सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"ढ़ाई आखर प्रेम के"*
"बिन प्रेम के साथी ,
जीवन नहीं-
बंज़र भूमि सा लगता ।
पलने लगता अहंकार इसमें,
नीरस हो कर-
बेकार लगने लगता।
पनपने लगती नफ़रत,
जीवन संबंधों को-
साथी खोने लगता।
धन-वैभव सम्पन्नता भी,
दे न पाती सुख-
अकेलापन खलने लगता।
पढ़ लेते जो जीवन में साथी,
ढ़ाई आखर प्रेम का-
जीवन सच लगने लगता।
महक उठती जीवन बगिया,
जीवन सपना -
सच लगने लगता।
अपनत्व होता अपनों में,
जीवन में -
प्रेम दीप जलने लगता।
ढ़ाई आखर प्रेम का साथी,
हर मन में पलने लगता-
जीवन का हर सपना सच लगता।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः            सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         11-02-2020


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