अनुरंजन कुमार "अंचल"                अररिया, बिहार

ग़ज़ल


तेरी मोहब्बत में मैं उम्र भर मरना सीख रहा हूं
दिन - रात मैं तेरी इबादत करना सीख रहा हूं।


तेरी याद मुझे आती किसी को क्या बताऊं मैं
 मैं पागल हूं,तेरा दिल में उभरना सीख रहा हूं।


दर्द - ए - दिल के कारण से मैंने सबको भूल गया 
 अपनी मंजिल की राह से उतरना सीख रहा हूं।


तेरी मोहब्बत में मेरा परिवार रुस्वा हो गया
अपनी आंसू से मैं रूमाल भरना सीख रहा हूं।


तेरी फितरत थी कैसी, ये तो  मुझे  पता नहीं था
ये इश्क़ में मैं तन्हा होकर गुजरना सीख रहा हूं।


इश्क की रोचक कहानी मुझे पल-पल याद रहेगी
तेरा इश्क़ के मस्तूल से मैं तैरना सीख रहा हूं।


 


          अनुरंजन कुमार "अंचल"
               अररिया, बिहार
             7488139688


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...