हारे,स्वप्न सजाती हूँ।
प्रणय निवेदन के भावों को,देवालय कर दो।
दो सद्बुद्धि विवेक *दयानिधि* ,भाग्य उदय कर दो।
4
अंतहीन मन के उपवन में, पतझर  छाया है।
दुख की बदली ने आँखों
 से,जल बरसाया है।
मन की बगिया को *माधव* मधु,मास निलय कर दो।
दो सद्बुद्धि विवेक दयानिधि,भाग्य उदय कर दो
5
राग-द्वेष,छल-छंदों की प्रभु ,फसलें हरी-भरी।
सद्भावों की कोमल कलियाँ,रहतीं डरी-डरी।।
गंगा की पावन धारा-सा,विमल हृदय कर दो।
दो सद्बुद्धि विवेक *दयानिधि* ,भाग्य उदय कर दो।
स्नेहलता नीर


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