मां
सांसों की शहनाई बाजी
मन वीणा के तार हुए झंकृत
देख के तेरा रूप सलोना
दिल मेरा हो गया अलंकृत
छंद उपमा अलंकार ओं में
रूप तेरा ना बांध पाऊंगी
ना ताकत है लेखनी में
वर्णन तेरा कर पाऊंगी
प्रलय काल की इस बेला में
मां मुझको धीर बंधा देना
सृष्टि के इस हाहाकार में
गोद में मुझको उठा लेना
फूल से नाजुक दिल है मेरा
वेद ना सह पाएगा
करुणा मई तुम कहलाती
दृष्टि अपनी बरसा देना
फस जाऊं जो भवर में
मां मुझको तुम बचा लेना
विश्वास है मन को मा यह
तुम दौड़ी-दौड़ी आओगी
संकट में हो बालक तो
तुम कैसे रह पाओ गी
जय श्री तिवारी खंडवा
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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