सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"पतझड़"*
"देखता ही रहा जीवन में,
पतझड़ संग-
पत्तो की झरन।
बेबस सोचता रहा हर पल,
कब-थमेगी साथी-
जीवन की घुटन।
प्रतीक्षा में मधुमास की,
साथी बढ़ती रही-
जीवन में कुढ़न।
बढ़ती रही पीड़ा पतझड़ की,
साथी मिला नहीं-
मधुमास का संग।
भौरो की गूँजन से साथी,
जीवन में-
मोह हुआ भंग।
चाहत में मधुमास की साथी,
हो गया जीवन में-
प्रतीक्षा का अंत।
देखता ही रहा जीवन में,
पतझड़ संग-
पत्तो की झरन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         14-02-2020


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