सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
         *"आंगन"*
"महकता रहे जीवन आंगन,
हर पल खिलते रहे फूल।
अपनत्व के आंगन में साथी,
दे न अपना कोई शूल।।
कर देना तुम क्षमा साथी,
अपनो से हो जाये भूल।
प्रेम पथिक तुम बन साथी,
बन जाना जीवन का मूल।।
आस्था-विश्वास से ही ही तो,
अपनत्व के खिलते फूल।
अपनो के आधात से ही,
तन-मन में चुभते शूल।।
चाह यही साथी अब जग में,
हो न जाये कोई भूल।
महकता रहे जीवन आंगन,
हर पल खिलते रहे फूल।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        09-02-2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...