सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
         *"बंधन"*
"छोड़े स्मरण प्रभु राम का,
पल-पल मन तरसा हैं।
मोह-माया बंधन संग,
तन-मन फिर जकड़ा हैं।।
स्वार्थ अहंकार  में फिर,
पल-पल मन भटका हैं।
पाये सुख की छाया फिर,
सुख को मन तरसा हैं।।
विलासिता ही जीवन का,
बन गया आधार हैं।
छोड़े बंधन जीवन के,
मन करे न विचार हैं।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          10-02-2020


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