बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु) बाढ़ - पटना

नव्य वर्ष 


डाली - डाली महकेगी अब, हर पत्ता भी बोलेगा
हर  शजर तैयार है इतना, झूम - झूमकर डोलेगा।


नव्य वर्ष की वेला है ये, खुशियों और उल्लासों का
बागों में बहार है आयी,चमक- धमक उजासों का।


माटी  चंदन  सा  लगता  है,दिखता जैसे जन्नत है
सज जाती है धरा हमारी, जान उनकी शोहरत है।


रंग - बिरंगे  फूल  खिले  हैं, खेतों  में  हरियाली  है
इस देश का चमन है महका,कोयल धून निराली है।


देखो सारे पेड़ फल गये, अनाज भरे खलिहानों में
झूमे - नाचे  खुशी  मनाए, उमंग  भरा किसानों में।


वन - उपवन  में  म्यूरा  नाचे, मोरनी  ताल  लगावे
रंग-रंग के फुदक चिरैया, सब का ई दिल बहलावे।


हवा   वसंती  पुरवाई  में, अपना  ई  खेल  दिखावे
विरहिन की तो बात अलग है,दर्द देह में भर आवे।


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु)
बाढ़ - पटना


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