विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-705

देखा सुना चकित हूं
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शब्दों ने क्या रूप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।


परिवर्तन से पूर्ण प्रभावित
रूप स्वरुप बिगड़ते दिखते
मर्यादाएं व्यथित संकुचित
कर्कश कुंठित कायर लिखते
बढ़ती गढ़ती गहन गंध मे
मन से बहुत बहुत व्यथित हूं
शब्दों ने क्या रुप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।


आशंका बलवती हो रही
संबंधों मे सड़न बढ़ रहा
प्रश्न चिन्ह लग रहे चरित्र पर
षड्यंत्रों के शीर्ष चढ़ रहा
कैसे मुक्ति राह पर जाउं
पुष्प सदृश अर्पित हूं
शब्दों ने क्या रूप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।


विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-705


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