डाॅ बिपिन पाण्डेय           रुड़की

होली की हार्दिक शुभकामनाएं-
कुंडलिया छंद-*(कृति "शब्दों का अनुनाद" से)
होली पर जो प्यार के,डाले हमने रंग।
फीके सारे  हो गए, लोग करें  हुडदंग।।
लोग करें हुडदंग,तोड़कर  हर मर्यादा।
रहा नहीं कुछ याद,किया जो खुद से वादा।
घूमें लिए गुलाल,साथ में रंग की झोली।
पीकर घूमें भांग,कहें सब आई होली।।1


होली में भी हैं नहीं,सखी पिया जी साथ।
मुझे अकेली देखकर, देवर पकड़े हाथ।
देवर  पकड़े हाथ, गाल पर  रंग लगाए।
आती मुझको लाज,नहीं पर वह शर्माए।
आगे  पीछे  घूम, करे है  रोज़  ठिठोली।
मुझे लगा  लो अंग,कहे वह  आई होली।।2


होली के त्योहार की,बड़ी निराली बात।
रंग- बिरंगे  हो गए,सबके  ही जज़्बात।।
सबके ही जज़्बात,हिरन से भरें कुलाँचें।
बूढ़े  हुए  जवान ,प्रेम  की  चिट्ठी  बाँचें।
डालें सब पर रंग,भिगाएँ अँगिया चोली।
उम्र जाति सब भूल,मनाएँ मिलकर होली।।3
         डाॅ बिपिन पाण्डेय
          रुड़की


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